प्रश्न बैंक - सह - उत्तर पुस्तक (Question Bank-Cum-Answer Book)
Class - 12
Political Science
अध्याय- 4 भारत के विदेश संबंध
बहुविकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Question)
1. 'स्वतंत्र भारत के प्रथम विदेश मंत्री कौन थे?
A. जवाहरलाल नेहरू
B.
सरदार बल्लभ भाई पटेल
C.
डॉ राजेंद्र प्रसाद
D.
सर्वपल्ली राधाकृष्णन
2. गुटनिरपेक्ष आंदोलन का स्थापना कब हुआ ?
A. 1955
B.
1961
C.
1965
D.
1966
3. स्वतंत्र भारत के प्रथम गृह मंत्री कौन थे?
A.
पंडित जवाहरलाल नेहरू
B. सरदार बल्लभ भाई पटेल
C.
सर्वपल्ली राधाकृष्णन
D.
डॉ० राजेंद्र प्रसाद
4. शिमला समझौता कब हुआ था?
A.
1966
B. 1972
C.
1975
D.
1979
5. सिंधु जल संधि 1960 में किनके बीच हुआ था?
A.
भारत-चीन
B. भारत-पाकिस्तान
C.
भारत-बांग्लादेश
D.
भारत-नेपाल
6. एफ्रो एशियाई सम्मेलन कब और कहां हुआ था?
A.
1945 बांडुंग
B. 1955 बांडुंग
C.
1960 एशिया
D.
1965 चीन
7. पंचशील समझौता भारत और चीन के बीच कब हुआ था?
A.
20 अप्रैल 1951
B.
25 अप्रैल 1953
C.
27 अप्रैल 1952
D. 29 अप्रैल 1954
8. गुट निरपेक्ष आंदोलन का पहला सम्मेलन कहां हुआ था?
A.
ब्रिटेन
B. बेलग्रेड
C.
कंबोडिया
D.
जापान
9. चीन ने भारत पर आक्रमण कब किया?
A.
1960
B. 1962
C.
1965
D.
1971
10. भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी टूट कर कब अलग हुआ?
A.
1950
B.
1954
C.
1960
D. 1964
11. सिंधु नदी जल संधि के दौरान भारत और पाकिस्तान का नेतृत्व किसने
किया था?
A. पंडित जवाहरलाल नेहरू और अयूब खान
B.
पंडित जवाहरलाल नेहरू और लियाकत अली
C.
बल्लभ भाई पटेल और बेनजीर भुट्टो
D.
श्रीमती इंदिरा गांधी और परवेज मुशर्रफ .
12. शिमला समझौता मैं भारत और पाकिस्तान का नेतृत्व किसने किया था?
A.
नेहरू और अयूब खान
B. श्रीमती इंदिरा गांधी और जुल्फिकार अली भुट्टो
C.
श्रीमती इंदिरा गांधी और नवाज शरीफ
D.
लाल बहादुर शास्त्री और अयूब खान
13. कारगिल युद्ध कब हुआ था?
A.
1971
B. 1999
C.
1995
D.
1991
14. भारत ने अपना पहला परमाणु परीक्षण कब किया था?
A.
1964
B. 1974
C.
1984
D.
1994
15.
परमाणु अप्रसार संधि लाई गई थी?
A. 1968
B.
1988
C.
1978
D.
1991
16. इन कथनों के आगे सही या गलत का निशान लगाएँ:
A.
गुटनिरपेक्षता की नीति अपनाने के कारण भारत, सोवियत संघ और संयुक्त राज्य अमरीका, दोनों
के सहायता हासिल कर सका।
B.
अपने पड़ोसी देशों के साथ भारत के संबंध शुरूआत से ही तनावपूर्ण रहे।
C.
शीतयुद्ध का असर भारत-पाक संबंधों पर भी पड़ा।
D.
1971 की शांति और मैत्री की संधि संयुक्त राज्य अमरीका से भारत की निकटता का परिणाम
थी।
उत्तर- A. सही, B. गलत. C. सही. D. गलत
17. निम्नलिखित का सही जोड़ा मिलाएँ:
A.
