12th Hindi Elective सूरदास की झोंपड़ी JCERT/JAC Reference Book

12th Hindi Elective सूरदास की झोंपड़ी JCERT/JAC Reference Book

 

12th Hindi Elective सूरदास की झोंपड़ी JCERT/JAC Reference Book

1. सूरदास की झोंपड़ी

लेखक परिचयः मुंशी प्रेमचंद

मूल नाम- धनपत राय

जन्म- 31 जुलाई, 1880 ई.

• जन्म स्थान लमही, वाराणसी, उत्तर प्रदेश

• मृत्यु- 8 अक्टूबर 1936 ई.

• शिक्षा- बी०ए०

पिता का नाम- अजायब लाल मुंशी

माता का नाम- आनंदी देवी

• उर्दू में नवाब राय के नाम से लिखते थे

• हिंदी में प्रेमचंद नाम से लिखते थे

साहित्यिक परिचय

हिंदी के सर्वश्रेष्ठ कथा सम्राट

प्रमुख रचनाएँ:

उपन्यास:-

सेवासदन 1918

प्रेमाश्रम 1921

रंगभूमि 1925

कायाकल्प 1926

निर्मला 1927

गबन 1931

कर्मभूमि 1932

गोदान 1936

मंगलसूत्र 1948 (प्रेमचंद के बेटा अमृत राय ने इस उपन्यास को पूरा किया)

कहानी-संग्रह-

'सोजेवतन' (उर्दू में)

* मानसरोवर (आठ भागों)

'गुप्त धन (दो भाग)

नाटक

कर्बला, 1922

संग्राम, 1928

प्रेम की देवी 1933

निबंध-संग्रह-

कुछ विचार, विविध प्रसंग

संपादित पत्रिका-

हंस

जागरण

माधुरी आदि पत्रिका

प्रेमचंद का उर्दू कहानी संग्रह' सोजे वतन 1905

'दुनिया का सबसे अनमोल रतन' प्रेमचंद की पहली कहानी थी। यह कहानी कानपुर से प्रकाशित होने वाली उर्दू पत्रिका ज़माना में 1907 में प्रकाशित हुई थी।

यह प्रेमचंद के कहानी संग्रह 'सोज़े वतन' में संकलित है।

प्रेमचंद आधुनिक हिंदी कहानी के पितामह माने जाते हैं। उनकी पहली हिंदी कहानी सरस्वती पत्रिका के दिसंबर अंक में 1915 में, 'सीत' नाम से प्रकाशित हुई और 1936 में अंतिम कहानी 'कफन' नाम से।

प्रेमचंद नाम से उनकी पहली कहानी 'बड़े घर की बेटी', 'जमाना' पत्रिका के दिसंबर 1910 के अंक में प्रकाशित हुई।

मरणोपरांत उनकी कहानियाँ मानसरोवर नाम से 8 खंडों में प्रकाशित हुई।

प्रेमचंद जी की भाषा के दो रूप हैं- एक रूप तो जिसमें संस्कृत के तत्सम शब्दों की प्रधानता है और दूसरा रूप जिसमें उर्दू, संस्कृत और हिंदी के व्यावहारिक शब्दों का प्रयोग किया गया है।

पाठ का सार

1 'सूरदास की झोंपड़ी' प्रेमचंद के उपन्यास रंगभूमि का एक अंश है।

2 इसका पात्र सूरदास झोंपड़ी जला दिए जाने के बावजूद भी प्रतिशोध लेने में विश्वास नहीं करता।

3 एक दृष्टिहीन व्यक्ति बेबस और लाचार होता है, जबकि सूरदास का चरित्र ठीक इसके विपरीत है। सूरदास अपनी परिस्थितियों से जितना दुखी और आहत है, उससे कहीं ज्यादा दुखी और आहात वह जगधर और भैरों द्वारा किए जा रहे अपमान और उनकी ईर्ष्या से है।

4 दो बजे होंगे कि अचानक सूरदास की झोपड़ी में ज्वाला धधक उठी। आग की लपटें ऊँची उठ रही थीं। सैकड़ों आदमी वहाँ जमा हो गए थे। आग बुझाने के प्रयास हो रहे थे। अधिकांश लोग चुपचाप निराशापूर्ण दृष्टि से जलती हुयी झोंपड़ी देख रहे थे।

