JAC ANNUAL INTERMEDIATE EXAMINATION-2025
HISTORY Pre Test
पूर्णांक : 80 समय: 3 घंटा
बहुविकल्पीय प्रश्न : 1x30=30
1. हड़प्पा सभ्यता में किस धातु का प्रयोग सबसे अधिक हुआ।
(a) कांसा
(b)
तांबा
(c)
टिन
(d)
इनमें कोई नही
2. हड़प्पा सभ्यता के किस नगर से साइनबोर्ड का प्रमाण मिला है-
(a)
मोहनजोदडो
(b)
कालीबंगा
(c) धौलावीरा
(d)
लोथल
3. अशोक के शिलालेखो में किस लिपि का प्रयोग हुआ है -
(a)
ब्राह्मी
(b)
खरोष्ठी
(c)
अरामाइक
(d) सभी
4. द्वितीय नगरीकरण में किस धातु की भूमिका मानी जाती है-
(a)
तांबा
(b)
कांसा
(c)
पीतल
(d) लोहा
5. महाभारत का युद्ध कितने दिन चला था -
(a)
10 दिन
(b)
15 दिन
(c) 18 दिन
(d)
24 दिन
6. "नाट्यशास्त्र" की रचना किसने की-
(a) भरतमुनि
(b)
हलघर
(c)
विष्णुगुप्त
(d)
शूद्रक
7. गौतम बुद्ध का प्रधान शिष्य कौन था -
(a) आनन्द
(b)
उपालि
(c)
अनिरुद्ध
(d)
कश्यप
8. महावीर स्वामी को ज्ञान की प्राप्ति झारखंड के किस जिले में हुई-
(a)
देवघर
(b)
धनबाद
(c) गिरिडीह
(d)
इनमें कोई नही
9. उलूक डाक व्यवस्था में किसका प्रयोग किया जाता था-
(a)
हाथी
(b)
ऊंट
(c)
नाव
(d) घोडा
10. 'रिहाला" नामक पुस्तक किसने लिखी
(a)
बर्नियर
(b)
मार्कोपोलो
(c) इब्नबतूता
(d)
ट्रैवेनियर
11 कबीर के दोहे कहां संकलित है-
(a)
गुरुग्रंथ साहिब
(b) बीजक
(c)
सूरसागर
(d)
पद्मावत
12. 'पीर" का अर्थ है-
(a)
ईश्वर
(b) गुरु
(c)
आत्मा
(d)
शिष्य
13. तालिकोटा का युद्ध किसके नेतृत्व में लड़ा गया था-
(a) रामराय
(b)
देवराय प्रथम
(c)
कृष्णदेव राय
(d)
सदाशिव राय
14. विजयनगर साम्राज्य की स्थापना कब हुई
(a)
1526
(b)1286
(c)
1206
(d) 1336
15 आइन-ए-अकबरी के कितने भाग है-
(a)
तीन
(b)
चार
(c) पाँच
(d)
इनमें कोई नही
16. तंबाकू का सेवन सबसे पहले किस मुगल सम्राट ने किया -
(a)
बाबर
(b)
जहांगीर
(c) अकबर
(d)
शाहजहां
17. भारत का अंतिम मुगल बादशाह कौन था -
(a)
औरंगजेब
(b) बहादुरशाह जफर
(c)
फरूखशियर
(d)
मोहम्मदशाह
18. एशियाटिक सोसाइटी ऑल बंगाल की स्थापना कब और किसने की
(a) 1784, विलियम जोंस
(b)
1791, हेनरी बेवरिज
(c)
1785, चार्ल्स मेटकाफ
(d)
इनमें कोई नही
19. मैनचेस्टर काटन कंपनी का निर्माण कब हुआ-
(a)1857
(b)1859
(c)1858
(d)1860
20. भारत में औपनिवेशिक शासन व्यवस्था सर्वप्रथम कहाँ स्थापित हुई-
(a)
बंबई
(b) बंगाल
(c)
मद्रास
(d)
इनमें कोई नहीं
21. संथाल विद्रोह कब हुआ था -
(a)1855
(b)1814
(c)
1859
(d)1896
22. हडप नीति किसने लागू किया था-
(a) लार्ड डलहौजी
(b)
लार्ड कैनिंग
(c)
लार्ड बैंटिक
(d)
लार्ड कर्जन
23. मंगल पांडे को कब फाँसी दिया गया-
(a)
29 मार्च 1857
(b)
8 मार्च 1857
(c) 8 अप्रैल 1857
(d)
10 मई 1857
24. 1857 के विद्रोह के समय भात का गवर्नर जनरल कौन था-
(a)
लार्ड डलहौजी
(b)
लार्ड बैंटिक
(c) लार्ड कैनिंग
(d)
लार्ड वेलेजली
25. दिल्ली भारत की राजधानी कब बना-
(a)1910
(b)1911
(c)
1912
(d)1913
26. भारत में रेलवे की शुरुआत कब हुई-
(a)1850
(b) 1853
(c)1860
(d)1862
27. क्रिप्स प्रस्ताव को किसने पोस्ट डेटेड चेक कहा
(a) महात्मा गाँधी
(b)
राजेंद्र प्रसाद
(c)
जवाहरलाल नेहरू
(d)
सुभाष चंद्र बोस
28. महात्मा गांधी के राजनीतिक गुरु कौन थे-
(a)
फिरोजशाह मेहता
(b)
लाजपत राय
(c) गोपाल कृष्ण गोखले
(d)
चितरंजन दास
29. पाकिस्तान शब्द किसने दिया था -
(a)
मोहम्मद जिन्ना
(b) चौधरी रहमत अली
(c)
लियाकत अली
(d)
मोहम्मद इक़बाल
30. किसे संवैधानिक सलाहकार के पद पर नियुक्त किया गया -
(a) बी० एन० राव
(b)
सच्चिदानंद सिन्हा
(c)
राजेंद्र प्रसाद
(d)
भीम राव अम्बेडकर
खंड-A अति लघु उत्तरीय प्रश्नः
विषयनिष्ठ प्रश्न
किन्हीं छह प्रश्नों का उत्तर दे- 2x6 = 12
31. हड़प्पाई लिपि की दो विशेषता बतायें।
उत्तर -
1. यह चित्रात्मक लिपि थी: इसमें जानवरों, मछलियों, और मानव
आकृतियों के चित्र भी शामिल थे।
2. इसे मुहरों और टेराकोटा की गोलियों पर खुदा हुआ पाया गया:
हड़प्पा लिपि के ज़्यादातर लेख मुद्राओं पर लिखे गए हैं।
32. मेगास्थनीज कौन था? इसने कौन सी पुस्तक लिखी?
