12th Hindi Elective अपना मालवा खाऊ-उजाडू सभ्यता JCERT/JAC Reference Book

12th Hindi Elective अपना मालवा खाऊ-उजाडू सभ्यता JCERT/JAC Reference Book

 

12th Hindi Elective अपना मालवा खाऊ-उजाडू सभ्यता JCERT/JAC Reference Book

4. अपना मालवा खाऊ-उजाडू सभ्यता

लेखक - परिचय

नाम- प्रभाष जोशी

जन्म- सन 1937

राज्य - मध्य प्रदेश

जिला -इंदौर

काल -आधुनिक काल

पहचान- लेखक एवं पत्रकार

साहित्यिक विशेषताएं- उच्च कोटि के पत्रकार- सन 1983 में उनके संपादन में जनसत्ता अखबार निकला जिसे हिंदी पत्रकारिता को एक नई ऊंचाई प्राप्त हुई कागद कारे नाम से उनके लेखों का संग्रह प्रकाशित है। जनसत्ता में सन 2005 में लिखे लेख, संपादकीय का चयन हिंदू होने का धर्म शीर्षक से प्रकाशित हुआ है।

भाषा शैली-प्रभाष जोशी ने बोलचाल की भाषा का अधिक प्रयोग किया है। कृतिम भाषा से उन्होंने दूरी बनाई उनकी पत्रकारिता में खेल संगीत साहित्य सिनेमा आदि सभी विषय पर गंभीर लेखन किया गया है।

पाठ-परिचय

पाठ्य पुस्तक में पर्यावरण संबंधित चिंताओं को स्थान दिया गया है। इसी क्रम में हमारी पाठ्यपुस्तक में प्रभाष जोशी द्वारा रचित 'अपना मालवा खाऊ उजाड़ सभ्यता में वर्णित पर्यावरण समस्या को पाठकों तक लाया गया है। यह पाठ जनसत्ता में 1 अक्टूबर 2006 के कागद कारे स्थान से उठाया गया है। पाठ का शीर्षक अपना मालवा खाऊ उजाडू सभ्यता में खाऊ का अर्थ है उपभोग पर अधिक ध्यान देना और उजाडू का अर्थ है प्रकृति को उजाड़ना। यह समस्या अब किसी एक देश की नहीं बल्कि सार्वभौमिक हो गई है। लेखक अपनी पर्यावरण संबंधित चिंता को इस पाठ में उभारा है आइए कुछ बिंदुओं के द्वारा इसे विस्तार पूर्वक समझने की कोशिश किया जाए-

1. समृद्ध मालवा-मालवा का पठार अपनी समृद्धि के लिए जाना जाता है। मालवा को प्रकृति ने नदी नाले खेत खलियान से परिपूर्ण किया है। यहां पर डग डग रोटी पग पग नीर कहावत लागू होती थी। जल खाद्य की कोई कमी मालवा में कभी नहीं रही।

2. वर्तमान में मालवा-खाऊ उजाड़ सभ्यता ने मालवा में भी अपना पैर पसार लिया है। भौतिक सुख की कामना में लोग इस प्रकार लग गए हैं कि वे अपने समृद्ध प्रकृति को ही नोच खसोट करना शुरू कर दिए हैं इसका प्रमाण नर्मदा नदी पर बांध बनाना, समय पर बारिश ना होना, भूमि का जल रिक्त होना, नदियों में गांद का जमा होना, फसलों का सही रूप से उत्पादन ना हो पाना आदि रूप में परिलक्षित (दिखाई) हो रही है।

3. मालवा की भूमि और नदी-मालवा को नदियों का खूब आशीर्वाद मिला है। जहां नर्मदा और शिप्रा नदी मालवा को संपन्न बनाती है वहीं दूसरी तरफ काली मिट्टी में फसल का पैदावार बढ़िया होता है परंतु बदलती मौसमी चक्र के कारण फसलों को नुकसान उठाना पड़ रहा है दूसरी तरफ नदियों में भी अब ऐसी जलधारा नहीं है जैसे कभी पूर्व में देखने को मिलती थी।

4. नदियों का बदलता स्वरूप-जो नदियां कभी मालवा पर बिना रुके बहा करती थी आज वहां बड़े-बड़े बांध बनाए जा रहे हैं नर्मदा नदी पर भी बांध का निर्माण किया जा रहा है। इससे नर्मदा नदी की धारा प्रभावित हुई है अब वहां बड़ी-बड़ी नावें दिखाई नहीं पड़ती हैं।

5. नर्मदा की सुंदरता क्वांर (अश्विन) के महीने में लेखक मालवा की सुंदरता देखने के लिए आते हैं। इसी क्रम में वे नर्मदा नदीकी सुंदरता का अवलोकन करने के लिए रात वही बिताते हैं। लेखक कहते हैं कि नदी हमारी मां के समान है और नदियों से ही हमारी सभ्यता का विकास हुआ है। चांद की रोशनी में नर्मदा चमक रही थी और लेखक के मन को अभिभूत कर रही थी।

6. जल रिक्त भूमि-मालवा की भूमि कभी नदियों तालाबों और वर्षा के जल से सिंचित था। किंतु आज के हमारे इंजीनियरों ने तालाब को गांद से भर दिया है और भूमि में उपलब्ध जल का भी दोहन आवश्यकता से अधिक किया जा रहा है। अभी मालवा में पग-पग पर नीर की जो कहावत थी अब चरितार्थ होते नजर नहीं आती है।

7. तीर्थ स्थल और नदियां हमारे भारत भूमि पर नदियों के किनारे कई तीर्थ स्थल स्थापित किए गए। कारण यह था कि हम तीर्थ स्थल की महत्ता के साथ-साथ नदियों के अस्तित्व को भी समझें। किंतु अब नदियों पर बड़ी- बड़ी बांध बनाकर नदियों की जलधारा को प्रभावित किया गया है इससे नदियों की स्वाभाविक सुंदरता में भी कमी आई है। नदियों का जलस्तर इस कदर कम हो गया है कि लेखक को अपने बचपन में पितृपक्ष और नवरात्रि में लबालब भरे जल स्रोतों की याद आती है। ज्योतिर्लिंग का तीर्थ धाम निर्माण में लगी बड़ी-बड़ी मशीनों और ट्रक गुजरती ध्वनि से अपनी शांति खो रही थी।

