Class 12 History Hazaribagh Pre Board Examination Answer Key – 2024

Class 12 History Hazaribagh Pre Board Examination Answer Key – 2024

 Class 12 History Hazaribagh Pre Board Examination Answer Key – 2024

झारखंड शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद, राँची

प्री टेस्ट वार्षिक परीक्षा - 2025

Class 12th

Sub- History

Marks - 80

Time - 3 H 15M

सामान्य निर्देश:-

■  परीक्षार्थी यथासंभव अपने शब्दों में ही उत्तर दें।

■ सभी प्रश्न अनिवार्य हैं।

■ कुल प्रश्नों की संख्या 52 है।

■ प्रश्न 1 से 30 तक बहुविकल्पिय प्रश्न है। प्रत्येक प्रश्न के चार विकल्प दिए गए है। सही विकल्प का चयन किजिये। प्रत्येक प्रश्न के लिए 01 अंक निर्धारित है।

■ प्रश्न संख्या 31 से 38 तक अतिलघु उत्तरीय प्रश्न है। जिसमे से किन्ही 6 प्रश्नों का उत्तर देना है। प्रत्येक प्रश्न का मान 2 अंक निर्धारित है।

■ प्रश्न संख्या 39 से 46 तक लघु उत्तरीय प्रश्न है। जिसमे से किन्ही 6 प्रश्नों का उत्तर देना अनिवार्य है। प्रत्येक प्रश्न का मान 3 अंक निर्धारित है।

■ प्रश्न संख्या 47 से 52 दीर्घउत्तरीय प्रश्न है। किन्दी 4 प्रश्नों का उत्तर देना अनिवार्य है। प्रत्येक प्रश्न का मान 5 अंक निर्धारित है।

खण्ड-क Group-A

1. हड़प्पा संस्कृति के अवशेष सबसे पहले प्राप्त हुए -

(a) लोथल से

(b) चाहुद‌ड़ो से

(c) हड़प्पा से

(d) मोहनजोद‌ड़ो से

2. हड़प्पा सभ्यता के लोग उपासना करते थे -

(a) अश्व

(b) विष्णु

(c) मातृदेवी

(d) इनमें से कोई नहीं

3. हड़प्पा सभ्यता में कौन सा पशु अज्ञात था ?

(a) गाय

(b) घोड़ा

(c) हाथी

(d) कुत्ता

4. गुप्त साम्राज्य का प्रथम सम्राट कौन था ?

(a) अशोक

(b) श्रीगुप्त

(c) चन्द्रगुप्त

(d) चन्द्रगुप्त मौर्य

5. पाटलिपुत्र की स्थापना की थी -

(a) चन्द्रगुप्त मौर्य

(b) अशोक

(c) उदायिन

(d) अजातशत्रु

6. ऋग्वेद में कुल कितने सूक्त है?

(a) 1050

(b) 1028

(c) 1000

(d) 870

7. हरिषेण की प्रयाग प्रशस्ति संबंधित है

(a) चन्द्रगुप्त

(b) श्रीगुप्त

(c) समुद्रगुप्त

(d) रामगुप्त

8. हम्पी नगर किस साम्राज्य से संबंधित है ?

(a) मैौर्य साम्राज्य

(b) विजयनगर साम्राज्य

(c) गुप्त साम्राज्य

(d) बहमनी साम्राज्य

9. तहकीक हिन्द ग्रन्थ के लेखक है-

(a) इब्नबतूता

(b) अलबरूनी

(c) बर्नियर

(d) अकबर

10. बीजक नामक ग्रंथ के लेखक कौन है?

(a) कबीर

(b) अबुल फजल

(c) फिरदौसी

(d) बरनी

11. कौन सुफी संत अजमेर शरीफ से संबंधित है?

(a) निजामुद्दीन औलिया

(b) बाबा फरीद

(c) मोइनुद्दीन चिश्ती

(d) इनमें कोई नही

12. इब्न-बतुता निवासी था -

(a) मोरक्को

(b) फ्रांस

(c) जर्मनी

(d) इंगलैण्ड

13. शैव धर्म के अनुयायी जाने जाते थे ?

(a) नयनार

(b) अलवार

(c) भागवत

(d) तीर्थंकर

14. नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना किसने की ?

(a) चन्द्रगुप्त

(b) कुमारगुप्त

15. दक्कन विद्रोह कब हुआ था ?

(a) 1870

(b) 1872

(c) 1875

(d) 1865

16. मुगल साम्राज्य का संस्थापक कौन था?

(a) अकबर

(b) जहाँगीर

(c) शाहजहाँ

(d) बा

17. पानीपत की तीसरी युद्ध का वर्ष था –

(a) 1526

(b) 1556

(c) 1761

(d) 1527

18. कोल विद्रोह का नेता कौन था?

(a) कान्हू

(b) बिरसा मुण्डा

(c) बुद्धू ‌भगत

(d) चाँद भैरव

19. स्थायी बन्दोवस्त में भुमि का स्वामी कौन होता था?

(a) जमीदार

(b) कंपनी

(c) रैय

(d) इनमें से सभी

20. 1857 के विद्रोह में कानपुर का नेता कौन था ?

(a) कुँवर सिंह

(b) हजरत महल

(c) नाना साह

(d) इनमे से कोई नहीं

21. ईस्ट इण्डिया कंपनी को बंगाल की दीवानी किसने प्रदान की?

