उपभोक्ता व्यवहार एवं माँग (Consumer Behavior and Demand)

उपभोक्ता व्यवहार एवं माँग (Consumer Behavior and Demand)

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1. सही विकल्प चुनकर लिखिए –

प्रश्न (a) उपभोक्ता का संतुलन होता है –

(a) MUx = Px

(b) MUx > Px

(c) MUx < Px

(d) MUx ÷ Px

प्रश्न (b) मार्शल ने सम – सीमांत उपयोगिता नियम का कथन दिया है

(a) वस्तु के संबंध में

(b) मुद्रा के संबंध में

(c) उपर्युक्त दोनों के संबंध में

(d) उपर्युक्त में से कोई नहीं।

प्रश्न (c) बजट रेखा को कितने अनधिमान वक्र स्पर्श करते हुए हो सकते हैं

(a) एक

(b) दो

(c) अनेक

(d) तटस्थता मानचित्र के आधार पर निर्भर करता है।

प्रश्न (d) तटस्थता वक्रों का प्रयोग सर्वप्रथम 1881 में किया गया था

(a) एजवर्थ द्वारा

(b) पेरिटो द्वारा

(c) मेयर्स द्वारा

(d) हिक्स द्वारा

प्रश्न (e) एक वस्तु की माँग के बारे में कोई भी वक्तव्य पूर्ण माना जाता है, जब उसमें निम्नलिखित का जिक्र हो –

(a) वस्तु की कीमत

(b) वस्तु की माँग

(c) समय अवधि

(d) उपर्युक्त सभी

प्रश्न (f) यदि वस्तु की कीमत गिरने से, वस्तु की माँग बढ़ती है, तो दोनों वस्तुएँ परस्पर हैं

(a) प्रतिस्थापी

(b) पूरक

(c) संबंधित नहीं

(d) प्रतियोगी

प्रश्न (g) व्यय विधि द्वारा एक वस्तु की माँग को बेलोच उस स्थिति में कहा जाता है, जब यदि –

(a) वस्तु की कीमत गिरती है तो इस पर व्यय बढ़ता है

(b) वस्तु की कीमत गिरती है तो इस पर व्यय घटता है

(c) वस्तु की कीमत गिरती है तो इस पर व्यय वही रहता है

(d) वस्तु की कीमत बढ़ती है तो इस पर व्यय घटता है।

प्रश्न 2. रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए –

1. उपभोक्ता एक …………………… व्यक्ति होता है।

2. यदि प्रतिस्थापन वस्तु की कीमत में वृद्धि होता है, तो वस्तु की माँग वक्र …………………… खिसक जाता है।

3. उपयोगिता ह्रास नियम का प्रतिपादन ……………………. ने किया था।

4. मार्शल के अनुसार उपयोगिता को ……………………. रूपी पैमाने से मापा जा सकता है।

5. तटस्थता वक्र पर उपभोक्ता को ……………………….. संतुष्टि की प्राप्ति होती है।

6. कार तथा पेट्रोल …………………………… वस्तुएँ हैं।

7. मूल्य व माँग में …………………………… संबंध होता है।

8. उपभोक्ता संतुलन वह स्थिति होती है जिसमें उपभोक्ता ……………………………. संतुष्टि प्राप्त करता है।

उत्तर:

1. विवेकशील

2. दायीं ओर

3. गोसेन

4. मुद्रा

5. समान

6. पूरक

7. विपरीत

8. अधिकतम।

प्रश्न 3. सत्य/असत्य का चयन कीजिए –

1. उपयोगिता एक आत्मनिष्ठ धारणा है।

2. दो वस्तुओं की कीमत का अनुपात बजट रेखा के ढाल को मापता है।

3. माँग वक्र सामान्यतः धनात्मक ढाल वाला होता है।

4. बजट समुच्चय उन सभी बंडलों का संग्रह है, जिन्हें एक उपभोक्ता अपनी आय से बाजार कीमत पर क्रय करती है।

5.वस्तु के माँग की लोच एवं वस्तु पर होने वाले व्यय में घनिष्ठ संबंध होता है।

उत्तर:

1. सत्य

सत्य

3. असत्य

4. सत्य

5. सत्य

प्रश्न 4. सही जोड़ी बनाइए –


उत्तर:

1. (b)

2. (d)

3. (a)

4. (e)

5. (c)

प्रश्न 5. एक शब्द/वाक्य में उत्तर दीजिए –

1. कौन – सा वक्र उद्गम की ओर उन्नतोदर होता है?

2. किस स्तर के बाद सीमान्त उपयोगिता तथा कुल उपयोगिता घटने लगती है?

3. उपभोक्ता को प्राप्त होने वाली उपयोगिता के अधिकतमीकरण का बिन्दु क्या कहलाता है?

4. विलासिता की वस्तुओं की माँग की लोच किस प्रकार की होती है?

5. उत्पादन के साधनों की माँग किस प्रकार की होती है?

उत्तर:

1. तटस्थता वक्र

2. शून्य स्तर पर

3. उपभोक्ता संतुलन

4. अत्यधिक लोचदार

5. व्युत्पन्न माँग।            

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. माँग का नियम क्या है?

उत्तर:   माँग के नियम का अर्थ:

माँग का नियम यह बतलाता है कि मूल्य और वस्तु की माँगी गयी मात्रा में विपरीत संबंध होता है दूसरे शब्दों में वस्तु की कीमत में वृद्धि होने पर माँग घट जाती है तथा वस्तु की कीमत में कमी आने पर माँग बढ़ जाती है।

प्रश्न 2. पूरक वस्तुएँ क्या हैं?

उत्तर: पूरक वस्तुएँ वे वस्तुएँ हैं जिनका उपयोग एक साथ किया जाता है, जैसे – डबलरोटी व मक्खन, कार व पेट्रोल, पेन व स्याही इत्यादि। अगर इनमें से किसी भी एक वस्तु की कीमत में वृद्धि हो जाती है तो इसके फलस्वरूप दूसरी वस्तु की माँग घट जाएगी।

प्रश्न 3. माँग की लोच क्या है?

उत्तर: माँग की लोच का अर्थ – माँग की लोच मूल्य एवं माँगी गयी मात्रा के बीच पारस्परिक संबंध की मात्रा को बताती है। माँग की लोच वह दर है जो मूल्य में परिवर्तन के साथ वस्तु की माँगी जाने वाली मात्रा में परिवर्तन को बताती है।

प्रश्न 4. अधिक लोचदार माँग से क्या आशय है?

उत्तर: जब किसी वस्तु की माँगी गयी मात्रा में परिवर्तन, उसके मूल्य में परिवर्तन की तुलना में अधिक अनुपात में होता है, तो उस वस्तु की माँग की लोच अधिक लोचदार होती है।

प्रश्न 5. पूर्णतया बेलोचदार माँग किसे कहते हैं?

उत्तर: जब किसी वस्तु के मूल्य में बहुत अधिक परिवर्तन होने पर भी उसकी माँग में कोई परिवर्तन नहीं होता तो उसे पूर्णतया बेलोचदार माँग (Ep = 0) कहते हैं।

प्रश्न 6. माँग और आवश्यकता में अन्तर स्पष्ट कीजिए।(कोई दो)?

उत्तर: माँग और आवश्यकता में अन्तर –

मांग

आवश्यकता

आवश्यकता से मांग बनती है।

इच्छा से आवश्यकता का जन्म होता है

मांग परिवर्तित होती है अर्थात् मूल्य समय बदलने पर मांग भी बदलती रहती है।

आवश्यकता की प्रकृति लगभग स्थायी होती है।


प्रश्न 7. मांग की कीमत लोच किसे कहते हैं?

