Class 12 History Dumka Model Paper Set-2 Solution 2024-25

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Class 12 History Dumka Model Paper Set-2 Solution 2024-25

JAC ANNUAL INTER EXAM

Dumka History Model Set-02

सामान्य निर्देश :

1. इन प्रश्न पुस्तिका में दो भाग A तथा भाग B हैं ।

2. भाग A में 30 अंक के बहुविकल्पीय प्रश्न तथा भाग B में 50 अंक के विषय निष्ठ प्रश्न है।

3. परीक्षार्थियों को अलग से उपलब्ध कराए गए उत्तर पुस्तिका में उत्तर देना है।

4. भाग - A में 30 बहुविकल्पीय प्रश्न है जिसके चार विकल्प A,B,C तथा D है ।

परीक्षार्थियों को उत्तर पुस्तिका में सही उत्तर लिखना है। सभी प्रश्न अनिवार्य है। प्रत्येक प्रश्न एक अंक का है। गलत उत्तर के लिए कोई अंक काटा नहीं जाएगा ।

5. भाग B इस भाग में तीन खंड खंड A,B तथा C है। इस भाग में अति लघु उत्तरीय लघु उत्तरीय तथा दीर्घ उत्तरीय प्रकार के विषय निष्ठ प्रश्न है। कुल प्रश्नों की संख्या 22 है।

खंड - A - प्रश्न संख्या 31 से 38 अति लघु उत्तरीय प्रश्न है किंतु 6 प्रश्नों के उत्तर दें प्रत्येक प्रश्न 2 अंक का है।

खंड - B - प्रश्न संख्या 39 से 46 लघु उत्तरीय प्रश्न है। प्रत्येक 6 प्रश्न के उत्तर दे।

प्रत्येक प्रश्न 3 अंक का है। प्रत्येक प्रश्न का उत्तर अधिकतम 150 शब्दों में दें ।

खंड - C - प्रश्न संख्या 47 से 52 दीर्घ उत्तरीय है। किन्ही 4 प्रश्नों के उत्तर दें प्रत्येक

प्रश्न 5 अंक का है। प्रत्येक प्रश्न का उत्तर अधिकतम 250 शब्दों में दें।

6. परीक्षार्थी यथासंभव अपने शब्दों में उत्तर दें-

भाग - A बहुविकल्पीय प्रश्न 

निम्नलिखित सभी प्रश्नों के उत्तर दीजिए 1x 30 = 30

1. हड़प्पा किस नदी के किनारे स्थित है ?

1) सतलज

2) रावी

3) सिंधु

4) व्यास

2. महाभारत में कितने प्रकार के विवाह का उल्लेख किया गया है ?

1) 4

2) 6

3) 8

4) 9

3. जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर का क्या नाम है ?

1) महावीर

2) ऋषभदेव

3) पार्श्वनाथ

4) अजीत नाथ

4. निम्नलिखित में से सबसे पहले भारत में स्वर्ण सिक्के जारी किए ?

1) मौर्यों ने

2) हिंद यूनानियों ने

3) कुषाणों ने

4) गुप्तों ने

5. पुराने की संख्या कितनी है ?

1) 14

2) 15

3) 16

4) 18

6. बुद्ध चरित्र की रचना किसने की ?

1) कालिदास

2) अश्वघोष

3) बाणभट्ट

4) चाणक्य

7. मुगल प्रशासन में प्रांत को किस नाम से जाना जाता था ?

1) सुबा

2) सरकार

3) विश

4) आहार

8. निम्नलिखित में से कौन सा आंदोलन 'दांडी मार्च' से शुरू हुआ था ?

1) स्वदेशी आंदोलन

2) सविनय अवज्ञा आंदोलन

3) असहयोग आंदोलन

4) भारत छोड़ो आंदोलन

9. आईने अकबरी कितने भागों में विभक्त है ?

1) दो

2) तीन

3) चार

4) पांच

10. बंगाल एशियाटिक सोसाइटी की स्थापना किसने की ?

1) वारेन हेस्टिंग

2) विलियम जॉन्स

3) लॉर्ड क्लाइव

4) इसमें से कोई नहीं

11. व्हेन सांग किसके दरबार में भारत आया था ?

1) फाह्यान

2) हर्षवर्धन

3) कनिष्क

4) इसमें से कोई नहीं

12. अमुक्तमाल्यद किसने लिखी ?

1) हरिहर प्रथम

2) बुक्का प्रथम

3) देवराय प्रथम

4) कृष्णदेव राय

13. निम्न में से महिला रहस्यवादी संत थी

1) अंडाल

2) कराईकाल

3) राबिया

4) मीराबाई

14. बीजक में किसका उपदेश संग्रहित है ?

1) गुरु नानक

2) कबीर

3) चैतन्य

4) रामानंद

15. हड़प्पा सभ्यता भारत के किस भाग में विकसित हुई ?

1) दक्षिण

2) पूर्वोत्तर

3) पश्चिम उत्तर

4) मध्य भारत

16. 'किताब उल रेहला' में किसका यात्रा वृतांत मिलता है ?

1) अलबरूनी

2) अब्दुल रज्जाक

3) इब्नबतूता

4) बर्नियर

17. 'द ग्रेट रिवॉल्ट' नामक पुस्तक किसने लिखी है ?

1) अशोक मेहता

2) पत्तभीसीतारमैया

3) जेम्स आउटम

4) रोबोट

18. व्यपगत के सि‌द्धांत का संबंध किस है ?

1) लॉर्ड कर्जन से

2) डलहौजी से

3) लिटन से

4) मिंटो से

19. बिहार में 1857 के विद्रोह का प्रमुख नेता कौन था ?

