12th JAC History Model Paper Solution 2024-25

12th JAC History Model Paper Solution 2024-25

12th JAC History Model Paper Solution 2024-25

झारखण्ड शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद्, राँची, झारखण्ड

HISTORY MODEL QUESTION 

वार्षिक परीक्षा-2024-25

कक्षा-12 पूर्णांक – 80 समय 3 घटा

सामान्य निर्देश :-

परीक्षार्थी यथासंभव अपने शब्दों में उत्तर दें।

सभी प्रश्न अनिवार्य हैं।

कुल प्रश्नों की संख्या-52 है।

प्रश्न 1 से 30 तक बहुविकल्पीय प्रश्न हैं। प्रत्येक प्रश्न के चार विकल्प दिए गए हैं। सही विकल्प का चयन कीजिये। प्रत्येक प्रश्न के लिए 01 अंक निर्धारित है।

प्रश्न संख्या-31 से 38 तक अति लघु उत्तरीय प्रश्न हैं। जिसमें से किन्हीं 6 प्रश्नों का उत्तर देना अनिवार्य है। प्रत्येक प्रश्न का मान 2 अंक निर्धारित है।

प्रश्न संख्या 39 से 46 तक लघु उत्तरीय प्रश्न हैं। जिसमें से किन्हीं 6 प्रश्नों का उत्तर देना अनिवार्य है। प्रत्येक प्रश्न का मान 3 अंक निर्धारित हैं। नवोन्मेष शोध नेतृत्व

प्रश्न संख्या 47 से 52 दीर्घ उत्तरीय प्रश्न हैं। किन्हीं 4 प्रश्नों का उत्तर देना अनिवार्य है। प्रत्येक प्रश्न का मान 5 अंक निर्धारित है।

खंड-A

1. भारतीय पुरातत्व का पिता किसे कहा जाता है ?

a) अलेक्जेंडर कनिंघम

b) दयाराम साहनी

c) राखाल दास बनर्जी

d) एस आर राव

2. बौद्ध और जैन ग्रंथ में कितने महाजनपद का उल्लेख है ?

a) 10

b) 12

c) 14

d) 16

3. अपने स्वयं के खर्चे से सुदर्शन झील की मरम्मत किसने कराई ?

a) अशोक

b) रुद्रदामन

c) कनिष्क

d) स्कंद गुप्त

4. मानव के सम्पूर्ण जीवन को कितने भागों में बांटा गया ?

a) 5

b) 4

c) 3

d) 9

5. गौतम बुद्ध ने अपना पहला उपदेश किस स्थान पर दिया था ?

a) कुशीनगर

b) सारनाथ

c) लुंबिनी

d) गया

6. ईब्नबतूता ने किस पुस्तक की रचना की थी

a) किताब उल हिंद

b) रिहला

c) आईने अकबरी

d) अकबरनामा

7. पद्मावत किसकी रचना है?

a) कबीर

b) तुलसीदास

c) अमीर खुसरो

d) मलिक मोहम्मद जायसी

8. तालिकोटा का युद्ध कब हुआ ?

a) 1526 ई

b) 1556 ई

c) 1565 ई

d) 1575 ई

9. विजयनगर का किस राज्य के साथ हमेशा संघर्ष चलता रहा ?

a) कालीकट से

b) चोलो से

c) पाण्ड्य से

d) बहमनी से

10. मुगलकालीन ऐतिहासिक स्रोतों में शामिल थी ?

a) ऐतिहासिक ग्रंथ

b) सरकारी तथा गैर सरकारी दस्तावेज

c) उस कालांश में बनी इमारतें एवं स्मारक

d) इनमें से सभी

11. अकबर ने तीर्थ यात्रा कर को कब समाप्त किया था ?

a) 1562

b) 1563

c) 1564

d) 1565

12. संथाल विद्रोह कब हुआ था ?

a) 1857

b) 1858

c) 1859

d) 1860

13. 1857 के विद्रोह में बिहार का नेतृत्व किसने किया था ?

a) नाना साहिब

b) वीर कुंवर सिंह

c) रानी लक्ष्मीबाई

d) दिलीप सिंह

14. सहायक संधि की व्यवस्था किसने की ?

a) लॉर्ड क्लाइव

b) वारेन हेस्टिंग

c) लॉर्ड हेस्टिंग

d) लॉर्ड वेलेजली

15. संविधान सभा की संचालन समिति के अध्यक्ष कौन थे ?

a) राजेंद्र प्रसाद

b) जवाहर लाल नेहरू

c) भीम राव अंबेडकर

d) सरदार पटेल

16. कलकत्ता में सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना कब की गई थी ?

a) 1771 ई

b) 1772 ई

c) 1773 ई

d) 1770 ई

17. सविनय अवज्ञा आंदोलन का प्रारंभ किसने किया ?

a) गांधी जी

b) जवाहर लाल नेहरू

c) अबुल कलाम आजाद

d) सुभाष चंद्र बोस

18. कैबिनेट मिशन भारत कब आया ?

a) मार्च 1946

b) अप्रैल 1945

c) जून 1942

d) मई 1945

19. मुस्लिम लीग की स्थापना कब और कहाँ की गई ?

a) 1905 लखनऊ

b) 1906 ढांका

c) 1907 सूरत

d) 1909 कलकत्ता

20. भारत में कितनी रियासतें थी ?

a) 562

b) 563

c) 564

d) 654

21. गुरु नानक का जन्म कब हुआ ?

a) 1469 ई

b) 1478

c) 1479 ई

d) 1468 ई

22. किस यात्री को मध्यकालीन यात्रियों का सरताज कहा जाता है?