8. गांद की बोझ ढोती नदी और नाले-लेखक कहते हैं कि पहले नदियों का जलस्तर इतना अधिक था कि उसे पार करने के लिए हाथी पर बैठना पड़ता था कुछ नदियों का जलस्तर दूसरे राज्यों के अपेक्षा यहां अधिक थी। आज शिप्रा, चंबल, पार्वती, कालीसिंध सारी नदियां की जलधारा प्रभावित हो चुकी है क्योंकि शहरों और बस्तियों से निकलने वाले नाले के गंदगी नदियों में मिलने लगी है।

9. पश्चिमी देशों पर इंजीनियरों का भरोसा- एक समय पूरे विश्व में हमारा देश उच्च तकनीकी ज्ञान औरसिद्ध वास्तुकला के लिए जानी जाती थी। नगर नियोजन जल निकासी जल का प्रबंधन आदि हमारी सभ्यताओं की पहचान रही है हमारे राजा महाराजाओं ने भी इसी सूत्र का प्रयोग जल प्रबंधन के लिए किया इसके बावजूद भी हमारे इंजीनियर पश्चिमी सभ्यता की तकनीक (टेक्निकल) पर अधिक जोड़ देते हैं। मालवा में विक्रमादित्य और मुंज जैसे राजाओं ने यूरोप के नवजागरण काल से पहले ही जल का प्रबंधन कार्य बड़ी ही सहजता से किया। पठारी भूमि के स्वभाव को समझते हुए यहां पर तालाब, बाबरिया बनवाएं। किंतु हमारे इंजीनियरों ने आज तालाबों को गांद से भर दिया है और जल दोहन के कारण भूमि भी जल से रिक्त हो रहा है।

10. मानवीय आतंक के साए में मालवा- बड़े- बड़े बांधों का निर्माण, जल प्रबंधन की समस्या, दयनीय ताल-तलैया, जल निकासी की सही व्यवस्था ना होना आदि गंभीर समस्या मालवा के लिए आतंक बनता जा रहा है अब यहां डग-डग रोटी और पग-पग नीर वाली बात सही नहीं बैठती नजर आती है।

11. छप्पनिया अकाल और मालवा-भारत के लिए छप्पनिया अकाल व्यापक रूप से जनसंहरक साबित हुआ था, फिर भी मालवा अपनी समृद्धि के कारण उसकाल में बचा रहा उसने अपना भरण पोषण तो किया ही साथ में मारवाड़ को भी सहारा दिया।

12. नई खाऊ - उजाडू सभ्यता-हमारे पूर्वजों ने प्रकृति की महत्ता हमारे जीवन में क्या है इसे समझा इसीलिए उन्होंने प्रकृति का देवताओं के रूप में मानवीयकरण किया। हम लोगों ने नदी-नालों, पर्वतों आदि का पूजा करना अपने पूर्वजों से सीखा किंतु नई सभ्यता जो हमारे देश में तेजी से बढ़ रही है इसमें हम प्रकृति को उपभोग के लिए नष्ट करते जा रहे हैं यह सभ्यता हमारे लिए घातक सिद्ध हो रही है जिससे मालवा अछूता नहीं है।

13. पश्चिमी देशों की मनमानी-मौसम परिवर्तन की समस्या से आज विश्व का हर एक देश जूझ रहा है इसके मुख्य कारण कार्बन डाइऑक्साइड गैसों का निकलकर धरती के तापमान को गर्म करना है सबसे ज्यादा अमेरिका और यूरोप के विकसित देशों से ही यह गैस उत्सजित (उत्सर्जित) हो रहा है। कई चेतावनी के बाद भी विकसित देश अपनी इस गड़बड़ी को रोकने के लिए तैयार नहीं है मालवा भी खाऊ उजाडू जीवन पद्धति को अपनाने लगा है लेखक कहते हैं कि हम अपनी जीवन पद्धति को समझते हुए इस पद्धति से दूर रह सकते हैं।

शब्दार्थ – निथरी- चमकीली, फैली, पसरी। चौमासा - बारिश के चार महीने, चार मासों का समूह। मटमैला-मिट्टी युक्त उसी रंग का पानी, गंदला घट स्थापना- नवरात्रि के समय कलश रखना। ओटले -मुख्यद्वार, प्रमुख द्वार। घऊँ-घऊँ- बादलों के गरज़ने की आवाज़, गर्जना। लहलहाती - हरी-भरी हवा के झोंके से लहलहाती। क्वांर - हिंदी में भादों के बाद का महिना, आश्विन मास।