1) बाजीराव

2) लक्ष्मीबाई

3) दिलीप सिंह

4) कुंवर सिंह

20. 'फूट डालकर विजय प्राप्त करना' का कार्य सर्वप्रथम किस राजा ने किया ?

1) पुष्पमित्र सुंग

2) अजातशत्रु

3) अशोक

4) समुद्रगुप्त

21. भारत में रेलवे की शुरुआत हुई थी-

1) 1753 ई

2) 1973 ई

3) 1853 ई

4) इनमें से कोई नहीं

22.1920 में कौन सा आंदोलन हुआ ?

1) खिलाफत

2) असहयोग

3) सविनय अवज्ञा

4) भारत छोड़ो

23. बंगाल का विभाजन किस वर्ष हुआ ?

1) 1905

2) 1906

3) 1911

4) 1914

24. संविधान सभा की प्रारूप समिति के अध्यक्ष कौन थे ?

1) राजेंद्र प्रसाद

2) जवाहरलाल नेहरू

3) भीमराव अंबेडकर

4) सरदार पटेल

25. प्रयाग प्रशस्ति का संबंध किस है ?

1) अशोक से

2) हर्षवर्धन से

3) समुद्रगुप्त से

4) चंद्रगुप्त से

26. उलगुलान विद्रोह का नेता कौन था ?

1) सिद्धू

2) गोमधर कुंवर

3) चित्तर सिंह

4) बिरसा मुंडा

27. हरिहर और बुक्का ने कब विजयनगर साम्राज्य की स्थापना की ?

1) 1326

2) 1336

3) 1346

4) 1526

28. स्वतंत्र भारत का अंतिम गवर्नर जनरल कौन था ?

1) लौट कर्जन

2) लॉर्ड माउंटबेटन

3) सी० राजगोपालाचारी

4) इसमें से कोई नहीं

29. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रथम महिला अध्यक्ष कौन थी ?

1) एनी बेसेंट

2) अरुणा आसफ अली

3) सरोजिनी नायडू

4) विजयलक्ष्मी पंडित

30. हाथी गुफा अभिलेख का संबंध किस है ?

1) खारवेल

2) रुद्र दामन

3) कनिष्क

4) अशोक

भाग - B विषयनिष्ठ प्रश्न 

खंड - A  अति लघु उत्तरीय प्रश्न 2x6 = 12

किन्हीं 6 प्रश्नों के उत्तर दें ।

31. भक्ति आंदोलन के चार प्रमुख संतों के नाम लिखें ।

उत्तर - रामानंद, कबीरदास, चैतन्य महाप्रभु, तुलसीदास।

32. इतिहास लेखन के कौन-कौन से स्रोत हैं ?

उत्तर - ये साधन उस काल के औजार, जीवाश्म, पात्र, भोजपत्र, आभूषण, इमारतें, सिक्के, अभिलेख, चित्र, यात्रियों द्वारा लिखे यात्रा विवरण तथा तत्कालीन साहित्य आदि हैं।

33. भारत में स्थित किन्हीं चार हड़प्पा स्थल के नाम लिखें ?

उत्तर - हड़प्पा, मोहनजोदड़ो, कालीबंगा, लोथल।

34. महात्मा गांधी का जन्म कब और कहां हुआ ?

उत्तर - 2 अक्टूबर 1869 को वर्तमान गुजरात राज्य के पोरबंदर जिले में।

35. निर्गुण भक्ति क्या है ?

उत्तर - निर्गुण भक्ति भारतीय भक्ति आंदोलन का एक महत्वपूर्ण पहलू है। यह भगवान के निराकार, निर्गुण स्वरूप की उपासना है। यानी, भगवान को उनके गुणों, रूप या स्वरूप से परे, एक सर्वव्यापी, सर्वज्ञानी और सर्वशक्तिमान शक्ति के रूप में पूजा जाता है।

36. कालिदास की किन्हीं दो पुस्तकों के नाम लिखें ?

उत्तर - 1. अभिज्ञान शाकुंतलम 2. मेघदूत

37. त्रिपिटक क्या है? उनके नाम बताइए ।

उत्तर- त्रिपिटक का शाब्दिक अर्थ है-तीन टोकरियाँ जिनमें कि पुस्तक रखी जाती हैं। बुद्ध की मृत्यु के पश्चात् उनके अनुयायियों ने उनकी शिक्षाओं का संकलन तीन पिटकों सुत्तपिटक, विनयपिटक एवं अभिधम्मपिटक में किया। इन्हें संयुक्त रूप से त्रिपिटक कहा जाता है।

सुत्तपिटक में बुद्ध धर्म के सिद्धान्त मिलते हैं। विनय-पिटक में बुद्ध धर्म के आचार-विचार एवं नियम मिलते हैं। अभिधम्मपिटक में बुद्ध का दर्शन मिलता है।

जो इन तीनों पिटकों का ज्ञाता होता है उसे त्रिपिटकाचार्य कहा जाता है। श्रीलंका के विद्यालंकार विहार ने राहुल सांकृत्यायन को त्रिपिटकाचार्य की उपाधि दी थी।

38. अलवार और नयनार संत में अंतर स्पष्ट करें ?

