Class 11 Hindi Core आरोह भाग-1 काव्य-खंड पाठ 1. हम तौ एक एक करि जांनां, संतों देखत जग बौराना

Class 11 Hindi Core आरोह भाग-1 काव्य-खंड पाठ 1. हम तौ एक एक करि जांनां, संतों देखत जग बौराना

Class 11 Hindi Core आरोह भाग-1 काव्य-खंड पाठ 1. हम तौ एक एक करि जांनां, संतों देखत जग बौराना

प्रश्न बैंक - सह - उत्तर पुस्तक (Question Bank-Cum-Answer Book)

Class - 11 Hindi Core

आरोह भाग -1 काव्य-खंड

पाठ 1. हम तौ एक एक करि जांनां, संतों देखत जग बौराना- कबीर

जीवन-सह-साहित्यिक परिचय

कवि का नाम - कबीर दास

जन्म- सन् 1398 अनुमानित

स्थान- काशी के निकट 'लहरतारा' नामक तालाब के पास (उ.प्र.)

माता-पिता- नीमा नीरु (जुलाहा दंपति)

पत्नी- लोई

पुत्र- कमाल

पुत्री- कमाली

गुरु- स्वामी रामानंद

निधन- सन् 1518 बस्ती के निकट मगहर में।

रचनाएँ- कबीरदास की वाणी का संग्रह 'बीजक' कहलाता है। इसके तीन भाग हैं- साखी, सबद और रमैनी। कबीर की सभी रचनाएं 'कबीर ग्रंथावली' में संग्रहित हैं। उनकी कुछ रचनाएं सिखों के धर्म ग्रंथ 'गुरु ग्रंथ साहिब' में भी संग्रहित हैं।

 साहित्यिक विशेषताएँ

कबीर भक्ति काल के निर्गुण धारा जानाश्रयी शाखा के प्रतिनिधि कवि हैं। भारत के महान संतों में कबीर दास अग्रगण्य कवि हैं। वह अपनी बात को साफ एवं दो टूक शब्दों में प्रभावी ढंग से कह देने के हिमायती थे, 'बन पड़े तो सीधे-सीधे नहीं तो दरेरा देकर।' इसलिए कबीर को हजारी प्रसाद ‌द्विवेदी ने 'वाणी का डिक्टेटर' कहा है।

वह पढ़े-लिखे नहीं थे, उन्होंने खुद (अपने बारे में) लिखा है- "मसि कागदे छुयो नहि कलम गहि नहि हाथ।" उन्होंने देशा टन, सत्संग और जीवन के अनुभव से सारा जान प्राप्त किया है। किताबी ज्ञान की बजाय आँखों देखा सत्य और अनुभव को प्राथमिकता दिया।

किताबी ज्ञान के स्थान पर अनुभव आधारित ज्ञान उन्हें इतना था कि अपने तर्कों के माध्यम से बड़े-बड़े ज्ञानियों को निरुत्तर कर देते थे। कबीर ने अपनी कविताओं के माध्यम से समाज में व्याप्त जाति-भेद, कर्म-कांड और हुआ-छूत पर करारा प्रहार किया है। उनके काव्य में सिद्ध, नाथ, जैन और सूफी संतों का प्रभाव साफ-साफ दिखाई पड़ता है। उन्होंने अपने काव्य के माध्यम से हिन्दू-मुस्लिम एकता तथा विभिन्न सम्प्रदायों के बीच समन्वय स्थापित करने का प्रयास किया है। उनका काव्य तत्कालीन सामाजिक व्यवस्था का खुला दस्तावेज है।

कबीर की भाषा को 'पंचमेल खिचड़ी' भी कहा जाता है। जिसमें तत्कालीन सभी भाषाओं का संगम दिखता है।

'साखी' में उन्होंने राजस्थानी, पंजाबी भाषा का मिश्रित रूप अपनाया है जबकि 'रमैणी' और 'सबद' में ब्रजभाषा और पूर्वी हिंदी का प्रयोग किया है। उनकी भाषा में सूक्ष्म से सूक्ष्म भावों को भी अभिव्यक्त करने की अद्भुत क्षमता है। इसलिए आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने कबीर दास की भाषा को "सधुक्कड़ी भाषा" कहा है।

 पाठ-परिचय

प्रस्तुत पद जयदेव सिंह और वासुदेव सिंह द्वारा संकलित सम्पादित कबीर वाङ्मय खंड 2 (सबद) से पद लिया गया है।

