14. कच्चा चिट्ठा
लेखक परिचय
1. ब्रजमोहन व्यास जी का जन्म सन् 1886 में इलाहाबाद में
हुआ था।
2. गंगानाथ झा और बालकृष्ण भट्ट से उन्होंने संस्कृत का ज्ञान
प्राप्त किया।
3. व्यास जी की उपलब्धियां:-
(i) व्यास जी सन् 1921 से 1943 तक इलाहाबाद नगरपालिका के
कार्यपालक अधिकारी रहे।
(ii) सन् 1944 से 1951 तक लीडर समाचार पत्र समूह के जनरल
मैनेजर रहे।
4. व्यास जी की प्रमुख कृतियां:-
जानकी हरण (कुमारदास कृत) का अनुवाद। बालकृष्ण भट्ट (जीवनी)
।
महामना मदन मोहन मालवीय (जीवनी) ।
मेरा कच्चा चिट्ठा उनकी आत्मकथा है।
5. व्यास जी की देन:-
व्यास जी की सबसे बड़ी देन इलाहाबाद का विशाल और प्रसिद्ध
संग्रहालय है जिसमें दो हजार पाषाण मूर्तियां, 5-6 हजार मृणमूर्तियां, कनिष्क के राज्यकाल
की प्राचीनतम बौद्ध मूर्ति, खजुराहो की चंदेल प्रतिमाएँ, सैकड़ों रंगीन चित्रों का
संग्रह आदि शामिल है।
उन्होंने संस्कृत, हिंदी और अरबी-फ़ारसी के चौदह हजार हस्तलिखित
ग्रन्थों का संकलन उसी संग्रहालय के लिए किया। पण्डित नेहरू को मिले मानपत्र, चंद्रशेखर
आजाद की पिस्तौल आदि इलाहाबाद संग्रहालय की धरोहर मानी जाती है।
6. शिल्पगत विशेषताएं:-
उनकी भाषा भावपूर्ण एवं सरस है।
उन्होंने पात्रानुकूल भाषा का प्रयोग किया है।
कहीं-कहीं पर ग्रामीण बोलचाल की शब्दावली का भी प्रयोग हुआ
हैं
भाषा में प्रवाह एवं लालित्य है।
लोकोक्ति एवम मुहावरों का सटीक प्रयोग है।
व्यास जी ने अथक परिश्रम, सूझ-बूझ तथा कम से कम खर्च में
अधिकाधिक प्राप्त करने के ढंग से पुरातत्व संबंधी विभिन वस्तुओं के संकलन से विशाल
संग्रहालय स्थापित कर अपने पुरातात्विक ज्ञान एवं कौशल का परिचय दिया है।
7. निधन:- इस महान विभूति का निधन 23 मार्च 1963 को इलाहाबाद में हो गया।
पाठ-परिचय
प्रस्तुत पाठ-'कच्चा चिट्ठा' प्रसिद्ध पुरातात्विक संग्रहकर्ता
ब्रजमोहन व्यास की 'आत्मकथा' है। इलाहाबाद कार्यालय में ब्रजमोहन व्यास अपने संग्रहालय
के लिए पुरातात्विक वस्तुओं के संग्रह के लिए सदैव उद्यत रहते थे। वे जहां भी किसी
स्थान की यात्रा करते वहां उनकी नजर हमेशा ऐसी ही वस्तुओं की खोज में रहती थी।
वे ऐसी ही एक यात्रा पर पसोवा गए। वहां से मिट्टी की प्राचीन
मूर्तियाँ, सिक्के और मनके संग्रहित किये। वहीं उनकी नजर पत्थरों के ढेर पर रखी लगभग
20 किलो वजनी प्राचीन चतुर्भुज शिवजी की मूर्ति पर पड़ी। वह उस मूर्ति को अपने संग्रहालय
में ले आए। जब गाँव वालों को यह बात पता चली तो वे 15-20 आदमी अपनी मूर्ति को वापस
ले जाने के लिए उनके दफ्तर आ पहुंचे। उन्होंने न केवल मूर्ति उन्हें वापस सौंप दी बल्कि
उनलोगों को बस अड्डे तक पहुँचाने की व्यवस्था भी कर दी। इससे
उनकी सहृदयता का पता चलता है।
इसके दूसरे बर्ष वह पुनः कौशाम्बी की यात्रा पर गए। वहाँ
वे गाँव-गाँव, नाले-नाले घूमते रहे। एक खेत की मेड़ पर उन्हें बोधिसत्व की आठ फुट सुंदर
