15. संवदिया
1 जीवन परिचय
जन्म
4 मार्च सन् 1921 ई. औराही हिंगना नामक गाँव, फारबिसगंज, जिला - अररिया
(पूर्णिया), बिहार
शिक्षा-प्रारंभिक
शिक्षा फारबिसगंज तथा अररिया में पूरी करने के बाद रेणु ने मैट्रिक नेपाल के
विराटनगर के विराटनगर आदर्श विद्यालय से कोईराला परिवार में रहकर की। इन्होने
इन्टरमीडिएट काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से 1942 में की जिसके बाद वे स्वतंत्रता
संग्राम में कूद पड़े।
कैरियर-
1950 में उन्होने नेपाली क्रांतिकारी आन्दोलन में भी हिस्सा लिया जिसके
परिणामस्वरुप नेपाल में जनतंत्र की स्थापना हुई। पटना विश्वविद्यालय के
विद्यार्थियों के साथ छात्र संघर्ष समिति में सक्रिय रूप से भाग लिया और जयप्रकाश
नारायण की सम्पूर्ण क्रांति में अहम भूमिका निभाई। 1952- 53 के समय वे भीषण रूप से
रोगग्रस्त रहे थे जिसके बाद लेखन की ओर उनका झुकाव हुआ।
मृत्यु-11
अप्रैल सन् 1977 ई.
2 साहित्यिक परिचय
।.
उन्होने हिन्दी में आँचलिक कथा की नींव रखी। रेणु को जितनी ख्याति हिंदी साहित्य
में अपने उपन्यास मैला आँचल से मिली, उसकी मिसाल मिलना दुर्लभ है। इस उपन्यास के
प्रकाशन ने उन्हें रातो-रात हिंदी के एक बड़े कथाकार के रूप में प्रसिद्ध कर दिया।
कुछ आलोचकों ने इसे गोदान
के बाद इसे हिंदी का दूसरा सर्वश्रेष्ठ उपन्यास घोषित करने में भी देर नहीं की। हालाँकि
विवाद भी कम नहीं खड़े किये उनकी प्रसिद्धि से जलनेवालों ने. इसे सतीनाथ भादुरी के
बंगला उपन्यास 'धोधाई चरित मानस' की नक़ल बताने की कोशिश की गयी। पर समय के साथ इस
तरह के झूठे आरोप ठण्डे पड़ते गए।
II. प्रमुख रचनाएँ
• कहानी – संग्रह – ठुमरी, आदिम रात्रि की महक, अग्निखोर, तीसरी कसम उर्फ मारे गए गुलफाम
• उपन्यास - मैला आँचल 1954 ई.,
परती परिकथा 1957 ई. जूलूस, दीर्घतपा 1964 ई. कितने चौराहे 1966 ई. कलंक मुक्ति
1972 ई. पलटू बाबू रोड 1979 ई.
• रिपोर्ताज- ऋणजल-धनजल, नेपाली क्रांतिकथा, वनतुलसी की गंध, श्रुत अश्रुत पूर्वे
• प्रसिद्ध कहानियाँ - मारे गये गुलफाम (तीसरी कसम),
आदिम रात्रि की महक,
लाल पान की बेगम,
पंचलाइट,
तबे एकला चलो रे,
ठेस,
संवदिया
• उपन्यास- 'मैला आंचल' के लिये उन्हें पद्मश्री से सम्मानित
किया गया।
• तीसरी कसम पर इसी नाम से राजकपूर और वहीदा रहमान की मुख्य
भूमिका में प्रसिद्ध फिल्म बनी जिसे बासु भट्टाचार्य ने निर्देशित किया और सुप्रसिद्ध
गीतकार शैलेन्द्र इसके निर्माता थे। यह फिल्म हिंदी सिनेमा में मील का पत्थर मानी जाती
है। हीरामन और हीराबाई की इस प्रेम कथा ने प्रेम का एक अद्भुत महाकाव्यात्मक पर दुखांत
कसक से भरा आख्यान सा रचा जो आज भी पाठकों और दर्शकों को लुभाता है।
पाठ परिचय
1. प्रस्तुत कहानी 'संवदिया' फणीश्वरनाथ 'रेणु' द्वारा रचित
है। इस कहानी में मानवीय संवेदना की गहन अभिव्यक्ति हुई है।
रेणु ने विपन्न, बेसहारा, सहनशील बड़ी बहुरिया की असहाय स्थिति,
उसकी कोमल भावनाओं, मानसिक यातना तथा पीड़ा का मार्मिक चित्रण किया है।
2 हरगोबिन एक संवदिया है। संवदिया अर्थात् संदेशवाहक। बड़ी
हवेली से बड़ी बहुरिया का बुलावा आने पर हरगोबिन को आश्चर्य होता है कि आज जबकि संदेश
भेजने के लिए गाँव गाँव में डाकघर खुल गए हैं, बड़ी बहुरिया ने उसे क्यों बुलवाया है
? फिर हरगोबिन ने अंदाजा लगाया कि अवश्य ही कोई गुप्त संदेश ले जाना है।