पानी भोत गिरयो- बरसात बहुत हुई, पानी बहुत गिरा। फसल तो पण गली गई-फसल पानी में डूब गई तथा नष्ट हो गई। उनने - उन्होंने। झड़ी लगी थी-लगातार पानी गिरना। अति की-अतिश्योक्ति, बढ़ा चढ़ाकर। गहन-गहरा विचार। चक्र-पहिया। बजाय- बदले। पद्धति-प्रणाली, ढ़ग़। लबालब पूरी तरह से भरा हुआ। चटक-चमकीला। ज्वार बाजरा-एक प्रकार की बड़ी घास जिसकी बालियों में हरे रंग के छोटे छोटे दाने लगे होते हैं इसे मोटे अनाज के रूप में माना जाता है। बेलें-बिना तना का पौधा, लता। मानसून- बरसाती हवा। क्वालालंपुर-मलेशिया देश की राजधानी। सार संक्षेप में। मियां-बीवी-पति पत्नी। उज्जैन और शिप्रा उज्जैन मध्य प्रदेश का एक प्रमुख शहर है जो शिप्रा नदी के किनारे बसा है, उज्जैन में महाकाल की मंदिर है। गदराई-परिपक्व (पूर्ण) होने के निकट होना। झक-हल्का पागलपन। बावड़ी - सीढ़ीदार कुआं। तलैया छोटा तालाब। विपुलता अत्यधिक विशाल। आश्वस्ति - सांत्वना, तसल्ली सत्तर-70 वर्ष का। दसेरा- दशहरा, दुर्गा पूजा। किशोर-जवान। गर्वीला - गर्व करने वाला। त्रासदायी घोर अरुचि। प्रतीति-अनुभव होना। बावजूद इतना होने के बाद भी। गुर्राना-कर्कश (कड़वा) ध्वनि। चंबल नदी का नाम। पितृ-पिता। पितृपक्ष- अपने पितरों को श्रद्धापूर्वक याद करना। बांध-नल के जल को रोकने के लिए बनाया गया जलाशय (पोखर) । ज्योतिर्लिंग रोशनी, प्रकाश का प्रतीक। तीर्थ धाम- पुण्यस्थान। कगार-नदी का किनारा, टीला। स्रोत-वह स्थान जहां से पदार्थ प्राप्त हो। उमगकर-उत्साह पूर्वक। इटावा-उत्तर प्रदेश राज्य का एक जिला। जमना-यमुना नदी। पखारे-धोकर साफ करना। रिनेसां पुनर्जागरण। नियोजक-दूसरे को काम पर लगाने वाला। सदानीरा-सदैव शुद्ध रहने वाला जल। चैतन्यचेतना, प्राण आ जाना। अतिवृष्टि-अत्यधिक वर्षा। पठार-जिन के ऊपरी भाग लगभग समतल होते हैं। इंच-एक फुट का बारवा भाग। इत्ता पानी - इतना पानी। साइफन-पानी निकालने की पाईप नीकास नली। अबकी मालवो खूब पाक्यो है अबकी मालवा खूब समृद्ध है। नी यार पेले माता बिठायंग- पहले माता की मूर्ति स्थापित करूँगा। रड़का-लुढ़क गया। मंदे उजाले से गमक रही थी-हल्के प्रकाश में सुंगधित हो रही थी, महक रही थी। चवथ का चाँद चतुर्थी का चाँद, चौथ का चांद। छप्पन का काल विक्रम संवत 1956 का दौर। दुष्काल का काल-बुरा समय, आकाल। कतरन-अखबार का टुकड़ा। पूर-बाढ़। डग- डग-कदम-कदम पर। पग-पैर। रोटी-भोज्य पदार्थ। नीर-जल। गाद-कूड़ा-कचरा, झाग, कीचड़। कलमल करना-सकरी रास्ते में पानी बहने की आवज।

प्रश्न-अभ्यास

प्रश्न 1 मालवा में जब सब जगह बरसात की झड़ी लगी रहती है तब मालवा के जनजीवन पर इसका क्या असर पड़ता है?

उत्तर-लोगों की दिनचर्या में बाधा दिखाई पड़ती है।

प्रश्न दो अब मालवा में वैसा पानी नहीं गिरता जैसा गिरा करता था ? उसके क्या कारण है?

उत्तर-मालवा के पठार अपनी समृद्धि के लिए जानी जाती है वर्षा, नदी-नाले सबकुछ से परिपूर्ण है मालवा किंतु प्रकृति उपभोग की प्रवृत्ति, वनो की अत्यधिक कटाई, ग्रीन हाउस गैस में बढ़ोतरी और कार्बन फुट के बढ़ने के कारण वर्षा में अनियमितता आ गई है। ऐसे में मालवा में अब वैसा पानी नहीं गिरता है जैसे पूर्व में गिरा करता था।

प्रश्न 3-हमारे आज के इंजीनियर ऐसा क्यों समझते हैं कि वे ही पानी का प्रबंध जानते हैं और पहले जमाने के लोग कुछ नहीं जानते थे?

उत्तर - हमारा देश तकनीकी ज्ञान में विश्व के किसी भी देश से कम नहीं था हमारे राजा महाराजाओं ने जल का प्रबंधन उचित तरीके से किया फिर भी आज के इंजीनियर यह समझते हैं कि हमारा देश वैसा शिक्षित नहीं था जैसा पश्चिमी देश।

प्रश्न 4 मालवा में विक्रमादित्य, भोज और मुंज रिनेसां (नवजागरण) के बहुत पहले हो गए। पानी के रखरखाव के लिए उन्होंने क्या प्रबंध किया?

उत्तर - जिस समय पश्चिमी देशों में नवजागरण का काल था उसके पहले हमारा देश उच्च तकनीकी एवं सिद्ध वास्तुकला के लिए पूरे विश्व में जाना चाहता था। हमारे राजाओं ने भी इन संसाधनों का प्रयोग किया उन्होंने पठारों की भूमि के अनुकूल तालाब, बाबरिया बनवाई ताकि उस में बरसात का पानी इकट्ठा रहे और भूमि के जल स्तर को भी बचाए रखने का प्रयास उन्होंने किया।

प्रश्न 5-'हमारी आज की सभ्यता इन नदियों को अपने गंदे पानी के नाले बना रही है' क्यों और कैसे?

उत्तर - हमारे पूर्वजों ने नदी नालओं का मां का दर्जा देकर नदियों का मानवीकरण किया। ताकि हम नदियों को पवित्रता के भाव से देखें और नदियों का मान सम्मान करते रहें। हमारे कई रीति-रिवाज, तीज-त्यौहार नदियों के इर्द-गिर्द ही घूमते रहें हैं लेकिन आज हम लोगों ने खाऊ- ऊजाडू संस्कृति को अपनाकर अपनी प्राचीन सभ्यता को भुला दिया है अब नदियों के प्रति वैसा सम्मान लोगों के मन में नहीं रहा। लोग आज बेधड़क कूड़ा -करकट, कचरा और गंदे नाले के पानी को नदियों में बाह रहे हैं। वे अपने घरों के कचड़ों का निपटारा के लिए सबसे उपयुक्त स्थान अब नदी को ही मान रहे हैं। ऐसे में नदियों का गंदा होना तय है।

प्रश्न 6 लेखक को क्यों लगता है कि' हम जिसे विकास की औद्योगिक सभ्यता कहते हैं वह उजाड़ की अपसभ्यता है। आप क्या मानते हैं?