इस पद में कबीर ने ईश्वर की सर्वव्यापकता पर प्रकाश डाला है। उनके अनुसार परमात्मा सृष्टि के कण-कण में मौजूद है। इश्वर की सर्वव्यापकता को जो लोग धर्म और जाति के चश्मों से देखते हैं उनपर कवि ने करारा व्यंग्य प्रहार किया है।

इस पद में कबीर ने अनेक उदाहरणों और दृष्टान्तों के माध्यम से ईश्वर की महत्ता का प्रतिपादन किया है।

अंत में हम कह सकते हैं कि कबीर अपने समय के सच्चे साधक, समाज सुधारक और कवि हैं। जिन्होंने अपनी कविताओं के माध्यम से समाज में ज्ञान की अलख जगाने का काम किया।

 पाठ्यपुस्तक के प्रश्न-अभ्यास

पद के साथ

प्रश्न. 1. कबीर की दृष्टि में ईश्वर एक है। इसके समर्थन में उन्होंने क्या तर्क दिए हैं?

उत्तर कबीर की दृष्टि में ईश्वर एक है। उन्होंने इसके समर्थन में तर्क देते हुए कहा है कि संसार में प्रत्येक जगह एक जैसी हवाँ, एक जैसा पानी और एक ही ज्योर्तिपुंज यानि प्रकाश व्याप्त है। प्रत्येक जीव को जीवित रहने के लिए इन सब चीजों की आवश्यकता एक जैसी पड़ती है और जिसने भी इन सब चीजों का निर्माण किया है, वह बिना किसी भेदभाव के सभी प्राणियों को ये सारी चीजें सुलभ करा रहा है। जिससे यह साबित होता है कि ईश्वर एक है, भले ही हम लोग उसको अलग-अलग नामों से पुकारते हैं।

प्रश्न. 2. मानव शरीर का निर्माण किन पंच तों से हुआ है?

उत्तर- भारतीय दर्शन तथा योग में पृथ्वी (क्षिति), जल (अप), अग्नि (ताप), वायु (पवन) एवं गगन (शून्य) को पंचतत्त्व या पंचमहाभूत कहा जाता है। इन्हीं पंचतत्त्वों के द्वारा मानव शरीर का निर्माण हुआ है।

प्रश्न-3. जैसे बाढ़ी काष्ट ही काटै अगिनि न काटै कोई।

सब घटि अंतरि तूंही व्यापक धरै सरूपै सोई॥

इसके आधार पर बताइए कि कबीर की दृष्टि में ईश्वर का क्या स्वरूप है?

उत्तर- कबीरदास ईश्वर के स्वरूप के विषय में अपनी बात को उदाहरण के द्वारा पुष्ट करते हुए कहते हैं कि लकड़ी के भीतर आग हर वक्त मौजूद रहती है जो सिर्फ लकड़ी के जलने पर ही दिखाई देती हैं। जिस प्रकार बढ़ई लकड़ी को काट देता है, परंतु उस लकड़ी में समाई हुई अग्नि को नहीं काट पाता, उसी प्रकार प्रत्येक मनुष्य के शरीर में ईश्वर व्याप्त है जो शरीर के नष्ट होने पर भी नष्ट नहीं होती। वह सर्वव्यापक तथा अजर-अमर है क्योंकि वह परमात्मा का ही अंश है और परमात्मा सभी जीवों के अंदर आत्मा के रूप में बसता है।

प्रश्न. 4. कबीर ने अपने को दीवाना क्यों कहा है?

उत्तर- कबीरदास जी जान चुके हैं कि आत्मा परमात्मा एक हैं और सभी जीव उसी परमात्मा के अंश हैं। इसीलिए वो संसार के सभी माया मोह के बंधनों से मुक्त होकर एकदम निर्भय हो चुके हैं। अब उन्हें न कुछ खोने का डर हैं और न कुछ सांसारिक वस्तु पाने की इच्छा। अब वो एक दीवानें की तरह सिर्फ प्रभु भक्ति में लीन हैं। इसीलिए वो अपने आप को दीवाना' कहते हैं।

 अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर (बहुविकल्पीय प्रश्न)

1. हिन्दी साहित्य के इतिहास के कबीर कौन से काल के संत कवि थे?

