12th Hindi Elective सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय JCERT/JAC Reference Book

12th Hindi Elective सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय JCERT/JAC Reference Book

 12th Hindi Elective सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय JCERT/JAC Reference Book

3. सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय

कवि परिचय

जन्म- काल -7 मार्च 1911

जन्म स्थान - कुशीनगर (उत्तर प्रदेश)

मृत्यु - 4 अप्रैल 1987 (नई दिल्ली)

शिक्षा -बी. एस. सी. करके अंग्रेजी में एम. ए.

अंग्रेजी, संस्कृत, हिन्दी (बाद में सीखी)

साहित्यिक परिचय

प्रयोगवाद के संस्थापक (1943ई.) तार सप्तक के संस्थापक (1943) प्रमुख कृतियां

कविता संग्रह:- भग्नदूत 1933 चिन्ता 1942 इत्यलम् 1946 हरी घास पर क्षण भर 1949 बावरा अहेरी 1954 इन्द्रधनुष रौंदे हुये ये 1957, अरी ओ करुणा प्रभामय 1959, आँगन के पार द्वार 1961 कितनी नावों में कितनी बार (1967) क्योंकि मैं उसे जानता हूँ (1970)

सागर मुद्रा (1970) पहले मैं सन्नाटा बुनता हूँ (1974) महावृक्ष के नीचे (1977) नदी की बाँक पर छाया (1981)

कहानियाँ:- विपथगा 1937, परम्परा 1944, कोठरी की बात 1945, शरणार्थी 1948, जयदोल 1951

उपन्यासः- शेखर एक जीवनी प्रथम भाग (उत्थान) 1941, द्वितीय भाग (संघर्ष) 1944, नदी के द्वीप 1951, अपने अपने अजनबी 1961

यात्रा वृतान्तः- अरे यायावर रहेगा याद? 1953, एक बूँद सहसा उछली 1960

निबंध संग्रह : सबरंग, त्रिशंकु (1945ई०), आत्मनेपद 1960ई०), आधुनिक साहित्यः एक आधुनिक परिदृश्य, आलवाल (1971ई०) सब रंग और कुछ राग (1956ई०), आत्मनेपद (1960ई०) आलबल (1971ई०), लिखी कागद कोरे (1972ई०) आलोचनाः- त्रिशंकु 1945, आत्मनेपद 1960, भवन्ती 1971, अद्यतन 1971 ई.।

संस्मरणः स्मृति लेखा डायरियां: भवंती, अंतरा और शाश्वती। विचार गद्यः संवत्सर नाटकः उत्तरप्रियदर्शी जीवनीः रामकमल राय द्वारा लिखित शिखर से सागर तक

संपादित ग्रंथः- आधुनिक हिन्दी साहित्य (निबन्ध संग्रह) 1942,

तार सप्तक (कविता संग्रह) 1943,

दूसरा सप्तक (कविता संग्रह) 1951,

तीसरा सप्तक (कविता संग्रह),

सम्पूर्ण 1959,

नये एकांकी 1952, रूपांबरा 19601

पुरस्कार/सम्मान

साहित्य अकादमी 1964 (आंगन के पार द्वार)

भारतीय ज्ञानपीठ 1978 (कितनी नावों में कितनी बार)

भारत भारती सम्मान संपादन (पत्रिका) - सैनिक, विशाल भारत, दिनमान, नवभारत टाइम्स

साहित्यिक विशेषताएं

जीवन को पूर्णता में जीने का आग्रह व्यष्टि और समष्टि में समन्वय दार्शनिक और बौद्धिकता लघु कविताओं का सौंदर्य भाषा शैली खड़ी बोली का प्रयोग मुक्तक छंद की रचना भाषा बिंबात्मक प्रतीकात्मकता के गुण

पाठ परिचय " यह दीप अकेला "

'यह दीप अकेला' शीर्षक कविता प्रयोगवाद के संस्थापक सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन 'अज्ञेय' द्वारा रचित है। अज्ञेय जी ने' दीपक 'को मनुष्य का प्रतीक के रूप में लिया है और 'पंक्ति 'समाज का प्रतीक है। जिस प्रकार दीपक पंक्ति में शामिल हो जाने पर वह अपना अस्तित्व में पूर्ण रूप से आ जाता है और जगमगाते हुए दीपक का सौंदर्य और बढ़ जाता है। उसी प्रकार एक व्यक्ति जो अपने आप में स्वतंत्र हैं, प्रेम और करुणा से भरा हुआ है। लेकिन उसकी सार्थकता तभी सार्थक होगी जब वह समाज के साथ जुड़कर रहता है अर्थात् व्यक्तिगत सत्ता को सामाजिक सत्ता के साथ जोड़ने पर बल दिया है तभी विश्व का समाज का कल्याण हो सकता है। कविता पर प्रयोगवादी शैली का प्रभाव है। कवि ने कविता में स्वयं को इसी व्यक्तित्व रूप में अर्जित करते हुए, समाज में स्वयं को विसर्जित कर देना चाहता है।

यह दीप अकेला (सप्रसंग व्याख्या)

काव्यांश -1

यह दीप अकेला स्नेह भरा

है गर्व भरा मदमाता, पर इसको भी पंक्ति को दे दो।

यह जन है - गाता गीत जिन्हें फिर और कौन गाएगा?

पनडुब्बा - ये मोती सच्चे फिर कौन कृति लाएगा?