मूर्ति दिखाई पड़ी, जो मथुरा के लाल पत्थरों से निर्मित थी। दो रुपये का भुगतान कर
वह उस मूर्ति को अपने संग्रहालय में ले आये।
एक दिन एक फ्रांसीसी डीलर संग्रहालय देखने
आया। उसने बोधिसत्व की मूर्ति को
देखकर उसे दस हजार रुपये में खरीदने की इच्छा जाहिर की। परन्तु लेखक ने मूर्ति नहीं
बेची। वह मूर्ति बोधिसत्व की उन मूर्तियों में से एक है, जो संसार में अब तक प्राप्त
सभी मूर्तियों से प्राचीन है। वह कुषाण सम्राट कनिष्क के राज्यकाल के दूसरे वर्ष स्थापित
की गई थी। ऐसा उल्लेख उस सिरविहीन मूर्ति के पद- स्थल पर उत्कीर्ण है।
ब्रजमोहन व्यास जी ने संग्रहालय में विभिन्न पुरातात्विक
वस्तुओं का संग्रह अपने कार्यकाल में निरंतर जारी रखा। परन्तु जिस भवन में ये वस्तुएँ
रखी हुयी थी वह छोटा पड़ने लगा। अतः एक विशाल भवन की आवश्यकता होने लगी। लेखक ने अपनी
सूझ बूझ से एक संग्रहालय निर्माण-कोष की स्थापना की। जिसमें दस वर्षों में दो लाख रुपये
की राशि एकत्रित हो गयी। तत्कालीन जिलाधिकारी के द्वारा कम्पनी बाग में भवन के लिए
भूखण्ड दिया गया। इस कार्य का शिलान्यास पंडित जवाहरलाल लाल नेहरू के द्वारा किया गया।
एक भव्य समारोह में पंडित नेहरू ने न केवल उस स्थल का शिलान्यास
किया अपितु बम्बई के प्रसिद्ध इंजीनियर श्री साठे जी के द्वारा भवन का नक्शा बनवाया
तथा अपने अधीन विभागों द्वारा निर्माण राशि की कभी कमी नहीं होने दी। उस संग्रहालय
में प्रदर्शित वस्तुओं का तत्कालीन मूल्य 15 लाख रुपये से अधिक ही होगा। अंत में लेखक
ने उन लोगों को धन्यवाद दिया है जिन्होंने इस संग्रहालय के निर्माण तथा चीजें एकत्रित
करने में उसकी सहायता एवं सहयोग किया है।
इस प्रकार अपनी दूरदर्शिता के द्वारा लेखक महोदय ने एक नौकरशाह
होते हुए भी पूर्ण मनोयोग से संग्रहालय का निर्माण कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई
तथा अपना सम्पूर्ण जीवन इस संग्रहालय के प्रति समर्पित कर दिया। निश्चित रूप से यह
संग्रहालय हमारे देश की अमूल्य धरोहर है।
प्रश्न- अभ्यास
1. पसोवा की प्रसिद्धि का क्या कारण था और लेखक वहां क्यों जाना चाहता
था?
उत्तर:-
पसोवा एक बहुत बड़ा जैन तीर्थ स्थल है। प्राचीन काल से ही वहां प्रतिवर्ष जैनियों का
बहुत बड़ा मेला लगता है। बहुत दूर-दूर से यहां पर जैन यात्री आकर इस मेले में सम्मिलित
होते हैं। वहां के बारे में प्रचलित है कि इसी स्थान पर छोटी पहाड़ी की गुफा में बुद्धदेव
व्यायाम किया करते थे।
लेखक
चूँकि पुरातात्विक वस्तुओं के संग्रहकर्ता थे। अतः उस स्थान पर इस उद्देश्य के साथ
जाना चाहते थे ताकि उस ऐतिहासिक स्थल का दर्शन भी हो जाए और कुछ पुरातात्विक वस्तुओं
का संग्रह भी सम्भव हो।
2. "मैं कहीं जाता हूँ तो 'हूँछे' हाथ नहीं लौटता।" से क्या
तात्पर्य है? लेखक कौशाम्बी लौटते हुए अपने साथ क्या-क्या लाया?