उत्तर: माँग की कीमत लोच, किसी वस्तु के मूल्य में परिवर्तन के कारण उसकी माँगी गयी मात्रा में परिवर्तन की दर बताती है।


प्रश्न 8. स्थानापन्न वस्तुएँ क्या हैं?

उत्तर: यह वह वस्तुएँ हैं जिनका प्रयोग एक – दूसरे के बदले में किया जाता है। उदाहरण के लिए चाय और कॉफी, कॉमप्लान और बोर्नविटा एक – दूसरे के स्थानापन्न वस्तुएँ हैं । एक वस्तु के मूल्य में वृद्धि होने से दूसरी वस्तु सस्ती हो जाती है। इससे दूसरी वस्तु की माँग बढ़ जाती है।

प्रश्न 9. उपभोक्ता संतुलन से आप क्या समझते हैं?

उत्तर: जब उपभोक्ता को अपनी आय से अधिकतम संतुष्टि प्राप्त हो रही हो तो संतुलन से आशय उपभोक्ता को आय की तुलना में प्राप्त अधिकतम संतुष्टि से है। जिस बिन्दु पर कीमत रेखा तटस्थता वक्त को स्पर्श करती है वही बिन्दु संतुलन बिन्दु कहलाता है।

प्रश्न 10. आय स्तर बढ़ने तथा घटने से माँग की लोच पर क्या प्रभाव पड़ता है?

उत्तर: आय का स्तर बढ़ने से माँग बढ़ जाती है तथा आय का स्तर घटने से माँग में कमी आ जाती है।

प्रश्न 11. उपभोक्ता बजट समूह (सेट) से आप क्या समझते हैं?

उत्तर: उपभोक्ता द्वारा अपनी आय से प्रचलित बाजार मूल्य पर दो वस्तुओं के उन सभी बंडलों को क्रय करने की क्षमता ही बजट (सेट) समूह कहलाता है। इस प्रकार बजट सेट उन सभी बंडलों का समूह होता है जिन्हें वर्तमान बाजार कीमतों पर कोई उपभोक्ता खरीद सकता है।

प्रश्न 12. बजट रेखा किसे कहते हैं?

उत्तर: बजट रेखा का आशय उस रेखा से है जिस पर उपभोक्ता अपनी संपूर्ण आय को सभी बंडलों पर व्यय कर देता है। संक्षेप में यह रेखा उन सभी बंडलों का प्रतिनिधित्व करती है जिन पर उपभोक्ता की संपूर्ण आय, व्यय हो जाती है। इसके अंतर्गत वे सभी बंडल आते हैं जिनकी कीमत उपभोक्ता की आय के ठीक बराबर होती है।

प्रश्न 13. उदासीनता वक्र क्या है?

उत्तर: उदासीनता अथवा तटस्थता अथवा अनधिमान वक्र वह है जिसके विभिन्न बिन्दु दो वस्तुओं के ऐसे संयोगों को दर्शाते हैं, जो उपभोक्ता को समान संतुष्टि प्रदान करते हैं।

प्रश्न 14. बाजार माँग वक्र किसे कहते हैं?

उत्तर: बाजार माँग वक्र बाजार में सभी उपभोक्ताओं की माँग को वस्तु की कीमत के विभिन्न स्तरों पर समग्र दृष्टि से देखकर माँग को प्रदर्शित करता है।

प्रश्न 15. शून्य माँग की लोच से आप क्या समझते हैं?

उत्तर: जब कीमत में परिवर्तन होने पर माँग में कोई परिवर्तन नहीं होता है, तो उसे शून्य माँग की लोच अथवा पूर्णतया बेलोचदार माँग कहते हैं।

प्रश्न 16. बाजार माँग वक्र किसे कहते हैं?

उत्तर: बाजार माँग वक्र अन्य बातें समान रहने पर विभिन्न कीमतों पर उपभोक्ता द्वारा एक वस्तु की खरीदी गई मात्रा को दर्शाता है।

प्रश्न 17. गिफिन वस्तुएँ क्या होती हैं? अथवा अर्थशास्त्र में घटिया वस्तु का क्या अर्थ है?

उत्तर: घटिया वस्तु वह वस्तु होती है जिनकी माँग उपभोक्ता की आय बढ़ने से घट जाती है तथा आय में कमी आने पर इन वस्तुओं की माँग बढ़ जाती है, जैसे गुड़ व मोटा वस्त्र आदि।

प्रश्न 18. कीमत प्रभाव किसे कहते हैं?

उत्तर: वस्तुओं की कीमतों में परिवर्तन के फलस्वरूप क्रयशक्ति में परिवर्तन के कारण वस्तुओं की इष्टतम मात्रा में जो परिवर्तन होता है, उसे कीमत प्रभाव कहते हैं।

प्रश्न 19. “एकदिष्ट अधिमान’ से आप क्या समझते हैं?

उत्तर: एकदिष्ट अधिमान – उपभोक्ता किन्हीं दो बंडलों में से उस बंडल को अधिमान देता है, जिसमें इन वस्तुओं में से कम – से – कम एक वस्तु की अधिक मात्रा हो और दूसरे बंडल की तुलना में दूसरी वस्तु की भी कम मात्रा न हो, अधिमानों के इस प्रकार को एकदिष्ट अधिमान कहा जाता है।

प्रश्न 20. सामान्य वस्तु से आप क्या समझते हैं?

उत्तर: वे वस्तुएँ सामान्य वस्तुएँ कहलाती हैं जिनकी माँग उपभोक्ता की आय बढ़ने पर बढ़ती है तथा आय घटने पर कम हो जाती है।

प्रश्न 21. पूरकों को परिभाषित कीजिए। ऐसी दो वस्तुओं के उदाहरण दीजिए, जो एक – दूसरे के पूरक हैं?

उत्तर: पूरक वस्तुएँ – ऐसी वस्तुएँ जिनका उपयोग एक – दूसरे के साथ पूरक के रूप में किया जाता है। दूसरे शब्दों में, वे वस्तुएँ जिनका उपयोग एक साथ किया जाता है एवं एक – दूसरे के अभाव में जिनका उपभोग नहीं किया जा सकता पूरक वस्तुएँ कहलाती हैं।

उदाहरण:

1. कार व पेट्रोल

2. पेन व स्याही।

प्रश्न 22. माँग वक्र D(p) = 10 – 3p को लीजिए। कीमत 5/3 पर लोच क्या है?

उत्तर:

q = a – bp

दिया हुआ समीकरण q = 10 – 3p

यहाँ a = 10, b = 3, p = 5/3 है।

अतः , eD = –bp/a–bp

= – (3 x 5/3) ÷ (10 – 3 x 5/3)

= – (5) ÷ (10 – 5) = -5 ÷ 5 = -1

अत:कीमत लोच (ed) = – 1 है।

प्रश्न 23. माँग के नियम तथा माँग की लोच में अन्तर लिखिए? (कोई दो)?

