JAC ANNUAL INTER EXAM
दुमका इतिहास Model Set-03
सामान्य निर्देश :
1. इन प्रश्न पुस्तिका में दो भाग A तथा भाग B हैं ।
2. भाग A में 30 अंक के बहुविकल्पीय प्रश्न तथा भाग B में
50 अंक के विषय निष्ठ प्रश्न है।
3. परीक्षार्थियों को अलग से उपलब्ध कराए गए उत्तर पुस्तिका
में उत्तर देना है।
4. भाग - A में 30 बहुविकल्पीय प्रश्न है जिसके चार विकल्प
A,B,C तथा D है ।
परीक्षार्थियों को उत्तर पुस्तिका में सही उत्तर लिखना है।
सभी प्रश्न अनिवार्य है। प्रत्येक प्रश्न एक अंक का है। गलत उत्तर के लिए कोई अंक
काटा नहीं जाएगा ।
5. भाग B इस भाग में तीन खंड खंड A,B तथा C है। इस भाग में
अति लघु उत्तरीय लघु उत्तरीय तथा दीर्घ उत्तरीय प्रकार के विषय निष्ठ प्रश्न है।
कुल प्रश्नों की संख्या 22 है।
खंड - A - प्रश्न संख्या 31 से 38 अति लघु उत्तरीय प्रश्न
है किंतु 6 प्रश्नों के उत्तर दें प्रत्येक प्रश्न 2 अंक का है।
खंड - B - प्रश्न संख्या 39 से 46 लघु उत्तरीय प्रश्न है।
प्रत्येक 6 प्रश्न के उत्तर दे।
प्रत्येक प्रश्न 3 अंक का है। प्रत्येक प्रश्न का उत्तर
अधिकतम 150 शब्दों में दें ।
खंड - C - प्रश्न संख्या 47 से 52 दीर्घ उत्तरीय है। किन्ही 4 प्रश्नों के उत्तर दें
प्रत्येक
प्रश्न 5 अंक का है। प्रत्येक प्रश्न का उत्तर अधिकतम 250
शब्दों में दें।
6. परीक्षार्थी यथासंभव अपने शब्दों में उत्तर दें-
भाग - A बहुविकल्पीय प्रश्न निम्नलिखित सभी प्रश्नों के
उत्तर दीजिए 1x 30 =
30
1. मोहनजोदड़ो की खोज किस वर्ष हुई ?
1) 1921
2) 1922
3) 1924
4) 1930
2. मोहनजोदड़ो की सबसे बड़ी इमारत कौन सी हैं
?
1) स्नानागार
2) अन्नागार
3) ईद से बना हुआ भवन
4) इनमें से कोई नहीं
3. कौशल की राजधानी कहां थी ?
1) पाटलिपुत्र
2) श्रावस्ती
3) वाराणसी
4) अंग
4. 1838 ईस्वी में ब्राह्मी लिपि को पढ़ने में
सर्वप्रथम सफलता किसे प्राप्त हुई ?
1) जेम्स प्रिंसेप
2) विलियम जॉन
3) जॉन मार्शल
4) व्हीलर
5. मौर्य काल में किस लिपि का प्रयोग सर्वाधिक
हुआ है ?
1) खरोष्ठी
2) अरमाइक
3) यूनानी
4) ब्राह्मी
6. पाटलिपुत्र की स्थापना किसने की ?
1) अशोक मौर्य
2) चंद्रगुप्त मौर्य
3) चंद्रगुप्त विक्रमादित्य
4) उदयन
7. प्रयाग प्रशस्ति की रचना किसने की ?
1) पतंजलि
2) बाणभट्ट
3) हरिसेन
4) कालिदास
8. अशोक के कलिंग विजय का उल्लेख मिलता है
1) 10 वें अभिलेख से
2) 11 वें अभिलेख से
3) 12 वें अभिलेख से
4) 13 वें अभिलेख से
9. अष्टाध्यायी की रचना किसने की ?
1) पतंजलि
2) पाणिनि
3) शूद्रक
4) कालिदास
10. विश्व का प्रथम लोकतांत्रिक व्यवस्था किस
महाजनपद में मिलती है ?
1) मगध
2) लिच्छवी
3) मत्स्य
4) कुरु
11. किताब उल हिंद के लेखक हैं -
1) अलबरूनी
2) अब्दुल रज़्ज़ाक़
3) इब्नबतूता
4) बर्नियर
12. सर्वप्रथम भारत कौन विदेशी यात्री आया था
?
1) व्हेनसॉन्ग
2) इब्नबतूता
3) मार्को पोलो
4) फाह्यान
13. भिलसा टॉप्स के लेखक कौन थे ?
1) अलेक्जेंडर कनिंघम
2) कॉलिंग मैकेंजी
3) एच एच कॉल
4) इसमें से कोई नहीं
14. बुद्ध के पूर्व जन्म की कथाएं निम्नलिखित
में से किस में संकलित है ?
1) विनय पिटक
2) जातक कथा
3) त्रिपिटक
4) पंचतंत्र
15. महावीर का जन्म किस राज्य में हुआ था ?
1) बिहार
2) झारखंड
3) उत्तर प्रदेश
4) नेपाल
16. जगन्नाथ मंदिर कहां स्थित है ?