1950-64 के दौरान भारत की विदेश नीति का लक्ष्य- |
(i)
तिब्बत के धार्मिक नेता जो सीमा पार करके भारत चले आए। |
B.
पंचशील- |
(ii)
क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता की रक्षा तथा आर्थिक विकास। |
C.
बांडुंग सम्मेलन- |
(iii)
शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के पाँच सिद्धांत |
D.
दलाई लामा- |
(iv)
इसकी परिणति गुटनिरपेक्ष आंदोलन में हुई। |
उत्तर:-
A.1950-64 के दौरान भारत की विदेश नीति का लक्ष्य- (ii) क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता
की रक्षा तथा आर्थिक विकास
B.
पंचशील - शांतिपूर्ण सहअस्तित्व के पाँच सिद्धांत
C.
बांडुंग सम्मेलन -(iv) इसकी परिणति गुटनिरपेक्ष आंदोलन में हुई।
D.
दलाई लामा - (i) तिब्बत के धार्मिक नेता जो सीमा पार करके भारत चले आए।
अति लघु उत्तरीय प्रश्न-
1. विदेश नीति से आप क्या समझते हैं?
उत्तर-
जब एक देश विभिन्न देशों, अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों अन्तर्राष्ट्रीय गतिविधियों तथा
आन्दोलनों व अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं के प्रति जिन नीतियों को अपनाता है। उन नीतियों
को सामूहिक रूप से विदेश नीति कहा जाता है
2. पंडित जवाहरलाल नेहरू के विदेश नीति के उद्देश्य क्या थे?
उत्तर-
नेहरू जी की विदेश नीति के तीन मुख्य उद्देश्य थे :-
1.
संघर्ष से प्राप्त सम्प्रभुता को बचाए रखना ।
2.
क्षेत्रीय अखंडता को बनाए रखना।
3.
तेज गति से आर्थिक विकास करना।
भारत
की विदेश नीति पर देश के पहले प्रधानमंत्री एवं विदेश मंत्री पं जवाहर लाल नेहरू की
अमिट छाप है।
3. भारत के विदेश नीति के कौन-कौन से सिद्धांत थे?
उत्तर-
भारत की विदेश नीति के मुख्य सिद्धान्त :-
1.
गुटनिरपेक्षता
2.
निःशस्त्रीकरण
3.
वसुधैव कुटुम्बकम
4.
अंतर्राष्ट्रीय मामलों में स्वतंत्रतापूर्वक एवं सक्रिय भागीदारी
5.
पंचशील
6.
साम्राज्यवाद का विरोध
7.
अंतर्राष्ट्रीय विवादों का शांतिपूर्ण समाधान
4. ताशकंद समझौता कब और किसके बीच हुई थी?
उत्तर-
ताशकन्द समझौता भारत और पाकिस्तान के बीच 10 जनवरी 1966 को हुआ एक शान्ति समझौता था।
इस समझौते के अनुसार यह तय हुआ कि भारत और पाकिस्तान अपनी शक्ति का प्रयोग एक दुसरे
के खिलाफ नहीं करेंगे और अपने झगड़ों को शान्तिपूर्ण ढंग से तय करेंगे।
5. बांडुंग सम्मेलन क्या था?
उत्तर-
बांडुंग सम्मेलन 1955 में 18-24 अप्रैल के मध्य इंडोनेशिया के बांडुंग में पांच देशों
(बर्मा, श्रीलंका, भारत, इंडोनेशिया व पाकिस्तान) ने मिलकर एक सम्मेलन आयोजित किया
था, जिसे बांडुंग सम्मेलन कहा जाता है।
6. 'जय जवान जय किसान' का नारा किसने दिया था?