3 बड़ी हवेली पहुँचने पर हरगोबिन अतीत की यादों में खो गया।
पहले बड़ी हवेली में नौकर नौकरानियों की भीड़ लगी रहती थी। आज बड़ी बहुरिया सूपा में
अनाज फटक रही है। समय कितना बदल गया है।
4 बड़े भैया की मृत्यु के बाद तीनों भाई परस्पर लड़ने लगे।
बड़ी बहू के जेवर-कपड़े तक भाइयों ने आपस में बाँट लिया। लोगों ने जमीन पर कब्जा कर
लिया। तीनों भाई गाँव छोड़कर शहर में जा बसे। गाँव में केवल बड़ी बहुरिया रह गई।
5 अब बड़ी बहुरिया की आर्थिक स्थिति इतनी खराब हो गई थी कि
वह उधार लेकर अपना खर्च चला रही थी। गाँव की मोदिआइन अपना उधर वसूल करने के लिए बैठी
थी और कड़वी बातें सुनाती जा रही थी। बड़ी बहुरिया उसका उधर चुकाने की स्थिति में नही
थी।
6 मोदिआइन के जाने के बाद बड़ी बहुरिया ने हरगोबिन को बताया
कि वह अपनी माँ के पास संवाद भेजना चाहती है। संवाद कहने से पूर्व ही बड़ी बहुरिया
रोने लगी। हरगोबिन ने पहली बार बड़ी बहुरिया को इस प्रकार रोते देखा था। उसकी भी आँखे
छलछला आई। बड़ी बहुरिया ने फिर दिल को कड़ा करके कहा- 'माँ से कहना, मैं भाई-भाभियों
की नौकरी करके पेट पाल लूँगी, बच्चों की जूठन खाकर एक कोने में पड़ी रहूँगी, लेकिन
अब यहाँ नहीं रह सकूँगी।' यदि माँ मुझे यहाँ से नही ले जाएगी तो मै आत्महत्या कर लूँगी।
बथुआ साग खाकर कब तक जीऊँ ? किसलिए जीऊँ ? किसके लिए जीऊँ ?
7 हरगोबिन बड़ी बहुरिया के प्रति उसके देवर-देवरानियों के
व्यवहार को जानता था। उसका रोम-रोम कलपने लगा। बड़ी बहुरिया की दुर्दशा देखकर उसका
मन बहुत दुःखी हुआ। बड़ी बहुरिया हरगोबिन के जाने के राहखर्च के लिए मात्र पाँच रूपये
जुटा पाई थी। हरगोबिन ने यह कहकर राहखर्च लेने से इंकार कर दिया कि राहखर्च का इंतजाम
वह स्वयं कर लेगा।
8 संवदिया अर्थात् संदेशवाहक का कार्य प्रत्येक व्यक्ति नहीं
कर सकता। यह प्रतिभा जन्मजात होती है। संवदिया को संवाद का प्रत्येक शब्द याद रखना
होता है। उसी सुर और स्वर में तथा ठीक उसी ढंग से संवाद सुनाना आसान काम नही है।
9 संवादिया के विषय में गाँववालो की धरणा सही नहीं थी। उनके
अनुसार निठल्ला, पेटू और कामचोर व्यक्ति ही संवदिया का काम करता है। ऐसा व्यक्ति जिसके
ऊपर कोई पारिवारिक जिम्मेवारी न हो। गाँववालों के अनुसार संवादिया औरतों की मीठी मीठी
बातों में आ जाता है तथा बिना मजदूरी लिए कही भी संवाद पहुँचाने को तैयार हो जाता है।
10 पति की मृत्यु के बाद बड़ी बहुरिया लाचार हो गई थी। वह
अभावग्रस्त एवं कष्टमय जीवन व्यतीत कर रही थी। हरगोबिन के मन में काँटे की चुभन का
अनुभव हो रहा था क्योंकि उसे बड़ी बहुरिया के संवाद का प्रत्येक शब्द उसे याद आ रहा
था। उसके संवाद में उसके हृदय की वेदना, उसकी बेबसी, उसका दुःख झलक रहा था। हरगोबिन
उसकी पीड़ा को अपने भीतर महसूस कर रहा था। मन की इस चुभन से छुटकारा पाने के लिए उसने
अपने सहयात्री से बातचीत करने का उपाय सोचा।
11 लोग संवदिया की बहुत खातिरदारी करते थे, उसे बहुत सम्मान
देते थे क्योंकि वह लम्बी यात्रा करके उनके प्रियजनों का संदेश उन तक लाता था। उसे
अच्छी तरह भोजन कराया जाता था। भरपेट भोजन करने के बाद संवदिया यात्रा की थकान उतारने
के लिए गहरी नींद सोता था।
12 बड़ी बहुरिया के मायके पहुँचने पर जब हरगोबिन के सामने
कई प्रकार के व्यंजनों से भरी थाली आई, तो उससे खाना खाया नहीं गया। उसे रह-रहकर बड़ी