(a) शुजाउदौला

(b) मीर जा

(c) सिराजुदौला

(d) शाहआलम II

22. कॉर्नवालिस कोड कब बना

(a) 1857 ई०

(b) 1793 ई०

(c) 1855 ई०

(d) 1850 ई०

23. प्रत्यक्ष कार्यवाही दिवस मनाया गया

(9) 26 जनवरी 1930

(b) 15 अगस्त 1947

(c) 26 जनवरी 1950

(d) 16 अगस्त 1946

24. खेड़ा कृषक विद्रोह हुआ

(a) 1915 ई०

(b) 1917 ई०

(c) 1918 ई०

(d) 1919 ई०

25. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रथम अध्यक्ष कौन थे?

(a) दादाभाई नौरेजी

(b) वोमेश चन्द्र बनर्जी

(c) सुरेन्द्र नाथ बनर्जी

(d) जे०बी० कृपालानी

26. कैबिनेट मिशन के सदस्य कौन थे ?

(a) ए०वी० अलेक्जेंडर

(b) पैथिक लोरेन्स

(c) स्टेफर्ड क्रिप्स

(d) इनमें से सभी

27. प्रस्तावना में "समाजवादी "शब्द जोड़ा गया-

(a) 40 वे संशोधन में

(b) 42 वे संशोधन में

(c) 44 वे संशोधन में

(d) 46 ने संशोधन में

28. स्वराज्य पार्टी के संस्थापक कौन थे ?

(a) दादाभाई नौरोजी

(b) महात्मा गाँधी

(c) चितरंजन दास

(d) गोपाल कृष्ण गोखले

29. भारत में रेलवे की शुरुआत कब हुई ?

(a) 1853

(b) 1858

(c) 1855

(d) 1856

30. भारत का संविधान कलागू हुआ

(a) 15 अगस्त 1947

(b) 26 जनवरी 1950

(c) 26 नवम्बरी 1949

(d) 26 जनवरी 1929

खण्ड-ख Group. B

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

31. प्राचीन भारतीय इतिहास के अध्ययन के कौन-कौन स्रोत है?

उत्तर - साहित्यिक स्रोत, पुरातात्विक स्रोत, विदेशी विवरण, एवं जनजातीय गाथायें।

32. हिन्दु धर्म के दो महाकाव्य का नाम लिखें।

उत्तर - महाभारत और रामायण

33. मौर्यकालीन इतिहास जानने के प्रमुख साधन क्या है?

उत्तर -

1. मेगस्थनीज द्वारा रचित इंडिका

2. कौटिल्य का अर्थशास्त्र

3. जैन बौद्ध पौराणिक ग्रन्थ

4. विशाखदत्त द्वारा रचित मुद्राराक्षस

5. पुरातात्विक प्रमाण

6. अभिलेख

34. निर्गुण और सगुण भक्ति में क्या अंतर है?

उत्तर -

निर्गुण

सगुण

1. निर्गुण में ज्ञान के द्वारा ईश्वर की प्राप्ति की जाती है।

1. सगुण में भक्ति के द्वारा ईश्वर की प्राप्ति की जाती है।

2. निर्गुण में निराकार ब्रह्म में आस्था होती है।

2. सगुण में साकार ब्रह्म में आस्था होती है।

3. निर्गुण में गुरु के महत्त्व पर ज्यादा ध्यान दिया जाता है।

3. सगुण में गुरु के महत्त्व पर अपेक्षाकृत कम ध्यान दिया जाता है।

4. निर्गुण में सत्संग पर महत्व दिया जाता है।

4. सगुण में भक्ति पर महत्त्व दिया जाता है।

35. सूफी' शब्द की उत्पति किन शब्दों से हुई ?

उत्तर - 'सूफी' शब्द की उत्पत्ति अरबी भाषा के एक शब्द 'शूफ' से हुयी है। सूफ शब्द का शाब्दिक अर्थ होता है एक तरह का गलीचा जो मोटे कपडे (ऊँन ) से बना हुआ होता है।

36. 1857 के विद्रोह के चार महत्वपूर्ण केन्द्रों के नाम लिखें?

उत्तर - दिल्ली, कानपुर, लखनऊ, झांसी

37. भारतीय संविधान सभा की प्रथम बैठक कब और किसकी अध्यक्षता में हुई ?

उत्तर - 9 दिसम्बर, 1946 ई० सच्चिदानन्द सिन्हा की अध्यक्षता में संविधान सभा की प्रथम बैठक।

38. संथाल विद्रोह के प्रमुख नेताओं के नाम लिखें?

उत्तर - सिद्धू मुर्मू, कान्हू मुर्मू, चांद मुर्मू, भैरव मुर्मू

खण्ड Group 'C'

लघु उत्तरीय प्रश्न

39. सिन्धु सभ्यता के दौरान नगर नियोजन पर प्रकाश डालो?

उत्तर - सिंधु घाटी सभ्यता या हड़प्पा सभ्यता की नगर योजना का वर्णन निम्नवत है -

• सिंधु घाटी सभ्यता या हड़प्पा सभ्यता में नगर की सड़कें एवं मकान सुनियोजित ढंग से बनाये जाते थे। मकान बनाने के लिए पक्की ईंटों का प्रयोग किया जाता था।

• सिंधु घाटी की ईंटें एक निश्चित अनुपात में बनाई जाती थीं। अधिकांशतः ईंटें आयताकार आकर की होती थीं। ईंट की लम्बाई, चौड़ाई और मोटाई का अनुपात 4:2:1 था।