यह समिधा - ऐसी आग हठीला बिरला सुलगाएगा।

यह अद्वितीय विसर्जित - यह मेरा यह मैं स्वयं

यह दीप अकेला स्नेह भरा

है गर्व भरा मदमाता, पर इसको भी पंक्ति को दे दो।

शब्दार्थ -

स्नेह = तेल के अर्थ में,

मदमाता = मस्ती में चूर,

जन-= व्यक्ति

पन्नडुब्बा एक पक्षी का नाम

कृति = भाग्यवान, किस्मत वाला

समिधा = हवन में प्रयुक्त सामग्री

हठीला = हट (जिद) करने वाला

बिरला = बहुतों में एक

विसर्जित = त्याग करना

प्रसंग - प्रस्तुत पंक्तियां हमारी पाठ्यपुस्तक अंतरा भाग 2 से 'यह दीप अकेला' शीर्षक कविता से ली गई है। इसके रचयिता प्रयोगवाद के प्रसिद्ध कवि सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन 'अज्ञेय' है। यहां दीपक के माध्यम से कवि ने व्यक्तिगत सत्ता को समाजिक सत्ता के साथ जुड़ने का आह्वान किया है।

व्याख्या- कवि कहता है कि यह दीप रूपी व्यक्ति अकेला है। यह स्नेह से भरा हुआ है, गर्व से भरा हुआ है और मदमाता भी है अर्थात् अहंकार की मस्ती में चूर है। फिर भी यह अकेला है। अतः इस अकेले दीप को भी पंक्ति में शामिल कर लो अर्थात् इसे भी समाज रूपी पंक्ति को अर्पित कर देना चाहिए। जिससे ये समाज के काम आ सके और इसका जीवन सार्थक हो सके।

यह गीत गाता हुआ मनुष्य है जो अनोखे गीत को रचता है इसलिए इसे समूह में शामिल कर लो नहीं तो इन गीतों को कौन गाएगा यह उस गोताखोर की तरह है जो विचारों के मोती को चुन कर लाता है जिन्हें और कोई नहीं ला सकता अर्थात् जिस तरह गोताखोर पानी में कूदकर मोती चुन कर लाता है उसी तरह यह व्यक्ति भी इतना कुशल है कि यह विचारों की के मोती चुन कर लाता है अर्थात् इसे समाज में सम्मिलित कर लेने से समाज लाभान्वित होगा।

यह प्रतिभाशाली व्यक्ति यज्ञ हवन सामग्री की तरह है जो खुद जल कर वातावरण में पवित्रता फैलाती है अर्थात् यह व्यक्ति अपने विचारों से क्रांति के आग लगा सकता है। यह अद्वितीय है इसके जैसा कोई दूसरा नहीं है यह मेरा है अर्थात् इसमें स्व की भावना है वृत्तीय स्वयं अपने अहम को त्याग भी किए हुए हैं अर्थात् इस की अपनी अलग व्यक्तिगत होते हुए भी इसका उद्देश्य सामाजिक सत्ता में विलय होना है। इसे जनसमूह में शामिल कर लेना चाहिए इसी में देश की भलाई है।

यह दीप अकेला है, स्नेह से भरा हुआ है, गर्व से भरा हुआ है, अहंकार में चूर है। फिर भी समाज के कल्याण हेतु इसको पंक्ति में शामिल कर लो अर्थात् इसके व्यष्टि का समष्टि में विलय कर लो।

विशेष

> इन पंक्तियों में कवि ने मनुष्य की व्यक्तिगत सत्ता को सामाजिक सत्ता में शामिल करने का संदेश दिया है।

> भाषा सरल सरस एवं प्रवाह मई खड़ी बोली हिंदी का प्रयोग हुआ है।

> मुक्त छंद का प्रयोग है।

> "गाता गीत', 'कौन कृति' अनुप्रास अलंकार है।

> 'दीप 'को व्यक्तिगत सत्ता तथा' पंक्ति' को सामाजिक सत्ता के प्रतीक के रूप में चित्रित किया गया है।

काव्यांश -2

यह मधु है स्वयं काल की मौना का युगसंचय

यह गोरस-जीवन-कामधेनु का अमृत-पूत पय

यह अंकुर -फोड़ धरा को रवि को तकता निर्भय

यह प्रकृत, स्वयम्भू, ब्रह्म, अयुतः

इस को भी शक्ति को दे दो

यह दीप अकेला स्नेह भरा

है गर्व भरा मदमाता, पर इसको भी पंक्ति को दे दो।

शब्दार्थ

मधु = शहद,

काल = समय,

संचय = इकठ्ठा करना,

स्वयंभू = अपने आप उत्पन्न,

पुत = पवित्र,

पय = दूध,

गोरस = माखन,

अंकुर = अंखुआ

अयुतः = 10 हजार की संख्या, पृथक

प्रसंग - प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक अंतरा भाग 2 से 'यह दीप अकेला' शीर्षक कविता से ली गई है। इसके रचयिता प्रयोगवाद के प्रसिद्ध कवि सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन 'अज्ञेय' है। यहां दीपक के माध्यम से कवि ने व्यक्तिगत सत्ता को समाजिक सत्ता के साथ जुड़ने का आह्वान किया है। यहां कवि ने उससे मधु, दूध, अंकुर आदि के रूप में चित्रित करते हुए समष्टि में उसके विलय की आवश्यकता पर बल दिया है।

व्याख्या- कवि कहता है कि प्रतिभाशाली व्यक्ति शहद के समान है यह एक ऐसा मधु है जो युग युग तक स्वयं एकत्रित हुआ है। यह प्रतिभाशाली व्यक्ति दूध या मक्खन के समान है है जो जीवन रूपी कामधेनु से अमृत है जो हमारी सारी इच्छाओं को पूरा कर देता है।

यह वह अंकुर है जो धरती को फोंड़कर सत्य से आंखे मिलाने का साहस रखता है। ये प्रकृति से उत्पन्न है, ये अपने आप उत्पन्न हुआ है। ये ईश्वर या परम सत्ता के समान है। ये किसी से जुड़ा हुआ नहीं है, इसे भी शक्ति को दे देना चाहिए।

तात्पर्य यह है कि व्यक्ति के सारे गुण व शक्तियां है, फिर भी समाज के साथ उसकी अंतरंगता से समाज मजबूत होता है।