उत्तर - अलवार और नयनार संत में अंतर निम्नलिखित हैं

नयनार

अलवार

नयनार भगवान शिव और उनके अवतारों के प्रति समर्पित थे।

आलवार भगवान विष्णु और उनके अवतारों के प्रति समर्पित थे।

नयनार छठी-आठवीं शताब्दी ईस्वी के आसपास सक्रिय थे।

यद्यपि आधुनिक विद्वान अलवरों को 5वीं और 10वीं शताब्दी ई. के बीच सक्रिय मानते हैं, लेकिन ऐसा माना जाता है कि वे 4200 ई.पू. से 2700 ई.पू. के बीच रहते थे।

राजा राज चोल प्रथम के उच्च पुजारी नम्बियंदर नम्बि ने भजनों को तिरुमुरई नामक खण्डों की एक श्रृंखला में संकलित किया।

आलवारों के भजनों को एक समेकित खंड में संकलित किया गया जिसे दिव्य प्रबंध के नाम से जाना जाता है।

नयनार विभिन्न पृष्ठभूमि से थे, जिनमें ब्राह्मण, हरिजन और कुलीन शामिल थे। बारह वैष्णव अलवरों के साथ, उन्हें दक्षिण भारत के महत्वपूर्ण हिंदू संतों के रूप में माना जाता है।

आलवारों से निकले भक्ति साहित्य ने मोक्ष के मार्ग के रूप में भक्ति की संस्कृति की स्थापना और संधारण में योगदान दिया था।

तमिल में 63 नयनार/नयनमार संतों के नाम

1. सुन्दरर

2. तिरु नीलकांत

3. अय्यरपगयारी

4. इलायनकुडी मारानारी

5. मेइपोरुल

6. विरलमिंडा

7. अमरानीदी

8. एरीपथा

9. येनाथीनाथरी

10. कण्णप्पा

11. कुंगिलिया कलया

12. मनकंचरा

13. अरिवत्तया

14. अनाया

15. मूर्तियारी

16. मुरुगा

17. रुद्र पशुपति

18. नंदनार (थिरुनालाई पोवार)

19. तिरु कुरिप्पु थोंडा

20. चंदेश्वर:

21. अप्पार (तिरुनावुक्कारासर)

22. कुलचिराय

23. पेरुमिझलाई कुरुम्बा

24. कराईक्कल अम्मेइयारी

25. अप्पुथी अडिगाल

26. तिरुनीलनक्का

27. नामी नंदी आदिगाली

28. सैमबंडर

29. आईर्कोन कालिकामा

30. तिरुमूलर

31. दांडी आदिगाल

32. मुरखा

33. सोमासी मारा

34. सक्किया

35. सिरापुली

36. सिरुथोंडारी

37. चेरामन पेरुमाला

38. गणनाथ:

39. कूट्रुवा

40. पुगल चोल

41. नरसिंह मुनियारैयारी

42. आदिपथर

43. कलिकंब

44. कालिया

45. सत्ती

46. अय्यादिगल कडावरकोनी

47. कनमपुल्ला

48. करिस

49. निरा सीर नेदुमार

50. मंगयार्ककरसियारी

51. वायिलारो

52. मुनैयदुवारी

53. कज़हरसिंगा

54. इदंगाज़ी

55. सेरुथनाई

56. पुगाज़ थुनाई

57. कोटपुलिस

58. पुसालरी

59. नेसा

60. सेंगेनार (कोचेंगट चोल)

61. तिरु नीलकांत यजपनारी

62. सदैया

63. इसैग्ननियारी

तमिल में 12 अलवार संतों के नाम

1. पोइगई अलवार

2. भूतथ अलवार

3. पे अलवार

4. थिरुमालिसाई अलवार

5. नम्मालवार

6. मधुरकवि अलवर

7. कुलशेखर अलवर

8. पेरियालवार

9. अंदल

10. थोंडारादिप्पोडी अलवर

11. थिरुप्पन अलवार

12. थिरुमंगई अलवार


खण्ड - B लघु उत्तरीय प्रश्न 3-6 = 18

किन्हीं 6 प्रश्नों का उत्तर दें। 

प्रत्येक प्रश्न का उत्तर अधिकतम 150 शब्दों में दें ।

39. स्थाई बंदोबस्त के गुण एवं दोष को लिखें ।

उत्तर - इस व्यवस्था में जमींदारों को भूमि का स्वामी स्वीकार किया गया। पिछले दस सालों की वसूली के औसत के आधार पर मालगुजारी निश्चित की गयी। लगान का 10/11 भाग सरकार ने लेना स्वीकार किया तथा शेष 1/11 भाग जमींदारों को देना स्वीकार किया गया।

स्थायी व्यवस्था के गुण - स्थायी व्यवस्था से कुछ लाभ हुए जो निम्नलिखित हैं:

(1) सरकार को निश्चित आय प्राप्त होना- इस व्यवस्था से सरकार की आय निश्चित हो गयी।

(2) सरकार की आय में वृद्धि - इस व्यवस्था से सरकार की आय में वृद्धि हुई क्योकि लगान की दर 1765 ई. की तुलना में दूनी हो गयी थी।

(3) प्रशासनिक व्यय में कमी- इस व्यवस्था के अन्तर्गत लगान संग्रह का उत्तरदायित्व जमीदार का था। इससे अब सरकार को लगान के संग्रह के लिये अलग से कर्मचारी रखने की जरूरत नहीं पड़ी।

(4) कृषि उत्पादन में वृद्धि - दीर्घकालीन दृष्टि से देखा जाये तो यह व्यवस्था जमीदारों तथा कृषि के लिये लाभदायक सिद्ध हुई। भूस्वामी बनने के बाद जमींदारों ने कृषि विकास पर ध्यान दिया जिससे कृषि उत्पादन में वृद्धि हुई और ग्रामीण क्षेत्रों में समृद्धि आयी। बंजर क्षेत्रों को कृषि के अन्तर्गत लाया गया।