5 अचानक सूरदास दौड़ता हुआ आया और चुपचाप वहाँ खड़ा हो गया। बजरंगी ने पूछा-'आग कैसे लगी सूरदास, चूल्हे में तो आग नहीं छोड़ दी थी? लपटें शान्त होते- होते पूरी आग बुझ गई। सब लोग चले गये। सन्नाटा छा गया। सूरदास वहाँ बैठा रहा। झोंपड़ी के जलने का उसे इतना दुःख न था, जितना उस छोटी-सी पोटली के जलने का था, जिसमें उसकी जिन्दगी भर की कमाई थी। उस पोटली में पाँच-सौ रुपये से कुछ ज्यादा ही थे।

6 अब राख ठंडी हो चुकी थी। सूरदास अन्दाज से द्वार की ओर से झोंपड़ी में घुसा। दो कदम चलने पर पैर भूबल में पड़ गया। राख के नीचे आग थी। जल्दी से पैर पीछे हटाया और राख को लकड़ी से उलट-पलट दिया। अब राख इतनी गरम नहीं थी। जहाँ छप्पर में पोटली रखी थी, उसी जगह की सीध में वह राख को टटोलने लगा। तड़का हो गया। सूरदास राख को इस आशा से बटोरकर एक जगह कर रहा था कि शायद पोटली मिल जाय।

7 जगधर ने आकर पूछा कि कहीं उस पर तो उसका शक नहीं है? सूरदास ने इनकार किया। भैरों ने जगधर से कहा था कि वह सूरदास. को रुला देगा। उसे विश्वास हो गया कि यह भैरों की ही शरारत है। वह सीधा उसके पास पहुँचा और उसको विश्वास में लेकर पूछा तो उसने आग लगाना और चोरी करना स्वीकार कर लिया।

8 जगधर दिल का बुरा नहीं था परन्तु उसे यह सहन नहीं था कि भैरों यकायक इतने रुपयों का स्वामी बन जाय। उसने भैरों को रुपये लौटा देने की सलाह दी, पुलिस का भय दिखाया परन्तु भैरों रुपये लौटाने को तैयार नहीं हुआ। भैरों ने कहा यह सुभागी को बहका ले जाने का जुर्माना है। जब तक सूरदास को रोते नहीं देख लूँ, मेरे मन का काँटा नहीं निकलेगा। उसने सुभागी पर डोरे डाले हैं। मेरी आबरू बिगाड़ी है। इन रुपयों को लेकर मुझे पाप नहीं लग सकता।

9 जगधर सूरदास के पास आया तो वह राख बटोरकर उसे आटे की तरह गूँथ रहा था। जगधर ने पूछ - 'क्या ढूँढ़ रहे हो ?' सूरदास के द्वारा बात छिपाने पर उसने बताया कि उसके रुपयों की थैली तो भैरों के पास है। थैली में पाँच सौ से कुछ ज्यादा रुपये थे, मगर सूरदास ने थैली को अपना होना स्वीकार ही नहीं किया।

10 इतने में सुभागी वहाँ आ पहुँची। रात भर वह मंदिर के पीछे अमरूद के बाग में छिपी थी। वह जानती थी कि आग भैरों ने लगाई है। भैरों द्वारा अपने ऊपर लगाए गए कलंक की चिन्ता उसे नहीं थी। लेकिन सूरदास पर झूठे आरोप से वह दुःखी थी। भैरों के व्यवहार के कारण उसने उसके पास न लौटने का निश्चय कर लिया था। सुभागी और जगधर का आग्रह-सुभागी और जगधर के बार-बार पूछने पर भी सूरदास ने थैली अपनी होने की बात नहीं मानी। सूरदास का चेहरा देखकर सुभागी को विश्वास हो गया कि सूरदास झूठ बोल रहा है।