उत्तर- हमारा देश विकासशील देश है। देश को विकसित देश की श्रेणी में लाने के लिए हम भेड़ चाल चल रहे हैं। देश का औद्योगिक करण किया जा रहा है। नए नए अविष्कार किए जा रहे हैं अविष्कार करने के बाद समस्याओं का भी जन्म हो रहा है मानवीय हस्तक्षेप ने प्रकृति को तहस-नहस कर दिया है। हमारे देश की मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति सदियों से प्रकृति के माध्यम से किया जाता रहा है किंतु आज हम आवश्यकताओं को छोड़कर उपभोग की तरफ भाग रहे हैं भौतिक लिप्सा को प्राप्त करने के चक्कर में हम लोगों ने अपनी प्रकृति को तहस-नहस कर दिया है। मौसम में परिवर्तन हिम शैलो कापिघलना जाड़े की ऋतु में कमी, प्रदूषण से लोगों का रोग ग्रस्त होना आदि सभी इस बात का सूचक है कि हम लोगों ने औद्योगिकरण अपनाकर अपना कितना नुकसान किया है इसे फिर समृद्ध सभ्यता कैसे माने जब लोगों का जीवन खतरे के घेरे में आते जा रहा है।

प्रश्न 7 धरती का वातावरण गर्म क्यों हो रहा है इसमें यूरोप और अमेरिका की क्या भूमिका है टिप्पणी कीजिए।

उत्तर - भरपेट भोजन, लहराते फसल, ताल तालियों का जल स्रोतों से भरा हुआ होना आदि विकास का सूचक है किंतु इसके विपरीत आज हम विकास की प्राप्ति के लिए दैनिक जीवन से संबंधित सभी संसाधनों को उपलब्ध करवाने वाली प्रकृति को नष्ट कर रहे हैं। हमने शारीरिक श्रम को छोड़कर उपभोग के नए-नए तरीके ढूंढ लिए हैं अविष्कार करने के बाद नए-नए समस्याओं का भी जन्म हो रहा है मानवीय हस्तक्षेप ने प्रकृति को तहस- नहस कर दिया है। पश्चिमी देशों में खासकर अमेरिका और यूरोपियन देशों ने भौतिक समृद्धि के लिए प्रकृति संसाधनों का सबसे अधिक दोहन किया है। कार्बन डाइऑक्साइड गैसों का उत्सर्जन करके उन्होंने धरती का तापमान बढ़ा दिया है कई चेतावनी के बाद भी वे अपने जीवन शैली में परिवर्तन करना नहीं चाहते। केवल पश्चिमी देश ही क्यों विश्व के सारे देश इसी खाऊ उजाडू सभ्यता में लगी है जिसका दुष्परिणाम हमें आए दिन भुगतना पड़ रहा है।

प्रश्न 8 अमेरिका की घोषणा है कि वह अपनी खाऊ- उजाडूजीवन पद्धति पर कोई समझौता नहीं करेगा इस घोषणा पर अपनी टिप्पणी दीजिए।

उत्तर- अमेरिका विकसित देशों की श्रेणी में है भौतिक लिप्सा प्राप्ति करना विश्व को अपने नियंत्रण में रखना आदि जैसी भावनाओं से अमरीका को ऊपर उठना होगा क्योंकि अगर खाऊ- उजाडू जीवन पद्धति पर अंकुश न लगाया गया तो यह केवल एक देश के लिए नहीं बल्कि पूरे विश्व के लिए घातक सिद्ध होगा।

प्रश्न 9 आशय स्पष्ट कीजिए-

(क) 'मालवा धरती गहन गंभीर डग- डग रोटी पग-पग नीर'

उत्तर- यह वाक्यांश प्रभाष जोशी द्वारा रचित 'अपना मालवा खाऊ उजाड़ सभ्यता में' सेली गई है। लहराते फसल, भरपेट भोजन, ताल तलैया का जल स्रोत के रूप में भरा हुआ होना नदियों का शुद्ध जल से मालवा की धरती समृद्ध है ऐसे में यहां ना भोजन की कमी है ना जल की। इसका उदाहरण छप्पनिया काल का अकाल है। छप्पनिया अकाल में मालवा ने मेवाड़ का भरण पोषण करने में सहायता की थी।\

(ख) 'नदी का सदानीरा रहना जीवन के स्रोत का सदा जीवित रहना है।'

उत्तर- हमारे पूर्वजों ने नदियों के महत्व को समझते हुए हैं इसे मां का दर्जा देते हुए इनका मानवीयकरण किया ताकि हम इसे पवित्रता की भाव से देखें। नदियों का हमारे जीवन में बने रहना आवश्यक है। हमारी रोजमर्रा की जिंदगी को यह नदियां ही पोषित करती है खेत-खलियान की हरियाली और जीवन के अन्य आवश्यक कार्यों के लिए हम जल के ऊपर निर्भर रहते हैं जो इन नदियों के माध्यम से पूर्ण होती रहती है।

(ग) 'नर्मदा के किनारे बैठना मां की गोद में डूबना है।'

उत्तर- लेखक ने नर्मदा नदी को मां का दर्जा दिया है। लेखक नर्मदा के किनारे बैठकर यह महसूस करते हैं कि जिस प्रकार बच्चे अपनी मां की गोद में सुकून महसूस करते हैं, सुरक्षित महसूस करते हैं उसी प्रकार लेखक भी नदी के किनारे महसूस कर रहे हैं।

(घ) 'अपने नदी नाले, तालाब संभाल के रखो तो दुष्काल (बुरा समय) काल मजे में निकल जाता है।'

उत्तर- विश्व के अधिकांश सभ्यताओं का विकास नदी के किनारे ही हुआ। हमारे दैनिक दिनचर्या में नदी की महत्वपूर्ण भूमिका है। भरपेट भोजन, लहलहाते फसल, पीने के लिएशुद्ध जल की प्राप्ति आदि सभी मूलभूत आवश्यकताएं हम इन नदियों के माध्यम से करते हैं। अतः आवश्यक है कि हम अपनी नदी-नाले तालाब को संभाल कर रखें। जल के अभाव में हमारी मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं हो पाएगी। नदी-नाले को संभलकर रखने के कारण ही छप्पनिया अकाल से मालवा प्रभावित नहीं हुआ।

लघु उत्तरीय प्रश्न

1) इससे ज्यादा पानी अब धरती सोख के रख नहीं सकती थी? लेखक ऐसा क्यों कहते हैं

उत्तर - चौमासा बीत जाने के बाद भी मालवा में बादल छाया हुआ था और लगातार बारिश हो रही थी। सारे जल स्रोत जल से लबालब भर गए थे इसलिए लेखक यह बात कहते हैं।

2) लेखक मालवा में क्या देखने के लिए आए थे?