यह दीप अकेला है, स्नेह से परिपूर्ण है, गर्व से भरा हुआ है, इसमें घमंड अहंकार का भाव भी है, परंतु इसको भी पंक्ति दे दो। अर्थात् एक अकेले व्यक्ति को समाज में शामिल कर लो।

विशेष

* इन पंक्तियों में कवि ने मनुष्य की व्यक्तिगत सत्ता को सामाजिक सत्ता में शामिल करने का संदेश दिया है।

* व्यक्ति को सर्वगुणसंपन्न और सर्वशक्तिमान बताया गया है, उसके समाज में जुड़ने से उसकी महत्ता बढ़ जाती है।

* भाषा सरल सरस एवं प्रवाह मई खड़ी बोली हिंदी का प्रयोग हुआ है।

* मुक्त छंद का प्रयोग है।

* "दीप 'को व्यक्तिगत सत्ता तथा' पंक्ति' को सामाजिक सत्ता के प्रतीक के रूप में चित्रित किया गया है।

काव्यांश -3

यह वह विश्वास, नहीं जो अपनी लघुता में भी काँपा,

वह पीड़ा, जिसकी गहराई को स्वयं उसी ने नापा,

कुत्सा, अपमान, अवज्ञा के धुँधुआते कड़वे तम में

यह सदा-द्रवित, चिर-जागरूक, अनुरक्त- नेत्र,

उल्लम्ब-बाहु, यह चिर-अखंड अपनापा

जिज्ञासु, प्रबुद्ध, सदा श्रद्धामय इस को भक्ति को दे दो

शब्दार्थ -

लघुता = छोटापन,

कुत्सा = निंदा, घृणा, बुराई

अवज्ञा = अपेक्षा, अनादर

उल्लंब-बाहु = उठी हुई बांह वाला तम = अंधेरा,

द्रवित = करुणा से भरा,

प्रबुद्ध = सचेत

प्रसंग - प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक अंतरा भाग 2 से 'यह दीप अकेला' शीर्षक कविता से ली गई है। इसके रचयिता प्रयोगवाद के प्रसिद्ध कवि सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन 'अज्ञेय' है। यहां दीपक के माध्यम से कवि ने मनुष्य को विश्वास से परिपूर्ण दुखों में सहन से जागरूक प्रभु आदि बताते हुए उसे सर्वगुण संपन्न दर्शाया है। साथ ही उसकी व्यक्तिगत सत्ता को सामाजिक सत्ता से जोड़ने का संदेश दिया है।

व्याख्या - कवि कहता है कि यह दीपक उस विश्वास का रूप है जो अपने छोटे होने के बाद भी हर परिस्थिति में धैर्य बनाए रखता है। दीपक रूपी व्यक्ति में पूर्ण आत्मविश्वास भरा हुआ है कभी उसकी मौलिकता खत्म नहीं होती। इसमें गहरे दुख को सहन करने की क्षमता है इसी कारण किसी के सामने घुटने नहीं टेकता। उसके भीतर की भावना अच्छी रहती है। इसके अंदर जो विश्वास है, वह छोटा होने पर भी नहीं भागता। उसका विश्वास इतना गहरा है कि कोई और व्यक्ति उसे नहीं नाप सकता।

उसे कई बार समाज से अपमान जनक व कड़वे शब्द सुनने पड़ते हैं, मगर वो कभी हार नहीं मानता। करुणा से भरा हुआ, दीर्घकाल से जागरूक और अनुराग युक्त नेत्रों वाला और दीर्घ समय से संपूर्ण आत्मीयता से भरा हुआ है। यह ज्ञान प्राप्ति के लिए उत्सुक जा जागृत सदैव श्रद्धा से युक्त इसको भक्ति दे दो। अर्थात् इसे समाज से जोड़ देना चाहिए। जिससे समाज आध्यात्मिक रूप से बना रहे, जुड़ा रहे और इस व्यक्ति की सारी आस्था समाज के काम आ सके।

यह दीप अकेला है, स्नेह से भरा हुआ है, यह गर्व से भरा है और अहं भाव से परिपूर्ण है। परंतु इसको भी पंक्ति को दे दो। तात्पर्य है कि दीपक रुपी व्यक्ति के समस्त अच्छे गुण भरे हुए हैं। यह सर्वगुण संपन्न है इसलिए इसे समाज में सम्मिलित कर लेना चाहिए जिससे समाज में सद्गुणों की वृद्धि होगी और समाज मजबूत होगा।

विशेष

* इन पंक्तियों में कवि ने मनुष्य की व्यक्तिगत सत्ता को सामाजिक सत्ता में शामिल करने का संदेश दिया है।

* व्यक्ति को सर्वगुणसंपन्न और सर्वशक्तिमान बताया गया है, उसके समाज में जुड़ने से उसकी महत्ता बढ़ जाती है।

* भाषा सरल सरस एवं प्रवाह मयी खड़ी बोली हिंदी का प्रयोग हुआ है।

* मुक्त छंद का प्रयोग है।

* 'अपमान अवज्ञा', 'अखंड अपनापन में अनुप्रास अलंकार का प्रयोग है

* दीप 'को व्यक्तिगत सत्ता तथा' पंक्ति' को सामाजिक सत्ता के प्रतीक के रूप में चित्रित किया गया है।

'मैं ने देखा, एक बूंद'

पाठ परिचय

"मैं ने देखा, एक बूंद" कविता प्रयोगवाद के प्रसिद्ध कवि सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन 'अज्ञेय' द्वारा रचित है।

"मैं ने देखा, एक बूँद" कविता में 'अज्ञेय' जी ने बूँद के माध्यम से मानव-जीवन के एक- एक क्षण को महत्त्वपूर्ण एवं सार्थक बताया है। इस कविता में अज्ञेय जी ने समुद्र से अलग प्रतीत होती बूँद की क्षणभंगुरता को व्याख्यायित किया है। कवि देखते हैं कि बूँद क्षणभर के लिए ढलते सूरज की आग से रंग जाती है। क्षणभर का यह दृश्य देखकर कवि को एक दार्शनिक तत्व भी दिखने लग जाता है। विराट के सम्मुख बूंद का समुद्र से अलग दिखना नश्वरता के दाग से नष्ट होने के बाद से मुक्ति का एहसास है। इस कविता के माध्यम से कवि ने जीवन में क्षण के महत्व को, क्षणभंगुरता को प्रतिष्ठापित किया है।

मैं ने देखा

एक बूँद सहसा

उछली सागर के झाग से:

रंग गई क्षणभर

ढलते सूरज की आग से।

मुझ को दीख गया;

सूने विराट के सम्मुख

हर आलोक-छुआ अपनापन

है उन्मोचन

नश्वरता के दाग से!