11 उसने कहा-'चाहे भैरों उसे मारे, पीटे परन्तु वह उसके घर में ही रहेगी। कभी तो रुपये उसके हाथ लगेंगे। उसी के कारण सूरदास उजड़ा है। सूरदास उसे सोच रहा था कि रुपये वह फिर से कमायेगा और जो काम वह करना चाहता था, उसे भविष्य में अवश्य पूरा करेगा। वह अधीर हो उठा, सोचने लगा - सुभागी का क्या होगा ? कहाँ जाएगी बेचारी। यह कलंक मेरे सिर पर ही लगना था। धन गया, आबरू गई, घर गया। सूरदास अकेला बैठा था। उसकी आँखों से आँसू बह रहे थे।

12. अचानक सूरदास ने सुना 'तुम खेल में रोते हो।' यह शब्द सुनते ही सूरदास की निराशा, ग्लानि, चिन्ता और क्षोभ दूर हो गए। वह उठकर खड़ा हो गया और दोनों हाथों में राख भरकर हवा में उड़ाने लगा। मिठुआ, घीसू और मोहल्ले के लड़के भी इस खेल में शामिल हो गए और राख को हवा में फेंकने लगे। थोड़ी देर में वहाँ जमीन पर केवल काला निशान बाकी रह गया। मिठुआ ने पूछा-"दादा, अब हम कहाँ रहेंगे ?" उसने उत्तर दिया "दूसरा घर बनाएँगे। " "और फिर कोई आग लगा दे तो ?" उत्तर मिला- "तो फिर बनाएँगे। " मिठुआ ने बच्चों की रुचि के अनुसार पूछा- "और जो कोई सौ लाख बार (आग) लगा दे ?" सूरदास ने भी बच्चों जैसी सरलता से उत्तर दिया- "तो हम भी सौ लाख बार बनाएँगे। "

कठिन शब्दार्थ :