उत्तर:-लेखक
के कहने का तात्पर्य यह है कि वह किसी भी स्थान की यात्रा करता है तो अपने संग्रहालय
को समृद्ध करने के लिए कोई न कोई पुरातात्विक वस्तु अवश्य ले आता है। यही कारण है कि
कौशाम्बी की यात्रा से लौटते हुए उन्हें एक गाँव के निकट पत्थरों के ढेर के बीच चतुर्भुज
शिव की मूर्ति दिखी। उस मूर्ति को देख लेखक पुरातात्विक वस्तुओं के प्रति अपना लोभ
संवरण नहीं कर सका और उस मूर्ति को वह अपने साथ ले आया।
3. चाँद्रायण व्रत करती हुई बिल्ली के सामने एक चूहा स्वयं आ जाये तो
बेचारी को अपना कर्तव्य पालन करना ही पड़ता
है। "-लेखक ने यह किस संदर्भ में कहा और क्यों?
उत्तर:-
लेखक ने कौशाम्बी के रास्ते से गुजरते समय एक गाँव में पत्थरों के बीच चतुर्भुज शिव
की मूर्ति देखी। वह इस मूर्ति को पाने का लोभ संवरण नहीं कर सका और उसे अपने साथ ले
आया। यह जानते हुए भी कि वह गाँववालों की संपत्ति है, लेखक अपने ऊपर नियंत्रण नहीं
रख पाया और उसे पाने के लिए लालायित हो उठा। अतः लेखक ने अपनी तुलना उस बिल्ली से की
है जो चाँद्रायण व्रत करते हुए भी चूहे को देखकर प्रलोभित हो जाती है।
4. "अपना सोना खोटा तो परखवैया का कौन दोस?" से लेखक का क्या
तात्पर्य है?
उत्तर:-
इसका तातपर्य यह है कि यदि दोष हमारी वस्तु में है, तो उसे परखनेवाले को दोष नहीं देना
चाहिए। अर्थात् जब हम स्वयं गलत हों तो दूसरे को दोषी नहीं ठहरा सकते। लेखक जहां भी
पुरातात्विक महत्व की वस्तु देखता है वह उसे पाने के लिए लालायित हो उठता है। उसकी
इस आदत से सभी लोग भली भाँति परिचित हैं। अतः कहिं भी मूर्ति गायब होने पर संदेह लेखक
पर ही जाता था। लेखक स्वीकार करता है कि इसमें दोष संदेह करने वालों का नहीं बल्कि
स्वयं उस का है।
5. गाँववालों ने उपवास क्यों रखा और उसे कब तोड़ा? दोनों प्रसंगों को
स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:-
गांव वालों को जब पता चला कि प्राचीन शिव की मूर्ति चोरी हो गई है तो वह लोग चिंतित
हो उठे। क्योंकि वह मूर्ति पूरे गाँव की आस्था और श्रद्धा का प्रतीक था। उनलोगों ने
तय किया कि जब तक शिव की मूर्ति वापस नहीं आ जाती है तब तक वे न तो कुछ खाएंगे न पियेंगे।
इस तरह सभी ने उपवास करना प्रारंभ कर दिया।
गाँववालों
को लेखक पर शक था। अतः वे सब मिलकर उसके पास जा पहुँचे और उनसे शिव की मूर्ति वापस
मांगी। लेखक ने भी उनलोगों की आस्था और श्रद्धा से वशीभूत हो वह मूर्ति उन्हें सौंप
दी तथा उन्हें पानी और मिठाई खिलाकर उनका व्रत तुड़वाया।
6. लेखक बुढ़िया से बोधिसत्व की आठ फुट लंबी सुन्दर मूर्ति प्राप्त
करने में कैसे सफल हुआ?
उत्तरः-पुरातात्विक
सामग्री की खोज में निकले व्यास जी एक गाँव के खेतों की मेड़ों पर भटक रहे थे तभी उन्हें
एक मेड़ पर बोधिसत्व की आठ फुट लंबी मूर्ति पड़ी दिखाई दी जिसका सिर नहीं था। यह मूर्ति
कुषाण शासक कनिष्क के राज्यकाल के द्वितीय वर्ष में बनाई गई थी। ऐसी पुरातात्विक महत्त्व
की मूर्ति को देखकर वे अत्यंत प्रसन्न हुए और जब उसे उठवाकर लाने लगे तो खेत में निराई
करती बुढ़िया ने एतराज किया और कहा कि यह हमारे खेत से निकली है, हम नहीं देंगे।
इसे निकालने में हमारा हल दो दिन रुका रहा उस नुकसान को कौन
भरेगा ? व्यास जी ने उसे दो रुपए देकर संतुष्ट किया और तब बुढ़िया ने मूर्ति ले जाने
की सहमति प्रदान की।
7. "ईमान। ऐसी कोई चीज मेरे पास हुई नहीं
तो उसके डिगने का कोई सवाल नहीं उठता। यदि होता तो इतना बड़ा संग्रह बिना पैसा-
कौड़ी के हो ही नहीं सकता।" के माध्यम से लेखक क्या कहना चाहता है ?