उत्तर: माँग के नियम और माँग की लोच में अन्तर –

मांग का नियम

मांग की लोच

अन्य बातें समान रहने पर मांग का नियम किसी वस्तु की कीमत और इसकी मांगी गयी मात्रा में विपरीत सम्बन्ध को बताया है।

वस्तु की कीमत में परिवर्तन के परिणाम स्वरूप इसकी मांग में जिस दर से परिवर्तन आता है, उसे मांग की रोचक कहते हैं।

मांग का नियम, मांग में परिवर्तन की दिशा को बताया है।

मांग की रोचक, मांग में परिवर्तन की मात्रा को बताती है।


प्रश्न 24. आय माँग का क्या आशय है?

उत्तर: आय माँग से तात्पर्य, वस्तुओं एवं सेवाओं के उन विभिन्न मात्राओं से है जो अन्य बातें समान होने पर उपभोक्ता एक निश्चित समय में आय के विभिन्न स्तरों पर खरीदने को तैयार रहता है, अर्थात् आय बढ़ने से माँग बढ़ती है तथा आय घटने से माँग घटती है।

प्रश्न 25. माँग की आय लोच की परिभाषा दीजिये?

उत्तर: माँग की आय लोच, उपभोक्ता की आय में थोड़े से परिवर्तन के फलस्वरूप वस्तु की माँगी गई मात्रा में परिवर्तन के अंश को बताती है। वाटसन के शब्दों में – “माँग की आय लोच, आय के प्रतिशत परिवर्तन से माँगी गई मात्रा के प्रतिशत का अनुपात है।”

प्रश्न 26. माँग की आड़ी लोच से आपका क्या आशय है?

उत्तर: वस्तु की माँग में अन्य संबंधित वस्तुओं के मूल्यों में होने वाले परिवर्तनों का प्रभाव पड़ता है। उदा. के लिये चाय की कीमत में होने वाले परिवर्तनों का कॉफी की माँग पर प्रभाव पड़ता है। अतः “माँग की आड़ी लोच एक वस्तु के मूल्य में परिवर्तन के फलस्वरूप दूसरी वस्तु की माँगी गई मात्रा में परिवर्तन की दर को बताती है।” स्थानापन्न वस्तुओं की माँग की आड़ी लोच धनात्मक होती तो पूरक वस्तुओं की माँग की आड़ी लोच ऋणात्मक होती है।             

लघु उत्तरीय प्रश्न

 प्रश्न 1. उपयोगिता का क्या अर्थ है? परिभाषा द्वारा समझाइए?

उत्तर: दैनिक जीवन में हम विभिन्न वस्तु का उपयोग करते हैं और जिससे हमारी आवश्यकता की पूर्ति होती है या हमें सन्तुष्टि मिलती है। अर्थशास्त्र की भाषा में किसी वस्तु के जिस गुण से मानवीय आवश्यकताओं की सन्तुष्टि होती है उसे उपयोगिता कहते हैं। प्रो. बाघ के अनुसार – मानवीय आवश्यकताओं को सन्तुष्ट करने की क्षमता ही उपयोगिता है।”

प्रश्न 2. उपयोगिता की विशेषताओं का वर्णन कीजिए?

उत्तर: उपयोगिता की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –

1. उपयोगिता व्यक्तिगत होती है: उपयोगिता व्यक्ति से सम्बन्धित होती है। एक वस्तु, एक व्यक्ति के लिए उपयोगी हो सकती है, दूसरे के लिए नहीं। इसके अतिरिक्त एक ही वस्तु की उपयोगिता भिन्न – भिन्न व्यक्तियों के लिए भिन्न – भिन्न हो सकती है।

2. उपयोगिता मनोवैज्ञानिक धारणा है: उपयोगिता को भावनात्मक रूप से अनुभव किया जा सकता है। इसका कोई भौतिक रूप नहीं होता है। यह मनुष्य की मानसिक संरचना पर निर्भर करती है।

3. उपयोगिता आवश्यकता की तीव्रता पर निर्भर करती है: उपयोगिता आवश्यकता की तीव्रता पर निर्भर करती है। इसीलिए उपयोगिता को तीव्र इच्छा भी कहते हैं। जैसे–भूखे व्यक्ति को भोजन की आवश्यकता अधिक हो सकती है, पर जो संतृप्त रूप से भोजन कर चुका हो उसे भोजन की आवश्यकता नहीं रह जाती है।

प्रश्न 3. उपयोगिता के विभिन्न प्रकारों को लिखिए?

उत्तर: उपयोगिता प्रमुख रूप से तीन प्रकार की होती है –

1. कुल उपयोगिता: उपभोक्ता द्वारा उपभोग की जाने वाली वस्तु की सभी इकाइयों से प्राप्त उपयोगिता के सम्पूर्ण योग को कुल उपयोगिता कहते हैं।

2. औसत उपयोगिता: उपभोक्ता द्वारा उपभोग की जाने वाली वस्तु की कुल उपयोगिता में वस्तु की कुल इकाइयों की संख्या से भाग देने से जो भागफल आता है, उसे औसत उपयोगिता कहते हैं।

3. सीमान्त उपयोगिता: किसी वस्तु की एक अतिरिक्त इकाई के उपभोग से प्राप्त अतिरिक्त उपयोगिता को सीमांत उपयोगिता कहते हैं।

प्रश्न 4. सीमान्त उपयोगिता को प्रभावित करने वाले तत्व कौन -कौन से हैं?

उत्तर:

1. सीमान्त उपयोगिता अग्र तत्व से प्रभावित होती है: वस्तु की मात्रा – व्यक्ति के पास वस्तु अधिक मात्रा में है, तो उनकी सीमान्त उपयोगिता कम तथा। वस्तु कम मात्रा में है, तो वस्तु की सीमान्त उपयोगिता अधिक होती है।

2. स्थानापन्न वस्तुएँ: किसी वस्तु की स्थानापन्न वस्तु होने की दशा में वस्तु की सीमान्त उपयोगिता कम होती है। जैसे चाय के स्थान पर कॉफी का प्रयोग और जिन वस्तुओं की कोई स्थानापन्न वस्तु नहीं होती, उनकी सीमान्त उपयोगिता अधिक होती है।

3. व्यक्ति की आय: व्यक्ति की आय अधिक होने पर भी वस्तुओं की सीमान्त उपयोगिता कम होती है तेथा व्यक्ति की आय कम होने पर वस्तु की सीमान्त उपयोगिता अधिक होती है।

प्रश्न 5. उपभोक्ता संतुलन की मान्यताएँ लिखिए ?

उत्तर: उपभोक्ता संतुलन की प्रमुख मान्यताएँ निम्न प्रकार है –

1. अधिकतम संतुष्टि की प्राप्ति: उपभोक्ता संतुलन की पहली मान्यता यह है कि उपभोक्ता एक विवेकशील प्राणी है और वह दो वस्तुओं को खरीदकर अपनी अधिकतम संतुष्टि को प्राप्त कर लेता है।

2. विश्लेषण के दौरान उपभोक्ता की रुचि एवं आदत में कोई परिवर्तन नहीं: यह मान्यता है कि एक उपभोक्ता संतुलन की स्थिति के विश्लेषण के दौरान अपनी रुचियों एवं आदतों में समानता पाता है अर्थात् इन दोनों तथ्यों में कोई परिवर्तन दृष्टिगोचर नहीं होता है।

3. बाजार में पूर्ण प्रतियोगिता की दशा विद्यमान: ऐसी मान्यता है कि बाजार में पूर्ण प्रतियोगिता की दशा विद्यमान: होती है अर्थात् क्रेता एवं विक्रेता में पूर्ण एवं स्वतंत्र प्रतिस्पर्धा के साथ बाजार मूल्यों का उपभोक्ता को ज्ञान होता है।

4. वस्तुओं के मूल्यों में परिवर्तन का अभाव: उपभोक्ता संतुलन की एक मान्यता यह भी है कि वस्तुओं की कीमतों में कोई परिवर्तन नहीं होता है अर्थात् मूल्यों में परिवर्तन का अभाव दृष्टिगोचर होता है।

5. तटस्थता मानचित्रों की जानकारी: एक उपभोक्ता को तटस्थता वक्रों एवं मानचित्रों की पूर्ण जानकारी होती है, इस विश्लेषण की सहायता से वह दो विभिन्न संयोगों से समान संतुष्टि प्राप्त कर सकता है। इन्हीं वक्रों की सहायता से वह वस्तु विशेष की कितनी मात्रा को खरीदेगा यह निश्चित करता है।

प्रश्न 6. सीमान्त उपयोगिता ह्रास नियम के तीन महत्व बताइए?

