8. बारहमासा
जीवन
परिचय।
जन्म
- 1492 में उत्तर प्रदेश के जायस ग्राम।
पिता
-
मलिक राजे अशरफ
गुरू
- शेख बुरहान और सैयद अशरफ
भाषा-
अवधी
मृत्यु
- 1542 में हुई।
शैली-फारसी
की मसनवी शैली जायस में रहने के कारण 'जायसी' कहलाए। हिंदी साहित्य में मलिक मोहम्मद
जायसी के नाम से प्रसिद्ध है।
ये
भक्ति काल के निर्गुण भक्ति धारा के सूफी शाखा के प्रतिनिधि कवि हैं। ये शारीरिक दृष्टि
से कुरुप थे इनका आधा शरीर टेढ़ा था।
भाषा
में अन्योक्ति, समासोक्ति, उत्प्रेक्षा, उपमा, रूपक, अनुप्रास अलंकारों का प्रयोग किया
है। करुण रस एवं श्रृंगार रस के दोनों पक्ष संयोग व वियोग का वर्णन किया है। गाम्भीर्य
भाव है मृत्यु।
'बारहमासा' पाठ परिचय
जायसी
द्वारा रचित महाकाव्य 'पद्मावत' के नागमती वियोग खंड का एक भाग है। इसमें नागमती के
विरह का वर्णन है। नागमती चित्तौड़ के राजा रत्नसेन की पत्नी है। राजा सिंहल द्वीप
की राजकुमारी पद्मावती की सुंदरता पर मुग्ध होकर उससे शादी करने के लिए नागमती को छोड़कर
चला जाता है। राजा और पद्मावती के बारे में हीरामन तोते ने बताया है, यह तोता पद्मावती का तोता है। इस काव्य में
कवि ने लौकिक प्रेम कथा के माध्यम से अलौकिक प्रेम को अभिव्यक्ति दी है अर्थात् प्रेम
द्वारा ईश्वर प्राप्ति पर बल दिया है। यहां रत्नसेन आत्मा का प्रतीक है, रानी पद्मावती
परमात्मा का, हीरामन तोता ज्ञान का और नागमती सांसारिक मोह माया का प्रतीक है। रत्नसेन
ईश्वर की प्राप्ति के लिए (पद्मावत) चल देता है। परंतु ईश्वर प्राप्ति का मार्ग बहुत
कठिन है, अतः मार्ग में सांसारिक मोह - माया रास्ता रोकने का प्रयास करती है। इस काव्य
पर हिंदी और फारसी की मसनवी शैली का प्रयोग दिखाई देता है।
रचनाएं
जायसी द्वारा लिखित 12 ग्रंथ बताए जाते हैं, परंतु साक्ष्य
के रूप में सात ही उपलब्ध हैं। प्रमुख रचनाएं -
1. पद्मावत (महाकाव्य)
2. अखरावट
3. आखिरी कलाम
4. चित्ररेखा
5. कहरनामा
6. मसलनामा
7. इतरावत
इनमे से 'पद्मावत' सबसे प्रसिद्ध महाकाव्य हैं. जायसी ने
बाबर के शासनकाल में ही आखिरी कलाम (1529-30) और पद्मावत (1540-41) की रचना की थी.
बारहमासा
इस खंड में राजा राजारत्न सेन के वियोग में डूबी रानी नागमती
के दुख का वर्णन किया गया है। संपूर्ण वर्ष के विभिन्न महीनों में नागमती की स्थिति
का वर्णन हुआ है। इस अंश में 4 महीनों- अगहन, पुस, माघ और फागुन का वर्णन किया है।
साहित्यिक विशेषताएं
1. उनकी 'पद्मावत' में रत्नसेन और पद्मावती की लौकिक प्रेम
कहानी द्वारा अलौकिक प्रेम की अभिव्यंजना की गई है।
2.' अखरावट' में वर्णमाला के एक- एक अक्षर को लेकर सिद्धांत
संबंधी तत्त्वों से भरी चौपाईयाँ कही गई हैं और साथ ही ईश्वर, सृष्टि, जीव, ईश्वर प्रेम
आदि विषयों पर विचार प्रकट किए हैं।
3. 'आखिरी कलाम' में कयामत का वर्णन है जो जायसी की अक्षय
कीर्ति का आधार है।
4. जायसी ने अपनी रचनाओं में ठेठ अवधी के पूर्वीपन को अपनाया
है। साथ ही अरबी फारसी के शब्दों का भी प्रयोग किया है। उनकी भाषा प्रसाद और माधुर्य
गुण से परिपूर्ण है।
5. जायसी ने अपनी रचनाओं में दोहा, चौपाई छंदों का अवधी भाषा
में सफल प्रयोग किया है। अलंकारों में उपमा, रुपक, उत्प्रेक्षा, स्वभावोक्ति, अन्योक्ति,
व्यतिरेक, विभावना, संदेह, अनुप्रास, निदर्शना आदि का सफल प्रयोग किया है।
6.
करुण रस एवं श्रृंगार रस के दोनों पक्ष संयोग व वियोग का मनोहारी वर्णन किया है। किंतु
उनका वियोग पक्ष का वर्णन अद्वितीय है। गाम्भीर्य भाव है मृत्यु।
निःसंदेह
जायसी का साहित्य में विशेष स्थान है।
7.
रामचंद्र शुक्ल के अनुसार - "नागमती का विरह वर्णन हिन्दी साहित्य में अद्वितीय
वस्तु है।"
आचार्य
शुक्ल के अनुसार 'पद्मावत' की कथा का पूर्वार्द्ध 'कल्पित' और उत्तरार्द्ध का 'ऐतिहासिक'
है।
8.
विजयदेव नारायण साही के अनुसार- "जायसी के पद्मावत में न सिर्फ एक विशेष जीवन
दृष्टि हैं, बल्कि एक स्पष्ट सामाजिक सांस्कृतिक समन्वय भी है।
' बारहमासा' पाठ परिचय
1.
जायसी द्वारा रचित महाकाव्य 'पद्मावत' के नागमती वियोग खंड का एक भाग है। इसमें नागमती
के विरह का वर्णन है। नागमती चित्तौड़ के राजा रत्नसेन की पत्नी है। राजा सिंहल द्वीप
की राजकुमारी पद्मावती की सुंदरता पर मुग्ध होकर उससे शादी करने के लिए नागमती को छोड़कर
चला जाता है।
2.
