13. सुमिरनी के मनके
जीवन परिचय
जन्म
- 7 जुलाई 1883 ई०
स्थान - राजस्थान की पुरानी बस्ती, जयपुर
मृत्यु- 12 सितंबर 1922 ई०
पिता
- पंडित शिव राम शास्त्री
माता
- लक्ष्मी देवी (पंडित शिवराम शास्त्री की तीसरी पत्नी)
शिक्षा - बी.ए. (इलाहाबाद विश्वविद्यालय) एम. ए. (कलकत्ता विश्वविद्यालय)
भाषा- संस्कृत, पालि, प्राकृत, अपभ्रंश, ब्रज, अवधि, मराठी, गुजराती, पंजाबी, बंगला,
अंग्रेजी, लैटिन तथा फ्रेंच।
विधाएं - कहानी, निबंध, व्यंग्य, कविता, आलोचना और संस्मरण।
संपादन
समालोचक, (1903-6) मर्यादा (1911- 12) प्रतिभा (1918-20)
नागरी प्रचारिणी पत्रिका (1920-22)
अध्यापन कार्य अजमेर के मेयो कॉलेज में पहले अध्यापक और फिर
प्रधानाध्यापक बने। बाद में ओरिएंटल कॉलेज के प्रधानाचार्य भी रहे। मदन मोहन मालवीय
के आग्रह पर 11 फरवरी 1922 ई. को काशी हिंदू विश्वविद्यालय के प्राच्य विभाग के प्राचार्य
बने।
गुलेरी जी की प्रमुख रचनाएं:
कहानियां- सुखमय जीवन (1911), बुद्धू का कांटा (1914), उसने कहा था (1915) घंटाघर,
सुकन्या, हीरे का हार।
निबंध - मारेसि मोहि कुठांव, कछुआ धर्म।
आलोचना - पुरानी हिंदी।
गुलेरी जी की संपूर्ण रचना 'गुलेरी रचनावली' के नाम से दो
खंडों में प्रकाशित है।
उपाधि - 'इतिहास दिवाकर'
साहित्यिक विशेषताएं
1. गुलेरी जी संस्कृत भाषा एवं साहित्य के प्रकांड पंडित
थे। 'उसने कहा था' एक अद्भभुत कहानी लिखकर विशिष्ट ख्याति अर्जित की। यह हिंदी साहित्य
की सर्वाधिक प्रसिद्ध कहानी रही है।
2. गुलेरी जी एक प्रतिष्ठित निबंधकार भी थे।
3. अपने लेखन और लेखों के लिए, उन्होंने आध्यात्मिक, दार्शनिक,
राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक, शैक्षिक और भाषाई मुद्दों सहित विषयों की एक विस्तृत
श्रृंखला को अपनी रचना का आधार बनाया।
4. संस्कृत विद्या की गहरी समझ के कारण, उन्होंने वैदिक और
पुराण विषयों पर कई रचनाएँ लिखी। गुलेरी जी ने अपने कार्यों के परिणामस्वरूप निबंध
साहित्य में एक उच्च स्थान प्राप्त किया, जिसमें 'कछुआ धर्म' और 'मारेसि
मोहि कुठाऊँ' शामिल हैं।
5.
गुलेरी जी बहुभाषाविद् थे। वे संस्कृत के प्रकांड पंडित थे। प्राचीन इतिहास और पुरातत्व
उनका प्रिय विषय था। उनकी रुचि भाषा विज्ञान में थी। यही वजह है कि उन्हें इतने सारे
भाषाओं का ज्ञान था।
6.
इनकी भाषा शैली अत्यंत सरल एवं सहज है। साथ ही विषयों को बड़ी गंभीरता से पाठक के सामने
प्रस्तुत करती है।
पाठ परिचय - 'बालक बच गया' पाठ का सार
1.
मूल संवेदना - वर्तमान समाज में बच्चे रट - रट कर उत्तीर्ण हो तो जाते हैं, किंतु व्यवहारिक
जीवन में उच्च शिक्षा को उतार नहीं पाते।
2.
विद्यालय के वार्षिकोत्सव में प्रधानाध्यापक का पुत्र अपनी विद्वता का प्रदर्शन करता
दिखता है। जिसे देख पिता और अध्यापक फूले नहीं समा रहे हैं। वृद्ध महाशय द्वारा इनाम
मांगने पर बच्चे के चेहरे पर एक रंग आता है, एक रंग जाता है। जब बच्चा इनाम में लड्डू मांगता है तो लेखक निश्चिंत होते हैं। लेखक को
महसूस होता है कि बालक बच गया अर्थात् उसके बचपन का भाव अभी उसमें निहित है क्योंकि
लड्डू की मांग उसके बालपन की स्वाभाविक मांग है।
3. इस निबंध के द्वारा गुलेरी जी ने दूषित शिक्षा प्रणाली
की ओर संकेत किया है- वर्तमान शिक्षा पद्धति को गुलेरी जी राष्ट्र के लिए घातक मानते
हैं। धर्म हो या विज्ञान, प्रकृति हो या पौराणिकता, ठोस शिक्षा बच्चे के व्यक्तित्व
के लिए आवश्यक है।
4. लेखक बचपन को जीवित रखते हुए ही बच्चों को शिक्षित करने
के पक्षधर हैं।
शब्दार्थ-
वार्षिकोत्सव - सालाना जलसा, नुमाइश - प्रदर्शन, दृष्टि - नजर, सीतता - शीतलता, ठंडा, कोल्हू- तेल
निकालने का यंत्र, कुर्सीनामा - शासन की कहानी, यावज्जन्म - जीवन भर, उल्लास- उमंग,
विलक्षण- विचित्र, परिवर्तन - बदलाव, कृत्रिम - बनावटी, विस्मित - आश्चर्यचकित, स्वास
– सांस, प्रवृतियां - आदतें, काठ - लकड़ी
प्रश्न उत्तर
प्रश्न 1 निबंध 'बालक बच गया' हमारी किस मानसिकता
की ओर संकेत करता है ?
उत्तर- इस निबंध के माध्यम से लेखक बताना चाहता है कि हम सब शिक्षा देने के नाम
पर बच्चों पर कठिन से कठिन ज्ञान को उसके कच्चे मन पर थोपना चाहते हैं। उसे
हम केवल प्रदर्शन का माध्यम बना
देते हैं, जबकि शिक्षा वास्तव में बोझ की भांति थोपी हुई नहीं होनी चाहिए।
लेखक बच्चों के भीतर उनके बचपन को
जीवित रखते हुए ही उन्हें शिक्षित करना चाहते हैं।
प्रश्न 2. बालक से उसकी उम्र और योग्यता से
ऊपर के कौन-कौन से प्रश्न पूछे गए?
उत्तर- बालक से जितने भी प्रश्न पूछे गए वे सभी प्रश्न उसकी
उम्र और योग्यता से ऊपर के थे। जैसे- धर्म के लक्षण, रसों के नाम तथा उनके उदाहरण,
पानी के चार डिग्री के नीचे ठंड फैल जाने के बाद भी मछलियाँ कैसे जिंदा रहती हैं तथा
चंद्रग्रहण होने का वैज्ञानिक इत्यादि प्रश्न उसकी उम्र की तुलना में बहुत अधिक गंभीर
थे।
प्रश्न 3. बालक ने क्यों कहा कि मैं यावज्जन्म
लोकसेवा करूँगा?