a) टेवनियर

b) इब्नबतूता

c) मार्को पोलो

d) अलबरूनी

23. पुराणों की संख्या कितनी है?

a) 16

b) 18

c) 19

d) 12

24. महाभारत के फारसी अनुवाद का नाम क्या है?

a) रज्म्नामा

b) महाभारत

c) ग्रंथनामा

d) इनमे से कोई नहीं

25. हड़प्पा किस नदी के किनारे स्थित है ?

a) रावी

b) सिंधु

c)  भोगवा

d) सरस्वती

26. पौर का अर्थ है-

a) ईश्वर

b) गुरु

c) उलमा

d) मौलवी

27. बारबोसा कहाँ के यात्री थे ?

a) इटली

b) पुर्तगाल

c) रूस

d) फ्रांस

28. पाचवी रिपोर्ट ब्रिटिश संसद में कब पेश की गई थी ?

a) 1800

b) 1812

c) 1813

d) 1850

29. हड़प नीति किसने लागू की थी ?

a) लॉर्ड डलहौजी

b) लॉर्ड क्लाइव

c) लॉर्ड कर्जन

d) वारेन हेस्टिंग

30. कोर्ट सेंट जॉर्ज की स्थापना कहा की गई थी ?

a) कलकत्ता

b) मद्रास

c) बॉम्बे

d) दिल्ली

खंड-B अति लघु उत्तरीय प्रश्न

31. हड़प्पा सभ्यता कहां कहां विकसित हुई थी ?

उत्तर - हड़प्पा, मोहनजोदड़ो, लोथल, कालिबंगा, धोलावीरा

32. शक संवत का आरंभ किसने किया ?

उत्तर - शक संवत की शुरुआत कुषाण वंश के शासक सम्राट कनिष्क ने 78 ईस्वी में की थी।

33. नाट्यशास्त्र के लेखक का नाम लिखिए।

उत्तर - नाट्यशास्त्र के लेखक भरत मुनि हैं।

34. सांची के स्तूप की खोज किसने की ?

उत्तर - सांची स्तूप की खोज ब्रिटिश अफ़सर जनरल हेनरी टेलर ने साल 1818 में की थी।

35. "ट्रवल्स इन व मुग़ल एंपायर" पुस्तक की रचना किसने की?

उत्तर - ट्रवल्स इन द मुग़ल एंपायर" पुस्तक की रचना फ्रांस्वा बर्नियर ने की थी।

36. सर्वप्रथम भक्ति आंदोलन को शुरू करने वाले कोन थे ?

उत्तर - भक्ति आंदोलन की शुरुआत रामानुज ने की थी।

37. बहमनी राजाओं की राजधानी कहां थी ?

उत्तर - बहमनी साम्राज्य की राजधानी पहले गुलबर्गा (अहसानबाद) थी और बाद में बीदर (मुहम्मदाबाद) हुई।

38. भारत के अंतिम वाइसरॉय कौन थे ?

उत्तर - लॉर्ड लुईस माउंटबेटन

खंड-C लघु उत्तरीय प्रश्न

39. स्थायी बंदोबस्त से आप क्या समझते हैं? इसकी प्रमुख विशेषताएँ लिखें ?

उत्तर- स्थायी बंदोबस्त 1793 में गवर्नर जनरल लॉर्ड कॉर्नवालिस द्वारा पेश किया गया था। स्थायी बंदोबस्त जिसे बंगाल के स्थायी बंदोबस्त के रूप में भी जाना जाता है, ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी और बंगाल के जमींदारों के बीच भू राजस्व तय करने के लिए एक समझौता था। भारत में अंग्रेजों के लिए भू राजस्व आय का प्रमुख स्रोत था।

1793 के स्थायी बंदोबस्त अधिनियम में निम्नलिखित विशेषताएं थीं-

1. जमींदार जो पहले केवल कर संग्रहकर्ता थे, इस प्रणाली के तहत जमींदार बन गए।

2. जमींदारों को संपत्ति के हस्तांतरण या बिक्री का अधिकार था।

3. जमींदारों को उनके स्वामित्व में भूमि के उत्तराधिकार के लिए वंशानुगत अधिकार दिए गए थे।

4. एकत्र किया जाने वाला भू-राजस्व निश्चित था और भविष्य में इसमें वृद्धि नहीं करने के लिए सहमति व्यक्त की गई थी।

5. यह तय किया गया था कि एकत्र किए गए भू-राजस्व का 10/11वां हिस्सा अंग्रेजों को दिया जाना था और इसका 1/11वां हिस्सा जमींदार के पास रखना था।

6. जमींदार को काश्तकार को एक पहा (एक भूमि विलेख) देना चाहिए जिसमें भूमि का क्षेत्रफल और इसके लिए दिए जाने वाले लगान का विवरण हो।

7. यदि जमींदार निश्चित राजस्व राशि का भुगतान करने में विफल रहे, तो उनकी संपतियों को अंग्रेजों द्वारा जब्त कर लिया गया और नीलामी के माध्यम से बेच दिया गया।

8. बंगाल में स्थायी राजस्व बंदोबस्त का प्रमुख परिणाम समाज का दो भागों में बांटना था जमींदार और काश्तकार।

40. खिलाफत आंदोलन से आप क्या समझते हैं ?

