12th Hindi Elective विष्णु खरे JCERT/JAC Reference Book

12th Hindi Elective विष्णु खरे JCERT/JAC Reference Book

 

12th Hindi Elective विष्णु खरे JCERT/JAC Reference Book

5. विष्णु खरे

1. जीवन-परिचय

I. जन्म-सन् 1940 छिंदवाड़ा, मध्य प्रदेश में हुआ

॥. शिक्षा-क्रिश्चियन कॉलेज, इंदौर से 1963 में उन्होंने अंग्रेजी साहित्य में एम.ए. किया।

III. कैरियर -1962-63 में दैनिक इंदौर समाचार में उप संपादक रहे। 1963-75 तक मध्य प्रदेश तथा दिल्ली के महाविद्यालयों में अध्यापन से भी जुड़े। इसी बीच 1966-67 में लघु पत्रिका व्यास का संपादन किया।

तत्पश्चात् 1976-84 तक साहित्य अकादमी में उप सचिव (कार्यक्रम) पद पर पदासीन रहे।

2. साहित्यिक- परिचय

1985 से नवभारत टाइम्स में प्रभारी कार्यकारी संपादक के पद पर कार्य किया। बीच में लखनऊ संस्करण तथा रविवारीय नवभारत टाइम्स (हिंदी) और अंग्रेजी टाइम्स ऑफ़ इंडिया में भी संपादन कार्य से जुड़े रहे। 1993 में जयपुर नवभारत टाइम्स के संपादक के रूप में भी कार्य किया। इसके बाद जवाहर लाल नेहरू स्मारक संग्रहालय तथा पुस्तकालय में दो वर्ष वरिष्ठ अध्येता रहे। अब स्वतंत्र लेखन तथा अनुवाद कार्य में रत हैं।

I. औपचारिक रूप से उनके लेखन प्रकाशन का आरंभ 1956 से हुआ। इनकी कविताओं में जड़ताओं और अमानवीय स्थितियों के विरुद्ध सशक्त नैतिक स्वर की अभिव्यक्ति है।

॥. अवदान-

पहला प्रकाशन टी. एस. इलियट का अनुवाद मरू प्रदेश और अन्य कविताएँ 1960 में,

दूसरा कविता संग्रह एक गैर-रूमानी समय में, 1970 में प्रकाशित हुआ।

तीसरा संग्रह खुद अपनी आँख से 1978 में, चौथा सबकी आवाज़ के परदे में 1994 में,

पाँचवाँ पिछला बाकी तथा छठा काल और अवधि के दरमियान प्रकाशित हुए।

एक समीक्षा - पुस्तक आलोचना की पहली किताब 1983 में प्रकाशित।

उन्होंने विदेशी कविताओं का हिंदी तथा हिंदी अंग्रेजी अनुवाद अत्यधिक किया है।

।।।. पुरस्कार - फिनलैंड के राष्ट्रीय सम्मान नाइट ऑफ़ दि आर्डर ऑफ़ दि व्हाइट रोज़ इसके अतिरिक्त रघुवीर सहाय सम्मान, शिखर सम्मान हिंदी अकादमी दिल्ली का साहित्यकार

सम्मान, मैथिलीशरण गुप्त सम्मान मिल चुका है।

पाठ का सार

I. एक कम कविता के माध्यम से कवि ने स्वातंत्र्योत्तर भारतीय समाज में प्रचलित हो रही जीवन शैली को रेखांकित किया है।

॥. आज़ादी हासिल करने के बाद सब कुछ वैसा ही नहीं रहा जिसकी आज़ादी के सेनानियों ने कल्पना की थी

III. पूरे देश का या कहें आस्थावान, ईमानदार और संवेदनशील जनता का मोहभंग हुआ।

परिणाम यह हुआ कि आपसी विश्वास, परस्पर भाईचारा और सामूहिकता का स्थान धोखाधड़ी, आपसी खींचतान ने ले लिया और नितांत स्वार्थपरकता का माहौल बनता चला गया।

IV. कवि इस माहौल में स्वयं को असमर्थ पाते हुए भी ईमानदारों के प्रति अपनी सहानुभूति स्पष्ट रूप से रखता है तथा कुछ न करने की स्थिति में होने के बावजूद स्वयं को ऐसे लोगों के जीवन-संघर्ष में बाधक नहीं बनाना चाहता।

V. इसलिए वह कम से कम एक व्यवधान तो कम कर ही सकता है जो कि वह करता है, यही कविता का संदेश भी है।

I. सत्य कविता में कवि ने महाभारत के पौराणिक संदर्भों और पात्रों के द्वारा जीवन में सत्य की महत्ता को स्पष्ट करना चाहा है।

॥. अतीत की कथा का आधार लेकर अपनी बात प्रभावशाली ढंग से कही जा सकती है, यह कविता इसका प्रमाण है। युधिष्ठिर, विदुर और खांडवप्रस्थ-इंद्रप्रस्थ के द्वारा सत्य को, सत्य की महत्ता को ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य के साथ प्रस्तुत करना ही यहाँ कवि का अभीष्ट है।

III. जिस समय और समाज में कवि जी रहा है उसमें सत्य की पहचान और उसकी पकड़ कितनी मुश्किल होती जा रही है, यह कविता उसका प्रमाण है। सत्य कभी दिखता है और कभी ओझल हो जाता है।

IV. आज सत्य का कोई एक स्थिर रूप, आकार या पहचान नहीं है जो उसे स्थायी बना सके। सत्य के प्रति संशय का विस्तार होने के बावजूद वह हमारी आत्मा की आंतरिक शक्ति है - यह भी इस कविता का संदेश है।

V. उसका रूप वस्तु, स्थिति और घटनाओं, पात्रों के अनुसार बदलता रहा है। जो एक व्यक्ति के लिए सत्य है वही शायद दूसरे के लिए सत्य नहीं है।

VI. बदलते हालात और मानवीय संबंधों में हो रहे निरंतर परिवर्तनों से सत्य की पहचान और उसकी पकड़ मुश्किल होते जाने के सामाजिक यथार्थ को कवि ने जिस तरह ऐतिहासिक, पौराणिक घटनाक्रम के द्वारा प्रस्तुत करने का प्रयास किया है, वह प्रशंसनीय है।