बहुरिया का ध्यान आ रहा था कि वह बथुआ साग उबालकर खा रही होगी। बूढ़ी माँ ने बहुत आग्रह
किया पर हरगोबिन से ज्यादा खाया ही नहीं गया। हरगोबिन बड़ी बहुरिया का सही संदेश बूढ़ी
माँ को नहीं सुना पाया था, इसी चिंता में रातभर उसे नींद नही आ रही थी। उसके मन में
विचारों का संघर्ष चल रहा था।
13 हरगोबिन के मन में बड़ी बहुरिया और अपने गाँव के प्रति
बहुत सम्मान था। वह बड़ी बहुरिया को गाँव की लक्ष्मी मानता था। वह सोच रहा था कि यदि
गाँव की लक्ष्मी ही गाँव छोड़कर मायके चली जाएगी तो गाँव में क्या रह जाएगा ? वह किस
मुँह से यह संदेश दे कि बड़ी बहुरिया उसके गाँव में बथुआ साग खाकर गुजारा कर रही है।
वह कष्ट में है इसलिए उसे अपने पास बुला लो। यह संवाद सुनकर लोग उसके गाँव के नाम पर
थूकेंगे। अपने गाँव की बदनामी के भय से हरगोबिन बड़ी बहुरिया का संदेश नहीं सुना सका।
बिना संदेश सुनाए वह वापस लौट गया।
14 जलालगढ़ पहुँचकर हरगोबिन ने बड़ी बहुरिया के पैर पकड़कर,
संवाद न सुना पाने के कारण माफ़ी माँगी। उसने कहा कि वह बड़ी बहुरिया के बेटे के समान
है। बड़ी बहुरिया उसकी माँ के समान है, पूरे गाँव की माँ के समान है। वह उससे आग्रह
करता है कि वह गाँव छोड़कर न जाए तथा साथ ही संकल्प लेता है कि वह अब निठल्ला नहीं
बैठा रहेगा। उसे कोई कष्ट नहीं होने देगा तथा उसके सब काम करेगा।
15 बड़ी बहुरिया स्वयं अपने मायके संदेश भेजने के बाद से
ही पछता रही थी।
प्रश्न- अभ्यास
प्रश्न 1. संवदिया की क्या विशेषताएँ हैं और
गाँववालों के मन में संवदिया की क्या अवधारणा है ?
उत्तर : संवाद के प्रत्येक शब्द को याद रखना तथा जिस सुर
और स्वर में संवाद सुनाया गया है, ठीक उसी ढंग से जाकर संवाद
सुनाना संवदिया की विशेषताएँ हैं। यह सहज काम नहीं है। गाँववालों
की संवदिया के विषय में धारणा है कि निठल्ला. कामचोर और पेटू आदमी ही संवदिया का काम
करता है। बिना मजदूरी लिए वह गाँव-गाँव संवाद पहुँचाता रहता है। औरतों की मीठी मीठी
बोली सुनकर ही वह उनका संदेशवाहक बन जाता है। हरगोबिन को इसीलिए गाँववाले औरतों का
गुलाम कहते हैं।
प्रश्न 2. बड़ी हवेली से बुलावा आने पर हरगोबिन
के मन में किस प्रकार की आशंका हुई ?
उत्तर: बड़ी हवेली से संवदिया हरगोबिन के लिए जब बुलावा आया
तो उसे आशंका हुई कि जरूर कोई गुप्त संवाद बड़ी बहुरिया को कहीं भिजवाना है, जिसकी
ख़बर चाँद-सूरज तक को न हो और जिसे पंछी-परेवा भी न जानें। अन्यथा आज के जमाने में
जब गाँव- गाँव में डाकघर खुल गए हैं तब किसी को संवदिया के माध्यम से संवाद भिजवाने
की क्या जरूरत ?
प्रश्न 3. बड़ी बहुरिया अपने मायके संदेश क्यों
भेजना चाहती थी ?
उत्तर : बड़ी बहुरिया के पति की अकाल मृत्यु हो जाने से हवेली
की दुर्दशा हो गयी थी। तीनों देवर शहर में जाकर बस गए थे, रैयतों ने जमीन पर दखल कर
लिया था। अब बड़ी बहुरिया बहुत कष्ट में थी, बड़ी हवेली में अकेली रहती थी। उसके खाने-पीने
की व्यवस्था भी नहीं हो पाती थी। उसे कोई उधार भी नहीं देता था, मोदिआइन तगादा करके
उसे अपमानित करती थी। बथुआ-साग खाकर वह कब तक गुजारा करती अतः उसने अपनी माँ के पास
संवदिया के द्वारा यह संदेश भिजवाया कि माँ उसे शीघ्र बुलवा ले, वह भाभी के बच्चों
की जूठन खाकर कोने में पड़ी रहेगी। यदि ऐसा न हुआ तो वह आत्महत्या कर लेगी।
प्रश्न 4. हरगोबिन बड़ी हवेली पहुँचकर अतीत
की किन स्मृतियों में खो जाता है?