(5) स्वामिभक्त वर्ग का निर्माण- इस व्यवस्था के अन्तर्गत एक ऐसे जमींदार वर्ग का निर्माण हुआ जो अंग्रेजों के प्रति निष्ठावान था।

(6) स्थायित्व का लाभ- इस व्यवस्था से प्रशासन में स्थायित्व स्थापित हुआ और प्रति वर्ष लगान के निर्धारण से सरकार को मुक्ति मिल गयी। इस स्थायित्व से सरकार, जमीदार तथा कृषक सभी को लाभ हुआ।

स्थायी व्यवस्था के दोष- इस व्यवस्था में अनेक दोष भी थे, जो इस प्रकार हैं:

(1) प्रारम्भ में जमींदारों पर दुष्प्रभाव - जमींदार पूरी मालगुजारी वसूल नहीं कर सके क्योंकि मालगुजारी दर बहुत अधिक थी। इससे उनकी जमींदारियाँ नीलाम कर दी गयीं और वे बर्बाद हो गये।

(2) सरकार को हानि-जब कृषि का विस्तार हुआ और उत्पादन में वृद्धि हुई तो इसका लाभ सरकार को नहीं मिला क्योंकि लगान स्थायी रूप से निश्चित कर दिया गया था। यह समस्त लाभ जमींदारों की जेबों में गया।

(3) कृषकों के हितों की उपेक्षा- जमींदार मनमाने तौर पर उनके लगान में वृद्धि कर सकता था और उन्हें बेदखल भी कर सकता था। उन्होंने कृषकों को पट्टे नहीं दिये और निर्धन कृषक न्यायालय जाने में असमर्थ थे।

(4) अनुपस्थित जमींदार वर्ग- कार्नवालिस को आशा थी कि जमींदार कृषि में रुचि लेंगे। यह दुराशा सिद्ध हुई। उन्होंने कृषकों से लगान वसूल करने के लिए कारिन्दे लगा दिये और स्वयं कलकत्ता में कोठियों का निर्माण कर विलासितापूर्ण जीवन बिताने लगे। वे अपने कारिन्दों से निरन्तर धन की माँग करते थे। अतः कारिन्दे धन वसूलने के लिये किसानों पर तरह-तरह से अत्याचार करते थे।

(5) गैर-कृषक वर्गों पर कर-भार में वृद्धि सरकार के कार्यों में वृद्धि होने से सरकार के प्रशासनिक व्यय में वृद्धि हो रही थी। लेकिन सरकार मालगुजारी में वृद्धि नहीं कर सकती थी, अतः बढ़ते हुए करों का भार अन्य वर्गों पर पड़ा। इसके अतिरिक्त ग्रामीण क्षेत्रों में जमींदारों द्वारा सिंचाई के लिये कोई व्यवस्था नहीं किये जाने पर सरकार को ही नहरों का निर्माण कराना पड़ा।

(6) ग्रामीण क्षेत्रों में अशान्ति- इस व्यवस्था से ग्रामीण क्षेत्रों में दो वर्गों कृषक और जमींदार का निर्माण हो गया जिनमें निरन्तर शत्रुता रहती थी जिनके कारण अशान्ति बनी रही

40. 1857 के तात्कालिक कारण का उल्लेख करें ।

उत्तर- यह अफवाह फैल रही थी कि बाजार में ऐसा आटा एवं शक्कर मिल रहे हैं जिसमें सुअर व गाय की हड्डियों एवं खून का चूरा मिलाया गया है। इससे सर्वत्र असंतोष व्याप्त था एवं हिन्दू व मुस्लिमों को लग रहा था कि अंग्रेज प्रत्येक प्रकार से हमारा धर्म भ्रष्ट करने पर तुले हुये हैं।

इसी बीच चर्बी वाले कारतूस 1857 की क्रांति का तात्कालिक कारण बने।

1856 ई. में ब्रिटिश सरकार ने लोहे की पुरानी बन्दूक्ब्राउन बैस (Brown Bess) के स्थान पर नवीन एनफील्ड रायफल (New Enfield Rifle) सैनिकों 1) को प्रयोगार्थ दीं। इसके कारतूस पर चिकना कागज लगा था। इस कारतूस को बन्दूक में प्रयोग करने से पहले इस कागज को दांतों से काटकर खोलना पड़ता था। जनवरी 1857 ई. में बंगाल सेना में यह अफवाह फैल गयी कि इन कारतूसों के मुँह पर गाय व सुअर की चर्बी लगाई गई है। कालान्तर में यह पता चला कि बुलिच शस्त्रागार में गाय एवं सुअर की चर्बी उपयोग की जाती है। इससे हिन्दू-मुस्लिम सैनिकों में आक्रोश उत्पन्न हुआ।

23 जनवरी, 1857 ई. को कलकत्ता के पास दमदम में सेना ने कारतूसों का खुलकर विरोध किया। इस प्रकार चर्बी वाले कारतूस ही 1857 के विद्रोह का आरम्भ होने के तात्कालिक कारण बने।

41. मौर्यकालीन इतिहास के प्रमुख स्रोत बताइए ।

उत्तर - मौर्यकालीन इतिहास के प्रमुख स्रोत निम्नलिखित हैं:

A. साहित्यिक स्रोत

1. मौर्यकालीन इतिहास के साहित्यिक स्रोतों में ये शामिल हैं:

2. कौटिल्य का अर्थशास्त्र

3. मेगस्थनीज की इंडिका

4. विशाखा दत्त का मुद्रा राक्षस

5. बौद्ध साहित्य

6. पुराण

B. पुरातात्विक स्रोत

1. मौर्यकालीन इतिहास के पुरातात्विक स्रोतों में ये शामिल हैं:

2. अशोक के शिलालेख

3. चांदी और तांबे के पंच-मार्क सिक्के

4. मृद्भाण्ड

4. कला अवशेष

5. स्तूप

6. गुहा

42. हड़प्पा सभ्यता की जल निकास प्रणाली की विशेषताएं बताइए ।

उत्तर - मोहनजोदड़ो के नगर नियोजन की एक और प्रमुख विशेषता यहाँ की प्रभावशाली जल निकास प्रणाली थी। यहाँ के अधिकांश भवनों में निजी कुएँ व स्नानागार होते थे। भवन के कमरों, रसोई, स्नानागार, शौचालय आदि सभी का पानी भवन की छोटी-छोटी नालियों से निकल कर गली की नाली में आता था। गली की नाली को मुख्य सड़क के दोनों ओर बनी पक्की नालियों से जोड़ा गया था। मुख्य सड़क के दोनों ओर बनी नालियों को पत्थरों अथवा शिलाओं द्वारा बँक दिया जाता था। नालियों की सफाई एवं कूड़ा-करकट को निकालने के लिए बीच-बीच में नर मोखे (मेन होल) भी बनाये गये थे। नालियों की इस प्रकार की अद्भुत विशेषता किसी अन्य समकालीन नगर में देखने को नहीं मिलती।

43. मार्को पोलो कौन था ? वह भारत क्यों आया ?

उत्तर - मार्को पोलो (जन्म लगभग 1254, वेनिस [इटली] - मृत्यु 8 जनवरी, 1324, वेनिस) एक वेनिस व्यापारी और साहसी व्यक्ति थे, जिन्होंने 1271-95 में यूरोप से एशिया की यात्रा की, और उनमें से 17 साल चीन में रहे।

यह कहना गलत होगा कि मार्को पोलो विशेष रूप से भारत आने के लिए आए थे। उनकी यात्रा का मुख्य उद्देश्य था रेशम मार्ग से होकर चीन पहुंचना। रेशम मार्ग एक प्राचीन व्यापार मार्ग था जो यूरोप को एशिया से जोड़ता था। इस मार्ग से रेशम, मसाले और अन्य कीमती वस्तुओं का व्यापार होता था।

मार्को पोलो और उनके परिवार ने इस मार्ग से यात्रा करते हुए कई देशों का दौरा किया, जिनमें भारत भी शामिल था। भारत में उन्होंने पांड्या साम्राज्य के बारे में जानकारी हासिल की और उस समय के भारत के बारे में कई रोचक विवरण अपने यात्रा वृत्तांत में लिखे।

44. गोत्र से आप क्या समझते हैं ?

उत्तर - गोत्र, उन लोगों के समूह को कहते हैं जिनका वंश एक मूल पुरुष पूर्वज से अटूट क्रम में जुड़ा है। गोत्र, हिंदू धर्म की पहचान के लिए बनाया गया था।

45. आयंगर व्यवस्था के विषय में आप क्या जानते हैं ?

उत्तर - विजयनगर राज्य ने प्रचलित स्थापित प्रशासन में परिवर्तन कर आयंगर व्यवस्था आरंभ की प्रत्येक ग्राम को स्वतंत्र प्रशासनिक इकाई के रूप में गठित कर प्रशासन 12 व्यक्तियों के समूह को दिया गया। यह समूह आयंगार कहलाता था। ये व्यक्ति राजकीय अधिकारी थे। इनका पद अनुवांशिक था। वेतन के रूप में लगान और कर मुक्त भूमि दी जाती थी आयंगर ग्राम प्रशासन की देखभाल करते एवं शांति व्यवस्था बनाए रखते थे।

46. रोलेट एक्ट पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए ।

उत्तर - इस एक्ट के अनुसार सरकार किसी भी व्यक्ति को बिना अभियोग चलाए अनिश्चित समय के लिए बंद कर सकती थी और उसे अपील, दलील या वकील करने का कोई अधिकार नहीं था। इस एक्ट के प्रति भारतीय प्रतिक्रिया और सरकारी दमन-इस एक्ट के विरुद्ध सभी भारतीय एक साथ खड़े हो गए। उन्होंने इसे .काले बिल. का नाम दिया। यह राष्ट्रीय सम्मान पर ऐसा धब्बा था जिसे भारतीयों के लिए सहना बड़ा कठिन था। ऐसे कठिन समय में महात्मा गाँधी ने राष्ट्रीय आंदोलन की बागडोर संभाली और इसे नवीन कार्यक्रम और कार्यविधि प्रदान की। उन्होंने इस एक्ट के विरुद्ध सत्य और अहिंसा के आधार पर सत्याग्रह आंदोलन शुरू किया। दिल्ली में एक भीड़ पर पुलिस ने गोली चला दी जिसमें पाँच व्यक्ति मारे गए और 20 घायल हुए। इसके विरोध में बड़े-बड़े शहरों में हड़तालें हुई और दुकानें बन्द कर दी गई। अनेक लोगों को सरकार ने पकड़ कर जेल में डाल दिया। महात्मा गाँधी ने भी जब वास्तविक स्थिति का अध्ययन करने के लिए दिल्ली और पंजाब की ओर जाने का प्रयत्न किया तो उन्हें भी पकड़ लिया गया।

खंड - C दीर्घ उत्तरीय प्रश्न 5x4 = 20

किन्हीं चार प्रश्नों के उत्तर दें। 

प्रत्येक प्रश्न का उत्तर अधिकतम 250 शब्दों में दें।

47. अमर नायक कौन थे ? विजय नगर प्रशासन में उनका क्या योगदान था ?