प्रसंग प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक 'अंतरा' भाग-2 से 'मैं ने देखा, एक बूँद' नामक कविता से ली गई है। इसके रचयिता कवि सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन 'अज्ञेय' हैं। इन पंक्तियों में कवि ने समुद्र से अलग प्रतीत होती बूँद की क्षणभंगुरता को व्याख्यायित किया है। इसके माध्यम से कवि ने यह दर्शाया है कि जीवन की नश्वरता के बावजूद जीवन में प्रत्येक क्षण का महत्त्व है।

व्याख्या - कविता के माध्यम से कवि अज्ञेय ने जीवन में क्षण के महत्व को स्थापित किया है। दूसरे शब्दों में यदि कहा जाए तो कवि ने भारतीय जीवन दर्शन और आत्मा एवं परमात्मा के संबंध को उजागर किया है।

प्रतिकों के माध्यम से कवि अज्ञेय यह बताना चाहते हैं कि समुंद्र के बूंदों की तरह मनुष्य के जीवन का हर एक पल बहुत ही कीमती होता है। विराट के सम्मुख बूंद का समुद्र से अलग दिखना, नष्ट होने के बाद से मुक्ति का अहसास है। अर्थात् ब्रह्म का एक अंश मनुष्य है और उसे बहुत कम समय के लिए आता है और समाज, देश के लिए कुछ कर जाता है।

दूसरे अर्थों में सागर की तुलना ब्रह्मा से की गई है कवि कहते हैं की सागर से अलग कोई अलग होता है तो वह कुछ पल तो अपनी जिंदगी को खुशहाली से जी तो लेता है परंतु उसका एक न एक दिन अंत होना निश्चित है

कवि अज्ञेय के अनुसार मनुष्य को अपने जीवन के अनमोल क्षणों को व्यर्थ ही नष्ट नहीं करना चाहिए। मनुष्य को अपने जीवन के हर क्षण को उपयोग में लगाना चाहिए। ताकि जीवन में कभी भी उसे इस बात का अफसोस न हो कि उसने अपना कीमती समय नष्ट किया है।

सागर' से कवि का आशय समाज से है तथा 'बूँद' का आशय एक मनुष्य से है। अनगिनत बूँदों के कारण सागर का निर्माण होता है। यहाँ सागर समाज है और बूँद एक मनुष्य है। मनुष्य इस समाज में रहकर अस्तित्व पाता है और समाज उसे अपनी देख-रेख में एक सभ्य मनुष्य बनाता है।

कवि कहते हैं कि मनुष्य अपने हर क्षण का अच्छे से उपयोग करें तो एक दिन जरुर सफल हो जाएगा। प्रत्येक मनुष्य को अपने हर पल की कीमत को समझना चाहिए। कवि ने एक बूंद का उदाहरण देते हुए बताते हैं की मनुष्य के जीवन का एक छोटा सा क्षण भी उसके संपूर्ण जीवन को बदल सकता है

विशेष

* इस कविता में एक क्षण के महत्व को बताया गया है।

* यह मुक्तक छंद की कविता है।

* इस कविता में सागर परमात्मा, ब्रह्मा , समाज का प्रतीक बताया गया है और बूंद जीवात्मा, व्यक्ति का प्रतीक बताया गया।

* इसकी भाषा खड़ी बोली हिंदी सरल सहज प्रवाहमयी भावात्मक है।

यह दीप अकेला

प्रश्न अभ्यास

1. 'दीप अकेला' के प्रतीकार्थ को स्पष्ट करते हुए बताइए कि उसे कवि ने स्नेह भरा, गर्व भरा एवं मदमाता क्यों कहा है?

उत्तर :- इस कविता में 'दीप अकेला 'के प्रतीकात्मक अर्थ है - 'एक अकेला व्यक्ति 'बताया गया है। दीप मनुष्य का प्रतीक है, दीप तो स्नेह से भरा ही होता है, उसकी ज्वाला गर्व या मत से तनी रहतीं हैं। उसमें प्रकाश उत्पन्न करने का अहं भाव भरा रहता है किंतु निष्ठा का प्रतीक है। उसी प्रकार व्यक्ति में भी स्नेह, गर्व और अहं भाव भरे होते हैं वह मनुष्य प्रेम गर्व मद सभी से युक्त होता है। मनुष्य सर्वगुण संपन्न होता है। ओरिया और यह व्यक्ति समाज में जुड़ जाता है तो समाज देश को बल और मजबूती मिलता है। अतः स्नेह भरा गर्व भरा एवं मादमाता मानव है। यह सब विशेषण मानव के ही है।

2. यह दीप अकेला है 'पर इसको भी पंक्ति को दे दो' के आधार पर व्यष्टि का समिष्ट में विलय क्यों और कैसे संभव है?