• नगर को दो भागों में विभाजित किया गया था, एक भाग छोटा लेकिन ऊंचाई पर बना होता था तो नगर का दूसरा भाग कहीं अधिक बड़ा परन्तु नीचे बनाया गया था। ऊँचें भाग को दुर्ग और निचले भाग को निचला शहर का नाम दिया गया है। दुर्ग को कच्ची ईंटों के चबूतरे पर बनाया जाता था इसलिए यह ऊँचे होते थे।

• दुर्ग को दीवार से घेरा गया था जिसका अर्थ है कि इसे निचले शहर से अलग किया गया था।

• दुर्ग में खाद्य भण्डार गृह, महत्वपूर्ण कार्यशालाएँ, धार्मिक इमारतें तथा जन इमारतें थी। निचले भाग में लोग रहा करते थे।

• हड़प्पा शहरों की सबसे अनूठी विशेषता इसकी जल निकास प्रणाली थी।

• सड़कों तथा गलियों को ग्रिड पद्धति (जालनुमा) में बनाया गया था। सड़कें सीधी थीं और एक- दूसरे को समकोण पर काटती थी।

• ऐसा जान पड़ता है कि पहले नालियों के साथ गालियाँ बनाई गयीं और फिर उनके अगल-बगल मकानों का निर्माण किया गया।

• नालियाँ ईंटों तथा पत्थर से ढकी होती थी। जिनके निर्माण में प्रमुखतः ईंटों और मोर्टार का प्रयोग किया जाता था पर कुछ जगह चुने और जिप्सम का प्रयोग भी मिलता है।

• सिंधु घाटी सभ्यता के दरवाजे और खिड़कियाँ सड़क की तरफ न खुलकर पीछे की तरफ खुलते थे। लेकिन लोथल में ऐसा नहीं मिलता है।

• मकान में स्नानागार प्रमुखतः गली अथवा सड़क के नजदीक बनाया जाता था।

• मोहनजोदड़ो में एक विशाल स्नानागार मिला है जोकि 11.88 मीटर (39 फीट) लम्बा, 7.01 मीटर (23 फीट) चौड़ा और 2.43 मीटर (8 फीट) गहरा था। संभवतः इस स्नानागार का प्रयोग आनुष्ठानिक स्नान के लिए होता था।

40. अशोक के धम्म प्रचार में क्या-क्या उपाय किये ?

उत्तर - बौद्ध धर्म ग्रहण करने के एक वर्ष के बाद अशोक एक साधारण उपासक रहा और इस बीच उसने बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए कोई उद्योग नहीं किया। इसके पश्चात वह संघ की शरण में आया और एक वर्ष से कुछ अधिक समय तक संघ के साथ रहा।

उसने बौद्ध धर्म के प्रचार में अपने विशाल साम्राज्य से सभी साधनों को नियोजित कर दिया। उसके द्वारा किए गए कुछ उपाय पर्याप्त रूप से मौलिक थे। अशोक द्वारा बौद्ध धर्म के प्रचारार्थ अपनाये गये साधनों को हम इस प्रकार रख सकते हैं

1. धर्म - यात्राओं का प्रारंभ

2. राजकीय पदाधिकारियों की नियुक्ति

3. धर्म श्रावन तथा धर्मोपदेश की व्यवस्था

4. धर्म महा मात्रों की नियुक्ति

5. दिव्य रूपों का प्रदर्शन

6. लोकोपकारिता के कार्य

7. धर्म लिपियों का खुदवाना

8. विदेशों में धर्म प्रचारकों को भेजना

41. भारत के प्राचीन काल में मंदिर निर्माण शैली के विकास का वर्णन करें ?

उत्तर - भारत की मंदिर निर्माण की शैलियों को तीन भागों में बांटा जा सकता है द्रविड़ शैली, नागर शैली और वेसर शैली।

द्रविड़ शैली- द्रविड़ शैली की अधिकांश मंदिर दक्षिण भारत में दिखाई पड़ता है जिसमें श्री वृद्धेश्वर मंदिर महाबलीपुरम इत्यादि हैं। इस प्रकार के मंदिर निर्माण की शैली में चारों तरफ दीवाल का घेरा (बाउंड्री वाल) होता है तथा मंदिर के बाहर एक मुख्य दरवाजा होता है जो कि मुख्य मंदिर से बड़ा व भव्य होता है जिसे गोपुरम कहते हैं। द्रविड़ शैली का मंदिर विमानन शैली शिखर का होता है लेकिन यहां सिर्फ मुख्य मंदिर में विमान होता है बाकी मंदिर जो कि मंडप होता है उसमें विमान नहीं पाया जाता। इस प्रकार के मंदिरों में प्रदक्षिणा पथ मुख्य मंदिर के बाहर साइड होता है ।

नागर शैली- नागर शैली की अधिकतम मंदिरों का निर्माण उत्तर भारत में देखने को मिलता है जिसमें से खजुराहो, जगन्नाथ मंदिर लक्ष्मण मंदिर इत्यादि शामिल हैं। इस प्रकार की मंदिर में शिखर curved होते हैं। इस प्रकार के मंदिर में प्रदक्षिणा पथ मुख्य मंदिर के अंदर ही होता है। इस प्रकार के मंदिर के चारों ओर दीवालो का घेरा नहीं होता है तथा मंदिरों के अंदर तलाब  कुएं भी लगभग नहीं पाए जाते।

वेसर शैली- पूरे मध्य भारत में बेसर शैली की अधिकांश मंदिर पाई जाती है बेसर शैली, नागर शैली तथा द्रविड़ शैली का मिलाजुला रूप है इस प्रकार की मंदिर में शिखर को तथा मंडप को अत्यधिक सुंदर बनाया जाता है।

42. विजयनगर की किलेबन्दी पर प्रकाश डाले ?