उत्तर-
जय जवान जय किसान भारत का एक प्रसिद्ध नारा है। यह नारा 1965 के भारत पाक युद्ध के
दौरान भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री ने दिया था। इसे भारत
का राष्ट्रीय नारा भी कहते हैं जो जवान एवं किसान के श्रम को दिखाता है।
लघु उत्तरीय प्रश्न-
1. गुटनिरपेक्षता का क्या अर्थ होता है?
उत्तर-
गुटनिरपेक्षता का अर्थ है कि विभिन्न शक्ति गुटों से तटस्थ या दूर रहते हुए अपनी स्वतन्त्र
निर्णय नीति और राष्ट्रीय हित के अनुसार सही या न्याय का साथ देना। अपनी संप्रभुता
को बचाए रखना । और भारत को तीव्र आर्थिक व सामाजिक विकास के लक्ष्य को भी प्राप्त करना
था। अतः इन दोनों उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए भारत ने गुट निरपेक्षता की नीति को
अपनी और विदेश नीति के एक प्रमुख तत्व के रूप में अंगीकार किया।
इसी
कड़ी में 1955 में इंडोनेशिया के शहर बांडुंग में एफ्रो एशियाई सम्मेलन हुआ, जिसमें
गुट निरपेक्ष आंदोलन की नींव पड़ी। गुट निरपेक्ष आंदोलन का पहला सम्मेलन 1961 के सितंबर
में बेलग्रेड में हुआ था. इसकी स्थापना में नेहरू की महत्वपूर्ण भूमिका रही थी। इस
नीति के द्वारा भारत जहाँ शीतयुद्ध के परस्पर विरोधी खेमों तथा उनके द्वारा संचालित
सैन्य संगठनों जैसे नाटो (NATO), - वारसा पेक्ट आदि से अपने को दूर रख सका। वहीं आवश्यकता
पड़ने पर दोनों ही खेमों से आर्थिक व सामरिक सहायता भी प्राप्त कर सका।
2. पंचशील समझौता क्या था?
उत्तर-
भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने चीन से अच्छे संबंध बनाने की
पहल की 11949 में चीनी क्रांति के बाद चीन की कम्यूनिस्ट सरकार को मान्यता देने वाला
भारत पहले देशों में एक था।
29
अप्रैल 1954 को भारत के प्रधानमंत्री पं नेहरू तथा चीन के प्रमुख चाऊ एन लाई के बीच
पांच बातों पर द्विपक्षीय समझौता हुआ।
1.
एक दूसरे के विरुद्ध आक्रमण न करना।
2.
एक दूसरे के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करना।
3.
एक दूसरे की क्षेत्रीय अखंडता का आदर करना।
4.
समानता और परस्पर मित्रता की भावना
5.
शांतिपूर्ण सह अस्तित्व ।
इस
समझौता को पंचशील समझौता के नाम से जाना गया।
3. नेहरू विदेश नीति के संचालन को स्वतंत्रता का एक अनिवार्य संकेतक
क्यों मानते थे? अपने उत्तर में दो कारण बताएँ और उनके पक्ष में उदाहरण भी दें।
उत्तर-
भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री के रूप में
1946 एवं 1964 तक उन्होंने भारत की विदेश नीति की रचना और क्रियान्वयन पर अपना अमिट
छाप छोड़ा। पं नेहरू की विदेश नीति के तीन बड़े उद्देश्य थे कठिन संघर्ष से प्राप्त
संप्रभुता को बचाए रखना, क्षेत्रीय अखंडता को बनाए रखना और तेज रफ्तार से आर्थिक विकास