उत्तर - ये आंदोलन सन् 1919 से 1924 तक चला था। इस आंदोलन का सीधे तौर पर भारत से कोई सम्बन्ध नहीं था। खिलाफत आंदोलन का मुख्य उद्देश्य तुर्की खलीफा के पद को पुनः स्थापित करना तथा वहाँ के धार्मिक क्षेत्रों से प्रतिबंधों को हटाना था।

सन् 1919 में अली बंधुओं द्वारा अखिल भारतीय खिलाफत कमेटी का गठन किया गया। जिसने इस आंदोलन की शुरुआत की। ब्रिटिश सरकार पर इस आंदोलन का कोई खास प्रभाव नहीं पड़ा और वर्ष 1920 में सेव्रेस की संधि से तुर्की का विभाजन कर दिया गया।

41. अभिलेख से आप क्या समझते हैं? इनका क्या महत्व है ?

उत्तर - अभिलेख उन्हें कहते हैं जो धातु, पत्थर, मिट्टी के बर्तन की कठोर सतह पर खुदे होते हैं। इनमें उन लोगो के क्रियाकलाप उपलब्धियां व विचार लिखे होते हैं जो इन्हें बनवाते है। खासतौर पर राजाओं के क्रियाकलाप व महिलाओं व पुरुषो द्वारा दिए गए दान का ब्योरा होता है। अर्थात् वे स्थायी प्रमाण होते हैं।

42. कृषि उत्पादन में महिलाओं की भूमिका का वर्णन कीजिए।

उत्तर - कृषि उत्पादन में महिलाओं की भूमिका का विवरण इस प्रकार दिया गया हैं:

1. मध्यकालीन भारतीय कृषि समाज में उत्पादन प्रक्रिया में महिलाओं की भूमिका महत्त्वपूर्ण थी। खेतिहर अर्थात् किसान परिवारों से संबंधित महिलाएँ कृषि उत्पादन में सक्रिय सहयोग प्रदान करती थीं तथा पुरुषों के साथ कन्धे-से-कन्धा मिलाकर खेतों में काम करती थीं।

2. पुरुष खेतों की जुताई और हल चलाने का काम करते थे। महिलाएँ मुख्य रूप में बुआई, निराई तथा कटाई का काम करती थीं और पकी हुई फ़सल का दाना निकालने में भी सहयोग प्रदान करती थीं।

3. उत्पादन के कुछ पहलू; जैसे-सूत कातना, बरतन बनाने के लिए मिट्टी को साफ़ करना और गूँधने, कपड़ों पर कढ़ाई करना आदि मुख्य रूप से महिलाओं के श्रम पर ही आधारित थे। किसी वस्तु का जितना वाणिज्यीकरण होता था, उसके उत्पादन के लिए महिलाओं के श्रम की माँग उतनी ही अधिक होती थी।

4. किसान और दस्तकार महिलाएँ न केवल खेती में सहयोग प्रदान करती थीं। अपितु आवश्यकता होने पर नियोक्ताओं के घरों में भी काम करती थीं और अपने उत्पादन को बेचने के लिए बाजारों में भी जाती थीं।

43. संविधान सभा की प्रमुख समितियों का वर्णन करें।

उत्तर - भारतीय संविधान सभा की प्रमुख समितियों के नाम

प्रमुख समितियों के नाम

अध्यक्ष

• संघ शक्ति समिति

• संघ संविधान समिति

• राज्य समिति

पंडित जवाहरलाल नेहरू

प्रांतीय संविधान समिति

सरदार वल्लभ भाई पटेल

मसौदा समिति

डॉ. बी. आर. अंबेडकर

सलाहकार समिति

सरदार वल्लभ भाई पटेल

मौलिक अधिकार उप-समिति

जेबी कृपलानी

अल्पसंख्यक उप समिति

एच.सी. मुखर्जी

उत्तर पूर्व सीमांत जनजातीय क्षेत्र और असम बहिष्कृत और आंशिक रूप से बहिष्कृत क्षेत्र उप-समिति

ए.वी. ठक्करी

बहिष्कृत और आंशिक रूप से बहिष्कृत क्षेत्र उप-समिति

ए.वी. ठक्करी

• नियम और प्रक्रिया समिति

• संचालन समिति

डॉ राजेंद्र प्रसाद

भारतीय संविधान सभा की लघु समितियों के नाम

लघु समितियों के नाम

अध्यक्ष

नागरिकता पर तदर्थ समिति

एस. वरदाचारी

वित्त और कर्मचारी समिति

डॉ राजेंद्र प्रसाद

साख समिति

अल्लादी कृष्णास्वामी अय्यर

सदन कमेटी

पट्टाभि सीतारमैया

व्यापार समिति का आदेश

डॉ के. एम. मुंशी

राष्ट्रीय ध्वज पर तदर्थ समिति

डॉ राजेंद्र प्रसाद

संविधान सभा के कार्यों पर समिति

जी. वी. मावलंकर

सुप्रीम कोर्ट पर तदर्थ समिति

एस. वरदाचारी

मुख्य आयुक्तों के प्रांतों पर समिति

पट्टाभि सीतारमैया

संघ के संविधान के वित्तीय प्रावधानों पर विशेषज्ञ समिति

नलिनी रंजन सरकार

भाषाई प्रांत आयोग

एस. के. धर

संविधान के मसौदे की जांच के लिए विशेष समिति

जवाहर लाल नेहरू

प्रेस दीर्घा समिति

उषा नाथ सेन

 