उत्तर : हरगोबिन बड़ी हवेली पहुँचकर अतीत की स्मृतियों में
खो गया। अब यह नाम की बड़ी हवेली है। पहले यहाँ दिन रात नौकर - नौकरानियों और जन-मजदूरों
की भीड़ लगी रहती थी और आज बड़ी बहुरिया अपने हाथ से सूप में अनाज लेकर फटक रही थी।
कभी बड़ी बहुरिया के हाथों में मेंहदी लगाकर गाँव की नाइन अपने परिवार का पालन-पोषण
कर लेती थी और अब सब काम बड़ी बहरिया को अपने हाथों करना पड़ रहा था। बड़े भईया के
मरते ही सब खेल खत्म हो गया। शेष बचे तीनों भाइयों में लड़ाई-झगड़ा हुआ, रैयतों ने
जमीन पर दखल कर लिया और अब वे तीनों भाई शहर में जा बसे। बड़ी हवेली में रह गई अकेली
बड़ी बहुरिया।
प्रश्न 5. संवाद कहते वक्त बड़ी बहुरिया की
आँखें क्यों छलछला आईं ?
उत्तर : बड़ी बहुरिया जब हरगोबिन को अपनी विपत्ति कथा सुना
रही थी तो उसकी आँखें छलछला आईं। कहाँ वह तो गाँव की जमींदारिन थी, बड़ी हवेली की मालकिन
थी और कहाँ अब ऐसे बुरे दिन आए कि उसका गुजारा भी कठिन हो गाया है। बथुआ साग खाकर भूख
मिटाती है। वह भाभी के बच्चों की जूठन खाकर और कोने में पड़ी रहकर मायके में दिन काट
लेने को तैयार थी। यह सब संवदिया को बताते हुए उसके आत्मसम्मान को ठेस लग रह था। यह
कहते वक्त कि अब ससुराल में उसका गुजारा नहीं हो रहा और अगर माँ ने नहीं बुलाया तो
वह डूब मरेगी। उसके अन्तर्मन की वेदना बाहर छलक रही थी। इन सब कारणों से उसकी आँखों
में आँसू छलछला उठे थे।
प्रश्न 6. गाड़ी पर सवार होने के बाद संवदिया
के मन में काँटे की चुभन का अनुभव क्यों हो रहा था उससे छुटकारा पाने के लिए उसने क्या
उपाय सोचा ?
उत्तर : बडी बहरिया के मार्मिक संदेश का प्रत्येक शब्द हरगोबिन
के मन में काँटे की तरह चभ रहा था। उसने कहा था--माँ से कहना कि भाभी के बच्चों की
जूठन खाकर कोने में पड़ी रहूँगी। यहाँ अकेली किसके भरोसे रहूँ? एक नौकर था वह भी कल
भाग गया। गाय खूंटे से बँधी भूखी-प्यासी हिकर रही है। किसके लिए वह इतना दुःख झेले।
ये सब बातें गाड़ी में बैठे हरगोबिन के मन में काँटे की तरह चुभ रही थीं। इस दुःख से
छुटकारा पाने के लिए उसने पास बैठे हुए यात्री से बातचीत का प्रयास किया।
प्रश्न 7. बड़ी बहुरिया का संवाद हरगोबिन क्यों
नहीं सुना सका?
उत्तर : बड़ी बहरिया पूरे गाँव की लक्ष्मी थी। यदि वह बड़ी
बहुरिया की विपत्ति कथा उसकी माँ से कहता तो वह उसे अपने पास बुला लेती। यह पूरे गाँव
की बदनामी थी। गाँव की लक्ष्मी गाँव छोड़कर चली जायेगी जाएगा। सुनने वाले हरगोबिन के
गाँव का नाम लेकर थूकेंगे.. कैसा गाँव है, जहाँ लक्ष्मी जैसी बहुरिया दुःख भोग रही
है। इसी कारण हरगोबिन बड़ी बहुरिया का संवाद उनकी माँ को नहीं सुना सका।
प्रश्न 8. 'संवदिया डटकर खाता है और अफर कर
सोता है' से क्या आशय है ?
उत्तर : संवदिया जहाँ संवाद लेकर जाता है वहाँ उसका भरपर
आतिथ्य होता है। अच्छा भोजन और बिस्तर उसे दिया जाता है इसीलिए संवदिया पेट भरकर खाता
है और गहरी आराम की नींद सोता है। संवदिया एक प्रकार का. दूत होता है, जो अपने स्वामी
का संदेश दूसरों तक ससम्मान पहुँचाता है। वह संदेश के महत्त्व का विचार करके उसको ज्यों
का त्यों पहुँचाता है तथा संदेश भेजने वाले के हावभाव तक को सजीव अभिव्यक्ति देता है।
वह संदेश की गोपनीयता को भी बनाये रखता है। उसके महत्त्वपूर्ण कार्य के लिए उसको सुविधायें
प्रदान की जाती हैं, जिनका वह भरपूर उपयोग करता है।
प्रश्न 9. जलालगढ़ पहुँचने के बाद बड़ी बहुरिया
के सामने हरगोबिन ने क्या संकल्प लिया ?
