12th Hindi Elective दूसरा देवदास JCERT/JAC Reference Book

12th Hindi Elective दूसरा देवदास JCERT/JAC Reference Book

 

12th Hindi Elective दूसरा देवदास JCERT/JAC Reference Book

20. दूसरा देवदास

लेखिका परिचय

ममता कालिया जन्म - सन् 1940 (मथुरा, उत्तर प्रदेश) में

शिक्षा - नागपुर, पुणे, इंदौर, मुंबई आदि स्थानों में। दिल्ली विश्वविद्यालय से उन्होंने अंग्रेजी विषय से एम.ए. किया।

अध्यापन कार्य - सन् 1963 1965 तक दौलत राम कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय में अंग्रेजी की प्राध्यापिका रहीं। 1966 से 1970 तक एस.एन.डी.टी महिला विश्वविद्यालय, मुंबई में अध्यापन कार्य, फिर 1973 से 2001 तक महिला सेवा सदन डिग्री कॉलेज, इलाहाबाद में प्रधानाचार्य रहीं।

2003 से 2006 तक भारतीय भाषा परिषद् कलकत्ता की निदेशक रहीं। वर्तमान में नई दिल्ली में रहकर स्वतंत्र लेखन कर रही हैं।

प्रमुख रचनाएँ - उपन्यास बेघर, नरक दर नरक, एक पत्नी के नोट्स, प्रेम कहानी, लड़कियाँ, दौड़ आदि।

कहनी-संग्रह - 12 कहानी-संग्रह जो 'संपूर्ण कहानियाँ' नाम से दो खंडों में प्रकाशित हैं। हाल ही में उनके दो कहानी-संग्रह प्रकाशित हुए हैं, जैसे 'पच्चीस साल की लड़की', 'थिएटर रोड के कौवे'।

प्रमुख पुरस्कार - कथा-साहित्य में उल्लेखनीय योगदान के लिए उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान से 'साहित्य भूषण' 2004 तथा 'कहानी सम्मान' 1989 में प्राप्त हुआ। उनके समग्र साहित्य पर अभिनव भारती कलकत्ता ने 'रचना पुरस्कार' भी दिया। सरस्वती प्रेस तथा साप्ताहिक हिंदुस्तान का 'श्रेष्ठ कहानी पुरस्कार' भी प्राप्त है।

भाषा शैली ममता कालिया का भाषाज्ञान अत्यंत उच्चकोटि का है। विषय के अनुरूप सहज भावाभिव्यक्ति उनकी खासियत है। व्यंग्य की सटीकता एवं सजीवता से भाषा में एक अनोखा प्रभाव उत्पन्न हो जाता है। अभिव्यक्ति की सरलता एवं सुबोधता उसे विशेष रूप से मर्मस्पर्शी बना देती है।

पाठ परिचय

'दूसरा देवदास' कहानी के मुख्य नायक संभव और मुख्य नायिका पारो है।

यह कहानी हर की पौड़ी, हरिद्वार के परिवेश को केंद्र में रखकर युवामन की संवेदना, भावना और विचारजगत की उथल-पुथल को आकर्षक भाषा-शैली में प्रस्तुत करती है।

यह कहानी युवा हृदय में पहली आकस्मिक मुलाकात की हलचल, कल्पना और रूमानियत का उदाहरण है।

इस कहानी में लेखिका ने इस तरह घटनाओं का संयोजन किया है कि अनजाने में प्रेम का प्रथम अंकुरण संभव और पारो के हृदय में बड़ी अजीब परिस्थितियों में उत्पन्न होता है।

संभव और पारो का यह प्रथम आकर्षण और परिस्थितियों के गुंफन ही उनके प्रेम को आधार और मजबूती प्रदान करता है।

इस कहानी से यह सिद्ध होता है कि प्रेम के लिए किसी निश्चित व्यक्ति, समय और स्थिति का होना आवश्यक नहीं है। वह कभी भी, कहीं भी, किसी भी समय और स्थिति में उपज सकता है, हो सकता है।

इस कहानी के माध्यम से लेखिका ने प्रेम को बंबईया फिल्मों की परिपाटी से अलग हटाकर उसे पवित्र और स्थायी स्वरूप प्रदान किया है।

कथ्य, भाषा और शिल्प की दृष्टि से यह कहानी बेजोड़ है।

कहानी का सारांश

शाम को हर की पौड़ी में गंगा आरती का रंग निराला होता है। भक्तों की भीड़ अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए फूल, प्रसाद आदि की खरीददारी करती है। उस समय पण्डे और गोताखोर सक्रिय हो जाते हैं। चारों ओर पूजा का माहौल है, पाँच मंजिली नीलांजलि में सहस्त्र दीपक जल उठते हैं और आरती शुरू हो जाती है। प्रार्थना के दीये लेकर फूल के छोटे-छोटे दोने गंगा की लहरों पर लहराते हुए आगे बढ़ते हैं। चंदन और धूप की सुगंध पूरे वातावरण में फैल जाती है और भक्त संतोष से भर जाते हैं।