राजा और पद्मावती के बारे में हीरामन तोते ने बताया है, यह तोता पद्मावती का तोता है।
इस काव्य में कवि ने लौकिक प्रेम कथा के माध्यम से अलौकिक प्रेम को अभिव्यक्ति दी है अर्थात् प्रेम द्वारा ईश्वर प्राप्ति पर
बल दिया है।
3. यहां रत्नसेन आत्मा का प्रतीक है, रानी पद्मावती परमात्मा
का, हीरामन तोता ज्ञान का और नागमती सांसारिक मोह माया का प्रतीक है।
4. रत्नसेन ईश्वर की प्राप्ति के लिए (पद्मावत) चल देता है।
परंतु ईश्वर प्राप्ति का मार्ग बहुत कठिन है, अतः मार्ग में सांसारिक मोह माया रास्ता
रोकने का प्रयास करती है। इस काव्य पर हिंदी और फारसी की मसनवी शैली का प्रयोग दिखाई
देता है।
5. इस खंड में राजा राजारत्न सेन के वियोग में डूबी रानी
नागमती के दुख का वर्णन किया गया है। संपूर्ण वर्ष के विभिन्न महीनों में नागमती की
स्थिति का वर्णन हुआ है। इस अंश में 4 महीनों- अगहन, पुस, माघ और फागुन का वर्णन किया
है।
काव्यांश- 1
अगहन देवस घटा निसि बाढ़ी। दूभर दुख सो जाइ किमि काढ़ी।।
अब धनि देवस बिरह भा राती। जरै बिरह ज्यों दीपक बाती ।।
काँपा हिया जनावा सीऊ। तौ पै जाइ होइ सँग पीऊ।।
घर घर चीर रचा सब काहूँ। मोर रूप रँग लै गा नाहू।।
पलटि न बहुरा गा जो बिछोई अबहूँ फिरै फिरै रँग सोईं।
सियरि अगिनि बिरहिनि हिय जारा। सुलगि सुलगि दगंधै भै छारा।।
यह दुख दगध न जानै कंतू। जोबन जरम करै भसमंतू । ।
पिय सौं कहेहु सँदेसरा ऐ भँवरा ऐ काग। सो धनि बिरहें जरि
गई तेहिक धुआँ हम लाग।।
शब्दार्थ
अगहन महीने का नाम। देवस - दिन। निसि -रात । दूभर - मुश्किल।
किमी कैसे। काढ़ी - बिताई।
राती रात। जरै- जले। बिरह विरह, वियोग। हिया हृदय। जनावा
जैसे, प्रतीत हुआ। सीऊ शीत, ठंडा।
तौ पै उस पर। संगसाथ। पीऊ पिया, पति। चीर वस्त्र, कपड़ा।
मोर मेरा। नाहू नाथ। बहुरा - वियोगी। सियरि - शीतल, ठंडी। अगिनी - आग।
बिरहिनि विरहिणी। जारा जला डाला। जोबन - यौवन। भसमंतू भस्म
करना। सो - वह। धनि पत्नी। बिरहें - विरह में।
प्रसंग - प्रस्तुत पद्यावतरण हमारी हिंदी की पाठ्य-पुस्तक 'अंतरा' 'भाग-2' में संकलित
मलिक मुहम्मद जायसी की रचना 'पद्मावत' काव्य ग्रंथ के 'नागमती वियोग खंड' के बारहमासा
से उद्धृत है। इस काव्यांश में रानी नागमती की विरह दशा का वर्णन किया गया है। नागमती
का पति रत्नसेन परदेस में गया हुआ है। शीत ऋतु का समय है। अगहन के महीने में नायिका
अपने प्रेमी की विरहाग्गिनी में जल रही है।
नागमती कौए और भँवरे को अपनी दशा से अवगत कराते हुए अपने
पति को संदेशा भिजवा रही है कि-
अगहन महीने के आते ही दिन घट जाते हैं और रातें लंबी हो जाती
है और यह बिछड़ने का दुःख और ज्यादा असहनीय हो जाता है !
अब पति के वियोग में दिन भी रात की तरह ही कष्टदायी होने
लगा है, और जो विरह की अग्नि है वह नागमती को एक दिये की बाती की तरह जला रही है! इस
दर्द भरी सर्दी में नागमती का हृदय पति के वियोग में कांपने लगा है, और यह सर्दी उनपर
असर नहीं करती जो अपने प्रियतम के साथ है यां जिनके जीवन साथी उनके साथ है। पूरे घर
में सर्दी से बचने के लिए कपड़े तैयार किए जा रहे हैं, लेकिन नागमती कहती है कि मेरा
रूप सौंदर्य तो मेरे प्रिय अपने साथ ले गए हैं। एक बार जब से वो गए हैं उसके बाद में
पलट कर नहीं आए, अगर मेरी किस्मत अच्छी हुई या सौभाग्य से वे वापस आते हैं तो मेरा
रंग रूप मुझे वापस मिल जाएगा ! जगह जगह सर्दी से बचने के लिए आग लगे जा रही है, लेकिन
उसके मन और उसके तन को तो विरह की अग्नि जला रही हैं, और यह अग्नि उसके तन मन को राख
बना रही है! शायद मेरा यह दुःख मेरा प्रियतम नहीं जानता शायद तभी तो इस अग्नि में मेरा
रंग रूप और यौवन सब भस्म हो रहा है।
हे भंवरे हे काग (कौवा) मेरे प्रिय को यह संदेशा दो कि तुम्हारी
विरह की अग्नि में तुम्हारी पत्नी जल चुकी है और उसकी अग्नि के धुएं से ही हम काले
हो गए हैं।
विशेष (काव्य सौंदर्य)
इस काव्यांश में रानी नागमती की विरह वेदना का मार्मिक चित्रण
किया गया है। भाषा है। शैली उदाहरण और चित्रात्मक है। वियोग रस है।
कविता की भाषा काव्यात्मक, लयात्मक, तथा भावानुरूप है। इस
कविता में सजीवता है ! 'दूभर दुख', 'किमी काढ़ी, रूप-रंग, दुख- दग्ध में अनुप्रास अलंकार
है। जरै बिरह ज्यों दीपक बाती - उत्प्रेक्षा अलंकार फारसी की मसनवी शैली का प्रयोग हुआ है।
काव्यांश - 2
पूस जाड़ थरथर तन काँपा। सुरुज जड़ाइ लंक दिसि तापा।।
बिरह बाढ़ि भा दारुन सीऊ। कँपि कँपि मरौं लेहि हरि जीऊ।।
कंत कहाँ हौं लागौं हियरें। पंथ अपार सूझ नहिं नियरें।।
सौर सुपेती आवै जूड़ी। जानहुँ सेज हिवंचल बूढ़ी।।
चकई निसि बिछुरैं दिन मिला। हौं निसि बासर बिरह कोकिला।।
रैनि अकेलि साथ नहिं सखी। कैसें जिऔं बिछोही पँखी।।
बिरह सैचान भँवै तन चाँड़ा। जीयत खाइ मुएँ नहिं छाँड़ा।।
रकत ढरा माँसू गरा हाड़ भए सब संख।।
धनि सारस होइ ररि मुई आइ समेटहु पंख।।
शब्दार्थ - पूस - महीने का नाम। जाड़-जाड़ा, सर्दी। तन-शरीर सुरूज सूरज, दिसि दिशा। तापा तपना, गर्म होना।
दारून भयंकर। मरौं - मरेगा। लेहि लेगा। हरि भगवान। जीऊ जीव, प्राण। कंत पति। हियरें
- हृदय से। पंथ पथ, रास्ता। अपार - जिसे पार न किया जा सके। नियरें नजदीक। सौर - रजाई।
सुपेती - हल्की। जुड़ी ठंडी। सेज - बिस्तर, शै या। हिवंचल हिमाचल, बर्फ से ढकी। बूढ़ी
डूबी हुई, रैनी--रात। बिछुरैं - बिछुड़ते हैं। चकई चकवी (पक्षी का नाम) । निसि – रात
चाँड़ा - भयंकर, भोजन। जीयतु-जीवित।
रकत - रक्त। ढरा - ढला, बहा। माँसू मास। गरा - गल गया। हाड़ हड्डियाँ। संख- शंख, सफेद।
ररि - रट-रटकर। मुई मर गई। कोकिला - कोयल। रैनि- रात।
प्रसंग - प्रस्तुत पद्यावतरण हमारी हिंदी की पाठ्य-पुस्तक 'अंतरा' भाग-2 में संकलित
मलिक मुहम्मद जायसी की रचना 'पद्मावत' काव्य ग्रंथ के 'नागमती वियोग खंड' बारहमासा
से उद्धृत है। इस काव्यांश में रानी नागमती की विरह दशा का वर्णन किया गया
है। नागमती का पति रत्नसेन परदेस
में गया हुआ है। शीत ऋतु का समय है। माघ महीने की भयंकर ठंड में नायिका अपने प्रेमी
की विरहाग्गिनी में जल रही है।
व्याख्या 1. कवि जायसी पूस की ठंड में वियोग पीड़ित नागमती का चित्रण
करते हुए बता रहे हैं कि पूस माह के जाड़े से शरीर थर - थर कांप रहा है। सूरज मानो
लंका दिशा की ओर जा छुपा हो अर्थात् राजा रत्नसेन लंका की ओर चले गए हैं।
विरह वेदना से रानी की स्थिति बेहद दयनीय हो गयी है और ठंड
की कंपकंपी उनका जीवन हरने को आतुर है। प्रियतम कहाँ गए यह समझ नहीं आ रहा है, ना ही
उनको ढूढने का उपाय दिख रहा है।
2. सूरज के दूर हो जाने से ताप में कमी आ गई है और ऐसे में
शरीर कांप रहा है और ऐसी भयंकर सर्दी नागमती के विरह अग्नि को बढ़ा रही हैं और इस सर्दी
से अब उसे ऐसा लगने लगा है कि उसके प्राण ही निकलने वाले हैं।
हे प्रिय, तुम कहां हो मुझे आकर एक बार अपने हृदय से लगा
लो अर्थात् अपने आलिंगन मैं ले लो ताकि यह सर्दी कम हो जाए, आप तक पहुंचने का मार्ग
तो बहुत लंबा मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा मैं करूं तो क्या करूं जब मैं रजाई ओढ़ती हूं,
तो वह भी बहुत ठंडी लगती है और कष्ट देती है, मानो पूरा बिस्तर ही बर्फ में डूबकर हिमालय
की तरह ठंडा और बर्फीला हो गया हो। (इस सर्दी से बचने का एकमात्र उपाय प्रिय से मिलन
है)!