कविता की सप्रसंग व्याख्या

1. 1947 के बाद से

इतने लोगों को इतने तरीकों से

आत्मनिर्भर मालामाल और गतिशील होते देखा है

कि अब जब आगे कोई हाथ फैलाता है

पच्चीस पैसे एक चाय या दो रोटी के लिए

तो जान लेता हूँ

मेरे सामने एक ईमानदार आदमी, औरत या बच्चा खड़ा है

मानता हुआ कि हाँ मैं लाचार हूँ कंगाल या कोढ़ी या मैं भला चंगा हूँ और कामचोर और

एक मामूली धोखेबाज

शब्दार्थ :

आत्मनिर्भर = स्वावलम्बी।

मालामाल - धनवान ।

गतिशील = सक्रिय, उन्नति करते हुए।

हाथ फैलाता है = भीख माँगता है।

लाचार = बेबस ।

कंगाल = निर्धन।

कोढ़ी = रोगी (कोढ़ से ग्रस्त) ।

भला-चंगा = स्वस्थ (ठीक-ठाक) ।

कामचोर = आलसी।

प्रसंग : प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक 'अन्तरा भाग-2' में संकलित विष्णु खरे द्वारा रचित कविता 'एक कम' से ली गई हैं। आजादी मिलने के बाद देश में किस प्रकार प्रतिस्पर्धा का दौर चला और लोग एक-दूसरे को धक्का देकर आगे निकलने की होड़ में बेईमानी, धोखाधड़ी और भ्रष्टाचार का सहारा लेकर धनवान हुए हैं कवि इसी बात पर चिंता व्यक्त करते हैं कि अब तो अभावग्रस्त जीवन जीने वाले और यहाँ तक भीख माँगने वाले ही ईमानदार जैसा प्रतीत होता है।

व्याख्या: भारत को सन् 1947 में आजादी मिली। लोगों को लग रहा था कि अब देश स्वतंत्र है। हम अपने देश में अपने ढंग से ईमानदारी का जीवन व्यतीत करेंगे किन्तु शीघ्र ही आजादी से हमारा मोहभंग हो गया। कवि ने इतने सारे लोगों को भ्रष्ट तरीकों से धनवान होते देखा है कि वह समझ गया कि मालामाल होने और तरक्की करने के लिए व्यक्ति को अव्वल दर्जे का स्वार्थी, चालाक, धोखेबाज और भ्रष्टाचारी होना चाहिए। अनेक लोग स्वतन्त्रता के बाद इन्हीं हथकण्डों से धनवान बने हैं।

ऐसी स्थिति में जब कोई आदमी, औरत या बच्चा कवि के आगे हाथ फैलाकर भीख माँगता है - पच्चीस पैसे, एक चाय या रोटी की भीख, तब उस फैले हुए हाथ को देखकर कवि समझ जाता है कि यह व्यक्ति अपने जीवन में ईमानदार रहा है और उन गुणों (दोषों) से स्वयं को नहीं जोड़ सका जो आज उन्नति के लिए या धनी होने के लिए आवश्यक माने गए हैं।

भीख माँगता हुआ वह व्यक्ति एक प्रकार से यह साबित कर देता है कि वह लाचार, कंगाल या कोढ़ी इसलिए है क्योंकि वह उन हथकण्डों से दूर रहा जिनसे आज धनवान बना जाता है। हो सकता है कि भीख माँगने वाला वह व्यक्ति भला चंगा होने पर भी कामचोर (आलसी) या मामूली धोखेबाज रहा हो इसलिए आज भीख माँग रहा है अन्यथा वह भी उन आदमियों की तरह धनवान हो गया होता जो स्वतंत्रता के बाद फले-फूले हैं।

विशेष :

I. आजादी के बाद देश में भ्रष्टाचार, बेईमानी में बढ़ोत्तरी हुई है। इस सत्य को व्यंग्यात्मक लहजे में कवि ने अभिव्यक्त किया है।

II. भाषा सहज, सरल और प्रवाहपूर्ण है।

III. हाथ फैलाना मुहावरे का प्रयोग सफल है।

व्यंग्यात्मक शैली का प्रयोग है।

2. लेकिन पूरी तरह तुम्हारे संकोच लज्जा परेशानी।

या गुस्से पर आश्रित तुम्हारे सामने बिलकुल नंगा निर्लज्ज और निराकांक्षी

मैंने अपने को हटा दिया है हर होड़ से मैं तुम्हारा विरोधी प्रतिद्वन्द्वी या हिस्सेदार नहीं

मुझे कुछ देकर या न देकर भी तुम

कम से कम एक आदमी से तो निश्चिंत रह सकते हो

शब्दार्थ :

आश्रित = निर्भर।

निराकांक्षी = बिना किसी आकांक्षा के। निर्लज्ज - लज्जारहित। होड़ = प्रतिस्पर्धा। प्रतिद्वन्दी = विपक्षी। निश्चित = चिंता रहित।

प्रसंग - प्रस्तुत पंक्तियाँ विष्णु खरे द्वारा रचित कविता 'एक कम' से ली गई हैं। यह कविता हमारी पाठ्य-पुस्तक 'अन्तरा-भाग-2' में संकलित है।

स्वतंत्रता के बाद कई लोगों को कवि ने बेईमानी, धोखाधड़ी, भ्रष्टाचार एवं अनैतिक तरीकों के बल पर धनवान होते देखा है। इस गलाकाट स्पर्धा में प्रत्येक व्यक्ति दूसरे से आशंकित है। ऐसी स्थिति में भीख माँगने वाला व्यक्ति आश्वस्त करता है कि वह लाचार है, किसी का प्रतिद्वन्द्वी या प्रतिस्पर्धी नहीं।

व्याख्या- हाथ फैलाकर भीख माँगने वाला व्यक्ति घोषणा कर रहा है कि वह पूरी तरह लाचार है। किसी के सामने हाथ फैलाने में उसे कोई लज्जा, संकोच नहीं है। वह पूरी तरह दूसरों पर आश्रित है। उसकी कोई आकांक्षा भी नहीं है। वह किसी का विरोधी, प्रतिद्वन्द्वी या प्रतिस्पर्धी नहीं हैं। संसार में सब एक-दूसरे से आगे निकलने की होड़ में हैं।

किन्तु उस भिखारी ने कम से कम स्वयं को इस प्रतिस्पर्धा से अलग कर लिया है। अपने फैलाए हुए हाथ से वह हमें आश्वस्त कर रहा है कि वह पूरी तरह हमारी कृपा पर आश्रित है, हमारे बराबर का नहीं है, हमसे होड़ नहीं कर रहा है और हम उसकी तरफ से निश्चित रह सकते हैं। कम से कम एक व्यक्ति तो ऐसा है जो इस प्रतिद्वंद्विता में हमारा प्रतिद्वन्द्वी नहीं है। भले ही हम उसे कुछ दें या न दें फिर भी वह हमारा प्रतिद्वन्द्वी नहीं है।