उत्तर: सीमान्त उपयोगिता ह्रास नियम के महत्व –

1. माँग के नियम का आधार: यह नियम बताता है कि माँग वक्र बायें से दायें क्यों झुका होता है? एक व्यक्ति जैसे – जैसे किसी वस्तु का अधिकाधिक उपभोग करता है, वैसे – वैसे उस वस्तु से मिलने वाली उपयोगिता कम होती जाती है।

2. उपभोक्ता की बचत में महत्व: यह नियम बताता है कि एक उपभोक्ता किसी वस्तु को उस बिन्दु तक क्रय करता है, जहाँ पर उस वस्तु की सीमांत उपयोगिता उसके मूल्य के बराबर होती है।

3. सम – सीमांत उपयोगिता नियम का आधार: चूँकि प्रत्येक व्यक्ति अपनी सीमित आय से अधिकतम संतुष्टि चाहता है, अत: इसके लिए सम-सीमांत उपयोगिता नियम की सहायता ली जाती है, किन्तु सम – सीमांत उपयोगिता नियम स्वयं सीमान्त उपयोगिता ह्रास नियम पर आधारित है।

प्रश्न 7. सीमान्त उपयोगिता ह्रास नियम के दोष लिखिए?

उत्तर: सीमान्त उपयोगिता ह्रास नियम के प्रमुख दोष निम्नांकित हैं –

1. उपयोगिता का मापन कठिन: आलोचकों के अनुसार सीमांत उपयोगिता ह्रास नियम के अन्तर्गत उपयोगिता को मापनीय माना गया है, जबकि उपयोगिता मानसिक स्थिति का आभास है जिसको मापना कठिन है।

2. व्यक्तिगत विचारों एवं विवेक को अधिक महत्व: सीमांत उपयोगिता ह्रास नियम में व्यक्तिगत विचारों को अधिक महत्व दिया गया है, जो उचित नहीं है। व्यक्ति सदैव विवेक से कार्य नहीं करता, बल्कि वह सामाजिक रीति – रिवाज, फैशन एवं मन के उमंग के बहाव में वस्तुएँ खरीदता और उनका उपभोग करता है।

3. उपयोगिता पूरक एवं स्थानापन्न वस्तु पर भी निर्भर: उपयोगिता वस्तु की मात्रा के अतिरिक्त उसकी पूरक एवं स्थानापन्न वस्तु पर भी निर्भर करती है, लेकिन नियम इसके प्रभाव की उपेक्षा करता है।

4. मुद्रा की सीमांत उपयोगिता स्थिर नहीं: आलोचकों के अनुसार मुद्रा की सीमांत उपयोगिता स्थिर नहीं रहती है।

5. आवश्यकता की पूर्ण संतुष्टि संभव नहीं: आवश्यकता विशेष की पूर्ण संतुष्टि की मान्यता ही गलत है। उपभोग की अवधि लम्बी होने पर मानवीय आवश्यकता की पूर्ण संतुष्टि संभव नहीं हो पाती।

6. यह नियम सूक्ष्मता प्रधान है: सीमांत उपयोगिता ह्रास नियम, नियम सूक्ष्मता प्रधान है, क्योंकि इसमें व्यक्तिगत उपयोगिता का ही अध्ययन किया जाता है।

प्रश्न 8. माँग के आवश्यक तत्वों की व्याख्या कीजिये?

उत्तर: माँग के आवश्यक तत्व निम्नलिखित हैं –

1. वस्तु की इच्छा का होना: माँग के लिये किसी भी वस्तु को प्राप्त करने की इच्छा होना चाहिए। जब तक किसी भी वस्तु को पाने की लालसा नहीं होगी वह माँग में नहीं बदल सकती।

2. क्रय करने के लिये पर्याप्त साधन या धन: वस्तु को प्राप्त करने के लिये उपभोक्ता के पास पर्याप्त धन होना चाहिये। तभी वह उसे क्रय कर सकता है।

3. व्यय करने की तत्परता: उपभोक्ता उस वस्तु को क्रय करने के लिये उस पर व्यय करने को तत्पर रहना चाहिये।

4. निश्चित मूल्य पर प्रस्तुतीकरण: माँग को एक निश्चित मूल्य पर.व्यक्त कर प्रस्तुत किया जाना चाहिये क्योंकि निश्चित मूल्य पर प्रदर्शित एवं माँगी गई मात्रा ही माँग कहलाती है।

5. निश्चित समय एवं संदर्भ पर प्रस्तुतीकरण: माँग को निश्चित समय एवं संदर्भ पर व्यक्त कर प्रस्तुत किया जाना चाहिये क्योंकि एक निश्चित अवधि एवं समय पर निश्चित मूल्य पर वस्तु की मात्रा का माँगा जाना माँग के आवश्यक तत्वों में से एक है। इस प्रकार प्रभावोत्पादक इच्छा आवश्यकता कहलाती है एवं निश्चित अवधि पर निश्चित मूल्य पर वस्तु की माँगी जाने वाली मात्रा माँग कहलाती है|

प्रश्न 9. सीमांत उपयोगिता एवं कुल उपयोगिता में अन्तर स्पष्ट कीजिए?

उत्तर: सीमान्त उपयोगिता एवं कुल उपयोगिता में अन्तर –

अन्तर का आधार

सीमांत उपयोगिता

कुल उपयोगिता

आशय

उपभोग की गई इकाइयों में से अंतिम इकाई से प्राप्त उपयोगिता सीमांत उपयोगिता कहलाती है

उपभोग की जाने वाली समस्त इकाइयों की उपयोगिताएं का कुल योग कुल उपयोगिता कहलाता है

उपयोगिता का कम या अधिक होना

वस्तु का उपभोग बढ़ने से सीमांत उपयोगिता कम हो जाती है

वस्तु का उपभोग बढ़ने से कुल उपयोगिता बढ़ती जाती है।

मूल्य निर्धारण में योगदान

सीमांत उपयोगिता का मूल्य निर्धारण में महत्वपूर्ण योगदान रहता है।

कुल उपयोगिता का मूल्य निर्धारण में कोई योगदान नहीं होता है।

पूर्ण संतुष्टि बिंदु पर स्थिति

पूर्ण संतुष्टि बिंदु पर सीमांत उपयोगिता शून्य हो जाती है।

पूर्ण संतुष्टि बिंदु पर कुल उपयोगिता अधिकतम हो जाती है।


प्रश्न 10. बजट रेखा की प्रवणता नीचे की ओर क्यों होती है? समझाइए?