'गंगा पुत्र' वे गोताखोर हैं जो गंगा में डुबकी लगाते हैं और भक्तों द्वारा छोड़े गए चढ़ावे के पैसे को इकट्ठा करके अपनी आजीविका कमाते हैं। इनका जीवन गंगा पर निर्भर करता है, यह रेजगारी इकट्ठा कर कुशाघाट पर अपनी बहन या पत्नी को दे देते हैं, जो इन्हें बेचकर नोट कमाती हैं। कई बार उनके साथ दुर्घटनाएँ भी हो जाती हैं, लेकिन परवाह किए बिना वे अपने काम में लगे रहते हैं।

कहानी का नायक 'संभव' है और नायिका 'पारो'। संभव कुछ दिनों के लिए नानी के घर आया है। वह नास्तिक होते हुए भी माता-पिता के कहने पर गंगा का आशीर्वाद लेने आया है। नायक और नायिका का प्रथम परिचय गंगा तट पर स्थित मंदिर में होता है। मंदिर में चढ़ावा चढ़ाने के बाद संभव ने कलावा बँधवाने के लिए हाथ बढाया। तभी एक नाजुक सी कलाई भी कलावा बँधवाने के लिए आगे बढ़ती है। संभव गुलाबी कपड़ों में भीगी लड़की को देखता है। पुजारी दोनों को एक जोड़े के रूप में मानते हैं और उन्हें आशीर्वाद देते हैं "सुखी रहो, फूलो फलो, जब भी आओ साथ ही आना, गंगा मैया मनोरथ पूरे करें।" लड़की घबराहट में छिटककर दूर हो गई और तेजी से चली गई। इस प्रकार दोनों के बीच पहला आकर्षण हर की पौड़ी में पैदा होता है, जो लगातार घटने वाली घटनाओं के क्रम से प्यार में बदल जाता है। इसे पहली नजर का प्यार कहा जा सकता है।

उस छोटी सी मुलाकात ने संभव के मन में कल्पना और सपनों के पंख लगा दिए, उसमें फिर मिलने की बेचैनी पैदा हो गई। ऐसा अजीब-सा अहसास था कि बेचैनी के साथ-

साथ सुख भी दे रहा था। मन ही मन उसके रूप को याद करके वह उससे बात करने के बारे में सोचने लगा। ऐसा आकर्षण उसे पहली बार महसूस हुआ। लड़की का आँख मूँदकर पूजा करना, माथे पर गीले बालों की लटें, कुर्ते को छूता गुलाबी ऑचल और उसका कोमल स्वर। संभव पूरी रात इन्हीं ख्यालों में खोया रहा। अचानक उसे बिंदिया और श्रृंगार के अन्य साधन पसंद आने लगे और अचानक मांग में सितारों को भरने जैसे गाने उसे पसंद आने लगे।

दूसरे दिन सभी भक्त मनसा देवी पर अपनी मनोकामना के लिए लाल और पीले रंग के धागे बाँध रहे थे। संभव ने भी पूरी श्रद्धा के साथ मनोकामना की गाँठ लगाई। जिसमें उस लड़की से दोबारा मिलने की मनोकामना थी। अब पहला आकर्षण प्यार में बदल चुका था। वहीं पारो ने भी इसी उम्मीद के साथ मनोकामना की गाँठ लगाई। दोनों एक दूसरे से मिलने के लिए बेताब थे, अचानक दोनों मंदिर के बाहर फिर से मिले। उन दोनों ने अपनी-अपनी मनोकामनाओं की गाँठ के इतने जल्दी परिणाम की उम्मीद नहीं की थी।

पारो की मनोदशा भी संभव से अलग नहीं थी, वह खुद भी उसके आकर्षण में डूबी हुई थी। युवामन का एकतरफा प्रेम केवल एक झलक पाने के लिए व्याकुल था। जब संभव के रूप में मनसा देवी पर लगी मनोकामना की गाँठ का परिणाम आया, तो वह आश्चर्य और मिश्रित खुशी में डूब गई। सफेद साड़ी में उसका चेहरा शर्म से गुलाबी हो रहा था, क्योंकि वह भी इसी का इंतजार कर रही थी। उन्होंने भगवान को धन्यवाद दिया और अपने मन में एक और चुनरी चढ़ाने का संकल्प लिया। मनोकामना की पूर्ति के साथ ही मंसा देवी में विश्वास तथा संभव के लिए प्रेम और अधिक दृढ़ और स्थायी हो गया।

शब्दार्थ और टिप्पणी

गोधूलि बेला = संध्या का समय

हुज्जत = बहस

ब्यालू = शाम का भोजन

नीलांजलि = विशेष प्रकार का दीपक जिसे प्रज्ज्वलित कर आरती के समय देवमूर्ति के सामने घुमाया जाता है।