• अकस्मात् = अचानक ।

• निद्रावस्था = नींद की स्थिति।

• उपचेतना = नींद में जागते रहने का अहसास।

• दम-के-दम = थोड़ी देर।

• स्वर्ण-कलश = सोने से बना चमकीला कलसा।

• कंपित होना = काँपना।

• प्रतिबिंब = परछाँई।

• ईर्ष्या = द्वेष, जलन।

• नैराश्य = निराशा।

• अग्निदाह = आग जलना।

• चिताग्नि = चिता की आग।

• कलेजा ठंडा होना= शान्ति मिलना।

• नाहक = बेमतलब, अकारण।

• सुभा = शक, संदेह।

• स्वाहा = नष्ट, जलना।

• ई = खोटापन, दुष्टता।

• सत्यानाश = सर्वनाश।

• धरनं = वह ढाँचा जिस पर फूस का छप्पर होता है।

• रही-सही = शेष बची।

• आलोचना = निंदा, बुराई।

• सन्नाटा = पूर्ण शाँति ।

• पोटली = गट्ठर, गठरी।

• यातना = कष्ट।

• निष्कर्ष = परिणाम।

• पितर = पूर्वज।

• नामलेवा = संतान।

• उद्धार = संसार से मुक्ति।

• संचित = इकट्ठा।

• लोक = यह संसार।

• परलोक = मृत्यु के

• दुनिया = सांसारिक कर्तव्य।

• आशा-दीपक = आशा की किरण, आशा का दीपक (तत्पुरुष समास) ।

• पिघलना = गलना।

• बटोर = इकट्ठा, एकत्र।

• तस्कीन = तसल्ली, दिलासा।

• पिंडा = जौ के आटे का एक प्रकार का लड्डू जो पूर्वजों को अर्पित किया जाता है।

• गला छूटना = मुक्ति मिलना।

• सगाई = शादी से पहले की एक रस्म ।

• ठोंक-ठोंककर खाना= स्वयं रोटी बनाना और खाना।

• जुग = युग, लम्बा समय।

• पाँव फैलाना = बहुत बड़ी अव्यावहारिक योजना बनाना।

• अटकल = अनुमान।

• भूबल = गरम राख।

• असह्य = सहन न करने योग्य।

• सीध = दिशा।

• टटोलना = उंगलियों से तलाश करना।

• छप्पर = फूस की छान।

• दिल धड़कना = आशंका होना, डरना।

• उतावली = व्याकुलता, व्यग्रता।

• अधीरता = धैर्य या धीरज न होने की अवस्था।

• अथाह = बहुत गहरा।

• अभिलाषा = इच्छा।

• तड़का = सवेरा।

• दीर्घजीवी = बहुत समय तक नष्ट न होने या रहने वाली।

अदावत = दुश्मनी, शत्रुता।

• चिलम = तम्बाकू और आगरखने का एक पात्र।

• चूल्हा = खाना पकाने के लिए आग जलाने का एक स्थान।

• दिल साफ होना = संदेह न होना।

• शरारत = शैतानी।

• झलकना = प्रकट होना।

• परवा = चिन्ता।

• सबूत = प्रमाण।

• दियासलाई = माचिस ।

• दिल की आग ठंडी होना= मन शान्त होना।

• उत्सुक = जानने की इच्छा वाला, जिज्ञासु ।

• जरीबाना = जुर्माना।

• जतन = यत्न, कोशिश।

• आड़ = पीछे, छिपाकर

• पाजी = धूत।

• राहगार = पथिक, मुसाफिर।

• गरमी = घमंड, अकड़।

• भोज-भात = दावत।

• बखत = समय।

• बल्लमटेर = लुटेरे, गुंडे।

• बिकरी = बिक्री।

• मसक्कत = परिश्रम, मेहनत।

• हजम होना = पचना।

• खोटा = बुरा।

• नेकनीयती = अच्छी भावना।

• हसद = ईर्ष्या, डाह।

• गेहूँ तौलना = व्यापार।

• जानलेवा = मारने वाला।

• डोरे डालना = वश में करना।

• दिल का काँटा निकलना= मन का कष्ट दूर होना।

• आबरू बिगाड़ना = इज्जत खराब करना।

• खोंचा = खोमचा, फेरी लगाकर बिक्री करने का सामान।

• छाती पर साँप लोटना= ईर्ष्या होना।

• पुन्न = पुण्य।

• दमड़ी-छदाम कौड़ी= प्राचीन समय में सिक्कों के रूप में प्रयुक्त वस्तुएँ।

• टेनी मारना = डंडी मारना, कम तौलना।

• खोटे = कम तौल के, दोषपूर्ण।

• ईमान = धर्म।

• गुनाह = अपराध ।

• बेलज्जत = निरर्थक।

• जिंदगानी = जीवन।

• सुफल = सफल।

• अंकुर जमा = उत्पन्न हुई।

• दरिद्रता = गरीबी।

• पिंडदान = मृत व्यक्ति को आटे के बने गोले अर्पित करना।

• दीन = गरीब।

• संचय = सग्रह, इकट्ठा करना।

• उड़ते हो = छुपाते हो।

• बेसी = ज्यादा, अधिक।

• कलंक = धब्बा, दोष।

• सर्वनाश = सब कुछ नष्ट होना।

• झिझकी = संकोच हुआ।

• अवतार = स्वरूप।

• ठोंके = खाना बनाए।

• चरण-धोकर पीना = खुशामद करना।

• घेला = आधा पैसा।

• सेंदूर = सिंदूर।

• खसम = पति, स्वामी। करतूत = अनैतिक कार्य।

