10. रामचंद्रचंद्रिका
जीवन
परिचय
1
केशवदा
2
जन्म- सन् 1555 ई.
मृत्यु
-
सन् 1617 ई.
3.
रचनाएँ:- रसिक प्रिया, कविप्रिया, रामचन्द्र चंद्रिका, वीरसिंह देवचरित,
विज्ञान गीता, जहांगीर जसचंद्रिका, रतनबावनी ।
4.
साहित्यिक परिचय- भाव-पक्ष-केशवदास की रचनाओं में उनके तीन रूप
मिलते हैं आचार्य, महाकवि और इतिहासकार। आचार्य होने के कारण वह संस्कृत की शास्त्रीय
पद्धति को हिन्दी में लाने के लिए प्रयासरत थे। उन्होंने रीति ग्रन्थों की रचना की।
केशव ने रामकथा को लेकर काव्य रचना की है। केशव के काव्य में नाटकीयता है तथा उनकी
संवाद-योजना अत्यन्त सशक्त और प्रभावशाली है।
5.
कला-पक्ष - केशव ने ब्रजभाषा में रचनाएँ की हैं। उनकी भाषा में कोमलता
और स्थान पर क्लिष्टता पाई जाती है। उनको रीतिकाल का प्रवर्तक माना जाता है। उनके काव्य
में शब्दों के चमत्कार पर अधिक बल दिया गया है अतः उनके काव्य में सहृदयता तथा मधुरता
का अभाव है। काव्य में क्लिष्टता के कारण उनको कठिन काव्य का प्रेत' कहा जाता है। केशव
के काव्य में संवाद-योजना अत्यन्त प्रभावशाली है। केशव ने अपने काव्य में विविध छन्दों
का प्रयोग किया है।
पाठ परिचय
1.
'रामचन्द्र चन्द्रिका' केशवदास के द्वारा रामकथा पर रचित महाकाव्य है जिसके तीन छन्द
यहाँ संकलित हैं।
2.
पहला छन्द 'दंडक' छन्द है जिसमें कवि ने मंगलाचरण के रूप में माता सरस्वती की वन्दना
की है। माता सरस्वती की उदारता और महिमा का वर्णन ऋषि, मुनि, देवता भी नहीं कर पाते
क्योंकि उनमें इतनी अधिक विशेषताएँ हैं कि कोई उसका पूरा वर्णन कर ही नहीं सकता।
3.
दूसरे छन्द में पंचवटी की महिमा का वर्णन किया गया है। राम ने लक्ष्मण और सीता के साथ
यहीं 'पंचवटी में' वनवास का अधिकांश. समय व्यतीत किया था। पंचवटी को गुणों में धूर्जटी
(अर्थात् शिव) के समान बताया गया है। यहाँ रहने वाले व्यक्ति को अनायास ही मुक्ति
(मोक्ष) प्राप्त हो जाती है। यह सवैया छन्द है।
4.
तीसरे छन्द में कवि ने अंगद के द्वारा राम और रावण की तुलना करते हुए यह बताया है कि
राम के आगे रावण अत्यन्त तुच्छ है। रावण की सभा में पहुँचकर अंगद ने रावण से कहा कि
तुम मुझसे राम के बारे में पूछ रहे हो और कहते हो कि उनका क्या प्रताप है। उनके छोटे
से वानर हनुमान ने समुद्र पार कर लिया और तुम लक्ष्मण के द्वारा खींची गई 'धनुरेखा'
(धनुष के द्वारा खींची गई रेखा) तक पार न कर सके। तुमने हनुमान की पूँछ जलाने का प्रयास
किया पर तुम्झरी रुई और तेल तो जल गया, पूँछ न जली, हाँ तुम्हारी लंका अवश्य भस्म हो
गई। यह भी सवैया छन्द है। तीसरा सवैया अंगद रावण संवाद से लिया गया है।
सरस्वती वंदना
1.