मनोरथ = मन की इच्छा, अरमान

बेखटके = बिना किसी रुकावट के

कलावा = कलाई में बाँधी गई लाल डोरी, मौली

प्रकोष्ठ = कक्ष, कमरा

झुटपुटा = कुछ-कुछ अंधेरा

अस्फुट = अस्पष्ट, कुछ-कुछ उजाला

आत्मसात = अपने में समा लेना

जी खोल कर देना = उदारतापूर्वक खर्च करना

नज़रें बचाना = एक दूसरे से कतराना

नौ दो ग्यारह होना = भाग जाना, गायब होना

मनोकामना = इच्छाएं

मुस्तैदी = सतर्कता

समवेत = समूह में

हतप्रभ = भय से चकित

कबुलवाते हैं = स्वीकार करवाते हैं

फबना = सुंदर लगना

खखोरा = तलाशी ली

काँस्य प्रतिमा = काँसे की मूर्ति

अकबकाना = हिचकिचाना

पस्त = हारे हुए

कौर = ग्रास, भोजन का टुकड़ा

सद्य-स्नात = अभी-अभी नहाई हुई

उवाच = कहा

रेला = भीड़

खरीद-फरोख्त = खरीदना-बेचना

उन्मुख = मुख किए हुए

भाल = माथा, मस्तक

इंगित = इशारा

धवल = स्वच्छ, सफेद

समवयस्क = समान उम्र के

पुलक = खुशी

गिठान = गाँठ

प्रश्न अभ्यास :

1. पाठ के आधार पर हर की पौड़ी पर होने वाली गंगा जी की आरती का भावपूर्ण वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।

उत्तर :- हर की पौड़ी पर हर सुबह-शाम आरती होती है। आरती के अवसर पर हर की पौड़ी पर मनभावन दृश्य होता है। देश-विदेश से पर्यटक आकर इस आरती में सम्मिलित होते हैं। गंगा नदी के तट पर बने पवित्र स्थान हर की पौड़ी पर लोग फूलों के दोनो, धूपबत्ती, दीप आदि लेकर आते हैं। सबके हृदय में पवित्र नदी गंगा के प्रति माँ के समान श्रद्धा, आस्था एवं विश्वास उमड़ता है। सभी धार्मिक भावना में बहकर गंगा नदी की स्तुति में पूजा- अर्चना, आरती करते हैं। खाकी वर्दी में स्वयं सेवक व्यवस्था बनाने व श्रद्धालुओं की सेवा में लगे रहते हैं। पीतल की नीलांजलि में हजारों देशी घी में भीगी बत्तियाँ जलाई जाती हैं। सभी के माथे सिंदूर के टीकों से चमकते हैं। पंडे जोर-जोर से आरती गा रहे हैं। कहीं-कहीं लाउडस्पीकरों पर आरती की कैसेट बज रही हैं। हर की पौड़ी पर चारों ओर जोर-जोर से घंटे घड़ियाल बज रहे हैं। लोग फूलों के दोनों को गंगा की लहरों में प्रवाहित कर रहे हैं। कुछ लोग गंगा में नहाए हुए गीले वस्त्रों में ही खड़े आरती गा रहे हैं। आरती के बाद मुरमुरे, इलायची दाने का प्रसाद बाँटा जा रहा है। इस तरह हर की पौड़ी में प्रतिदिन सुबह शाम होने वाली आरती का दृश्य मनमोहक होता है

2. 'गंगापुत्र के लिए गंगा मैया ही जीविका और जीवन है' - इस कथन के आधार पर गंगा पुत्रों के जीवन-परिवेश की चर्चा कीजिए।

उत्तर :- लेखिका ने अपनी कहानी में हर की पौड़ी पर घूमते-तैरते गंगापुत्रों के विषय में बताते हुए कहा है कि गंगा मैया उनकी जीविका और जीवन है। हर की पौड़ी पर श्रद्धालु जब पूजार्चना करते हैं तो वे दक्षिणास्वरूप कुछ सिक्के गंगा नदी में प्रवाहित करते हैं। गंगापुत्र कहलाने वाले ये गोताखोर दोने से सिक्के बटोर लेते हैं। कभी-कभी दोने में जलती घी बत्ती से उनके लंगोटे में आग तक लग जाती है। लंगोट के जल जाने से इन्हें न तो कोई भय है और न ही उन्हें कोई चिंता। वह शीघ्र ही गंगा में बैठकर आग को शांत कर देता है। गंगा की लहरों में से बंटोरे गए पैसों से उनके परिवार का पेट पलता है, उन्हें हर रोज जीने का सहारा मिलता है।

3. पुजारी ने लड़की के 'हम' को युगल अर्थ में लेकर क्या आशीर्वाद दिया और पुजारी द्वारा आशीर्वाद देने के बाद लड़के और लड़की के व्यवहार में अटपटापन क्यों आया?