उत्तर -उजली चटकी धूप, ज्वार बाजरा और सोयाबीन की फसल, फूलों वाली लताएं, दमकते घर आंगन देखने के लिए लेखक मालवा आए थे।

3) "मैया ऐसी भरपूर और बहती हुई तो वर्षों में देखी थी।" ऐसा लेखक शिप्रा नदी के बारे में क्यों कहते हैं ?

उत्तर- शिप्रा नदी का जलस्तर कई वर्षों के बाद लेखक को जल से भरपूर दिखा इसलिए लेखक ऐसा कहते हैं।

4) नदियों के जलस्तर कम होने के क्या कारण हो सकते हैं?

उत्तर-खाऊ-उजाड़ सभ्यता के कारण समय पर वर्षा ना होने के कारण नदियों के जलस्तर में काफी कमी आई है।

5) उमर जो ले गई उसे ले जाने दो। उसका जो है, रखें अपना जो है उसे जिएं। लेखक ऐसा क्यों कहते हैं।

उत्तर- लेखक शरीर की उर्जा की अपेक्षा मन की उर्जा को अधिक महत्व देते हैं। इसलिए लेखक रेसा कहते हैं।

6) 'खूब मनाओ दसेरा दिवाली। अबकी मालवो खूब पाक्यो है। इस वाक्य का अर्थ बताएं।

उत्तर- मालवा में अच्छी बारिश होने के कारण मालवा इस वर्ष अन्न और जल सेखूब समृद्ध है इसीलिए लेखक ऐसा कहते हैं।

7) मालवा की भूमि कैसी है

उत्तर- डग डग रोटी (अन्न) और पग - पगनीर (जल) देने वाली है।

8) समुद्र का पानी गर्म होना, धरती के ध्रुवों पर जमी बर्फ का पिघलना, मौसम चक्र का बिगड़ना, लद्दाख में बर्फ के जगह पानी का गिरना आदि किस बात का उदाहरण है?

उत्तर- खाऊ-उजाडू सभ्यता के कारण उत्पन्न होने वाली ग्लोबल वार्मिंग का।

9) लेखक को ऐसा क्यों लगता है कि हम अपने मालवा की धरती को उजाड़ने में लगे हैं।

उत्तर- पश्चिमी देशों का अनुकरण करके हम लोगों ने अपनी प्रकृति को नष्ट कर दिया है इसलिए लेखक ऐसा कहते हैं।

10) अब मालवा में वैसा पानी नहीं गिरता जैसा गिरा करता था ऐसा लेखक क्यों कहते हैं।

उत्तर - पठारी इलाका होने के कारण मालवा में पहले जमकर बारिश हुआ करती थी किंतु मानसूनी चक्र के गड़बड़ा जान के कारण अब मालवा में वैसा पानी नहीं गिरता।

11) लेखक को ऐसा क्यों लगता है कि नर्मदा नदी चिढ़ती हुई बह रही है?

उत्तर- कोई भी नदी अपने स्वाभाविक रूप में बहना चाहती है किंतु नदी पर बांध आदि बन जाने के कारण अपने स्वाभाविक बहाव में बाधा महसूस करती है।

12) लेखक को तीर्थधाम पहले जैसा क्यों नहीं लग रहा था?

उत्तर- प्रया : लोग तीर्थ धाम शांति प्राप्ति के लिए जाते हैं किंतु तीर्थ धाम के आसपास बड़ी-बड़ी मशीनों से जो आवाजें आ रही थी उससे लेखक को बाधा हो रही थी।

13) लेखक ने नदी को मां कहा है। क्यों?

उत्तर-मानव सभ्यता नदियों के किनारे की विकसित हुई नदी हमें केवल जल ही नहीं बल्कि जीवन जीने के सारे स्रोत प्रदान करती हैं।

14) 'पहाड़ों के सीने में कितने स्रोत हैं।' इसका अर्थ बताएं

उत्तर- पहाड़ों के सीने को चीरती हुई जब नदियां नीचे की ओर आती है तो अपने साथ ढेर सारे जल लाती है जो फसल उत्पादन में सहायक होती है।

15) क्या अब मालवा पर डग-डग रोटी, पग- पग नीर की कहावत सत्य प्रतीत होती है?

उत्तर नहीं। खाऊ-उजाड़ सभ्यता के कारण अब ऐसा संभव नहीं लगता है।

16) पहले के जमाने के लोग पानी का प्रबंध करना नहीं जानते थे। ऐसा आज के हमारे इंजीनियरों को क्यों लगता है?

उतर-आज हमारे इंजीनियर पश्चिमी देशों की नकल कर रहे हैं इसलिए उन्हें ऐसा लगता है। पहले के लोगों द्वारा किए गए जल प्रबंधन पर उन्हें विशेष भरोसा नहीं है।

17) 'नदी का सदानीरा रहना जीवन के स्रोत का सदा जीवित रहना है' लेखक ऐसा क्यों मानते हैं।

उत्तर- सदानीरा का अर्थ होता है शुद्ध जल। नदियां ना केबल पेयजल साधन उपलब्ध कराती हैं बल्कि वे जीवन के अन्य आवश्यकताओं की भी पूर्ति करती है ऐसे में जल का शुद्ध रहना आवश्यक है।

18) पहले की राजाओं ने जल प्रबंधन के लिए क्या किया था?