उत्तर: एक अकेला दीपक स्नेह और गर्व से अहं भाव से भरा है। उसकी अपनी व्यक्तिगत सत्ता है और जब दीपक को पंक्ति दे दो अर्थात् मनुष्य की व्यक्तिगत सत्ता को सामाजिक सत्ता के से जोड़ दिया जाए तो उस मनुष्य का समस्त व्यक्तिगत विशेषताओं को समाज में प्रसारित होगा बल मिलेगा और मजबूत होगा तात्पर्य समाज के साथ जोड़ना है। इसे ही व्यष्टि का समिष्ट में विलय कहा गया है। ऐसा होना आवश्यक है। समाज में रहकर ही मनुष्य अपना तथा समाज का कल्याण करता है। जिस तरह दीप पंक्ति में स्थान पाकर अधिक बल से संसार को प्रकाशित करता है, वैसे ही मनुष्य समाज में एकीकार होकर समाज का विकास करता है। दोनों का विलय होना आवश्यक है। उनकी शक्ति का विस्तार है। अकेला व्यक्ति और दीप कुछ नहीं कर सकते हैं। जब वह पंक्ति तथा समाज में विलय होते हैं, तो उनकी शक्ति का विस्तार होता है। अन्य के साथ मिलकर वह अधिक शक्तिवान हो जाते हैं।

3. 'गीत' और 'मोती' की सार्थकता किससे जुड़ी है?

उत्तरः गीत की सार्थकता गायन से जुड़ी है। कागज में लिखा गीत अपने पहचान नहीं बना सकता। जब लोगों द्वारा गाया जाएगा तभी उसे पहचाना जाएगा और तभी वह सार्थक कहलाएगा। इसी प्रकार ऐसे ही मोती को यदि कोई गोताखोर समुद्र की गहराई से निकालकर बाहर नहीं लाएगा, उसे कोई नहीं पहचान पाएगा। समुद्र की गोद में कितने ही मोती विद्यमान होंगे। वह बाहर नहीं लाए गए हैं। अतः उन्हें कोई नहीं पहचानता है। वे समुद्र तल में निरर्थक ही हैं। जब वह समुंद्र से निकालकर सामने लाया जाएगा तभी उसकी सार्थकता का परिमाण जाना जाएगा

4. 'यह अद्वितीय-यह मेरा-यह मैं स्वयं विसर्जित' पंक्ति के आधार पर व्यष्टि के समष्टि में विसर्जन की उपयोगिता बताइए।

उत्तर - कवि कहते हैं कि जब व्यष्टि में समष्टि का विसर्जन होता है तो मनुष्य के अंदर से अहंकार और "मैं" की भावना समाप्त हो जाती है। कहने का तात्पर्य यह है कि स्वयं के अभिमान और 'मैं' की भावना को मनुष्य समाज में सम्मिलित होने के बाद अपने हाथों से विसर्जित कर देता है। इस विसर्जन को ही व्यक्ति के समस्त में विसर्जन कहा गया है। इसकी उपयोगिता यह है कि अभिमान के विसर्जन के बाद मनुष्य समाज के लिए कल्याणकारी कार्य करता है तथा संसार को अपने प्रकाश से प्रकाशित करता है। समाज में विलय होने से वह स्वयं के व्यक्तित्व को विशालता प्रदान करता है। वह अकेले बहुत कुछ कर सकने की हिम्मत रखता है। जब वह स्वयं को समाज में मिला लेता है, तो वह समाज को मज़बूत कर देता है। इससे हमारे राष्ट्र को मज़बूती मिलती है।

5. 'यह मधु है ताकत निर्भय' पंक्तियों के आधार पर बताइए कि 'मधु', 'गोरस' और 'अंकुर' की क्या विशेषता है?

उत्तरः मधु की विशेषता स्वयं लंबे समय द्वारा अपने टोकरे में युगों तक एकत्रित करने के पश्चात् प्राप्त हुआ द्रव्य ही मधु है। उसके बाद जाकर हमें यह मिलता है।

'गोरस' की विशेषता-गोरस जीवन के रूप में विद्यमान कामधेनु गाय से प्राप्त होता है। यह अमृत के समान दूध है। इसका पान देवों के पुत्र करते हैं।

अंकुर' की विशेषता अंकुर पृथ्वी की कठोर धरती को भी अपने कोमल पत्तों से भेदकर बाहर निकल जाता है। सूर्य को देखने से यह डरता नहीं है। निडरता से उसका सामना करता है।

6. भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए-

(क) 'यह प्रकृत, स्वयंभू...........शक्ति को दे दो।'

(ख) 'यह सदा द्रवित, चिर-जागरूक चिर- अखंड अपनापन।'

(ग) 'जिज्ञासु, प्रबुद्ध, सदा श्रद्धामय, इसको भक्ति को दे दो।'

उत्तर:

(क) इन पंक्ति में यह भाव प्रकट किया गया है की यह दीपक प्रकृति के अनुरूप है। स्वयं पैदा हुआ है और ब्रह्मा संज्ञाएँ अंकुर (बीज) को दी गई हैं। अंकुर धरती से बाहर आने के लिए स्वयं ही प्रयास करता है। वह धरती का सीना चीरकर स्वयं बाहर आ जाता है। सूर्य की ओर देखने से वह डरता नहीं है। निडरता से उसे देखता है। ये सत्य से आंखे मिलाने का साहस रखता है ये सत्ता के समान है ये किसी से जुड़ा हुआ नहीं है इसे भी शक्ति को दे देना चाहिए।

(ख) इन पंक्तियों में दीप के प्रतिक के माध्यम से व्यक्ति को निंदा, अपमान और उपेक्षा भरी परिस्थितियों में भी सदैव द्रवित दीर्घकाल से जागरूक, आंखों में प्रेम की भावना रखने वाला, प्रेम में उठी हुई भुजाओं वाला और दीर्घकाल तक संपूर्ण आत्मीयता से भरा हुआ बताया गया है। अर्थात् दीप सदैव आग को धारण किए रहता है। इस कारण से वह उसके दुख को बहुत अच्छी तरह से जानता है। इस सबके बाद भी वह दयाभाव से युक्त होकर स्वयं जलता है और दूसरों को प्रकाश देता है। वह सदा जागरूक रहता है, सावधान है और सबके साथ प्रेम का भाव रखता है।