1) पुरी
2) कोलकाता
3) मथुरा
4) चेन्नई
17. लिंगायत संप्रदाय का जनक कौन थे ?
1) कबीर
2) गुरु नानक
3) वासबन्ना
4) कराईकाल
18. कौन से सूफी संत अजमेर शरीफ से संबंधित है
?
1) निजामुद्दीन औलिया
2) बाबा फरीद
3) मोइनुद्दीन चिश्ती
4) इसमें से कोई नहीं
19. गुरु नानक का जन्म कहां हुआ था ?
1) तलवंडी
2) लाहौर
3) फतेहपुर
4) इसमें से कोई नहीं
20. भक्ति आंदोलन को दक्षिण भारत से उत्तर भारत
कौन लाया ?
1) रामानुज
2) कबीर
3) तुकाराम
4) रामदास
21. विजयनगर साम्राज्य की स्थापना कब हुई ?
1) 1326 में
2) 1336 में
3) 1340 में
4) 1346 में
22. स्वराज पार्टी के संस्थापक कौन थे ?
1) चितरंजन दास
2) मोतीलाल नेहरू
3) 1 और 2 दोनों इनमें
4) इनमें से कोई नहीं
23. चोरी चोरा कांड कब हुआ ?
1) 5 फरवरी 1922
2) 16 फरवरी 1922
3) 20 मार्च 1922
4) 5 मई 1922
24. महात्मा गांधी के राजनीतिक गुरु का नाम क्या
था ?
1) लाला लाजपत राय
2) गोपाल कृष्ण गोखले
3) बाल गंगाधर तिलक
4) स्वामी विवेकानंद
25. भारत की राजधानी कोलकाता से दिल्ली किस वर्ष
स्थानांतरित हुई?
1) 1910
2) 1912
3) 1909
4) 1911
26. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना का
श्रेय किसे है ?
1) गांधी जी
2) तिलक
3) गोखले
4) ए० ओ० ह्यूम
27. 'तुम मुझे खून दो मैं तुझे आजादी दूंगा' किसने
कहा ?
1) भगत सिंह
2) रासबिहारी बोस
3) मोहन सिंह
4) सुभाष चंद्र बोस
28.1857 के विद्रोह के समय भारत का गवर्नर जनरल
कौन था ?
1) लॉर्ड ब्लेज़ली
2) लॉर्ड बैटिंग
3) लॉर्ड डलहौजी
4) लॉर्ड कैनिंग
29. कॉल विद्रोह का नेता कौन था ?
1) बिरसा मुंडा
2) चंद भैरव
3) बुधु भगत
4) कान्हु
30. स्थाई बंदोबस्त बंगाल में किसने लागू किया
?
1) लॉर्ड वेल्सली
2) लार्ड कार्नवालिस
3) लॉर्ड डलहौजी
4) वारेन हेस्टिंग
भाग B (विषयनिष्ठ प्रश्न ) खंड A अति लाघुउत्तरीय प्रश्न के
उत्तर दें 12*6=12
किन्हीं 6 प्रश्नों के उत्तर दें ।
31. अशोक के अभिलेखों में प्रयुक्त किन्हीं दो
लिपियों के नाम लिखे ?
उत्तर - ब्राह्मी, खरोष्ठी
32. 'भारत छोड़ो आंदोलन' कब और कहां से प्रारंभ
हुआ ?
उत्तर - भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत 8 अगस्त, 1942 को
मुंबई के गोवालिया टैंक मैदान में हुई थी
33. भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में मुख्य भूमिका
निभाने वाली चार महिलाओं के नाम लिखिए ?
उत्तर - 1. रानी लक्ष्मी बाई 2. सरोजिनी
नायडू 3. बेगम हजरत महल 4. सावित्रीबाई
फुले
34. जिम्मी से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर - इस्लामी राज्य में निवास करने वाले गैर मुसलमानों
को जिम्मी कहा जाता था।
35. 1857 के विद्रोह में मुख्य भूमिका निभाने
वाले चार पुरुषों के नाम लिखें ?
उत्तर - 1. नाना साहब, 2. तांतिया टोपे, 3. मान सिंह और 4. कुंवर सिंह
36. गोत्र से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर - गोत्र, उन लोगों के समूह को कहते हैं जिनका वंश एक
मूल पुरुष पूर्वज से अटूट क्रम में जुड़ा है।
37. भारत में रेलवे की शुरुआत कब और कहां से कहां
तक चली ?
उत्तर - भारत में रेलवे की शुरुआत 16 अप्रैल, 1853 को हुई
थी। इस दिन पहली यात्री ट्रेन मुंबई के बोरी बंदर से ठाणे के लिए चली थी
38. हिंदू धर्म के दो महाकाव्य के नाम लिखिए
?
उत्तर - रामायण, महाभारत।
खण्ड B लघु उत्तरीय प्रश्न 3*6= 18 किन्हीं
6 प्रश्नों के उत्तर दे।
प्रत्येक प्रश्न का उत्तर अधिकतम 150 शब्दों में दें ।
39. भारतीय संविधान की विशेषताओं को लिखें ?
उत्तर - भारत का संविधान देश का सर्वोच्च कानून है, जो इसके
शासन ढांचे, अधिकारों और कर्तव्यों को रेखांकित करता है। यह भारत को एक संप्रभु,
समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य के रूप में स्थापित करता है, जो अपने
नागरिकों के लिए न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व सुनिश्चित करता है।
40. हीनयान और महायान में अंतर स्पष्ट करें ?