उत्तर - मेगस्थनीज़ एक यूनानी
राजदूत, इतिहासकार, और खोजकर्ता थे जिन्होंने इंडिका नाम की किताब लिखी थी।
33. गोत्र से आप क्या समझते है?
उत्तर - गोत्र मोटे तौर पर
उन लोगों के समूह को कहते हैं जिनका वंश एक मूल पुरुष पूर्वज से अटूट क्रम में जुड़ा
है।
34 जैन धर्म के त्रिरत्न क्या है?
उत्तर - सम्यक दर्शन (सही
आस्था), सम्यक ज्ञान (सही ज्ञान), सम्यक चरित्र (सही आचरण)।
35. "खानकाह" से आप क्या समझते है?
उत्तर - मुसलमान साधुओं या
धर्मशिक्षकों का रहने का स्थान या मठ।
36. संथाल विद्रोह के प्रमुख नेता कौन थे?
उत्तर - सिद्धू, कान्हू, चांद
और भैरव तथा दो जुड़वां मूर्मू बहनें - फूलो और झानो ।
37. इंडो-सारसनिक स्थापत्य शैली के भारत में दो उदाहरण बताये?
उत्तर -
1. मैसूर पैलेस, कर्नाटक:
वाडियार राजवंश का आधिकारिक निवास, यह महल 1897 से 1912 के बीच बना था. इसमें हिंदू,
मुगल, राजपूत, और गोथिक शैली का मिश्रण है।
2. मद्रास हाई कोर्ट की इमारतें: ब्रिटिश वास्तुकार हेनरी इरविन
के मार्गदर्शन में जेडब्ल्यू ब्रैसिंगटन ने इन इमारतों को डिज़ाइन किया था।
38. संविधान सभा की प्रथम बैठक कब और किसकी अध्यक्षता में हुई थी?
उत्तर - भारतीय संविधान सभा
की पहली बैठक 9 दिसंबर, 1946 को हुई थी और इसकी अध्यक्षता डॉ॰ सच्चिदानंद सिन्हा ने
की थी।
खंड - B लघु उत्तरीय प्रश्नः 3x6 = 18
किन्ही छः प्रश्नों का उत्तर दे (अधिकतम 150 शब्दों में)
39. स्थायी बंदोबस्त क्या था। इसकी विशेषता क्या थी?
उत्तर - स्थायी बंदोबस्त,
भूमि राजस्व से जुड़ी एक प्रणाली थी। यह प्रणाली साल 1793 में
बंगाल के तत्कालीन गवर्नर जनरल लॉर्ड कार्नवालिस ने शुरू की थी। इसे
जमींदारी व्यवस्था या इस्तमरारी व्यवस्था के नाम से भी जाना जाता है।
इसकी
विशेषता निम्न हैं -
1.
इस प्रणाली के तहत, ज़मींदारों को ज़मीन का स्वामी माना गया।
2.
ज़मींदारों को ज़मीन का उत्तराधिकार वंशानुगत रूप से मिला।
3.
ज़मींदारों को ज़मीन बेचने या हस्तांतरित करने का अधिकार था।
4.
ज़मींदारों को काश्तकारों को पट्टा देना होता था. इस पट्टे में ज़मीन का क्षेत्रफल
और किराया लिखा होता था।
5.
ज़मींदारों को एक निश्चित राशि का राजस्व चुकाना होता था. यह राशि, ज़मींदार द्वारा
वसूले गए कुल राजस्व का 10/11वां हिस्सा थी।
6.
ज़मींदारों को यह वादा किया गया था कि भविष्य में इस राजस्व में कोई बढ़ोतरी नहीं की
जाएगी।
7.