बानी जगरानी की उदारता बखानी जाइ ऐसी मति उदित उदार कौन की भई।
देवता
प्रसिद्ध सिद्ध रिषिराज तपबृद्ध कहि कहि हारे सब कहि न काहू लई।
भावी
भूत बर्तमान जगत बखानत है 'केसोदास' क्यों हून बखानी काहू पै गई।
पति
बनें चारमुख, पूत बनैं पाँचमुख, नाती बनें षटमुख, तदपि नई नई।
शब्दार्थ
:
•
बानी = वाणी, वाग्देवी सरस्वती।
•
जगरानी = संसार की अधिष्ठात्री देवी।
•
उदारता = दयालुता (महिमा) ।
•
बखानी जाइ = वर्णित की जा सके।
•
मति = बुद्धि।
•
उदित = उत्पन्न।
•
कौन की = किसकी।
•
सिद्ध = सिद्ध पुरुष।
•
रिषिराज = ऋषिगण।
•
तपबृद्ध = तपस्वी।
•
हारे = थक गए (पराजित हो गए) ।
•
कहि न काहू लई कोई भी उनकी महिमा का वर्णन नहीं कर पाया।
•
भावी = भविष्य।
•
भूत = भूतकाल के।
•
बर्तमान = वर्तमान समय के।
•
जगत = संसार के लोग।
•
बखानत हैं = वर्णित करने का प्रयास करते हैं।
•
क्यों हू = किसी भी तरह।
•
न बखानी काहू पै गई किसी पर भी बखानी नहीं गई।
•
पति = ब्रह्मा जी जो चतुर्मुख (चार मुख वाले) हैं।
•
पूत = शिवजी जो पाँच मुख वाले हैं।
•
नाती = कुमार स्कंद जो षडानन (छः मुख वाले) हैं।
•
षटर्मुख = षडानन।
•
तदपि = फिर भी।
•
नई-नई = नित नवीन ।
संदर्भ
:-
प्रस्तुत पंक्तियाँ आचार्य कवि केशवदास द्वारा रचित महाकाव्य 'रामचन्द्र चन्द्रिका'
से ली गई हैं। इस छन्द को हमारी पाठ्य-पुस्तक 'अन्तरा भाग-2' में 'सरस्वती वंदना शीर्षक
के अन्तर्गत संकलित किया गया है।
प्रसंग
:
'रामचन्द्र चन्द्रिका' का प्रारम्भ करते समय कवि ने मंगलाचरण के रूप में माता सरस्वती
की महिमा और उदारता का बखान किया है। कवि का मानना है कि माँ सरस्वती की महिमा और उदारता
का वर्णन ऋषि, मुनि देवता तक नहीं कर सके तो भला मैं कैसे उस उदारता का पूर्ण बखान
कर पाऊँगा।
व्याख्या:
कवि केशवदास सरस्वती की वन्दना करते हुए कहते हैं कि संसार में इतनी प्रखर बुद्धि भला
किसकी है जो जगत की पूज्य वाग्देवी सरस्वती की उदारता का वर्णन कर सके। सभी बड़े-बड़े
देवता तथा तपोवृद्ध ऋषि भी उनके गुणों की प्रशंसा करते-करते थक गये, पर कोई भी उनके
गुणों का पूर्णतः वर्णन न कर सका। यद्यपि उनकी महिमा का वर्णन भूतकाल के लोगों ने अपनी
सामर्थ्य भर किया है, वर्तमान के लोग अपनी पूर्ण बुद्धि से कर रहे हैं और भविष्य काल
के मनुष्य भी उनकी प्रशंसा करते रहेंगे, फिर भी उनके गुणों का पूर्णतः वर्णन न हो सकेगा।
केशवदास
जी कहते हैं कि संसार के कवियों की तो सामर्थ्य ही क्या है जो उनकी प्रशंसा कर सकें।
उनके गुणों के पूर्ण जानकार उनके निकट सम्बन्धी भी उनकी प्रशंसा करने में असमर्थ रहे
हैं। उनके पति ब्रह्मा अपने चारमुखों से, पुत्र महादेव जी अपने पाँचमुखों से तथा पौत्र
(शिव के पुत्र) षडानन अपने षट मुखों से उनके गुणों की प्रशंसा करते रहे हैं। फिर भी
कुछ न कुछ नई विशेषता उनसे कहने को छूट ही गयी है।
विशेष
:
1.
योग्य को भी जहाँ अयोग्य ठहरा दिया जाय वहाँ सम्बन्धातिशयोक्ति अलंकार होता है। ब्रह्मा,
शिव, कार्तिकेय भी वाग्देवी सरस्वती की महिमा और उदारता का बखान नहीं कर पाते फिर भला
मैं कैसे कर सकता हूँ यही कवि कहना चाहता है। 'नई-नई' में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है।
2.
कवित्त छन्द का प्रयोग है। इसे केशव ने 'दंडक' छन्द कहा है।
3.
ब्रजभाषा का प्रयोग है।
4.
एक पौराणिक मान्यता के अनुसार ब्रह्मा जी को सरस्वती का पति, शिवजी को पुत्र और शिव
पुत्र कुमार कार्तिकेय को उनका नाती कहा गया है।
5.
ब्रह्मा जी ने चारमुखों से, शंकर ने पाँचमुखों से तथा षडानन (कुमार कार्तिकेय या स्कन्द)
ने षट् मुखों से उनकी महिमा और उदारता का वर्णन किया पर कोई भी पूरी तरह नहीं कर सका।
कवि यह कहना चाहता है कि माता सरस्वती की महिमा और उदारता अपरम्पार है जिसका वर्णन
कर पाना संभव नहीं है।
पंचवटी
वन वर्णन
2.