(क) आदिकाल

(ख) भक्ति काल

(ग) रीति काल

(घ) आधुनिक काल

2. कबीर कौन सी काव्यधारा के कवि थे?

(क) सगुण भक्ति

(ख) रीतिबद्ध

(ग) रीतिमुक्त

(घ) निर्गुण भक्ति

3. कबीर की प्रतिनिधि रचना का क्या नाम है?

(क) आखिरी कलाम

(ख) बीजक

(ग) पद्मावस

(घ) मधु मालती।

4. कबीर के काव्य की आषा क्या है?

(क) अवहट्ट

(ख) प्राकृत

(ग) शोरसैनी

(घ) सधुक्कड़ी

5. कबीर का जन्म कहाँ माना जाता है?

(क) मगहर

(ख) अयोध्या

(ग) काशी

(घ) मथुरा

6. कबीर दास किस परंपरा के कवि थे?

क. राम भक्ति परंपरा

ख. कृष्ण भक्ति परंपरा

ग. संत परंपरा

घ. इनमें से सभी

7. कबीर के माता-पिता का नाम क्या था ?

क. नीमा और नीरु

ख. मोहन और गीला

ग. सोहन और सीमा

घ. इनमें से कोई नहीं

8. कबीर दास की मृत्यु कहां हुई?

क- मगहर

ख- दिल्ली

ग- गुजरात

घ- जयपुर

9. कबीर किस शाखा के कवि थे ?

क. प्रेमाश्रयीशाखा

ख. ज्ञानाश्रयी शाखा

ग. (क) और (ख)

घ. इनमें से कोई नहीं

10. कबीर के पदों का संग्रह किस पुस्तक में मिलता है?

क- साखी

ख- सबद

ग रमैनी

घ- बीजक

11. कबीर के गुरु का क्या नाम था ?

क- सन्त प्रेमानन्द

ख- रामानन्द

ग- रामानुजाचार्य

घ- रैदास

12. कबीर को वाणी का डिक्टेटर किसने कहा है ?

क- डॉ. नगेन्द्र

ख- हजारीप्रसाद द्विवेदी

ग- महावीरप्रसाद द्विवेदी

घ- रामचन्द्र शुक्ल

13. 'रमैनी' किसकी रचना है ?

क- बिहारी

ख- सूरदास

ग- कबीर

घ- तुलसी

14. कबीरदास की रचना 'बीजक' का संकलन किसने किया?

क- धर्मदास

ख-करण दास

ग- रामदास

घ- सूरदास

15. गुमाना शब्द का अर्थ है-

(क) गुम हो जाना

(ख) घूमना

(ग) अहंकार

(घ) अधिकार

16. कबीर दास की पत्नी का क्या नाम है?

क. लोइ

ख. कमाली

ग. नीमा

घ. इनमें से कोई नही

17. बन पड़े तो सीधे-सीधे नहीं तो दरेरा देकर, किसका कहना है ?

क. रविदास

ख. सुंदर दास

ग. कबीर

घ. नंददास

18. कबीर दास को किस तालाब के किनारे पाया गया था?

क. लहरतारा

ख. ध्रुव तारा

ग. इंद्र सरोवर

घ. इनमें से कोई नहीं

19. 'मसि कागद छुयो नहीं कलम गहि नहीं हाथ' यह पंक्ति किस संत कवि की है।

क. नंददास

ख. रविदास

ग. परमानंद दास

घ. कबीरदास

20. कबीर की भाषा को सधुक्कड़ी भाषा किसने कहा है?

क. आचार्य रामचंद्र शुक्ल

ख. पं हजारी प्रसाद द्विवेदी

ग. पं पंडित महावीर प्रसाद द्विवेदी

घ. इनमें से कोई नहीं.