अगर ज़मींदार निर्धारित राशि का भुगतान नहीं करते, तो उनकी ज़मीन नीलाम कर दी जाती
थी।
40. कलिंग युद्ध का अशोक पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर - अशोक के 13 वें शिलालेख
से पता चलता है कि कलिंग युद्ध 261 ई० पूर्व में हुआ था। इस युद्ध में 1.5 लाख लोग
बन्दी बनाये गये तथा एक लाख लोग मारे गयें। कलिंग युद्ध का अशोक पर निम्न प्रभाव पड-
I. कलिंग युद्ध के विनाश को देखकर अशोक इतना विचलित हो गया कि
उसने सदा के लिए युद्ध के मार्ग को त्याग दिया।
II.
उसने कभी भी शस्त्र न उठाने की प्रतिज्ञा की और बौद्ध धर्म को अपना लिया।
III.
वह विश्व विजय के मार्ग को त्याग कर धर्म विजय के मार्ग को अपना लिया।
41. महाभारत के महत्व पर प्रकाश डालिए?
उत्तर - महाभारत भारतीय संस्कृति
का एक ऐसा महाकाव्य है जिसने सदियों से लोगों को प्रभावित किया है। यह सिर्फ एक कहानी
नहीं है, बल्कि जीवन के विभिन्न पहलुओं पर एक गहरा चिंतन है।
1.
भारतीय संस्कृति का आधार:
a.
धर्म और दर्शन: महाभारत में हिंदू धर्म के विभिन्न पक्षों,
दर्शनों और सिद्धांतों का गहराई से वर्णन मिलता है। भगवद् गीता, जो महाभारत का एक महत्वपूर्ण
भाग है, जीवन के अर्थ, कर्म, मोक्ष आदि पर गहन विचार प्रस्तुत करती है।
b.
इतिहास और पौराणिक कथाएं: महाभारत प्राचीन भारत के इतिहास और पौराणिक
कथाओं का एक विशाल संग्रह है। इसमें कई राजाओं, देवताओं और दानवों की कहानियां मिलती
हैं।
c.
समाज और संस्कृति: महाभारत में प्राचीन भारतीय समाज की संरचना,
रीति-रिवाज, और सामाजिक मूल्यों का वर्णन मिलता है।
2.
जीवन के सार्वभौमिक सत्य:
a.
नैतिक मूल्य: महाभारत में धर्म, न्याय, सत्य, और करुणा जैसे
नैतिक मूल्यों पर बल दिया गया है। ये मूल्य आज भी प्रासंगिक हैं।
b.
मानव स्वभाव: महाभारत में मानव स्वभाव के विभिन्न पहलुओं
जैसे लोभ, क्रोध, ईर्ष्या, और प्रेम का चित्रण किया गया है।
c.
जीवन के उतार-चढ़ाव: महाभारत में जीवन के विभिन्न चरणों और चुनौतियों
का वर्णन मिलता है। यह हमें जीवन के उतार-चढ़ावों से निपटने का मार्ग दिखाता है।
3.
साहित्यिक महानता:
a.
विशालता: महाभारत दुनिया का सबसे लंबा महाकाव्य है। इसमें लाखों श्लोक
हैं।
b.
कलात्मकता: महाभारत की भाषा, शैली, और वर्णन अत्यंत प्रभावशाली हैं।
c.
विविधता: महाभारत में विभिन्न प्रकार की कविताएं, कहानियां, और उपदेश
मिलते हैं।
4.
समाज और संस्कृति पर प्रभाव:
a.
कला और संस्कृति: महाभारत की कहानियों को नाटकों, फिल्मों, और
अन्य कला रूपों में रूपांतरित किया गया है।
b.
शिक्षा: महाभारत को भारतीय शिक्षा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा माना
जाता है।
c.
आध्यात्मिकता: महाभारत ने कई लोगों को आध्यात्मिक मार्ग पर
चलने के लिए प्रेरित किया है।
42. श्वेतांबर और दिगंबर में क्या अंतर है?
उत्तर - दिगंबर और श्वेतांबर,
जैन धर्म की दो प्रमुख शाखाएं हैं। इन दोनों शाखाओं के बीच मुख्य
अंतर ये हैं:
1. दिगंबर साधु-मुनि हमेशा नग्न रहते हैं, जबकि श्वेतांबर साधु-मुनि
सफ़ेद वस्त्र पहनते हैं।
2. दिगंबर मानते हैं कि मोक्ष प्राप्ति के लिए नग्नता एक शर्त
है. वहीं, श्वेतांबर पूर्ण नग्नता में विश्वास नहीं करते।
3. संस्कृत शब्द दिगंबर का अर्थ है "दिशा ही जिसका अंबर
अर्थात् वस्त्र"।
4. श्वेतांबर साधुओं को स्थलबाहु और उनके अनुयायियों के नाम
से भी जाना जाता है।
5. दिगंबर साधुओं को भद्रबाहु और उनके अनुयायियों के नाम से
भी जाना जाता है।
6. श्वेतांबर साधु सूर्यास्त से पहले ही खाना खा लेते हैं. वहीं,
दिगंबर साधु कठिन साधना करते हैं और दिन में केवल एक ही बार खाना खाते हैं।
7. श्वेतांबर दो पन्थों में विभाजित हैं-मूर्तिपूजक और स्थानकवासी।
8. जैन धर्म के मूल सिद्धांतों को दोनों ही सम्प्रदाय समान रूप
से मानते हैं।
43. भक्ति आंदोलन की प्रमुख विशेषताएं क्या है?