सब जाति फटी दुख की दुपटी कपटी न रहै जहँ एक घटी।
निघटी
रुचि मीचु घटी हूँ घटी जगजीव जतीन की छूटी तटी।
अघओघ
की बेरी कटी बिकटी निकटी प्रकटी गुरुज्ञान-गटी।
चहुँ
ओरनि नाचति मुक्तिनटी गुन धूरजटी वन पंचबटी।।
शब्दार्थ
:
•
दुख की दुपटी = दुख की चादर।
•
कपटी छल-कपट करने वाले।
•
एक घटी = घड़ी भर के लिए भी।
•
निघटी = समाप्त हो गई।
•
रुचि = इच्छा। मीचु = मृत्यु।
•
जगजीव = सांसारिक प्राणी।
•
जतीन = यतियों (संन्यासियों) ।
•
तटी = समाधि।
•
अघ-ओघ = पाप समूह।
•
बेरी = बेड़ी (पैरों में डाली जाने वाली बेड़ी)
•
बिकटी = विकट।
•
निकटी = निकट ही (पास में ही)।
•
प्रकटी = प्रकट हो जाती है।
•
गुरुज्ञान गटी = श्रेष्ठ ज्ञान की गठरी।
•
मुक्तिनटी = मुक्तिरूपी नर्तकी।
•
गुन = गुण।
•
धूरजटी = भगवान शंकर।
•
पंचबटी = वह वन जहाँ वनवास के समय राम रहे थे।
सन्दर्भ
:
प्रस्तुत छन्द केशवदास द्वारा रचित 'रामचन्द्र चन्द्रिका' से लिया गया है जिसे हमारी
पाठ्य-पुस्तक 'अन्तरा भाग-2' में संकलित किया गया है
प्रसंग
:
इस छन्द में कवि ने पंचवटी की महिमा का वर्णन चमत्कारपूर्ण ढंग से किया है। लक्ष्मण
जी पंच पूर्ण ढंग से किया है। लक्ष्मण जी पंचवटी की शोभा का वर्णन करते हुए उसे गुणों
में भगवान शंकर ने समान मुक्तिदायिनी बता रहे हैं। यहाँ मुक्तिरूपी नर्तकी सर्वत्र
नृत्य करती दिखाई देती है
व्याख्या:
लक्ष्मण जी कहने लगे कि यह पंचवटी नाम का वन शिवजी के समान गुणों वाला है। जिस प्रकार
शिवजी के दर्शनों से दुःख समाप्त हो जाता है, उसी प्रकार इस पंचवटी वन में आकर दुःखरूपी
चादर पूर्णरूप से फटी जा रही है। तात्पर्य यह है कि सभी दुःख नष्ट हुए जा रहे हैं।
कपटी लोग यहाँ एक घड़ी भी नहीं रह सकते। यहाँ आकर लोगों की इच्छाएँ समाप्त हो जाती
हैं तथा मृत्यु की घड़ी समाप्त हो जाती है अर्थात् मुक्ति मिल जाती है।
यहाँ
आकर संसार के जीवों और योगियों की समाधि छूट जाती है। यहाँ का प्राकृतिक सौन्दर्य इतना
मनमोहक है कि सभी लोग यहाँ आकर पंचवटी की शोभा देखने लगते हैं। यहाँ आकर पापों के समूह
की विकट बेडी कट जाती है तथा श्रेष्ठ ज्ञानरूपी गठरी समीप ही प्रकट हो जाती है। भाव
यह है कि पंचवटी में रहने वाले ऋषि-मुनियों की संगति से, उनके प्रवचनों को सुनकर पाप
समूह नष्ट हो जाता है और व्यक्ति को सहज में ही ज्ञान उपलब्ध हो जाता है। इसके चारों
ओर मुक्तिरूपी नर्तकी नाचती है। शिवजी के चारों ओर भी मुक्ति नाचती रहती है।
विशेष
:
1.
पंचवटी की महिमा का वर्णन किया गया है।
2.
'दुख की दुपटी', 'मुक्तिनटी', 'अघओघ की बेरी' तथा 'गुरुज्ञान गटी' में रूपक अलंकार
है, 'ट' वर्ण की अनेक बार आवृत्ति होने से अनुप्रास अलंकार है, निकटी प्रकटी, निघटी-घटी
में सभंगपदयमक अलंकार है।
3.
ब्रजभाषा का प्रयोग। पूरे. छन्द में व्यंजना का सौन्दर्य देखा जा सकता है।
4.
सवैया छन्द है। केशव ने इसमें कठोर वर्गों का प्रयोग किया है।
5.
यानि शब्द चमत्कार पर है इसलिए सरसता नष्ट हो गई है।
3.
सिंधु तर्यो उनको बनरा तुम पै धनुरेख गई न तरी।
बाँधोई
बाँधत सो न बन्यो उन बारिधि बाँधिकै बाट करी।
श्रीरघुनाथ-प्रताप
की बात तुम्हें दसकंठ न जानि परी।
तेलनि
तूलनि पूँछि जरी न जरी, जरी लंक जराइ-जरी।।
शब्दार्थ
:
•
सिंध तरयो = समुद्र पार कर गया।
•
उनको = श्रीराम का।
•
बनरा = छोटा-सा वानर (हनुमान जी)
•
धनुरेख = लक्ष्मण के द्वारा धनुष से खींची गई रेखा।
•
तुम पै = रावण पर।
•
न तरी = पार नहीं की जा सकी (लांघी नहीं जा सकी) ।
•
बाँधोई = बाँधने का प्रयास करने पर।
•
बाँधत सो न बन्यो आप उसे (हनुमान) बाँध नहीं पाए।
•
बारिधि = समुद्र को।
•
बाँधिकै = बाँध कर (पुल बनाकर) ।
•
बाट करी = रास्ता बना दिया।
•
श्रीरघुनाथ प्रताप = राम के प्रताप।
•
दसकंठ = दसमुख (रावण) ।
•
न जानि परी = समझ में न आई।
•
तूलनि = रुई।
•
पूँछि = पूँछ।
•
न जरी = नहीं जल पाई।
•
जरी लंक = जड़ाऊ लंका (हीरे मोती एवं नगों से जड़ी सोने की लंका) ।
•
जराइ जरी = जलाकर नष्ट कर दी।
सन्दर्भ
:
प्रस्तुत छन्द केशवदास द्वारा रचित 'रामचन्द्र चन्द्रिका' के 'अंगद रावण संवाद' से
लिया गया है। इसे हमारी पाठ्य-पुस्तक 'अन्तरा भाग-2' में 'रामचंद्रचंद्रिका' शीर्षक
से संकलित किया गया है।
प्रसंग: अंगद
जब रावण की सभा में पहुँचा तो रावण ने उससे पूछा कि तू कौन है? अंगद ने अपना परिचय
राम के दूत के रूप में दिया तब रावण कहने लगा कि ये राम कौन हैं ?