उत्तर - सेना-प्रमुख जिनके पास सशस्त्र सैनिक होते थे और जो किलों पर नियंत्रण रखते थे ‘नायक’ कहलाते थे। नायकों की प्रवृत्ति अधिकतर अवसरवादी होती थी तथा समय के अनुसार ये शासकों का प्रभुत्व स्वीकार कर लेते थे और अवसर पाकर विद्रोह भी कर देते थे। ये तेलुगु या कन्नड़ भाषा बोलते थे। इनके विद्रोह को शासकों द्वारा सैनिक कार्यवाही से दबाया जाता था।

विजयनगर साम्राज्य ने दिल्ली सल्तनत की इक्ता प्रणाली के आधार पर ‘अमर-नायक’ नामक राजनीतिक प्रणाली की खोज की। अमर शब्द का उद्भव संस्कृत के शब्द ‘समर’ से हुआ है जिसका अर्थ है-लड़ाई या युद्ध। इसका अर्थ फारसी के शब्द अमीर से भी मिलता है और अमीर यानी ऊँचे पद का कुलीन व्यक्ति। अमर-नायकों को सैनिक कमांडरों की पदवी दी जाती थी। राय शासकों द्वारा उन्हें प्रशासनिक कार्यों की जिम्मेदारी सौंपी जाती थी। अमर-नायकों का कार्य अपने-अपने क्षेत्रों में किसानों, शिल्पकारों, व्यापारियों से राजस्व संग्रह कर राजकीय कोष में जमा करना था, राजस्व का कुछ निर्धारित प्रतिशत इन्हें अपने खर्चे हेतु दिया जाता था। ये राज्य की सैनिक सहायता भी करते थे और वर्ष में एक बार भेंट या उपहार राजा को प्रदान कर अपनी स्वामिभक्ति का प्रदर्शन करते थे।

48. आधुनिक भारत के निर्माण में डॉक्टर भीमराव अंबेडकर की देनो का मूल्यांकन कीजिए ।

उत्तर-डॉ. भीमराव अम्बेडकर का जन्म 1891 ई. में महाराष्ट्र की एक निम्न जाति में हुआ था। उन्होंने उच्च शिक्षा प्राप्त की थी। बचपन से ही वह एक प्रतिभाशली छात्र रहे थे। 1923 ई. में उन्होंने बैरिस्टरी की परीक्षा पास की। निम्न जातियों को संगठित करने तथा उनमें राजनीतिक जागृति लाने का श्रेय डॉ. भीमराव अम्बेडकर को ही जाता है। 1924 ई. में उन्होंने 'बहिष्कृत हितकारिणी - सभा' की स्थापना की जिसका उद्देश्य अस्पृश्य जातियों के उत्थान के लिए कार्य करना था। उन्होंने नागरिक अधिकारों को प्राप्त करने के लिए आन्दोलन करने की नीति अपनायी जिससे निम्न जातियाँ अपने अधिकारों से संघर्ष कर सकें। 1942 ई. में डॉ. अम्बेडकर ने अनुसूचित जाति परिसंघ बनाया। वह हिन्दू जाति की रूढ़िवादिता से निराश हो गये थे और उन्हें अछूतों के उद्धार के लिए कार्य किया। उन्होंने भारतीय संविधान का निर्माण किया तथा अछूतों को समान अधिकार तथा संरक्षण देने की नीति आरम्भ की। अछूतों के उद्धार के लिए डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने अनेक कार्य किये। डॉ. अम्बेडकर न केवल प्रबल देशभक्त थे वरन् राष्ट्र की एकता को बनाए रखने के भी प्रबल समर्थक थे। अम्बेडकर अपूर्व वैधानिक के धनी थे तथा नेहरू और पटेल आदि कांग्रेसी नेताओं ने उनकी इस प्रतिभा को समझकर उन्हें संविधान सभा की महत्वपूर्ण समिति 'प्रारूप समिति' के अध्यक्ष का पद सौंपा था। उनके नेतृत्व में देश के लिए एक ऐसे संविधान का निर्माण हुआ, जो शान्तिकाल और संकटकाल दोनों ही परिस्थितियों में देश की एकता को बनाए रखने में समर्थ है। अम्बेडकर ने भारतीय समाज की समस्त स्थिति को भली-भाँति समझा था। उन्होंने सामाजिक लोकतन्त्र को राजनीतिक लोकतन्त्र की पूर्ण शर्त के रूप में प्रतिपादित कर भारत में लोकतन्त्र की सार्थक व्याख्या एवं परिकल्पना प्रस्तुत की। संविधान की प्रस्तावना और अन्य भागों में 'सामाजिक-आर्थिक न्याय का जो संकल्प व्यक्त किया गया है, उसमें अम्बेडकर के प्रयत्नों का महान् योगदान है।

49. हड़प्पा सभ्यता की विशेषताओं का उल्लेख करें ।

उत्तर- हड़प्पा संस्कृति की सर्वप्रमुख विशेषता इसका नगर नियोजन है। हड़प्पा एवं मोहनजोदड़ो की खुदाई में पूर्व तथा पश्चिम में दो टीले मिलते हैं। पूर्वी टीले पर नगर तथा पश्चिमी टीले पर दुर्ग स्थित था। दुर्ग में सम्भवतः शासक वर्ग के लोग रहते थे। प्रत्येक नगर में दुर्ग के बाहर निचले स्तर पर ईंटों के मकानों वाला नगर बसा था जहाँ सामान्य लोग रहते थे।