करना। पं नेहरू इन उद्देश्यों को गुटनिरपेक्षता की नीति अपना कर हासिल करना चाहते थे।
पं नेहरू विदेश नीति के संचालन को स्वतंत्रता का एक अनिवार्य संकेत इसलिए मानते थे,
क्योंकि विदेश नीति का संचालन वही देश कर सकता है, जो स्वतंत्र हो जैसे आजादी से पहले
भारत स्वयं अपनी विदेश नीति का संचालन नहीं कर पाता था, बल्कि ब्रिटिश सरकार करती थी।
4. विदेश नीति का निर्धारण घरेलू जरूरत और अंतर्राष्ट्रीय परिस्थितियों
के दोहरे दबाव में होता है। 1960 के दशक में भारत द्वारा अपनाई गई विदेश नीति से एक
उदाहरण देते हुए अपने उत्तर की पुष्टि करें।
उत्तर-
यह सही बात है कि विदेश नीति का निर्धारण घरेलू जरूरत और अंतर्राष्ट्रीय परिस्थितियों
के दोहरे दबाव में होता है क्योंकि प्रत्येक देश राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता देता
है। पहले भारत सोवियत संघ पर निर्भर था क्योंकि सोवियत संघ ने कश्मीर के मामले में
भारत की सहायता की थी। 1962 में चीन के आक्रमण के समय भारत को अपनी सुरक्षा नीति, उत्तर-पूर्व
के क्षेत्रों के प्रति अपनी नीति, सैनिक ढांचे के आधुनिकरण आदि के बारे में फिर से
विचार करना पड़ा और अपने रक्षा बजट में वृद्धि करनी पड़ी। साथ ही भारत ने 1960 के दशक
में जो विदेश नीति अपनाई इस पर चीन और पाकिस्तान के युद्ध, राजनीतिक परिस्थितियाँ तथा
शीतयुद्ध का प्रभाव साफ-साफ देखा जा सकता है।
5. भारत की परमाणु नीति पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर-
भारत ने 1974 में परमाणु परीक्षण किया। इसकी शुरुआत 1940 में होमी जहाँगीर भाभा के
निर्देशन में हो चुकी थी। भारत शांतिपूर्ण उद्देश्यों में इस्तेमाल के लिए परमाणु ऊर्जा
बनाना चाहता था। नेहरू परमाणु हथियारों के खिलाफ थे। उन्होंने महाशक्तियों पर व्यापक
परमाणु निशस्त्रीकरण के लिए जोर दिया। लेकिन, परमाणु हथियारों में बढ़ोत्तरी होती रही।
चीन ने भी 1964 में परमाणु परीक्षण किया। अणुशक्ति सम्पत्र राष्ट यानी संयुक्त राज्य
अमेरीका, सोवियत संघ, ब्रिटेन, फ्रांस और चीन ने जो संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा
परिषद् के स्थायी सदस्य भी थे, दुनिया के अन्य देशों पर 1968 की परमाणु अप्रसार संधि
को थोपना चाहा। भारत हमेशा से इस संधि को भेदभावपूर्ण मानता आया था। भारत ने इस पर
दस्तखत करने से इनकार कर दिया था। भारत ने जब अपना पहला परमाणु परीक्षण किया तो इसे
उसने शांतिपूर्ण परीक्षण करार दिया। भारत का कहना था कि वह अणुशक्ति को सिर्फ शांतिपूर्ण
उद्देश्यों में उपयोग करने की अपनी नीति के प्रति कृतसंकल्प है।
6. क्या विदेश नीति के मामलों पर सर्व सहमति आवश्यक है?