3. चकवा और चकई तो केवल रात को ही बिछड़ते हैं उनकी स्थिति
तो मुझसे बहुत अच्छी है वे कम से कम दिन में तो मिलते हैं ! रात होते ही मेरी सखियां
भी अपने अपने घर को चली जाती है और फिर रानी नागमती अकेले हो जाती है, और इस अकेलेपन
में इस भयंकर सर्दी के समय इस रात में मेरा हाल ऐसा हो गया है जैसा एक कबूतरी का अपने
प्रिय से अलग होने पर होता है इस अकेलेपन में जीना उसके लिए बहुत कठिन होता जा रहा
है !
4. ऐसी ऋतु में विरह रूपी बाज मुझे अकेली कबूतरी का शिकार
कर रहा है और ना मुझे जीने देता है और ना ही मरने देता है। इस जुदाई की आग में जलते
जलते मेरे शरीर का सारा रक्त आंसू बनकर बह गया और मांस गल चुका है। मेरी हड्डियां शरीर
से बाहर निकल कर शंख के समान सफेद दिखाई देने लगी हैं। नागमती किसी सारस की भांति अपने
प्रिय को रटती रहती है कि अब तो मुझे मरी हुई जानकर मेरे पंखों को समेट लो !
विशेष (काव्य सौंदर्य)
इस काव्यांश में रानी नागमती की विरह वेदना का मार्मिक चित्रण
किया गया है। भाषा है। शैली उदाहरण और चित्रात्मक है। वियोग रस है।
कविता की भाषा काव्यात्मक, लयात्मक, तथा भावानुरूप है। इस
कविता में सजीवता है।
'कंपि कंपि' में पुनरुक्ति अलंकार है
प्रसंग - प्रस्तुत पद्यावतरण हमारी हिंदी की पाठ्य-पुस्तक 'अंतरा' भाग-2 में संकलित
मलिक मुहम्मद जायसी की रचना 'पद्मावत' काव्य ग्रंथ के 'नागमती वियोग खंड' से उद्धृत
है। इस काव्यांश में रानी नागमती की विरह दशा का वर्णन किया गया है।
काव्यांश -3
लागेउ माँह परै अब पाला। बिरहा काल भएउ जड़काला।।
पहल पहल तन रुई जो झाँपै। हहलि हहलि अधिकौ हिय काँपै ।।
आई सूर होइ तपु रे नाहाँ। तेहि बिनु जाड़ न छूटै माहाँ।।
एहि मास उपजै रस मूलू। तूं सो भँवर मोर जोबन फूलू ॥
नैन चुवहिं जस माँहुट नीरू। तेहि जल अंग लाग सर चीरू ॥
केहिक सिंगार को पहिर पटोरा। बिरह पवन होइ मारै झोला ।।
टूटहिं बुंद परहिं जस ओला। गियँ नहिं हार रही होइ डोरा ।।
तुम्ह बिनु कंता धनि हरुई तन तिनुवर भा डोल।
तेहि पर बिरह जराइ कै चहै उड़ावा झोल ।।
शब्दार्थ-
लागेउ लग चुका है। माँह-माघ महीने का नाम
झाँपै - छिपाना। सूर सूरज। एहि यही, इसी
फूलू- फलता-फूलता है। जस-ऐसे, सिंगार - श्रृंगार।
परै पड़ रहा है। पाला धुंध, कोहरा। जड़काला-मृत्यु
उपजै - पैदा होता है। मूलू जड़ों में। जोबन यौवन
माहुंट-माघ मास की वर्षा। चीरू चीर, वस्त्र। झोला
झकझोरना। केहिक किसकी, पहिर पहनना।
पटोरा रेशमी वस्त्र। गियँ - गला।
तिनुवर - तिनका। झोल-राख
प्रसंग - प्रस्तुत पद्यावतरण हमारी हिंदी की पाठ्य-पुस्तक 'अंतरा'भाग-2 में संकलित
मलिक मुहम्मद जायसी की रचना 'पद्मावत' काव्य ग्रंथ के 'बारहमासा'से उद्धृत है। इस काव्यांश
में माघ महीने में रानी नागमती की विरह दशा का वर्णन किया गया है।
व्याख्या - माघ महीने के लगते ही पाला पड़ने लगता है और सुबह-सुबह ओस पड़ने लगती है एवं ठंड बहुत ज्यादा
बढ़ जाती है। पति से अलग होने के बाद नागमती को कड़ाके की ठंड मौत के सामान लग रही
है। इस भयंकर सर्दी के कारण नागमती का तन रुई की तरह कांप रहा है और उसका हृदय भी पति
से अलग होकर इस ठंड में कांप रहा है।
इस भयंकर सर्दी से बचने का एकमात्र उपाय मेरे प्रिय से मेरा
मिलन है और प्रिय से अगर मैं मिलती हूं तो वह इस भयंकर सर्दी में सूरज के ताप के समान
होगा।
इस माघ के महीने में फूलों में रस आ जाता है और उसी प्रकार
मेरा हृदय भी भावनाओं से भर गया है और वह अपने पति को भंवर बन कर आने को कहती है और
उसका हृदय उसके बाद फूल की तरह खिल जाएगा।
और पति से बिछड़ने के बाद उसकी आंखों में आंसू इस प्रकार
बह रहा है जैसे बादलों से बरसात होती है और यह आंसू नागमती द्वारा पहने गए वस्त्रों
को गिला कर रहे हैं और ये गीले वस्त्र उसे तीर की तरह चुभ रहे हैं।
आंखों से गिरने वाली बूंदे ओले की तरह गिर रही है, और इस
भीषण सर्दी में जो उनकी आंखों से आंसू गिर रहे हैं उनकी बूंदे वो ओले के सामान लग रही
है और जब हवा चलती है तो यह विरह की अग्नि और बढ़ जाती है !