उत्तर -
क्र. सं. |
हीनयान |
महायान |
1. |
हीनयान बौद्ध धर्म की मूल तथा प्राचीन शाखा थी। |
महायान बौद्ध धर्म की नवीन शाखा थी। |
2. |
हीनयान में बुद्ध केवल महापुरुष माने जाते थे। |
महायान में बुद्ध को ईश्वरीय अवतार समझकर उनकी मूर्तिपूजा
शुरु हो गई। |
3. |
हीनयान शाखा ने सत्कर्मों पर बल दिया था। |
महायान में बुद्ध एवं बोधिसत्वों की पूजा पर बल दिया जाने
लगा। |
4. |
हीनयान में पालि भाषा का प्रयोग किया जाता था। |
महायान में पालि का स्थान संस्कृत भाषा ने ले लिया। |
41. गोपुरम से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर - गोपुरम प्रवेश द्वार को कहा
जाता है। विजयनगर शासकों ने मन्दिरों में गोपुरम का निर्माण कराया। ये अत्यधिक विशाल
एवं ऊँचे होते थे। ये सम्भवतः सम्राट की ताकत की याद दिलाते थे जो इतनी ऊँची मीनार
बनाने में सक्षम थे।
42. बसरा और बेसरा में अंतर स्पष्ट करें ?
उत्तर- शरिया मुसलमानों को निर्देशित
करने वाला कानून हैं। यह कुरान शरीफ और हदीस पर आधारित हैं। शरिया का पालन करने वाले
को बा-शरिया और शरिया की अवेहलना करने वालों को वे शरिया कहा जाता था।
अंतर:
1. बा-शरीआ सूफी सन्त खानकाहो में रहते
थे। खानकाह एक फारसी शब्द है, जिसका अर्थ है- आश्रम । जबकि बे-शरीआ सूफी संत खानकाह
का तिरस्कार करके रहस्यवादी एवं फ़कीर की जिन्दगी व्यतीत करते थे।
2. बा-शरीआ सिलसिले शरीआ का पालन करते
थे, किन्तु बे-शरीआ शरीआ में बंधे हुए नहीं थे।
43. 1857 के तात्कालिक कारणों को लिखें ।
उत्तर- यह अफवाह फैल रही थी कि बाजार
में ऐसा आटा एवं शक्कर मिल रहे हैं जिसमें सुअर व गाय की हड्डियों एवं खून का चूरा
मिलाया गया है। इससे सर्वत्र असंतोष व्याप्त था एवं हिन्दू व मुस्लिमों को लग रहा था
कि अंग्रेज प्रत्येक प्रकार से हमारा धर्म भ्रष्ट करने पर तुले हुये हैं।
इसी बीच चर्बी वाले कारतूस 1857 की
क्रांति का तात्कालिक कारण बने। 23 जनवरी, 1857 ई. को कलकत्ता के पास दमदम में सेना
ने कारतूसों का खुलकर विरोध किया। इस प्रकार चर्बी वाले कारतूस ही 1857 के विद्रोह
का आरम्भ होने के तात्कालिक कारण बने।
44. असहयोग आंदोलन के बारे में लिखें ।
उत्तर - असहयोग आंदोलन 4 सितंबर 1920 को महात्मा गांधी
द्वारा शुरू किया गया एक राजनीतिक अभियान था जिसका उद्देश्य भारतीयों को ब्रिटिश
सरकार से अपना सहयोग वापस लेने के लिए प्रेरित करना था।
ब्रिटिश संस्थाओं का बहिष्कार, स्वदेशी को बढ़ावा देना,
शांतिपूर्ण विरोध, उपाधियों का त्याग और राष्ट्रीय शिक्षा तथा संस्कृति पर जोर
देने की इसकी विशेषताओं ने भारतीय जनता को एकजुट करने और ब्रिटिश सत्ता को चुनौती
देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
45. मगध के उत्कर्ष के क्या कारण थे ?