उत्तर-
किसी भी देश के लिए विदेश नीति बहुत ही महत्वपूर्ण मामला है इसलिए इसमें सर्व सम्मति
आवश्यक है क्योंकि पर्दि सर्व सम्मति नहीं रहेगी तो अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर अपना पक्ष
प्रभावशाली तरीके से नहीं रख पायेंगे। भारत की विदेश नीति की विशेषताएँ जैसे- गुट निरपेक्षता,
साम्राज्यवाद, उपनिवेशवाद का विरोध, अन्य देशों से मित्रतापूर्ण संबंध बनाना तथा अंतर्राष्ट्रीय
शांति व सुरक्षा को बढ़ावा आदि पर हमेशा सर्व सम्मति रही है।
7. क्या भारत की विदेश नीति से यह झलकता है कि भारत क्षेत्रीय स्तर
को महाशक्ति बनना चाहता है ? 1971 के बांग्लादेश युद्ध के संदर्भ में इस प्रश्न पर
विचार करें।
उत्तर-
भारत की विदेश नीति का संचालन इस प्रकार से किया गया है कि भारत विश्व में महाशक्ति
बनकर उभरे। बांग्लादेश के निर्माण के लिए पाकिस्तान की पूर्वी पाकिस्तान के प्रति उपेक्षापूर्ण
नीतियाँ थी। भारत हमेशा से शांतिपूर्ण नीतियों में विश्वास करता आया है। भारत ने बांग्लादेश
युद्ध के समय भी पाकिस्तान को हराया परंतु उनके सैनिकों को सम्मान के साथ रिहा कर दिया।
पाकिस्तान की भेदभावपूर्ण नीतियाँ और उपेक्षित व्यवहार के कारण ही पूर्वी पाकिस्तान
की जनता विद्रोह कर बैठी और यह युद्ध का रूप ले लिया। भारत ने इसे अपना नैतिक समर्थन
दिया। 1971 के के युद्ध बाद एक नया देश बांग्लादेश के रूप में उभरा और भारत का भी विश्व
में गौरव प्राप्त हुआ।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न-
1. भारत की विदेश नीति का निर्माण शांति और सहयोग के सिद्धांतों को
आधार मानकर हुआ। लेकिन, 1962-1971 की अवधि यानी महज दस सालों में भारत को तीन युद्धों
का सामना करना पड़ा। क्या आपको लगता है कि यह भारत की विदेश नीति की असफलता है अथवा
आप इसे अंतर्राष्ट्रीय परिस्थितियों का परिणाम मानेंगे ? अपने मंतव्य के पक्ष में तर्क
दीजिए।
उत्तर-
1962-1971 तक भारत को तीन युद्ध लड़ने पड़े। जिसमें कुछ हद तक भारत की विदेश नीति की
असफलता भी मानी जाती है, तथा अंतर्राष्ट्रीय परिस्थितियों का परिणाम भी 1962 में चीन
ने हिन्दी चीनी भाई-भाई का नारा देकर भारत के साथ विश्वासघात किया। पंचशील के सिद्धान्तों
पर हस्ताक्षर करने के बावजूद चीन ने 1962 में भारत पर आक्रमण किया। निःसन्देह यह भारत
की विदेश नीति की एक तरह से असफलता थी ।
हम
उनकी मंशा को सही ढंग से भाँप नहीं पाए। भारतीय नेताओं को शान्ति दूत के रूप में अन्तर्राष्ट्रीय
छवि बनाने की ज्यादा चाहत थी। इस युद्ध से भारत के स्वाभिमान को चोट पहुँची लेकिन इसके
साथ राष्ट्रीय भावना भी बलवती हुई। यदि नेहरू कूटनीति से काम लेकर दूरदर्शिता दिखाई
होती हो तो हम चीनी आक्रमण का उपयुक्त जबाव दे सकते थे। शान्ति व सहयोग की नीति पर
चलने के लिए हमें सशक्त होना भी जरूरी है।
1965
में पाकिस्तान ने भारत पर आक्रमण किया, लेकिन उस समय प्रधानमन्त्री लाल बहादुर शास्त्री