विशेष

I. भारतीय समाज में प्रचलित गलाकाट प्रतिस्पर्धा और बेईमानी पर कवि ने गहरा व्यंग्य किया है। भाषा सरल, सहज और प्रवाहपूर्ण है।

II. 'नंगा', 'निर्लज्ज' और 'निराकांक्षी' में अनुप्रास अलंकार है।

सत्य

1. जब हम सत्य को पुकारते हैं

तो वह हमसे परे हटता जाता है

जैसे गुहारते हुए युधिष्ठिर के सामने से भागे थे विदुर और भी घने जंगलों में सत्य शायद जानना चाहता है।

कि उसके पीछे हम कितनी दूर तक भटक सकते हैं

कभी दिखता है सत्य

और कभी ओझल हो जाता है

और हम कहते रह जाते हैं

कि रुको यह हम हैं

जैसे धर्मराज के बार-बार दुहाई देने पर

कि ठहरिए स्वामी विदुर

यह मैं हूँ आपका सेवक कुंतीनंदन युधिष्ठिर वे नहीं ठिठकते

शब्दार्थ :

पुकारते = बुलाते, आवाज देते।

परे = दूर।

गुहारते = करुणा से भरी पुकार लगाते।

युधिष्ठिर ज्येष्ठ पाण्डव (पाँच पाण्डव भाइयों में सबसे बड़े) ।

ओझल दूर होना।

विदुर = युधिष्ठिर के चाचा (धृतराष्ट्र और पाण्डु के भाई, नीति विशारद एवं धर्मपरायण व्यक्ति, महाभारत के एक पात्र) ।

ओझल हो जाना आँखों के सामने न आना।

धर्मराज = युधिष्ठिर का एक नाम।

दुहाई देने पर = पुकारने पर (करुण पुकार करने पर)।

कुंतीनन्दन = कुंती का पुत्र। ठिठकते = ठहरते।

प्रसंग-प्रस्तुत पंक्तियाँ हिन्दी के सुप्रसिद्ध कवि विष्णु खरे द्वारा रचित 'सत्य' नामक कविता से ली गई हैं। यह कविता हमारी पाठ्य-पुस्तक 'अन्तरा भाग-2' में संकलित है। महाभारत के मिथकीय पात्रों (युधिष्ठिर, विदुर आदि) और मिथकीय घटनाओं के माध्यम से कवि ने 'सत्य' की व्याख्या वर्तमान सन्दर्भों में की है।

व्याख्या - कवि का मत है कि जब हम सत्य को बुलाते हैं तो वह हमसे उसी तरह दूर भागता है, जैसे महाभारत काल में अपने प्रति हुए अन्याय के कारण युधिष्ठिर ने अपने काका विदुर के पास जाकर गुहार लगाई थी किन्तु विदुर के पास उनके प्रश्नों का कोई सटीक उत्तर न था। युधिष्ठिर की करुण पुकार को अनसुना करके विदुर घने जंगलों में चले गए थे। युधिष्ठिर ने फिर भी उनका पीछा नहीं छोड़ा और वे विदुर के पीछे-पीछे घने जंगलों में प्रवेश कर गए थे।

ठीक इसी तरह सत्य आसानी से प्राप्त नहीं होता और एक बार पुकारने पर ही सामने नहीं आ जाता। वह हमसे दूर भागता है क्योंकि वह यह जानना चाहता है कि हम उसके पीछे (सत्य के पीछे) कितनी दूर तक आ सकते हैं अर्थात् सत्य के प्रति हमारी निष्ठा कितनी है इसकी वह परीक्षा करना चाहता है। संभवतः विदुर भी युधिष्ठिर की निष्ठा की परीक्षा लेने हेतु ही घने जंगल की ओर पलायन कर गए थे।

आगे जाता सत्य कभी हमें दिखता है तो कभी आँखों से ओझल हो जाता है और हम सत्य को रोकने का प्रयास करते हुए पुकारते रहते हैं - अरे भाई सत्य जरा ठहरो, देखो यह मैं हूँ, मेरे लिए रुक जाओ। पर सत्य है कि युधिष्ठिर की गुहार को अनसुना करने वाले विदुर के समान आगे ही बढ़ता जाता है। युधिष्ठिर द्वारा बार-बार रुकने की प्रार्थना करने पर भी विदुर ठहरते नहीं और आगे बढ़ते जाते हैं।

शायद यह परखने के लिए कि देखें यह मेरे पीछे कितनी दूर तक आता है। सत्य के पीछे दूर तक चलने का साहस बहुत कम लोग दिखा पाते हैं। ज्यादातर लोग तो बस सत्य का थोड़ी देर तक अनुगमन करने के बाद हताश होकर लौट जाते हैं अर्थात् सत्य को छोड़ देते हैं। सत्य का दूर तक पीछा करना, उसका अनुगमन करना साहस की बात है। विरले लोग ही जीवन पर्यन्त सत्य का साथ दे पाते हैं, उसे छोड़ते नहीं।

विशेष :

I. मिथकीय पात्रों के माध्यम से कवि ने सत्य के स्वरूप का उद्घाटन किया है।

II. विदुर यहाँ सत्य और युधिष्ठिर आम नागरिक के प्रतीक हैं।

III. भाषा सरल, सहज और प्रवाहपूर्ण है।

इन पंक्तियों में मुक्त छन्द का प्रयोग है।

IV. नई कविता की अभिव्यक्ति शैली में मिथकों का प्रयोग प्रचुरता से किया गया है।

2. यदि हम किसी तरह युधिष्ठिर जैसा संकल्प पा जाते हैं

तो एक दिन पता नहीं क्या सोचकर रुक ही जाता है सत्य

लेकिन पलटकर सिर्फ खड़ा ही रहता है वह दृढ़निश्चयी

अपनी कहीं और देखती दृष्टि से हमारी आँखों में देखता हुआ

अन्तिम बार देखता-सा लगता है वह हमें

और उसमें से उसी का हलका सा प्रकाश जैसा आकार

समा जाता है हममें

शब्दार्थ :