पति से बिछड़ने के बाद से नागमती ना तो श्रृंगार करती है
और ना ही किसी प्रकार का आभूषण पहनती है!
प्रिया के बिना नागमती का शरीर जुदाई के दुःख से कमजोर और
दुर्बल हो गया है और तिनके की तरह हल्का हो गया है, इस जुदाई की आग ने उसके शरीर को
जलाकर राख कर दिया है और अब उसे राख की तरह उड़ना चाहती है !
विशेष इस काव्यांश में रानी नागमती की विरह वेदना का मार्मिक
चित्रण किया गया है। भाषा अवधी है। शैली उदाहरण और चित्रात्मक है। वियोग रस है। दोहा
चौपाई छंद है अतिशयोक्ति अलंकार है एवं शैली मशनवी है। कविता की भाषा काव्यात्मक, लयात्मक,
तथा भावानुरूप है। इस कविता में सजीवता विद्यमान है।
काव्यांश - 4
फागुन पवन झंकोरै बहा। चौगुन सीउ जाइ किमि सहा ।।
तन जस पियर पात भा मोरा। बिरह न रहे पवन होइ झोरा।।
तरिवर झरै झरै बन ढाँखा। भइ अनपत्त फूल फर साखा।।
करिन्ह बनाफति कीन्ह हुलासू। मो कहँ भा जग दून उदासू ।।
फाग करहि सब चाँचरि जोरी। मोहिं जिय लाइ दीन्हि जसि होरी
।।
जौं पै पियहि जरत अस भावा। जरत मरत
मोहि रोस न आवा।।
रातिहु देवस इहै मन मोरें। लागौं कंत छार? जेऊँ तोरें।।
यह तन जारौं छार कै कहौं कि पवन उड़ाउ।
मकु तेहि मारग होइ परौं कत धरैं जहँ पाउ।
शब्दार्थ - फागुन - फाल्गुन (महीने का नाम) । झकोरै - झोंके। चौगुन चौगुनी। किमि कैसे।
जस-जैसा। भा हो गया है। मोरा - मेरा। झोरा - झकझोरना। तरिवर वृक्ष। झरै - झड़ता है।
बन - वन, जंगल, वृक्ष। भइ हो जाती है। अनपत बिना पत्तों के। फर फल। साखा - शाखा, टहनी।
बनाफति वनस्पति। हुलासू-उत्साह। दून दूना, दुगुना। फाग- होली का उत्सव। रातिहु रात।
कंत-पति। हुलास- उत्साह। मो - मुझसे। चांचरी - स्वाँग, परस्पर रंग डालना। जोरी-जोड़ी।
जहँ-जहाँ। पाउ-पांव, कहँ - कहते हैं। रोस - रोष, गुस्सा।
प्रसंग - प्रस्तुत पद्यावतरण हमारी हिंदी की पाठ्य-पुस्तक 'अंतरा' भाग-2 में संकलित
मलिक मुहम्मद जायसी की रचना 'पद्मावत' काव्य ग्रंथ के 'नागमती वियोग खंड' के 'बारहमासा'
से उद्धृत है। इस काव्यांश में रानी नागमती की फागुन मास की विरह दशा का वर्णन किया
गया है।
व्याख्या- जायसी जी फाल्गुन माह में पति वियोग से व्यथित नागमती की मनोदशा को वर्णित करते हुए कह
रहे हैं कि फागुन माह में बहने वाली हवा ने ठंड को चार गुना बढ़ा दिया है, जिसे नागमती
सहन नहीं कर पा रही है। नागमती का शरीर सूखकर पत्ते के समान हो गया है जिसे विरह वेदना
ने झकझोर दिया है।
तिनके गिर रहे हैं तथा फूल खिल रहे हैं। वनस्पतियों में उत्साह
है अर्थात् अब वातावरण में हर प्रकार के फूल वनस्पतियां इत्यादि पुष्पित पल्लवित होने
लगे हैं, परन्तु नागमती के मन- मानस में उदासी व्याप्त है।
होली का उत्सव आ रहा है। लोग एक दूसरे को रंग लगाने को आतुर
हैं लेकिन नागमती बेरंग व उदास व अकेली है। विरह वेदना से जल रही नागमती शोक व रोष
का अनुभव कर रही है। रात-दिन विलाप करके प्रियतम के आगमन की प्रतीक्षा कर रही है।
नागमती दुःख की पराकाष्ठा में पहुंचकर कहती है कि उसका शरीर
जलाकर राख कर दिया जाए तथा राख को उस मार्ग में फैला दिया जाए जहां से होकर उसके पति
गुजरे अथवा उनके पांव पड़ें हों।
विशेष इस काव्यांश में रानी नागमती की विरह वेदना का मार्मिक
चित्रण किया गया है। भाषा अवधी है। शैली उदाहरण और चित्रात्मक है। वियोग रस है। दोहा
चौपाई छंद है अतिशयोक्ति अलंकार है एवं शैली मशनवी है। कविता की भाषा काव्यात्मक, लयात्मक,
तथा भावानुरूप है। इस कविता में सजीवता विद्यमान है।
प्रश्न उत्तर :-
प्रश्न: 1. अगहन मास की विशेषता बताते हुए
विरहिणी (नागमती) की व्यथा-कथा का चित्रण अपने शब्दों में कीजिए।
अगहन मास में दिन छोटे हो जाते हैं और रातें बड़ी हो जाती
हैं। नागमती के लिए यह परिवर्तन बहुत कष्टप्रद है क्योंकि दिन तो जैसे-तैसे कट जाता
है परन्तु रात नहीं कट पाती। रात में उसे रह-रहकर प्रिय की याद सताती है। वह घर में
अकेली होती है। अतः यह स्थिति उसे वियोग के चरम तक ले जाती है। उसकी स्थिति ऐसे ही
है जैसे दीपक की बाती। दीपक की बाती पूरी रात जलती रहती है। नागमती भी वैसी ही विरहाग्नि
में जल रही है। अगहन मास की ठंड जमाने वाली होती है। नागमती के हृदय को तो यह ठंड कंपा
रही है। वह सोचती है कि यदि उसके पति उसके साथ होते, तो वह इस ठंड को भी झेल जाती।
परन्तु उनकी अनुपस्थिति इसके बल को दोगुना किए जा रही है। वह यही सोचकर व्याकुल हो
रही है। स्त्रियाँ पति की उपस्थिति में बनाव-शिंगार करने में लगी रहती हैं परन्तु नागमति
के लिए यह बनाव शिंगार कष्टप्रद लग रहा है। उसके पति परदेश को गए हैं। अतः वह किसके
लिए यह बनाव-श्रृंगार करे। लोग शीत की मार से बचने के लिए स्थान- स्थान पर आग जलाकर
बैठे रहते हैं। परन्तु नागमती को तो विरह रूपी अग्नि अंदर-ही- अंदर जला रही है। नागमती
के लिए अगहन मास भी कुछ राहत नहीं देता है क्योंकि बाहर कितनी भी ठंड क्यों न हो परन्तु
विरहाग्नि अंदर रहकर उसे जला ही देती है।
प्रश्न - 2 जीयत खाइ मुएँ नहिं छाँड़ा' पंक्ति
के संदर्भ में नायिका की विरह-दशा का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर - नागमति का पति परदेश गया हुआ है। पति की अनुपस्थिति
उसे भयंकर लगती है। वह पति के वियोग में जल रही है। एक स्थान पर पति के वियोग से उत्पन्न
विरह को उसने बाज़ के रूप में चित्रित किया है। जिस तरह बाज़ अपने शिकार को नोच-नोचकर
खा जाता है, वैसे ही विरह रूपी बाज़ नागमती को जीवित नोच-नोचकर खा रहा है। उसे लगता
है, जैसे विरह रूपी बाज़ उसे अपना शिकार बनाने के लिए नज़र गड़ाए बैठा है। जो उचित
अवसर मिलते ही उसे नोचने लगता है। जब तक यह बाज़ उसे पूर्ण रूप से खा नहीं लेगा, तब
तक वह उसका पीछा नहीं छोड़ने वाला है। भाव यह है कि नागमति के लिए पति से अलग होने
की स्थिति बहुत ही कष्टप्रद है। विरहग्नि इतनी उग्र होती जा रही है कि इसका विपरीत
असर प्रत्यक्ष रूप में न दिखाई दे परन्तु अप्रत्यक्ष रूप में वह उसे लील रहा है। वह
चाहकर भी स्वयं को सांत्वना नहीं दे पा रही है। बस इस अग्नि में अकेले जल रही है।
प्रश्न - 3. माघ महीने में विरहिणी को क्या
अनुभूति होती है?