• कहीं का न रखना = बेईज्जती होना।

• झांसा देना = धोखा देना।

• पेट की थाह लेना = मन की गुप्त बात जानना।

• जाल फेंकना = योजना बनाना।

• मंत्र देना = शिक्षा देना।

• रोटियाँ चलना = गुजारा होना।

• कान पकड़ना = दण्ड देना।

• बटोरना = इकट्ठा करना।

• रट लगाना = एक ही बात दोहराना।

• मार लाना = हड़पना।

• चैन की बंसी बजाना = आरामपूर्वक जीवन बिताना।

• दूसरों के सामने हाथ पसारना= आर्थिक सहायता माँगना।

• भरी गंगा में = गंगा के पानी में खड़े होकर।

• बातों में आना = बहक जाना। घड़ी = समय।

• अन्वेषण = खोज।

• असह्य वेदना = असहनीय पीड़ा।

• चेहरा कह देता है= चेहरे को देखने से साफ पता चलता है।

• बिपत = विपत्ति, कष्ट।

• चैन = आराम।

• मारी-मारी फिरना = भटकना।

• चपत पड़ना = आर्थिक हानि ।

• जी में आना = इच्छा होना।

• खरी-खोटी सुनाना = निन्दा-अपमान करना।

मर्माहत = अत्यन्त दुःखी।

ग्लानि = स्वयं से घृणा।

क्षोभ = दुःख ।

गोते खाना = डूबना ।

बाजी हारना = खेल में हार होना।

मैदान में डटे रहना= विरोधी का सामना करना, पीछे न हटना।

त्योरियों पर बल पड़ना= चिन्तित होना।

मालिन्य = मलिनता, गंदापन।

तरंग = लहर।

उद्दिष्ठ = निर्धारित, निश्चित।

संयम = धैर्य।

स्तूप = स्मृति-स्तम्भ।

मारे प्रश्नों के = बार-बार प्रश्न पूछकर।

संख्या = गिनती।

रुचि = पसंद।

बालोचित = बालकों जैसी।

सरलता = सीधापन।

प्रश्न-अभ्यास

प्रश्न 1. 'चूल्हा ठंडा किया होता, तो दुश्मनों का कलेजा कैसे ठंडा होता?' इस कथन के आधार पर सूरदास की मनःस्थिति का वर्णन कीजिए।

उत्तर : रात के दो बजे थे। सूरदास की झोपड़ी में आग लगी थी। बजंरगी तथा जगधर ने सूरदास से पूछा- 'आग कैसे लगी, चूल्हा ठंडा किया था या नहीं?' इस पर नायकराम ने उत्तर दिया-चूल्हा ठंडा किया होता, तो दुश्मनों का कलेजा कैसे ठंडा होता।' सूरदास का किसी की बातों की ओर कोई ध्यान नहीं था। उसे अपनी झोंपड़ी अथवा अपने बरतन आदि जल जाने की चिन्ता नहीं थी। उसे अपनी उस पोटली के जल जाने का दुःख था, जिसमें उसके जीवन-भर की कमाई थी। उन रुपयों से वह पितरों का पिंडदान, अपने भाई मिठुआ की शादी आदि अनेक योजनाएँ पूरी करना चाहता था। इस प्रकार उसकी मनःस्थिति निराशापूर्ण थी।

प्रश्न 2. भैरों ने सूरदास की झोंपड़ी क्यों जलाई ?

उत्तर : भैरों अच्छा आदमी नहीं था। वह अपनी पत्नी सुभागी को मारता-पीटता था। एक बार सुभागी उसकी पिटाई से बचने के लिए सूरदास की झोपड़ी में आकर छिप गई। भैरों उसे मारने के लिए सूरदास की झोपड़ी में घुस आया परन्तु सूरदास ने उसे बचा लिया तब से वह सूरदास से द्वेष करने लगा तथा सूरदास के चरित्र पर लांछन लगाने लगा। उसकी सूरदास के प्रति ईर्ष्या इतनी बढ़ गई कि उसने सूरदास की अनुपस्थिति में उसकी झोपड़ी में घुसकर बचाकर रखे हुए उसके रुपयों की पोटली चुरा ली और उसकी झोपड़ी में आग लगा दी।

प्रश्न 3. 'यह फूस की राख न थी, उसकी अभिलाषाओं की राख थी। सन्दर्भ सहित विवेचन कीजिए।

उत्तर : सूरदास बैठा रहा। लोग चले गए थे और धीरे-धीरे झोंपड़ी की. आग ठंडी हो गई थी। तब वह उठा और अनुमान से द्वार की ओर से झोंपड़ी में घुसा। उसने उसी दिशा में राख को टटोलना शुरू किया, जहाँ छप्पर में पोटली रखी थी। पोटली नहीं मिली। उतावलेपन और अधीरता से उसने सारी राख छान डाली परन्तु पोटली नहीं मिली। उसने एक-एक कर रुपये जोड़े थे। उसने सोचा था कि उन रुपयों से वह गया जाकर अपने पितरों का पिंडदान करेगा। रोटी अपने हाथों से बनाते पूरा जीवन बीत गया। अब वह अपने भाई मिठुआ की शादी करेगा और चैन की रोटी खायेगा। झोंपड़ी जलने से उसके सारे अरमान ही जल गए थे। यह फूस की राख उसकी इन्हीं अभिलाषाओं की राख थी।

प्रश्न 4. जगधर के मन में किस तरह का ईर्ष्या-भाव जगा और क्यों ?