उत्तर- बालक ने ऐसा इसलिए कहा क्योंकि उसके प्रधानाध्यापक
पिता ने उसे इस प्रकार का उत्तर रटा रखा था। पिता ने सोचा होगा कि इस प्रकार का संवाद
सिखाकर उसकी योग्यता पर श्रेष्ठता का ठप्पा लग जाएगा। परन्तु इस प्रकार बुलवाकर वह
बच्चे के बालपन को समाप्त करने का प्रयास कर रहे थे। पिता को सामाजिक प्रतिष्ठा बच्चे
के बालपन से अधिक प्रिय थी।
प्रश्न 4. बालक द्वारा इनाम में लड्डू माँगने
पर लेखक ने सुख की साँस क्यों भरी?
उत्तर- लेखक का जब बालक से परिचय हुआ, तो उसे वह सामान्य
बच्चों जैसा ही लगा। परन्तु उसका अपनी उम्र से अधिक गंभीर विषयों पर उत्तर देना, लेखक
को दुखी कर गया। वह समझ गया कि बालक के पिता ने उसे उम्र से अधिक विद्वान बनाने का
प्रयास किया है, जिसमें एक बालक पिसकर रह गया है. उसका बालपन तथा बालमन दम तोड़ चुका
है।
एक बालक के विकास के लिए शिक्षा बहुत आवश्यक है। परन्तु वह
खेलकूद और जीवन के छोटे-छोटे सुखों को छोड़कर उसी में घुल जाए, तो ऐसी स्थिति बच्चे
और समाज के लिए सुखकारी नहीं है। इस तरह हम उसका बचपन समाप्त कर रहे हैं।
जब इनाम में बच्चे ने लड्डू माँगा, तो लेखक ने सुख की साँस
भरी। इसका मुख्य कारण उत्तर में बच्चे की सहज प्रवृत्ति झलक रही थी। यह प्रवृत्ति उस
पर थोपी नहीं गई थी बल्कि यह उसका स्वाभाविक उत्तर था। बच्चे के सहज व्यवहार पर लेखक
को आत्म संतुष्टि होती है।
प्रश्न 5. बालक की प्रवृत्तियों का गला घोंटना
अनुचित है, पाठ में ऐसा आभास किन स्थलों पर होता है कि उसकी प्रवृत्तियों का गला घोटा
जाता है?
उत्तर - सभा में बालक से बड़ों द्वारा बहुत ही गंभीर विषयों
पर प्रश्न पूछे जाते हैं। बालक उन प्रश्नों का उत्तर देता है। बालक के हावभाव तथा व्यवहार
से निम्नलिखित स्थलों पर पता चलता है कि बालक की प्रवृत्तियों का गला घोटा जा रहा है,
जो अनुचित है-
1. जब आठ वर्ष के बालक को नुमाइश के लिए श्रीमान हादी के
सम्मुख ले जाया गया।
2. जब बालक से सभी लोग ऐसे प्रश्नों के उत्तर पूछते हैं,
जो उसकी उम्र के बालकों के लिए समझना ही कठिन है।
3.
बालक इस प्रकार के प्रश्नों को सुनकर असहज हो जाता था। वह प्रश्नों का उत्तर देते हुए
आँखों में नहीं झाँकता बल्कि जमीन पर नज़रे गडाए रहता है। उसका चेहरा पीला और आखें
भय के मारे सफ़ेद पड़ गई हैं। उसके चेहरे पर कृत्रिम और स्वाभाविक भाव आते हैं, जो
इस बात का प्रमाण है कि वह स्वयं से लड़ रहा है।
4.
जब उससे इनाम माँगने के लिए कहा गया, तो उससे लड्डू की अपेक्षा किसी और ही तरह के इनाम
माँगने की बात सोची गई थी। जब उसने बाल प्रवृत्ति के अनुरूप इनाम माँगा, तो सभी बड़ों
की आँखें बुझ गई।
प्रश्न - 6. "बालक बच गया। उसके बचने की आशा है क्योंकि वह 'लड्डू'
की पुकार जीवित वृक्ष के हरे पत्तों का मधुर मर्मर था, मरे काठ की अलमारी की सिर दुखानेवाली
खड़खड़ाहट नहीं" कथन के आधार पर बालक की स्वाभाविक प्रवृत्तियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर
- छोटे बालक की स्वाभाविक प्रवृत्तियाँ होती हैं कि वह जिद्द करे, अन्य बच्चों के साथ
खेले, ऐसे प्रश्न पूछे जो उसकी समझ से परे हों, खाने-पीने की वस्तुओं के प्रति आकर्षित
और ललायित हो, रंगों से प्रेम करे, हरदम उछले-कूदे, अपने सम्मुख आने वाली हर वस्तु
के प्रति जिज्ञासु हो, शरारतें करे इत्यादि। ये एक साधारण बालक की स्वाभाविक प्रवृत्तियाँ
होती हैं और यदि ये प्रवृत्तियाँ न हो, तो चिंताजनक स्थिति मानी जाती है। वह उसके जीवन
का आरंभिक समय है। पाठ में लेखक ने जिस बालक का उल्लेख किया है पिता ने उसकी इन प्रवृत्तियों को अपनी उच्चाकांक्षा के नीचे दबा दिया
था। बालक की उम्र आठ वर्ष की थी। उसके अंदर अभी इतनी समझ विकसित नहीं हुई थी कि गंभीर
विषयों को समझे। पिता द्वारा उसे यह सब रटवाया गया था। उसे इन सब बातों को रटवाने के
लिए पिता ने बच्चे के बालमन को कितनी चोटें पहुँचायी होगी यह शोचनीय है। उनके इस प्रयास
में बालक की बालसुलभ प्रवृत्तियों का ह्रास तो अवश्य हुआ होगा।
परन्तु उसका लड्डू माँगना इस ओर संकेत करता है कि अब भी कहीं
उसमें बालसुलभ प्रवृत्तियाँ विद्यमान थीं, जो उसे और बच्चों के समान ही बनाती थी। लेखक
को विश्वास था कि अब भी बालक बचा हुआ है और प्रयास किया जाए, तो उसे उसके स्वाभाविक
रूप में रखा जा सकता है। लेखक का यह कथन इसी ओर संकेत करता है।
सप्रसंग व्याख्या
'उसके बचने की आशा है क्योंकि वह 'लड्डू' की पुकार जीवित
वृक्ष के हरे पत्तों का मधुर मर्मर था काट के अलमारी की सिर दुखाने वाली खड़खड़ाहट
नहीं।'
प्रसंग - प्रस्तुत पंक्तियां पंडित चंद्रधर शर्मा गुलेरी रचित 'बालक
बच गया' शीर्षक निबंध से ली गईं हैं। इन पंक्तियों में लेखक ने शिक्षा को जबरदस्ती
बच्चे पर थोपने की प्रवृत्ति का विरोध करते हुए उसकी तुलना सुखी और हरी लकड़ी से की
है।
व्याख्या- बालक के लड्डू मांगने पर लेखक ने राहत की सांस ली और पाया
कि बच्चे में बचपन की स्वाभाविकता अभी भी शेष बची है। उसके द्वारा लड्डू की मांग वास्तव
में जीवित और हरे पेड़ के पत्तों की जीवंत ध्वनि के समान है जो सभी को संगीतमय लगती