उत्तर - भक्ति आंदोलन मध्ययुगीन
भारत में एक सामाजिक और धार्मिक सुधार आंदोलन था जिसने एक व्यक्तिगत देवता के प्रति
भक्ति और प्रेम पर जोर दिया गया। यह छठीं शताब्दी ईस्वी के आसपास उभरा और मध्ययुगीन
काल के दौरान प्रमुखता प्राप्त की। इस आंदोलन का उद्देश्य धार्मिक और सामाजिक बाधाओं
को समाप्त करना और लोगों के बीच एकता और समानता को बढ़ावा देना था।
भक्ति आंदोलन की मुख्य विशेषताएँ इस प्रकार है-
(1) एक व्यक्तिगत देवता के प्रति भक्ति : यह आंदोलन एक चुने हुए देवता के प्रति व्यक्तिगत भक्ति और
प्रेम पर केंद्रित था जो विष्णु, शिव, कृष्ण, राम या देवी जैसे भगवान का कोई भी रूप
हो सकता है।
(2) समानता और सार्वभौमिकता : भक्ति संतों ने कठोर जाति व्यवस्था को खारिज कर दिया और उपदेश
दिया कि ईश्वर की भक्ति सभी के लिए खुला है चाहे उनकी सामाजिक पृष्ठभूमि कुछ भी हो।
(3) स्थानीय भाषा : संतों
और कवियों ने स्थानीय भाषाओं में भक्ति गीतों की रचना की एवं जिन्हें भजन या कीर्तन
के नाम से जाना जाता है।
(4) अनुष्ठानों और पुरोहितों के प्राधिकार की अस्वीकृति : भक्ति संतों ने अनुष्ठानों की आलोचना की और पुरोहित वर्ग
के अधिकार पर सवाल उठाया।
(5) प्रेम और भक्ति पर जोर : प्रेम और भक्ति को जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्ति एवं
मोक्ष प्राप्त करने का प्राथमिक साधन माना जाता था।
(6) नैतिकता पर जोर : भक्ति
संतों ने धार्मिक और नैतिक व्यवहार, करूणा और प्रेम के महत्व पर जोर दिया।
44. विजयनगर की जल आवश्यकताओ को किस प्रकार पूरा किया जाता था?
उत्तर - विजयनगर की जल आपूर्ति
का सबसे महत्वपूर्ण स्रोत तुंगभद्रा नदी द्वारा निर्मित एक प्राकृतिक कुण्ड था। विजयनगर
चारों ओर से ग्रेनाइट की चट्टानों से घिरा हुआ है। इन चट्टानों से कई जलधाराएँ फूटकर
तुंगभद्रा नदी में मिलती तथा इसी के उपरान्त वह प्राकृतिक कुण्ड बनता है। इन सभी धाराओं
को बाँधकर पानी के हौज बनाये जाते थे। प्रायद्वीप के शुष्क क्षेत्र के कारण पानी का
संचयन एवं उसे शहर तक ले जाने का प्रबन्ध किया जाता था। इन हौजों में से ही एक हौज
का नाम 'कमलपुरम् जलाशय' था। इससे एक नहर भी निकाली गयी। इसके अतिरिक्त तुंगभद्रा बाँध
से एक और अन्य नहर 'हिरिया नहर' भी निकाली गयी थी।
45. इतिवृत से आप क्या समझते है? इसका मुख्य उद्देश्य क्या था?
उत्तर-
इतिवृत्त मुख्य रूप से मुगल काल में लिखे गये दस्तावेज थे। ये दस्तावेज प्रमुख रूप
से मुगल बादशाहों द्वारा लिखवाये जाते थे। ये इतिवृत्त मुगलकाल के अध्ययन के महत्वपूर्ण
स्रोत हैं।
इतिवृत्तों
की रचना के मुख्य उद्देश्य -
(i)
शासक की भावी पीढ़ी को शासन की सम्पूर्ण जानकारी उपलब्ध करवाना।
(ii)
मुगल शासकों के विरोधियों को चेतावनी देना तथा यह बताना कि विद्रोह का परिणाम असफलता
है।
इतिवृत्तों
के लेखक मुख्यतः दरबारी होते थे। इतिवृत्तों के मुख्य विषय थे-शासनकाल की घटनाएँ, शासक
का परिवार, दरबार तथा अभिजात्यवर्ग, युद्ध इत्यादि।
46. 1857 के विद्रोह में अफवाहो की क्या भूमिका थी?