उत्तर :- संभव गंगा स्नान के बाद जब वापस लौटने लगा तभी एक पंडे ने उसके माथे पर तिलक लगाते हुए चढ़ावा चढ़ाने को कहा। संभव के कुर्ते की जेब में एक रुपया बँधा था। वह चढ़ावे में चवन्नी चाहता था। पंडित संभव को पचहत्तर पैसे वापस करता, उससे पूर्व ही एक सुन्दर लड़की उससे सटकर इस प्रकार कलावा बँधवाने लगी कि पंडित जी ने समझा ये दोनों युगल हैं और साथ ही आए हैं। पंडित जी ने लड़की के हाथ में कलावा बाँधते हुए दोनों को आशीर्वाद देते हुए कहा, "सुखी रहो, फूलो-फलो, जब भी आओ साथ ही आना, गंगा मैया मनोरथ पूरे करें। पंडित के मुख से यह आशीर्वचन सुनकर लड़की संभव से छिटक कर दूर जा खड़ी हुई। लड़की को अपनी भूल का आभास हुआ। वह खुद ही संभव के साथ इस तरह खड़ी हुई थी कि पंडित ने उन दोनों को पति-पत्नी जाना। इसीलिए संभव और पारो के व्यवहार में कुछ अटपटा पन आ गया था।

4. उस छोटी सी मुलाकात ने संभव के मन में क्या हलचल उत्पन्न कर दी, इसका सूक्ष्म विवेचन कीजिए।

उत्तर :- छोटी सी मुलाकात में संभव का युवामन लड़की (पारो) के प्रति आकर्षित हो उठा। उसने गलियों में उसका पीछा करना चाहा पर जल्दी ही उसकी आँखों से ओझल हो गई। आखिर वह उसे खोजते-खोजते थक गया। घर पहुँचकर संभव उस सुन्दर-सलौनी लड़की के विषय में सोचने लगा। वह पारो के रूप-सौन्दर्य पर इतना खो गया कि अपनी सुध-बुध खो बैठा। उसे उस रात भूख भी नहीं लगी। पारो का आँख मूँदकर अर्चना करना, माथे पर भीगे बालों की लट, कुर्ते को छूता उसका गुलाबी आँचल और पुजारी से कहता उसका सौम्य स्वर 'हम कल आएँगे' संभव की बेचैनी को बढ़ा रहा था। संभव पारों से फिर मिलना चाह रहा था। नानी द्वारा भोजन परोसे जाने पर वह रोटी का कौर हाथ में लिए अपनी आँखों में उन दृश्यों को घूमते देखता रहा जो दिन में घटित हुए थे। लड़की की चिहुँकना, छिटक कर दूर खड़े होना,घबराहट में चप्पल भी ठीक से न पहन पाना और आगे बढ़ जाना, ये सभी दृश्य उसकी आँखों के सामने घूम रहे थे। यह सभी याद करते हुए उसे कुछ और ज्यादा बेचैनी लग रही थी। उसने मन ही मन तय किया वह पारो से मिलने के लिए कल शाम पाँच बजे ही घाट पर पहुँच जाएगा।

5. मंसा देवी जाने के लिए केबिलकार में बैठे हुए संभव के मन में जो कल्पनाएँ उठ रही थीं, उनका वर्णन कीजिए।

उत्तर :- मंसा देवी जाने के लिए केबिलकार में बैठे हुए संभव के मन में नीचे कतारबद्ध खिले फूलों को देखकर कल्पना जगी कि वह रंग-बिरंगी वादियों में से किसी हिंडोले पर बैठा उड़ जा रहा है।

6. "पारो बुआ, पारो बुआ इनका नाम है... उसे भी मनोकामना का पीला-लाल धागा और उसमें पड़ी गिठान का मधुर स्मरण हो आया। * कथन के आधार पर कहानी के संकेतपूर्ण आशय पर टिप्पणी लिखिए।

उत्तर :- गंगा में नहाने के बाद पंडित से कलावा बँधवाकर, चंदन लगवाकर चढ़वा चढ़ा कर वापस जाने लगा। तभी पारो से बातचीत करने में व्यस्त पंडित संभव को शेष पचहत्तर पैसे देना भूल गया। पारो संभव के इतना नजदीक और ऐसी स्थिति में थी कि पुजारी ने पारो के 'हम' शब्द को युगल अर्थ में लिया। पंडित ने दोनों को आशीर्वाद दिया कि-"सुखी रहो, फूलो-फलो, जब भी आओ साथ ही आना, गंगा मैया मनोरथ पूर्ण करें। " जब संभव मंसा देवी मंदिर पहुँचा तो उसे वहाँ पारो मिल गई। यहीं दोनों में गहन परिचय भी हो गया। तब संभव को मनोकामना का पीला-लाल धागा और उसमें पड़ी गिठान का मधुर स्मरण हो आया जो उसने मंसादेवी मंदिर पर पारो से मिलने की इच्छा पूरी करने के लिए लगाई थी। उसकी मनोकामना पूर्ण हो चुकी थी।

7. 'मनोकामना की गाँठ भी अद्भुत, अनूठी है, इधर बाँधो उधर लग जाती है।' कथन के आधार पर पारो की मनोदशा का वर्णन कीजिए।