उत्तर - मगध महाजनपद के उत्थान के क्या कारण थे: बृहद्रथ
मगध के सबसे प्राचीन वंश के संस्थापक थे जिनकी राजधानी गिरिव्रज (राजगृह) थी। मगध
राज्य का विस्तार उत्तर में गंगा, पश्चिम में सोन और दक्षिण में जलाच्छादित पथरी
क्षेत्रों से घिरा हुआ था जो कालांतर से ही राजनीतिक उत्थान, पतन व सामाजिक एवं
धार्मिक प्रतिक्रियाओं का केंद्र बना रहा। मगध महाजनपद 16 महाजनपदों में सर्वाधिक
शक्तिशाली महाजनपद था। महाजनपद, प्राचीन भारत में राज्य या प्रशासनिक इकाइयों को
कहा जाता है।
मगध के प्रतापी राजाओं ने राज्यों पर विजय प्राप्त करके
भारत के एक बड़े क्षेत्र पर विशाल एवं शक्तिशाली मगध साम्राज्य की स्थापना कर दी
जो उनका एक सफल प्रयास रहा। मगध महाजनपद के उत्थान के कई कारण थे जो निम्नलिखित है
-
1. योग्य शासक - मगध महाजनपद में बिंबिसार, अजातशत्रु और
महापद्मनंद जैसे महत्वकांक्षी एवं कुशल शासकों के शासन प्रणाली मगध के विस्तार एवं
उसके उत्थान का सबसे बड़ा कारण बनी। इन साम्राज्यवादी शासकों ने अपनी वीरता एवं
दूरदर्शिता के माध्यम से राज्यहित एवं उत्थान के लिए भरसक प्रयास किए एवं अपनी
कुशलता का परिचय कराते हुए संपूर्ण मगध महाजनपद का उत्थान कर दिया।
2. लोहे की खदान - मगध के उत्थान का कारण वहां की भौगोलिक
स्थिति है क्योंकि मगध के निकट क्षेत्रों में लोहे के कई भंडार उपस्थित थे जिससे
उनको प्रभावशाली हथियार बनाने के पर्याप्त मात्रा में लौह पदार्थ मिल जाते है। अतः
प्रभावशाली हथियारों के निर्माण की वजह से मगध मजबूत बनता गया। लोहे के अलावा मगध
में तांबा जैसे अन्य खनिज पदार्थों के भी भंडार थे और इन खनिजों के आसानी से
उपलब्ध होने के कारण यह एक समृद्ध एवं शक्तिशाली राज्य बन गया।
3. राजधानियों की स्थिति - मगध की दोनों राजधानियां राजगीर व
पाटलिपुत्र महत्वपूर्ण सामरिक क्षेत्रों में स्थित थी। राजगीर चारों ओर से घिरा
होने के कारण उस पर बाह्य आक्रमण करना मुश्किल था इसके अलावा पाटलिपुत्र मगध के
केंद्र में स्थित थी जिसके माध्यम से संपूर्ण मगध से सम्पर्क बनाया जा सकता था।
4. आर्थिक मजबूती - मगध के उत्थान एवं सिक्कों के प्रचलन ने
मगध के व्यापार व वाणिज्य में प्रतिदिन वृद्धि की जिससे मगध आर्थिक रूप से मजबूत
होने लगा। शासक वाणिज्य वस्तुओं पर चुंगी लगाकर धन एकत्रित कर सकते थे जिससे
राजकोष में वृद्धि को बढ़ावा दिया जा सकता था।
5. कृषि व्यवस्था - मगध गंगा नदी तथा सोन नदी से निकट स्थित
था जिसकी वजह से वहां के कृषकों के लिए खेती करना बेहद आसान हो गया था। कुशल कृषि
होने से मगध के कृषकों के पास भरण-पोषण के बाद भी अतिरिक्त अनाज बच जाता था।
नदियों द्वारा यातायात की सुविधा ने मगध को संपर्क बनाने की उचित सुविधा प्रदान
करने के साथ-साथ उसके उत्थान में सहायता की। इसके अलावा वर्षा अधिक होने के कारण
भी यहाँ फसल उगाने व कृषि करने में बहुत आसानी होती थी।
6. स्वतंत्र वातावरण - मगध साम्राज्य का वातावरण अन्य राज्यों की
अपेक्षा स्वतंत्र था क्योंकि वहां अनेक जातीय व संस्कृति के लोग निवास करने के
बावजूद भी उनमें मेलप्रेम हुआ करता था। ब्राह्मण संस्कृति के बंधनों में शिथिलता,
बौद्ध एवं जैन धर्मों के सार्वभौमिक दृष्टिकोण ने मगध क्षेत्र के राजनीतिक
दृष्टिकोण को और सुदृढ़ बना दिया जो मगध के महाजनपद के उत्थान का कारण था।
7. वैदिकीकरण - मगध समाज रूढ़ि विरोधी था तथा वैदिक लोगों
के आने की वजह से यहां जातियों का सुखद मिश्रण हुआ। अतः वैदिकीकरण के कारण अन्य
राज्यों की अपेक्षा मगध विस्तार में वृद्धि एवं उत्थान हुआ।
46. स्नानागार से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर - मोहनजोदड़ो का एक प्रमुख सार्वजनिक
स्थल है। यहाँ के विशाल दुर्ग (54.86 × 33 मीटर) में स्थित विशाल स्नानागार। यह 39
फुट (11.88 मीटर) लम्बा, 23 फुट (7.01 मीटर) चौड़ा एवं 8 फुट (2.44 मीटर) गहरा है।
इसमें उतरने के लिए उत्तर एवं दक्षिण की ओर सीढ़ियाँ बनी हैं। स्नानागार का फर्श पक्की
ईंटों से बना है। सम्भवतः इस विशाल स्नानागार का उपयोग 'आनुष्ठानिक स्नान' हेतु होता
होगा। स्नानागार से जल के निकास की भी व्यवस्था थी एवं स्वच्छ पानी को एक कुएँ द्वारा
स्नानागार में लाया जाता था। वस्तुतः यह स्नानागार तत्कालीन उन्नत तकनीक का परिचायक
है। मार्शल महोदय ने इसी कारण इसे तत्कालीन विश्व का 'आश्चर्यजनक निर्माण' बताया है।
खण्ड - C दीर्घ उत्तरीय प्रश्न 15*4 = 20 किन्हीं
चार प्रश्नों के उत्तर दें।
प्रत्येक प्रश्न का उत्तर अधिकतम 250 शब्दों में दें ।
47. हडप्पा सभ्यता के पतन के कर्म का उल्लेख करें
?