उत्तर - 15 वीं शताब्दी की दीवारों पर नजर डालते हैं तो ऐसा लगता है कि उनसे इन्हें घेरा गया था। 15 वीं शताब्दी में फारस के शासक के द्वारा कालीकट (कोजीकोड) भेजा गया दूत अब्दुर रज्जाक किले बंदी से बहुत प्रभावित थे तो इसने दुर्ग की 7 पंक्तियों के उल्लेख किया ।

(i) इससे न केवल शहर को बल्कि कृषि में प्रयुक्त आस - पास के क्षेत्र और जगलो को भी घेरा गया था।

(ii) सबसे बाहरी दीवार शहर के चारो तरफ बनी पहाड़ियों को आपस मे जोड़ती थी ।

(iii) यह विशाल राजगिरि पहाड़ियों तथा इनकी संरचना थोड़ी सी शुण्डाकार थी।

(iv) गारा या जोड़ने के लिए कोई भी वस्तु के निर्माण में कही भी उपयोग नही किया जाता था।

(v) उस किलेबंदी की सबसे महत्वपूर्ण बात इसमे खेतो को  घेरा गया था।

"कृषि क्षेत्रों को किलेबंद भू – भाग में क्यों समाहित किया जाता था ।  अक्सर मध्यकालीन घेराबंदिया का मुख्य उद्देश्य प्रतिपक्ष को खाद्य सामग्री से वंचित कर समपर्ण के लिए बाध्य करना होता था । ये घेराबंदिया कई महीनों तथा यहाँ तक कि सालों तक चल सकती थी आमतौर पर शासक ऐसी परिस्थितियों से निपटने के लिए किलेबंदी क्षेत्रो के भीतर ही विशाल अन्नागरो का निर्माण करवाते थे । विजयनगर के शासको ने पूरे कृषि भू – भाग को बचाने के लिए अधिक महंगी और नीति को अपनाया ।

( vii ) दूसरी किलेबंदी नगरीय केंद्र के आतंरिक भाग के चारो ओर बनी हुई थी तथा तीसरी से शासकीय केंद्र घेरा गया था ।

43. पहाड़ियां कौन थे?

उत्तर - औपनिवेशिक काल में राजमहल की पहाड़ियों के आसपास रहने वाले लोगों को पहाड़िया कहा जाता था।

44. कम्यूनल अवार्ड (साम्प्रदायिक प्रंचाट) क्या है?

उत्तर - कम्युनल अवॉर्ड या सांप्रदायिक पंचाट, भारत में धार्मिक और सामाजिक समुदायों के लिए अलग-अलग निर्वाचक मंडल स्थापित करने का एक प्रस्ताव था। इसे ब्रिटिश प्रधानमंत्री रैम्जे मैकडोनाल्ड ने 16 अगस्त, 1932 को घोषित किया था। इसे मैकडोनाल्ड पुरस्कार के नाम से भी जाना जाता है।

45. 1857 विद्रोह के तात्कालिक कारण क्या थे?

उत्तर - यह अफवाह फैल रही थी कि बाजार में ऐसा आटा एवं शक्कर मिल रहे हैं जिसमें सुअर व गाय की हड्डियों एवं खून का चूरा मिलाया गया है। इससे सर्वत्र असंतोष व्याप्त था। इसी बीच चर्बी वाले कारतूस 1857 की क्रांति का तात्कालिक कारण बने। 1856 ई. में ब्रिटिश सरकार ने लोहे की पुरानी बन्दूक्ब्राउन बैस (Brown Bess) के स्थान पर नवीन एनफील्ड रायफल (New Enfield Rifle) सैनिकों को प्रयोगार्थ दीं। इसके कारतूस पर चिकना कागज लगा था। इस कारतूस को बन्दूक में प्रयोग करने से पहले इस कागज को दाँतों से काटकर खोलना पड़ता था। जनवरी 1857 ई. में बंगाल सेना में यह अफवाह फैल गयी कि इन कारतूसों के मुँह पर गाय व सुअर की चर्बी लगाई गई है। 23 जनवरी, 1857 ई. को कलकत्ता के पास दमदम में सेना ने कारतूसों का खुलकर विरोध किया। लोगों ने कहना आरम्भ कर दिया कि ईस्ट इण्डिया कम्पनी औरंगजेब की भूमिका में है, अतः अब हमें शिवाजी बनना ही होगा। इस प्रकार चर्बी वाले कारतूस ही 1857 के विद्रोह का आरम्भ होने के तात्कालिक कारण बने।

46. दाण्डी मार्च के महत्व का वर्णन करें?

उत्तर - दांडी मार्च का महत्व निम्न प्रकार है:

1. दांडी मार्च, भारत के आज़ादी के संग्राम में एक अहम प्रतीकात्मक आंदोलन था। इस आंदोलन ने ब्रिटिश हुकूमत की औपनिवेशिक सत्ता को दबाव में डाला।

2. इस आंदोलन के ज़रिए महात्मा गांधी ने दुनिया को सत्य और अहिंसा की ताकत का परिचय कराया।

3. इस आंदोलन में महिलाओं, किसानों, श्रमिकों, छात्रों, व्यापारियों, और दुकानदारों ने बड़े पैमाने पर हिस्सा लिया।

4. इस आंदोलन ने भारत में ब्रिटेन से होने वाले आयात को कम किया. उदाहरण के लिए, ब्रिटेन से कपड़े का आयात आधा हो गया।

5. इस आंदोलन ने वैश्विक स्तर पर ध्यान आकर्षित किया और साम्राज्यवाद विरोधी संघर्ष की प्रगति में अहम भूमिका निभाई।

6. इस आंदोलन ने ब्रिटिश शासन की नींव को हिलाकर रख दिया।

7. इस आंदोलन ने भारतीय जनता के दिलों से ब्रिटिश कानूनों का भय निकाला और जनता को आंदोलित किया।

खण्ड '' Group D'

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न :

47. हड़प्पा सभ्यता के पतन के कारणों की समीक्षा करें?