उनका
प्रताप क्या है? रावण के ऐसा कहने पर अंगद समझ गया कि यह राम को नीचा दिखाने के लिए
ऐसा कह रहा है। अतः उसी की भाषा में उत्तर देते हुए अंगद ने जो कहा, उसका वर्णन इस
छन्द में कवि ने किया है।
व्याख्या
- अंगद रावण से कहने लगा। तू राम के आगे कहीं नहीं ठहरता। कहाँ राम और कहाँ तू? देख,
उनका तो छोटा-सा वानर (हनुमान) इतने बड़े समुद्र को लांघकर लंका में आ धमका और तुम
धनुष की उस रेखा को भी नहीं लांघ पाए जो लक्ष्मण जी ने सीता की कुटी के चारों ओर खींच
दी थी। अब तू ही बता तेरी और उनकी क्या बराबरी? तुम लोगों ने अपनी पूरी शक्ति लगाकर
उनके वानर हनुमान को बाँधने का प्रयास किया, पर उसे बाँध नहीं पाए।
अब
भी तुम्हें श्री राम के प्रताप का बोध नहीं हुआ ? अरे रावण तुम तो दसकंठ कहे जाते हो,
तुम्हारे अन्दर तो ज्यादा बुद्धि होनी चाहिए थीं पर तुम दस सिरों वाले होकर भी मूर्ख
रहे जो मुझसे श्री राम के प्रताप के बारे में पूछ रहे हो। हनुमान की पूँछ को तेल और
रुई लगाकर तुम लोगों ने जलाने का पूरा प्रयास किया पर उसे नहीं जला पाए। हाँ, इस प्रयास
में तुम्हारी हीरे मोती से जड़ी सोने की लंका अवश्य जल गई। हे रावण! यह राम का ही तो
प्रताप है और तुम मुझसे पूछ रहे हो कि राम का प्रताप क्या है, क्या अब भी तुम्हें राम
का प्रताप समझ में नहीं आया।
विशेष
:
1.
केशवदास को रामचंद्रचंद्रिका में सर्वाधिक सफलता मिली है संवाद योजना में। अगंद- रावण
संवाद उनका सर्वश्रेष्ठ संवाद है।
2.
केशव के संवाद पात्रानुकूल हैं और व्यंजना सौन्दर्य से युक्त हैं। वे पात्रों के चरित्र
पर भी प्रकाश डालते हैं।
3.
बनरा से तात्पर्य है छोटा-सा वानर। यह कहकर अंगद रावण को आतंकित करना चाहता है। हनुमान
तो हमारी सेना का छोटा- सा वानर है।
4.
तेलनि तुलनि में छेकानुप्रास, जरी-जरी में यमक तथा दसकंठ में व्यंजना सौन्दर्य है।
5.
ब्रजभाषा का प्रयोग है।
प्रश्न- अभ्यास
प्रश्न 1. देवी सरस्वती की उदारता का गुणगान क्यों नहीं किया जा सकता?
उत्तर
: वाग्देवी सरस्वती की महिमा और उदारता का गुणगान करना इसलिए असंभव है क्योंकि वह अपरम्पार
है। बड़े-बड़े देवता, ऋषि और तपस्वी ही नहीं अपितु चतुर्मुख ब्रह्मा जी, पंचमुख महादेव
जी और षट्मुख कुमार कार्तिकेय भी उनकी महिमा का वर्णन नहीं कर सके तो भला एक मुख वाला
मनुष्य उनकी अपार महिमा का वर्णन कैसे कर सकता है।
प्रश्न 2. चारमुख, पाँचमुख और षटमुख किन्हें कहा गया है और उनका देवी
सरस्वती से क्या सम्बन्ध है?
उत्तर
: चारमुख वाले हैं ब्रह्मा जी, जिन्हें सरस्वती का पति कहा गया है। पाँचमुख वाले हैं-शिवजी,
जिन्हें सरस्वती का पुत्र कहा गया है और षट्मुख वाले हैं कुमार कार्तिकेय (स्कंद,
शिवजी के पुत्र) जिन्हें सरस्वती का नाती (पौत्र) कहा गया है।
प्रश्न 3. कविता में पंचवटी के किन गुणों का उल्लेख किया गया है?'