उत्तर-हड़प्पा सभ्यता के प्राचीन साक्ष्यों
से पता चलता है कि अपने अस्तित्व के अन्तिम चरण में यह सभ्यता पतनोन्मुख रही। ई. पू.
द्वितीय शताब्दी के मध्य तक यह सभ्यता पूर्णतः विलुप्त हो गई। हड़प्पा सभ्यता के काल
एवं निर्माताओं की तरह ही इसके पतन को लेकर भी विभिन्न विद्वान एकमत नहीं हैं।
1. बाढ़ के कारण- सर्वश्री मार्शल, मैके एवं एस. आर.
राव हड़प्पा सभ्यता के पतन का एकमात्र कारण नदी की बाढ़ बताते हैं। चूँकि अधिकांश नगर
नदियों के तट पर बसे हुए थे जिनमें प्रतिवर्ष बाढ़ आती थी। मोहनजोदड़ो एवं हड़प्पा
की खुदाइयों से पता चलता है कि इनका अनेक बार पुनर्निर्माण | हुआ। मार्शल महोदय को
मोहनजोदड़ो की खुदाई में प्रतिवर्ष बाढ़ के कारण जमा हुई बालू की परतें मिली हैं। मैके
महोदय को चन्हूदड़ो से बाढ़ के साक्ष्य मिले हैं। इसी प्रकार, एस. आर. राव को भी लोथल,
भागजाव आदि से भीषण बाढ़ के साक्ष्य मिले हैं। अतः इनका संयुक्त निष्कर्ष है कि बाढ़
ही इस नगरीय सभ्यता के विनाश का प्रमुख कारण थी।
2. बाह्य आक्रमण - नदी में आने वाली बाढ़ को यदि पतन
का प्रमुख कारण माना जाये तो यह प्रश्न उठता है कि वे नगर जो नदियों के तटों पर अवस्थित
नहीं थे, उनका पतन कैसे हुआ? अतः निश्चित ही इस सभ्यता के पतन के लिए कुछ अन्य कारण
भी उत्तरदायी रहे होंगे। इस तारतम्य में मार्टीमर व्हीलर, गार्डन चाइल्ड एवं पिगट आदि
विद्वानों ने बाह्य आक्रमण को पतन का कारण माना है। पुरातात्विक साक्ष्यों से संकेत
मिलता है कि मोहनजोदड़ो को लूटा गया व वहाँ के लोगों की हत्या की गई। व्हीलर के अनुसार
1500 ई. पू. आर्यों ने आक्रमण कर हड़प्पा सभ्यता के नगरों को ध्वस्त किया एवं वहाँ
के लोगों को मार डाला।
3. अन्य कारण- आरेन स्टाइन, ए. एन. घोष आदि विद्वान
जलवायु परिवर्तन को हड़प्पा संस्कृति के विनाश का कारण मानते हैं।
एम. आर. साहनी जैसे भूतत्व वैज्ञानिक
जलप्लावन को इस सभ्यता के पतन का कारण मानते हैं।
माधोस्वरूप वत्स एवं एच. टी. लैम्ब्रिक
के अनुसार नदियों के मार्गों में हुआ परिवर्तन इस सभ्यता के पतन का कारण बना।
के. यू. आर. कनेडी मलेरिया एवं महामारी
जैसी प्राकृतिक आपदाओं को पतन का जिम्मेदार मानते हैं।
इस प्रकार, उपर्युक्त सभी कारणों ने
मिलकर हड़प्पा सभ्यता के नगरों का विनाश किया।
48. गौतम बुद्ध की जीवनी एवं शिक्षाओं का उल्लेख
करें ?
उत्तर- महात्मा बुद्ध की जीवनी
महात्मा बुद्ध का जन्म 563 ई. पू. में
कपिलवस्तु के निकट लुंबिनी ग्राम में हुआ था। इनके पिता शुद्धोधन शाक्य कुल के क्षत्रिय
वंश के राजा थे जिनकी राजधानी कपिलवस्तु थी बुद्ध के जन्म के सातवें दिन ही इनकी माता
महामाया का देहांत हो गया तथा इनकी मौसी महा प्रजापति गौतमी ने इनका लालन-पालन किया।
गौतम बुद्ध के बचपन का नाम सिद्धार्थ था। गौतम बुद्ध बचपन से ही चिंतनशील थे, उनकी
इन गतिविधियों को देखते हुए 16 वर्ष की आयु में गौतम बुद्ध का विवाह राजकुमारी यशोधरा
से हो गई। उनसे एक पुत्र राहुल भी हुआ। गौतम बुद्ध की विचारशील प्रवृत्ति को विलासिता
से परिपूर्ण वैवाहिक जीवन भी बदल ना सका। गौतम बुद्ध के जीवन में चार दृश्यों का गहरा
प्रभाव पड़ा
1 एक वृद्ध व्यक्ति
2. एक रोग ग्रस्त व्यक्ति
3. एक मृत व्यक्ति
4. एक सन्यासी
जहां प्रथम तीन दृश्यों को देखकर दुःखमय जीवन के प्रति गौतम
बुद्ध के मन में गहरा आघात पहुंचा वहीं चौथे दृश्य ने उन्हें दुख निरोध का मार्ग दिखाया।
29 वर्ष की आयु में गौतम बुद्ध ने गृह त्याग दिया, गृह त्याग
के बाद ज्ञान की खोज में गौतम बुद्ध ने अलार कलाम एवं रूद्रक रामपुत्र जैसे आचार्य
से शिक्षा प्राप्त की। कठोर तपस्या के बाद गौतम बुद्ध को बोधगया में निरंजना नदी के