संकल्प दृढ़ निश्चय।

पलटकर = पीछे मुड़कर।

दृढ़निश्चयी = दृढ़ संकल्प वाला।

दृष्टि = निगाह।

हल्का-सा = धीमा।

आकार = बनावट।

समा जाना = प्रवेश करना।

प्रसंग - प्रस्तुत पंक्तियाँ विष्णु खरे द्वारा रचित कविता 'सत्य' से ली गई हैं। यह कविता हमारी पाठ्य-पुस्तक 'अन्तरा भाग-2' में संकलित हैं।

महाभारत के मिथकीय चरित्रों युधिष्ठिर, विदुर आदि को लेकर लिखी हुई इस कविता में कवि ने सत्य की विशेषताओं को उद्घाटित किया है। सत्य उसी को प्राप्त होता है जो दृढ़ निश्चयी एवं संकल्पवान होता है।

व्याख्या - सत्य हमारी परीक्षा लेने के लिए हमसे दूर होता जाता है और यह परखने का प्रयास करता है कि हम कब तक उसका अनुगमन कर सकते हैं। विदुर को युधिष्ठिर पुकारते हुए रुकने के लिए कह रहे थे पर विदुर थे कि उनकी पुकार को अनसुना करके घने जंगल में आगे बढ़े जा रहे थे। युधिष्ठिर संकल्पवान एवं दृढ़ निश्चयी व्यक्ति थे। वे लगातार विदुर का पीछा करते रहे और अन्ततः विदुर को रुकना ही पड़ा। ठीक इसी तरह सत्य भी हमारे दृढ़ निश्चय की परीक्षा करता है। यदि हम संकल्प-शक्ति से युक्त हैं तो अन्ततः सत्य को पा ही लेते हैं।

विशेष :

I. प्रस्तुत पद्यांश में नई कविता की विचारशीलता है।

II. भाषा सरल, भावानुकूल तथा प्रवाहपूर्ण खड़ी बोली है।

III. तत्सम शब्दों एवं मुक्त छन्द का प्रयोग है।

IV. महाभारत कालीन पात्र युधिष्ठिर और विदुर को प्रतीक बनाकर सत्य का उद्घाटन किया गया है।

3. जैसे शमी वृक्ष के तने से टिककर

न पहचानने में पहचानते हुए विदुर ने धर्मराज को

निर्निमेष देखा था अन्तिम बार

और उनमें से उनका आलोक धीरे-धीरे आगे बढ़कर

मिल गया था युधिष्ठिर में

सिर झुकाए निराश लौटते हैं हम

कि सत्य अन्त तक हमसे कुछ नहीं बोला

हाँ हमने उसके आकार से निकलता वह प्रकाश-पुंज देखा था।

हम तक आता हुआ

वह हममें विलीन हुआ या हमसे होता हुआ आगे बढ़ गया

शब्दार्थ :

शमी = एक वृक्ष।

निर्निमेष = एकटक (बिना पलक झपकाए देखना) ।

आलोक = प्रकाश।

प्रकाश पुंज = प्रकाश का समूह।

विलीन = समा जाना।

प्रसंग - प्रस्तुत पंक्तियाँ विष्णु खरे द्वारा रचित कविता 'सत्य' का अंश हैं। यह कविता हमारी पाठ्य-पुस्तक 'अन्तरा भाग-2' में संकलित है।

कवि ने महाभारत के पात्र युधिष्ठिर, विदुर आदि के माध्यम से प्रस्तुत काव्यांश में सत्य के स्वरूप का उद्घाटन किया है। उसने बताया है कि सत्य दृढ़ निश्चय और अथक प्रयास से प्राप्त होता है।

व्याख्या - विदुर अन्ततः रुक गए और पलटकर युधिष्ठिर की ओर देखने लगे। ठीक इसी तरह दृढ़ संकल्प वाले उस व्यक्ति को सत्य की प्राप्ति हो जाती है जो लगातार सत्य का अनुगमन करता है। शमी वृक्ष के तने से टिककर खड़े विदुर ने जैसे धर्मराज को पहचानने का प्रयास करते हुए अन्तिम बार बिना पलक झपकाए एकटक दृष्टि से युधिष्ठिर को देखा और उनमें से उनका तेज (प्रकाशपुंज) निकलकर युधिष्ठिर में समा गया।

अन्ततः युधिष्ठिर उस तेज पुंज से सम्पन्न होकर सिर झुकाकर लौट आए क्योंकि विदुर ने उनसे कुछ कहा नहीं, बस अपना प्रकाशपुंज उन्हें सौंप दिया। ठीक इसी प्रकार अपने दृढ़ निश्चय के बल पर हम सत्य को भले ही प्राप्त कर लें पर सत्य पर पहुँचकर भी हम सत्य से वार्तालाप नहीं कर पाते। सत्य विदुर की भाँति अन्त तक हमसे कुछ नहीं बोलता, बस उसमें से निकला प्रकाशपुंज हम देखते हैं जो हम में विलीन हो जाता है अथवा हमारा भी अतिक्रमण कर आगे बढ़ जाता है।

विशेष :

यहाँ युधिष्ठिर आम आदमी के तथा विदुर सत्य के प्रतीक हैं। सत्य हमारे संकल्प एवं दृढ़ निश्चय की परीक्षा लेता है। सत्य का साक्षात्कार कठिनाई से होता है। वह एक ऐसा प्रकाशपुंज है जिसका है। वह व्यक्ति की सीमा का अतिक्रमण कर आगे बढ़ जाता है। भाषा सरल, सहज और प्रवाहपूर्ण खड़ी बोली हिन्दी है। मुक्त छन्द का प्रयोग हुआ है। विष्णु जी हिन्दी की 'नई कविता' के कवि हैं। नई कविता में वैचारिकता है, भावना नहीं।

4. हम कह नहीं सकते न तो हम में कोई स्फुरण हुआ और न ही कोई ज्वर

किन्तु शेष सारे जीवन हम सोचते रह जाते हैं

कैसे जानें कि सत्य का वह प्रतिबिंब हममें समाया या नहीं

हमारी आत्मा में जो कभी-कभी दमक उठता है

क्या वह उसी की छुअन है

जैसे विदुर कहना चाहते तो वही बता सकते थे

सोचा होगा माथे के साथ अपना मुकुट नीचा किए युधिष्ठिर ने खांडवप्रस्थ से इंद्रप्रस्थ लौटते हुए।

शब्दार्थ :