21. कुम्हार कितने प्रकार की मिट्टी को मिलाकर बर्तनों का निर्माण करता है -

(क) अलग-अलग प्रकार की

(ख) एक ही प्रकार की

(ग) लगभग एक ही प्रकार की

(घ) विपरीत तरह की

22. "एकै खाक गढ़े सब भांडै एकै कॉहरा सांनां", इस पंक्ति में "कॉहरा" शब्द का क्या अर्थ हैं-

(क) कुम्हार

(ख) ईश्वर

(ग) कोहरा

(घ) धुंधला

23. कबीरदासजी ने प्रकृति के किन रूपों को एकाकार करना चाहा

(क) आकाश और धरती को

(ख) पानी और मिट्टी को

(ग) अग्नि और हवा को

(घ) पानी और हवा को

24. कबीरदासजी के अनुसार, जो लोग ईश्वर को अलग- अलग मानते हैं, वो किस जगह के अधिकारी हैं-

(क) स्वर्ग क

(ख) नर्क के

(ग) परलोक के

(घ) भूलोक के

25. "दोजग" का अर्थ है-

(क) दो गज जमीन

(ख) दो जगह

(ग) स्वर्ग

(घ) नर्क

26. "हम तौ एक एक करि जांनां", में कौन सा अलंकार है-

(क) रूपक अलंकार

(ख) अतिश्योक्ति अलंकार

(ग) यमक अलंकार

(घ) मानवीकरण अलंकार

27. मानव शरीर का निर्माण कितने तत्त्वों से हुआ है-

(क) तीन

(ख) छः

(ग) पांच

(घ) सात

28. "जैसे बाढ़ी काष्ट ही काटै", में "बाढ़ी" का क्या अर्थ हैं

(क) लकड़ी

(ख) बढ़ई

(ग) कुमार

(घ) कुम्हार

29. "काष्ट ही काटै", में अलंकार है

(क) मानवीकरण अलंकार

(ख) अतिश्योक्ति अलंकार

(ग) अनुप्रास अलंकार

(घ) रूपक

30. "सरूपै सोई", में कौन सा अलंकार है-

(क) अनुप्रास अलंकार

(ख) रूपक अलंकार

(ग) श्लेष अलंकार

(घ) उत्प्रेक्षा अलंकार

 अतिलघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. कबीर के प्रमुख एवं प्रामाणिक ग्रन्थ का क्या नाम है?

उत्तर- कबीर के प्रमुख एवं प्रामाणिक ग्रन्थ का नाम 'बीजक' है। 'साखी', 'सबद' और 'रमैनी' इसके तीन भाग हैं।

2. परमात्मा के विषय में कबीरदास क्या कहते हैं?

उत्तर- कबीरदास कहते हैं कि परमात्मा एक है। वह सभी प्राणियों के हृदय में समाया हुआ है और वह अजर- अमर है।

3. संसार नश्वर है, परंतु आत्मा अमर है- कैसे?

उत्तर- कबीर का कहना है कि जिस प्रकार लकड़ी को काटा जा सकता है, परंतु उसके अंदर की अग्नि को नहीं काटा जा सकता। उसी प्रकार शरीर नष्ट हो जाता है, परंतु आत्मा को नष्ट नहीं किया जा सकता, वह अजर अमरे और अविनाशी है।

4. कबीर की भाषा को सधुक्कड़ी भाषा किसने कहा है?

उत्तर- कबीर की भाषा को आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने सधुक्कड़ी भाषा कहा है।

5. साखी की भाषा क्या है?

उत्तर- 'साखी' की भाषा राजस्थानी, पंजाबी मिश्रित खड़ी बोली है।

6. रमैनी की भाषा क्या है?

उत्तर- 'रमैनी' ब्रजभाषा और पूर्वी हिंदी में लिखी गई है।

7. 'मसि कागज छ्यो नहीं कलम गहि नहीं हाथ' यह पंक्ति किस कवि ने अपने लिए कही है?

उत्तर- यह पंक्ति कबीर दास ने अपने लिए कही है।

8. कबीर का जन्म कब और कहां हुआ था?

उत्तर- कबीर का जन्म सन् 1398 में काशी के निकट लहरतारा के पास माना जाता है।

9. कबीर को 'वाणी का डिक्टेटर' किसने कहा है ?

उत्तर- आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने कबीर की भाषा को 'वाणी का डिक्टेटर' कहा है।

 लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. कबीर ने ईश्वर के बारे में क्या कहा हैं?

उत्तर- कबीर जी के अनुसार संसार में एक ही जल, एक ही पवन और सभी के अंदर एक ही ज्योति समाई हुई हैं। उनके अनुसार ईश्वर एक है। कबीर अपनी बात की पुष्टि में कहते हैं कि सभी बर्तन एक ही मिट्टी से बने है और एक ही कुम्हार इसे सानता हैं। ठीक इसी तरह सभी मनुष्यों के अंदर एक ही ईश्वर विद्यमान हैं चाहे रूप कोई भी हो। सभी को एक ही ईश्वर बनाता है और अंत में सब उसके पास ही चले जाते है। इसलिए जब तक जीवित हो तब तक सभी से एक ही व्यवहार और मित्रवत तरीके से रहना चाहिए।

प्रश्न 2. कबीर ने ईश्वर के शरीर की व्याख्या कैसे की है?