उत्तर- हड़प्पा सभ्यता की पतन के संदर्भ में कोई संतोषजनक प्रमाण नहीं मिला है। लगभग अट्ठारह सौ ईसा पूर्व के आसपास इस सभ्यता का पतन हो गया। इस सभ्यता के पतन के संदर्भ में विद्वान एकमत नहीं है फिर भी कुछ ऐसे प्रमाण मिले हैं जिसके द्वारा अनुमान लगाया जाता है कि हड़प्पा सभ्यता के पतन के निम्नलिखित कारण थे-

A. बाढ़- सिंधु घाटी सभ्यता के प्रमुख नगर नदियों के किनारे बसे थे, इन नदियों में प्रतिवर्ष बाढ़ आती थी। बाढ़ से प्रतिवर्ष क्षति भी होती थी। इस कारण से हड़प्पा वासी मूल स्थान को छोड़कर अन्य स्थानों पर रहने के लिए विवश हो गए होंगे।

B. महामारी- मोहनजोदड़ो से प्राप्त नर कंकालों के परीक्षण के पश्चात यह निष्कर्ष निकलता है कि हड़प्पा वासी मलेरिया महामारी जैसे अनेक प्राकृतिक आपदाओं के कारण बीमारियों के शिकार हो गए और उनके जीवन का अंत हो गया। इस कारण से भी इस सभ्यता का पतन हो गया।

C. जलवायु परिवर्तन- अनेक विद्वानों का कहना है कि अचानक सिंधु घाटी क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन के कारण यह हरा भरा क्षेत्र जंगल एवं बारिश की कमी के कारण मरुस्थल के रूप में परिवर्तित हो गया। इस कारण से भी यह सभ्यता नष्ट हो गया।

D. बाह्य आक्रमण- अनेक विद्वानों का अनुमान है कि बाह्य आक्रमण के कारण इस सभ्यता का अंत हुआ। संभवत ये बाह्य आक्रमणकारी आर्य रहे होंगे।

उपयुक्त कारणों के आधार हम कह सकते हैं कि हड़प्पा सभ्यता का पतन हो गया।

48. मौर्य साम्राज्य के पतन के क्या कारण थे ?

उत्तर - मौर्य साम्राज्य के पतन के प्रमुख कारण

(1) योग्य उत्तराधिकारी का अभाव - मौर्य साम्राज्य में अशोक के बाद कोई ऐसा राजा नहीं हुआ जो अशोक द्वारा स्थापित अहिंसात्मक राज्य का प्रतिनिधित्त्व कर सके। अशोक के उत्तराधिकारी अयोग्य, अदूरदर्शी और विलासी प्रकृति के थे, जिसके परिणामस्वरूप सम्पूर्ण साम्राज्य पर अधिकार नहीं स्थापित कर सके, जिससे दूर स्थित प्रान्तों में विद्रोह होने लगे और समय पर वे स्वतन्त्र राज्य बन गये।

(2) साम्राज्य का विघटन - कल्लहण की राजतरंगिणी से ज्ञात होता है कि अशोक की मृत्यु के पश्चात् मौर्य साम्राज्य का विभाजन प्रारम्भ हो गया था, क्योंकि अशोक के पुत्रों में भी आपसी संघर्ष होने लगा था। कश्मीर का प्रान्तीय शासक जालौक ने अपनी स्वतन्त्र सत्ता कायम कर लिया था। यह अशोक का पुत्र था। जालौक ने यूनानी आक्रमण को भी असफल कर दिया था। इस प्रकार से साम्राज्य का विभाजन होने लगा था।

(3) कर्मचारियों के अत्याचार- मौर्य साम्राज्य बहुत विशाल था। अतः राजा सम्पूर्ण प्रान्तों के अधिकारियों के व्यवहार का विवरण नहीं प्राप्त कर पाता था। इसलिए दूर स्थित प्रान्तो के अधिकारी जनता पर कठोर शासन करते थे। बिन्दुसार के समय में तक्षशिला में विद्रोह हुआ। इस विद्रोह को शान्त करने के लिए अशोक अवन्ति से तक्षशिला भेजा गया। आन्दोलन के कारणों को पूछने से ज्ञात हुआ कि-

न वयं कुमारस्य विरुद्धः नापि राज्ञो बिन्दुसारस्य...