उत्तर- सबने तालाब बनवाए, बड़ी-बड़ी बाबरिया बनवाई ताकि बरसात का पानी रोका जा सके।

19) आज की सभ्यता नदियों को अपने गंदे पानी के नाले बना रहे हैं कैसे?

उत्तर- हमारे पूर्वज प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग किया करते थे किंतु आज के लोग कृतिम संसाधनों का प्रयोग कर रहे हैं। इस से उत्पन्न होने वाले कचरा को नदियों में फेंककर नदी को अशुद्ध कर रहे हैं।

20) छप्पनिया अकाल क्या है?

उत्तर- सन 1899 में राजस्थान में भयंकर अकाल पड़ा था। यह अकाल विक्रम संवत 1956 में आया था इसलिए इसे स्थानीय भाषा में छप्पनिया अकाल भी कहते हैं।

21) क्या मालवा छप्पनिया अकाल से प्रभावित हुआ था?

उत्तर- नहीं। छप्पनिया अकाल से मालवा प्रभावित नहीं हुआ था, क्योंकि मालवा का पठार काफी समृद्ध है। इसने राजस्थान के मारवाड़ जिले का बहुत ही सहयोग किया था।

22) 'अपनी नदी-नाले, तालाब, संभाल के रखो तो दुष्कल का साल मजे में निकल जाता है' ऐसा लेखक ने क्यों कहा है?

उत्तर-अच्छे जल प्रबंधन के कारण ही मालवा छप्पनिया अकाल से प्रभावित नहीं हुआ था इसलिए लेखक ने ऐसा कहा है।

23) लेखक के अनुसार हम जिसे विकास की औद्योगिक सभ्यता कहते हैं वह उजाड़ कि अपसभ्यता है। कैसे ?

उत्तर - उद्योग धंधे को स्थापित करने के लिए हम प्रकृति को नष्ट कर रहे हैं प्रकृति नष्ट होने से हमारी सभ्यता भी नष्ट हो जाएंगी जो हमारे जीवन का आधार है। इसलिए लेखक ऐसा कहते हैं।

24) ग्लोबल वार्मिंग बढ़ाने में विकसित देशों की क्या भूमिका है?

उत्तर-उपभोक्तावाद की संस्कृति विकसित देशों ने सबसे ज्यादा अपनाया। उद्योग धंधों की स्थापना, भौतिक सुख सुविधा के सामानों के उपयोग आदि से ग्लोबल वार्मिंग बढ़ा है।

25) अमेरिका की घोषणा है कि वह अपनी खाऊ-उजाडू जीवन पद्धति पर कोई समझौता नहीं करेगा क्या आप इस बात से सहमत हैं?

उत्तर-नहीं। ऐसी घोषणाएं पूरे विश्व के लिए खतरे की घंटी है इसका भुगतान सभी देशों को करना पड़ सकता है।

26) हम अपनी जीवन पद्धति को क्या समझते हैं?

उत्तर-खाऊ-उजाडू सभ्यता को हम लोगों ने भी बड़ी तेजी से अंगीकारण (अपनाना) किया है। विकसित देशो से हमारे देश की आवश्यकता अलग है। प्रकृति मानव और संस्कृति के बीच का संबंध ही यहां जीवन का मूल पद्धति है

'अपना मालवा खाऊ उजाडू सभ्यता’ में सारांश

मालवा का पठार अपनी समृद्धि के लिए जाना जाता है।

मालवा को प्रकृति ने नदी, नाले, खेत-खलियान से परिपूर्ण किया है।

यहां पर डगडग रोटी पग-पग नीर कहावत लागू होती थी। जल, खाद्य की कोई कमी मालवा में कभी नहीं रही।

क्वांर (अश्विन) के महीने में लेखक मालवा की सुंदरता देखने के लिए आते हैं। वे नर्मदा नदी की सुंदरता का अवलोकन करने के लिए रात वही बिताते हैं

छप्पनिया अकाल में जहां मेवाड़ प्रभाविता था वहीं मालवा अपने जल प्रबंधन के कारण सुरक्षित था।

मालवा में विक्रमादित्य और मुंज जैसे राजाओं ने यूरोप के नवजागरण काल से पहले ही जल प्रबंधन कार्य किया।

दुर्भाग्यवश हमारे इंजीनियर जल प्रबंधन के लिए पश्चिमी सभ्यता की तकनीक (टेक्निकल ) पर अधिक जोड़ देते हैं।

मालवा में जब अत्यधिक बारिश होती है तो जनजीवन काफी अस्त-व्यस्त हो जाता है।

अत्यधिक बारिश का प्रभाव मालवा पर निम्नलिखित रुप से पड़ता है-

क) सोयाबीन की फसलें गल जाती हैं

ख) गेहूं और चने की फसल अच्छी होती है।

ग) लोगों को आने-जाने में दिक्कत होती है।

घ) पानी इकट्ठा हो जाती है

सबसे ज्यादा अमेरिका और यूरोप के विकसित देशों से ही कार्बन डाइऑक्साइड गैस उत्सर्जित कर रहा है।

कई चेतावनी के बाद भी विकसित देश अपनी इस गड़बड़ी को रोकने के लिए तैयार नहीं है।

12 'खाऊ-ऊजाडु सभ्यता के कारण निम्नलिखित समस्या के रूप में देख सकते हैं-

(क) ध्रुवों का बर्फ पिघलना

(ख) मौसम चक्र का बिगड़ना

(ग) लद्दाख में बर्फी की जगह पानी गिरना

(घ) समय पर बारिश ना होना।

13 मालवा में नदी, नाले निम्न रूप से प्रभावित हो रहे हैं-

(क) नदियों में गांद का जमा होना

(ख) भूमि में उपलब्ध जल का दोहन

(ग) नर्मदा नदी पर बांध बनाना

(घ) नदियों में बाढ़ का आना।

ड़) जल प्रबंधन की समस्या

बहुविकल्पी प्रश्न उत्तर

1. 'अपना मालवा' किस विधा में लिखी गई रचना है?

(क) संस्मरण

(ख) यात्रा वृतांत

(ग) जीवन परिचय

(घ) कहानी

2. प्रभाष जोशी ने अपना पहला अखबार निकाला उसका नाम क्या था?