है, शांति और मधुरता का आभास देती है। जबकि बच्चे को कठिन से कठिन प्रश्नों का उत्तर
रटवाना सूखी लकड़ी की कर्कश चरमराहट की ध्वनि के समान है।
विशेष - निबंध की भाषा खड़ी बोली, विषय अनुकूल और विचारों को गति प्रदान करने वाली
है। तत्सम तद्भव शब्दों का सटीक प्रयोग, लक्षणा शब्द शक्ति और प्रसाद गुण है
'घड़ी के पुर्जे' पाठ का सार
1. मूल संवेदना - लेखक ने घड़ी के पुर्जों के माध्यम से धर्म विषयक बखान
या उपदेश करने वालों पर व्यंग्य किया है।
2. धर्माचार्य अपने धर्म संबंधी ज्ञान को अपने तक ही सीमित
रखना चाहते हैं तथा लंबे-लंबे उपदेश देकर अपनी विद्वता आम लोगों पर थोपना चाहते हैं।
धर्म से जुड़ी बातों में कुछ भी नया या वैज्ञानिक नहीं लाना चाहते है।
3. घड़ी के पुर्जों के माध्यम से लेखक धर्म के रहस्य की व्याख्या
करते हैं। लेखक ने घड़ी के पुर्जों को केवल समय बताने तक ही सीमित नहीं रखा। बल्कि
वे साधारण व्यक्तियों को भी घड़ी को खोल कर देखने, उसके कलपुर्जे साफ करके फिर से जोड़ने
का अधिकार देना चाहते हैं। अर्थात् धर्म के गुढ रहस्य भी धर्म उपदेशक तक ही सीमित ना
रहे बल्कि जन सामान्य को भी उसके गहरे अर्थों को समझने का अधिकार देना चाहिए।
सप्रसंग व्याख्या
धर्म का रहस्य जानने कई बातें निकल आवे।
प्रसंग - प्रस्तुत पंक्तियां चंद्रधर शर्मा गुलेरी रचित लेख 'घड़ी के पुर्जे' से ली
गई है। इन पंक्तियों में लेखक का मत है कि धर्म कुछ व्यक्ति विशेष तक ही सीमित ना रहे,
अपितु आम लोग भी उसका बुरा भला समझ सके, जिससे समाज का समग्र विकास हो सके।
व्याख्या- धर्मा चार्यों के अनुसार उसके द्वारा बताई गई धर्म की व्याख्या
समाज के लिए पर्याप्त है। लेखक घड़ी का उदाहरण देकर समझाता है कि घड़ी का कार्य केवल
समय बताने तक ही सीमित नहीं है घड़ी देखना यदि नहीं आता तो किसी से भी समय पूछ सकते
हो। इस तरह धर्म की जानकारी नहीं है तो केवल धर्म आचार्यों से ही पूछ कर संतुष्ट हो
जाओ; उसकी बारीकियों में जाने की कोशिश मत करो। जिस प्रकार घड़ी से केवल समय देखने
का काम करो उसके पुर्जे ठीक करने की कोशिश मत करो उसी प्रकार धर्म की भी गहरी छानबीन
मत करो।
विशेष - भाषा आम बोलचाल की सरल सहज एवं विचारों के स्पष्टता देने
वाली है तत्भव शब्द प्रधान खरी बोली है लक्षण शब्द शांति और प्रसाद गुण है।
प्रश्न अभ्यास
प्रश्न - 1. लेखक ने धर्म का रहस्य जानने के
लिए 'घड़ी के पुर्जे' का दृष्टांत क्यों दिया है?
उत्तर - लेखक ने धर्म का रहस्य जानने के लिए घड़ी के पुर्जे
का दृष्टांत दिया है क्योंकि जिस तरह घड़ी की संरचना जटिल होती है, उसी प्रकार धर्म
की सरंचना समझना भी जटिल है। हर मनुष्य घड़ी को खोल तो सकता है परन्तु उसे दोबारा जोड़ना
उसके लिए संभव नहीं होता है। वह प्रयास तो कर सकता है परन्तु करता नहीं है। उसका मानना
होता है कि वह ऐसा कर ही नहीं सकता है। ऐसे ही लोग प्रायः बिना धर्म को समझे, उसके
जाल में उलझे रहते हैं क्योंकि उनके लिए धर्मगुरुओं ने इसे रहस्य बनाया हुआ है। वे
इस रहस्य को जानने का प्रयास भी नहीं करते हैं और धर्मगुरुओं के हाथ की कटपुतली बने
रहते हैं। उनका मानना होता है कि वे इसे समझने में असमर्थ हैं और केवल धर्मगुरुओं में
ही इतना सामर्थ विद्यमान है। लेखक ने घड़ी के माध्यम से इन्हीं बातों पर प्रकाश डाला
है। वह कहता है कि घड़ी को पहनने वाला अलग होता है और उसे ठीक करने वाला अलग, वैसे
ही आज के समाज में धर्म को मानने वाले अलग हैं और उसके ठेकेदार अलग-अलग हैं। ऐसे ठेकेदार
साधारण जन के लिए धर्म के कुछ नियम-कानून बना देते हैं। लोग बिना कुछ सोचे इसी में
उलझे रहते हैं और इस तरह वे धर्मगुरुओं का पोषण करते रहते हैं। उन्हें धर्म को साधारण
जन के लिए रहस्य जैसे बनाया हुआ है। घड़ी की जटिलता उसी रहस्य को दर्शाती है।
प्रश्न - 2. 'धर्म का रहस्य जानना वेदशास्त्रज्ञ
धर्माचार्यों का ही काम है। आप इस कथन से कहाँ तक सहमत हैं? धर्म संबंधी अपने विचार
व्यक्त कीजिए
उत्तर- धर्मोपदेशक हमें धर्म का उपदेश देकर यह कहते हैं कि हमारी
बात चुपचाप सुन लो, जिज्ञासा मत करो। धर्म का रहस्य जानने का अधिकार तो केवल वेदशास्त्रज्ञ
विद्वानों का है, सामान्य-जन का नहीं। लेखक ने उनकी बात को सही नहीं माना है। जो बुद्धिमान
है, धर्म की जिसे जानकारी है वह धर्म के वास्तविक रहस्य को अवश्य जानना चाहेगा। उसकी
जिज्ञासाओं पर अंकुश लगाना ठीक प्रतीत नहीं होता।
धर्म आस्था का विषय है, क्या उचित है और क्या अनुचित इसे
जानने का अधिकार प्रत्येक व्यक्ति को है किन्तु धर्माचार्य धर्म पर पड़े रहस्य को हटाना
ही नहीं चाहते। धर्माचार्य धर्म पर अपना एकाधिकार जताकर सामान्य जन को उससे दूर रखते
रहे हैं। इस तरह ये लोगों को अपना दास बनाये रखना चाहते हैं। 'स्त्री शूद्रौ वेदम्
नाधीयताम्' का उपदेश इसी प्रवृत्ति को व्यक्त करता है। समाज में धर्म के ज्ञाता बढ़ेंगे
तो धर्माचार्यों के उपदेश और आचरण पर प्रश्न खड़े करेंगे। अतः वे अपने अनुयायियों को
धर्म-ज्ञान से दूर ही रखना चाहते हैं।
प्रश्न - 3. घड़ी समय का ज्ञान कराती है। क्या
धर्म संबंधी मान्यताएँ या विचार अपने समय का बोध नहीं कराते?