उत्तर - माघ के महीने में ठंड अपने विकराल रूप में विद्यमान
होती है। चारों और पाला अर्थात् कोहरा छाने लगता है। विरहिणी के लिए यह स्थिति भी कम
कष्टप्रद नहीं है। इसमें विरह की पीड़ा मौत के समान होती है। यदि पति की अनुपस्थिति
इसी तरह रही, तो माघ मास की ठंड उसे अपने साथ ही ले जाकर मानेगी। यह मास उसके मन में
काम की भावना को जागृत करता है। वह प्रियतम से मिलने को व्याकुल हो उठती है। इसी बीच
इस मास में होने वाली वर्षा उसकी व्याकुलता को और भी बड़ा देती है। वर्षा में भीगी
हुई नागमती को गीले वस्त्र तथा आभूषण तक तीर के समान चुभ रहे हैं। उसे बनाव-श्रृंगार
तक भाता नहीं है। प्रियतम के विरह में तड़पते हुए वह सूख कर कांटा हो रही है। उससे
ऐसा लगता है इस विरह में वह इस प्रकार जल रही है कि उसका शरीर राख के समान उड़ ही जाएगा।
प्रश्न - 4. वृक्षों से पत्तियाँ तथा वनों
से ढाँखें किस माह में गिरते हैं? इससे विरहिणी का क्या संबंध है?
उत्तर- फागुन मास के समय वृक्षों से पत्तियाँ तथा वनों से
ढाँखें गिरते हैं। विरहिणी के लिए यह माह बहुत ही दुख देने वाला है। चारों ओर गिरती
पत्तियाँ उसे अपनी टूटती आशा के समान प्रतीत हो रही हैं। हर एक गिरता पत्ता उसके मन
में विद्यमान आशा को धूमिल कर रहा है कि उसके प्रियतम शीघ्र ही आएँगे। पत्तों का पीला
रंग उसके शरीर की स्थिति को दर्शा रहा है। जैसे अपने कार्यकाल समाप्त हो जाने पर पत्ते
पीले रंग के हो जाते हैं, वैसे ही प्रियतम के विरह में जल रही नायिका का रंग पीला पड़
रहा है। अतः फागुन मास उसे दुख को शांत करने के स्थान पर बड़ा ही रहा है। फागुन के
समाप्त होते-होते वृक्षों में नई कोपलों तथा फूल आकर उसमें पुनः जान डालेंगे। परन्तु
नागमती के जीवन में सुख का पुनः आगमन कब होगा यह कहना संभव नहीं है।
प्रश्न 5-निम्नलिखित पंक्तियों की व्याख्या
कीजिए-
(क) पिय सौं कहेहु सँदेसड़ा, ऐ भँवरा ऐ काग। सो धनि बिरहें
जरि मुई, तेहिक धुआँ हम लाग।
(ख) रकत ढरा माँसू गरा, हाड़ भए सब संख। धिन सारस होई ररि
मुई, आइ समेटहु पंख।
(ग) तुम्ह बिनु कंता धनि हरुई, तन तिनुवर भा डोल।
तेहि पर बिरह जराई कै,
चहै उड़ावा झोल ।।
(घ) यह तन जारौं छार कै, कहौं कि पवन उड़ाउ।
मकु तेहि मारग होई परौं,
कंत धरैं जहँ पाउ।।
उत्तर (क) दुखी नागमती भौरों तथा कौए से अपने प्रियतम के
पास संदेशा ले जाने को कहती है। उसके अनुसार वे उसके विरह का हाल शीघ्र ही जाकर उसके
प्रियतम को बताएँ। प्रियतम के विरह में नागमती कितने गहन दुख भोग रही है इसका पता प्रियतम
को अवश्य लगा चाहिए। अतः वह उन्हें संबोधित करते हुए कहती है कि तुम दोनों वहाँ जाकर
प्रियतम को मेरी स्थिति बताना और कहना की तुम्हारी पत्नी विरह रूपी अग्नि में जलते
हुए मर गई है। उस अग्नि से उठने वाले काले धुएँ के कारण हमारा रंग भी काला पड़ गया
है।
(ख) प्रस्तुत पंक्तियों में नागमती अपने प्रियतम को अपनी
विरह रूपी दशा का वर्णन कर रही है। वह कहती है कि हे प्रियतम! तुमसे अलग होने पर मेरी
दशा बहुत ही खराब हो गई है। मैं तुम्हारे वियोग में इतना रोई हूँ कि मेरी आँखों से
आँसू रूप में सारा रक्त बाहर निकल गया है। इसी तरह तड़पते हुए मेरा सारा माँस भी गल
गया है और मेरी हड्डियाँ शंख के जैसे श्वेत दिखाई दे रही है। वह आगे कहती है कि तुम्हारा
नाम लेते-लेते में सारसों की जोड़ी के समान तड़प-तड़पकर मर गई हूँ। इस समय मैं मृत्यु
के समीप हूँ। अतः तुम शीघ्र आकर मेरे पंखों को समेट लो।
(ग) प्रस्तुत पंक्तियों में नागमती कहती है कि हे प्रियतम!