उत्तर- कबीरदास जी कहते हैं कि ईश्वर अविनाशी हैं। उन्होंने अपने निम्न पद में ईश्वर की व्याख्या कि हैं-

जैसे बाढी काष्ट ही काटै अगिनी न काटै न कोई।

सब घटि अंतरि तू ही व्यापक धरै सरूपै सोई।।

कबीरदास जी बताते हैं कि सभी के अंदर ईश्वर का वास आत्मा के स्वरूप में होता है। जैसे लकड़ी के अंदर अग्नि समाई होती है। इसी तरह ईश्वर सर्वव्यापक, अजर-अमर और अविनाशी है। बढ़ई लकड़ी को अनेक रूपों में काट सकता है परन्तु उसमें समाई अग्नि को नष्ट नहीं कर सकता। ठीक इसी प्रकार ईश्वर अनश्वर हैं और आत्मा अमर।

प्रश्न 3. कबीर के अनुसार कैसे लोग ईश्वरीय तत्त्वों से दूर रहते हैं?

उत्तर- कबीर जी के अनुसार वह लोग ईश्वरीय तत्वों से दूर रहते हैं जो आडंबर, पीर औलिया, और पाखंड में आलिया, अंधविश्वास रखते हैं। इन लोगों में से कोई भी धर्म के वास्तविक स्वरूप को नहीं पहचानते और आत्मज्ञान से वंचित रह जाते हैं। इस बात से सभी लोग अनजान है कि ईश्वर उनके हृदय में विद्यमान हैं।

प्रश्न 4. कबीर ईश्वर की भक्ति में किस तरह खोए हुए है?

उत्तर- दीवानों की तरह कबीर ईश्वर की भक्ति में खोए हैं। कबीर जी का खुद को दीवाना कहने का अर्थ पागल कहना हैं। कबीर जी ने ईश्वर के वास्तविक स्वरूप को प्राप्त कर लिया है। बाहरी दुनिया आडंबरों में ईश्वर को खोज रही हैं। अपनी भक्ति कि आम विचारधारा से अलग होने के कारण वह खुद को पागल कहते हैं। वह ईश्वरीय भक्ति में कुछ इस प्रकार खो गए हैं कि उन्हें सामाजिक सुख-दुःख का जान ही नहीं रहता।

प्रश्न 5. परमात्मा को यदि पाना है तो कबीर जी के अनुसार किन दोषों से दूर रहना चाहिए?

उत्तर- परमात्मा को पाने के लिए कबीर मोह, माया, अज्ञान, घमंड आदि से दूर रहने की सलाह देते हैं। क्योंकि मोह, माया, अज्ञान, घमंड तथा भय आदि परमात्मा को पाने में बाधक हैं। कबीर दास के अनुसार असली साधक में इन दुर्गुणों का समावेश नहीं होता।

 दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोतर

1. कबीर का संक्षिप्त जीवन परिचय दीजिए।

उत्तर- संत कवियों में कबीर दास का नाम सर्वोपरि है। वे भक्ति काल के निर्गुण जानाश्रयी शाखा के प्रतिनिधि कवि माने जाते हैं। इनके जन्म के बारे में कई तरह की किंवदंतियाँ प्रचलित है। माना जाता है कि कबीर दास का जन्म लगभग 1398 ई. में उत्तर प्रदेश में काशी के पास लहरतारा नामक स्थान में हुआ था। उनका पालन- पोषण नीमा और नीरु नामक जुलाहा दंपति ने किया था। उन्होंने अपनी कई कविताओं में स्वयं को काशी का जुलाहा कहा है। वे पढ़े-लिखे नहीं थे। अपने बारे में उन्होंने स्वयं कहा है-

'मसि कागज फुयाँ नहीं कलम गहि नहीं हाथ'

सारा ज्ञान उन्होंने देशाटन और सत्संग के द्वारा प्राप्त किया। उन्होंने किताबी ज्ञान के बजाय आंखों देखा सत्य और अनुभव को प्राथमिकता दी-