अपितु दुष्टात्मा अस्माकं परिभवः कुर्वन्ति

अतः इस प्रकार के अत्याचार जनता में मौर्य साम्राज्य के प्रति घृणा उत्पन्न कर दिये थे।

(4) राजदरबार में गुटबन्दी - प्राप्त साक्ष्यों से ज्ञात होता है कि मौर्य साम्राज्य में गुटबन्दी का बोल-बाला था। अशोक के उत्तराधिकार के समय भी गुटबन्दी का ही बोलबाला मालविकाग्निमित्र से ज्ञात होता है कि अन्तिम राजा वृहद्रथ के समय दो गुट थे। प्रथम दल था। इसी प्रकार अशोक के बाद पुत्रों में साम्राज्य बंटवारे के लिए भी गुटबन्दियाँ चलती थीं। सेनापति पुष्यमित्र का समर्थक था और दूसरा दल सचिव का। दोनों दल अपना प्रभाव स्थापित करना चाहते थे। अतः शासन व्यवस्था शिथिल होती जा रही थी।

(5) राजाओं का अत्याचार- अशोक के बाद के उत्तराधिकारी अयोग्य होने के साथ- साथ ही अत्याचारी भी थे। गार्गी संहिता से ज्ञात होता है स राष्ट्रमर्दते घोर वर्मवादि अधार्मिव: अर्थात् मौर्य सम्राट शालिशूक जनता के साथ अत्याचार करने वाला और अधार्मिक था। इससे जनता मौर्य राजाओं से घृणा करने लगी थी।

(6) करों की अधिकता - साम्राज्य व्यवस्था को सुदृढ़ता प्रदान करने के लिए धन की आवश्यकता होती है। राजा को धन करों द्वारा प्राप्त होता है। कौटिल्य के अर्थशास्त्र से ज्ञात होता है कि जनता पर बहुत अधिक कर लगाये जाते थे। चन्द्रगुप्त मौर्य के समय से नदी, पुल,जुआ (द्यूत), वेश्यावृत्ति आदि निम्न कार्यों पर भी कर लगाये जाते थे। पतंजलि के महाभाष्य से ज्ञात होता है कि मौर्य राज्य में धन संग्रह करने के लिए मूर्तियों को बेचा जाता था। इससे ज्ञात होता है कि अधिक करों के कारण जनता में असन्तोष बढ़ता जाता था।

(7) कोष की रिक्तता- उपलब्ध साक्ष्यों से ज्ञात होता है कि अशोक महान् धर्म प्रचारक था। धर्म प्रचार के लिए उसने शिलालेखों, दान, स्तूपों, मठों, विहारों और लोकोपहितकारी कार्य किया, जिससे राजकोष खाली हो गया था। अशोक के पश्चात् साम्राज्य का विभाजन प्रारम्भ हो गया था, जिससे केन्द्रीय सरकार की आय भी कम हो गयी थी। धनाभाव के कारण राज्याधिकारियों में असन्तोष व्याप्त होना स्वाभाविक था। परिणामस्वरूप साम्राज्य की शासन व्यवस्था नष्ट होने लगी।

(8) सैनिक शक्ति का ह्रास- अशोक ने अहिंसा का इतना व्यापक अर्थ लगाया कि राजनीतिक पक्ष भी उससे अछूता न रह सका, जिसके परिणामस्वरूप सैनिकों में भी अव्यवस्था, विलासिता और हिंसा से विरक्ति उत्पन्न हो गयी। यही कारण है कि अशोक के बाद आन्तरिक आन्दोलनों के दबाने की उसमें शक्ति ही नहीं रह गयी थी, जिससे पतन

(9) ब्राह्मण प्रतिक्रिया- अशोक बौद्ध धर्म को मानने वाला था। उसने अपने धर्म के प्रचार में बाह्याडम्बर को कोई महत्त्व नहीं प्रदान किया था, जिसके प्रतिक्रियास्वरूप ब्राह्मणों ने मौर्य साम्राज्य का विरोध करना प्रारम्भ किया। यहाँ पर डा० एन० एन० घोष का मंतव्य बहुत महत्त्वपूर्ण है-"मौर्यों के विरुद्ध एक तीव्र ब्राह्मण प्रतिक्रिया का जन्म हुआ। मौर्यो का शासन भले ही उदार एवं सहिष्णु रहा हो, परन्तु यज्ञों का विरोध किया गया जो ब्राह्मण धर्म का एक आवश्यक अग था। इस प्रतिक्रिया का नेता पुष्यमित्र था।"

कुछ विद्वानों ने ब्राह्मण प्रतिक्रिया को मौर्य साम्राज्य के पतन का कारण नहीं माना है। उनका मत है कि मौर्य साम्राज्य के अन्त की परिस्थितियों में कोई भी महत्वाकांक्षी सेनापति राजा को मार कर राजा बन सकता था।

(10) विदेशी आक्रमण - विदेशी आक्रमणों के कारण मौर्य साम्राज्य का पतन हुआ। सर्वप्रथम यवन आक्रमण 206 ई०पू० महुआ था। उसके पूर्व ही मौर्य साम्राज्य का पतन होना प्रारम्भ हो गया था। मौर्य साम्राज्य के पतन के समय में ही विदेशी आक्रमण हुए, जिससे पतन और जल्दी हो गया।

49. महावीर जैन के जीवन एवं उपदेशों का वर्णन करें?

उत्तर - महावीर जैन जैन धर्म के 24वें और अंतिम तीर्थंकर थे। उन्हें अहिंसा का प्रतीक माना जाता है और उनके उपदेशों ने लाखों लोगों के जीवन को प्रभावित किया है।

महावीर का जीवन

• जन्म: महावीर का जन्म वैशाली गणराज्य के क्षत्रिय कुंडलपुर में हुआ था।

• त्याग और तपस्या: तीस वर्ष की आयु में उन्होंने संसार के सभी बंधनों को त्याग कर संन्यास ग्रहण किया। बारह वर्षों तक कठोर तपस्या के बाद उन्हें कैवल्य ज्ञान प्राप्त हुआ।