उत्तर- जैसे घड़ी समय का बोध कराती है उसी प्रकार धार्मिक मान्यताएँ
या विचार भी अपने समय का बोध कराते हैं। कौन-सा विचार धर्मानुकूल है, यह समय-समय पर
परिवर्तित होता रहता है। पुराने समय में जो बातें धर्म की दृष्टि से उचित थी आज वे
अनुचित मानी जाती हैं। उदाहरण के लिए, यज्ञ में बलि देना आज तर्कसंगत नहीं है।
बाल विवाह, सती प्रथा जैसी सामाजिक रूढ़ियाँ कभी धर्मसंगत
थीं पर आज वे न तो तर्कसंगत हैं और न धर्मसम्मत। स्त्री-पुरुष की समानता आज का युगधर्म
है किन्तु पहले ऐसा नहीं माना जाता था। वेदों के अध्ययन का अधिकार स्त्रियों तथा शूद्रों
को नहीं था परन्तु आज वे धार्मिक ग्रन्थों को पढ़ने के अधिकारी हैं। इससे सिद्ध होता
है कि धर्म सम्बन्धी मान्यताएँ युग और परिस्थितियों के अनुसार बदलती रहती हैं।
प्रश्न -4. धर्म अगर कुछ विशेष लोगों, वेदशास्त्रज्ञ
धर्माचार्यों, मठाधीशों, पंडे- पुजारियों की मुट्ठी में है तो आम आदमी और समाज का उससे क्या
सम्बन्ध होगा? अपनी राय लिखिए।
उत्तर : धर्म के ठेकेदार नहीं चाहते कि आम आदमी धर्म के रहस्य
से परिचित हो सके। बड़े-बड़े धर्माचार्य, मठाधीश, पंडे-पुजारी धर्म को अपनी मुट्ठी
में रखना चाहते हैं जिससे उनका वर्चस्व बना रहे। ये तथाकथित धर्माचार्य धर्म से अपना
स्वार्थ सिद्ध करते हैं उसे अपनी रोजी-रोटी का सोधन बना लेते हैं। धर्म जब तक इन लोगों
की मुट्ठी में रहता है तब तक आम आदमी और समाज का कोई लाभ नहीं होता। वह मठाधीशों का
दास बना रहता है और उनकी अनुचित बातों को ही धर्म मानकर उनका पालन करता रहता है। धर्म
से उसका सीधा सम्बन्ध नहीं रहता और धर्म का स्वरूप संकुचित हो जाता है।
प्रश्न -5. जहाँ धर्म पर कुछ मुट्ठीभर लोगों
का एकाधिकार धर्म को संकुचित अर्थ प्रदान करता है, वहीं धर्म का आम आदमी से संबंध उसके विकास
एवं विस्तार का द्योतक है।' तर्क सहित व्याख्या कीजिए।
अथवा
"धर्म का रहस्य जानना सिर्फ धर्माचार्यों
का काम नहीं। कोई भी व्यक्ति अपने स्तर पर उस रहस्य को जानने का हकदार है, अपनी राय
दे सकता है।" टिप्पणी कीजिए।
उत्तर : धर्म पर कुछ मुट्ठीभर लोगों का एकाधिकार निश्चित
रूप से धर्म को संकुचित अर्थ प्रदान करता है। ये मुट्ठीभर लोग नहीं चाहते कि धर्म का
रहस्य हर कोई जान ले। ऐसा होने पर उनका एकाधिकार छिन जाएगा, उनके स्वार्थ सिद्ध नहीं
हो पाएँगे किन्तु जब धर्म का संबंध आम आदमी से जुड़ जाएगा और वह धर्म के रहस्य से परिचित
हो जाएगा तो निश्चय ही धर्म उसके विकास में सहायक होगा।
प्रश्न 6. निम्नलिखित का आशय स्पष्ट कीजिए
-
(क) वेदशास्त्रज्ञ धर्माचार्यों का ही काम
है कि घड़ी के पुर्जे जानें, तुम्हें इससे क्या ?'
उत्तर : धर्म के उपदेशक आम आदमी से कहते हैं कि धर्म के रहस्य
को जानने का प्रयास मत करो, यह तुम्हारा काम नहीं है। जिस प्रकार घड़ी के पुर्जे की
जानकारी करना घड़ीसाज का काम है, आम आदमी का काम नहीं। उसी प्रकार धर्म के रहस्य को
जानने का काम वेदशास्त्रज्ञ धर्माचार्यों का है, आम आदमी का यह काम नहीं है। इस प्रकार
का उपदेश उनकी स्वार्थपूर्ण भावना का घोतक है।
(ख) 'अनाड़ी के हाथ में चाहे घड़ी मत दो पर
जो घड़ीसाजी का इम्तहान पास कर आया है, उसे तो देखने दो।'
उत्तर : आशय यह है कि धर्म का रहस्य जानने का अधिकार अयोग्य
और अनपढ़ व्यक्ति को न भी हो परन्तु जो विद्वान् और शिक्षित लोग हैं, उनको इस अधिकार
से वंचित नहीं रखा जा सकता। इससे धर्म की हानि होने की कोई सम्भावना नहीं हो सकती।
धर्म को सर्वजन हितकारी बनाने के लिए उसका सर्वसाधारण में प्रसार होना जरूरी है।
(ग) 'हमें तो धोखा होता है कि परदादा की घड़ी
जेब में डाले फिरते हो, वह बंद हो गई है, तुम्हें न चाबी देना आता है, न पुर्जे सुधारना,
तो भी दूसरों को हाथ नहीं लगाने देते।'
उत्तर : धर्मोपदेशकों से धर्म की व्याख्या सुनकर लेखक को
संदेह हो रहा है कि वे धर्म का तत्व जानते भी हैं या नहीं? वे परदादा की जिस धर्म रूपी
घड़ी को अपनी जेब में डालकर घूम रहे हैं, वह पुरानी और बेकार है। धर्मोपदेशक और मठाधीश
जिस धर्म की बात कह रहे हैं, वह पुराना और आज के युग में अनुपयोगी है। धर्माचार्य धर्म
के सच्चे स्वरूप को नहीं जानते। वे समय के अनुरूप उसके स्वरूप में परिवर्तन भी करना
नहीं चाहते। धर्म का समयानुकूल और परिमार्जित स्वरूप समाज के सामने रखने की उनमें क्षमता
भी नहीं है।
'ढेले चुन लो" पाठ का सार
1. मूल संवेदना- यह निबंध लोक जीवन में व्याप्त अंधविश्वासों पर व्यंग्य
करता है, जो हमारे समाज की गहन तथा गंभीर समस्या है। लेखक का मत है कि अपनी आंखों से
देखे सत्य को ही सत्य मानना चाहिए।
2. भविष्य की झूठी कल्पना पर विश्वास नहीं करना चाहिए।
3. समाज में व्याप्त अंधविश्वास अपने जीवनसाथी को चुनने के
लिए सोने चांदी तथा लोहे की पेटियां अथवा विभिन्न मिट्टी के ढेरों पर विश्वास एक अंधविश्वास
मात्र है। जिसका कोई वैज्ञानिक तथ्य नहीं है, जो समाज के सहायक ना होकर घातक सिद्ध
होते हैं।
4. वर्तमान पर विश्वास लेखक मोर कबूतर, मोहर, पहाड़, चक्की
इत्यादि विभिन्न उदाहरण देकर अपने विचार पुष्ट करते है कि भविष्य की नींव कल्पना मात्र
पर ना टिकाकर मजबूत धरती पर खड़ी करनी चाहिए। वर्तमान के सत्य को नकारना नहीं चाहिए
तथा भविष्य की कल्पना को सत्य मानकर स्वीकारना नहीं चाहिए।
प्रश्न उत्तर
प्रश्न 1 'ढेले चुन लो' पाठ में किस अंधविश्वास
की ओर संकेत किया गया है ?