उत्तर: बजट रेखा की प्रवणता नीचे की ओर इसलिए होती है क्योंकि बजट रेखा पर स्थित प्रत्येक बिन्दु एक ऐसे बंडल को दर्शाता है जिस पर उपभोक्ता की पूरी आय व्यय हो जाती है। ऐसी दशा में यदि उपभोक्ता वस्तु 1 – 2 इकाई अधिक लेना चाहता है तब वह ऐसा तभी कर सकता है जब वह वस्तु दूसरी वस्तु की कुछ मात्रा छोड़ दे। वस्तु 1 की मात्रा कम किए बिना वह वस्तु 2 की मात्रा को बढ़ा नहीं सकता है। वस्तु 1 की एक अतिरिक्त इकाई पाने के लिए उसे वस्तु 2 की कितनी इकाई छोड़नी पड़ेगी यह दो वस्तुओं की कीमत पर निर्भर करेगा।

प्रश्न 11. उपयोगिता ह्रास नियम के तीन अपवाद बताइए?

उत्तर: उपयोगिता ह्रास नियम के प्रमुख अपवाद निम्नलिखित हैं –

1. दुर्लभ एवं अप्राप्य वस्तुओं के संग्रह पर लागून होना: दुर्लभ एवं अप्राप्य वस्तुओं के संग्रह पर उपयोगिता ह्रास नियम लागू नहीं होता क्योंकि इन वस्तुओं के उत्तरोतर इकाइयों से अधिक उपयोगिता का अनुभव होता है।

2. मादक पदार्थ के उपभोग में इस नियम का लागू न होना: यदि कोई व्यक्ति शराब का उपभोग करता है तो उसे हर एक प्याले से प्राप्त होने वाली उपयोगिता बढ़ती जाती है तथा वह एक के बाद एक नये प्याले शराब को पीने की इच्छा करता है।

3. वस्तु की छोटी इकाइयों पर लागू न होना: यदि उपभोग की जाने वाली वस्तु की इकाइयाँ अत्यन्त छोटी हों तो लगातार इकाइयों के व्यवहार से उपयोगिता अधिक मिलेगी। जैसे किसी प्यासे को एक चम्मच पानी दिया जाये तो ऐसी स्थिति में दूसरे व तीसरे चम्मच से प्यासे को प्राप्त होने वाली उपयोगिता क्रमशः बढ़ती जायेगी।

प्रश्न 12. माँग वक्र की मान्यताओं को लिखिए?

उत्तर: माँग वक्र की प्रमुख मान्यताएँ निम्नांकित हैं –

1. उपभोक्ता की आय, रुचि, स्वभाव आदि में किसी प्रकार का परिवर्तन नहीं होना चाहिए।

2. जिन सम्बन्धित वस्तुओं के उपभोग में उपभोक्ता रुचि रख सकता है, उन वस्तुओं की कीमतें भी स्थिर मान ली जाती हैं।

3. कीमत तथा माँग के पारस्परिक सम्बन्ध में निरन्तरता एवं अति सूक्ष्म परिवर्तनों का होना मान लिया जाता है।

4. माँग वक्र एक स्थिर स्थिति को बताता है, इस प्रकार यह किसी समय विशेष में माँग परिवर्तनों को नहीं बताता है।

5. वस्तु को छोटी – छोटी इकाइयों में बाँटा जा सकता है, जिसके कारण माँग में सूक्ष्म परिवर्तन सम्भव है।

6. बाजार में पूर्ण प्रतियोगिता पायी जाती है।

7. कोई भी उपभोक्ता व्यक्तिगत रूप से किसी वस्तु के मूल्य को प्रभावित करने की स्थिति में नहीं होता, बल्कि उसे बाजार में प्रचलित मूल्यों पर ही अपनी माँग को समायोजित करना पड़ता है।

प्रश्न 13. एक वस्तु की माँग पर विचार करें।4 रुपये की कीमत पर इस वस्तु की 25 इकाइयों की माँग है। मान लीजिए वस्तु की कीमत बढ़कर 5 रुपये हो जाती है तथा परिणामस्वरूप वस्तु की माँग घटकर 20 इकाइयाँ हो जाती हैं, कीमत लोच की गणना कीजिए?

उत्तर :            

   


प्रश्न 14. मान लीजिए किसी वस्तु की माँग की कीमत लोच – 0.2 है, यदि वस्तु की कीमत में 5% की वृद्धि होती है, तो वस्तु के लिए माँग में कितनी प्रतिशत कमी आएगी?

उत्तर :
             
वस्तु के लिए माँग में प्रतिशत परिवर्तन = 5 x – 0.2 = – 1

अतः वस्तु की माँग में एक प्रतिशत की कमी आएगी।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. माँग के नियम के लागू होने के पाँच कारण लिखिए?

> माँग वक्र का ढाल नीचे की ओर क्यों होता है?

उत्तर: माँग के नियम के लागू होने के पाँच कारण निम्नांकित हैं

1. सीमांत उपयोगिता ह्रास नियम: माँग का नियम सीमांत उपयोगिता ह्रास नियम पर आधारित है। सीमांत उपयोगिता ह्रास नियम के कारण उपभोक्ता कम कीमत पर वस्तु की अधिक माँग और अधिक कीमत पर वस्तु की कम माँग करता है।

2. मूल्य – प्रभाव: वस्तु के मूल्य में कमी या वृद्धि होने से उस वस्तु की माँग में वृद्धि या कमी होती है। इसके कारण माँग वक्र बाँयें से दाँयें नीचे की ओर गिरता है।

3. आय प्रभाव: कीमत में कमी के कारण उपभोक्ता की वास्तविक आय में वृद्धि हो जाती है। अत: वह कम कीमत पर अधिक मात्रा में वस्तु क्रय करता है। ऊँची कीमत होने पर वास्तविक आय में कमी हो जायेगी। इसलिए वह कम मात्रा में वस्तु क्रय करेगा।

4. प्रतिस्थापन प्रभाव: जब किसी वस्तु की कीमत में कमी आती है, तो वह अन्य वस्तुओं के मुकाबले में सस्ती हो जाती है। इसके कारण उपभोक्ता अन्य वस्तुओं के स्थान पर इस सस्ती वस्तु को खरीदना पसंद करेगा।

5. वस्तु के वैकल्पिक प्रयोग: वस्तुओं के वैकल्पिक प्रयोग होने के कारण भी वस्तु की कीमत घटने पर उस वस्तु की विभिन्न प्रयोगों में माँग बढ़ जाती है तथा वस्तु की कीमत में वृद्धि होने पर माँग घट जाती है।

प्रश्न 2. माँग के नियम के कोई पाँच अपवादों को लिखिए?