उत्तरः व्यास जी ने प्रयाग संग्रहालय का निर्माण करने और
इसमें एक-एक वस्तु का संग्रह करने में बहुत श्रम किया है। यदि वे 'ईमान' पर टिके रहते
तो बिना पैसा-कौड़ी खर्च किए इतना बड़ा संग्रहालय खड़ा नहीं कर सकते थे। वे यह कहना
चाहते हैं कि संग्रहालय के निर्माण हेतु मैंने सब कुछ दाँव पर लगा दिया, जिसमें ईमान
भी शामिल है और जब ईमान मेरे पास है ही नहीं तो भला रुपयों का लालच देकर कोई मेरा ईमान
कैसे डिगा सकता है।
यह जवाब उन्होंने उस फ्रांसीसी को दिया था जिसने उनसे कहा
कि मैं यदि रुपयों में आपके संग्रहालय की कीमत बताऊँ तो आपका ईमान डिग जायेगा। वह बुद्ध
की उस मूर्ति के लिए दस हजार रुपए दे रहा था जिसे व्यास जी ने मात्र दो रुपए में बुढ़िया
से प्राप्त किया था, पर व्यास जी ने उसके प्रस्ताव को विनम्रता से ठुकरा दिया और आज
भी वह मूर्ति प्रयाग संग्रहालय की शोभा बढ़ा रही है।
8. दो रुपए में प्राप्त बोधिसत्व की मूर्ति
पर दस हजार रुपए क्यों न्यौछावर किए जा रहे थे ?
उत्तर:-बोधिसत्व की जो मूर्ति व्यास जी ने बुढ़िया को दो
रुपए देकर प्राप्त की थी और उसे संग्रहालय में रखवा दिया था, उसे फ्रांस का एक डीलर
जो संग्रहालय देखने आया था दस हजार रुपए देकर खरीदना चाहता था क्योंकि यह मूर्ति अत्यंत
प्राचीन थी और इसका निर्माण मथुरा के कुषाण शासक कनिष्क के राज्यकाल के दूसरे वर्ष
में हुआ था। इस प्रकार का लेख मूर्ति के पदस्थल पर उत्कीर्ण था। इस पुरातत्व के महत्व
की बेशकीमती मूर्ति के लिए फ्रांसीसी डीलर इसी कारण दस हजार रुपए दे रहा था परन्तु
व्यास जी ने यह स्वीकार नहीं किया।
9. भद्रमथ शिलालेख की क्षतिपूर्ति कैसे हुई
? स्पष्ट कीजिए।
उत्तरः- हजियापुर गाँव में भद्रमथ का एक शिलालेख मिला था
किन्तु उसे 25 रुपए देकर मजूमदार साहब ने भारत सरकार के पुरातत्व विभाग के लिए खरीद
लिया। प्रयाग संग्रहालय में भद्रमथ के शिलालेख पहले से थे अतः अधिक हानि नहीं हुई।
व्यास जी ने सोचा कि हजियापुर में और भी पुरातात्विक महत्त्व की सामग्री मिल सकती है
यह सोचकर उन्होंने गुलजार मियाँ के यहाँ डेरा डाल दिया। उनके घर के सामने कुँए पर चार
खम्भों को परस्पर जोड़ने वाली बँडेरों में से एक बँडेर पर ब्राह्मी अक्षरों में एक
लेख था। व्यास जी ने वह बँडेर संग्रहालय के लिए निकलवा ली और इस प्रकार भद्रमथ के शिलालेख
की क्षतिपूर्ति हो गई।
10. लेखक अपने संग्रहालय के निर्माण में किन-किन के प्रति अपना आभार
प्रकट करता है और किसे अपने संग्रहालय
का अभिभावक बनाकर निश्चिंत होता है ?