स्फुरण = कंपकंपी।

ज्वर = ताप (बुखार) ।

प्रतिबिम्ब = परछाँई।

दमक चमक।

खांडवप्रस्थ = जंगल (वन) ।

इंद्रप्रस्थ = पाण्डवों की राजधानी (वर्तमान दिल्ली ही पुराना इंद्रप्रस्थ है)।

प्रसंग - प्रस्तुत पंक्तियाँ विष्णु खरे द्वारा रचित कविता 'सत्य' से ली गई हैं। यह कविता हमारी पाठ्य-पुस्तक 'अन्तरा भाग-2' में संकलित है।

महाभारत के मिथकीय पात्रों के माध्यम से कवि ने सत्य के स्वरूप को बताने का प्रयास इन पंक्तियों में किया है। सत्य की प्राप्ति होने पर भी हम में कोई स्फुरण नहीं होता, कोई खास परिवर्तन अनुभव नहीं होता।।

व्याख्या: जैसे दृढ़ निश्चयी युधिष्ठिर के शरीर में विदुर का तेज समा गया उसी प्रकार संकल्पवान व्यक्ति को सत्य की उपलब्धि तो हो जाती है किन्तु सत्य को पाकर भी हम यह नहीं कह सकते हैं कि हमें किसी विशेष परिवर्तन की अनुभूति हुई है। न तो शरीर में कोई स्फुरण होता है न किसी ताप की अनुभूति होती है। हम जीवन भर बस यही सोचते रहते हैं कि पता नहीं सत्य हममें समाया भी है या नहीं। बस कभी-कभी हमारी अग में जो चमक उठती है, लगता है वह सत्य का ही या है, सत्य का ही संकेत है।

पर इसे तो स्वयं सत्य ही बता सकता है कि वह हमारे भीतर समाया है या नहीं, ठीक उसी तरह जैसे विदुर ही युधिष्ठिर को बता सकते थे कि उनके प्रश्नों का उत्तर क्या है? युधिष्ठिर ने खाण्डवप्रस्थ से इन्द्रप्रस्थ लौटते समय सिर झुकाए हुए यही सोचा होगा कि काका विदुर चाहते तो उनके प्रश्नों का उत्तर दे सकते थे पर उन्होंने ऐसा न करके अपना तेज मुझे दे दिया। सत्य का संधान करने वाले व्यक्ति को भी अपने प्रश्नों के उत्तर स्वयं ही खोजने पड़ते हैं, सत्य उसके प्रश्नों का उत्तर नहीं देता। हाँ, वह उन उत्तरों को खोज पाने की शक्ति हमें अवश्य देता है।

विशेष :

।. महाभारत के पात्रों को प्रतीक मानकर कवि ने सत्य के स्वरूप की व्याख्या की है।

॥. व्यक्ति को अपने सत्य का संधान स्वयं ही करना पड़ता है। विदुर चाहते तो युधिष्ठिर के प्रश्नों (शंकाओं) का समाधान कर सकते थे

III. भाषा सरल, सहज और प्रवाहपूर्ण खड़ी बोली हिन्दी है। मुक्त छन्द का प्रयोग है।

IV. नई कविता में बौद्धिकता की प्रधानता है, भावात्मकता की नहीं। प्रस्तुत अंश नई कविता से सम्बद्ध है।

प्रश्न उत्तर

प्रश्न 1. 'एक कम' कविता में कवि ने लोगों के आत्मनिर्भर, मालामाल और गतिशील होने के लिए किन तरीकों की ओर संकेत किया है? कवि ने स्वयं को हर होड़ से अलग क्यों कर लिया है?

उत्तर- कवि ने आजादी के बाद भारत के अनेक लोगों को आत्मनिर्भर, मालामाल और गतिशील होते देखा है। छलकपट, धोखाधड़ी, विश्वासघात, भ्रष्टाचार, स्वार्थपरता एवं अन्याय के बल पर लोगों ने अपनी स्थिति को सुधारा है। अनैतिक तरीकों से लोग धनवान बने हैं और दूसरों को धक्का देकर आगे बढ़ने की प्रवृत्ति को ही उन्होंने अपनी उन्नति का साधन बनाया है।

प्रश्न 2. हाथ फैलाने वाले व्यक्ति को कवि ने ईमानदार क्यों कहा है? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर - हाथ फैलाने वाले अर्थात् भीख माँगने वाले व्यक्ति को कवि ने ईमानदार इसलिए कहा है क्योंकि अन्य लोगों की तरह वह धोखाधड़ी, बेईमानी या रिश्वतखोरी नहीं कर सका इसीलिए वह धनवान नहीं बन सका और आज इतना गरीब है कि पेट भरने के लिए उसे दूसरों के आगे हाथ फैलाना पड़ रहा है। यदि वह भी दूसरों की तरह बेईमानी और धोखाधड़ी करता तो उनकी तरह ही मालामाल हो जाता।

प्रश्न 3.1947 से लोग अनेक तरीके से मालामाल हुए किन्तु विमुद्रीकरण होने से उन स्थितियों में बदलाव आया या नहीं?

उत्तर -1947 में देश की आजादी के पश्चात् देश में कालाबाजारी, भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी, बेईमानी बेतहाशा बढ़ जुड़े या उच्च पदों पर आसीन लोग और अधिक अमीर होते गए। देश के धन का कुछ ही हाथों में विकेन्द्रीकरण हो गया। लोगों के घरों, बैंक खातों तथा विदेशों के कारण देश धन के अभाव में प्राकृतिक संसाधनों का समुचित प्रयोग न कर सका। अतः देश आजादी के दशकों बाद भी विकसित न हो सका।

विमुद्रीकरण का अर्थ है-कालेधन को बाहर निकालने तथा भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए पुरानी करेंसी पर प्रतिबंध लगाना और नयी करेंसी चलन में लाना। सन् 2014 में प्रधानमंत्री बनने के पश्चात् मोदी जी ने 8 नवम्बर 2016 की आधी रात को देश में विमुद्रीकरण किया और ₹500 तथा ₹1000 के कागजी नोटों पर प्रतिबंध लगा दिया और नई मुद्रा के रूप में ₹ 2000 तथा ₹ 500 का संचालन प्रारम्भ कर दिया। इस विमुद्रीकरण के तत्काल लाभ दृष्टिगोचर हुए, किन्तु गत वर्षों में स्थिति फिर पहले जैसी होती जा रही है।

प्रश्न 4. 'मैं तुम्हारा विरोधी प्रतिद्वन्द्वी या हिस्सेदार नहीं' से कवि का क्या अभिप्राय है?