के नेतृत्व में भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सेना को करारी शिकस्त दी। अन्तर्राष्ट्रीय
स्तर पर भारत की विदेश नीति की धाक जमी इसे असफल नहीं माना जा सकता ।
1971
में बांग्लादेश के मामले पर तत्कालीन प्रधानमन्त्री इन्दिरा गाँधी ने एक सफल कूटनीतिज्ञ
के रूप में बांग्लादेश की स्वतन्त्रता का समर्थन किया और स्थायी रूप से युद्ध में सब
जायज है और राजनीति में कोई स्थायी शत्रु या मित्र नही होता, बल्कि परिस्थितियों के
अनुसार राष्ट्रीय हित में विदेश नीति का संचालन किया जाता है। इस प्रकार से इन्दिरा
गांधी ने अपनी सफल कूटनीति का परिचय दिया।
युद्ध
में इस निर्णायक जीत से देश में उत्साह की लहर दौड़ गई और अधिकांश भारतवासियों ने इसे
गौरव की घड़ी के रूप में देखा। यह भारतीय विदेश नीति का सफल प्रदर्शन था।
2. भारत चीन संबंधों का वर्णन करें।
उत्तर-
भारत ने चीन के साथ अपने रिश्तों की शुरुआत बड़े ही दोस्ताना ढंग से की चीनी क्रांति
1949 में हुई थी। इस क्रांति के बाद भारत, चीन की कम्युनिस्ट सरकार को मान्यता देने
वाले पहले देशों में एक था। पश्चिमी प्रभुत्व के चंगुल से निकलने वाले इस देश को लेकर
नेहरू के हृदय में गहरे भाव थे और उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय फलक पर इस सरकार की मदद
की।
शांतिपूर्ण
सहअस्तित्व के पाँच सिद्धांतों यानी पंचशील की घोषणा भारत के प्रधानमंत्री नेहरू और
चीन के प्रमुख चाऊ एन लाई ने संयुक्त रूप से 29 अप्रैल 1954 में की। दोनों देशों के
बीच मजबूत संबंध की दिशा में यह एक अगला कदम था। भारत और चीन के नेता एक-दूसरे के देश
का दौरा करते थे और उनके स्वागत में बड़ी भीड़ जुटती थी।
लेकिन
चीन के साथ भारत के इस दोस्ताना रिश्ते में कुछ कारणों से खटास आई। चीन ने 1950 में
तिब्बत पर कब्ज़ा कर लिया। इससे भारत और चीन के बीच ऐतिहासिक रूप से जो एक मध्यवर्ती
राज्य बना चला आ रहा था, वह खत्म हो गया।
शुरू-शुरू
में भारत सरकार ने चीन के इस कदम का खुले तौर पर विरोध नहीं किया। बहरहाल, तिब्बत की
संस्कृति कुचलने की खबरें जैसे-जैसे सामने आने लगी, वैसे वैसे भारत की बेचैनी भी बढी
तिब्बत के धार्मिक नेता दलाई लामा ने भारत से राजनीतिक शरण माँगी और 1959 में भारत
ने शरण दे दी। चीन ने इसे अपने अंदरूनी मामलों में हस्तक्षेप का आरोप लगाया।
इससे
कुछ दिनों पहले भारत और चीन के बीच एक सीमा विवाद भी उठ खड़ा हुआ था। भारत का दावा
था कि चीन के साथ रेखा का मामला अंग्रेजी शासन के समय सुलझाया जा चुका है लेकिन चीन
की सरकार का कहना था कि अंग्रेजी शासन के समय का फ़ैसला नहीं माना जा सकता।
चीन
ने भारतीय भू-क्षेत्र में पड़ने वाले दो इलाकों जम्मू कश्मीर लद्दाख वाले हिस्से के
अक्साई चीन और अरुणाचल प्रदेश के अधिकांश हिस्सों पर अपना अधिकार जताया। अरुणाचल प्रदेश
को उस समय नेफा या उत्तर-पूर्वी सीमांत कहा जाता था।
1957
से 1959 के बीच चीन ने अक्साई चीन इलाके पर कब्जा कर लिया। दोनों देशों की सेनाओं के