उत्तर : बड़ी बहू के मायके से जब हरगोबिन संवदिया अपने गाँव
जलालगढ़ लौटा तो बीस कोस पैदल चलने की थकान और भूख के कारण वह बेहोश हो गया। जब होश
में आया तो बड़ी बहुरिया के पैर पकड़कर उसने माफी माँगी और उन्हें बताया कि वह उनका
संवाद उनके मायके में माँ जी को नहीं सुना सका। हरगोबिन ने बड़ी बहुरिया से संकल्प
व्यक्त किया कि आज से मैं आपका बेटा हूँ और आप मेरी ही नहीं सारे गाँव की माँ हैं।
आप गाँव छोड़कर नहीं जाएँगी। अब मैं आपको कोई कष्ट नहीं होने दूंगा। आपकी देखभाल मैं
बेटा बनकर करूँगा और निठल्ला न रहकर काम- काज करूँगा। आपका सारा काम भी मैं ही करूँगा
बस आप गाँव छोड़कर न जाएँ।
प्रश्न 10. 'डिजिटल इंडिया' के बैर में संवदिया
की क्या कोई भूमिका हो सकती है?
उत्तर : पुराने समय में जब आवागमन के साधन बहुत कम थे। सूचनाओं
के आदान- प्रदान की व्यवस्था नहीं थी। उस समय गाँवों में अपना समाचार भेजने के लिए
संवदिया होता था। संवदिया. एक संदेशवाहक होता है, जो यथावत् संवाद को बोलकर संदेश को
पहुँचाता है। वर्तमान में 'डिजिटल इंडिया' होने पर संचार के अनेकानेक माध्यम विकसित
हो गए हैं। जो किसी भी समाचार को दृश्य- श्रव्य माध्यम से दुनिया के किसी भी कोने में
क्षणभर में पहुँचा देते हैं। अतः डिजिटल इंडिया में संवदिया की प्रत्यक्षतः कोई भूमिका
नजर नहीं आती। लेकिन संवदिया एक विश्वसनीय व्यक्ति होता है, अतः विशेष क्षेत्रों, परिस्थितियों
में तथा परंपरा के अनुसार संवदिया का आज भी महत्व है।
भाषा-शिल्प
प्रश्न 1. इन शब्दों का अर्थ समझिए -
(i) काबुली-कायदा - काबुल के पठानों का कायदा जो उधार दिए रुपयों को बड़ी निर्दयता
से वसूल करते थे। उधार देते समय तो वे मीठा बोलते थे पर सूद और मूल वसूलते समय गाली-गलौज
एवं कठोर भाषा का प्रयोग करते थे।
(ii) रोम-रोम कलपने लगा- शरीर के रोम-रोम से बड़ी बहुरिया के देवर- देवरानियों के प्रति अभिशाप निकल
रहा था। अर्थात् उसका रोम-रोम बड़ी बहुरिया के देवर-देवरानियों की निर्दयता और निष्ठुरता
को देखकर दुखी था।
(iii) अगहनी धान- धान की वह फसल जो अगहन में पककर तैयार हो जाती है, अगहनी
धान कही जाती है।
प्रश्न 2. पाठ से प्रश्नवाचक वाक्यों को छाँटिए
और संदर्भ : के साथ उन पर टिप्पणी लिखिए।
(i) फिर उसकी बुलाहट क्यों हुई ?
उत्तर : सन्दर्भ : हरगोबिन संवदिया को बड़ी हवेली की बड़ी
बहू ने बुलाया है। आज के जमाने में गाँव-गाँव में डाकघर खुल गए हैं तब भी संवदिया की
आवश्यकता क्यों पड़ गई। जरूर कोई गुप्त संदेश बड़ी बहू को भिजवाना है
संभवतः इसीलिए उसे बुलाया गया है।
(ii) कहाँ गए वे दिन ?
उत्तर : सन्दर्भ : बड़ी हवेली के वे पुराने दिन कहाँ गए जब
यहाँ समृद्धि का बोलबाला था। नौकर-नौकरानियाँ, जन-मजदूरों की भीड़ लगी रहती थी पर आज
बड़ी बहुरिया हवेली में अकेली रह गई। उसके पति की अकाल मृत्यु होते ही सब खेल खत्म
हो गया। कहाँ तो गाँव की नाइन बड़ी बहू के हाथों में मेंहदी लगाकर अपना परिवार पाल
लेती थी और आज हालत यह है कि बड़ी बहू बथुआ-साग खाकर गुजारा कर रही है, अपने उन्हीं
हाथों से सूप में अनाज फटक रही है।
(iii) मैं किसके लिए इतना दुःख झेलूँ ?