उत्तर - भीख माँगने वाला व्यक्ति दूसरों की दया पर गुजारा कर रहा है और उस होड़ (प्रतिद्वंद्विता) से बाहर ही है जो समाज में सर्वत्र दिखाई दे रही है। हर कोई दूसरे से आगे निकलने की होड़ में है। किन्तु भिखारी हाशिए पर गया व्यक्ति है जो विकास की दौड़ से बाहर हो गया है। वह पूरी तरह असमर्थ, निर्धन और आकांक्षारहित है। अपनी स्थिति को स्वीकार करते हुए वह उन सभी लोगों को अपना प्रतिद्वन्द्वी नहीं मानता जो धनवान बनने की प्रक्रिया में लगे हैं। उस निर्धन की भला धनवानों से क्या होड़ !

प्रश्न 5. भाव-सौन्दर्य स्पष्ट कीजिए -

(क) 1947 के बाद से इतने लोगों को इतने तरीकों से आत्मनिर्भर मालामाल और गतिशील होते देखा है।

उत्तर - सन् 1947 में देश आजाद हुआ। आजादी से लोगों को बड़ी आशाएँ थीं पर स्वार्थी लोगों ने विश्वासघात, धोखेबाजी एवं स्वार्थपरता का परिचय देते हुए देशहित में कुछ न करके अपना विकास किया। वे धनवान और मालामाल हो गए। कवि यह कहना चाहता है कि स्वतंत्रता के बाद देश की आस्थावान, ईमानदार और संवेदनशील जनता का स्वतंत्रता से मोह भंग हो गया है क्योंकि चारों ओर बेईमानी, धोखाधड़ी एवं स्वार्थपरता का बोलबाला है। कवि ने व्यंजना का प्रयोग करते हुए देश की वर्तमान दशा का चित्रण किया है।

ख) मानता हुआ कि हाँ मैं लाचार हूँ कंगाल या कोढ़ी

या मैं भला चंगा हूँ और कामचोर और

एक मामूली धोखेबाज।

उत्तर-भीख माँगने वाला वह व्यक्ति भीख माँगकर जैसे यह घोषित करता है कि वह लाचार, कंगाल या कोढ़ी है। यदि भला-चंगा है तो निश्चित ही वह आलसी है और धोखा देने में भी उतना कुशल नहीं है। अन्यथा वह भी बेईमानों एवं धोखेबाजों की तरह मालामाल हो जाता। कवि यह बताना चाहता है कि आज भिखारी वही है जो धोखेबाजी या बेईमानी की कला में कुशल नहीं है। कवि ने आज के ईमानदार गरीब मनुष्य के यथार्थ का सफलतापूर्वक चित्रण किया है।

(ग) तुम्हारे सामने बिलकुल नंगा निर्लज्ज और निराकांक्षी

मैंने अपने को हटा लिया है हर होड़ से।

उत्तर - भिखारी भीख माँगकर जैसे यह घोषित करता है कि वह विकास की हर प्रतिद्वंद्विता और स्पर्धा से अलग हट गया है। साथ ही वह आकांक्षाविहीन तथा निर्लज्ज है और उसका कुछ भी छिपा हुआ नहीं है। प्रतीक रूप में यह देश के सामान्य जन की दशा का वर्णन है जो बेईमानी के मार्ग पर चलकर अमीर नहीं बन सका है।

प्रश्न 6. शिल्प-सौन्दर्य स्पष्ट कीजिए -

(क) कि अब जब आगे कोई हाथ फैलाता है

पच्चीस पैसे एक चाय या दो रोटी के लिए

तो जान लेता हूँ

मेरे सामने एक ईमानदार आदमी, औरत या बच्चा खड़ा है

उत्तर -भाषा सरल, सहज एवं प्रवाहपूर्ण है। हाथ फैलाना' मुहावरे के प्रयोग ने कवि कथन को प्रभावपूर्ण बनाया है। भिखारी की निर्धनता को उसकी ईमानदारी का फल बताकर समाज व्यवस्था पर प्रबल व्यंग्य किया गया है। मुक्त छन्द का प्रयोग है।

ख) मैं तुम्हारा विरोधी प्रतिद्वन्द्वी या हिस्सेदार नहीं

मुझे कुछ देकर या न देकर भी तुम

कम से कम एक आदमी से तो निश्चित रह सकते हो।

उत्तर -भाषा सरल, सहज एवं प्रवाहपूर्ण है। भाषा में व्यंजना-शक्ति का प्रयोग करते हुए यह बताया गया है कि आज सर्वत्र दूसरों से आगे निकलने की होड़ लगी है। पर भिखारी सामने वाले को आश्वस्त करता है कि वह उसका प्रतिद्वन्द्वी, प्रतिस्पर्धी या विरोधी नहीं है क्योंकि वह इस होड़ से बाहर है। ये पंक्तियाँ मुक्त छन्द में लिखी गई हैं। स्वतंत्र भारत की अर्थव्यवस्था पर व्यंग्य करते हुये बताया गया है कि चन्द चतुर, चालाक और बेईमान लोगों ने मिलकर देश के धन को हड़प लिया है और जनता को बदहाल, फटेहाल छोड़ दिया है। सत्य

प्रश्न उत्तर

प्रश्न 1. सत्य क्या पुकारने से मिल सकता है? युधिष्ठिर विदुर को क्यों पुकार रहे हैं महाभारत के प्रसंग से सत्य के अर्थ खोलें।

उत्तर - सत्य पुकारने से नहीं मिलता। युधिष्ठिर विदुर को इसलिए पुकार रहे हैं जिससे वे उनके प्रति हुए अन्याय को सनें और सत्य का पक्ष लें। धतराष्ट ने पाण्डवों को खाण्डवप्रस्थ जैसा स्थान बँटवारे में दिया था जहाँ जंगल था, जो विद्रोहियों से भरा था। उसने समृद्ध और उपजाऊ भू-प्रदेश अपने अधिकार में रखे थे। यह अन्याय ही तो था।

विदुर ने इस अन्याय को चुपचाप देखा था। युधिष्ठिर विदुर को इसीलिए पुकार रहे थे और जानना चाहते थे कि उन्होंने सत्य का साथ क्यों नहीं दिया। किन्तु विदुर ने कोई उत्तर नहीं दिया। सत्य पुकारने से नहीं मिलता, वह हमसे दूर होता जाता है। सत्य हमारे अन्तर्मन की शक्ति है जिसे पुकारने की जरूरत नहीं है। उसे प्रत्येक व्यक्ति को स्वयं ही पाना होता है।

प्रश्न 2. 'सत्य का दिखना और ओझल होना' से कवि का क्या तात्पर्य है? .