किनारे एक पीपल वृक्ष के नीचे ज्ञान की प्राप्ति हुई। ज्ञान प्राप्ति के बाद गौतम बुद्ध
ने अपना पहला उपदेश सारनाथ में दिया। 80 वर्ष की आयु में 483 ई. पू. गौतम बुद्ध की
मृत्यु कुशीनगर में हुई।
महात्मा बुद्ध की शिक्षाएं
बौद्ध धर्म के चार आर्य सत्य
1. दुःख- गौतम बुद्ध के अनुसार समस्त संसार दुःख से भरा है यहां जन्म,
मरण, वृद्धावस्था अप्रिय का मिलन, प्रिय का वियोग एवं इच्छित वस्तु का प्राप्त ना होना
आदि सभी दुःख है।
2. दुःख समुदाय- समुदाय का अर्थ है कारण। गौतम बुद्ध के अनुसार संसार में दुःखों
का कोई ना कोई कारण अवश्य है, उन्होंने समस्त दुःखों का कारण इच्छा बतलाया है।
3. दुःख निरोध- निरोध का अर्थ है दूर करना। गौतम बुद्ध ने दुख निरोध या दुःख
निवारण के लिए इच्छा का उन्मूलन आवश्यक बताया है।
4. दुःख निरोध मार्ग- गौतम बुद्ध के अनुसार संसार में प्रिय
लगने वाली वस्तु का त्याग ही दुःख निरोध मार्ग है।
दुःख का विनाश करने के लिए गौतम बुद्ध
ने जिस सिद्धांत का प्रतिपादन किया उसे अष्टांगिक मार्गे कहा जाता है।
अष्टांगिक मार्ग गौतम बुद्ध द्वारा
प्रतिपादित दुःख निरोध हेतु आठ मार्ग निम्नलिखित हैं
1. सम्यक दृष्टि- चार
आर्य सत्य की सही परख
2. सम्यक वाणी - धर्म
सम्मत एवं मृदु वाणी का प्रयोग
3. सम्यक संकल्प - भौतिक
वस्तु एवं दुर्भावना का त्याग
4. सम्यक कर्म- अच्छा
काम करना
5. सम्यक अजीव- सदाचारी
जीवन जीते हुए ईमानदारी से जीविका कमाना
6. सम्यक व्यायाम - शुद्ध
विचार ग्रहण करना, एवं अशुद्ध विचारों को त्यागते रहना।
7. सम्यक स्मृति- अपने
कर्मों के प्रति विवेक तथा सावधानी को सदैव स्मरण रखना।
8. सम्यक समाधि लोभ, द्वेष, आलस, बीमारी एवं अनिश्चय की स्थिति
से दूर रहने का उपाय करना ही सम्यक समाधि है।
49. भक्ति आंदोलन के महत्व एवं प्रभावों की समीक्षा
करें ।
उत्तर - भक्ति आंदोलन का महत्व
भक्ति आंदोलन का आधार बनने वाले एकेश्वरवादी सिद्धांतों ने
मूर्तिपूजा का कड़ा विरोध किया। भक्ति आंदोलन इस विचार के साथ शुरू हुआ था कि
ईश्वर तक पहुँचने का सबसे अच्छा तरीका अनुष्ठान या धार्मिक संस्कार नहीं बल्कि
प्रेम और पूजा है। भक्ति सुधारकों ने तर्क दिया कि मुक्ति केवल उत्कट भक्ति और
ईश्वर में दृढ़ विश्वास के माध्यम से ही प्राप्त की जा सकती है और जीवन और मृत्यु
के चक्र को तोड़ा जाना चाहिए। उन्होंने गुरुओं के महत्व को रेखांकित किया जो
मार्गदर्शक और उपदेशक के रूप में कार्य करते हैं, ईश्वर की खुशी और कृपा प्राप्त
करने में आत्म-समर्पण की प्रासंगिकता, साथ ही गुरुओं का महत्व।
उन्होंने सार्वभौमिक भाईचारे का विचार दिया। वे अनुष्ठानों,
यात्राओं और उपवासों को अस्वीकार करते थे। उन्होंने जाति व्यवस्था का जमकर विरोध
किया, जो लोगों को उनके जन्म के स्थान के अनुसार विभाजित करती थी। उन्होंने गहरे
समर्पण के साथ भजन गाने के महत्व को भी रेखांकित किया, किसी भी भाषा को पवित्र
मानने के सम्मान के बिना रोजमर्रा की भाषाएक्स में गीत रचने पर जोर दिया।
भक्ति आंदोलन के प्रभाव :
1. हिन्दुओं में आशा तथा साहस का संचार :- भक्ति आंदोलन से हिन्दुओं में आत्म बल का संचार हुआ।
जिसके परिणाम स्वरूप हिन्दुओं की निराशा दूर हुई और हिन्दू अपनी सम्यता व संस्कृति
को बचाने में सफल रहें।
2. मुसलमानों के अत्याचारों में कमी :- भक्ति आंदोलनो के संतों द्वारा प्रतिपादित शिक्षाओं व
उपदेशों का प्रभाव मुस्लिम शासक पर पड़ा। विभिन्न धर्मों के मध्य एकता स्थापित
हुई, जिससे मुसलमानों के अत्याचार कम हो गए।
3. याहरी आडम्बरों में कमी :- भक्ति आंदोलन के सभी संतों ने अपने उपदेशों में