उत्तर - इस पाठ में जिस विवाह रीति का वर्णन किया गया है,
वह अंधविश्वास का प्रतीक है। जिसमें मिट्टी के ढेलों के आधार पर वधु को चुना जाता है।
लड़की के सामने खेत की, हवन की, दरगाह की और शमशान की मिट्टी के ढेले रखे जाते हैं।
लड़की जिसे उठा ले उसका भविष्य उसी के आधार पर निर्धारित होता है। यह अंधविश्वास ही
था कि शमशान की मिट्टी के ढेले उठाने पर अपशगुन होगा।
प्रश्न 2. वैदिक काल में हिन्दुओं में कैसी
लाटरी चलती थी, जिसका जिक्र लेखक ने किया है ?
उत्तर : वैदिक काल में योग्य पत्नी चुनने
के लिए वर विभिन्न स्थानों की मिट्टी
से बने ढेले कन्या के समक्ष रखता था और उनमें से कोई एक ढेला चुनने को कहता। वह जिस
ढेले को चुनती, उसकी मिट्टी जिस स्थान से ली गई थी, उसके आधार पर यह निर्धारित किया
जाता था कि वह कन्या विवाहोपरान्त कैसे पुत्र को जन्म देगी। यदि अच्छे स्थान की मिट्टी
का ढेला चुनती तो अच्छी संतान को जन्म देगी और यदि बुरे स्थान की मिट्टी का ढेला चुनती
है तो बुरी संतान को जन्म देगी। इस प्रकार वैदिक काल के हिन्दू ढेले छुआकर पत्नी वरण
करते थे। यह एक प्रकार की लाटरी थी जिसका जिक्र लेखक ने यहाँ किया है।
प्रश्न 3. 'दुर्लभ बंधु' की पेटियों की कथा
लिखिए।
उत्तर : 'दुर्लभ बंधु' हिन्दी के सुप्रसिद्ध नाटककार भारतेंदु
बाबू हरिश्चंद्र का एक अनूदित नाटक है। इसकी नायिका का नाम है. पुरश्री। उसके सामने
तीन पेटियाँ हैं सोने की, चाँदी की और लोहे की। इन तीनों में से एक में उसकी प्रतिमूर्ति
स्वयंवर के लिए जो लोग एकत्र होते उनसे किसी एक पेटी को चुनने के लिए कहा जाता।
अकड़बाज सोने की पेटी चुनता और उसे कुछ नहीं हासिल होता।
लोभी चाँदी की पेटी चुनता और पेटी में उसे कुछ नहीं मिलता।
सच्चा प्रेमी लोहे की पेटी चुनता और पुरश्री उसी के गले में
वरमाला डालती।
प्रश्न 4. 'जीवन साथी' का चुनाव मिट्टी के
ढेलों पर छोड़ने के कौन-कौन से फल प्राप्त होते हैं ?..
उत्तर : जीवन-साथी का चुनाव मिट्टी के ढेलों पर छोड़ना बुद्धिमानी
नहीं है। व्यक्ति को अपने आँख-कान पर भरोसा करके जीवन-साथी का चुनाव करना चाहिए न कि
लाटरी, ज्योतिष या मिट्टी के ढेलों पर निर्भर रहना चाहिए। ऐसा करने पर उसे न तो उचित
जीवन-साथी मिल पाएगा और न ही उसका जीवन सुख से बीत सकेगा। मिट्टी के ढेलों के चुनाव
के आधार पर जीवन-साथी का चुनाव सफल नहीं हो सकता। इसमें धोखा होने की पूरी सम्भावना
है। भविष्य में उसे अपने चुनाव से निराशा, क्षोभ और पश्चाताप का सामना करना पड़ सकता
है।
प्रश्न 5. मिट्टी के ढेलों के संदर्भ में कबीर
की साखी की व्याख्या कीजिए -
पत्थर पूजे हरि मिलें तो तू पूज पहार।
इससे तो चक्की भली पीस खाय संसार ।।
उत्तर : इस साखी में कबीरदास जी ने मूर्तिपूजा का विरोध करते
हुए कहा है कि यदि पत्थर पूजने से ईश्वर की प्राप्ति हो जाए तो तुझे छोटे से पत्थर
की तुलना में पत्थर के बड़े पहाड़ की पूजा करनी चाहिए। अर्थात् पत्थर की पूजा करने
से भगवान नहीं मिलते, सदाचरण करने से मिलते हैं। इससे ज्यादा अच्छा तो यह है कि तू,
पत्थर की बनी उस चक्की की पूजा कर जिससे गेहूँ पीसकर सारा संसार रोटी खाता है। लेखक
ने कबीर की यह साखी उस संदर्भ में उद्धृत की है जिसमें एक वैदिक प्रथा के अनुसार विवाहेच्छुक
स्नातक विभिन्न स्थानों की मिट्टी के ढेलों से अपनी पत्नी का चुनाव करता था। यह पद्धति
ठीक नहीं है, इससे अधिक अच्छा है कि हम आँख कान खोलकर प्रत्यक्ष रूप से देख-सुनकर,
सोच-समझकर, बुद्धि का उपयोग करते हुए जीवन साथी का चुनाव करें।
प्रश्न 6. जन्मभर के साथी का चुनाव मिट्टी
के ढेले पर छोड़ना बुद्धिमानी नहीं है। इसलिए बेटी का शिक्षित होना अनिवार्य है। 'बेटी बचाओ,
बेटी पढ़ाओ' के संदर्भ में विचार कीजिए।
उत्तर : शिक्षा बालक/बालिका के व्यक्तित्व के सर्वांगीण विकास
के लिए नितांत आवश्यक और अनिवार्य है। ज्ञान प्राप्त करके ही हम अपने अधिकार, कर्तव्य
और लाभ-हानि के बारे में विचार कर सकते हैं। पुराने जमाने में आज की अपेक्षा स्थितियाँ
बिल्कुल विपरीत थीं।
बेटी का विवाह, ज्योतिषियों से पूछकर या किसी नाई-पंडित के
कहे अनुसार तय कर दिया जाता था। आदिवासियों में अपनी परंपरा के अनुसार जीवन साथी का
चयन किया जाता है। वर्तमान में बेटियों के शिक्षित होने पर इस स्थिति में आशानुरूप