उत्तर :- पारो भी संभव के प्रति आकर्षित थी। वह मंसा देवी मंदिर में संभव की तलाश में ही पहुँची थी। उसने मंसा देवी पर एक और चुनरी चढ़ाने का संकल्प लिया था। उसकी मनोकामना पूरी हुई। संभव के मिल जाने पर पारो मन ही मन मनोकामना की इस गाँठ के विषय में सोच रही थी कि मंदिर में लगाई गाँठ ने ही उन दोनों को एक नए बंधन में बाँध दिया है।

8. निम्नलिखित वाक्यों का आशय स्पष्ट कीजिए-

(क) 'तुझे तो तैरना भी न आवे। कहीं पैर फिसल जाता तो मैं तेरी माँ को कौन मुँह दिखाती।'

उत्तर :- ममता कालिया द्वारा लिखी गई कहानी 'दूसरा देवदास' की इन पंक्तियों में लेखिका ने एक वृद्धा नानी के मन में वात्सल्य एवं लोक-लाज से उत्पन्न भय को प्रदर्शित किया है। यह स्वाभाविक भी है। संभव तैरना नहीं जानता था। देर शाम तक संभव के वापस घर न लौटने पर नानी के मन में अज्ञात आशंका उत्पन्न होना स्वाभाविक ही है। इसीलिए उन्होंने अपने मन का अज्ञात भय व्यक्त करते हुए संभव से ये शब्द कहे।

(ख) 'उसके चेहरे पर इतना विभोर विनीत भाव था मानो उसने अपना सारा अहम त्याग दिया है, उसके अंदर स्व से जनित कोई कुंठा शेष नहीं है, वह शुद्ध रूप से चेतनस्वरूप, आत्माराम और निर्मलानंद है।'

उत्तर :- 'दूसरा देवदास' कहानी में ममता कालिया ने गंगा में नहाते एक दर्शनार्थी को देखकर अनुभव किया कि निर्मल गंगा की जलधारा में नहाने वाले दर्शनार्थी सांसारिकता से परे हो जाते हैं। उस समय उनके चेहरे पर किसी भी प्रकार से जाति, भाषा, राष्ट्र या लिंग-भेद का भाव नहीं उभरता है। सूर्य के तेज के समान सभी एक निरहंकारी भाव में डूबे दिखाई देते हैं। सभी के चेहरे पर 'स्वत्व' का भाव लुप्त होकर 'परमत्व' का भाव जागृत हो जाता है। इस परमत्व के भाव में लेशमात्र भी 'अहं' भाव दिखाई नहीं देता।

(ग) 'एकदम अंदर के प्रकोष्ठ में चामुंडा रूप धारिणी मंसादेवी स्थापित थी। व्यापार यहाँ भी था।'

उत्तर :- 'दूसरा देवदास' नामक कहानी की इन पंक्तियों में लेखिका मंसा देवी के मंदिर में लगी दुकानों के विषय में कहती है कि मंदिर के प्रांगन में रूद्राक्ष मालाएँ बिक रही थीं। नकली रूद्राक्ष साबित करने वाले को पाँच सौ रुपये इनाम देने की बात भी थी। हलवाई, खेल-खिलौने की दुकानें भी वहाँ थीं। यह मंदिर एक व्यापारिक केंद्र बन गया था। दूसरी ओर सच्चे मन से किए गए वायदे, इच्छाएँ भी चुनरी, प्रसाद चढ़ा कर पूरी होती थीं। संभव और पारो का मिलन भी दिल के लेन-देन पर आधारित था।

9. 'दूसरा देवदास' कहानी के शीर्षक की सार्थकता स्पष्ट कीजिए।

उत्तर : ममता कालिया की कहानी का शीर्षक 'दूसरा देवदास' बिलकुल उचित है। शरत् चंद्र के उपन्यास 'देवदास' का पात्र भी एक भोला-भाला, अल्पवयस्क बालक था, जो अपनी सरलता के कारण एक ऐसे विचित्र प्रेमसूत्र में बँध गया था, जिसका उसे स्वयं भी पता न चला था। उस उपन्यास की नायिका का नाम पारो था। अल्हड़ पारो के प्रेम में देवदास इतना डूब गया कि वह स्वयं के अस्तित्व को भूल गया। इस कहानी में भी पारो नामक लड़की के प्रति संभव इतना आकर्षित हुआ कि खुद की सुध-बुध खो बैठा। वह भी देवदास की तरह पारो को चाहने लगा था। उसने स्वयं को अपना नाम बताते हुए 'संभव देवदास' कहा। अतः यह शीर्षक एकदम उचित ही है।

10. 'हे ईश्वरा उसने कब सोचा था कि मनोकामना का मौन उद्गार इतनी शीघ्र शुभ परिणाम दिखाएगा आशय स्पष्ट कीजिए।'