आडम्बरों की निंदा की और पवित्रता पर बल दिया। इन उपदेशों का प्रभाव यह हुआ कि लोग
बाहरी आडम्बरों को त्यागकर सरल जीवन की ओर अग्रसर हुए।
4. वर्गीयता तथा संर्कीणता पर आघात :- भक्ति आंदोलन में संतों ने ऊंच-नीच, छूत-अछूत का भेदभाव
दूर करने का प्रयत्न किया जिसके परिणाम स्वरूप समाज में व्याप्त वर्गीयता और
संर्कीणता को आघात लगा।
5. आत्म गौरव एवं राष्ट्र मावना का प्रादुर्भाव :- भक्ति आंदोलन के संतों की ओजस्वी वाणी ने मनुष्य में
आत्म गौरव एवं राष्ट्र भावना का संचार किया जिसके परिणाम स्वरूप कालान्तर में
महाराष्ट्र, पंजाब आदि में राष्ट्रीय आंदोलनों का प्रादुर्भाव हुआ।
6. प्रांतीय भाषाओं का विकास :- भक्ति आंदोलनों के संतों ने अपने-अपने उपदेश लोकभाषाओं
में प्रचारित किए फलस्वरूप प्रांतीय भाषाओं- हिन्दी, मराठी, बंगाली, पंजाबी आदि का
विकास हुआ।
50. कृष्णदेव राय विजयनगर साम्राज्य के महानतम
शासक थे, कैसे?
उत्तर - कृष्णदेव राय विजयनगर का महानतम शासक था। 1513 ई.
में उसने उड़ीसा के शासक गजपति प्रतापरुद्र को परास्त किया। उसने 1520 ई. बीजापुर
को जीता।
पुर्तगाली गवर्नर अल्बुकर्क को उसने भटकल में दुर्ग निर्माण
की अनुमति प्रदान की। उड़ीसा विजय के उपलक्ष्य में विजय भवन का निर्माण कराया। वह
एक महान् विद्वान् तथा कला व विद्या का पोषक था। तेलुगू राजनीति पर उसने 'अमुक्त
माल्यद' ग्रन्थ लिखा। उसने संस्कृत नाटक 'जाबवंती कल्याणम्' का भी सृजन किया। इसके
काल में तेलुगू साहित्य की उन्नति हुई। इसके दरबार के आठ विद्वानों को' अष्ट
दिग्गज' कहा जाता है। उसने स्वयं को आन्ध्र भोज कहा।
जनकल्याण हेतु उसने कृषि की उन्नति के लिये अनेक तालाब व
नहरों का निर्माण कराया। उसने विवाह कर जैसे अलोकप्रिय करों को समाप्त किया।
कृष्णदेव राय की दो रानियाँ थीं जिनके नाम तिरूमला देवी एवं चिन्तादेवी था।
कृष्णदेव राय ने स्थापत्य कला को भी प्रोत्साहित किया। उसने
अपनी माँ नागला देवी के नाम पर नागलपुर नामक नगर की स्थापना की। कहा जाता है कि
उसने विठ्ठल स्वामी मंदिर, हजार मंदिर एवं पम्पा देवी मंदिर का भी निर्माण कराया।
कुछ इतिहासकारों के अनुसार विठ्ठल मंदिर का निर्माण देवराय द्वितीय ने कराया था।
कृष्णदेव राय ने कई महत्वपूर्ण मन्दिरों में भव्य गोपुरमों को जोड़ा। उसने रायचूर
दोआब पर भी आधिपत्य स्थापित किया।
पुर्तगाल के विदेशी यात्री एडुवर्डो बारबोसा एवं डैमिन्गौस
पेइस कृष्णदेव राय के काल में ही विजयनगर आये। इन दोनों ने ही राजा कृष्णदेव राय
के व्यक्तित्व एवं चरित्र की प्रशंसा की है। पेड़म ने विजयनगर को रोम (इटली) के
समान वैभवशाली व विश्व का सर्वोत्तम नगर बताया है।
कृष्णदेव राय ने अपने ग्रन्थ अमुक्तमल्याद में राजा के
व्यापार सम्बन्धी दायित्व पर प्रकाश डालते हुये लिखा है- "एक राजा को अपने
बन्दरगाहों को सुधारना चाहिये और वाणिज्य को इस प्रकार प्रोत्साहित करना चाहिये कि
घोड़ों, हाथियों, रत्नों, चन्दन, मोती तथा अन्य वस्तुओं का खुले तौर पर आयात किया
जा सके। राजा का यह भी दायित्व है कि वह उन विदेशी नाविकों की भली-भाँति देखभाल
करे जो तूफान, बीमारी अथवा थकान के कारण उनके राज्य में उतरे हैं।"
51. स्थाई बंदोबस्त व्यवस्था की प्रमुख विशेषताओं
के बारे में लिखें ।
उत्तर - स्थायी बंदोबस्त 1793 में गवर्नर-जनरल लॉर्ड
कॉर्नवालिस द्वारा पेश किया गया था। स्थायी बंदोबस्त जिसे बंगाल के स्थायी
बंदोबस्त के रूप में भी जाना जाता है, ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी और बंगाल के
जमींदारों के बीच भू-राजस्व तय करने के लिए एक समझौता था। भारत में अंग्रेजों के
लिए भू-राजस्व आय का प्रमुख स्रोत था।