बीच सीमा पर कई बार झड़प हुई।
चीन
ने 1962 के अक्तूबर में दोनों विवादित क्षेत्रों (अक्साई चीन और अरुणाचल प्रदेश) पर
बड़ी तेजी तथा व्यापक स्तर पर हमला कर दिया। और अरुणाचल प्रदेश के कुछ महत्वपूर्ण इलाकों
पर कब्ज़ा कर लिया तथा असम के मैदानी हिस्से के प्रवेशद्वार तक चीनी सेना पहुँच गई
और चीन ने एकतरफा युद्धविराम घोषित कर दिया ।
चीन
युद्ध से भारत की छवि को देश और विदेश दोनों ही जगह धक्का लगा। चीन युद्ध से भारतीय
राष्ट्रीय स्वाभिमान को चोट पहुँची, लेकिन इसके साथ-साथ राष्ट्र-भावना भी बलवती हुई।
कुछ
प्रमुख सैन्य कमांडरों ने या तो इस्तीफा दे दिया या अवकाश ग्रहण कर लिया। नेहरू के
नजदीकी सहयोगी और रक्षामंत्री वी. के. कृष्णमेनन को भी मंत्रिमंडल छोड़ना पड़ा। नेहरू
की छवि भी थोड़ी धूमिल हुई चीन के इरादों को समय रहते न भाँप सकना और सैन्य तैयारी
न कर पाने को लेकर नेहरू की बड़ी आलोचना हुई पहली बार उनके सरकार के खिलाफ अविश्वास
प्रस्ताव लाया गया ।
भारत
और चीन के बीच संबंधों को सामान्य होने में करीब दस साल लग गए। 1976 में दोनों देशों
के बीच पूर्ण राजनयिक संबंध बहाल हो सके। शीर्ष नेता के तौर पर पहली बार अटल बिहारी
वाजपेयी (वे तब विदेश मंत्री थे) 1979 में चीन के दौरे पर गए। बाद में, नेहरू के बाद
राजीव गाँधी बतौर प्रधानमंत्री चीन के दौरे पर गए। इसके बाद से चीन के साथ भारत के
संबंधों में ज्यादा जोर व्यापारिक मसलों पर रहा है।
2003
में भी अटल बिहारी वाजपेयी ने प्रधानमंत्री के तौर पर चीन की यात्रा की जिसमें प्राचीन
सिल्करूट ( नाथूला दर्रा) को व्यापार के लिए खोलने पर सहमति हुई जो 1962 से बंद था।
इससे यह मान्यता भी मिली कि चीन सिक्किम को भारत का अंग मानता है।
3. भारत-पाकिस्तान संबंध का वर्णन करें।
उत्तर-
भारत एवं पाकिस्तान का उदय सांप्रदायिक दंगों के बीच हुआ जिसमें दोनों ही देशों का
सबसे बड़ा मुद्दा कश्मीर मुद्दा रहा। कश्मीर मसले को लेकर पाकिस्तान के साथ बँटवारे
के तुरंत बाद ही संघर्ष छिड़ गया। 1947 के इस संघर्ष के बाद पाकिस्तान ने कश्मीर मुद्दा
को अंतर्राष्ट्रीयकरण किया। संयुक्त राष्ट्र संघ में चीन एवं अमेरिका का साथ पाकिस्तान
को मिला और पाकिस्तान का पक्ष भारी रहा। कश्मीर के सवाल पर हुए संघर्ष के बावजूद भारत
और पाकिस्तान ने मिल- जुल कर प्रयास किया कि बँटवारे के समय जो महिलाएँ अपहृत हुई थीं।
उन्हें अपने परिवार के पास वापस लौटाया जा सके। विश्व बैंक की मध्यस्थता से नदी जल
में हिस्सेदारी को लेकर चला आ रहा एक लंबा विवाद सुलझा लिया गया। नेहरू और जनरल अयूब
खान ने सिंधु नदी जल संधि पर 1960 में हस्ताक्षर किए। भारत-पाक संबंधों में गरमा- गरमी
के बावजूद इस संधि पर ठीक-ठाक अमल होता रहा ।
दोनों
देशों के बीच 1965 में कहीं ज्यादा गंभीर किस्म के सैन्य संघर्ष की शुरुआत हुई। इस
वक्त लालबहादुर शास्त्री भारत के प्रधानमंत्री थे। 1965 के अप्रैल में पाकिस्तान ने