उत्तर : सन्दर्भ : बड़ी बहुरिया अब हवेली में अकेली रह गयी
है। देवर-देवरानियाँ शहर में जाकर बस गये हैं। नौकर भाग बँधी रँभा रही है। खाने के लिए बथुआ-साग ही मिल पाता है कब
तक उसे खाकर गुजारा करे। किसके लिए इतना दुःख झेले बड़ी बहुरिया, यही हरगोबिन सोच रहा
था।
प्रश्न 3. इन पंक्तियों की व्याख्या : कीजिए
-
(क) बड़ी हवेली अब नाममात्र को ही बड़ी हवेली है।
व्याख्या: बड़ी हवेली पहले वास्तव में बड़ी हवेली थी। पहले
यहाँ नौकर-नौकरानियों, जन-मजदूरों की भीड़ लगी रहती थी पर अब सब खेल खत्म हो गया। बडे
भइया की अकाल मत्य हो गई. शेष बचे तीन भाई शहर में जाकर रहने लगे। रैयतों ने जमीन पर
कब्जा कर लिया और अब तो हालत यह हो गई है कि बड़ी हवेली की बड़ी बहुरिया के पास खाने
तक को अनाज नहीं है, बथुआ-साग खाकर गुजारा कर रही है। बड़ी हवेली अब नाम की बड़ी हवेली
है वैसे वहाँ सर्वत्र दरिद्रता का साम्राज्य है।
(ख) हरगोबिन ने देखी अपनी आँखों से द्रौपदी की चीरहरण लीला।
व्याख्या : बड़ी हवेली के बड़े भइया की अकाल मृत्यु होते
ही सारा खेल खत्म हो गया। शेष बचे तीनों भाई आपस में लड़ने-झगड़ने लगे थे, जमीन पर
रैयत ने कब्जा कर लिया और अन्ततः तीनों भाई शहर में जाकर बस गए। उन तीनों ने आपस में
बँटवारा करते समय बड़ी बहुरिया के शरीर के जेवर तो उतरवाकर बाँट ही लिए थे और उसके
शरीर पर पहनी बनारसी साड़ी को भी उतरवाकर उसके तीन टुकड़े कर बाँट लिए थे। द्रौपदी
के ची उरण जैसी यह लीला हरगोबिन ने अपनी आँखों से देखी थी।
(ग) बथुआ-साग खाकर कब तक जीऊँ ?
व्याख्या : बड़ी बहुरिया ने हरगोबिन संवदिया को बुलाकर अपनी
माँ को यह संदेश भिजवाया कि मैं बहुत कष्ट में हैं। यहाँ मेरे पास खाने तक के लिए नहीं
है। बथुआ-साग खाकर जैसे तैसे पेट की आग शांत करती हूँ पर ऐसा कब तक चलेगा। इस पंक्ति
का अर्थ है कि खाने के लिए मेरे घर में अनाज तक नहीं है। कोई व्यक्ति बथुआ-साग खाकर
कब तक जीवित रह सकता है अर्थात् अब मैं ज्यादा जीवित नहीं रह सकती।
(घ) किस मुँह से वह ऐसा संवाद सुनाएगा?
व्याख्या : बड़ी बहुरिया ने अपनी माँ को सुनाने के लिए जो
संवाद दिया था वह इतना मार्मिक और करुण था कि हरगोबिन को लगा कि वह यह संवाद सुना नहीं
पाएगा। बड़ी बहू आर्थिक कष्ट के कारण बड़ी हवेली छोड़कर मायके में रहकर गुजारा करने
का संदेश भिजवा रही है इससे तो सारे गाँव की बदनामी हो जाएगी। गाँव की लक्ष्मी ही गाँव
से चली जाएगी तो लोग गाँव का नाम लेकर थूकेंगे, कैसा गाँव है जहाँ लक्ष्मी जैसी बहुरिया
दुःख भोग रही है। कैसे वह माँ जी से कह सकेगा कि उसकी बेटी बश साग खाकर गुजारा कर रही
है। किस मुँह से वह ऐसा संवाद सुना पाएगा अर्थात् यह संवाद सुना पाने लायक साहस के
पास नहीं है।
योग्यता विस्तार -
प्रश्न 1. संवदिया की भूमिका आपको मिले तो
आप क्या करेंगे? संवदिया बनने के लिए किन बातों का ध्यान रखना पड़ता है?
उत्तर : संवदिया की भूमिका यदि मुझे मिले तो मैं इसे प्रसन्नता
से करूँगा क्योंकि दूसरों के संदेश को पहुँचाना सेवा कार्य है और यह सेवा करके मुझे
आंतरिक प्रसन्नता प्राप्त होगी। संवदिया वही बन सकता है जो 1. प्रत्येक शब्द को याद
रख सके। 2. जिस सुर और स्वर में बात कही गयी है ठीक उसी ढंग से जाकर सुना दे। 3. संवदिया
को संवाद की गोपनीयता भी बनाए रखनी चाहिए। जिसके लिए संवाद भेजा गया है, केवल उसे ही
वह संवाद देना चाहिए।
प्रश्न 2. इस कहानी का नाट्य रूपांतरण कर विद्यालय
के मंच पर प्रस्तुत कीजिए।
वस्तुनिष्ठ प्रश्न
1 प्रश्न- फणीश्वर नाथ रेणु का जन्म मृत्यु के उचित विकल्प का चयन करें
1.