(क) दैनिक भास्कर

(ख) जनसंवाद

(ग) जनसत्ता

(घ) दैनिक समाचार

3. पाठ के आरंभ में मालवा प्रदेश को कैसा वर्णित किया गया है?

(क) उजाड़

(ख) बंजर

(ग) प्राकृतिक संपदा से समृद्ध

(घ) औद्योगिक क्षेत्र के रूप

4. त्योहार समय मालवा के घर-आंगन को किससे लीपा जाता था?

(क) गोबर से

(ख) पानी से

(ग) फिनाइल से

(घ) चूना से

5. मालवा में कौन जमा रहता है?

(क) धूप

(ख) मॉनसून

(ग) धूल

(घ) बारात

6. नर्मदा पर क्या बनाए जा रहे थे?

(क) घर

(ख) बांध

ग) रास्ता

घ) पुल

7. उज्जैन जाते समय लेखक को कौन सी नदी मिली?

(क) नर्मदा

(ख) शिप्रा

(ग) गंगा

(घ) यमुना

8. शिप्रा नदी का उद्गम स्थल क्या है?

(क) छोटा नागपुर का पठार

(ख) कड़वेश्वर

(ग) गंगोत्री

(घ) अमरकंटक

9. शिप्रा छोटी नदी है पर किसके चरणों का स्पर्श करके पवित्र और महत्वपूर्ण नदी बन जाती है?

(क) वैद्यनाथ

(ख) जगन्नाथ

(ग) महाकालेश्वर

(घ) त्र्यंबकेश्वर

10. पाठ में प्रयोग किए गए शब्द 'ओटले' का क्या अर्थ है?

(क) मुख्य द्वार

(ख) बारिश

(ग) घर

(घ) चौपाल

11. लेखक ने 'डग- डग रोटी, पग पग नीर' किस के संदर्भ में कहा?

(क) मुहावरे

(ख) नहर

(ग) मालवा की धरती के बारे में

(घ) तालाबों के बारे में

12. आधुनिक विकास की सभ्यता को लेखक ने क्या कहा है?

(क) उजाड़ की सभ्यता

(ख) औद्योगिक सभ्यता

(ग) विकसित सभ्यता

(घ) विकासशील सभ्यता

13. मालवा में जल प्रबंधन कैसा था?

(क) निम्न

(ख) मध्य

(ग) उत्तम

(घ) खराब

14. मालवा क्या है?

(क) पठार

(ख) नदी

(ग) तालाब

(घ) झील

15. लेखक किस पर्व में मालवा घूमने आते हैं?

(क) होली

(ख) दीपावली

(ग) दुर्गा पूजा

(घ) ईद

16. लेखक जब मालवा घूमने आते हैं तो कौन सा महीना रहता है?

(क) भादो

(ख) कार्तिक

(ग) पौष

(घ) क्वांर (आश्विन)

17. क्वांर कौन से माह को कहते हैं?

(क) भादो

(ख) कार्तिक

(ग) पौष

(घ) अश्विन

18. 'अपना मालवा खाऊ-उजाडू सभ्यता में 'के रचनाकार का नाम बताएं?

(क) प्रभाष जोशी

(ख) निर्मल वर्मा

(ग) सुधा अरोड़ा

(घ) ममता कालिया

19. चौमासा किसे कहते हैं?

(क) गर्मी के 4 महीने को

(ख) सर्दी के 4 महीने को

(ग) बरसात के 4 महीने को

(घ) उपरोक्त में से कोई नहीं

20. 'तिनतिन-फिनफिन करती बह रही थी' मैं कौन सा अलंकार है?

(क) मानवीकरण अलंकार

(ख) उपमा अलंकार

(ग) रूपक अलंकार

(घ) अनुप्रास अलंकार

टिप्पणी-अन्त्यानुप्राश अंलकार का उदाहरण है क्योंकि यहां शब्द के अंतिम वर्ण समान है। (अन्त्य का अर्थ अंतिम होता है)

21. पुराने समय के राजा विक्रमादित्य, भोज, मुंज आदि ने पानी के संरक्षण के लिए क्या किया था?

(क) कुआं का निर्माण

(ख) बावड़ियों का निर्माण

(ग) तालाब का निर्माण

(घ) उपरोक्त सभी

22. राजा विक्रमादित्य, भोज, मुंज किस प्रदेश के राजा थे?

(क) लखनऊ

(ख) मालवा प्रदेश

(ग) हिमाचल प्रदेश

(घ) उत्तर प्रदेश

पाठ के आसपास

उज्जैन उज्जैन भारत के मध्य प्रदेश राज्य का एक प्रमुख शहर है जो शिप्रा नदी के किनारे बसा है। यह एक अत्यन्त प्राचीन शहर है। यह महान सम्राट विक्रमादित्य के राज्य की राजधानी थी।। भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में एक महाकाल इस नगरी में स्थित है।

क्वालालंपुर-मलेशिया देश की राजधानी।

इटावा-उत्तर प्रदेश का एक जिला

पठार-जिन के ऊपरी भाग लगभग समतल होते हैं।

मालवा का पठार-मालवा का पठार राजस्थान, मध्यप्रदेश और गुजरात में फैला हुआ है। ये त्रिभुजाकार पठार है।

इंच-एक फुट का बारवा भाग।

रिनेसां- (पुनर्जागरण) पुनर्जागरण वह आन्दोलन था जिसके द्वारा पश्चिम के राष्ट्र मध्ययुग से निकलकर आधुनिक युग के विचार और जीवन-शैली अपनाने लगे.

विक्रम संवत-विक्रम संवत् या विक्रमी भारतीय उपमहाद्वीप में प्रचलित हिन्दू पंचांग है। प्रायः माना जाता है कि विक्रमी संवत् का आरम्भ ५७ ई.पू. में हुआ था। (विक्रमी संवत् ईस्वी सन् + ५७) विक्रम संवत् का आरंभ 57 ईस्वी पूर्व में उज्जैन के राजा विक्रमादित्य के नाम पर हुआ था।

JCERT/JAC REFERENCE BOOK

Hindi Elective (विषय सूची)

भाग-1

क्रं.सं.