उत्तर :- संभव मंसा देवी में मन्नत माँग कर आया था कि गंगा तट पर मिली लड़की (पारो) उसे मिल जाए। वह पारो की तलाश में गंगा किनारे खूब घूमा मगर वह न मिली। मंसा देवी मंदिर आने की उसकी कोई इच्छा न थी लेकिन पारो से मिलने की बेचैनी उसे मंसा देवी मंदिर में ले आई। वहाँ उसने सच्चे मन से मंसादेवी से इच्छा पूरी करने की प्रार्थना की। हुआ भी ऐसा ही।

मंसा देवी ने उसकी प्रार्थना स्वीकार करते हुए वह मनोकामना पूर्ण कर दी, जिसे लेकर उसके मन में शंका थी। पारो से मिलने की इच्छा जिन्हें वह शब्दों में नहीं कह पाया था। मंदिर में मूक होकर भी पारो के द्वारा सुन ली गई।

भाषा-शिल्प

1. इस पाठ का शिल्प आख्याता (नैरेटर- लेखक) की ओर से लिखते हुए बना है पाठ से कुछ उदाहरण देकर सिद्ध कीजिए।

उत्तर :- इस पाठ का शिल्प आख्याता की ओर से लिखते हुए बना है। उदाहरण के लिए-

(क) - "दीया बाती का समय कह लो या कह लो आरती की बेला पाँच बजे जो फूलों के दोने एक-एक रुपये के बिक रहे थे, इस वक्त दो-दो के हो गए हैं।"

(ख) "गंगा सभा के स्वयंसेवक खाकी वर्दी में मुस्तैदी से घूम रहे हैं। आरती शुरू होने वाली है।

(ग) “औरतें डुबकी लगा रही हैं। बस उन्होंने तट पर लगे कुंडों से बँधी जंजीरें पकड़ रखी हैं।"

(घ) “गोताखोर दोने पकड़ उनमें रखा चढ़ावे का पैसा उठाकर मुँह में दबा लेते हैं। उसकी बीवी और बहन कुशाघाट पर रेजगारी बेचकर नोट कमाती हैं। एक रुपये के पच्चीस पैसे। कभी-कभी अस्सी भी देती हैं। जैसा दिन हो। " हर की पौड़ी गुंजायमान हो जाती है।

(ङ) “लता मंगेशकर की सुरीली आवाज लाउडस्पीकरों के साथ सहयोग करने लगती हैं....... 'ओम जय जगदीश हरे' से हर की पौड़ी गुंजायमान हो जाती है। "

(च) स्नान ध्यान अभी जारी है। ". संभव ने कुर्ते की जेब में हाथ डाला। एक रुपये का नोट तो मिल गया। चवन्नी के लिए उसे कुछ प्रयत्न करना पड़ा। चवन्नी जेब में नहीं थी। संभव ने थैला खखोरा। पुजारी ने उसकी परेशानी ताड़ ली। हम दें रेजगारी। " .. इधर आओ,

2. पाठ में आए पूजा-अर्चना के शब्दों तथा इनसे संबंधित वाक्यों को छाँटकर लिखिए।

उत्तर :- पाठ में आए पूजा-अर्चना संबंधी शब्द एवं वाक्य निम्नलिखित हैं -

शब्द - दीयाबाती, आरती की बेला, आरती, नीलांजलि, चंदन, सिंदूर, दीप, आसन, अँगोछा, संकल्प, मंत्रोच्चार, चढ़ावा, ब्राह्मण भोज, दान, दक्षिण, प्रसाद, स्नान-ध्यान, कलावा, कल्याण-मंत्र।

वाक्य - (क) दीया बाती का समय या कह लो आरती की बेला।

(ख) इतनी बड़ी-बड़ी मनोकामना लेकर आए हुए हैं।

(ग) स्पेशल आरती यानी एक सौ एक या एक सौ इक्यावन रुपये वाली।

(घ) पीतल की नीलांजलि में सहस्त्र बत्तियाँ घी में भिगोकर रखी हुई हैं।

(ङ) हर एक के पास चंदन और सिंदूर की कटोरी है।

(च) घंटे घड़ियाल बजते हैं।

(छ) 'ओम जय जगदीश हरे' से हर की पौड़ी गुंजायमान हो जाती है।

योग्यता- विस्तार

1. चंद्रधर शर्मा गुलेरी की 'उसने कहा था' कहानी पढ़िए और उस पर बनी फ़िल्म देखिए।

उत्तर - विद्यार्थी स्वयं करें।

2. हरिद्वार और उसके आसपास के स्थानों की जानकारी प्राप्त कीजिए।

उत्तर - विद्यार्थी स्वयं करें।

3. गंगा नदी पर एक निबंध लिखिए।

उत्तर - विद्यार्थी स्वयं करें।

4. आपके नगर/गाँव में नदी-तालाब मंदिर के आसपास जो कर्मकांड होते हैं उनका रेखाचित्र के रूप में लेखन कीजिए।

उत्तर - विद्यार्थी स्वयं करें।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

1 प्रश्न- 'दूसरा देवदास' किसकी रचना है?