मैं तुम्हारे वियोग में सूखती जा रही हूँ। मेरी स्थिति तिनके के समान हो गई है। अर्थात्
में कमज़ोर हो गई हूँ। मैं इतनी दुर्बल हो गई हूँ कि मेरा शरीर वृक्ष के समान हिलने
लगता है। अर्थात् जिस प्रकार वृक्ष हवा के झोंके से ही हिलने लगता है, इसी प्रकार में
कमज़ोर होने के कारण हिल जाती हूँ। इस पर भी यह विरहग्नि मुझे राख बनाने को व्यग्र
है तथा मेरे तन की राख को भी उड़ा दिए जा रहा है।
(घ) नागमती अपने मन के दुख को व्यक्त करते हुए कहती है कि
मैं स्वयं के तन को विरहग्नि में जलाकर भस्म कर देना चाहती हूँ। इस तरह मेरा शरीर राख
का रूप धारण कर लेगा और पवन मेरे शरीर को उड़ाकर मेरे प्रियतम के रास्ते में बिखेर
देगी। इस प्रकार मार्ग में चलते हुए अपने पति का में राख रूप में स्पर्श पा जाऊँगी।
प्रश्न 6: प्रथम दो छंदों में से अलंकार छाँटकर
लिखिए और उनसे उत्पन्न काव्य-सौंदर्य पर टिप्पणी कीजिए।
पहला पद- यह दुःख दगध न जानै कंतू। जोबन जरम करै भसमंतू।
प्रस्तुत पद की भाषा अवधी। शब्दों का इतना सटीक वर्णन किया
है कि भाषा प्रवाहमयी और गेयता के गुणों से भरी है। भाषा सरल और सहज है। इसमें 'दुःख
दगध' तथा 'जोबर जर' में अनुप्रास अलंकार है। वियोग से उत्पन्न विरह को बहुत मार्मिक
रूप में वर्णन किया गया है। विरहणि के दुख की तीव्रता पूरे पद में दिखाई देती है।
दूसरा पद- बिरह बाढ़ि भा दारुन सीऊ। कँपि-कँपि मरौं लेहि
हरि जीऊ।
प्रस्तुत पद की भाषा अवधी है। शब्दों का इतना सटीक वर्णन
किया गया है कि भाषा प्रवाहमयी और गेयता के गुणों से भरी है। भाषा सरल और सहज है।
'बिरह बाढ़ि' में अनुप्रास अलंकार है। 'कँपि-कँपि' में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
पूस के माह में ठंड की मार का सजीव वर्णन किया गया है।
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. 'अब धनि देवस बिरह भा राती' का क्या
तात्पर्य है?
उत्तर : शीत ऋतु में दिन छोटे हो जाते हैं और
रातें लम्बी हो जाती हैं। अगहन का
महीना आ जाने से शीत ऋतु का प्रारम्भ हो गया है और दिन छोटे तथा रातें बड़ी होने लगी
हैं। विरहिणी नागमती भी विरह के कारण दुर्बल होती जा रही है किन्तु उसका विरह बढ़ता
जा रहा है। इसीलिए वह कहती है कि अब यह स्त्री (नागमती) तो दिन की तरह छोटी (अर्थात्
दुर्बल) होती जा रही है किन्तु इसका विरह सर्दी की रातों की तरह लम्बा हो रहा है अर्थात्
बढ़ता जा रहा है।
प्रश्न 2. 'यह तन जारौं...... जहँ पाऊ' में
विरहिणी नागमती क्या आकांक्षा व्यक्त करती है?
उत्तर : विरहिणी नागमती की आकांक्षा है कि मैं अपने शरीर
को जलाकर राख कर दूँ और फिर पवन से यह अनुरोध करूँ कि हे पवन! तू इस राख को उड़ाकर
इधर-उधर बिखेर दे। शायद यह राख उस मार्ग पर उड़कर जा गिरे जहाँ मेरा प्रियतम अपने चरण
रखेगा। मरकर भी नागमती प्रिय के चरणों में राख बनकर गिरना चाहती है। यह आकांक्षा उसके
प्रबल पति-प्रेम की परिचायक है।
प्रश्न 3. जायसी द्वारा रचित 'बारहमासा' के
काव्य-सौन्दर्य पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर : जायसी ने अपने महाकाव्य 'पद्मावत' में रानी नागमती
के विरह का वर्णन किया है। उसके विरह की प्रबलता तथा व्यापकता को प्रकट करने के लिए
कवि ने वर्ष के बारह महीनों में उसका वर्णन किया है। श्रृंगार रस के वर्णन में वर्ष
के बारह महीनों के वर्णन को बारहमासा कहते हैं। इस अंश में कवि ने नागमती के विरह के
वर्णन के लिए अतिशयोक्ति .. अलंकार की सहायता ली है। यत्र-तत्र यह वर्णन ऊहात्मक भी
है। कवि ने दोहा तथा चौपाई छन्दों को अपनाया है और अवधी भाषा का प्रयोग किया है। प्रस्तुत
अंश 'पद्मावत' के प्रभावशाली भागों में गिना जाता है।
प्रश्न 4. अगहन देवस घटा निसि बाढ़ी। दूभर
दुख सो जाड़ मिमि काढ़ी।। - पंक्तियों का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर : कवि नागमती के वियोग का वर्णन
करते हुए कह रहे हैं कि अगहन आते
ही दिन छोटा होने लगता है, जिसके कारण रात और भी लंबी हो जाती है। यह लंबी रात काटना
और भी मुश्किल हो जाता है और नागमती को बहुत कष्ट देता है।
प्रश्न 5. अब धनि देवस बिरह भा राती। जरै बिरह
ज्यों दीपक बाती ।। पंक्तियों का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर : कवि नागमती के वियोग के कष्ट को बता रहे हैं और कहते
हैं कि रात बड़ी होने की वजह से उसे काटना मुश्किल हो गया था।
लेकिन ऐसा लगता है कि अब यह छोटा दिन भी काटना मुश्किल हो
जायेगा। नागमती के विरह की अग्नि अब भी दीपक की भाँति जल रही है।
प्रश्न 6. काँपा हिया जनावा सीऊ।
तौ पै जाइ होई सँग पीऊ ।।
पंक्तियों का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर : इस पंक्ति में कवि कहते हैं कि इस दर्द-भरी सर्दी
में नागमती का हृदय भी पति के वियोग में काँपने लगा है। यह सर्दी भी उन पर असर नहीं
करती जो अपने प्रियतम के साथ हैं अर्थात् जिनके जीवनसाथी उनके साथ हैं।
प्रश्न 7. पिय सौं कहेहु सँदेसड़ा, ऐ भँवरा
ऐकाग।
सो धनि बिरहें जरि मुई, तेहिक धुआँ हम लाग।।
पंक्तियों का आशय स्पष्ट कीजिए।।
उत्तर : कवि कहते हैं कि नागमती इतनी ज्यादा दुखी हो गई है
कि वह भँवरे और काग (कौवा) के माध्यम से अपने प्रिय को संदेश देना चाहती है। संदेश
देते हुए वह कहती है कि जाओ कह दो, तुम्हारी विरह के अग्नि में तुम्हारी पत्नी जल रही
है। उसकी अग्नि से उठते धुएँ से ही हम काले हो गए हैं।
प्रश्न 8. "जीयत खाइ मएँ नहिं छाँडा'
पंक्ति के संदर्भ से नायिका की विरह-दशा का वर्णन करो।
उत्तर : नागमती के पति वियोग की तुलना इस पंक्ति में बाज़
से की गयी है। जिस तरह से बाज़ अपने भोजन को कुरेदता है और उसे खाता है, उसी तरह यह
वियोग भी नागमती को खुरच कर खा रहा है। जिस प्रकार चील अपने शिकार पर नजर गड़ाए बैठी
है, उसी प्रकार वियोग भी उन पर बैठा है। यह वियोग प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से दिखाई
नहीं दे रहा है लेकिन आंतरिक रूप से उसे खा रहा है।
प्रश्न 9. माघ के महीने में विरहिणी को क्या
लगता है?