गुजरात के कच्छ इलाके के रन में सैनिक हमला बोला। इसके बाद जम्मू-कश्मीर में उसने अगस्त-
सितंबर के महीने में बड़े पैमाने पर हमला किया। पाकिस्तान के नेताओं को उम्मीद थी कि
जम्मू-कश्मीर की जनता उनका समर्थन करेगी लेकिन ऐसा नहीं हुआ। कश्मीर के मोर्चे पर पाकिस्तानी
सेना की बढ़त को रोकने के लिए प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री ने पंजाब की सीमा की
तरफ से जवाबी हमला करने के आदेश दिए। दोनों देशों की सेनाओं के बीच घनघोर लड़ाई हुई
और भारत की सेना आगे बढ़ते हुए लाहौर के नजदीक तक पहुँच गई। संयुक्त राष्ट्र संघ के
हस्तक्षेप से इस लड़ाई का अंत हुआ। बाद में भारतीय प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री
और पाकिस्तान के जनरल अयूब खान के बीच सोवियत संघ के मध्यस्थ में 1966 में ताशकंद समझौता
हुआ।
बांग्लादेश
युद्ध, 1971
1970
में पाकिस्तान के पहले आम चुनाव में खंडित जनादेश आया। ज़ुल्फिकार अली भुट्टो की पार्टी
पश्चिमी पाकिस्तान में विजयी रही जबकि मुजीबुर्रहमान की पार्टी अवामी लीग ने पूर्वी
पाकिस्तान में जोरदार कामयाबी हासिल की। मुजीबुर्रहमान की पार्टी ने पूर्वी पाकिस्तान
के लिए अलग परिसंघ की मांग करने लगी। जिससे पाकिस्तानी सेना ने 1971 में शेख मुजीब
को गिरफ्तार कर लिया और पूर्वी पाकिस्तान के लोगों पर जुल्म ढाने शुरू किए। जवाब में
पूर्वी पाकिस्तान की जनता ने अपने इलाके यानी मौजूदा बांग्लादेश को पाकिस्तान से मुक्त
कराने के लिए संघर्ष छेड़ दिया।
भारत ने बांग्लादेश के 'मुक्ति संग्राम' को नैतिक समर्थन और भौतिक सहायता दी। पाकिस्तान ने आरोप लगाया कि भारत उसे तोड़ने की साजिश कर रहा है और इस तरह से भारत एवं पाकिस्तान के बीच तनाव बढ़ गया और 1971 के दिसंबर में भारत और पाकिस्तान के बीच एक पूर्णव्यापी युद्ध छिड़ गया। दस दिनों के अंदर भारतीय सेना ने ढाका को तीन तरफ से घेर लिया। जिससे पाकिस्तान को 90,000 सैनिकों के साथ आत्म समर्पण करना पड़ा। बांग्लादेश के रूप में एक स्वतंत्र राष्ट्र के उदय के साथ भारतीय सेना ने अपनी तरफ से एकतरफा युद्ध-विराम घोषित कर दिया। बाद में 3 जुलाई 1972 को इंदिरा गाँधी और जुल्फिकार अली भुट्टो के बीच शिमला समझौते पर दस्तखत हुए और इससे अमन की बहाली हुई। 1998 में प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में भारत एवं पाकिस्तान के आपसी संबंध में विश्वास बढ़ेI अमृतसर एवं लाहौर के बीच बस सेवा प्रारंभ किया गया ताकि भारत एवं पाकिस्तान की जनता को एक दूसरे की यहां आने-जाने एवं आपसी संबंधों को मजबूत करने का मौका मिले और आपसी भाईचारे बढ़े। लेकिन यह संबंध भी अधिक दिनों तक स्थाई नहीं रह पाया और 1999 ई० में कारगिल युद्ध के रूप में सामने आया और दोनों देशों का संबंध वहीं पहुंच गया जहां से शुरू हुआ था।
JCERT/JAC प्रश्न बैंक - सह - उत्तर पुस्तक (Question Bank-Cum-Answer Book)
विषय सूची
भाग 1 ( समकालीन विश्व राजनीति) | |
भाग 2 (स्वतंत्र भारत में राजनीति ) | |