44. किताब उल हिंद पर एक लेख लिखें।

उत्तर -  "किताब-उल हिन्द" पुस्तक की रचना अलबरूनी ने सुल्तान महमूद गजनवी के शासकाल की थी। अलबरूनी ने इस पुस्तक की रचना अरबी भाषा में की थी। यह पुस्तक 80 अध्यायो और अनेक उप अध्यायों में विभक्त है। इस पुस्तक से महमूद गजनवी के आक्रमण के समय के भारतीय समाज एवं संस्कृति की महत्त्वपूर्ण जानकारी मिलती है। अलबरूनी अपनी पुस्तक में भारतीय समाज, रहन सहन, खानपान, वेश-भूषा सामाजिक प्रथाओं, त्योहार, धर्म, दर्शन कानून, अपराध, दंड, ज्ञान विज्ञान, खगोलशास्त्र, गणित, चिकित्सा, रसायन, दर्शन आदि का वर्णन करते हैं। वे भारत में प्रचलित विभिन्न संवतो, यहाँ की भौगोलिक स्थिति, महत्वपूर्ण नगरों और उनकी दूरी का भी उल्लेख करते है। चूंकि यह पुस्तक महमूद गजनवी के शासनकाल में लिखी गई, परंतु इसमें महमूद गजनवी के क्रियाकलापों का यदा कदा ही उल्लेख मिलता है इस पुस्तक से तत्कालीन राजनीतिक इतिहास के अध्ययन में बहुत अधिक सहायता नहीं मिलती है, परंतु भारतीय समाज और संस्कृति के अध्ययन के लिए किताब उल हिन्द अत्यंत महत्वपूर्ण पुस्तक है।

45. महाभारत के महत्व पर प्रकाश डालिए।

उत्तर- महाभारत महाकाव्य एवं इसके प्रमुख अंश शांतिपर्व एवं श्रीमद्भगवद्गीता प्राचीन काल से लेकर आज तक मानव की नैतिक, चारित्रिक, भौतिक एवं आध्यात्मिक उन्नति के प्रमुख स्रोत रहे हैं।

महाभारत के आदिपर्व के प्रथम अध्याय के 84 वें श्लोक में महाभारत के महत्व पर प्रकाश डालते हुये लिखा है-

'संसारी जीव जब अज्ञानरूपी अन्धकार से अन्धे होकर छटपटा रहे हों तब यह महाभारत ज्ञानाञ्जन की शलाका लगाकर उनकी आँख खोल देता है। यह न केवल अज्ञान की रतौंधी दूर करता है, अपितु सूर्य के समान उदित होकर मनुष्यों की आँख के सामने का सम्पूर्ण अन्धकार भी नष्ट कर देता है।'

इस कथन की पुष्टि के साथ-साथ महाभारत के प्रभाव को हम महात्मा गाँधी के उस कथन में देख सकते हैं जिसमें उन्होंने स्वीकार किया है कि 'जहाँ-तहाँ कुछ श्लोकों को टटोलते ही घोर निराशा के अन्धकार में भी प्रसन्नता की एक किरण चमक उठती है।'

भारत के राष्ट्रीय आन्दोलन के प्रमुख प्रणेता बाल गंगाधर तिलक ने तो 'गीता रहस्य' का सृजन ही किया है। उनके अनुसार 'उसका केवल दार्शनिक और शैक्षिक मूल्य नहीं है। व्यावहारिक जीवन में उसकी बड़ी उपयोगिता है।' उसका प्रभाव विचार और कर्म दोनों पर है। इसके विचार राष्ट्र और संस्कृति के नव-निर्माण और उत्थान में सहायक रहे हैं।'

वस्तुतः आज महाभारत हम-आप प्रत्येक के अन्दर है। हमारे अन्दर सत् प्रवृत्तियाँ पाण्डवों के समान बहुत कम हैं और असत् प्रवृत्तियाँ कौरवों के समान अधिक हैं। परन्तु जब हमारी सत् प्रवृत्तियाँ पाण्डवों के समान बुद्धि एवं विवेक रूपी श्रीकृष्ण से मार्गदर्शन प्राप्त करती हैं तो वे असत् प्रवृत्तियों पर विजय हासिल कर हमारा उद्धार करती हैं। यह श्रीकृष्ण अर्थात् बुद्धि एवं विवेक हमें अच्छी पुस्तकों में उनके एकाग्रचित अध्ययन से प्राप्त हो सकते हैं। आज हमें पढ़ते समय अर्जुन की तरह लक्ष्य पर एकाग्र हो जाना चाहिये। युधिष्ठिर से प्रेरणा लेकर हमें सत्य का मार्ग अपनाना चाहिये। मुश्किल वक्त में साहस रखने की प्रेरणा हमें भीम से लेनी चाहिये। पिता की इच्छा की पूर्ति की प्रेरणा हमें भीष्म से लेनी चाहिये। शकुनि रूपी छल-प्रपंच, दुर्योधन रूपी क्रोध, ईर्ष्या एवं लालच कितना ही आपका मार्ग रोके आपको अर्जुन की तरह एकाग्र होकर विवेक-बुद्धि रूपी श्रीकृष्ण से मार्गदर्शन लेते हुये लक्ष्य की तरफ बढ़ते रहना चाहिये। अन्ततः आप पायेंगे कि लक्ष्य आपने अपने कर्म के बल पर प्राप्त कर लिया।

46. आम लोग विभाजन की किस तरह देखते थे ?