क. हजारी प्रसाद द्विवेद

ख. आचार्य राम चंद्र शुक्ल

ग. प्रेमचंद

घ. ममता कालिया

2 प्रश्न- 'दूसरा देवदास' किस विधा में लिखा गया है?

क. कहानी

ख. संस्मरण

ग. रेखाचित्र

घ. नाटक

3 प्रश्न- 'दूसरा देवदास' में किस शहर के परिवेश का वर्णन किया गया है?

क. लुधियाना

ख. हरिद्वार

ग. ऋषिकेश

घ. बनारस

4 प्रश्न- पाठ के नायक का क्या नाम है?

क. रमेश

ख. पारो

ग. संभव

घ. देवदास

5 प्रश्न- पाठ का नाम 'दूसरा देवदास' क्यों रखा गया ?

क. बालक की कहानी होने के कारण

ख. प्रेम की कहानी होने के कारण

ग. धार्मिक परिवेश के कारण

घ. उपरोक्त में से कोई नहीं

6 प्रश्न- कहानी की नायिका का क्या नाम है?

क. संभव

ख. ममता

ग. सुषमा

घ. पारो

7 प्रश्न- ममता कालिया का जन्म किस सन में हुआ?

क. 1930

ख. 1940

ग. 1950

घ. 1960

8 प्रश्न- ममता कालिया का जन्म किस शहर में हुआ था?

क. हरिद्वार

ख. बनारस

ग. मथुरा

घ. काशी

9 प्रश्न- ममता कालिया किस कॉलेज में अंग्रेजी की प्राध्यापिका रही ?

क. काशी हिंदू विश्वविद्यालय

ख. दौलत राम कॉलेज दिल्ली विश्वविद्यालय

ग. जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय

घ. मुंबई विश्वविद्यालय

10 प्रश्न- कहानी की मुख्य घटना किस घाट पर घटित हुई है?

क. हर की पौड़ी

ख. दशाश्वमेध घाट

ग. सूर्य पूर्व घाट

घ. ऋषिकेश

11 प्रश्न- जब भी आना साथ आना किसने कहा था?

क. संभव की नानी ने

ख. पारो के भतीजे ने

ग. मंदिर के पुजारी में

घ. उपरोक्त में से कोई नहीं

12 प्रश्न- मनोकामना की गाँठ कहाँ बाँधी गई थी ?

क. चामुंडा देवी मंदिर में

ख. भैरव मंदिर मे

ग. काली मंदिर में

घ. मनसा देवी मंदिर में

13 प्रश्न- गंगा पुत्र किसे कहा गया है?

क. गोताखोर को

ख. गंगा की साफ सफाई वालों को

ग. नगर निगम को

घ. मंदिर के पुजारी को

14 प्रश्न- संभव किसके घर आया हुआ था?

क. बुआ के घर

ख. नानी के घर

ग. दादी के घर

घ. चाचा के घर

15 प्रश्न- 'मुस्तैदी' शब्द का क्या अर्थ है?

क. होशियारी

ख. चालबाजी

ग. धोखाधड़ी

च. स्थिरता

16 प्रश्न- ' गोधूलि बेला' का क्या अर्थ है?

क. गाय का समय

ख. दूध का समय

ग. संध्या का समय

घ. स्नान का समय

17 प्रश्न- 'आँखें मूँदना' का मुहावरा क्या होगा?

क. सो जाना

ख. मर जाना

ग. छुपन छुपाई खेलना

घ. आंखों को हाथ से ढकना

18 प्रश्न- 'निलांजलि' का क्या अर्थ है?

क. हवन

ख. पूजा

ग. आरती

घ. सूर्य

19 प्रश्न- 'युगल' शब्द से क्या आशय है?

क. आशीर्वाद

ख. लड़क

ग. युवक

घ. जोड़ा

20 प्रश्न- मन्नू कौन है?

क. संभव का बेटा

ख. पारो का बेटा

ग. संभव का भाई

घ. पारो का भतीजा

JCERT/JAC REFERENCE BOOK

Hindi Elective (विषय सूची)

भाग-1

क्रं.सं.

विवरण

1.

देवसेना का गीत

2.

सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"

3.

सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय

4.

बनारस

5.

विष्णु खरे

6.

वसंत आया

7.

भरत राम का प्रेम पद

8.

बारहमासा

9.

विद्यापति (पद)

10.

रामचंद्रचंद्रिका

11.

घनानंद

12.

प्रेमघन की छाया-स्मृति

13.

सुमिरनी के मनके

14.

कच्चा चिट्ठा

15.

संवदिया

16.

गांधी नेहरू और यासर अराफात

17.

शेरपहचानचार हाथसाझा

18.

जहां कोई वापसी नहीं

19.

यथास्मै रोचते विश्वम

20.

दूसरा देवदास

21.

हजारी प्रसाद द्विवेदी

भाग-2

कं.सं.

विवरण

1.

सूरदास की झोंपड़ी

2.

आरोहण

3.

बिस्कोहर की माटी

4.