उत्तर - 1857 ई. के जन विद्रोह
को फैलाने में अफवाहों एवं भविष्यवाणियों का भी पर्याप्त योगदान रहा है। इन अफवाहों
ने आम जनता को विद्रोह करने के लिए प्रेरित किया। प्रमुख उदाहरण निम्नलिखित हैं-
(i) चर्बी वाले कारतूस - मेरठ छावनी से दिल्ली आने वाले विद्रोही सैनिकों ने बहादुरशाह को बताया कि उन्हें
एनफील्ड राइफल में चलाने हेतु जो कारतूस दिए गए हैं उनमें गाय व सुअर की चर्बी लगी
हुई है। यदि वे इन कारतूसों को मुँह से खोलेंगे तो उनका धर्म भ्रष्ट हो जाएगा। ब्रिटिश
अधिकारियों ने सैनिकों को बहुत समझाया कि इसमें कोई सच्चाई नहीं है, परन्तु यह अफवाह
उत्तर भारत की छावनियों में जंगल की आग की तरह फैलती चली गयी।
(ii) आटे में हड्डियों का चूरा - 1857 ई. की शुरुआत में यह अफवाह जोरों पर थी कि ब्रिटिश सरकार
ने हिन्दुओं और मुसलमानों की जाति और धर्म को नष्ट करने के लिए एक भयानक साजिश रची
है। यह अफवाह फैलाने वालों का कहना था कि इसी उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए अंग्रेजों
ने बाजार में मिलने वाले आटे में गाय और सुअर की हड्डियों का चूरा मिलवा दिया। इसलिए
शहरों व छावनियों में सिपाहियों तथा आम लोगों ने आटे को छूने से भी इंकार कर दिया।
चारों ओर यह भय सन्देह बना हुआ था कि अंग्रेज भारतीयों को ईसाई बनाना चाहते हैं। ब्रिटिश
अफसरों ने लोगों को अपनी बात का यकीन दिलाने का भरसक प्रयास किया, लेकिन असफल रहे।
इन्हीं बेचैनियों ने लोगों को अगला कदम उठाने के लिए प्रोत्साहित किया।
(iii) ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के समाप्त होने की भविष्यवाणी - किसी बड़ी कार्यवाही के आह्वान को इस भविष्यवाणी से और बल
मिला कि प्लासी के युद्ध के सौ साल पूरे होते ही 23 जून, 1857 को अंग्रेजी राज खत्म
हो जायेगा। इस भविष्यवाणी से भी विद्रोह को प्रेरणा मिली।
(iv) चपातियों का वितरण - उत्तर भारत के विभिन्न भागों से गाँव-गाँव में चपातियाँ बाँटने की खबरें आ रही
थीं। बताते हैं कि रात को एक व्यक्ति गाँव के चौकीदार को एक चपाती देता था और उसे पाँच
और चपातियाँ बनाकर अगले गाँव में पहुँचाने का निवेदन कर जाता था। चपातियाँ बाँटने का
अर्थ और उद्देश्य न तो उस समय स्पष्ट था और न ही आज स्पष्ट है, लेकिन एक बात स्पष्ट
रूप से कही जा सकती है कि इसे लोग किसी आने वाली उथल-पुथल का सूचक मान रहे थे।
खंड- C दीर्घ उत्तरीय प्रश्न : 5×4 = 20\
किन्ही चार प्रश्नों का उत्तर दे (अधिकतम 250 शब्द)
47. असहयोग आंदोलन के बारे में आप क्या जानते है ? वर्णन करें।
उत्तर - कांग्रेस ने 1920
में गाँधीजी के नेतृत्व में असहयोग का नया कार्यक्रम अपनाया। इस आन्दोलन को कई चरणों
में चलाया जाना था। आरंभिक चरण में सरकार द्वारा दी गई उपाधियों को वापस लौटाना था।
इसके बाद विधान मंडलों, अदालतों और शिक्षा संस्थानों का बहिष्कार करने तथा करों की
अदायगी न करने का अभियान चलाया जाना था। अनेक भारतीयों ने सरकारी नौकरियों छोड़ दीं।
विदेशी कपड़ों की होलियाँ जलाई गईं। पूरे देश में हड़तालें हुईं।
आन्दोलन के दौरान ‘प्रिंस ऑफ वेल्स’ भारत आया। जब वह 17 नवम्बर, 1921 को भारत पहुंचा
तो उसका स्वागत' आम हड़तालों और प्रदर्शनों द्वारा किया गया।
असहयोग आन्दोलन और ब्रिटिश सरकार का दमन, दोनों जब चरम सीमा
पर थे, उसी समय दिसम्बर 1921 में कांग्रेस का वार्षिक अधिवेशन अहमदाबाद में हुआ । इसके