(ग) इन पंक्ति में दीप को पति के रूप में चित्रित करते हुए मानवीय गुणों की महिमा का चित्रण किया है। व्यक्ति हमेशा जिज्ञासु प्रवृत्ति का रहा है। इसी कारण वह ज्ञानवान और श्रद्धा से भरा हुआ है। मनुष्य तथा दीप दोनों में ये गुण विद्यमान होते हैं। मनुष्य की ज्ञान प्राप्ति की लालसा, जागृति और श्रद्धा की भावना से आध्यात्मिक चेतना से परिपूर्ण कर देती है। उसका भक्ति में विलय ही सार्थक बना लेता है।

7. 'यह दीप अकेला' एक प्रयोगवादी कविता है। इस कविता के आधार पर 'लघु मानव' के अस्तित्व और महत्व पर प्रकाश डालिए।

उत्तर-यह दीप अकेला में कवि ने 'लघु मानव' की महत्व पर प्रकाश डाला है -

* मनुष्य परम सत्ता अर्थात् ब्रह्मा का ही लघु रूप है।

* यद्यपि वह समाज की भी एक इकाई है।

* वह परम ब्रह्म का अंश है, परंतु वह स्वयं में भी परिपूर्ण है।

* उसका रूप लघु मानव का है, फिर भी उसकी एक वृहत सत्ता है।

* समस्त गुण व सारी शक्तियां अंतर्निहित है।

* सारी शक्तियां सारे गुण उसमे हैं उस व्यक्ति की सत्ता भी कम महत्पूर्ण नहीं है फिर भी व्यक्ति का समष्टि में विलय ही कल्याणकारी होगा।

* समाज में उसके मिलने से समाज मजबूत होगा राष्ट्र मजबूत होगा।

* समाज और सत्ता के साथ जुड़ने में ही सब का हित है।

* "लघु मानव का एक स्वतंत्र अस्तित्व है जो उसके महत्व को प्रतिपादित करता है।

8. कविता के लाक्षणिक प्रयोग का चयन कीजिए और उनमें निहित सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।

उत्तरः कविता में कवि ने बहुत-से लाक्षणिक प्रयोगों का चयन किया है। सबसे पहले उसने 'यह दीप अकेला' में व्यक्ति के प्रतीक के रूप में दीप का प्रयोग किया है। दूसरे 'जीवन- कामधेनु' में उसने जीवन को कामधेनु गाय के समान दिखाया है। तीसरे 'पंक्ति' शब्द का प्रयोग उसने समाज के लिए किया है। अतः जब वह 'पंक्ति में जगह देना' की बात करता है, तो इसका तात्पर्य समाज का अंग बनाना है। इसी तरह 'नहीं तो अपनी लघुता में भी काँपा' में मनुष्य के छोटे होने की बात कही गई है। मनुष्य का विशेष गुण है कि वह फिर भी स्वयं के अस्तित्व को बनाए रखता है। काँपता नहीं है। वहीं 'एक बूंद' में भी मनुष्य के छोटे स्वरूप को चित्रित किया गया है। 'सूरज की आग' को ज्ञान का प्रकाश बताया गया है।

प्रश्न अभ्यास

प्रश्न 1. 'सागर' और 'बंद' से कवि का क्या आशय है?

उत्तर- 'सागर' का संपर्क समाज से है एवं 'बूंद' का संपर्क मनुष्य से है। दूसरे अर्थों में सागर का आशय- विराट, ब्रह्म, परमात्मा है एवं बूंद का आशय जीवात्मा, आत्मा, ब्रह्म का लघु अंश (व्यक्ति) से है। इसमें कवि ने सागर से अलग प्रतीत होती बूंद के वर्णन के माध्यम से विराट के सम्मुख मानव जीवन के महत्व को स्थापित किया गया है।

प्रश्न 2. 'रंग गई क्षणभर, ढलते सूरज की आग से' पंक्ति के आधार पर बूंद के क्षणभर रंगने की सार्थकता बताइए।

उत्तर 'रंग गई क्षणभर, ढलते सूरज की आग से' पंक्ति के आधार पर बूंद के क्षणभर रंगने की सार्थकता -

* जब समुंद्र की बूंदे सागर के झांक से छलांग मारती हैं।

* इस सागर रुपी विराट के सम्मुख बूंद का क्षण भर के लिए रंग जाना उसमें एक विशिष्टता उत्पन्न कर देता है।

* उस वक्त समुंद्र के बूंदों के ऊपर सूर्य की रोशनी पड़ती है। जिसके कारण समुद्र की बूंदे सोने की तरह चमकने लगती है। फिर विलुप्त होकर अपनी महत्व को बताती है।

* यह विशिष्टता बूंद को नष्ट होने के बाद से मुक्ति का अहसास दिलाती है।

* 'सागर रुपी विराट से अलग मनुष्य के जीवन का एक क्षण भी उसकी सार्थकता को सिद्ध कर देता है।

प्रश्न 3. 'सूने विराट् के सम्मुख....... दाग सेो' पंक्तियों का भावार्थ स्पष्ट कीजिए।

उत्तर- प्रस्तुत पंक्तियों के माध्यम से कवि अज्ञेय यह बताना चाहते हैं कि संपूर्ण संसार में कुछ भी आजीवन के लिए नहीं है।

हर चीज नष्ट हो जाती हैं। मनुष्य का जीवन भी समुद्र के उस बूंद की तरह समाप्त हो जाएगा और इसलिए कवि संदेश देते हैं कि मनुष्य को अपने जीवन का हर एक क्षण का उपयोग करना चाहिए और अच्छे कार्यों में लगाना चाहिए।

मनुष्य के जीवन में प्रत्येक क्षण महत्वपूर्ण है शान का महत्व है मनुष्य को नष्ट होने के बाद से मुक्ति का एहसास दिलाता है