उत्तर : सवेरा हो गया था। जगधर भैरों के पास पहुँचा। उसने चालाकी से भैरों से आग लगाने और पोटली चुराने वाली बात कबूल करवा ली। वह सोच रहा था-भैरों को एकाएक इतने रुपये मिल गए। यह अब मौज उड़ाएगा। तकदीर इस तरह खुलती है। अब भैरों दो-तीन दुकानों का ठेका और ले लेगा। वह आराम से जिन्दगी बिताएगा। उसे भी ऐसा कुछ माल हाथ लग जाता तो उसकी जिन्दगी भी सफल हो जाती। इस प्रकार अचानक भैरों के पास पाँच सौ से अधिक रुपये देखकर जगधर के मन में उसके प्रति प्रबल ईर्ष्या का भाव जाग उठा।

प्रश्न 5. सूरदास जगधर से अपनी आर्थिक हानि को गुप्त क्यों रखना चाहता था ?

उत्तर : सूरदास अपने रुपये खोने से यद्यपि दुःखी था, उसकी समस्त आशाएँ टूट गई थीं, फिर भी वह जगधर से अपने पास रुपये होने की बात को स्वीकार करना नहीं चाहता था। सूरदास जानता था कि उसने यह धन भीख माँगकर जोड़ा था। एक अंधे भिखारी के लिए निर्धनता इतनी लज्जा की बात नहीं थी, जितना धन का संग्रह करना। रुपयों को अपना स्वीकार करने से होने वाले अपमान से बचने के लिए वह जगधर से अपनी आर्थिक हानि की बात को छिपा रहा था। वर्तमान में भी समाज की यही मान्यता है। यदि कोई भिखारी अधिक धन संचय कर ले तो उसे हेय दृष्टि से देखा जाता है।

प्रश्न 6. 'सूरदास उठ खड़ा हुआ और विजय गर्व की तरंग में राख के ढेर को दोनों हाथों से उड़ाने लगा।' इस कथन के संदर्भ में सूरदास की मनोदशा का वर्णन कीजिए।

उत्तर : अपनी झोंपड़ी के जलने का इतना दुःख सूरदास को नहीं था जितना अपने संचित किए हुए रुपयों के जाने का। वह व्याकुल, उतावला, निराश और चिन्तित होकर रोने लगा था। सूरदास की इस मनोदशा में अचानक परिवर्तन हुआ। उसने सुना, कोई कह रहा था 'तुम खेल में रोते हो!' इन शब्दों ने सूरदास की मनोदशा को बदल दिया। निराशा, ग्लानि, चिंता और क्षोभ से भरा हुआ सूरदास एकदम इनकी जकड़ से मुक्त हो गया। वह उठा और विजय गर्व की तरंग में राख के ढेर को दोनों हाथों से उड़ाने लगा। हारते-हारते सूरदास विजयी हो गया। उसके मन की निराशा मिट गई। वह आत्म- विश्वास से भर उठा।

प्रश्न 7. 'तो हम सौ लाख बार बनाएँगे' इस कथन के सन्दर्भ में सूरदास के चरित्र का विवेचन कीजिए।

उत्तर : सूरदास की झोंपड़ी' का नायक एवं प्रमुख पात्र सूरदास ही है। उसकी झोंपड़ी जला दी जाती है और जीवन-भर की संचित कमाई चोरी हो जाती है। वह निराश, उदास और दुःखी है। मिठुआ के पूछने पर वह अपनी झोंपड़ी को बार-बार बनाने का निश्चय प्रकट करता है और कहता है "तो हम सौ लाख बार बनाएँगे।" इस कथन के सन्दर्भ में सूरदास के चरित्र की कुछ प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