अध्यक्ष हकीम अजमल खाँ थे। कांग्रेस ने आन्दोलन को तब तक जारी रखने का फैसला किया,
जब तक पंजाब और तुर्की के साथ हुए अन्यायों का प्रतिकार नहीं हो जाता और स्वराज प्राप्त
नहीं होता ।।
असहयोग आन्दोलन के परिणाम निम्न है—
1. माण्ट फोर्ड सुधारों का विरोध- विश्वयुद्ध के पश्चात् 1919 में एक माण्ट फोर्ड सुधार अधिनियम
पारित किया गया । इस अधिनियम द्वारा भारत के स्वशासन के वायदे को पूरा नहीं किया गया
। प्रान्तों में तो आंशिक स्वशासन लागू किया गया, परन्तु केन्द्रीय शासन सर्वथा निरंकुश
बना रहा । इस अधिनियम से किसी उग्रवादी को संतोष नहीं हुआ । इसके विपरीत उनका यह निश्चय
दृढ़ हो गया कि स्वराज्य उन्हें दिया नहीं जा सकता है, वह तो उन्हें छीनना होगा।
2. खिलाफत आन्दोलन- प्रथम
विश्वयुद्ध समाप्त होने के बाद टर्की के साथ जो अन्यायपूर्ण व्यवहार किया गया था, उस
पर वहाँ खिलाफत आंदोलन प्रारम्भ हुआ । इसके समर्थन में भारत के अली भाईयों (मोहम्मद
अली और शौकत अली) ने खिलाफत आंदोलन आरंभ किया । खिलाफत आंदोलन में कांग्रेस के नेता
भी शामिल हुए और आंदोलन को पूरे देश में फैलाने में उन्होंने सहायता दी ।
3. 1919 का अधिनियम- ब्रिटिश सरकार ने 1919 के अधिनियम द्वारा द्वैध शासन प्रणाली की स्थापना की थी
। कांग्रेस के नेताओं ने इसको अंग्रेजों की कूटनीतिक चाल बताया क्योंकि इसमें साम्प्रदायिक
चुनाव प्रणाली द्वारा हिन्दू तथा मुसलमानों में फूट डालने का प्रयास किया गया था ।
4. रोलेट एक्ट- असहयोग
आन्दोलन को प्रारम्भ करने का प्रमुख कारण रोलेट एक्ट था । इस एक्ट के द्वारा किसी भी
व्यक्ति को गिरफ्तार किया जा सकता था तथा कानूनी कार्यवाही किये बिना लम्बे समय तक
नजरबन्द रखा जा सकता था । रॉलेट एक्ट का प्रमुख उद्देश्य राष्टीय आन्दोलनों को कुचलना
था, अतः गाँधीजी ने इस एक्ट का व्यापक विरोध किया ।
5. जलियाँवाला हत्याकाण्ड- रॉलेट एक्ट का विरोध करने के लिए 13 अप्रैल, 1919 को अमृतसर
के जलियाँवाला बाग में एक सार्वजनिक सभा हो रही थी । जनरल डायर ने बाग को घेरकर बिना
जानकारी दिये निहत्थी भीड़ पर अंधाधुन्ध गोलियों की वर्षा कर दी जिसके परिणाम स्वरूप
लगभग 1,000 व्यक्ति मारे गये तथा 1,600 घायल हो गये । इस हत्याकाण्ड का महात्मा गाँधी
पर गहरा प्रभाव पड़ा और वे ब्रिटिश साम्राज्य के घोर शत्रु हो गए।
48. भारतीय संविधान के निर्माण मे डा० भीम राव अंबेडकर की भूमिका का
वर्णन करें।
उत्तर - डॉ. भीमराव अंबेडकर,
भारतीय संविधान के निर्माण में अहम भूमिका निभाने वाले व्यक्ति थे. वे संविधान सभा
की प्रारूप समिति के अध्यक्ष थे और संविधान के मुख्य शिल्पकार माने जाते हैं. संविधान
निर्माण में उनके योगदान की कुछ खास बातेंः
1. उन्होंने संविधान सभा की चर्चाओं का नेतृत्व किया।
2. उन्होंने अल्पसंख्यकों के अधिकारों से जुड़े अनुच्छेदों पर
बहस में अपना नज़रिया रखा।
3. उन्होंने कई समितियों से आए प्रस्तावों को अनुच्छेदों में
शामिल किया।
4. उन्होंने संविधान की सम्पादकीय ज़िम्मेदारी भी उठाई।
5. उन्होंने संविधान में न्याय, स्वतंत्रता, समानता, और बंधुत्व
जैसे सिद्धांतों को शामिल किया।
6. उन्होंने अस्पृश्यता के उन्मूलन और पिछड़े वर्गों के लिए
आरक्षण जैसे प्रावधानों को शामिल किया।
49. अकबर को राष्ट्रीय शासक क्यों कहा जाता है?