ताकि मनुष्य को जीवन में कभी भी इस बात का अफसोस न हो कि उसने अपने जीवन के कीमती समय को नष्ट कर दिया है।

प्रश्न 4. 'क्षण के महत्व' को उजागर करते हुए कविता का मूल भाव लिखिए।

उत्तर- क्षण अर्थात् समय। कवि ने समय के महत्व को बताते हुए कहा है कि मनुष्य को अपने जीवन के प्रत्येक क्षण को उपयोगी बनाना चाहिए।

इसी क्षण के कारण वह समुद्र रूपी संसार में बूँद के समान होते हुए भी सूर्य की चमक से स्वयं को चमका जाता है। उसकी क्षण भर की चमक लोगों को प्रेरित करती है। वह नश्वरता के कलंक से आज़ाद हो जाता है।

यदि कोई दुखी है तो उसे खुश रखना चाहिए, यदि कोई तकलीफ में है तो उसकी परेशानियों को दूर करना चाहिए, अर्थात् मनुष्य को अपने जीवन के हर क्षण का उपयोग कर जीवन में खुश रहना चाहिए। क्षण उसके जीवन में विशेष महत्व रखता है।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

1. 'अज्ञेय' का पूरा नाम क्या है?

(क) आनंद हीरानंद

(ख) सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन

(ग) वात्सायन हीरानंद

(घ) आनंद हीरानंद वात्सायन

2. 'अज्ञेय 'का जन्म कब हुआ था?

(क) 1909ई.

(ख) 1911 ई.

(ग) 1907ई.

(घ) 1909ई.

3. 'अज्ञेय' किस वाद के कवि थे?

(क) छायावाद

(ख) प्रगतिवाद

(ग) प्रयोगवाद

(घ) नकेल वाद

4. अज्ञेय का प्रथम काव्य संग्रह क्या है?

(क) बावरा अहेरी

(ख) भग्नदूत

(ग) हरी घास पर क्षणभर

(घ) आंगन के पार द्वार

5.'अज्ञेय' को किस रचना पर 'ज्ञानपीठ पुरस्कार' मिला था?

(क) हरी घास पर क्षणभर

(ख) आंगन के पार द्वार

(ग) कितनी नावों में कितनी बार

(घ) इंद्रधनुष रौंदे हुए

6. 'यह दीप अकेला' कविता में 'दीप' किसका प्रतीक है?

(क) समाज का

(ख) देश का

(ग) व्यक्ति का (व्यष्टि)

(घ) इनमें से सभी

7. 'यह दीप अकेला' कविता में' पंक्ति' किसका प्रतीक है?

(क) व्यक्ति का

(ख) समाज का (समष्टि)

(ग) राज्य का

(घ) देश का

8. कवि ने व्यक्ति को गर्व भरा मदमाता क्यों कहा है?

(क) व्यक्ति में ईमानदार के कारण

(ख) व्यक्ति में अहंकार का त्याग के कारण

(ग) व्यक्ति में स्वार्थ के कारण

(घ) व्यक्ति के अहंभाव के कारण

9. यह कविता में कवि व्यक्ति को किससे जोड़ना चाहता है?

(क) देश

(ख) राज्य

(ग) समाज

(घ) व्यक्ति

10. 'यह गोरस - जीवन - कामधेनु का अमृत - पूत पय' पंक्ति में कौन-सा अलंकार है?

(क) यमक अलंकार

(ख) अनुप्रास अलंकार

(ग) रूपक अलंकार

(घ) उपमा अलंकार

11. 'यह दीप अकेला' कविता किस 'वाद' से संबंधित है?

(क) प्रगतिवाद

(ख) प्रयोगवाद

(ग) छायावाद

(घ) हालावाद

12. 'मैंने देखा, एक बूंद' कविता के रचनाकार कौन है?

(क) सर्वेश्वर दयाल सक्सेना

(ख) विष्णु खरे

(ग) रघुवीर सहाय

(घ) सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय

13. 'यह दीप अकेला' कविता कौन सा काव्य - संग्रह से लिया गया है?

(क) हरी घास पर क्षणभर

(ख) बावरा अहेरी

(ग) भग्नदूत

(घ) आंगन के पार द्वार

14. यह दीप अकेला कविता के रचनाकार कौन हैं?

(क) निराला

(ख) पंत

(ग) प्रसाद

(घ) अज्ञेय

15. प्रयोगवाद का समय सीमा कब से कब तक है?

(क) 1920 से 1936

(ख) 1936 से 1943

(ग) 1943 से 1951

(घ) 1951 से 1959

16. प्रयोगवाद के संस्थापक कौन हैं?

(क) सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय

(ख) रघुवीर सहाय

(ग) जयशंकर प्रसाद

(घ) रामधारी सिंह दिनकर

17. तार सप्तक के संपादक कौन हैं?

(क) अज्ञेय

(ख) रघुवीर सहाय

(ग) विष्णु खरे

(घ) जयशंकर प्रसाद

18. दूसरा सप्तक तीसरा सप्तक का संपादक कौन है?

(क) अज्ञेय

(ख) रघुवीर सहाय

(ग) विष्णु खरे

(घ) जयशंकर प्रसाद

19. प्रत्येक सप्तक में कितने कवियों की कविताएं संग्रहित है?

(क) सत्रह कवियों

(ख) सात कवियों

(ग) दो कवियों

(घ) तेरह कवियों

20. सागर और बूंद किसका प्रतीक है?

(क) समाज और मनुष्य

(ख) देश और राज्य

(ग) गांव और शहर

(घ) इनमें से कोई नहीं

JCERT/JAC REFERENCE BOOK

Hindi Elective (विषय सूची)

भाग-1

क्रं.सं.

विवरण

1.

देवसेना का गीत

2.

सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"

3.

सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय

4.

बनारस

5.