उत्तर:-लेखक
ने प्रयाग संग्रहालय के निर्माण में जिन चार महानुभावों की सहायता और सहानुभूति के
प्रति कृतज्ञता ज्ञापित की है उनके नाम हैं-राय बहादुर कामता प्रसाद कक्कड़ (तत्कालीन
चेयरमैन), हिज हाइनेस श्री महेन्द्र सिंह जूदेव नागौद नरेश और उनके सुयोग्य दीवान लाल
भार्गवेंद्रसिंह और लेखक का स्वामिभक्त अर्दली जगदेव। प्रयाग संग्रहालय के संरक्षण
एवं परिवर्द्धन का उत्तरदायित्व व्यास जी ने सुयोग्य व्यक्ति डॉ. सतीश चंद्र काला को
सौंप दिया। ऐसा सुयोग्य अभिभावक संग्रहालय को देकर उन्होंने इस कार्य से संन्यास ले
लिया अर्थात् वे निश्चित हो गए।
भाषा शिल्प
1. निम्नलिखित का अर्थ स्पष्ट कीजिए-
(क) इक्के को ठीक कर लिया
उत्तर:-
व्यास जी ने अपनी यात्रा के लिए एक इक्के वाले से भाड़ा निश्चित कर लिया और उस इक्के
को अपनी सवारी के लिए 'तय' कर लिया।
(ख) कील-काँटे से दुरुस्त था।
उत्तर:-
कील काँटे से दुरुस्त था का तात्पर्य है पूरी तरह से तैयार था।
(ग) मेरे मस्तक पर हस्बमामूल चंदन था।
उत्तर:-
व्यास जी प्रतिदिन की भाँति उस दिन भी अपने माथे पर चंदन लगाए हुए थे जब गाँव के
15-20 लोग उनसे मिलने नगरपालिका के दफ्तर में आए।
(घ) सुरखाब का पर।
उत्तर:-
सुरखाब का पर का अर्थ है कोई खास बात अर्थात् विशिष्टता होना।
2. लोकोक्तियों का संदर्भ सहित अर्थ स्पष्ट कीजिए-
(क) चोर की दाढ़ी में तिनका
उत्तरः
चोर की दाढ़ी में तिनका का अर्थ है- जिसने कोई अपराध किया हो, वह स्वयं शंक्ति रहता
है कि कहीं उसका अपराध पकड़ा तो नहीं जायेगा।
संदर्भ: ब्रजमोहन
व्यास जी पसोवे से कौशाम्बी लौट रहे थे। तभी एक गाँव के बाहर पेड़ के नीचे सुनसान स्थान
पर रखी चतुर्मुखी शिव की मूर्ति को देखकर उन्होंने उसे इक्के पर रखवा लिया और प्रयाग
संग्रहालय में रखवा दिया। गाँव वालों को जब पता चला कि मूर्ति कोई ले गया है तो तुरंत
ही व्यास जी पर संदेह हुआ और एक दिन जब व्यास जी अपने दफ्तर में थे तभी चपरासी ने सूचना
दी कि गाँव से 15-20 आदमी मिलने आए हैं। व्यास जी को आशंका हुई कि हो न हो ये उसी गाँव
के लोग हैं और मूर्ति की तलाश में यहाँ आए हैं। चोर की दाढ़ी में तिनके की कहावत का प्रयोग उन्होंने
इसी संदर्भ में किया है।
(ख) ना जाने केहि भेष में नारायण मिल जाएँ
उत्तर:- इसका अर्थ है कि बहुमूल्य वस्तु कब और कहाँ मिल जाए
कुछ कहा नहीं जा सकता।
संदर्भ - पुरातात्विक वस्तुओं का संग्रह करने के लिए व्यास जी गाँव-गाँव घूमते रहते
थे इस आशा में कि 'ना जाने किस भेष में नारायण मिल जाएँ' अर्थात् पता नहीं कहाँ से
कोई बहुमूल्य सामग्री उनके हाथ लग जाए। ऐसा ही एक दिन हुआ। एक खेत में मेड़ पर उन्हें
बोधिसत्व की आठ फुट लंबी सिर कटी मूर्ति मिलीं जो कुषाण शासक कनिष्क के राज्यकाल के
दूसरे वर्ष में बनाई गई थी। इस प्रकार का लेख उसके. पदस्थल में अंकित था।
(ग) यह म्याऊँ का ठौर था
उत्तर:- इसका अर्थ है-अत्यंत कठिन कार्य।