उत्तर: माँग के नियम के प्रमुख अपवाद निम्नांकित हैं

1. गिफिन वस्तुएँ: ऐसी वस्तु की कीमत कम हो जाये, तो उपभोक्ता उस वस्तु की ही माँग घटा देता है। और उससे जो धनराशि उसके पास बच जाती है, उसको श्रेष्ठ वस्तु पर खर्च कर देता है। इसे गिफिन का विरोधाभास कहा जाता है।

2. अज्ञानता प्रभाव: अज्ञानता के कारण भी वस्तु के मूल्यों में बढ़ोत्तरी होने पर उसकी माँग बढ़ जाती है और मूल्यों में कमी होने पर वस्तु की माँग कम हो जाती है।

3. वस्तु की दुर्लभता: यदि उपभोक्ता को किसी वस्तु के भविष्य में दुर्लभ हो जाने की आशंका है, तो कीमत के बढ़ जाने पर भी उनकी माँग बढ़ जायेगी, जैसे – खाड़ी युद्ध के कारण तेल व खाद्यान्नों के सम्बन्ध में यह बात सिद्ध हो चुकी है।

4. रुचि व फैशन में परिवर्तन: उपभोक्ताओं की रुचि तथा फैशन में परिवर्तन के फलस्वरूप वस्तुओं की माँग में भी परिवर्तन हो जाता है। जिस वस्तु का फैशन नहीं रहता, उसकी कीमत कम होने पर भी माँग नहीं बढ़ती है।

5. अनिवार्यताएं: अनिवार्य आवश्यकता की वस्तुओं के मूल्य में वृद्धि होने के बावजूद भी इनकी माँग कम नहीं होती है। अत: ऐसी दशा में माँग का नियम लागू नहीं होता।

प्रश्न 3. माँग की लोच को प्रभावित करने वाले कोई पाँच तत्व लिखिए?

उत्तर: माँग की लोच को प्रभावित करने वाले प्रमुख तत्व निम्नलिखित हैं –

1. स्थानापन्न वस्तुएँ: जिन वस्तुओं की अनेक स्थानापन्न वस्तुएँ होती हैं, उनकी माँग अधिक लोचदार होती है और जिन वस्तुओं की स्थानापन्न वस्तुएँ नहीं होतीं, उन वस्तुओं की माँग बेलोचदार होती है।

2. व्यय राशि का अनुपात: जिन वस्तुओं पर आय का अधिकांश भाग खर्च किया जाता है, उन वस्तुओं की माँग की लोच लोचदार होगी और जिन वस्तुओं पर आय का थोड़ा – सा भाग व्यय होता है, उन वस्तुओं की माँग बेलोचदार होगी।

3. वस्तु का स्वभाव: जो वस्तुएँ जीवन के लिए अनिवार्य होती हैं, उन वस्तुओं की माँग बेलोचदार होती हैं। आरामदायक वस्तुओं की लोचदार तथा विलासिता की वस्तुओं की माँग अधिक लोचदार होती हैं।

4. वस्तु के उपभोग को स्थगित करने की सम्भावना: जिन वस्तुओं के उपभोग को थोड़े समय के लिए टाला जा सकता है, उन वस्तुओं की माँग लोचदार होती है, जबकि उन वस्तुओं की माँग बेलोचदार होती है, जिनके उपभोग को स्थगित नहीं किया जा सकता है।

5. वस्तु के वैकल्पिक प्रयोग: यदि किसी वस्तु के एक से अनेक उपयोग हो सकते हैं, तो उसकी माँग लोचदार होगी, जैसे – बिजली।

प्रश्न 4. माँग को प्रभावित करने वाले कोई पाँच तत्व लिखिए?

उत्तर: माँग को प्रभावित करने वाले प्रमुख तत्व निम्नांकित हैं –

1. उपभोक्ता की आय: माँग को प्रभावित करने वाली प्रमुख बात उपभोक्ता की आय है। आय के बढ़ने से क्रय – शक्ति बढ़ती है। अतः क्रय-शक्ति के बढ़ने – घटने पर माँग बढ़ती – घटती है।

2. धन का वितरण: धन के वितरण का भी माँग पर प्रभाव पड़ता है। यदि धन का वितरण समान है, तो माँग बढ़ेगी। अन्यथा माँग में कमी हो जायेगी।

3. उपभोक्ता की रुचि: माँग पर उपभोक्ताओं की रुचि का भी प्रभाव पड़ता है। जिन वस्तुओं के उपभोग के प्रति उपभोक्ताओं की रुचि बढ़ेगी या जिन वस्तुओं का फैशन बढ़ेगा, उन वस्तुओं की माँग उत्तरोत्तर बढ़ेगी।

4. भौगोलिक वातावरण: भौगोलिक वातावरण विशेषकर जलवायु का प्रभाव माँग पर पड़ता है। जैसे – गर्मियों की अपेक्षा जाड़ों में गर्म कपड़े, गर्म खाना, गर्म पेय आदि की माँग का बढ़ना।

5. वस्तुओं का मूल्य: जब किसी वस्तु के मूल्य में कमी आती है, तब उस वस्तु की माँग में वृद्धि होती है और मूल्य के बढ़ने पर माँग घटती है।

प्रश्न 5. माँग की कीमत लोच के प्रकार समझाइए?

उत्तर: माँग की कीमत लोच के प्रमुख प्रकार निम्नांकित हैं –

1. पूर्णतया लोचदार माँग: किसी वस्तु के मूल्य में कोई परिवर्तन न होने पर भी वस्तु की माँग में भारी परिवर्तन हो जाये, तो ऐसी वस्तु माँग को पूर्णतया लोचदार माँग कहते हैं। अत: माँग की लोच अनंत होती है। जैसे – वस्तु की कीमत में कोई परिवर्तन नहीं हुआ है, लेकिन उसकी माँग में 10% की वृद्धि या 10% की कमी हुई है, तो माँग की लोच का गणितीय परिणाम अनंत होगा।

2. अधिक लोचदार माँग: जब किसी वस्तु की माँगी गयी मात्रा में परिवर्तन, उसके मूल्य में परिवर्तन की तुलना में अधिक अनुपात में होता है, तब उस वस्तु की माँग की लोच अधिक लोचदार होती है। उदाहरण के लिए, किसी वस्तु की कीमत में 10% की कमी आने पर उस वस्तु की माँग में 20% की वृद्धि हो जाती है, तो ऐसी वस्तु की माँग की लोच, अधिक लोचदार अर्थात् Ep होगी।

3. लोचदार माँग: जब किसी वस्तु की माँग में परिवर्तन ठीक उसी अनुपात में होता है जिस अनुपात में मूल्य में परिवर्तन होता है, तब ऐसी वस्तु की माँग लोचदार माँग कहलाती है। उदाहरण के लिए, किसी वस्तु के मूल्य में 25% की वृद्धि होने पर वस्तु की माँग में 25% की कमी हो जाती है तो माँग की लोच, लोचदार कही जायेगी। आरामदायक आवश्यकता की वस्तुओं की माँग लोचदार होती है।

4. बेलोचदार माँग: जिस अनुपात में मूल्य में परिवर्तन होता है उसकी तुलना में वस्तु की माँग में कम अनुपात में परिवर्तन होता है, तो वस्तु की माँग बेलोचदार कहलाती है। उदाहरण के लिए, यदि वस्तु की मूल्य में 25% वृद्धि होने पर वस्तु की माँग में केवल 5% की कमी आती है, तो माँग में बेलोचदार या लोचदार इकाई से कम (Ep < 1) होगी। अनिवार्य आवश्यकता की वस्तुओं की माँग बेलोचदार होती है।

5. पूर्णतया बेलोचदार माँग: जब किसी वस्तु के मूल्य में बहुत अधिक परिवर्तन होने पर भी उसकी माँग में कोई परिवर्तन नहीं होता, तब ऐसी वस्तु की माँग को पूर्णतया बेलोचदार माँग कहते हैं। इस प्रकार की वस्तु की माँग की लोच शून्य के बराबर (Ep = 0) होती है। ऐसी वस्तु की माँग रेखा आधार पर एक लम्ब के समान होती है।

प्रश्न 6. माँग के नियम को उदाहरण व रेखाचित्र की सहायता से स्पष्ट कीजिए?