'मैं कहता हीँ आंखन देखी तू कहता कागद की लेखी।' कबीर अपने अनुभव द्वारा प्राप्त जान से अपने तर्कों के माध्यम से बड़े बड़े ज्ञानियों को भी निरुत्तर कर देते थे।

उनकी प्रमुख रचना बीजक है। इसके तीन अंग हैं- साखी, सबद और रमैनी। जिसे उनके शिष्य धरमदास जी ने संकलित किया है। उन्होंने अपनी कविताओं के माध्यम से समाज में व्याप्त जाति-भेद, कर्म-कांड और छुआ-छूत पर तीखा प्रहार किया है। उनके काव्य में सिद्ध, नाथ, जैन और सूफी संतों का प्रभाव साफ-साफ दिखाई पड़ता है। उनकी रचनाओं में गुरुभक्ति, ईश्वर के प्रति अनन्य प्रेम, साधु-महिमा, जगत-बोध एवं आत्म-बोध की अभिव्यक्ति हुई है। उन्होंने अपने काव्य के माध्यम से हिन्दू मुस्लिम एकता तथा विभिन्न सम्प्रदायों के बीच समन्वय स्थापित करने का प्रयास किया है। साथ ही दोनों धर्म में मौजूद अंधविश्वासों को निशाना बनाया।

उनकी भाषा में तत्कालीन सभी भाषाओं का संगम दिखता है। उनकी भाषा राजस्थानी, गुजराती, अवधि, पंजाबी एवं ब्रजभाषा का मिला-जुला रूप है। इसलिए उनकी भाषा को पंचमेल खिचड़ी भी कहा जाता है। हजारी प्रसाद द्विवेदी जी ने उन्हें 'वाणी का डिक्टेटर' कहा है और आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने उनकी भाषा को 'सधुक्कड़ी भाषा' कहा है।

2. निम्नलिखित पंक्तियों की सप्रसंग व्याख्या करें-

हम तौ एक एक करि जांनां ।

दोड़ कह तिनहीं कर्को दोजग जिन नाहिंन पहिचांनां।

एकै पवन एक ही पार्टी एकै जोति समांनां।

एकै खाक गढ़े सब भांडै एकै कोहरा सांनां।

प्रसंग- प्रस्तुत पद हमारे पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित निर्गुण ज्ञानाश्रयी शाखा के सर्वश्रेष्ठ कवि कबीर के पद से उद्धत है। इस पद में, कबीर ने एक ही परम तत्त्व की सत्ता को स्वीकार किया है, जिसकी पुष्टि के लिए कई उदाहरण देते हैं।

व्याख्या- कबीरदास कहते हैं कि हमने तो जान लिया है कि ईश्वर एक ही है। इस तरह से मैंने ईश्वर के अ‌द्वैत रूप को पहचान लिया है। हालाँकि कुछ लोग ईश्वर को अलग-अलग बताते हैं उनके लिए नरक की स्थिति है, क्योंकि वे वास्तविकता को नहीं पहचान पाते। वे आत्मा और परमात्मा को अलग-अलग मानते हैं।

कबीर अपनी बात का प्रमाण देते हुए आगे कहते हैं कि संसार में एक जैसी हवा बहती है, एक जैसा पानी है तथा एक ही प्रकाश सबमें समाया हुआ है। कुम्हार भी एक ही तरह की मिट्टी से सब बर्तन बनाता है, भले ही बर्तनों का आकार-प्रकार अलग-अलग हो। बढ़ई लकड़ी को तो काट सकता है, परंतु आग को नहीं काट सकता। इसी प्रकार शरीर नष्ट हो जाता है, परंतु उसमें व्याप्त आत्मा कभी नष्ट नहीं होती। यह संसार माया के जाल में फँसा हुआ है। और वही संसार को लुभाता है। इसलिए मनुष्य को किसी भी बात को लेकर घमंड नहीं करना चाहिए।

विशेष- प्रस्तुत पद में कबीर ने आत्मा और परमात्मा को एक बताया है। उन्होंने माया मोह व गर्व की व्यर्थता पर प्रकाश डाला है। एक एक में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है तथा संपूर्ण पद में कहीं-कहीं अनुप्रास अलंकार की छटा दर्शनीय है। सधुक्कड़ी भाषा एवं पद में गेयता व संगीतात्मकता मौजूद है।