उत्तर : माघ महीने में ठंड अपने चरम पर रहती है। चारों तरफ
कोहरा फैलने लगता है। यह स्थिति बिरहिणी के लिए कष्टप्रद है। इसमें विरह की पीड़ा मृत्यु
के समान है। अगर पति वापस नहीं आया, तो यह ठंड उसे खा जाएगी। माघ में प्रिय से मिलने
की उसकी व्याकुलता बढ़ती है। बारिश में भीगे हुए गीले कपड़े और आभूषण तीर की तरह चुभते
हैं। उसे पता चलता है कि इस आग में जलने से उसका शरीर राख की तरह उड़ जाएगा।
प्रश्न 10. रकत ढरा माँसू गरा, हाड़ भए सब
संख।
धनि सारस होई ररि मुई, आइ समेटहु पंख।
पंक्तियों का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर : इन पंक्तियों में नागमती अपने प्रेमी से अपनी स्थिति
का वर्णन कर रही है। वह कहती है कि मेरी स्थिति आपके वियोग में बिगड़ गई है। मैं इतना
रोती हूँ कि मेरी आँखों से आँसुओं की जगह खून बहता है। वह कहती है कि तुम्हारे वियाग
में मैं सारसों के जोड़ी की तरह मर रही हूँ, तुम आओ और मेरे पंखों को समेट लो।
प्रश्न 11. मलिक मुहम्मद जायसी का साहित्यिक
परिचय लिखिए।
उत्तर : साहित्यिक परिचय- भाव-पक्ष- जायसी सूफी काव्यधारा के प्रमुख कवि हैं। भक्तिकाल
की निर्गुणधारा काव्यधारा को प्रेमाख्यानक काव्य परम्परा या प्रेममार्गी काव्यधारा'
भी कहा जाता है। जायसी का 'पद्मावत' इसी काव्यधारा के अन्तर्गत आने वाला श्रेष्ठतम
महाकाव्य है। लौकिक कथा के माध्यम से जायसी ने अलौकिक प्रेम का आभास इस काव्य-ग्रन्थ
में कराया है। रत्नसेन जीवात्मा का तथा. द्मावती परमात्मा का प्रतीक है अतः रत्नसेन
का पद्मावती के प्रति प्रेम वस्तुतः जीवात्मा का परमात्मा के प्रति प्रेम प्रतीत होने
लगा है।
कला-पक्ष फारसी की मसनवी शैली में रचित 'पदमावत' की रचना
दोहा चौपाई शैली में तथा अवधी भाषा में हुई है। इस कथा का पूर्वार्द्ध काल्पनिक और
उत्तरार्द्ध ऐतिहासिक घटनाओं से युक्त है। उनकी काव्य शैली प्रौढ़ और गम्भीर है। 'पद्मावत'
में वस्तु वर्णन की प्रधानता है, लोकजीवन का व्यापक चित्रण है। अलंकारों का सुन्दर
प्रयोग है। जायसी हिन्दी काव्य में अपने वियोग वर्णन के लिए विख्यात हैं।
कृतियाँ
(1) पद्मावत, (2) अखरावट, (3) आखिरी कलाम।
अति लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. रानी नागमती किसके वियोग में व्याकुल
थी?
उत्तर : रानी नागमती राजा रत्नसेन के वियोग में व्याकुल थी।
प्रश्न 2. 'बारहमासा' में नागमती का वियोग-
वर्णन किस माह से प्रारंभ हुआ है?
उत्तर : 'बारहमासा' में नागमती का वियोग- वर्णन अगहन माह
से प्रारंभ हुआ है।
प्रश्न 3. अगहन मास में नागमती अपने प्रिय
को संदेश किसके माध्यम से भिजवाती है?
उत्तर : अगहन मास में नागमती अपने प्रिय को संदेश भौरे और
कौए के माध्यम से भिजवाती है।
प्रश्न 4. नागमती रूपी. वियोगी पक्षी के लिए
शीतकाल कैसा बन गया है?
उत्तर : नागमती रूपी वियोगी पक्षी के लिए शीतकाल शिकारी पक्षी
बाज बन गया है।
प्रश्न 5. फागुन महीने में सखियाँ क्या कर
रही हैं?
उत्तर : फागुन महीने में सखियाँ चाँचरि नृत्य कर रही हैं।
6. पराजा रत्नसेन, पद्मावती, हीरामन तोता और
राघव चेतन किसके प्रतीक हैं?
उत्तर - राजा रत्नसेन जीवात्मा का, पद्मावती परमात्मा का,
हीरामन तोता गुरु का और राघव चेतन शैतान का प्रतीक है।
प्रश्न 7. कविता 'बारहमासा' में नागमती के
कितने माह के वियोग का वर्णन है?
उत्तर : कविता 'बारहमासा' में नागमती के चार माह के वियोग
का वर्णन किया गया है।
प्रश्न 8. बारहमासा कविता कहाँ से ली गई है?
उत्तर : 'बारहमासा' कविता मलिक मुहम्मद जायसी द्वारा रचित
महाकाव्य 'पद्मावत' के 'नागमती वियोग खंड' से ली गयी है।
प्रश्न 9. इस कविता में किसका वर्णन किया गया
है?
उत्तर : इस कविता में राजा रत्नसेन के वियोग में संतृप्त
रानी नागमती की विरह व्यथा का वर्णन किया गया है। 'नागमती वियोग खंड' में साल के विभिन्न
महीनों के वियोग का वर्णन किया गया है।
प्रश्न 10. कविता 'बारहमासा' में नागमती के
जिन चार महीनों के वियोग का वर्णन है, उनके नाम लिखो।
उत्तर : अगहन, पूस, माघ और फागुन आदि चार माह का वर्णन है।
11. राजा रत्नसेन, पद्मावती, हीरामन तोता और राघव चेतन किसके प्रतीक
हैं?
उत्तर
- राजा रत्नसेन जीवात्मा का, पद्मावती परमात्मा का, हीरामन तोता गुरु का और राघव चेतन
शैतान का प्रतीक है।
प्रश्न उत्तर :-
प्रश्न - 1. जायसी का जन्म कहां हुआ था?
(क)
मुंगेर बिहार
(ख)
तुगलकाबाद दिल्ली
(ग) अमेठी उत्तर प्रदेश
(घ)
अजमेर राजस्थान
3 प्रश्न- जायसी किस प्रकार की शाखा से संबंधित थे?
(क) सूफी प्रेममार्गी
(ख)
ज्ञानमार्गी
(ग)
सगुण भक्ति
(घ)
निर्गुण भक्ति
4 प्रश्न- जायसी कृत 'पद्मावत' किस प्रकार का काव्य है।
(क)
भक्ति
(ख)
दासता
(ग) प्रेमाख्यान
(घ)
उपरोक्त में से कोई नहीं
5 प्रश्न- जायसी कृत पद्मावत' में सिंघल देश की राजकुमारी का क्या नाम
था?
(क)
देवसेना
(ख)
रानी सिंगला
(ग)
चंद्रकांता
(घ) पद्मावती
6
प्रश्न- जायसी कृत साहित्य'पद्मावत' का नायक कौन है?
(क) रतनसेन
(ख)
वीरसे
(ग)
पद्मावत
(घ)
जायसी
7 प्रश्न- आखिरी कलाम' किसकी रचना है?
(क) मलिक मोहम्मद जायसी
(ख)
विद्यापति
(ग)
पद्माकर
(घ)
आमिर खुसरो
8 प्रश्न- जायसी को किस साहित्य से विशेष प्रसिद्धि प्राप्त हुई?
(क)
आखिरी कलाम
(ख)
अखरावट
(ग)
भक्ति सागर
(घ) पद्मावत
9 प्रश्न- 'बारहमासा' किस प्रबंध काव्य का अंश है?
(क)
नागमत
(ख)
मानस
(ग) पद्मावत
(घ)
जायसी ग्रंथ
10 प्रश्न- बारहमासा में नायक नायिका का सही विकल्प चुनिए?