उत्तर: माँग का नियम वस्तु के मूल्य और माँग के संबंध को स्पष्ट करता है। किसी वस्तु के मूल्य में वृद्धि होने पर उसकी माँग कम एवं किसी वस्तु के मूल्य में कमी होने पर उसकी माँग बढ़ जाती है।

उदाहरण द्वारा स्पष्टीकरण –     

वस्तु की कीमत (प्रति इकाई में)

मांग(इकाइयों में)

1

80

2

70

3

60

4

50

5

40


उपर्युक्त सारणी से स्पष्ट है कि जैसे – जैसे वस्तु के मूल्य में वृद्धि होती जाती है, वैसे – वैसे उसकी माँग कम हो जाती है।

अतः स्पष्ट है कि वस्तु के मूल्य व वस्तु की माँग में विपरीत संबंध होता है। जब वस्तु का मूल्य ₹ 1 प्रति इकाई होता है तो वस्तु, की 80 इकाइयों की माँग की जाती है। वस्तु का मूल्य बढ़ने पर। (क्रमश: 2, 3, 4, 5) उसकी माँग भी (क्रमश: 70, 60, 50, 40) कम हो जाती है।

चित्र द्वारा स्पष्टीकरण:

रेखाचित्र से स्पष्ट है कि DD माँग रेखा ऊपर से नीचे की ओर गिरती हई होती है, जो स्पष्ट करती माँग है कि वस्तु की कीमत के बढ़ने पर उसकी माँग कम होती जाती है। 

               

प्रश्न 7. क्रमागत (ह्रासमान) सीमांत उपयोगिता नियम की सचित्र व्याख्या अनुसूची की सहायता से कीजिए?

उत्तर: यह सर्वविदित है कि उपभोक्ता ‘स्व – हित’ की भावना से प्रेरित होकर ही अपने सीमित साधनों से अपनी असीमित. आवश्यकताओं की संतुष्टि करने का प्रयास करता है और समय – समय पर इन असीमित आवश्यकताओं में से कुछ आवश्यकताओं को पूरा कर लेता है, जैसे – भूख लगने पर खाना खाकर, प्यास लगने पर पानी पीकर वह इन आवश्यकताओं को संतुष्ट करता है। इस प्रकार हम देखते हैं कि किसी वस्तु की उत्तरोत्तर इकाइयों के निरन्तर उपभोग से उससे प्राप्त उपयोगिता क्रमशः घटती जाती है। इस प्रवृत्ति को अर्थशास्त्र में ‘उपयोगिता ह्रास नियम’ कहते हैं।

उपयोगिता ह्रास नियम को तालिका एवं रेखाचित्र की सहायता से समझा जा सकता है 

तालिका द्वारा स्पष्टीकरण –

रोटी की इकाइयां

कुल उपयोगिता

सीमांत उपयोगिता

1

10

10

2

18

8

3

24

6

4

28

4

5

30

2

6

30

0

7

28

-2

8

24

-4

उपर्युक्त तालिका से स्पष्ट है कि जैसे – जैसे रोटी की इकाइयाँ बढ़ती जाती हैं, उनसे प्राप्त होने वाली सीमांत उपयोगिता क्रमश: घटती जाती है। छठवीं रोटी के उपभोग करने पर उसे शून्य उपयोगिता प्राप्त हो रही है। अतः रोटी के खाने पर उपभोक्ता की भूख पूरी तरह से तृप्त हो गयी है, इसलिये इसे पूर्ण संतुष्टि का बिन्दु भी कहते हैं। सातवीं एवं आठवीं रोटी के उपभोग से ऋणात्मक सीमांत उपयोगिता प्राप्त हो रही है। यद्यपि उपभोक्ता की कुल उपयोगिता 5 इकाई तक बढ़ रही है, किन्तु कुल उपयोगिता घटती हुई दर से बढ़ रही है। छठवीं रोटी के उपभोग करने पर कुल उपयोगिता अधिकतम हो गई है तथा सातवीं एवं आठवीं रोटी का उपभोग करने पर कुल उपयोगिता क्रमशः घटती जा रही है।

रेखाचित्र द्वारा स्पष्टीकरण:

प्रस्तुत चित्र में, OX आधार रेखा पर रोटी की इकाइयाँ तथा OY लम्ब रेखा पर सीमांत उपयोगिता को दिखाया गया है। रेखाचित्र से स्पष्ट है कि पहली रोटी की इकाई से 10, दूसरी से 8 तीसरी से 6, चौथी से 4, पाँचवीं से 2, छठवीं से 0 और सातवीं रोटी की इकाई से -2 (ऋणात्मक) उपयोगिता मिलती है।

प्रश्न 8. गिफिन विरोधाभास क्या है?

उत्तर: साधारणतया वस्तु की कीमत में वृद्धि होने से वस्तु की माँग कम होने लगती है इसीलिये माँग एवं मूल्य में विपरीत संबंध के कारण माँग वक्र बायें से दाहिने नीचे की ओर गिरता हुआ दिखाई देता है। लेकिन कुछ दशाएँ ऐसी भी होती हैं जब माँग वक्र नीचे की ओर झुकने के बजाय ऊपर उठता है। गिफिन विरोधाभास वस्तुओं पर भी यह माँग का नियम लागू नहीं होता है।

सर रॉबर्ट गिफिन: ने निम्न या निकृष्ट वस्तुओं को गिफिन वस्तुओं की संज्ञा दी है। उनका मत है कि एक उपभोक्ता अपनी आय का एक बड़ा भाग घटिया किस्म की वस्तुओं पर व्यय करता है अतएव उस वस्तु की कीमत में कमी आ जाने पर भी उपभोक्ता वस्तु की अधिक इकाइयों को खरीदने के स्थान पर श्रेष्ठ वस्तुओं को क्रय करने पर व्यय करता है। उदाहरण के लिये, गेहूँ की तुलना में ज्वार – बाजरा एक निम्न श्रेणी की वस्तु है। एक निर्धन श्रमिक अपनी आय का एक भाग ज्वार – बाजरे पर व्यय करता है किन्तु बाजरे की कीमत कम हो जाने के बाद भी वह श्रमिक अधिक बाजरा खरीदने के स्थान पर श्रेष्ठ किस्म की वस्तु अर्थात् गेहूँ पर खर्च करने लगेगा, जिससे बाजार में ज्वार-बाजरे की माँग कम हो जावेगी। यही गिफिन विरोधाभास कहलाता है।

प्रश्न 9. उपभोक्ता के संतुलन की सचित्र व्याख्या कीजिए?