उत्तर - मध्यकालीन भारत में
इस्लामी शहंशाही (एकछत्र) के संकुचित दृष्टिकोण को त्यागने वाला अकबर पहला व्यक्ति
था। उसका अपना सिद्धान्त था कि राजा अपनी प्रजा को, चाहे वह किसी भी जाति, वर्ग अथवा
धर्म का ही क्यों न हो, पिता होता है। उसके शासन काल में दास प्रथा, सती प्रथा, बाल
विवाह, वृद्ध विवाह आदि को रोकने का प्रयत्न किया गया। अकबर ने जिन उदार और नवीन सिद्धान्तों
को जन्म दिया, उनमें सबसे प्रमुख हिन्दू और मुसलमानों को निकट लाने का था। उसने प्राचीन
हिन्दू आदर्श का पुनरुद्धार किया और शासन एवं प्रजा के बीच पैदा हुए भेदभाव को अधिकाधिक
क्रम करने की भरसक चेष्टा की। केवल राजनीतिक एकता ही उसका आदर्श नहीं था वरन् वह सांस्कृतिक,
सामाजिक, आर्थिक एवं धार्मिक एकता के आधार पर उसकी नींव भी दृढ़ करना चाहता था। अकबर
के अलावा तत्कालीन संसार का अन्य कोई भी सम्राट इतने - उच्च आदर्शों से प्रेरित नहीं
था। यही कारण है कि अकबर को राष्ट्रीय शासक कहा जाता है।
50. गुरुनानक की जीवनी, शिक्षा एवं प्रमुख उपदेशों का वर्णन करें।
उत्तर - गुरु नानक देव जी
सिख धर्म के पहले गुरु और संस्थापक थे। वे एक महान संत, दार्शनिक और सामाजिक सुधारक
थे। उनके उपदेशों ने लाखों लोगों के जीवन को प्रभावित किया है और सिख धर्म की नींव
रखी है।
प्रारंभिक जीवन
जन्म: गुरु नानक देव जी
का जन्म 15 अप्रैल, 1469 को रावी नदी के तट पर स्थित तलवंडी (अब ननकाना साहिब, पाकिस्तान)
में हुआ था।
परिवार: वे एक
खत्री परिवार में पैदा हुए थे। उनके पिता का नाम कालू और माता का नाम तृप्ता था।
बचपन: बचपन से ही गुरु
नानक देव जी में आध्यात्मिक रुचि थी। वे अक्सर ध्यान और चिंतन में लीन रहते थे।
शिक्षा और यात्राएं
शिक्षा: गुरु
नानक देव जी ने पारंपरिक शिक्षा ग्रहण की। उन्होंने वेद, पुराण और अन्य धार्मिक ग्रंथों
का अध्ययन किया।
यात्राएं: गुरु
नानक देव जी ने अपने जीवनकाल में कई यात्राएं कीं। उन्होंने भारत के विभिन्न हिस्सों
के साथ-साथ अरब, अफगानिस्तान और तिब्बत की यात्रा की। इन यात्राओं के दौरान उन्होंने
विभिन्न धर्मों और संस्कृतियों के लोगों से मुलाकात की और उनके विचारों को समझा।
प्रमुख
उपदेश
गुरु
नानक देव जी के उपदेशों का सार निम्नलिखित है:
1.
एक ईश्वर: गुरु नानक देव जी ने एक ईश्वर में विश्वास किया और सभी धर्मों
को एक ही सत्य का अलग-अलग रास्ता बताया।
2.
सर्वसमत्व: उन्होंने जाति, धर्म, लिंग और रंग के आधार पर भेदभाव का
विरोध किया और सभी मनुष्यों को समान माना।
3.
कर्मकांडों का विरोध: उन्होंने बाहरी कर्मकांडों और रीति-रिवाजों
का विरोध किया और आंतरिक शुद्धता पर बल दिया।
4.
नाम जपो, किरत करो, वंड छको: गुरु नानक देव जी ने ईश्वर का नाम जपना,
ईमानदारी से काम करना और दूसरों के साथ बांटना का संदेश दिया।
5.
सत्संग: उन्होंने सत्संग (संतों की संगति) को आत्मिक विकास का एक
महत्वपूर्ण साधन बताया।
गुरु
नानक देव जी का प्रभाव
गुरु
नानक देव जी के उपदेशों ने सिख धर्म के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने
समाज में व्याप्त कुरीतियों और अंधविश्वासों का विरोध किया और लोगों को एकता और भाईचारे
का संदेश दिया। आज भी उनके उपदेश लाखों लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं।
51. हडप्पा सभ्यता के पतन के कारणों का वर्णन करें
उत्तर-
हड़प्पा सभ्यता के प्राचीन साक्ष्यों से पता चलता है कि अपने अस्तित्व के अन्तिम चरण
में यह सभ्यता पतनोन्मुख रही। ई. पू. द्वितीय शताब्दी के मध्य तक यह सभ्यता पूर्णतः
विलुप्त हो गई। हड़प्पा सभ्यता के काल एवं निर्माताओं की तरह ही इसके पतन को लेकर भी
विभिन्न विद्वान एकमत नहीं हैं।
1.
बाढ़ के कारण- सर्वश्री मार्शल, मैके एवं एस. आर. राव हड़प्पा
सभ्यता के पतन का एकमात्र कारण नदी की बाढ़ बताते हैं। चूँकि अधिकांश नगर नदियों के
तट पर बसे हुए थे जिनमें प्रतिवर्ष बाढ़ आती थी। मोहनजोदड़ो एवं हड़प्पा की खुदाइयों
से पता चलता है कि इनका अनेक बार पुनर्निर्माण हुआ। मार्शल महोदय को मोहनजोदड़ो की
खुदाई में प्रतिवर्ष बाढ़ के कारण जमा हुई बालू की परतें मिली हैं। मैके महोदय को चन्हूदड़ो
से बाढ़ के साक्ष्य मिले हैं। इसी प्रकार एस. आर. राव को भी लोथल, भागजाव आदि से भीषण
बाढ़ के साक्ष्य मिले हैं। अतः इनका संयुक्त निष्कर्ष है कि बाढ़ ही इस नगरीय सभ्यता
के विनाश का प्रमुख कारण थी।
2.