विष्णु खरे

6.

वसंत आया

7.

भरत राम का प्रेम पद

8.

बारहमासा

9.

विद्यापति (पद)

10.

रामचंद्रचंद्रिका

11.

घनानंद

12.

प्रेमघन की छाया-स्मृति

13.

सुमिरनी के मनके

14.

कच्चा चिट्ठा

15.

संवदिया

16.

गांधी नेहरू और यासर अराफात

17.

शेरपहचानचार हाथसाझा

18.

जहां कोई वापसी नहीं

19.

यथास्मै रोचते विश्वम

20.

दूसरा देवदास

21.

हजारी प्रसाद द्विवेदी

भाग-2

कं.सं.

विवरण

1.

सूरदास की झोंपड़ी

2.

आरोहण

3.

बिस्कोहर की माटी

4.

अपना मालवा खाऊ-उजाडू सभ्यता


JCERT/JAC Hindi Elective प्रश्न बैंक - सह - उत्तर पुस्तक (Question Bank-Cum-Answer Book)

विषय सूची

अंतरा भाग 2

पाठ

नाम

खंड

कविता खंड

पाठ-1

जयशंकर प्रसाद

(क) देवसेना का गीत

(ख) कार्नेलिया का गीत

पाठ-2

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला

(क) गीत गाने दो मुझे

(ख) सरोज - स्मृति

पाठ-3

सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय

(क) यह दीप अकेला

(ख) मैंने देखा एक बूँद

पाठ-4

केदारनाथ सिंह

(क) बनारस

(ख) दिशा

पाठ-5

विष्णु खरे

(क) एक कम

(ख) सत्य

पाठ-6

रघुबीर सहाय

(क) बसंत आया

(ख) तोड़ो

पाठ-7

तुलसीदास

(क) भरत - राम का प्रेम

(ख) पद

पाठ-8

मलिक मुहम्मद जायसी

बारहमासा

पाठ-9

विद्यापति

पद

पाठ-10

केशवदास

कवित्त / सवैया

पाठ-11

घनानंद

कवित्त / सवैया

गद्य खंड

पाठ-1

रामचन्द्र शुक्ल

प्रेमधन की छायास्मृति

पाठ-2

पंडित चंद्रधर शर्मा गुलेरी

सुमिरनी के मनके

पाठ-3

ब्रजमोहन व्यास

कच्चा चिट्ठा

पाठ-4

फणीश्वरनाथ 'रेणु'

संवदिया

पाठ-5

भीष्म साहनी

गांधी, नेहरू और यास्सेर अराफत

पाठ-6

असगर वजाहत

शेर, पहचान, चार हाथ, साझा

पाठ-7

निर्मल वर्मा

जहाँ कोई वापसी नहीं

पाठ-8

रामविलास शर्मा

यथास्मै रोचते विश्वम्

पाठ-9

ममता कालिया

दूसरा देवदास

पाठ-10

हजारी प्रसाद द्विवेदी

कुटज

अंतराल भाग - 2

पाठ-1

प्रेमचंद

सूरदास की झोपडी

पाठ-2

संजीव

आरोहण

पाठ-3

विश्वनाथ तिरपाठी

बिस्कोहर की माटी

पाठ-

प्रभाष जोशी

अपना मालवा - खाऊ- उजाडू सभ्यता में

अभिव्यक्ति और माध्यम

1

अनुच्छेद लेखन

2

कार्यालयी पत्र

3

जनसंचार माध्यम

4

संपादकीय लेखन

5

रिपोर्ट (प्रतिवेदन) लेखन

6

आलेख लेखन

7

पुस्तक समीक्षा

8

फीचर लेखन

JAC वार्षिक इंटरमीडिएट परीक्षा, 2023 प्रश्न-सह-उत्तर

Class 12 Hindi Elective (अंतरा - भाग 2)

पद्य खण्ड

आधुनिक

1.जयशंकर प्रसाद (क) देवसेना का गीत (ख) कार्नेलिया का गीत

2.सूर्यकांत त्रिपाठी निराला (क) गीत गाने दो मुझे (ख) सरोज स्मृति

3.सच्चिदानंद हीरानंद वात्सयायन अज्ञेय (क) यह दीप अकेला (ख) मैंने देखा, एक बूँद

4.केदारनाथ सिंह (क) बनारस (ख) दिशा

5.विष्णु खरे (क) एक कम (ख) सत्य

6.रघुबीर सहाय (क) वसंत आया (ख) तोड़ो

प्राचीन

7.तुलसीदास (क) भरत-राम का प्रेम (ख) पद

8.मलिक मुहम्मद जायसी (बारहमासा)

9.विद्यापति (विद्यापति के पद)

10.केशवदास (रामचंद्रचंद्रिका)

11.घनानंद (घनानंद के कवित्त / सवैया)

गद्य-खण्ड

12.रामचंद्र शुक्ल (प्रेमघन की छाया-स्मृति)

13.पंडित चंद्रधर शर्मा गुलेरी (सुमिरिनी के मनके)

14.ब्रजमोहन व्यास (कच्चा चिट्ठा)

15.फणीश्वरनाथ रेणु (संवदिया)

16.भीष्म साहनी (गांधी, नेहरू और यास्सेर अराफात)

17.असगर वजाहत (शेर, पहचान, चार हाथ, साझा)

18.निर्मल वर्मा (जहाँ कोई वापसी नहीं)

19.रामविलास शर्मा (यथास्मै रोचते विश्वम्)

20.ममता कालिया (दूसरा देवदास)

21.हज़ारी प्रसाद द्विवेदी (कुटज)

12 Hindi Antral (अंतरा)

1.प्रेमचंद = सूरदास की झोंपड़ी

2.संजीव = आरोहण

3.विश्वनाथ त्रिपाठी = बिस्कोहर की माटी

4.प्रभाष जोशी = अपना मालवा खाऊ-उजाडू सभ्यता में

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