बदलाव आया है। अब जीवन साथी के चुनाव में उसकी योग्यता, पारिवारिक पृष्ठभूमि के साथ-साथ
लड़की की सहमति भी अनिवार्य हो गई है। लेकिन शिक्षा से आए इस बदलाव का क्षेत्र अभी
सीमित है। 'बेटी पढ़ाओ, बेटी बचाओ' कार्यक्रम के अंतर्गत अभी बालिका शिक्षा पर और ध्यान
दिया जाना आवश्यक है, ताकि बेटियाँ पढ़-लिखकर स्वयं आत्मबल संपन्न तथा स्वावलंबी बन
सकें।
प्रश्न 7. निम्नलिखित का आशय स्पष्ट कीजिए
(क) 'अपनी आँखों से जगह देखकर, अपने हाथ से चुने हुए मिट्टी
के डगलों पर भरोसा करना क्यों बुरा है और लाखों करोड़ों कोस दूर बैठे बड़े-बड़े मट्टी
और आग के ढेलों - मंगल, शनिश्चर और बृहस्पति की कल्पित चाल के कल्पित हिसाब का भरोसा
करना क्यों अच्छा है।'
उत्तर : 'ढेले चुन लो' नामक पाठ्यांश में
लेखक ने एक वैदिक प्रथा का उल्लेख
किया है जिसमें विभिन्न स्थानों की मिट्टी से बने ढेले कन्या के सार रखकर उससे किसी
एक ढेले का चुनाव करवाया जाता था और चुनाव करने वाली कन्या के अच्छी या बुरी पत्नी
होने के निर्णय किया जाता था। लेखक इस प्रथा को उसी प्रकार अनुचित मानता है जिस प्रकार
मंगल, शनैश्चर, वृहस्पति आदि ग्रहों की चाल की गणना करके ज्योतिष में पत्नी के अच्छा
या बुरा होने का अनुमान लगाया जाता है। इस प्रकार पत्नी का चुनाव करना बुद्धिमानी नहीं
है यही लेखक का मंतव्य है।
(ख) आज का कबूतर अच्छा है कल के मोर से, आज का पैसा अच्छा
है कल की मोहर से। आँखों देखा ढेला अच्छा ही होना चाहिए लाखों कोस के तेज पिंड से।'
उत्तर : लेखक यह कहना चाहता है कि समय के साथ हमें भी बदलना
चाहिए। कल जो प्रथा या परम्परा अच्छी मानी जाती थी वह आज के समय में उचित नहीं है।
जमाना बदल गया है और हमें भी बदले हुए जमाने के साथ अपनी मान्यताएँ बदलनी चाहिए। हमें
आज (वर्तमान) को महत्त्व देना चाहिए कल (भूतकाल) को नहीं। पुराने जमाने में आकाशीय
पिण्डों की चाल की गणना अर्थात् ज्योतिष के आधार पर लोग पत्नी का चुनाव करते थे।
वे ग्रह हमसे लाखों-करोड़ों मील दूर हैं, उनके बारे में हमें
कुछ पता नहीं है, उनकी तुलना में कम से कम मिट्टी के वे ढेले श्रेष्ठ हैं जिन्हें हमने
अपनी आँख से देखकर किसी स्थान की मिट्टी से बनाया है। आज का कबूतर कल के मोर से श्रेष्ठ
है। आज का पैसा कल के मोहर से अधिक मूल्यवान् है। अच्छी पत्नी चुनने के लिए वर्तमान
में प्रचलित प्रणाली को अपनाना ही सही है।
भाषा- भाषा है। आम बोलचाल की सरल व सहज
शब्द भंडार- तद्भव शब्द प्रधान खड़ी बोली।
शब्द शक्ति - लक्षणा शब्द शक्ति।
गुण- प्रसाद गुण।
भाषा - प्रवाह विचारों को स्पष्टता देने वाली भाषा है।
गुलेरी जी की रचनाएं प्रश्नोत्तर के माध्यम से
अतिलघुत्तरात्मक प्रश्न
1. सुखमय जीवन (1911) के कहानीकार कौन है
?
उत्तर : चंद्रधर शर्मा गुलेरी
2. 'बुद्ध का काँटा' (1911) के कहानीकार कौन
है ?
उत्तर : चंद्रधर शर्मा गुलेरी
3. उसने कहा था (1915) के कहानीकार कौन है
?
उत्तर : चंद्रधर शर्मा गुलेरी
4. 'कछुआ धरम' के निबंधकार कौन है ?
उत्तर : चंद्रधर शर्मा गुलेरी
5. 'मारेसि मोहिं कुठाँव' के निबंधकार कौन
है?
उत्तर : चंद्रधर शर्मा गुलेरी
6. 'पुरानी हिंदी' के निबंधकार कौन है ?
उत्तर : चंद्रधर शर्मा गुलेरी
7. 'भारतवर्ष' के निबंधकार कौन है?
उत्तर : चंद्रधर शर्मा गुलेरी
8. 'डिंगल' के निबंधकार कौन है ?
उत्तर : चंद्रधर शर्मा गुलेरी
9. देवानां प्रिय आदि के निबंधकार कौन है
?
उत्तर : चंद्रधर शर्मा गुलेरी
10. अनुवादों की बाढ़ के रचनाकार कौन है?
उत्तर : चंद्रधर शर्मा गुलेरी
11. क्रियाहीन हिंदी के रचनाकार कौन है ?
उत्तर : चंद्रधर शर्मा गुलेरी
12. वैदिक भाषा में प्राकृतपन के रचनाकार कौन
है ?
उत्तर : चंद्रधर शर्मा गुलेरी
13. 'ए पोयम बाय भास के निबंधकार कौन है?
उत्तर : चंद्रधर शर्मा गुलेरी
14. ए कमेंटरी ऑनवात्सयायंस कामसूत्र के निबंधकार
कौन है ?
उत्तर : चंद्रधर शर्मा गुलेरी
15. दि लिटरेरी क्रिटिसिज्म के निबंधकार कौन
है ?
उत्तर : चंद्रधर शर्मा गुलेरी
लघुत्तरात्मक प्रश्न - (तीनों पाठ से)
प्रश्न 1. विद्यालय
के वार्षिकोत्सव में किसे बुलाया गया था?
उत्तर : विद्यालय के वार्षिकोत्सव में पण्डित चन्द्रधर शर्मा 'गुलेरी'
को बुलाया गया था।
प्रश्न 2. प्रतिभाशाली
बालक किसका पुत्र था?