उत्तर - सामान्य लोग प्रारंभ में देश के विभाजन को केवल थोड़े समय के एक जुनून के रूप में देखते थे। उनका विचार था कि विभाजन स्थायी नहीं होगा। कुछ समय बाद जैसे ही शांति और कानून व्यवस्था स्थापित हो जाएगी, वे अपने घरों को वापस लौट जाएँगे। उन्हें विश्वास था कि शताब्दियों से एक समाज में एक-दूसरे के सुख-दुख के साथी बनकर रहने वाले लोग एक-दूसरे का खून बहाने पर उतारु नहीं होंगे। देश का विभाजन उनके दिलों के विभाजन का कारण नहीं बनेगा। स्थिति सामान्य होते ही वे फिर मिल-जुलकर एक ही समाज में रहेंगे। वास्तव में सामान्य लोग चाहे वे हिंदू थे अथवा मुसलमान धर्म के नाम पर एक-दूसरे का सिर काटने को इच्छुक नहीं थे। अनेक नेता और स्वयं गाँधी जी भी अंत तक विभाजन की सोच का विरोध करते रहे थे। 7 सितम्बर, 1946 ई० को प्रार्थना सभा में अपने भाषण में गांधी जी ने कहा था, "... मैं फिर वह दिन देखना चाहता हूँ जब हिंदू और मुसलमान आपसी सलाह के बिना कोई काम नहीं करेंगे। मैं दिन-रात इसी आग में जल जा रहा हूँ कि उस दिन को जल्दी से जल्दी साकार करने के लिए क्या करूँ। लोग से मेरी गुजारिश है कि वे किसी भी भारतीय को अपना शत्रु न मानें...।" इसी प्रकार 26 सितम्बर, 1946 ई० को महात्मा गांधी ने 'हरिजन' में लिखा था, जो तत्व भारत को एक-दूसरे के खून के प्यासे टुकड़ों में बाँट देना चाहते हैं, वे भारत और इस्लाम दोनों के शत्रु हैं। भले ही वे मेरी देह के टुकड़े-टुकड़े कर दें, किंतु मुझसे ऐसी बात नहीं मनवा सकते, जिस मैं गलत मानता हूँ। जनसामान्य का गाँधी जी में अटूट विश्वास था। उन्हें लगता था कि गांधी जी किसी भी कीमत पर देश का विभाजन नहीं होने देंगे। इसलिए वे आसानी से अपने घरों को छोड़ने और अपने रिश्ते-नातों को तोड़ने के लिए तैयार नहीं थे। देश के विभाजन और उसके परिणामस्वरूप होने वाली हिंसा ने उन्हें झकझोर डाला था, किंतु फिर भी अनेक हिंदू-मुसलमान अपनी जान खतरे में डालकर एक-दूसरे की जान बचाने की कोशिश करते रहे। इससे सिद्ध होता है कि सामान्य हिंदू-मुसलमानों का विभाजन से कोई लेना-देना नहीं था।

खंड -D दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

किन्हीं चार प्रश्नों का उत्तर दें:

47. इब्नबतूता द्वारा वर्णित डाक व्यवस्था का वर्णन कीजिए।

उत्तर- इन्नबतूता भारत की संचार व्यवस्था से अत्यधिक प्रभावित था और उसने इसका उल्लेख संचार की एक अनोखी प्रणाली के रूप में किया है उसने अपने यात्रा वृतांत में बताया की भारत में दो प्रकार की डाक व्यवस्था थीं।

क. अश्व डाक व्यवस्था

ख. पैदल डाक व्यवस्था

क. अश्व डाक व्यवस्था- अश्व डाक व्यवस्था को उलूक कहा जाता था। जो हर चार मील की दूरी पर स्थापित राजकीय घोडो द्वारा संचालित होता था ।

ख. पैदल डाक व्यवस्था- पैदल डाक व्यवस्था में प्रति मील तीन पड़ाव होते थे जिसे दावा कहा जाता था। यह एक मील का तीन तिहाई होता था। हर तीन मील पर घनी आबादी वाला एक गांव होता था जिनमें लोग कार्य प्रारंभ करने के लिए तैयार बैठते थे इनमें से प्रत्येक के पास दो हाथ लम्बी एक छड़ी होती थी जब संदेशवाहक शहर से यात्रा प्रारंभ करता तो एक हाथ में पत्र और दूसरे हाथ में घंटियों वाली छड़ी लिए वह अपनी क्षमतानुसार तेज से भागता था और मंडप में बैठे लोग घंटियों की आवाज सुन कर तैयार हो जाते थे और जैसे ही संदेश वाहक उनके पास पहुँचता उनमें से एक उससे पत्र ले लेता और वह छड़ी हिलाते हुए पूरी ताकत से दौड़ता था जब तक कि वह अगले दावा तक पहुंच नहीं जाता और जब तक पत्र अपने गंतव्य स्थान तक नहीं पहुंच जाता तब तक यह प्रक्रिया चलती रहती थी।

निस्संदेह संचार की इस अनूठी प्रणाली ने व्यापार, वाणिज्य, संबंधी गतिविधियों को काफी प्रोत्साहित किया। इस व्यवस्था की कुशलता का अनुमान हम इससे लगा सकते हैं इसके द्वारा गुप्तचरो की खबरें सिंध से दिल्ली तक केवल 5 दिनों में पहुंच जाती थी। जबकि सिंध से दिल्ली की यात्रा में लगभग 50 दिनों का समय लगता था। इस प्रकार हम देखते हैं कि तत्कालीन डाक एवं संचार व्यवस्था से शासक वर्ग से लेकर के सामान्य जनता को काफी लाभ पहुंचा।

48. अकबर की धार्मिक नीति का वर्णन करें।

उत्तर - अकबर प्रथम सम्राट था, जिसके धार्मिक विचारों में क्रमिक विकास दिखायी पड़ता है। उसके इस विकास को तीन कालों में विभाजित किया जा सकता है-