उत्तर
: पंचवटी गुणों में धूर्जटी (अर्थात् भगवान शिव) के समान है। यहाँ रहने वाले लोगों
के दुःख नष्ट हो जाते हैं और छल-प्रपंच भी नष्ट हो जाते हैं। यहाँ जो व्यक्ति निवास
करते हैं वे मृत्यु की इच्छा नहीं करते क्योंकि यहाँ सब प्रकार के सुख ही सुख हैं।
यहाँ का प्राकृतिक सौन्दर्य विलक्षण है जिसका अवलोकन करने हेतु बड़े-बड़े ऋषि-मुनि
भी आते हैं और उनकी समाधि भंग हो जाती है। यहाँ रहने वाले व्यक्ति को अनायास ही ज्ञान
प्राप्त हो जाता है क्योंकि उसे तपस्वियों, साधुओं का सत्संग प्राप्त होता है। यही
नहीं यहाँ उसे मुक्ति भी अनायास ही मिल जाती है।
प्रश्न 4. तीसरे छन्द में संकेतित कथाएँ अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर
: (i) सिंधु तरयो उनको बनरा' हनुमान के द्वारा समुद्र लांघना सीता की खोज के लिए सभी
वानर समुद्र किनारे एकत्र थे।
उन्हें
संपाती नामक गिद्ध ने बता दिया था कि सीता लंका में अशोक वाटिका में हैं। अब वहाँ जाकर
सीता को देखना था. पर बीच में इतना बड़ा सागर था। जामवंत ने हनुमान को प्रेरित किया
और हनुमान समुद्र को लांघकर लंका आ गए। अंगद ने इसी ओर संकेत करते हुए कहा कि राम का
एक छोटा-सा वानर (हनुमान) अनुलंध्य समुद्र को लांघकर तेरी लंका में आ गया और तू राम
के प्रताप को नहीं जान पाया। यह राम का ही प्रताप था कि उनका एक वानर समुद्र को लांघ
सका।
(ii)
'तुम पै धनुरेख गई न तरी' रावण ने पंचवटी में पहुँचकर सीता हरण की योजना बनाई, मारीच
ने स्वर्णमृग बनकर राम को घने जंगल में भटकने हेतु बाध्य कर दिया। जब राम ने उसे बाण
मारा तो गिरते समय उसने 'हा लक्ष्मण' कहकर पुकार लगाई जिससे यह भ्रम हो जाए कि राम
के प्राण संकट में हैं। सीता ने उस केरुण पुकार को सुनकर कुटी की रक्षा करते लक्ष्मण
को राम की सहायता हेतु जाने के लिए विवश किया। उस समय लक्ष्मण ने उस कुटिया के चारों
ओर अपने धनुष से एक रेखा खींच दी और सीता जी से कहा कि आप इस रेखा से बाहर मत आना,
यह आपकी रक्षा करेगी। यह कहकर लक्ष्मण जी चले गए।
कुंटिया
में सीता को अकेला पाकर रावण एक साधु का वेश बनाकर वहाँ आया और 'भिक्षां देहि' की पुकार
लगाई। जब सीता जी उसे भिक्षा देने आईं तो उसने उस रेखा से बाहर आने को कहा। रावण उस
रेखा को पार नहीं कर सका, क्योंकि जैसे ही वह रेखा के भीतर पैर रखता वहाँ आग जलने लगती।
वह समझ गया कि यह अभिमंत्रित रेखा है और अगर मैंने इसे पार किया तो जलकर भस्म हो जाऊँगा।
इसलिए उसने सीता से कहा कि आप इस रेखा से बाहर आकर भिक्षा दें, मैं बँधी हुई भिक्षा
(रेखा के भीतर से दी गई भिक्षा) ग्रहण नहीं कर सकता। उसकी बात मानकर जब सीता जी रेखा
से बाहर आईं तोण कर लिया। इसी घटना की ओर यहाँ अगद सकेत कर रहा है और रावण को बता रहा
है कि तुम इतने कायर हो कि तुमसे धनुष की वह रेखा तक पार नहीं की जा सकी।
(iii)
लंका दहन की घटना. (लंक जराइ जरी) - अशोक वाटिका में पहुँचकर हनुमान ने सीता के दर्शन
किए, फल खाए और फिर वाटिका को उजाड़ने लगे। वहाँ के रक्षकों ने जब प्रतिरोध किया तो
उन्हें मार भगाया। अक्षयकुमार को भेजा गया पर हनुमान ने उसे भी मार डाला। तब प्रबल
प्रतापी मेघनाद आया और ब्रह्मास्त्र का प्रयोग करके उसने हनुमान को नागपाश में बाँध
लिया। बँधे हनुमान को ले जाकर रावण के दरबार में पेश किया गया। उन्हें दण्ड देने के
लिए तेल भीगी रुई उनकी पूँछ पर लपेट दी गई और उसमें आग लगा दी। हनुमान ने उछल-कूद करके
बंधन तोड़ दिए और जलती पूँछ लेकर लंका के भवनों में उछल-कूद करते हुए आग लगा दी। सारी
लंका जलकर राख हो गई फिर समुद्र में कूदकर हनुमान ने पूँछ में लगी आग बुझा दी। अंगद
ने यही घटना कहकर रावण को हतोत्साहित किया कि तुमसे एक वानर को तो बाँधा नहीं गया और
वह तुम्हारी लंका जलाकर सकुशल चला गया।
प्रश्न 5. निम्नलिखित पंक्तियों का काव्य- सौन्दर्य स्पष्ट कीजिए.