3. "हम तौ एक एक करि जांनां" शीर्षक पद का सार अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर- प्रस्तुत पद में निर्गुण ज्ञानाश्रयी शाखा के प्रमुख संत कवि कबीरदास ने ईश्वर की सर्वव्यापकता को वर्णन किया है। वे किसी भी प्रकार से जाति, धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं करते। उनका मानना है कि आत्मा और परमात्मा एक ही है। उन्होंने कहा है कि ईश्वर एक हैं और उन्हे कण-कण में देखा जा सकता है। जो अज्ञानी हैं वो परमात्मा और संसार को अलग-अलग मानते हैं। परमात्मा तो चर और अचर, जड़ और चेतन सभी में समाया हुआ है। परमात्मा की इस व्याप्ति को कबीर अ‌द्वैत सत्ता के रूप में स्वीकार करते हैं। उनका मत है कि इस संसार में सभी प्राणियों को जीवित रहने के लिए एक समान वायु, एक समान जल व प्रकाश की आवश्यकता पड़ती है। जिस प्रकार कुम्हार एक ही मिट्टी से अनेक प्रकार के बर्तनों को बनाता बनाता है, उसी प्रकार ईश्वर भी सभी प्रकार के मनुष्यों अथवा प्राणियों का एक ही तरीके से निर्माण करता है तथा एक ही ईश्वर सबके हृदय में निवास करता है। जिस प्रकार बढ़ई लकड़ी काट सकता है, उसमें निहित अग्नि को नहीं; उसी प्रकार समस्त संसार में एक ही परमात्मा का निवास है। कबीर माया में तल्लीन मनुष्य को चेतावनी देते हैं कि माया से अलग रहकर ही निर्भय रहा जा सकता है।

अंत में कबीर कहते हैं कि लोगों को सांसारिक मोह- माया से मुक्त होकर एक ईश्वर की भक्ति करनी चाहिए। जो इस सांसारिक मोहपाश से मुक्त हो जाता है उसे किसी भी चीज़ का भय नहीं रहता।                                             

JCERT/JAC प्रश्न बैंक - सह - उत्तर पुस्तक (Question Bank-Cum-Answer Book)

विषय सूची 

आरोह भाग-1

पाठ सं.

अध्याय का नाम

काव्य-खण्ड

1.

हम तौ एक एक करि जांनां, संतों देखत जग बौराना- कबीर

2.

मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरो न कोई- मीराबाई

3.

घर की याद भवानी- प्रसाद मिश्र

4.

चंपा काले काले अच्छर नहीं चीन्हती- त्रिलोचन

5.

गज़ल- दुष्यंत कुमार

6.

1. हे भूख ! मत मचल, 2. हे मेरे जूही के फूल जैसे ईश्वर- अक्कमहादेवी

7.

सबसे खतरनाक- अवतार सिंह पाश

8.

आओ, मिलकर बचाएँ- निर्मला पुतुल

गद्य-खण्ड

1.

नमक का दारोगा- मुंशी प्रेमचंद

2.

मियाँ नसीरुद्दीन- कृष्णा सोबती

3.

अपू के साथ ढाई साल- सत्यजित राय

4.

विदाई-संभाषण- बालमुकुंद गुप्त

5.

गलता लोहा- शेखर जोशी

6.

रजनी- मन्नू भंडारी

7.

जामुन का पेड़- कृश्नचंदर

8.

भारत माता- पंडित जवाहर लाल नेहरू

वितान

1.

भारतीय गायिकाओं में बेजोड़ लता मंगेशकर - कुमार गंधर्व

2.

राजस्थान की रजत बूँदें - अनुपम मिश्र

3.

आलो - आँधारी - बेबी हालदार

4.

भारतीय कलाएँ

अभिव्यक्ति और माध्यम

1.

जनसंचार माध्यम

2.

पत्रकारिता के विविध आयाम

3.

डायरी लिखने की कला

4.

पटकथा लेखन

5.

कार्यालयी लेखन और प्रक्रिया

6.

स्ववृत्त (बायोडेटा) लेखन और रोजगार संबंधी आवेदन पत्र

JAC वार्षिक परीक्षा, 2023 प्रश्नोत्तर(Arts)

JAC वार्षिक परीक्षा, 2023 प्रश्नोत्तर(Sci/Comm) 

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