संदर्भ- प्रयाग संग्रहालय में यद्यपि आठ बड़े कमरे थे पर सामग्री इतनी अधिक थी कि अब इसे नगरपालिका भवन से हटाकर किसी अलग भवन में स्थानांतरित करने की आवश्यकता अनुभव हो रही थी किन्तु इस हेतु भवन निर्माण के लिए अत्यधिक धन की आवश्यकता थी। यह तो म्याऊँ का ठौर था- -इस लोकोक्ति का प्रयोग करके लेखक यह बताना चाहता है कि यह अत्यधिक कठिन काम था।
JCERT/JAC REFERENCE BOOK
Hindi Elective (विषय सूची)
भाग-1 | |
क्रं.सं. | विवरण |
1. | |
2. | |
3. | |
4. | |
5. | |
6. | |
7. | |
8. | |
9. | |
10. | |
11. | |
12. | |
13. | |
14. | |
15. | |
16. | |
17. | |
18. | |
19. | |
20. | |
21. | |
भाग-2 | |
कं.सं. | विवरण |
1. | |
2. | |
3. | |
4. |
JCERT/JAC Hindi Elective प्रश्न बैंक - सह - उत्तर पुस्तक (Question Bank-Cum-Answer Book)
विषय सूची
अंतरा भाग 2 | ||
पाठ | नाम | खंड |
कविता खंड | ||
पाठ-1 | जयशंकर प्रसाद | |
पाठ-2 | सूर्यकांत त्रिपाठी निराला | |
पाठ-3 | सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय | |
पाठ-4 | केदारनाथ सिंह | |
पाठ-5 | विष्णु खरे | |
पाठ-6 | रघुबीर सहाय | |
पाठ-7 | तुलसीदास | |
पाठ-8 | मलिक मुहम्मद जायसी | |
पाठ-9 | विद्यापति | |
पाठ-10 | केशवदास | |
पाठ-11 | घनानंद | |
गद्य खंड | ||
पाठ-1 | रामचन्द्र शुक्ल | |
पाठ-2 | पंडित चंद्रधर शर्मा गुलेरी | |
पाठ-3 | ब्रजमोहन व्यास | |
पाठ-4 | फणीश्वरनाथ 'रेणु' | |
पाठ-5 | भीष्म साहनी | |
पाठ-6 | असगर वजाहत | |
पाठ-7 | निर्मल वर्मा | |
पाठ-8 | रामविलास शर्मा | |
पाठ-9 | ममता कालिया | |
पाठ-10 | हजारी प्रसाद द्विवेदी | |
अंतराल भाग - 2 | ||
पाठ-1 | प्रेमचंद | |
पाठ-2 | संजीव | |
पाठ-3 | विश्वनाथ तिरपाठी | |
पाठ- | प्रभाष जोशी | |
अभिव्यक्ति और माध्यम | ||
1 | ||
2 | ||
3 | ||
4 | ||
5 | ||
6 | ||
7 | ||
8 | ||
Class 12 Hindi Elective (अंतरा - भाग 2)
पद्य खण्ड
आधुनिक
1.जयशंकर प्रसाद (क) देवसेना का गीत (ख) कार्नेलिया का गीत
2.सूर्यकांत त्रिपाठी निराला (क) गीत गाने दो मुझे (ख) सरोज स्मृति
3.सच्चिदानंद हीरानंद वात्सयायन अज्ञेय (क) यह दीप अकेला (ख) मैंने देखा, एक बूँद
4.केदारनाथ सिंह (क) बनारस (ख) दिशा
5.विष्णु खरे (क) एक कम (ख) सत्य
6.रघुबीर सहाय (क) वसंत आया (ख) तोड़ो
प्राचीन
7.तुलसीदास (क) भरत-राम का प्रेम (ख) पद
8.मलिक मुहम्मद जायसी (बारहमासा)
11.घनानंद (घनानंद के कवित्त / सवैया)
गद्य-खण्ड
12.रामचंद्र शुक्ल (प्रेमघन की छाया-स्मृति)
13.पंडित चंद्रधर शर्मा गुलेरी (सुमिरिनी के मनके)
14.ब्रजमोहन व्यास (कच्चा चिट्ठा)
16.भीष्म साहनी (गांधी, नेहरू और यास्सेर अराफात)
17.असगर वजाहत (शेर, पहचान, चार हाथ, साझा)
18.निर्मल वर्मा (जहाँ कोई वापसी नहीं)
19.रामविलास शर्मा (यथास्मै रोचते विश्वम्)
21.हज़ारी प्रसाद द्विवेदी (कुटज)
12 Hindi Antral (अंतरा)
1.प्रेमचंद = सूरदास की झोंपड़ी
3.विश्वनाथ त्रिपाठी = बिस्कोहर की माटी