उत्तर : प्रतिभाशाली बालक प्रधानाध्यापक का पुत्र था।
प्रश्न 3. घड़ी
के दृष्टांत से लेखक ने किस पर व्यंग्य किया है?
उत्तर : घड़ी के दृष्टांत से लेखक ने धर्म उपदेशकों पर व्यंग्य किया
है।
प्रश्न 4. 'ढेले
चुन लो' वृत्तांत में भारतेंदु हरिश्चन्द्र के किस नाटक का उल्लेख किया है?
उत्तर : 'ढेले चुन लो' वृत्तांत में भारतेंदु हरिश्चन्द्र के 'दुर्लभ
बंधु' नाटक का उल्लेख किया है।
प्रश्न 5. वैदिक
काल में हिन्दुओं में पत्नी चुनने के लिए क्या प्रयोग किए जाते थे?
उत्तर : वैदिक काल में हिन्दुओं में पत्नी चुनने के लिए मिट्टी के
ढेले का प्रयोग किया जाता था।
प्रश्न 6. वैदिक
काल के लोग पत्नी का वरण कैसे करते थे?
उत्तर : वैदिक काल के हिन्दू ढेले छुआकर स्वयं पत्नी-वरण करते थे।
प्रश्न 7. शेक्सपियर
के कौन-से नाटक का जिक्र लेखक ने किया है?
उत्तर : लेखक ने शेक्सपियर के प्रसिद्ध नाटक 'मर्चेन्ट आफ वेनिस'
का जिक्र पाठ में किया है।
प्रश्न 8. बालक
की उम्र कितनी थी?
उत्तर : बालक की उम्र आठ वर्ष की थी।
प्रश्न 9. कौन-सा
ढेला उठाने पर संतान वैदिक पंडित' होती थी?
उत्तर : वेदी का ढेला उठाने पर पैदा होने वाली संतान 'वैदिक
पंडित' होती थी।
प्रश्न 10. तीन गृह्यसूत्रों का नाम बताइये,
जिसमें ढेलों की लाटरी का जिक्र है?
उत्तर : तीन गृह्यसूत्र, जिसमें ढेलों की लाटरी का उल्लेख
है-आश्वलायन, गोभिल और भारद्वाज
प्रश्न 11. पिता
को बालक से क्या उम्मीद थी?
उत्तर : सभी सवालों के सही जवाब देने के बाद वृद्ध महाशय
ने खुश होकर बच्चे से पूछा कि क्या इनाम चाहिए। पिता. और अध्यापक को उम्मीद थी कि बालक
पुस्तक माँगेगा।
वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1. बालक
बच गया' कहानी के माध्यम से लेखक क्या कहना चाहता है ?
उत्तर : 'बालक बच गया' कहानी के माध्यम
से लेखक यह बताना चाहता है कि छोटी
उम्र के बालकों पर हमें जबरदस्ती किताबों का बोझ नहीं लादना चाहिए। शिक्षा की सही उम्र
आने पर ही बालक को विद्यालय भेजना चाहिए। 'रटने की प्रवृत्ति' शिक्षा का उद्देश्य नहीं
है, यह भी लेखक बताना चाहता है। आठ वर्ष के बालक की मूल प्रवृत्ति खेलने-खाने की होती
है, विविध विषयों का ज्ञान प्राप्त करने की नहीं। अभिभावकों एवं अध्यापकों को यह बात
समझकर बालक की मूल प्रवृत्तियों का दमन नहीं करना चाहिए।
प्रश्न 2. 'घड़ी
के पुर्जे' कहानी के उद्देश्य पर प्रकाश डालिए।
उत्तर : धर्मोपदेशक उपदेश देते समय
यह कहा करते हैं कि हमारी बातें
ध्यान से सुनो पर धर्म का रहस्य जानने की चेष्टा न करो। अपने कथन के समर्थन में वे
घड़ी का उदाहरण देते हैं कि घड़ी से समय जान लो यह देखने की कोशिश न करो कि इसका कौन-सा
पुर्जा कहाँ लगा है। धर्माचार्य धर्म का रहस्य आम आदमी तक पहुँचने नहीं देना चाहते,
जबकि हर व्यक्ति को धर्म का मूल रहस्य जानने का अधिकार है। 'घड़ी के पुर्जे' कहानी
का उद्देश्य यह बताना है कि धर्म पर मठाधीशों का एकाधिकार ठीक नहीं है। उसका विस्तार
जनसाधारण में होना जरूरी है तभी धर्म जनहितकारी हो सकता है।
प्रश्न 3. 'ढेले
चुन लो' कहानी के माध्यम से लेखक क्या संदेश देना चाहता है ?
उत्तर : यह लघुकथा रूढ़ियों एवं अंधविश्वासों
का विरोध करती है और यह संदेश देती
है कि हमें अपनी बुद्धि का उपयोग करके जीवन से संबंधित निर्णय लेने चाहिए। पत्नी का
चुनाव आँख-कान से देख सनकर करना ज्यादा अच्छा है न कि ढेले स्पर्श करवाकर वैदिक रीति
से जीवन-साथी का चुनाव करना। ज्योतिषीय गणनाओं के द्वारा जीवन-साथी का चुनाव करने की
अपेक्षा अपनी बुद्धि का उपयोग करते हुए जीवन-साथी का चुनाव करना लेखक बेहतर मानता है।
1. विधा की दृष्टि से यह पाठ निबंध की अपेक्षा
अपनी कथात्मकता शैली के कारण किसके अधिक निकट है?
क. उपन्सय के निकट
ख. नाटक के निकट
ग. लघुकथा के निकट
घ. रिपोर्ताज के निकट
2. निम्नलिखित में कौन-सा इस पाठ की भाषा संबंधी
विशेषता नहीं है
क. व्यंग्यात्मकता
ख. तत्सम प्रधान खड़ी बोली
ग. बिम्बात्मक भाषा
घ. आँचलिकता
3. किसके कारण यह निबंध सुपाठ्य और रोचक बन
गया है?
क. ललित कथात्मकता शैली के कारण
ख. तत्सम शब्दों के प्रयोग के कारण
ग. शिक्षा की ठेठ अवधारणा के कारण
घ. उपरोक्त सभी
4. निम्नलिखित में किस खगोलविद को अपनी मान्यताओं
के कारण अनेक कष्ट सहने पड़े ?
क. अल्बर्ट आइन्स्टीन
ख. गैलीलियो गैलिली
ग. आइज़क न्यूटन
घ. स्टीफन हॉकिंग
5. परम्पराओं को तोड़ने वाले खौगोलिक आन्दोलन
के अग्र नेता निम्नलिखित में से कौन थे ?
क. सुश्रुत
ख. जैमिनी
ग. आर्यभट्ट
घ. वैशम्पायन
6. इस निबंध में लेखक ने किसके माध्यम से धर्म
विषयक बखान या उपदेश करने वालों पर व्यंग्य किया है?
क. साइकिल के पुर्जे के माध्यम से
ख. घड़ी के पुर्जे के माध्यम से
ग. कार के पुर्जे के माध्यम से
घ. इनमें से सभी
7. लेखक के अनुसार धर्म के गूढ़ रहस्यों को
समझने का अधिकार और किनके पास होना चाहिए ?