1821-1977
2.
1720-1832
3. 1921-1977
4.
1925-1975
2 प्रश्न- फणीश्वर नाथ रेणु का जन्म दिए गए विकल्प में सही का चुनाव
करें।
1. पूर्णिया
2.
काशी
3.
बनारस
4.
मुंगेर
3 प्रश्न- 'रेणु' किस विचारधारा के लेखक थे?
1.
छायावाद
2.
प्रयोगवाद
3. प्रगतिशील
4.
उपरोक्त में से कोई नहीं
4
प्रश्न- फणीश्वर नाथ रेणु के साहित्य में भरमार है। दिए गए विकल्प का उचित चयन करें।
1.
सामंतवादी
2.
जातिवादी
3. आंचलिकता
4.
ब्राह्मणवादी
5 प्रश्न- फणीश्वर नाथ रेणु ने किस लेखक की विरासत को नई पहचान दी?
1.
जयशंकर
2. प्रेमचंद
3.
महादेवी वर्मा
4.
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला
6 प्रश्न- संवदिया कहानी में मुख्य पात्र कौन है?
1. बड़ी बहूरिया
2.
हरगोबिन
3.
गांव के लोग
4.
बहुरिया का पति
7 प्रश्न- संवदिया का क्या कार्य होता है?
1.
लोगों की समस्या का समाधान करना
2. लोगों के संदेश को ले जाना
3.
चिट्टियां बांटना
4.
गांव की चिट्टियां पढ़ना
8 प्रश्न- हरगोबिन को हवेली पर किसने बुलाया था?
1.
छोटी बहूरिया ने
2.
बड़े मालिक ने
3. बड़ी बहूरिया ने
4.
मोदियाइन ने
9 प्रश्न- हरगोबिन को हवेली बुलाने पर आश्चर्य क्यों हुआ?
1.
आज से पूर्व हवेली नहीं गया था
2.
हवेली देखने के लिए
3. डाक के जमाने में उसकी जरूरत पड़ने पर
4.
बड़ी बहूरिया से मिलने से
10 प्रश्न- हवेली में किसकी मृत्यु के बाद पारिवारिक झगड़ा आरंभ हो
गया?
1. बड़ी बहूरिया के पति
2.
छोटे भाई
3.
बड़ी बहुरिया
4.
उपरोक्त में से कोई नहीं
11 प्रश्न- हरगोबिन को संदेश सुनाते समय बड़ी बहूरिया क्यों रोने लगी?
1. दुखों के कारण
2.
झगड़े के कारण
3.
पैसों के कारण
4.
उपरोक्त सभी
12 प्रश्न- हरगोबिन को हवेली क्यों बुलाया गया था?
1.
चिट्ठी पढ़ने के लिए
2.
बड़ी बहूरिया से मिलने के लिए
3.
वसीयत के कागज बनाने के लिए
4. गुप्त संदेश ले जाने के लिए
13 प्रश्न- बड़ी बहूरिया किसकी नौकरी करने को तैयार है?
1.
राजा की
2.
समाज की
3. भैया भाभी की
4.
देवर देवरानी की
14 प्रश्न- बहुरिया ने हरगोबिन को कितने रुपए दिए?
1.
₹1000
2.
₹500
3.
₹100
4. ₹5
15 प्रश्न- हरगोबिन ट्रेन पकड़ने के लिए किस जंक्शन पर गया था?
1.
मुगलसराय
2.
बरौनी
3. कटिहार
4.
सोनपुर
16 प्रश्न- कटिहार पहुँचने के बाद मालूम होता है कि सचमुच सूराज हुआ
है। रेखांकित शब्द का क्या अर्थ होगा?
1.
साम्राज्य
2.
मिराज
3.
गणराज्य
4. स्वराज्य
17 प्रश्न- कटिहार जंक्शन से हरगोबिन को किस रेलवे स्टेशन तक जाना था?
1.
भागलपुर
2. बिंहपुर
3.
बरौनी
4.
समस्तीपुर
18 प्रश्न- हरगोबिन ने बहुरिया की माताजी से क्या झूठ बोला?
1.
दशहरा में खुद मिलने आएगी
2.
वह सुखी से है
3. उपरोक्त दोनों
4.
उपरोक्त में से कोई नहीं
19 प्रश्न- हरगोबिन ने बहुरिया को कहाँ की लक्ष्मी बताया?
1.
घर की
2. गाँव की
3.
शहर की
4.
हवेली की
20 प्रश्न- हरगोबिन को बहुरिया के मायके कुछ खाया क्यों नहीं गया?