प्रथम काल (1556-1575 ई.) - इस काल में अकबर इस्लाम धर्म का कट्टर अनुयायी था। जहाँ उसने इस्लाम की उन्नति हेतु अनेक मस्जिदों का निर्माण कराया, वहीं दिन में पाँच बार नमाज़ पढ़ना, रोज़े रखना, मुल्ला मौलवियों का आदर करना, जैसे उसके मुख्य इस्लामिक कृत्य थे।

द्वितीय काल (1575-1582 ई.) - अकबर का यह काल धार्मिक दृष्टि से क्रांतिकारी काल था। 1575 ई. में उसने फ़तेहपुर सीकरी में इबादतखाने की स्थापना की। उसने 1578 ई. में इबादतखाने को धर्म संसद में बदल दिया। उसने शुक्रवार को मांस खाना छोड़ दिया। अगस्त-सितम्बर, 1579 ई. में महजर की घोषणा कर अकबर धार्मिक मामलों में सर्वोच्च निर्णायक बन गया। महजरनामा का प्रारूप शेख़ मुबारक द्वारा तैयार किया गया था। उलेमाओं ने अकबर को ‘इमामे-आदिल’ घोषित कर विवादास्पद क़ानूनी मामले पर आवश्यकतानुसार निर्णय का अधिकार दिया।

तृतीय काल (1582-1605 ई.) - इस काल में अकबर पूर्णरूपेण दीन-ए-इलाही में अनुरक्त हो गया। इस्लाम धर्म में उसकी निष्ठा कम हो गयी। हर रविवार की संध्या को इबादतखाने में विभिन्न धर्मों के लोग एकत्र होकर धार्मिक विषयों पर वाद-विवाद किया करते थे। इबादतखाने के प्रारम्भिक दिनों में शेख़, पीर, उलेमा ही यहाँ धार्मिक वार्ता हेतु उपस्थित होते थे, परन्तु कालान्तर में अन्य धर्मों के लोग जैसे ईसाई, जरथुस्ट्रवादी, हिन्दू, जैन, बौद्ध, फ़ारसी, सूफ़ी आदि को इबादतखाने में अपने-अपने धर्म के पत्र को प्रस्तुत करने के लिए आमंत्रित किया गया। इबादतखाने में होने वाले धार्मिक वाद विवादों में अबुल फ़ज़ल की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती थी।

49. मगध साम्राज्य के शक्तिशाली होने के क्या कारण थे ?

उत्तर- छठी शताब्दी ईसा पूर्व 16 राज्यों का उदय हुआ जिन्हें महाजनपद के रूप में जाना जाता है। इसमें से वज्जि, मगध, कौशल, कुरु, पांचाल और अवंति सबसे महत्वपूर्ण महाजनपद थे। इन महाजनपद में से मगध धीरे-धीरे एक शक्तिशाली महाजनपद के रूप में उभरता चला गया।

मगध के उत्कर्ष के कई कारण थे-

भौगोलिक स्थिति - मगध अपनी विशिष्ट भौगोलिक की स्थिति के कारण यह चारों ओर से सुरक्षित थी उत्तर में गंगा नदी, पूर्व में सोन नदी, पश्चिम में चंपा नदी तथा दक्षिण में विंध्याचल इसकी भौगोलिक सुरक्षा सीमा निर्मित करती थी।

प्राकृतिक संसाधन - राजगीर के पास लोहे के विशाल भंडार थे जिससे अस्त्र-शस्त्रों का निर्माण सुगम हुआ। मगध में कोयले के भंडार भी मिले हैं जो की आधुनिक झारखंड में है।

आर्थिक कारण - मध्य गंगा के मैदान मध्य भाग में स्थित होने के कारण मगध राज्य की भूमि उपजाऊ थी। जिससे उत्पादन बढ़ा और परिणाम स्वरुप व्यापार में वृद्धि हुई। इस प्रकार मगध महाजनपद आर्थिक दृष्टिकोण से संपन्न हुई ।

शक्तिशाली शासक - बिम्बिसार, अजातशत्रु एवं महापदमनंद जैसे प्रतापी राजाओं ने मगध महाजनपद को सर्व शक्तिशाली स्वरुप प्रदान किया। मगध प्रथम राज्य था जिसके पास शक्तिशाली हाथी सेना भी थी।

इस प्रकार हम पाते हैं कि मगध साम्राज्य के उत्कर्ष के लिए विभिन्न परिस्थितियों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। ऐसी परिस्थितियों अन्य महाजनपद में नहीं थी। जिसके कारण मगध के समानांतर विकास नहीं कर सकी ।

50. मोहनजोदडो की कुछ विशेषताओं का वर्णन कीजिए।

उत्तर -मोहनजोदड़ो पाकिस्तान के सिन्ध प्रान्त के लरकाना जिले में स्थित था। सिंधी भाषा में मोहनजोदड़ो का शाब्दिक अर्थ है 'मृतकों का टीला' मोहनजोदड़ो की खुदाई से निम्नलिखित विशेषताएं प्रकट हुई है जो निम्नलिखित है

सुनियोजित नगर-

A. मोहनजोदड़ो एक विशाल शहर था जो 125 हेक्टेयर क्षेत्र में फैला हुआ था। यह शहर दो भागों में विभक्त था। शहर के पश्चिम में एक दुर्ग था जो ऊंचाई में स्थित था एवं पूर्व में नीचे एक नगर बसा हुआ था।

B. दुर्ग की संरचना कच्ची ईंटों के चबूतरे पर बनाई गई थी, इसमें बड़े बड़े भवन थे जो संभवत प्रशासनिक अधवा धार्मिक केंद्रों के रूप में कार्य करते थे।