1. सड़क व्यवस्था - मोहनजोदड़ो की एक प्रमुख विशेषता उसकी सड़कें थीं। यहाँ की मुख्य सड़क 9.15 मीटर चौड़ी थी जिसे पुराविदों ने राजपथ कहा है। अन्य सड़कों की चौड़ाई 2.75 से 3.66 मीटर तक थी। जाल पद्धति के आधार पर नगर नियोजन होने के कारण सड़कें एक-दूसरे को समकोण पर काटती थीं जिनसे नगर कई खण्डों में विभक्त हो गया था। इस पद्धति को 'ऑक्सफोर्ड सर्कस' का नाम दिया गया है।

2. जल निकास प्रणाली- मोहनजोदड़ो के नगर नियोजन की एक और प्रमुख विशेषता यहाँ की प्रभावशाली जल निकास प्रणाली थी। यहाँ के अधिकांश भवनों में निजी कुएँ व स्नानागार होते थे। भवन के कमरों, रसोई, स्नानागार, शौचालय आदि सभी का पानी भवन की छोटी-छोटी नालियों से निकल कर गली की नाली में आता था। गली की नाली को मुख्य सड़क के दोनों ओर बनी पक्की नालियों से जोड़ा गया था। मुख्य सड़क के दोनों ओर बनी नालियों को पत्थरों अथवा शिलाओं द्वारा ढँक दिया जाता था। नालियों की सफाई एवं कूड़ा-करकट को निकालने के लिए बीच-बीच में नर मोखे (मेन होल) भी बनाये गये थे। नालियों की इस प्रकार की अद्भुत विशेषता किसी अन्य समकालीन नगर में देखने को नहीं मिलती।

3. स्नानागार - मोहनजोदड़ो का एक प्रमुख सार्वजनिक स्थल है यहाँ के विशाल दुर्ग (54.86 × 33 मीटर) में स्थित विशाल स्नानागार। यह 39 फुट (11.88 मीटर) लम्बा, 23 फुट (7.01 मीटर) चौड़ा एवं 8 फुट (2.44 मीटर) गहरा है। इसमें उतरने के लिए उत्तर एवं दक्षिण की ओर सीढ़ियाँ बनी हैं। स्नानागार का फर्श पक्की ईंटों से बना है। सम्भवतः इस विशाल स्नानागार का उपयोग 'आनुष्ठानिक स्नान' हेतु होता होगा। स्नानागार से जल के निकास की भी व्यवस्था थी यह स्नानागार उन्नत तकनीक का परिचायक है। मार्शल महोदय ने क इसी कारण इसे तत्कालीन विश्व का 'आश्चर्यजनक निर्माण' बताया है।

4. अन्नागार - मोहनजोदड़ो में ही 45.72 मीटर लम्बा एवं 22.86 मीटर चौड़ा एक अन्नागार मिला है। हड़प्पा के दुर्ग में भी 12 धान्य कोठार खोजे गये हैं। ये दो कतारों में छः-छः की संख्या में हैं। ये धान्य कोठार ईंटों के चबूतरों पर हैं एवं प्रत्येक का आकार 15.23 मी. x 6.09 मी. है।

5. ईंटें- हड़प्पा संस्कृति के नगरों में पकाई हुई ईंटों का प्रयोग भी यहाँ के नगर नियोजन की एक अद्भुत विशेषता है। ईंटें चतुर्भुजाकार होती थीं। मोहनजोदड़ो से प्राप्त सबसे बड़ी ईंट का आकार 51.43 × 26.27 × 6.35 सेमी. है। सामान्यतः 27.94 × 13.97 × 6.35 सेमी. की ईंटें प्रयुक्त हुई हैं।

50. वर्ण व्यवस्था और जाति व्यवस्था पर अलबरूनी के विचार का परीक्षण कीजिए ?

उत्तर - अलबरूनी 11वीं शताब्दी का एक प्रसिद्ध मुस्लिम विद्वान था, जो भारत आया था। उसने भारत के समाज, संस्कृति और धर्म का गहराई से अध्ययन किया। उसने जो कुछ देखा और समझा, उसे उसने अपनी पुस्तक 'तारीख-उल-हिंद' में लिखा है। इस पुस्तक में उसने वर्ण व्यवस्था और जाति व्यवस्था के बारे में भी विस्तार से चर्चा की है।

अलबरूनी के मुख्य विचार:

1. वर्ण व्यवस्था की उत्पत्ति: अलबरूनी ने वर्ण व्यवस्था को ब्राह्मणों की एक रचना माना। उसने लिखा कि ब्राह्मणों ने अपनी श्रेष्ठता को सिद्ध करने के लिए यह व्यवस्था बनाई।

2. जाति व्यवस्था की जटिलता: अलबरूनी ने भारत में जाति व्यवस्था की जटिलता को समझा। उसने लिखा कि हर जाति के अपने अलग-अलग नियम और रीति-रिवाज होते हैं।

3. अशुद्धता की अवधारणा: अलबरूनी ने अशुद्धता की अवधारणा को अस्वीकार किया। उसने लिखा कि हर वह वस्तु जो अपवित्र हो जाती है, अपनी पवित्रता की मूल स्थिति को पुनः प्राप्त करने का प्रयास करती है और सफल होती है।

4. ब्राह्मणों की श्रेष्ठता: अलबरूनी के अनुसार, हिंदू समाज में ब्राह्मण सर्वश्रेष्ठ समझे जाते थे।

5. वैवाहिक व्यवस्था: अलबरूनी ने लिखा कि पत्नियों की संख्या वर्ण पर आधारित थी। ब्राह्मण चार, क्षत्रिय तीन, वैश्य दो और शूद्र एक पत्नी रख सकता था।

अलबरूनी के विचारों का मूल्यांकन:

• सकारात्मक पहलू: अलबरूनी ने भारत की जाति व्यवस्था का एक विस्तृत और तटस्थ विवरण दिया। उसने अपनी टिप्पणियों के लिए प्राथमिक स्रोतों का उपयोग किया, जिससे उसके निष्कर्षों की विश्वसनीयता बढ़ जाती है।

• सीमाएं: अलबरूनी एक विदेशी था और उसने भारतीय समाज को पूरी तरह से नहीं समझा होगा। उसके विचारों को पूरी तरह से सच नहीं माना जा सकता।

51. संथाल विद्रोह के कारण तथा स्वरूप की चर्चा करें ।

उत्तर - संथाल विद्रोह, 19वीं सदी के मध्य में भारत के पूर्वी भाग में हुआ एक प्रमुख आदिवासी विद्रोह था। यह विद्रोह ब्रिटिश शासन के खिलाफ संथाल जनजाति के क्रोध और निराशा का परिणाम था।

संथाल विद्रोह के कारण

1. भूमि हरण: ब्रिटिश शासन के दौरान संथालों की भूमि को लगातार हरण किया जा रहा था। जमींदार और व्यापारी संथालों को कर्ज देकर उनकी भूमि हड़प लेते थे।

2. शोषण: संथालों का आर्थिक शोषण किया जाता था। उन्हें अत्यधिक ब्याज दर पर कर्ज दिया जाता था, जिससे वे कर्ज के बोझ तले दब जाते थे।

3. सांस्कृतिक हस्तक्षेप: ब्रिटिश शासन ने संथालों की सांस्कृतिक पहचान को खतरे में डाल दिया था। उनकी परंपराओं और रीति-रिवाजों का अपमान किया जाता था।

4. राजस्व नीतियां: ब्रिटिश सरकार की राजस्व नीतियां संथालों के लिए बहुत कठोर थीं। उन्हें भारी करों का भुगतान करना पड़ता था।

5. प्रशासनिक भ्रष्टाचार: स्थानीय प्रशासन भ्रष्ट था और संथालों के हितों की अनदेखी करता था।

संथाल विद्रोह का स्वरूप

1. आदिवासी एकता: यह विद्रोह संथाल जनजाति के लोगों को एकजुट करने में सफल रहा।

2. सशस्त्र विद्रोह: संथालों ने अंग्रेजी सेना के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष किया।

3. विस्तृत क्षेत्र: यह विद्रोह वर्तमान झारखंड और पश्चिम बंगाल के कुछ हिस्सों में फैला हुआ था।

4. सामाजिक परिवर्तन: इस विद्रोह ने संथाल समाज में सामाजिक परिवर्तन लाने का प्रयास किया।

विद्रोह के प्रमुख नेता

• सिद्धू और कान्हू: इन दोनों भाइयों को संथाल विद्रोह का प्रमुख नेता माना जाता है।

• चांद और भैरव: सिद्धू और कान्हू के अलावा, चांद और भैरव भी इस विद्रोह के महत्वपूर्ण नेता थे।

• फूलो और झानो: इन दोनों बहनों ने भी इस विद्रोह में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

विद्रोह का परिणाम

1. दमन: ब्रिटिश सरकार ने इस विद्रोह को बड़ी क्रूरता से कुचला।

2. संथाल परगना का गठन: विद्रोह के बाद ब्रिटिश सरकार ने संथाल परगना का गठन किया, जो संथालों के लिए एक विशेष प्रशासनिक इकाई थी।

3. जागृति: इस विद्रोह ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में आदिवासियों की भागीदारी को प्रेरित किया।

संथाल विद्रोह भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना है। यह विद्रोह ब्रिटिश शासन के दौरान आदिवासियों के शोषण और उत्पीड़न के खिलाफ संघर्ष का प्रतीक है।

52. कबीर दास के मुख्य उपदेशों का वर्णन करें ।

उत्तर - कबीर के मुख्य उपदेश-कबीरदास जी अपने समय के महानतम समाज सुधारक थे जिन्होंने धार्मिक पाखण्ड, सामाजिक एवं आर्थिक भेदभाव का एक विशिष्ट शैली में विरोध किया।

कबीरदास जी से सम्बन्धित मुख्य उपदेश निम्नलिखित हैं-

• कबीरदास जी ने मूर्तिपूजा तथा बहुदेववाद का पूर्ण रूप से विरोध किया।

• उन्होंने निराकार ब्रह्म की आराधना को उचित बताया।

• उन्होंने ज़िक्र तथा इश्क के सूफी सिद्धान्तों के प्रयोग द्वारा नाम स्मरण पर बल दिया।

• उनके अनुसार भक्ति के माध्यम से मोक्ष की प्राप्ति सम्भव है।

• उनके अनुसार परम सत्य अर्थात् परमात्मा एक है, भले ही विभिन्न सम्प्रदायों के लोग उसे भिन्न-भिन्न नामों से पुकारते हों।

• उन्होंने हिन्दू तथा मुसलमानों के धार्मिक आडम्बरों का खण्डन किया।

• कबीर जातीय भेदभाव के विरुद्ध थे।

उपदेशों का सम्प्रेषण- कबीर के उपदेश काव्य रूप में संकलित किए गए हैं। कबीर जनमानस की भाषा में अपने उपदेश देते थे। उन्होंने अपनी भाषा में हिन्दी, पंजाबी, फारसी, अवधी व स्थानीय बोलियों के अनेक शब्दों का प्रयोग किया। उनकी मृत्यु के पश्चात् उनके शिष्यों ने उनके विचारों का प्रचार-प्रसार किया।

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