1. बहुरिया की हालत याद करके
2.
बहुरिया के मायके की हालत देखकर
3.
उसे भूख नहीं थी
4.
उसे जल्दी रवाना होना था
21 प्रश्न- कटिहार से जलालगढ़ की कितनी दूरी बताई गई है?
1.
5 किलोमीटर
2.
20 किलोमीटर
3.
2 कोस
4. 20 कोस
22 प्रश्न- हरगोबिन बहुरिया के पैर पकड़ क्यों रोने लगा?
1. क्योंकि उसने बहुरिया का संवाद नहीं सुनाया था
2.
उसकी चोरी पकड़ी गई थी
3.
उसे पैसों की जरूरत थी
4. वह 20 कोस पैदल चल कर आया था
JCERT/JAC REFERENCE BOOK
Hindi Elective (विषय सूची)
भाग-1 | |
क्रं.सं. | विवरण |
1. | |
2. | |
3. | |
4. | |
5. | |
6. | |
7. | |
8. | |
9. | |
10. | |
11. | |
12. | |
13. | |
14. | |
15. | |
16. | |
17. | |
18. | |
19. | |
20. | |
21. | |
भाग-2 | |
कं.सं. | विवरण |
1. | |
2. | |
3. | |
4. |
JCERT/JAC Hindi Elective प्रश्न बैंक - सह - उत्तर पुस्तक (Question Bank-Cum-Answer Book)
विषय सूची
अंतरा भाग 2 | ||
पाठ | नाम | खंड |
कविता खंड | ||
पाठ-1 | जयशंकर प्रसाद | |
पाठ-2 | सूर्यकांत त्रिपाठी निराला | |
पाठ-3 | सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय | |
पाठ-4 | केदारनाथ सिंह | |
पाठ-5 | विष्णु खरे | |
पाठ-6 | रघुबीर सहाय | |
पाठ-7 | तुलसीदास | |
पाठ-8 | मलिक मुहम्मद जायसी | |
पाठ-9 | विद्यापति | |
पाठ-10 | केशवदास | |
पाठ-11 | घनानंद | |
गद्य खंड | ||
पाठ-1 | रामचन्द्र शुक्ल | |
पाठ-2 | पंडित चंद्रधर शर्मा गुलेरी | |
पाठ-3 | ब्रजमोहन व्यास | |
पाठ-4 | फणीश्वरनाथ 'रेणु' | |
पाठ-5 | भीष्म साहनी | |
पाठ-6 | असगर वजाहत | |
पाठ-7 | निर्मल वर्मा | |
पाठ-8 | रामविलास शर्मा | |
पाठ-9 | ममता कालिया | |
पाठ-10 | हजारी प्रसाद द्विवेदी | |
अंतराल भाग - 2 | ||
पाठ-1 | प्रेमचंद | |
पाठ-2 | संजीव | |
पाठ-3 | विश्वनाथ तिरपाठी | |
पाठ- | प्रभाष जोशी | |
अभिव्यक्ति और माध्यम | ||
1 | ||
2 | ||
3 | ||
4 | ||
5 | ||
6 | ||
7 | ||
8 | ||
Class 12 Hindi Elective (अंतरा - भाग 2)
पद्य खण्ड
आधुनिक
1.जयशंकर प्रसाद (क) देवसेना का गीत (ख) कार्नेलिया का गीत
2.सूर्यकांत त्रिपाठी निराला (क) गीत गाने दो मुझे (ख) सरोज स्मृति
3.सच्चिदानंद हीरानंद वात्सयायन अज्ञेय (क) यह दीप अकेला (ख) मैंने देखा, एक बूँद
4.केदारनाथ सिंह (क) बनारस (ख) दिशा
5.विष्णु खरे (क) एक कम (ख) सत्य
6.रघुबीर सहाय (क) वसंत आया (ख) तोड़ो
प्राचीन
7.तुलसीदास (क) भरत-राम का प्रेम (ख) पद
8.मलिक मुहम्मद जायसी (बारहमासा)
11.घनानंद (घनानंद के कवित्त / सवैया)
गद्य-खण्ड
12.रामचंद्र शुक्ल (प्रेमघन की छाया-स्मृति)
13.पंडित चंद्रधर शर्मा गुलेरी (सुमिरिनी के मनके)
14.ब्रजमोहन व्यास (कच्चा चिट्ठा)
16.भीष्म साहनी (गांधी, नेहरू और यास्सेर अराफात)
17.असगर वजाहत (शेर, पहचान, चार हाथ, साझा)
18.निर्मल वर्मा (जहाँ कोई वापसी नहीं)
19.रामविलास शर्मा (यथास्मै रोचते विश्वम्)
21.हज़ारी प्रसाद द्विवेदी (कुटज)
12 Hindi Antral (अंतरा)
1.प्रेमचंद = सूरदास की झोंपड़ी
3.विश्वनाथ त्रिपाठी = बिस्कोहर की माटी