वाह्य आक्रमण - नदी में आने वाली बाढ़ को यदि पतन का प्रमुख
कारण माना जाये तो यह प्रश्न उठता है कि वे नगर जो नदियों के तटों पर अवस्थित नहीं
थे, उनका पतन कैसे हुआ? अतः निश्चित ही इस सभ्यता के पतन के लिए कुछ अन्य कारण भी उत्तरदायी
रहे होंगे। इस तारतम्य में मार्टीमर व्हीलर, गार्डन चाइल्ड एवं पिगट आदि विद्वानों
ने बाह्य आक्रमण को पतन का कारण माना है। पुरातात्विक साक्ष्यों से संकेत मिलता है
कि मोहनजोदड़ो को लूटा गया व वहाँ के लोगों की हत्या की गई। व्हीलर के अनुसार 1500
ई. पू. आर्यों ने आक्रमण कर हड़प्पा सभ्यता के नगरों को ध्वस्त किया एवं वहाँ के लोगों
को मार डाला।
3.
अन्य कारण- आरेन स्टाइन, ए. एन. घोष आदि विद्वान जलवायु परिवर्तन को
हड़प्पा संस्कृति के विनाश का कारण मानते हैं। एम. आर. साहनी जैसे भूतत्व वैज्ञानिक
जलप्लावन को इस सभ्यता के पतन का कारण मानते हैं। माधोस्वरूप वत्स एवं एच. टी. लैम्ब्रिक
के अनुसार नदियों के मार्गों में हुआ परिवर्तन इस सभ्यता के पतन का कारण बना। के. यू.
आर. कनेडी मलेरिया एवं महामारी जैसी प्राकृतिक आपदाओं को - पतन का जिम्मेदार मानते
हैं।
इस
प्रकार उपर्युक्त सभी कारणों ने मिलकर हड़प्पा सभ्यता के नगरों का विनाश किया।
52. स्तुप क्यों और कैसे बनाए जाते थे? वर्णन कीजिए।
उत्तर - स्तूप बौद्ध धर्म
के अनुयायियों के पूजनीय स्थल है।
बहुत प्राचीन काल से ही लोग कुछ जगहों को पवित्र मानते थे। अक्सर
जहाँ खास वनस्पति होती थी, अनूठी चट्टाने थीं या विस्मयकारी प्राकृतिक सौंदर्य था,
वहाँ पवित्र स्थल बन जाते थे। ऐसे कुछ स्थलों पर एक छोटी-सी वेदी भी बनी रहती थीं जिन्हें
कभी-कभी चैत्य कहा जाता था। पवित्र जगहों पर बुद्ध से जुड़े कुछ अवशेष जैसे उनकी अस्थियाँ
या उनके द्वारा प्रयुक्त सामान गाड़ दिए गए थे एवं टीलों को स्तूप कहते थे। समूचे स्तूप
को ही बुद्ध और बौद्ध धर्म के प्रतीक के रूप में प्रतिष्ठा मिली। अशोकावदान नामक एक
बौद्ध ग्रंथ के अनुसार अशोक ने बुद्ध के अवशेषों के हिस्से हर महत्वपूर्ण शहर में बाँट
कर उनके ऊपर स्तूप बनाने का आदेश दिया। ईसा पूर्व दूसरी सदी तक भरहुत, साँची और सारनाथ
जैसी जगहों पर स्तूप बनाए जा चुके थे।
स्तूप इस प्रकार बनाए गए:- स्तूपों की वेदिकाओं और स्तंभों पर मिले अभिलेखों से इन्हें
बनाने और सजाने के लिए दिए गए दान का पता चलता है। कुछ दान राजाओं के द्वारा दिए गए
थे (जैसे सातवाहन वंश का राजा), तो कुछ दान शिल्पकारों और व्यापारियों की श्रेणियों
द्वारा दिए गए थे। साँची के एक तोरणद्वार का हिस्सा हाथी दाँत का काम करने वाले शिल्पकारों
के दान से बनाया गया था। सैकड़ों महिलाओं और पुरुषों ने दान के अभिलेखों में अपना नाम
बताया है। इन इमारतों को बनाने में भिक्खुओं और भिक्खुनियों ने भी दान दिया था।
स्तूप की संरचनाः- स्तूप
(संस्कृत अर्थ टीला) का जन्म एक गोलार्ध लिए हुए मिट्टी के टीले से हुआ जिसे बाद में
अंड कहा गया। धीरे-धीरे इसकी संरचना ज्यादा जटिल हो गई जिसमें कई चौकोर और गोल आकारों
का संतुलन बनाया गया। अंड के ऊपर एक हर्मिका होती थी। यह छज्जे जैसा ढाँचा देवताओं
के घर का प्रतीक था। हर्मिका से एक मस्तूल निकलता था जिसे यष्टि कहते थे जिस पर अक्सर
एक छत्री लगी होती थी। टीले के चारों ओर एक वेदिका होती थी जो पवित्र स्थल को सामान्य
दुनिया से अलग करती थी।
साँची और भरहुत के प्रारंभिक स्तूप बिना अलंकरण के हैं सिवाए इसके कि उनमें पत्थर की वेदिकाएँ और तोरणद्वार है। अमरावती ओर पेशावर (पाकिस्तान) में शाह जी की ढेरी में स्तूपों में लाख और मूर्तियाँ उत्त्वकीर्ण करने की कला के काफी उदाहरण मिलते है।
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