(क)
पति बनें चारमुख पूत बनै पंचमुख नाती बनै षट्मुख तदपि नई-नई।
उत्तर
: काव्य-सौन्दर्य (भाव-पक्ष) सरस्वती की महिमा और उदारता अपरम्पार है। साधारण व्यक्ति
तो उनकी महिमा का वर्णन कर ही नहीं सकता क्योंकि जो उनके निकट सम्बन्धी हैं पति, पुत्र
और पौत्र, वे भी उनकी महिमा का वर्णन नहीं कर पाते, जबकि वे परम समर्थ हैं। ब्रह्मा
जी के चारमुख हैं, शंकर जी के पाँचमुख और षडानन के छः मुख हैं। इतनी सामर्थ्य होते
हुए भी वे वाग्देवी सरस्वती की महिमा और उदारता का बखान नहीं कर पाते। तीन पीढ़ी पूरा
जोर लगाकर भी जब उनकी (सरस्वती) महिमा का बखान नहीं कर सकी तो भला मैं तुच्छ बुद्धि
का मनुष्य एक मुख से उनकी महिमा का वर्णन कैसे कर सकूँगा। यही बताना कवि का लक्ष्य
है।
कला-पक्ष
यहाँ योग्य को अयोग्य ठहराकर अतिशयोक्ति (सम्बन्धातिशयोक्ति) अलंकार का विधान किया
गया है तथा व्यंजना सौन्दर्य है। दंडक छन्द का प्रयोग किया गया है। कवि ने ब्रजभाषा
में अपनी रचना प्रस्तुत की है। भाषा में संस्कृतनिष्ठता है।
(ख)
चहुँ ओरनि नाचति मुक्तिनटी गुन धूरजटी वन पंचवटी।
उत्तर
: काव्य-सौन्दर्य (भाव-पक्ष) यह पंचवटी गुणों में भगवान शंकर के समान है। जिस प्रकार
शंकर जी अपने सम्पर्क (शरण) में आए व्यक्ति को मुक्ति प्रदान करते हैं उसी प्रकार जो
व्यक्ति भी इस पंचवटी के सम्पर्क में आता है अर्थात् यहाँ निवास करता है उसे अनायास
ही मुक्ति प्राप्त हो जाती है। पंचवटी में सर्वत्र मुक्तिरूपी नर्तकी का नृत्य चलता
रहता है। यहाँ रहने वाले प्राणियों को बिना प्रयास के ही मोक्ष की प्राप्ति हो जाती
है। पंचवटी के सौन्दर्य तथा श्रेष्ठता का चित्रण हुआ है।
कला-पक्ष
मक्तिनटी में रूपक अलंकार है। पंचवटी को शंकर के समान बताया है अतः उपमा अलंकार है।
सवैया छन्द में रचना प्रस्तुत की गई है। कवि ने ब्रजभाषा का प्रयोग किया है जो संस्कृतनिष्ठ
है। शब्द चमत्कार पर बल दिया गया है।
(ग)
सिंधु तर्यो उनको बनरा तुम पै धनुरेख गई न तरी।
उत्तर
: काव्य-सौन्दर्य (भाव-पक्ष) अंगद रावण से कहने लगा कि तू मुझसे राम के प्रताप के बारे
में पूछता है। सच तो यह है कि तू राम की बराबरी में कहीं खड़ा नहीं हो सकता। कहाँ राम
और कहाँ तू ? उनके एक छोटे से वानर ने अनुलंध्य समुद्र को लांघकर अभूतपूर्व कार्य किया
और तुम उस रेखा को भी नहीं लांघ सके जो पंचवटी में सीता की कुटिया के चारों ओर लक्ष्मण
ने अपने धनुष की नोक से खींच दी थी। यहाँ राम की महत्ता प्रकट की गई है।
कला-पक्ष
- रावण को उसकी तुच्छता का बोध व्यंजना के माध्यम से कराया गया है। वनरा का तात्पर्य
है छोटा-सा वानर अर्थात् हनुमान तो हमारे छोटे से वानर हैं। वानर सेना में उनसे भी
धुरंधर बड़े-बड़े वानर हैं। ऐसा कहकर अंगद रावण को भयभीत करने का प्रयास कर रहा है।
यहाँ सवैया छन्द है। कवि ने ब्रजभाषा का प्रयोग किया है। ब्रजभाषा संस्कृतनिष्ठ है।
शब्दों का चमत्कार देखने योग्य है।
(घ)
तेलनि तूलनि पूँछि जरी न जरी, जरी लंक जराइ-जरी।
उत्तर
: काव्य-सौन्दर्य (भाव-पक्ष) हनुमान को मेघनाद बाँधकर रावण की सभा में ले आया। उन्हें
दण्ड देने हेतु पूँछ पर तेल, रुई लगाकर आग लगा दी गई और हनुमान उछलते- कूदते लंका के
भवनों पर चढ़ गए। चारों ओर उन्होंने आग लगा दी। सारी लंका जल गई। अंगद इसी घटना का
स्मरण दिला रहा है। तुम उस वानर (हनुमान) को बाँधकर नहीं रख पाए और उसने तुम्हारी सोने-चाँदी
से जड़ी लंका को जलाकर राख कर दिया। यह राम का प्रताप नहीं तो और क्या है? लंका दहन
की अन्तर्कथा द्वारा राम के पराक्रम का वर्णन हुआ है।
कला-पक्ष
- प्रस्तुत पंक्ति की रचना ब्रजभाषा में हुई है, जो संस्कृतनिष्ठ है। इसमें व्यंजना
का सौन्दर्य दर्शनीय है। कवि ने सवैया छन्द का प्रयोग किया है। 'तेलनि तूलनि', 'जराइ