1793 के स्थायी बंदोबस्त अधिनियम में निम्नलिखित
विशेषताएं थीं :
1. जमींदार जो पहले केवल कर संग्रहकर्ता थे, इस प्रणाली के तहत
जमींदार बन गए।
2. जमींदारों को संपत्ति के हस्तांतरण या बिक्री का अधिकार था।
3. जमींदारों को उनके स्वामित्व में भूमि के उत्तराधिकार के
लिए वंशानुगत अधिकार दिए गए थे।
4. एकत्र किया जाने वाला भू-राजस्व निश्चित था और भविष्य में
इसमें वृद्धि नहीं करने के लिए सहमति व्यक्त की गई थी।
5. यह तय किया गया था कि एकत्र किए गए भू-राजस्व का 10/11वां
हिस्सा अंग्रेजों को दिया जाना था और इसका 1/11वां हिस्सा जमींदार के पास रखना था।
6. जमींदार को काश्तकार को एक पट्टा (एक भूमि विलेख) देना चाहिए
जिसमें भूमि का क्षेत्रफल और इसके लिए दिए जाने वाले लगान का विवरण हो।
7. यदि जमींदार निश्चित राजस्व राशि का भुगतान करने में विफल
रहे, तो उनकी संपत्तियों को अंग्रेजों द्वारा जब्त कर लिया गया और नीलामी के माध्यम
से बेच दिया गया।
8. बंगाल में स्थायी राजस्व बंदोबस्त का प्रमुख परिणाम समाज
का दो भागों में बांटना था – जमींदार और काश्तकार।
52. भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में महात्मा गांधी
की भूमिका का स विस्तार वर्णन करें।
उत्तर - आधुनिक भारत के इतिहास में महात्मा गाँधी को सबसे आदरणीय स्थान प्राप्त है। यह उनके आगमन का ही परिणाम था कि भारत में राष्ट्रीय आन्दोलन को स्वतन्त्रता की ओर ले जाने वाला एक सही और सीधा मार्ग प्राप्त हुआ। उन्होंने अहिंसा और सत्यागृह के द्वारा शक्तिशाली अंग्रेजी साम्राज्य से टक्कर ली और अंग्रेजों को भारत छोड़ने के लिए विवश कर दिया। दक्षिण अफ्रीका में गाँधीजी द्वारा किया गया एशियाटिक रजिस्ट्रेशन एक्ट का विरोध उनका ऐसा पहला आन्दोलन था जो अहिंसा के सिद्धान्तों पर चलाया गया और जिसकी वजह से दक्षिण अफ्रीका की गोरी सरकार भारतीयों के समक्ष झुकने को बाध्य हुई। 1917 ई. में चम्पारन के कृषकों को उन्होंने नील उत्पादक गोरों के अत्याचारों से मुक्ति दिलाई। 1917 ई. में ही अहमदाबाद के मिल-मालिकों तथा श्रमिकों के मध्य उत्पन्न प्लेग बोनस के विवाद को हल करने में उन्होंने अपना योगदान किया। 1918 ई. में खेड़ा के किसान फसल खराब होने के कारण मुसीबत में थे। गाँधीजी ने उनकी मालगुजारी की समस्या हल करायी। 1919 ई. में रौलेट एक्ट के लागू होने से गाँधी जी को बड़ी ठेस पहुँची और उन्होंने शीघ्र ही अंग्रेजी सरकार के विरुद्ध असहयोग आन्दोलन चलाने का निश्चय कर लिया। इस आन्दोलन में धनी, निर्धन शिक्षित, अशिक्षित, कृषक, श्रमिक, मध्यम वर्ग, स्त्रियों और विद्यार्थियों सभी ने भाग लिया। परन्तु हिंसक घटनाएँ हो जाने के कारण गाँधीजी को अपना आन्दोलन वापस लेना पड़ा। 1930 ई. में गाँधीजी ने सविनय अवज्ञा आन्दोलन आरम्भ किया क्योंकि सरकार स्वतन्त्रता के प्रश्न पर उपेक्षापूर्ण दृष्टिकोण अपनाये हुए थी। उन्होंने सविनय अवज्ञा आन्दोलन के दौरान डांडी यात्रा की और नमक कानून को भंग किया। गाँधीजी ने अपना अन्तिम आन्दोलन 'भारत छोड़ो' आन्दोलन चलाया क्योंकि अब तक उन्हें स्पष्ट हो गया था कि अंग्रेज किसी-न-किसी प्रकार से भारत पर अपना शिकंजा बनाये रखना चाहते थे। भारत के लाखों नर-नारी गाँधीजी के साथ हो गये। यह आन्दोलन यद्यपि असफल रहा था लेकिन यह भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन की चरम सीमा था। यह हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गाँधीजी के द्वारा किये गये उल्लेखनीय योगदानों का ही परिणाम था कि 15 अगस्त, 1947 ई. को भारत स्वतन्त्र हुआ।
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