C. दुर्ग के चारों ओर ईटों की बनी दीवार थी जो दुर्ग को निचले शहर से विभाजित करती थी।

D. निचले शहर का क्षेत्र दुर्ग की अपेक्षा कहीं अधिक बड़ा था जिसमें सामान्य जनता निवास करतीथी। निचले शहर को भी दीवार से चारों और से घेरा गया था।

E. प्राय सभी बड़े मकानों में रसोईघर, खानागार, शौचालय और कुँए होते थे।

F. घर की दरवाजे और खिड़‌कियां प्रायः सड़क की ओर नहीं खुलती थी। उस समय के घरों में गोपनीयता का विशेष ध्यान रखा जाता था।

सुव्यवस्थित सड़के एवं नालियाँ-

A. सड़कें पूरब से पश्चिम एवं उत्तर से दक्षिण की तरफ होती थी और एक दूसरे को समकोण पर काटती थी एवं शहर को आयताकार भागों में विभाजित करती थी।

B. नालियाँ पकी ईटों से बनी तथा ढकी हुई होती थी. उनमे थोड़ी थोड़ी दूरी पर हटाने वाले पत्थर लगे होते थे ताकि नालियों की सफाई की जा सके।

विशाल स्नानागार, अन्नागार एवं भवन-

A. मोहनजोदड़ो का सर्वाधिक महत्वपूर्ण सार्वजनिक भवन विशाल स्रानागार है। इसका जलाशय दुर्ग के टीले में स्थित था। इसकी संरचना अनोखी है तथा धार्मिक संबंधी अनुष्ठानों में इसका प्रयोग किया जाता था।

B मोहनजोदड़ो की अन्य महत्वपूर्ण विशेषता दुर्ग में मिलने वाला विशाल अन्नागार है। विशाल अन्नागार के दक्षिण में ईटों के चबूतरे की कई कतारें थी।

C. मोहनजोदड़ो की दुर्ग क्षेत्र में विशाल स्रानागार की तरफ एक अन्य लंबा भवन मिले है। विद्वानों के अनुसार यह भवन किसी उच्च अधिकारी का निवास स्थान रहा होगा ।

कुशल एवं व्यवस्थित नागरिक प्रबंध-

मोहनजोदड़ो का नागरिक प्रबंध अत्यधिक कुशल एवं व्यवस्थित था। परंतु यह कहना कठिन है कि सिंधु घाटी सभ्यता के शासक कौन थे। संभव है कि वे राजा थे या पुरोहित अथवा व्यापारी । संभव है कि नगरपालिका का शासन प्रबंध था। किंतु इतना निश्चित है कि मोहनजोदड़ो का नागरिक प्रबंध कुशल हाथों में था। उनका प्रशासन अत्यधिक कुशल एवं उत्तरदाई था।

51. 1857 के विद्रोह की विफलता के कारणों का उल्लेख करें।

उत्तर- 1857 के विद्रोह में विद्रोहियों को आरंभिक सफलता तो मिली, परंतु शीघ्र ही वे पराजित होने लगे। दिल्ली, कानपुर, लखनऊ, झाँसी, कालपी और अन्य स्थानों पर अँगरेजों ने कब्जा जमा लिया। दिसंबर 1858 तक विद्रोह को पूरी तरह दबा दिया गया। इस तरह विद्रोह असफल हो गया जिसके कारण इस प्रकार है-

(i) योग्य नेतृत्व का अभाव विद्रोह मुगल बादशाह - बहादुरशाह के नेतृत्व में हुआ, परंतु उसमें नेतृत्व करने की क्षमता नहीं थी। विद्रोह के अन्य नेताओं में भी आपसी तालमेल नहीं था, वे एक साथ योजना बनाकर युद्ध नहीं करते थे तथा उनमें कुशल सेनापति के गुणों का अभाव था। अतः वे अँगरेज सेनापतियों का सामना नहीं कर सके।

(ii) समय से पूर्व विद्रोह आरंभ- बिना किसी निश्चित योजना के निर्धारित समय के पूर्व ही विद्रोह शुरू हो गया। इससे विद्रोह योजनाबद्ध रूप से नहीं हो सका। एक अंग्रेज इतिहासकार ने लिखा कि "यदि पूर्व निश्चय के अनुसार एक तारीख को सारे भारत मैं स्वाधीनता का युद्ध शुरू होता तो भारत में एक भी अंग्रेज जीवित न बचता।”

(iii) विद्रोह का अनुपयुक्त समय- विद्रोह का समय क्रांतिकारियों के लिए अनुपयुक्त था। उस समय तक लगभग पूरा भारत अँगरेजी सत्ता के अधीन हो चुका था। अंतरराष्ट्रीय परिस्थिति भी अँगरेजों के अनुकूल थी। अतः, अंग्रेजों ने अपनी सारी शक्ति विद्रोह के दमन में लगा दी।

(iv) विद्रोह का निश्चित उद्देश्य नहीं- विद्रोह में भाग लेनेवाले नायकों का एकसमान उद्देश्य नहीं था। अपने व्यक्तिगत स्वार्थों की पूर्ति के लिए वे इसमें भाग ले रहे थे। यह निश्चित नहीं किया गया था कि क्रांति की सफलता के बाद क्या व्यवस्था होगी। अतः, विद्रोही पूरे मनोयोग से विद्रोह में भाग नहीं ले सके।