उत्तर - वर्तमान समय में तीव्रगति से होने वाले परिवर्तनों के कारण सत्य का कोई स्थिर स्वरूप नहीं रहा है। वह हमें कभी दिखता है तो कभी छिप जाता है। वस्तुतः आज के समाज में सत्य को पहचानना बड़ा कठिन काम है-यही कवि कहना चाहता है। सत्य का कोई एक स्थिर रूप नहीं है, कोई एक पहचान नहीं है इसीलिए हर व्यक्ति सत्य के बारे में संशयग्रस्त है।

प्रश्न 3. सत्य और संकल्प के अन्तर्सम्बन्ध पर अपने विचार व्यक्त कीजिए।

उत्तर - सत्य को वही पा सकता है जो संकल्पवान् एवं दृढ़ निश्चयी हो। युधिष्ठिर ने तब तक विदुर का पीछा किया जब तक वे शमी वृक्ष के नीचे रुक न गए। जो व्यक्ति सत्य पर अडिग रहने का दृढ़ संकल्प करता है, वही सत्य का पालन कर सकता है। सत्य का स्वरूप बदलता भी रहता है, अतः सत्य की सही पहचान संकल्प शक्ति से ही संभव हो पाती है। सत्य की प्राप्ति दृढ़ निश्चयी व्यक्ति को ही हो पाती है, यही कवि मिथकीय पात्रों के माध्यम से कहना चाहता है।

प्रश्न 4. 'युधिष्ठिर जैसा, संकल्प' से क्या अभिप्राय है?

उत्तर - युधिष्ठिर जैसा संकल्प का अभिप्राय है दृढ़ निश्चय। सत्य की प्राप्ति के लिए युधिष्ठिर जैसा संकल्प चाहिए। उन्होंने जीवन पर्यन्त सत्य का पालन किया चाहे उससे उन्हें व्यक्तिगत रूप में हानि हई हो या लाभ कोई व्यक्ति युधिष्ठिर जैसा संकल्प लेकर सत्य की खोज करता है तभी वह सत्य को प्राप्त कर पाता है।

प्रश्न 5. कविता में बार-बार प्रयुक्त 'हम' कौन है और उसकी चिन्ता क्या है?

उत्तर - कविता में बार-बार 'हम' शब्द का प्रयोग कवि ने वर्तमान पीढ़ी के लोगों के लिए किया है। बदलते हालात में सत्य का स्वरूप स्थिर नहीं है यह कवि की सबसे बड़ी चिंता है। सत्य की पहचान कैसे की जाए और उसे अपनी अन्तरात्मा में कैसे धारण किया जाय, कवि यह समझ नहीं पा रहा।

प्रश्न 6. सत्य की राह पर चल। अगर अपना भला चाहता है तो सच्चाई को पकड़। इन पंक्तियों के प्रकाश में कविता का मर्म खोलिए।

उत्तर-कवि ने इस कविता में सत्य के महत्त्व को प्रतिपादित किया है। सत्य पुकारने से नहीं मिलता, उसका पीछा करना पड़ता है. दृढ़ संकल्प और निश्चयात्मक बुद्धि से। वह हमारी अन्तरात्मा की आवाज है। कविता में मिथकीय प्रतीकों के माध्यम से कवि ने बताया है कि यदि व्यक्ति अपना भला चाहता है तो उसे सत्य की राह पर निरन्तर चलते रहना चाहिए। सत्य का निष्ठा से अनुगमन करते चलो, वह अवश्य प्राप्त होगा। भले ही बदलते समय में सत्य का रूप बदल रहा हो पर हमारी अन्तरात्मा के भीतर उसकी चमक जाग उठती है। सत्य एक प्रकाशपुंज है जो हमारे भीतर तब समा जाता है जब हम निरन्तर सत्य की राह पर चलते हैं।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न (एक क्रम)

(1) 'एक कम' कविता के कवि कौन है?

(क) रामविलास शर्मा

(ख) विष्णु खरे

(ग) महादेवी वर्मा

(घ) रामधारी सिंह दिनकर

(2) कविता के आधार पर कवि किसके प्रति सहानुभूति दिखाई है?

(क) बेइमान के प्रति

(ख) धोखेबाज के प्रति

(ग) ईमानदार के प्रति

(घ) इनमें से कोई नहीं

(3) विष्णु खरे का जन्म कब हुआ?

(क) सन् 1940

(ख) सन् 1840

(ग) सन् 1945

(घ) सन् 1845

(4) समाज में किस तरह के लोग संपन्न (धनी) बनते जा रहे हैं?

(क) धोखेबाज

(ख) स्वार्थी

(ग) बेईमानी।

(घ) इनमें से सभी

(5) निम्नलिखित में से कौन सी रचना विष्णु शर्मा की नहीं है?

(क) एक कम

(ख) सत्य

(ग) विपथगा

(घ) खुद अपनी आँख से

(6) कविता के आधार पर 1947 के बाद जिसका प्रभाव अधिक है ?

(क) सत्य का

(ख) ईमानदारी का

(ग) आपसी भाईचारे का

(घ) धोखेबाजों का

(7) 'एक कम' कविता में कवि ने किन लोगों के प्रति सहानुभूति प्रकट की है?

(क) ईमानदारों के प्रति

(ख) स्वार्थी के प्रति

(ग) धोखेबाजों के प्रति

(घ) इनमें से सभी

(8) कविता के आधार पर कौन व्यक्ति आत्मनिर्भर और मालामाल है ?

(क) देशभक्त

(ख) ईमानदार

(ग) धोखेबाज

(घ) इनमें से सभी

वस्तुनिष्ठ प्रश्न (सत्य)

(1) सत्य कविता के आधार पर विदुर किसका प्रतीक है?

(क) सत्य का

(ख) असत्य का

(ग) पाप का

(घ) झूठ का

(2) पांडवों के माता का क्या नाम है?

(क) कोशल्या

(ख) कुन्ती

(ग) सीता

(घ) द्रोपदी

(3) 'सत्य' कविता में किस युद्ध का वर्णन है,

(क) विश्व युद्ध

(ख) महाभारत

(ग) कलिंग युद्ध

(घ) इनमें से कोई नहीं

(4) सत्य की प्राप्ति कैसी की जा सकती है ?