(क)
पद्मावती - नागमती
(ख)
नागमती रतन सेन
(ग)
रतन सेन पद्मावती
(घ) नागमती - जायसी
11 प्रश्न- हिंदी महीने में कितने मास होते हैं?
(क)
11
(ख) 12
(ग)
5
(घ)
7
12 प्रश्न- नागमती विरह अग्नि में क्यों जल रही है?
(क)
मां बाप ने त्याग कर दिया है
(ख)
नागमती की शादी नहीं हो रही
(ग)
कौवा और भंवरे की प्रतीक्षा में
(घ) पति छोड़ कर चला गया है
13 प्रश्न- 'पद्मावत' किस प्रकार का कार्य है?
(क)
महाकाव्य
(ख)
उपन्यास
(ग)
कविता
(घ) प्रबंध काव्य
14 प्रश्न- नागमती के बिरहा अग्नि से कौन काला हो गया है?
(क) कौवा भंवरा
(ख)
दिल
(ग)
आंख
(घ)
बादल
15 प्रश्न- फिरै - फिरै, सुरगि-सुलगि में कौन सा अलंकार है?
(क)
रूपक अलंकार
(ख)
उत्प्रेक्षा अलंकार
(ग)
यमक अलंकार
(घ) पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार
16 प्रश्न- 'जरै विरह ज्यों दीपक बाती' में कौन सा अलंकार है?
(क)
यमक अलंकार
(ख) रूपक अलंकार
(ग)
मानवीकरण अलंकार
(घ)
अनुप्रास अलंकार
17 प्रश्न- किस माह में कौवा और भंवरे का प्रसंग है ?
(क) अगहन
(ख)
पौष
(ग)
माघ
(घ)
फागुन
18 प्रश्न- 'सुपेती' शब्द का उचित विकल्प चुने?
(क)
अकेलापन
(ख)
विरह
(ग) हल्की
(घ)
नजदीक
19 प्रश्न- पूस की रात में मौसम कैसा होता है?
(क)
बरसात का
(ख)
गर्मी का
(ग)
वसंत ऋतु का
(घ) ठंड का
20 प्रश्न- कंप-कंपि में कौन सा अलंकार है?
(क)
अनुप्रास
(ख)
रूपक
(ग) पुनरुक्ति
(घ)
मानवीकरण
21 प्रश्न- 'चकई' के लिए उचित विकल्प चुने?
(क)
जानवर
(ख)
निर्जीव
(ग)
सजीव
(घ) पक्षी
22 प्रश्न- नागमती को पूस की रात अधिक कष्टदायक क्यों लग रही है?
(क)
अधिक ठंड होने के कारण
(ख)
वस्त्र ना होने के कारण
(ग) प्रियतम के पास ना होने के कारण
(घ)
उपरोक्त सभी
23 प्रश्न- 'तेहि जल अंग लाग सर चीरु' में कौन सा अलंकार है?
(क)
यमक
(ख)
उत्प्रेक्षा
(ग) रूपक
(घ)
पुनरुक्ति
24 प्रश्न- 'तँ सो भंवर मोर जोबन फुलू' में प्रयुक्त उचित अलंकार का
चयन करें?
(क) उपमा
(ख)
रूपक
(ग)
अनुप्रास
(घ)
मानवीकरण
प्रश्न -25. पाला किस मौसम में पड़ता है?
(क)
गर्मी में
(ख)
बरसात में
(ग)
बसंत में
(घ) सर्दी में
JCERT/JAC REFERENCE BOOK
Hindi Elective (विषय सूची)
भाग-1 | |
क्रं.सं. | विवरण |
1. | |
2. | |
3. | |
4. | |
5. | |
6. | |
7. | |
8. | |
9. | |
10. | |
11. | |
12. | |
13. | |
14. | |
15. | |
16. | |
17. | |
18. | |
19. | |
20. | |
21. | |
भाग-2 | |
कं.सं. | विवरण |
1. | |
2. | |
3. | |
4. |
JCERT/JAC Hindi Elective प्रश्न बैंक - सह - उत्तर पुस्तक (Question Bank-Cum-Answer Book)
विषय सूची
अंतरा भाग 2 | ||
पाठ | नाम | खंड |
कविता खंड | ||
पाठ-1 | जयशंकर प्रसाद | |
पाठ-2 | सूर्यकांत त्रिपाठी निराला | |
पाठ-3 | सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय | |
पाठ-4 | केदारनाथ सिंह | |
पाठ-5 | विष्णु खरे | |
पाठ-6 | रघुबीर सहाय | |
पाठ-7 | तुलसीदास | |
पाठ-8 | मलिक मुहम्मद जायसी | |
पाठ-9 | विद्यापति | |
पाठ-10 | केशवदास | |
पाठ-11 | घनानंद | |
गद्य खंड | ||
पाठ-1 | रामचन्द्र शुक्ल | |
पाठ-2 | पंडित चंद्रधर शर्मा गुलेरी | |
पाठ-3 | ब्रजमोहन व्यास | |
पाठ-4 | फणीश्वरनाथ 'रेणु' | |
पाठ-5 | भीष्म साहनी | |
पाठ-6 | असगर वजाहत | |
पाठ-7 | निर्मल वर्मा | |
पाठ-8 | रामविलास शर्मा | |
पाठ-9 | ममता कालिया | |
पाठ-10 | हजारी प्रसाद द्विवेदी | |
अंतराल भाग - 2 | ||
पाठ-1 | प्रेमचंद | |
पाठ-2 | संजीव | |
पाठ-3 | विश्वनाथ तिरपाठी | |
पाठ- | प्रभाष जोशी | |
अभिव्यक्ति और माध्यम | ||
1 | ||
2 | ||
3 | ||
4 | ||
5 | ||
6 | ||
7 | ||
8 | ||
Class 12 Hindi Elective (अंतरा - भाग 2)
पद्य खण्ड
आधुनिक
1.जयशंकर प्रसाद (क) देवसेना का गीत (ख) कार्नेलिया का गीत
2.सूर्यकांत त्रिपाठी निराला (क) गीत गाने दो मुझे (ख) सरोज स्मृति
3.सच्चिदानंद हीरानंद वात्सयायन अज्ञेय (क) यह दीप अकेला (ख) मैंने देखा, एक बूँद
4.केदारनाथ सिंह (क) बनारस (ख) दिशा
5.विष्णु खरे (क) एक कम (ख) सत्य
6.रघुबीर सहाय (क) वसंत आया (ख) तोड़ो
प्राचीन
7.तुलसीदास (क) भरत-राम का प्रेम (ख) पद
8.मलिक मुहम्मद जायसी (बारहमासा)
11.घनानंद (घनानंद के कवित्त / सवैया)
गद्य-खण्ड
12.रामचंद्र शुक्ल (प्रेमघन की छाया-स्मृति)
13.पंडित चंद्रधर शर्मा गुलेरी (सुमिरिनी के मनके)
14.ब्रजमोहन व्यास (कच्चा चिट्ठा)
16.भीष्म साहनी (गांधी, नेहरू और यास्सेर अराफात)
17.असगर वजाहत (शेर, पहचान, चार हाथ, साझा)
18.निर्मल वर्मा (जहाँ कोई वापसी नहीं)
19.रामविलास शर्मा (यथास्मै रोचते विश्वम्)
21.हज़ारी प्रसाद द्विवेदी (कुटज)
12 Hindi Antral (अंतरा)
1.प्रेमचंद = सूरदास की झोंपड़ी