जरी' में छेकानुप्रास है। 'जरी-जरी' में यमक अलंकार है।
प्रश्न 6. निम्नलिखित का आशय स्पष्ट कीजिए
(क)
भावी भूत वर्तमान जगत बखानत है केसोदास, क्यों हू ना बखानी काहू पै गई।
(ख)
अघओघ की बेरी कटी बिकटी निकटी प्रकटी गुरुज्ञान गटी।
उत्तर
: (क) माता सरस्वती की महिमा और उदारता का वर्णन कर पाना संभव नहीं है। भूतकाल के लोगों
ने इसका वर्णन किया पर कर नहीं पाए। वर्तमान काल के लोग उनकी महिमा का वर्णन कर रहे
हैं, पर कर नहीं पा रहे। इसी प्रकार भविष्य काल के लोग उनकी महिमा और उदारता का वर्णन
करेंगे पर. कर नहीं पाएँगे क्योंकि वह अपरम्पार है और नित नवीन है।
(ख)
पंचवटी के माहात्म्य का वर्णन करता हुआ कवि कहता है कि यहाँ के निवासियों के पाप-समूह
की बेड़ियाँ कद जाती हैं और गंभीर ज्ञान की गठरी स्वतः प्रकट हो जाती है अर्थात् पंचवटी
में निवास करने से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं और व्यक्ति को ज्ञान प्राप्त हो जाता
है।
योग्यता विस्तार
प्रश्न 1. केशवदास की 'रामचन्द्र चन्द्रिका' से यमक अलंकार के कुछ अन्य
उदाहरणों का संकलन कीजिए।
उत्तर
: केशवदास की 'रामचन्द्र चन्द्रिका' में यमक अलंकार का प्रयोग बहुत अधिक हुआ हैं। कुछ
उदाहरण प्रस्तुत -
1.
पूरन पुरान अक पुरुष पुरान
2.
केसोदास दास द्विज गाय के
3.
देवता प्रसिद्ध-सिद्ध यहाँ स्थूलांकित पदों में यमक अलंकार का विधान किया गया है।
प्रश्न 2. पाठ में आए छन्दों का गायन कर कक्षा में सुनाइए।
उत्तर
: छात्र कक्षा में इन छन्दों का सस्वर गायन करें।
प्रश्न 3. केशवदास 'कठिन काव्य के प्रेत हैं' इस विषय पर वाद-विवाद
कीजिए।
उत्तर
: पक्ष में केशवदास अलंकारवादी कवि थे। वे काव्य में अलंकारों का सामान्य प्रयोग करते
थे। शब्द चमत्कार पर भी उनका ध्यान केन्द्रित रहता था। इसीलिए उनके काव्य में यमक,
श्लेष, अनुप्रास आदि अलंकारों का चमत्कारपूर्ण प्रयोग किया गया है। केशव ने कहीं-कहीं
अप्रचलित शब्दों का प्रयोग भी किया है जिससे काव्य में क्लिष्टता आ गई है जैसे- विषमय
यह गोदावरी अमृतन को फल देत। यहाँ विष का प्रयोग जल के अर्थ में किया गया है जो सामान्यतः
लोगों को पता नहीं। इन्हीं सब कारणों से हम कह सकते हैं कि केशव कठिन काव्य के प्रेत
हैं।
विपक्ष
में केशवदास की कविता में क्लिष्टता है ऐसा अभी मेरे विपक्षी बन्धुओं ने प्रतिपादित
किया किन्तु मैं उनके तर्कों से सहमत नहीं। कवि को अपनी इच्छानुसार अलंकारों, शब्दों
का प्रयोग करने की स्वतंत्रता होती है। अब यदि पाठक को इनकी जानकारी नहीं है तो उसके
लिए कवि को दोष देना ठीक नहीं है। रीतिकाल का काव्य चमत्कार प्रधान है। ध्यान रहे कि
केशव दास दरबार (Court) के कवि थे, जनता के कवि नहीं। दरबारी काव्य में चमत्कार प्रदर्शन
स्वाभाविक प्रवृत्ति है। इसलिए केशव दास को कठिन काव्य का प्रेतं कहना उनके प्रति अन्याय
है। मैं उन्हें सहृदय कवि मानता हूँ। संस्कृत में निष्णात होने के कारण कहीं-कहीं उनके
काव्य में थोड़ी बहुत क्लिष्टता आ गई है जो स्वाभाविक है।
वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. रामचन्द्र चन्द्रिका के रचयिता कौन हैं?
(क)
सूरदास
(ख)
घनानं
(ग) केशवदास
(घ)
तुलसीदास
प्रश्न 2. कवि ने किसके मुख से पंचवटी के महत्व को व्यक्त कराया है?
(क)
श्रीराम के
(ख) लक्ष्मण के
(ग)
भरत के
(घ)
सीता के
प्रश्न 3. पंचवटी को किसके समान फलदायक बताया गया है?
(क)
विष्णु दर्शन के समान
(ख)
ब्रह्म दर्शन के समान
(ग) शिव दर्शन के समान
(घ)
कृष्ण दर्शन के समान
प्रश्न 4. पंचवटी के दर्शन करने से-
(क)
दुख की चादर फट जाती है।
(ख)
कपटी व्यक्ति टिक नहीं पाता।
(ग)
सात्विक भावों का उदय हो जाता है।
(घ) ये सभी विकल्प
प्रश्न 5. यहाँ कवि ने मुक्ति को किस अवस्था में देखा है?