(क) दृढ़ संकल्प होकर

(ख) अस्थायी रहकर

(ग) (क) और (ख) दोनों

(घ) इनमें से कोई नहीं

(5) 'सत्य' कविता के कवि कौन है?

(क) रघुवीर सहाय

(ख) तुलसी दास

(ग) विष्णु खरे

(घ) जयशंकर प्रसाद

JCERT/JAC REFERENCE BOOK

Hindi Elective (विषय सूची)

भाग-1

क्रं.सं.

विवरण

1.

देवसेना का गीत

2.

सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"

3.

सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय

4.

बनारस

5.

विष्णु खरे

6.

वसंत आया

7.

भरत राम का प्रेम पद

8.

बारहमासा

9.

विद्यापति (पद)

10.

रामचंद्रचंद्रिका

11.

घनानंद

12.

प्रेमघन की छाया-स्मृति

13.

सुमिरनी के मनके

14.

कच्चा चिट्ठा

15.

संवदिया

16.

गांधी नेहरू और यासर अराफात

17.

शेरपहचानचार हाथसाझा

18.

जहां कोई वापसी नहीं

19.

यथास्मै रोचते विश्वम

20.

दूसरा देवदास

21.

हजारी प्रसाद द्विवेदी

भाग-2

कं.सं.

विवरण

1.

सूरदास की झोंपड़ी

2.

आरोहण

3.

बिस्कोहर की माटी

4.

अपना मालवा खाऊ-उजाडू सभ्यता


JCERT/JAC Hindi Elective प्रश्न बैंक - सह - उत्तर पुस्तक (Question Bank-Cum-Answer Book)

विषय सूची

अंतरा भाग 2

पाठ

नाम

खंड

कविता खंड

पाठ-1

जयशंकर प्रसाद

(क) देवसेना का गीत

(ख) कार्नेलिया का गीत

पाठ-2

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला

(क) गीत गाने दो मुझे

(ख) सरोज - स्मृति

पाठ-3

सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय

(क) यह दीप अकेला

(ख) मैंने देखा एक बूँद

पाठ-4

केदारनाथ सिंह

(क) बनारस

(ख) दिशा

पाठ-5

विष्णु खरे

(क) एक कम

(ख) सत्य

पाठ-6

रघुबीर सहाय

(क) बसंत आया

(ख) तोड़ो

पाठ-7

तुलसीदास

(क) भरत - राम का प्रेम

(ख) पद

पाठ-8

मलिक मुहम्मद जायसी

बारहमासा

पाठ-9

विद्यापति

पद

पाठ-10

केशवदास

कवित्त / सवैया

पाठ-11

घनानंद

कवित्त / सवैया

गद्य खंड

पाठ-1

रामचन्द्र शुक्ल

प्रेमधन की छायास्मृति

पाठ-2

पंडित चंद्रधर शर्मा गुलेरी

सुमिरनी के मनके

पाठ-3

ब्रजमोहन व्यास

कच्चा चिट्ठा

पाठ-4

फणीश्वरनाथ 'रेणु'

संवदिया

पाठ-5

भीष्म साहनी

गांधी, नेहरू और यास्सेर अराफत

पाठ-6

असगर वजाहत

शेर, पहचान, चार हाथ, साझा

पाठ-7

निर्मल वर्मा

जहाँ कोई वापसी नहीं

पाठ-8

रामविलास शर्मा

यथास्मै रोचते विश्वम्

पाठ-9

ममता कालिया

दूसरा देवदास

पाठ-10

हजारी प्रसाद द्विवेदी

कुटज

अंतराल भाग - 2

पाठ-1

प्रेमचंद

सूरदास की झोपडी

पाठ-2

संजीव

आरोहण

पाठ-3

विश्वनाथ तिरपाठी

बिस्कोहर की माटी

पाठ-

प्रभाष जोशी

अपना मालवा - खाऊ- उजाडू सभ्यता में

अभिव्यक्ति और माध्यम

1

अनुच्छेद लेखन

2

कार्यालयी पत्र

3

जनसंचार माध्यम

4

संपादकीय लेखन

5

रिपोर्ट (प्रतिवेदन) लेखन

6

आलेख लेखन

7

पुस्तक समीक्षा

8

फीचर लेखन

JAC वार्षिक इंटरमीडिएट परीक्षा, 2023 प्रश्न-सह-उत्तर

Class 12 Hindi Elective (अंतरा - भाग 2)

पद्य खण्ड

आधुनिक

1.जयशंकर प्रसाद (क) देवसेना का गीत (ख) कार्नेलिया का गीत

2.सूर्यकांत त्रिपाठी निराला (क) गीत गाने दो मुझे (ख) सरोज स्मृति

3.सच्चिदानंद हीरानंद वात्सयायन अज्ञेय (क) यह दीप अकेला (ख) मैंने देखा, एक बूँद

4.केदारनाथ सिंह (क) बनारस (ख) दिशा

5.विष्णु खरे (क) एक कम (ख) सत्य

6.रघुबीर सहाय (क) वसंत आया (ख) तोड़ो

प्राचीन

7.तुलसीदास (क) भरत-राम का प्रेम (ख) पद

8.मलिक मुहम्मद जायसी (बारहमासा)

9.विद्यापति (विद्यापति के पद)

10.केशवदास (रामचंद्रचंद्रिका)

11.घनानंद (घनानंद के कवित्त / सवैया)

गद्य-खण्ड

12.रामचंद्र शुक्ल (प्रेमघन की छाया-स्मृति)

13.पंडित चंद्रधर शर्मा गुलेरी (सुमिरिनी के मनके)

14.ब्रजमोहन व्यास (कच्चा चिट्ठा)

15.फणीश्वरनाथ रेणु (संवदिया)

16.भीष्म साहनी (गांधी, नेहरू और यास्सेर अराफात)

17.असगर वजाहत (शेर, पहचान, चार हाथ, साझा)

18.निर्मल वर्मा (जहाँ कोई वापसी नहीं)

19.रामविलास शर्मा (यथास्मै रोचते विश्वम्)

20.ममता कालिया (दूसरा देवदास)

21.हज़ारी प्रसाद द्विवेदी (कुटज)

12 Hindi Antral (अंतरा)

1.प्रेमचंद = सूरदास की झोंपड़ी

2.संजीव = आरोहण

3.विश्वनाथ त्रिपाठी = बिस्कोहर की माटी

4.प्रभाष जोशी = अपना मालवा खाऊ-उजाडू सभ्यता में

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