• उपदेश: ज्ञान प्राप्ति के बाद उन्होंने लोगों को अपने उपदेश देने शुरू किए।

• निर्वाण: 72 वर्ष की आयु में पावापुरी में उनका निर्वाण हुआ।

महावीर के उपदेश

• महावीर के उपदेश मुख्यतः अहिंसा, सत्य, अपरिग्रह, ब्रह्मचर्य और अस्तेय पर केंद्रित थे।

• अहिंसा: महावीर ने सभी जीवों के प्रति अहिंसा का महत्व बताया। उन्होंने हिंसा को सबसे बड़ा पाप माना।

• सत्य: उन्होंने सत्य बोलने को सर्वोपरि बताया।

• अपरिग्रह: उन्होंने संपत्ति के मोह को त्यागने और सरल जीवन जीने का उपदेश दिया।

• ब्रह्मचर्य: उन्होंने इंद्रियों पर संयम रखने और ब्रह्मचर्य का पालन करने का महत्व बताया।

• अस्तेय: उन्होंने चोरी न करने का उपदेश दिया।

50. 1857 ई० के विद्रोह के प्रमुख कारणों का वर्णन करें।

उत्तर - 1857 के विद्रोह को सिपाही विद्रोह के नाम से भी जाना जाता है। इस विद्रोह को भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम भी कहा जाता है।

1857 के विद्रोह के निम्नलिखित कारण थे

1. राजनीतिक कारण - राजनीतिक कारणों में सबसे महत्वपूर्ण कारण डलहौजी की गोद निषेध तथा राज्य हड़पनीति थी। उसने इस नीति के तहत सतारा, नागपुर, झांसी, उदयपुर, संबलपुर, जौनपुर, और बघात आदि अनेक राज्यों को ब्रिटिश साम्राज्य का अंग बना लिया जिससे देशी राजाओं में आक्रोश व्याप्त था।

2. सामाजिक कारण: लॉर्ड विलियम बैंटिक ने समाज सुधार के नाम पर भारतीय समाज की अनेक कुरीतियों जैसे सती प्रथा, बाल हत्या, नर बलि जैसे प्रथाओं को बंद करने का प्रयास किया तथा विधवा विवाह का समर्थन कर विधवा पुनर्विवाह कानून लागू किया। भारतीयों ने अपनी सभ्यता के नष्ट हो जाने के डर से इसका विरोध किया।

3. धार्मिक कारणः 1813 ई के चार्टर एक्ट ने ईसाई पादरियों को भारत आने की अनुमति दी। 1850 में एक अधिनियम पारित किया गया जिसके अनुसार यह कानून बना दिया कि धर्म परिवर्तन करने वालों को उनके पैतृक संपत्ति से वंचित नहीं किया जाएगा। स्कूलों में बाइबिल पढ़ना अनिवार्य कर दिया। इससे समस्त भारतीयों में असंतोष व्याप्त था।

4. आर्थिक कारणः ब्रिटिश शासन के कारण गांव की आत्मनिर्भरता समाप्त हो गई थी और कृषि का व्यवसायीकरण हुआ जिससे किसानों पर बोझ पड़ा। 1800 ई से मुक्त व्यापार साम्राज्यवाद को अपनाया गया और धन का निष्कासन हुआ जिसके कारण अर्थव्यवस्था में गिरावट आई।

5. सैनिक कारण: भारतीय सैनिकों को सभी सुविधाएं प्राप्त नहीं थी, जो अंग्रेजी सैनिकों को प्राप्तथी जैसे अंग्रेज सैनिकों की अपेक्षा बहुत कम वेतन, अपमानजनक बर्ताव, शारीरिक हिंसा आदि। 6. तात्कालिक कारण: चर्बी वाला कारतूस का प्रयोग 1857 ई के क्रांति का तात्कालिक कारण था क्योंकि इसे प्रयोग करने के समय मुंह से छिलना पड़ता था जिससे हिंदू और मुस्लिम सैनिकों में असंतोष व्याप्त था।

51. गोलमेज सम्मेलन क्यों बुलाया गया ? यह क्यों असफल हुआ?

उत्तर - अंग्रेज़ सरकार द्वारा भारत में संवैधानिक सुधारों पर चर्चा के लिए 1930-32 के बीच सम्मेलनों की एक श्रृंखला के तहत तीन गोलमेज सम्मेलन आयोजित किये गए थे। पहला गोलमेज सम्मेलन नवंबर 1930 में हुआ था जिसमें देश के प्रमुख नेताओं शामिल नहीं होने के कारण यह सम्मेलन असफल रहा था।

गोलमेज सम्मेलन ब्रिटिश भारत में संवैधानिक सुधारों पर चर्चा करने के लिए आयोजित एक श्रृंखला थी। इन सम्मेलनों का मुख्य उद्देश्य बढ़ते भारतीय राष्ट्रवाद को शांत करना और भारत में ब्रिटिश शासन को और मजबूत करना था।

गोलमेज सम्मेलन क्यों बुलाया गया?

• भारतीय राष्ट्रवाद का उदय: भारत में स्वराज की मांग तेजी से बढ़ रही थी। गांधी जी के नेतृत्व में असहयोग आंदोलन और सविनय अवज्ञा आंदोलन जैसे आंदोलनों ने ब्रिटिश सरकार पर दबाव बढ़ाया।

• साइमन कमीशन की रिपोर्ट: साइमन कमीशन की रिपोर्ट ने भारतीयों में काफी रोष पैदा किया था क्योंकि इसमें किसी भी भारतीय सदस्य को शामिल नहीं किया गया था।

• ब्रिटिश सरकार की नीति: ब्रिटिश सरकार समझती थी कि भारत में शांति और स्थिरता बनाए रखने के लिए कुछ संवैधानिक सुधार करना जरूरी है।

गोलमेज सम्मेलन क्यों असफल हुआ?