क.. धर्मोपदेशकों तक सीमित रहने चाहिए।
ख. तत्वशास्त्रियों और मीमांसकों तक सीमित रहने चाहिए।
ग. जन सामान्य को भी उसके गहरे अर्थों को समझने
का अधिकार दिया जाना चाहिए।
घ. इनमें से कोई नहीं।
8. निम्नलिखित में कौन सा इस निबंध का कथ्य
नहीं है ?
क. धर्म के विषय में जानने का अधिकार प्रत्येक मनुष्य का
होना कि चाहिए।
ख. इस निबंध में धर्माचार्यों द्वारा लोगों
के कल्याण की भावना छुपी हुई है।
ग. समय, समाज और मानव परिस्थितियों के अनुसार धर्म की अवधारणा
में भी सहज परिवर्तन करना चाहिए।
घ. धर्मगुरुओं के वर्चस्व के लिए कहा जाता है कि धर्म की
प्रचलित व्याख्या में हस्तक्षेप करने का अधिकार किसी को नहीं है।
9. इस निबंध में निम्नलिखित में से कौन सा
काव्य गुण है -
क. ओज गुण
ख. माधुर्य गुण
ग. प्रसाद गुण
घ. उपरोक्त सभी
10. घड़ी की संरचना बहुत जटिल है, उसे हर कोई
नहीं समझ सकता। फिर उसे कौन समझ सकता है ?
क. चिकित्सक
ख. धर्माचार्य
ग. घड़ीसाज
घ. खगोलविद
11. निम्नलिखित में वैज्ञानिक दृष्टिकोण का
तत्व है -
क. भय और कल्पना
ख. पारंपरिक मान्यताओं और प्रथाओं पर अतार्किक विश्वास
ग. जिज्ञासा - अन्वेषण या खोज
घ. उपरोक्त सभी
12. ढेले चुन लो निबंध का प्रतिपाद्य निम्नलिखित
में से नहीं है
क. लोक जीवन में व्याप्त अंधविश्वासों पर व्यंग्य
ख. अविवेकपूर्ण तरीकों पर व्यंग्य
ग. भविष्य की नींव विचार की मजबूत धरती पर टिकी हुई हो
घ. प्राचीन मान्यताओं, विश्वासों और प्रथाओं पर आँख मूंद
कर विश्वास
13. ज्योतिष तथा कर्मकांडो से सम्बन्धित अंधविश्वासों
में फंसने के कारण लोग -
क. बहुत उन्नति करते हैं।
ख. विवेकपूर्वक और तार्किक रूप से नहीं सोच
पाते।
ग. मोक्ष को प्राप्त होते हैं।
घ. दूसरों की भलाई के बारे में सोचते हैं।
14. इस निबंध में कौन सी शब्दशक्ति प्रमुख
है-
क. अभिधा
ख. लक्षणा
ग. व्यंजना
घ. किसी का भी नहीं
JCERT/JAC REFERENCE BOOK
Hindi Elective (विषय सूची)
भाग-1 | |
क्रं.सं. | विवरण |
1. | |
2. | |
3. | |
4. | |
5. | |
6. | |
7. | |
8. | |
9. | |
10. | |
11. | |
12. | |
13. | |
14. | |
15. | |
16. | |
17. | |
18. | |
19. | |
20. | |
21. | |
भाग-2 | |
कं.सं. | विवरण |
1. | |
2. | |
3. | |
4. |
JCERT/JAC Hindi Elective प्रश्न बैंक - सह - उत्तर पुस्तक (Question Bank-Cum-Answer Book)
विषय सूची
अंतरा भाग 2 | ||
पाठ | नाम | खंड |
कविता खंड | ||
पाठ-1 | जयशंकर प्रसाद | |
पाठ-2 | सूर्यकांत त्रिपाठी निराला | |
पाठ-3 | सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय | |
पाठ-4 | केदारनाथ सिंह | |
पाठ-5 | विष्णु खरे | |
पाठ-6 | रघुबीर सहाय | |
पाठ-7 | तुलसीदास | |
पाठ-8 | मलिक मुहम्मद जायसी | |
पाठ-9 | विद्यापति | |
पाठ-10 | केशवदास | |
पाठ-11 | घनानंद | |
गद्य खंड | ||
पाठ-1 | रामचन्द्र शुक्ल | |
पाठ-2 | पंडित चंद्रधर शर्मा गुलेरी | |
पाठ-3 | ब्रजमोहन व्यास | |
पाठ-4 | फणीश्वरनाथ 'रेणु' | |
पाठ-5 | भीष्म साहनी | |
पाठ-6 | असगर वजाहत | |
पाठ-7 | निर्मल वर्मा | |
पाठ-8 | रामविलास शर्मा | |
पाठ-9 | ममता कालिया | |
पाठ-10 | हजारी प्रसाद द्विवेदी | |
अंतराल भाग - 2 | ||
पाठ-1 | प्रेमचंद | |
पाठ-2 | संजीव | |
पाठ-3 | विश्वनाथ तिरपाठी | |
पाठ- | प्रभाष जोशी | |
अभिव्यक्ति और माध्यम | ||
1 | ||
2 | ||
3 | ||
4 | ||
5 | ||
6 | ||
7 | ||
8 | ||
Class 12 Hindi Elective (अंतरा - भाग 2)
पद्य खण्ड
आधुनिक
1.जयशंकर प्रसाद (क) देवसेना का गीत (ख) कार्नेलिया का गीत
2.सूर्यकांत त्रिपाठी निराला (क) गीत गाने दो मुझे (ख) सरोज स्मृति
3.सच्चिदानंद हीरानंद वात्सयायन अज्ञेय (क) यह दीप अकेला (ख) मैंने देखा, एक बूँद
4.केदारनाथ सिंह (क) बनारस (ख) दिशा
5.विष्णु खरे (क) एक कम (ख) सत्य
6.रघुबीर सहाय (क) वसंत आया (ख) तोड़ो
प्राचीन
7.तुलसीदास (क) भरत-राम का प्रेम (ख) पद
8.मलिक मुहम्मद जायसी (बारहमासा)
11.घनानंद (घनानंद के कवित्त / सवैया)
गद्य-खण्ड
12.रामचंद्र शुक्ल (प्रेमघन की छाया-स्मृति)
13.पंडित चंद्रधर शर्मा गुलेरी (सुमिरिनी के मनके)
14.ब्रजमोहन व्यास (कच्चा चिट्ठा)
16.भीष्म साहनी (गांधी, नेहरू और यास्सेर अराफात)
17.असगर वजाहत (शेर, पहचान, चार हाथ, साझा)
18.निर्मल वर्मा (जहाँ कोई वापसी नहीं)
19.रामविलास शर्मा (यथास्मै रोचते विश्वम्)
21.हज़ारी प्रसाद द्विवेदी (कुटज)
12 Hindi Antral (अंतरा)
1.प्रेमचंद = सूरदास की झोंपड़ी
3.विश्वनाथ त्रिपाठी = बिस्कोहर की माटी