उत्तर: एक उपभोक्ता संतुलन की स्थिति में अधिकतम संतुष्टि तब प्राप्त होगा जबकि निम्न शर्ते पूरी हों –

1. तटस्थता वक्र की कीमत रेखा को स्पर्श करना :  उपभोक्ता के संतुलन के लिए पहली शर्त यह है कि तटस्थता वक्र जिस बिन्दु के ऊपर कीमत रेखा को Y स्पर्श करेगा, वही संतुलन बिन्दु होगा। इस बिन्दु पर उपभोक्ता को सबसे अधिक संतुष्टि मिलेगी। इसे पार्श्व रेखाचित्र के माध्यम से स्पष्ट किया जा सकता है।

रेखाचित्र में AB कीमत रेखा है तथा IC1, IC2, IC3, ये तीन तटस्थता वक्र हैं। ये वक्र X और Y वस्तु के है संयोग को प्रदर्शित कर रहे हैं। तटस्थता वक्र कीमत रेखा के क्रमशः ऊपर – नीचे हैं अर्थात् एक उपभोक्ता की सीमित आय है और एक उपभोक्ता अपनी सीमित आय से क्रय नहीं कर सकता। IC1 कम संतुष्टि को व्यक्त करता है, लेकिन IC2, वक्र एक ऐसा वक्र है जो P बिन्दु पर कीमत रेखा को स्पर्श करता है। वस्तुत: P बिन्दु उपभोक्ता का संतुलन बिन्दु होगा।

2. कीमत रेखा का ढाल तटस्थता वक्र के ढाल के समान हों: उपर्युक्त चित्र में P बिन्दु पर कीमत तथा तटस्थता वक्र पर ढाल एकसमान या एक बराबर है।

3. सीमान्त प्रतिस्थापन की दर घटती हुई हो: उपभोक्ता के संतुलन के लिए यह आवश्यक है कि X और Y के लिए सीमान्त प्रतिस्थापन की दर घटती हुई तथा तटस्थता वक्र मूलबिन्दु के प्रति उन्नतोदर हो। 

           

प्रश्न 10. तटस्थता वक्र क्या है? इसकी विशेषताएँ बताइये?

उत्तर: तटस्थता वक्र दो वस्तुओं के ऐसे संयोगों को दर्शाती हैं। जिनसे उपभोक्ता को एक समान संतुष्टि प्राप्त होती है। इस वक्र की सहायता से एक उपभोक्ता संयोगों से समान संतुष्टि प्राप्त करता है।

             विशेषताएँ –

1. तटस्थता वक्र बाएँ से दाहिने ओर ढालू होता है।

2. यह वक्र मूल बिन्दु के उन्नतोदर होता है।

3. यह वक्र उपभोक्ता को प्राप्त समान संतुष्टि की माप है।

4. किसी उच्च तटस्थता वक्र में उच्च संतुष्टि के स्तर को। दर्शाने की क्षमता होती है।

5. दो तटस्थता वक्रों का न तो स्पर्श हो सकता है और न ही वे एक – दूसरे को विच्छेदित कर सकते हैं।

6. तटस्थता वक्र दो वस्तुओं के संयोग पर ही बन सकता है।

            

प्रश्न 11. तटस्थता मानचित्र क्या है?

उत्तर: तटस्थता मानचित्र से अभिप्राय संतुष्टि के विभिन्न स्तरों पर संतुष्टि को प्रदर्शित करने वाले तटस्थता वक्रों को ही तटस्थता मानचित्र कहते हैं। यह मानचित्र तटस्थता वक्रों का एक समूह होता है जो । उपभोक्ता की दो वस्तुओं की संतुष्टि के विभिन्न स्तरों का एक चित्र प्रस्तुत करता है। ऐसा चित्र (वक्र) जो सबसे ऊँचाई पर होता है उसे तटस्थता मानचित्र कहते हैं जो सर्वाधिक संतुष्टि के स्तर को प्राप्त करता है

             

प्रश्न 12. माँग वक्र पर संचलन तथा माँग वक्र में स्थानांतरण (खिसकाव)से आप क्या समझते हैं?

उत्तर: माँग वक्र पर संचलन से अभिप्राय वस्तु की अपनी कीमत में परिवर्तन के कारण माँगी गई मात्रा में परिवर्तन को प्रकट करता है। जबकि जब वस्तु की अपनी कीमत में कीमत के अतिरिक्त अन्य कारकों से माँग में परिवर्तन होता है तो इसे माँग वक्र में खिसकाव कहते हैं। दूसरे शब्दों में माँग वक्र पर संचलन का आशय माँग के विस्तार एवं माँग के संकुचन से है। माँग का विस्तार तब होता है जब वस्तु के मूल्य में कमी होने से वस्तु की माँगी गई मात्रा में वृद्धि होती है। माँग का संकुचन तब होता है जब वस्तु के मूल्य में वृद्धि होने पर वस्तु की माँगी गई मात्रा में कमी होती है।

माँग वक्र में खिसकाव (स्थानांतरण) से अभिप्राय माँग में वृद्धि अथवा कमी से है। कीमत के अतिरिक्त अन्य कारणों से वस्तु की माँग बढ़ जाती है तो माँग में वृद्धि कहते हैं। जब कीमत के अतिरिक्त किसी अन्य कारण से वस्तु की माँग कम हो जाती है तो उसे माँग में कमी कहते हैं । इन दोनों ही दशाओं को निम्न चित्रों की सहायता से अधिक स्पष्ट किया जा सकता ह –

                 



JCERT/JAC REFERENCE BOOK

विषय सूची

JCERT/JAC प्रश्न बैंक - सह - उत्तर पुस्तक (Question Bank-Cum-Answer Book)

विषय सूची


Economics Group-A

1. व्यष्टि अर्थशास्त्र परिचय (Micro Economics Introduction)

2. उपभोक्ता का संतुलन (Consumer's Equilibrium)

3. उपभोक्ता व्यवहार एवं माँग (Consumer Behavior and Demand)

4. उपभोग फलन (Consumption Function)

5. उत्पादक व्यवहार एवं पूर्ति (Consumer Behavior and Supply)

6. मांग की अवधारणा (Concept of Demand)

7. मांग की कीमत लोच (Price Elasticity of Demand)

पूर्ति की अवधारणा (Concept of Supply)

9. उत्पादन फलन (Production Function)

10. उत्पादन की अवधारणा (Concept of Production Function)

11. लागत की अवधारणा (Concepts of Cost)

12. फर्म का संतुलन (Firm’s Equilibrium)

13. आगम की अवधारणा (Concepts of Revenue)

14. बाजार सन्तुलन (Market Equilibrium)

15. बाजार के स्वरूप (प्रकार) एवं मूल्य निर्धारण (Forms of Market and Price Determination)

16. बाजार के अन्य स्वरूप (Other Forms of Markets)

17 पूर्ण प्रतियोगी बाजार (Perfect Competition Markets)

Economics Group-B

समष्टि अर्थशास्त्र का परिचय (Introduction to Macroeconomics)

राष्ट्रीय आय का लेखांकन (Accounting of National Income)

मुद्रा और बैंकिंग (Money and Banking)

1.राष्ट्रीय आय(National Income)

2.राष्ट्रीय आय (National Income)

3. राष्ट्रीय आय से सम्बन्धित समुच्चय (Aggregates related to national income) 

4. राष्ट्रीय आय का मापन (National Income Measurement)

5. आय एवं रोजगार का निर्धारण (Determination of Income And Employment)

6. मुद्रा एवं बैंकिंग (Money and Banking)

7. केन्द्रीय बैंक: कार्य एवं साख नियन्त्रण (Central Bank: Functions & Credit Control)

8. मुद्राः अर्थ, कार्य एवं महत्त्व (Money: Meaning, Functions and Importance)

9. भुगतान संतुलन (Balance of Payment)

10. सरकारी बजट एवं अर्थव्यवस्था (Government Budget and The Economy)

11. Government_Budget_And_Economy

12. Commercial-Banks (व्यापारिक बैंकः अर्थ एवं कार्य)

13. Concepts-of-Excess-Deficient-Demand(अधिमाँग एवं न्यून माँग अवधारणा )

14, Income-Production-Determination(आय-उत्पादन का निर्धारण )

15. Foreign Exchange Rate (विदेशी विनिमय दर)

1 comment

  1. Nice Sir
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