(v) संगठन एवं योजना का अभाव- विद्रोहियों में संगठनात्मक दुर्बलता थी। विभिन्न क्षेत्रों के क्रांतिकारी एवं उनके नेता अपनी-अपनी योजनानुसार अलग- अलग कार्य करते रहे। इसके विपरीत अँगरेजों ने योजनाबद्ध रूप से विद्रोह का दमन किया।

(vi) विद्रोहियों के सीमित साधन- अँगरेजों की तुलना में विद्रोहियों के साधन अत्यंत सीमित थे। उनके पास पर्याप्त धन, रसद, गोला-बारूद और प्रशिक्षित सैनिकों का सर्वथा अभाव था। उनके पास आवागमन के साधनों एवं गुप्तचर व्यवस्था का भी अभाव था।

(vii) विद्रोह का सीमित स्वरूप- विद्रोह के स्थानीय एवं सीमित स्वरूप ने भी इसकी विफलता में योगदान दिया। क्रांति का केंद्रबिंदु उत्तरी और मध्य भारत के कुछ भाग ही थे। बंगाल, पूर्वोत्तर भारत, पंजाब, कश्मीर, उड़ीसा, पश्चिम और दक्षिण भारत में इसका व्यापक प्रभाव नहीं था। दिल्ली को केंद्र बनाने से विद्रोह उतना अधिक नहीं फैल सका जितना फैल सकता था। फलतः विद्रोहों की अत्यधिक, स्थानबद्ध प्रकृति के कारण अँगरेज उनसे एक-एक कर निबटने में कामयाब रहे।

52. असहयोग आंदोलन के बारे में आप क्या जानते हैं। वर्णन करें।

उत्तर: अंग्रेजों की दमनकारी नीतियों के विरोध में गांधीजी ने अगस्त 1920 ई. को असहयोग आन्दोलन प्रारंभ करने की घोषणा की। 1920 ई. के कलकत्ता के विशेष अधिवेशन तथा नागपुर अधिवेशन में गांधी जी की घोषणा का कांग्रेस ने समर्थन किया ।

असहयोग आंदोलन के कार्यक्रम :

A. उपाधियों और अवैतनिक पदों का बहिष्कार ।

B. सरकारी सभाओं का बहिष्कार ।

C. स्वदेशी का प्रयोग |

D. सरकारी स्कूलों व कॉलेजों का परित्याग ।

E. वकीलों द्वारा सरकारी न्यायालय का परित्याग ।

F. राष्ट्रीय न्यायालयों की स्थापना ।

G. हिन्दू-मुस्लिम एकता पर बल ।

H. अस्पृश्यता की समाप्ति ।

गांधीजी तथा अन्य व्यक्तियों द्वारा उपाधियों के परित्याग से इस आंदोलन की शुरुआत हुई। कांग्रेस ने विधानमंडल के चुनाव का बहिष्कार किया । स्वदेशी शिक्षण संस्थान स्थापित किए गए जैसे काशी विद्यापीठ, बिहार विद्यापीठ, जामिया मिलिया इस्लामिया आदि, विदेशी वस्त्रों की होली जलाई गई । चरखे का प्रचलन बढ़ा 'तिलक स्वराज फंड' की स्थापना हुई और शीघ्र ही इसमें 1 करोड़ रुपये जमा हो गए। स्वशासन के स्थान पर स्वराज को अंतिम लक्ष्य घोषित किया गया।

आंदोलन के दौरान हिन्दू मुस्लिम एकता का भी प्रस्फुटन हुआ। असहयोग आंदोलन का प्रारंभ शहरी मध्यम वर्ग की हिस्सेदारी से प्रारंभ हुआ। विद्यार्थियों ने स्कूल-कॉलेज छोड़ दिये, शिक्षकों ने त्यागपत्र दे दिया, वकीलों ने मुकदमे लड़ने बंद कर दिये तथा मद्रास के अतिरिक्त प्रायः सभी प्रांतों में परिषद् चुनावों का बहिष्कार किया गया । विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार किया गया, शराब की दुकानों की पिकेटिंग की गयी । व्यापारियों ने विदेशी व्यापार में पैसा लगाने से इन्कार कर दिया। देश में खादी का प्रचलन और उत्पादन बढ़ा। सरकार ने इस आंदोलन को सख्ती से दबाया।

असहयोग आंदोलन को वापस लेने का फैसला 5 फरवरी 1922 को उत्तर प्रदेश की चोरीचौरा नामक स्थान में आंदोलनकारियों और पुलिस में झड़प हो गई जिसमें 22 पुलिस वाले मारे गए। इस घटना से गांधी जी ने असहयोग आंदोलन को वापस ले लिया। अंततः 12 फरवरी 1922 को असहयोग आंदोलन की समाप्ति कर दी गई।

असहयोग आंदोलन के प्रभाव :

(i) आंदोलन ने राष्ट्रीय भावना का विकास किया, अंग्रेजो के प्रति विरोध का वातावरण बनाया।

(ii) स्वदेशी वस्तुओं के इस्तेमाल में वृद्धि हुई और विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार हुआ।

(iii) देशी शिक्षण संस्थाओं का विकास हुआ।

(iv) कांग्रेसी पार्टी भी अपनी नीतियों एवं कार्यक्रमों में बदलाव किया।

(v) हिंदी को राष्ट्रभाषा का महत्त्व दिया गया तथा अंग्रेजी के प्रयोग में कमी आई।

(vi) खादी का प्रचलन प्रारंभ हुआ। चरखा राष्ट्रीय अस्मिता का प्रतीक बन गया।

(vii) आंदोलन जनसाधारण तक पहुंची।

(viii) आंदोलन की असफलता ने कांतिकारी गतिविधियों को प्रेरणा दी।

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