विवरण

1.

देवसेना का गीत

2.

सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"

3.

सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय

4.

बनारस

5.

विष्णु खरे

6.

वसंत आया

7.

भरत राम का प्रेम पद

8.

बारहमासा

9.

विद्यापति (पद)

10.

रामचंद्रचंद्रिका

11.

घनानंद

12.

प्रेमघन की छाया-स्मृति

13.

सुमिरनी के मनके

14.

कच्चा चिट्ठा

15.

संवदिया

16.

गांधी नेहरू और यासर अराफात

17.

शेरपहचानचार हाथसाझा

18.

जहां कोई वापसी नहीं

19.

यथास्मै रोचते विश्वम

20.

दूसरा देवदास

21.

हजारी प्रसाद द्विवेदी

भाग-2

कं.सं.

विवरण

1.

सूरदास की झोंपड़ी

2.

आरोहण

3.

बिस्कोहर की माटी

4.

अपना मालवा खाऊ-उजाडू सभ्यता


JCERT/JAC Hindi Elective प्रश्न बैंक - सह - उत्तर पुस्तक (Question Bank-Cum-Answer Book)

विषय सूची

अंतरा भाग 2

पाठ

नाम

खंड

कविता खंड

पाठ-1

जयशंकर प्रसाद

(क) देवसेना का गीत

(ख) कार्नेलिया का गीत

पाठ-2

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला

(क) गीत गाने दो मुझे

(ख) सरोज - स्मृति

पाठ-3

सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय

(क) यह दीप अकेला

(ख) मैंने देखा एक बूँद

पाठ-4

केदारनाथ सिंह

(क) बनारस

(ख) दिशा

पाठ-5

विष्णु खरे

(क) एक कम

(ख) सत्य

पाठ-6

रघुबीर सहाय

(क) बसंत आया

(ख) तोड़ो

पाठ-7

तुलसीदास

(क) भरत - राम का प्रेम

(ख) पद

पाठ-8

मलिक मुहम्मद जायसी

बारहमासा

पाठ-9

विद्यापति

पद

पाठ-10

केशवदास

कवित्त / सवैया

पाठ-11

घनानंद

कवित्त / सवैया

गद्य खंड

पाठ-1

रामचन्द्र शुक्ल

प्रेमधन की छायास्मृति

पाठ-2

पंडित चंद्रधर शर्मा गुलेरी

सुमिरनी के मनके

पाठ-3

ब्रजमोहन व्यास

कच्चा चिट्ठा

पाठ-4

फणीश्वरनाथ 'रेणु'

संवदिया

पाठ-5

भीष्म साहनी

गांधी, नेहरू और यास्सेर अराफत

पाठ-6

असगर वजाहत

शेर, पहचान, चार हाथ, साझा

पाठ-7

निर्मल वर्मा

जहाँ कोई वापसी नहीं

पाठ-8

रामविलास शर्मा

यथास्मै रोचते विश्वम्

पाठ-9

ममता कालिया

दूसरा देवदास

पाठ-10

हजारी प्रसाद द्विवेदी

कुटज

अंतराल भाग - 2

पाठ-1

प्रेमचंद

सूरदास की झोपडी

पाठ-2

संजीव

आरोहण

पाठ-3

विश्वनाथ तिरपाठी

बिस्कोहर की माटी

पाठ-

प्रभाष जोशी

अपना मालवा - खाऊ- उजाडू सभ्यता में

अभिव्यक्ति और माध्यम

1

अनुच्छेद लेखन

2

कार्यालयी पत्र

3

जनसंचार माध्यम

4

संपादकीय लेखन

5

रिपोर्ट (प्रतिवेदन) लेखन

6

आलेख लेखन

7

पुस्तक समीक्षा

8

फीचर लेखन

JAC वार्षिक इंटरमीडिएट परीक्षा, 2023 प्रश्न-सह-उत्तर

Class 12 Hindi Elective (अंतरा - भाग 2)

पद्य खण्ड

आधुनिक

1.जयशंकर प्रसाद (क) देवसेना का गीत (ख) कार्नेलिया का गीत

2.सूर्यकांत त्रिपाठी निराला (क) गीत गाने दो मुझे (ख) सरोज स्मृति

3.सच्चिदानंद हीरानंद वात्सयायन अज्ञेय (क) यह दीप अकेला (ख) मैंने देखा, एक बूँद

4.केदारनाथ सिंह (क) बनारस (ख) दिशा

5.विष्णु खरे (क) एक कम (ख) सत्य

6.रघुबीर सहाय (क) वसंत आया (ख) तोड़ो

प्राचीन

7.तुलसीदास (क) भरत-राम का प्रेम (ख) पद

8.मलिक मुहम्मद जायसी (बारहमासा)

9.विद्यापति (विद्यापति के पद)

10.केशवदास (रामचंद्रचंद्रिका)

11.घनानंद (घनानंद के कवित्त / सवैया)

गद्य-खण्ड

12.रामचंद्र शुक्ल (प्रेमघन की छाया-स्मृति)

13.पंडित चंद्रधर शर्मा गुलेरी (सुमिरिनी के मनके)

14.ब्रजमोहन व्यास (कच्चा चिट्ठा)

15.फणीश्वरनाथ रेणु (संवदिया)

16.भीष्म साहनी (गांधी, नेहरू और यास्सेर अराफात)

17.असगर वजाहत (शेर, पहचान, चार हाथ, साझा)

18.निर्मल वर्मा (जहाँ कोई वापसी नहीं)

19.रामविलास शर्मा (यथास्मै रोचते विश्वम्)

20.ममता कालिया (दूसरा देवदास)

21.हज़ारी प्रसाद द्विवेदी (कुटज)

12 Hindi Antral (अंतरा)

1.प्रेमचंद = सूरदास की झोंपड़ी

2.संजीव = आरोहण

3.विश्वनाथ त्रिपाठी = बिस्कोहर की माटी

4.प्रभाष जोशी = अपना मालवा खाऊ-उजाडू सभ्यता में

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