1. दृढ़-निश्चयी-सूरदास भिखारी होते हुए भी दृढ़ निश्चयी है। उसकी झोंपड़ी को द्वेषवश भैरों जला देता है और रुपये चुरा लेता है। सूरदास बहुत दुःखी है, किन्तु उसमें निश्चय की कमी नहीं है।

2. बालोचित सरलता-सूरदास में बालोचित सरलता है। झोंपड़ी के जलने पर और रुपयों के न मिलने पर वह दुःखी होकर रोने लगता है। परन्तु घीसू को मिठुआ से यह कहते सुनकर" खेल में रोते हो" वह एकदम बदल जाता है, उसका पराजयभाव समाप्त हो जाता है।

3. कर्मठ और उदार-सूरदास कर्मठ है। वह भीख माँगता है, परन्तु अपने कामों में लगा रहता है। द्वेषवश भैरों उसकी झोंपड़ी जला देता है तथा रुपये चुरा लेता है तब भी वह उसके प्रति उदार बना रहता है।

4. परम्परा का प्रेमी सरदास धार्मिक परम्परा को मानता है। वह अपने पुरखों का गया में जाकर पिंडदान करना चाहता है। दूसरों के हित में कुँआ बनवाना चाहता है। वह मिठुआ की शादी करने का अपना कर्तव्य भी निभाना चाहता है। वह भैरों की पत्नी सुभागी को पिटने से बचाता है। वह अपने रुपयों की चोरी को पूर्व जन्म के पाप का परिणाम मानता है।

5. सहनशील-सूरदास सहनशील व्यक्ति है। झोंपड़ी जलने से उसकी सभी आशाएँ और योजनाएँ जल जाती हैं, पर वह सब कुछ चुपचाप सह लेता है।

योग्यता विस्तार -

1. इस पाठ का नाट्य रूपांतर कर उसकी प्रस्तुति कीजिए।

2. प्रेमचंद के उपन्यास 'रंगभूमि' का संक्षिप्त संस्करण पढ़िए।

निर्देश - छात्र स्वयं करें।

JCERT/JAC REFERENCE BOOK

Hindi Elective (विषय सूची)

भाग-1

क्रं.सं.

विवरण

1.

देवसेना का गीत

2.

सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"

3.

सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय

4.

बनारस

5.

विष्णु खरे

6.

वसंत आया

7.

भरत राम का प्रेम पद

8.

बारहमासा

9.

विद्यापति (पद)

10.

रामचंद्रचंद्रिका

11.

घनानंद

12.

प्रेमघन की छाया-स्मृति

13.

सुमिरनी के मनके

14.

कच्चा चिट्ठा

15.

संवदिया

16.

गांधी नेहरू और यासर अराफात

17.

शेरपहचानचार हाथसाझा

18.

जहां कोई वापसी नहीं

19.

यथास्मै रोचते विश्वम

20.

दूसरा देवदास

21.

हजारी प्रसाद द्विवेदी

भाग-2

कं.सं.

विवरण

1.

सूरदास की झोंपड़ी

2.

आरोहण

3.

बिस्कोहर की माटी

4.

अपना मालवा खाऊ-उजाडू सभ्यता


JCERT/JAC Hindi Elective प्रश्न बैंक - सह - उत्तर पुस्तक (Question Bank-Cum-Answer Book)