गोलमेज सम्मेलन कई कारणों से असफल रहे:

• मूलभूत मतभेद: भारतीय नेताओं और ब्रिटिश सरकार के बीच मूलभूत मतभेद थे। भारतीय नेता पूर्ण स्वराज चाहते थे, जबकि ब्रिटिश सरकार केवल कुछ सीमित अधिकार देने को तैयार थी।

• सांप्रदायिक समस्या: भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच सांप्रदायिक समस्या गहराती जा रही थी। इसने सम्मेलन में सहमति बनाने में एक बड़ी बाधा उत्पन्न की।

• कांग्रेस का बहिष्कार: दूसरे गोलमेज सम्मेलन के बाद कांग्रेस ने तीसरे सम्मेलन में भाग लेने से इनकार कर दिया। इससे सम्मेलन की सफलता पर गहरा असर पड़ा।

• ब्रिटिश सरकार की कठोर नीति: ब्रिटिश सरकार भारतीयों की मांगों को पूरा करने के लिए तैयार नहीं थी। उन्होंने केवल अपने हितों को ध्यान में रखते हुए फैसले लिए।

52. भारतीय संविधान के निर्माण में किन्ही दो महत्वपूर्ण मुद्दो की व्याख्या करें?

उत्तर- संविधान सभा का गठन संविधान निर्मात्री सभा का गठन 'कैबिनेट मिशन' की योजना के आधार पर हुआ था। कैबिनेट मिशन योजना में निश्चित किया गया था कि भारतीय संविधान के निर्माण हेतु "परोक्ष निर्वाचन" के आधार पर एक संविधान सभा की स्थापना की जाये जिसमें कुल 389 सदस्य हों जिसमें से 292 ब्रिटिश प्रान्तों के प्रतिनिधि, 4 चीफ कमिश्नर क्षेत्रों के प्रतिनिधि और 93 देशी रियासतों के प्रतिनिधि हों।

कैबिनेट मिशन योजना के अनुसार जुलाई 1946 में संविधान सभा के कुल 389 सदस्यों में से प्रान्तों के लिए निर्धारित 292 सदस्यों के स्थान को मिलाकर कुल 296 सदस्यों के लिए ही चुनाव हुए जिसमें से काँग्रेस के 208, मुस्लिम लीग के 73 तथा 15 अन्य दलों के व स्वतन्त्र उम्मीदवार निर्वाचित हुए। प्रारम्भिक बैठकों के पश्चात् मुस्लिम लीग ने अपनी निर्बल स्थिति देखकर संविधान सभा के बहिष्कार का निर्णय किया।

वस्तुतः संविधान सभा का गठन तीन चरणों में पूरा हुआ। सर्वप्रथम "कैबिनेट मिशन योजना" के अनुसार संविधान सभा के सदस्यों का निर्वाचन हुआ एवं कुल 389 सदस्यों की संख्या निश्चित की गई।

द्वितीय चरण का आरम्भ 3 जून, 1947 की "विभाजन योजना" से होता है जिसके अनुसार संविधान सभा का पुनर्गठन किया गया जिसमें 324 प्रतिनिधि होने थे।

तृतीय चरण देशी रियासतों से सम्बन्धित था और उनके प्रतिनिधि संविधान सभा में अलग-अलग समय में सम्मिलित हुए।

'हैदराबाद' ही एक ऐसी रियासत थी जिसके प्रतिनिधि संविधान सभा में सम्मिलित नहीं हुए।

संविधान सभा में अनेक मुद्दों पर विचार-विमर्श तथा विस्तृत वाद-विवाद होता था। उन विषयों में से कुछ प्रमुख विषयों का वर्णन हम निम्नलिखित प्रकार से कर सकते हैं-

एक प्रमुख प्रश्न था नागरिकों के अधिकारों को निर्धारित करने का। साम्प्रदायिक प्रतिनिधित्व प्रणाली का मुद्दा अत्यधिक संवेदनशील था। इसी साम्प्रदायिकता के जहर के कारण भारत को विभाजन की विभीषिका झेलनी पड़ी थी। संविधान सभा में भारतीय समाज के शोषित तथा दबे-कुचले तबके की समस्याओं पर भी व्यापक विचार-विमर्श हुआ। सामाजिक तथा आर्थिक रूप से कमजोर तबकों, आदिवासियों आदि की दशा सुधारने के लिए क्या उपाय किये जायें ? इन प्रश्नों पर भी गहन विचार मंथन किये गये।

भारत भौगोलिक दृष्टि से एक विशाल देश है। देश में सांस्कृतिक दृष्टि से भी विभिन्नताएँ विद्यमान हैं। जब समस्त देश एकता के सूत्र में बँध रहा हो तो इसके लिए एक राष्ट्रभाषा का होना अनिवार्य है किन्तु भारत जैसे भाषायी विभिन्नता वाले देश में इस प्रश्न का समाधान आसानी से नहीं किया जा सकता था।

कुछ विषय ऐसे भी थे जिन पर संविधान सभा में लगभग आम सहमति थी। इन्हीं में से एक विषय प्रत्येक वयस्क भारतीय नागरिक को मताधिकार देने का था।

इस प्रकार हम देखते हैं कि भारतीय संविधान का निर्माण एक विस्तृत तथा गम्भीर व गहन विचार-विमर्श की प्रक्रिया के पश्चात् हुआ।

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