(क)
हवा की
(ख) नर्तकी की
(ग)
लतिका की
(घ)
औषधि की
प्रश्न 6. श्रीराम ने किसे दूत बनाकर रावण के पास भेजा था?
(क)
नील
(ख)
नल
(ग)
जामवंत
(घ) अंगद
प्रश्न 7. अंगद रावण को क्या बताता है?
(क)
अपने राज्य की विशेषता
(ख) श्रीराम की महिमा
(ग)
सागर की महिमा
(घ)
लक्ष्मण की मूर्च्छा
प्रश्न 8. रावण किसकी पूँछ नहीं जला सका और उसकी लंका जल गई?
(क)
अंगद
(ख) हनुमान
(ग)
सुग्रीव
(घ)
विभीषण
प्रश्न 9. 'दसकंठ' किसे कहा गया है?
(क)
विभीषण
(ख)
कुंभकरण
(ग)
मेघनाद
(घ) रावण
JCERT/JAC REFERENCE BOOK
Hindi Elective (विषय सूची)
भाग-1 | |
क्रं.सं. | विवरण |
1. | |
2. | |
3. | |
4. | |
5. | |
6. | |
7. | |
8. | |
9. | |
10. | |
11. | |
12. | |
13. | |
14. | |
15. | |
16. | |
17. | |
18. | |
19. | |
20. | |
21. | |
भाग-2 | |
कं.सं. | विवरण |
1. | |
2. | |
3. | |
4. |
JCERT/JAC Hindi Elective प्रश्न बैंक - सह - उत्तर पुस्तक (Question Bank-Cum-Answer Book)
विषय सूची
अंतरा भाग 2 | ||
पाठ | नाम | खंड |
कविता खंड | ||
पाठ-1 | जयशंकर प्रसाद | |
पाठ-2 | सूर्यकांत त्रिपाठी निराला | |
पाठ-3 | सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय | |
पाठ-4 | केदारनाथ सिंह | |
पाठ-5 | विष्णु खरे | |
पाठ-6 | रघुबीर सहाय | |
पाठ-7 | तुलसीदास | |
पाठ-8 | मलिक मुहम्मद जायसी | |
पाठ-9 | विद्यापति | |
पाठ-10 | केशवदास | |
पाठ-11 | घनानंद | |
गद्य खंड | ||
पाठ-1 | रामचन्द्र शुक्ल | |
पाठ-2 | पंडित चंद्रधर शर्मा गुलेरी | |
पाठ-3 | ब्रजमोहन व्यास | |
पाठ-4 | फणीश्वरनाथ 'रेणु' | |
पाठ-5 | भीष्म साहनी | |
पाठ-6 | असगर वजाहत | |
पाठ-7 | निर्मल वर्मा | |
पाठ-8 | रामविलास शर्मा | |
पाठ-9 | ममता कालिया | |
पाठ-10 | हजारी प्रसाद द्विवेदी | |
अंतराल भाग - 2 | ||
पाठ-1 | प्रेमचंद | |
पाठ-2 | संजीव | |
पाठ-3 | विश्वनाथ तिरपाठी | |
पाठ- | प्रभाष जोशी | |
अभिव्यक्ति और माध्यम | ||
1 | ||
2 | ||
3 | ||
4 | ||
5 | ||
6 | ||
7 | ||
8 | ||
Class 12 Hindi Elective (अंतरा - भाग 2)
पद्य खण्ड
आधुनिक
1.जयशंकर प्रसाद (क) देवसेना का गीत (ख) कार्नेलिया का गीत
2.सूर्यकांत त्रिपाठी निराला (क) गीत गाने दो मुझे (ख) सरोज स्मृति
3.सच्चिदानंद हीरानंद वात्सयायन अज्ञेय (क) यह दीप अकेला (ख) मैंने देखा, एक बूँद
4.केदारनाथ सिंह (क) बनारस (ख) दिशा
5.विष्णु खरे (क) एक कम (ख) सत्य
6.रघुबीर सहाय (क) वसंत आया (ख) तोड़ो
प्राचीन
7.तुलसीदास (क) भरत-राम का प्रेम (ख) पद
8.मलिक मुहम्मद जायसी (बारहमासा)
11.घनानंद (घनानंद के कवित्त / सवैया)
गद्य-खण्ड
12.रामचंद्र शुक्ल (प्रेमघन की छाया-स्मृति)
13.पंडित चंद्रधर शर्मा गुलेरी (सुमिरिनी के मनके)
14.ब्रजमोहन व्यास (कच्चा चिट्ठा)
16.भीष्म साहनी (गांधी, नेहरू और यास्सेर अराफात)
17.असगर वजाहत (शेर, पहचान, चार हाथ, साझा)
18.निर्मल वर्मा (जहाँ कोई वापसी नहीं)
19.रामविलास शर्मा (यथास्मै रोचते विश्वम्)
21.हज़ारी प्रसाद द्विवेदी (कुटज)
12 Hindi Antral (अंतरा)
1.प्रेमचंद = सूरदास की झोंपड़ी
3.विश्वनाथ त्रिपाठी = बिस्कोहर की माटी