विषय सूची

अंतरा भाग 2

पाठ

नाम

खंड

कविता खंड

पाठ-1

जयशंकर प्रसाद

(क) देवसेना का गीत

(ख) कार्नेलिया का गीत

पाठ-2

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला

(क) गीत गाने दो मुझे

(ख) सरोज - स्मृति

पाठ-3

सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय

(क) यह दीप अकेला

(ख) मैंने देखा एक बूँद

पाठ-4

केदारनाथ सिंह

(क) बनारस

(ख) दिशा

पाठ-5

विष्णु खरे

(क) एक कम

(ख) सत्य

पाठ-6

रघुबीर सहाय

(क) बसंत आया

(ख) तोड़ो

पाठ-7

तुलसीदास

(क) भरत - राम का प्रेम

(ख) पद

पाठ-8

मलिक मुहम्मद जायसी

बारहमासा

पाठ-9

विद्यापति

पद

पाठ-10

केशवदास

कवित्त / सवैया

पाठ-11

घनानंद

कवित्त / सवैया

गद्य खंड

पाठ-1

रामचन्द्र शुक्ल

प्रेमधन की छायास्मृति

पाठ-2

पंडित चंद्रधर शर्मा गुलेरी

सुमिरनी के मनके

पाठ-3

ब्रजमोहन व्यास

कच्चा चिट्ठा

पाठ-4

फणीश्वरनाथ 'रेणु'

संवदिया

पाठ-5

भीष्म साहनी

गांधी, नेहरू और यास्सेर अराफत

पाठ-6

असगर वजाहत

शेर, पहचान, चार हाथ, साझा

पाठ-7

निर्मल वर्मा

जहाँ कोई वापसी नहीं

पाठ-8

रामविलास शर्मा

यथास्मै रोचते विश्वम्

पाठ-9

ममता कालिया

दूसरा देवदास

पाठ-10

हजारी प्रसाद द्विवेदी

कुटज

अंतराल भाग - 2

पाठ-1

प्रेमचंद

सूरदास की झोपडी

पाठ-2

संजीव

आरोहण

पाठ-3

विश्वनाथ तिरपाठी

बिस्कोहर की माटी

पाठ-

प्रभाष जोशी

अपना मालवा - खाऊ- उजाडू सभ्यता में

अभिव्यक्ति और माध्यम

1

अनुच्छेद लेखन

2

कार्यालयी पत्र

3

जनसंचार माध्यम

4

संपादकीय लेखन

5

रिपोर्ट (प्रतिवेदन) लेखन

6

आलेख लेखन

7

पुस्तक समीक्षा

8

फीचर लेखन

JAC वार्षिक इंटरमीडिएट परीक्षा, 2023 प्रश्न-सह-उत्तर

Class 12 Hindi Elective (अंतरा - भाग 2)

पद्य खण्ड

आधुनिक

1.जयशंकर प्रसाद (क) देवसेना का गीत (ख) कार्नेलिया का गीत

2.सूर्यकांत त्रिपाठी निराला (क) गीत गाने दो मुझे (ख) सरोज स्मृति

3.सच्चिदानंद हीरानंद वात्सयायन अज्ञेय (क) यह दीप अकेला (ख) मैंने देखा, एक बूँद

4.केदारनाथ सिंह (क) बनारस (ख) दिशा

5.विष्णु खरे (क) एक कम (ख) सत्य

6.रघुबीर सहाय (क) वसंत आया (ख) तोड़ो

प्राचीन

7.तुलसीदास (क) भरत-राम का प्रेम (ख) पद

8.मलिक मुहम्मद जायसी (बारहमासा)

9.विद्यापति (विद्यापति के पद)

10.केशवदास (रामचंद्रचंद्रिका)

11.घनानंद (घनानंद के कवित्त / सवैया)

गद्य-खण्ड

12.रामचंद्र शुक्ल (प्रेमघन की छाया-स्मृति)

13.पंडित चंद्रधर शर्मा गुलेरी (सुमिरिनी के मनके)

14.ब्रजमोहन व्यास (कच्चा चिट्ठा)

15.फणीश्वरनाथ रेणु (संवदिया)

16.भीष्म साहनी (गांधी, नेहरू और यास्सेर अराफात)

17.असगर वजाहत (शेर, पहचान, चार हाथ, साझा)

18.निर्मल वर्मा (जहाँ कोई वापसी नहीं)

19.रामविलास शर्मा (यथास्मै रोचते विश्वम्)

20.ममता कालिया (दूसरा देवदास)

21.हज़ारी प्रसाद द्विवेदी (कुटज)

12 Hindi Antral (अंतरा)

1.प्रेमचंद = सूरदास की झोंपड़ी

2.संजीव = आरोहण

3.विश्वनाथ त्रिपाठी = बिस्कोहर की माटी

4.प्रभाष जोशी = अपना मालवा खाऊ-उजाडू सभ्यता में

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