अपना मालवा खाऊ-उजाडू सभ्यता


JCERT/JAC Hindi Elective प्रश्न बैंक - सह - उत्तर पुस्तक (Question Bank-Cum-Answer Book)

विषय सूची

अंतरा भाग 2

पाठ

नाम

खंड

कविता खंड

पाठ-1

जयशंकर प्रसाद

(क) देवसेना का गीत

(ख) कार्नेलिया का गीत

पाठ-2

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला

(क) गीत गाने दो मुझे

(ख) सरोज - स्मृति

पाठ-3

सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय

(क) यह दीप अकेला

(ख) मैंने देखा एक बूँद

पाठ-4

केदारनाथ सिंह

(क) बनारस

(ख) दिशा

पाठ-5

विष्णु खरे

(क) एक कम

(ख) सत्य

पाठ-6

रघुबीर सहाय

(क) बसंत आया

(ख) तोड़ो

पाठ-7

तुलसीदास

(क) भरत - राम का प्रेम

(ख) पद

पाठ-8

मलिक मुहम्मद जायसी

बारहमासा

पाठ-9

विद्यापति

पद

पाठ-10

केशवदास

कवित्त / सवैया

पाठ-11

घनानंद

कवित्त / सवैया

गद्य खंड

पाठ-1

रामचन्द्र शुक्ल

प्रेमधन की छायास्मृति

पाठ-2

पंडित चंद्रधर शर्मा गुलेरी

सुमिरनी के मनके

पाठ-3

ब्रजमोहन व्यास

कच्चा चिट्ठा

पाठ-4

फणीश्वरनाथ 'रेणु'

संवदिया

पाठ-5

भीष्म साहनी

गांधी, नेहरू और यास्सेर अराफत

पाठ-6

असगर वजाहत

शेर, पहचान, चार हाथ, साझा

पाठ-7

निर्मल वर्मा

जहाँ कोई वापसी नहीं

पाठ-8

रामविलास शर्मा

यथास्मै रोचते विश्वम्

पाठ-9

ममता कालिया

दूसरा देवदास

पाठ-10

हजारी प्रसाद द्विवेदी

कुटज

अंतराल भाग - 2

पाठ-1

प्रेमचंद

सूरदास की झोपडी

पाठ-2

संजीव

आरोहण

पाठ-3

विश्वनाथ तिरपाठी

बिस्कोहर की माटी

पाठ-

प्रभाष जोशी

अपना मालवा - खाऊ- उजाडू सभ्यता में

अभिव्यक्ति और माध्यम

1

अनुच्छेद लेखन

2

कार्यालयी पत्र

3

जनसंचार माध्यम

4

संपादकीय लेखन

5

रिपोर्ट (प्रतिवेदन) लेखन

6

आलेख लेखन

7

पुस्तक समीक्षा

8

फीचर लेखन

JAC वार्षिक इंटरमीडिएट परीक्षा, 2023 प्रश्न-सह-उत्तर

Class 12 Hindi Elective (अंतरा - भाग 2)

पद्य खण्ड

आधुनिक

1.जयशंकर प्रसाद (क) देवसेना का गीत (ख) कार्नेलिया का गीत

2.सूर्यकांत त्रिपाठी निराला (क) गीत गाने दो मुझे (ख) सरोज स्मृति

3.सच्चिदानंद हीरानंद वात्सयायन अज्ञेय (क) यह दीप अकेला (ख) मैंने देखा, एक बूँद

4.केदारनाथ सिंह (क) बनारस (ख) दिशा

5.विष्णु खरे (क) एक कम (ख) सत्य

6.रघुबीर सहाय (क) वसंत आया (ख) तोड़ो

प्राचीन

7.तुलसीदास (क) भरत-राम का प्रेम (ख) पद

8.मलिक मुहम्मद जायसी (बारहमासा)

9.विद्यापति (विद्यापति के पद)

10.केशवदास (रामचंद्रचंद्रिका)

11.घनानंद (घनानंद के कवित्त / सवैया)

गद्य-खण्ड

12.रामचंद्र शुक्ल (प्रेमघन की छाया-स्मृति)

13.पंडित चंद्रधर शर्मा गुलेरी (सुमिरिनी के मनके)

14.ब्रजमोहन व्यास (कच्चा चिट्ठा)

15.फणीश्वरनाथ रेणु (संवदिया)

16.भीष्म साहनी (गांधी, नेहरू और यास्सेर अराफात)

17.असगर वजाहत (शेर, पहचान, चार हाथ, साझा)

18.निर्मल वर्मा (जहाँ कोई वापसी नहीं)

19.रामविलास शर्मा (यथास्मै रोचते विश्वम्)

20.ममता कालिया (दूसरा देवदास)

21.हज़ारी प्रसाद द्विवेदी (कुटज)

12 Hindi Antral (अंतरा)

1.प्रेमचंद = सूरदास की झोंपड़ी

2.संजीव = आरोहण

3.विश्वनाथ त्रिपाठी = बिस्कोहर की माटी

4.प्रभाष जोशी = अपना मालवा खाऊ-उजाडू सभ्यता में

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