इन अवस्थाओं को निम्न तालिका से स्पष्ट किया जा सकता है-
सीमान्त एवं कुल उपयोगिता के इस सम्बन्ध को निम्नलिखित रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है –
रेखाचित्र से स्पष्ट है कि छठवीं इकाई तक सीमान्त उपयोगिता में कमी आयी है लेकिन कुल उपयोगिता में वृद्धि हुई है। सातवीं इकाई पर कुल उपयोगिता अधिकतम तथा सीमान्त उपयोगिता शून्य हो गई है। इसके बाद सीमान्त उपयोगिता ऋणात्मक हो जाती है तथा कुल उपयोगिता कम होने लगती है।
2. इस नियम का उपयोग सार्वजनिक वित्त में भी किया जाता है। हम जानते हैं कि धनवान के लिए मुद्रा की सीमान्त उपयोगिता कम और गरीब के लिए अधिक होती है। अत: अमीरों पर कर (TAX) लगाकर उस राशि को गरीबों पर खर्च करने से सामाजिक कल्याण बढ़ता है।
3. उपयोगिता ह्रास नियम द्वारा मांग का नियम, सम सीमान्त उपयोगिता नियम आदि नियमों की व्युत्पत्ति हुई है।
उपरोक्त उदासीनता सारणी में, प्रारम्भ में संयोग A में उपभोक्ता के पास वस्तु X की एक इकाई और वस्तु Y की 12 इकाइयां हैं। उपभोक्ता संयोग B को प्राप्त करने के लिए वस्तु X की एक इकाई के बदले वस्तु Y की 4 इकाइयों का त्याग कर देता है और ऐसा करने से उसकी सन्तुष्टि में कोई परिवर्तन नहीं होता। अर्थात् इस अवस्था में वस्तु Y को वस्तु X में बदलने की दर चीर है। इसे उदासीनता वक्र विश्लेषण में कहते है कि उपभोक्ता की वस्तु X की वस्तु Y के लिए प्रतिस्थापन की सीमान्त दर चार है। इस प्रकार प्रतिस्थापन की सीमान्त दर को परिभाषित कर सकते हैं कि वस्तु X की वस्तु Y के लिए प्रतिस्थापन की सीमान्त दर वस्तु Y की वह मात्रा है जिसका वस्तु X की एक अतिरिक्त इकाई प्राप्त करने के लिए उपभोक्ता त्याग देने को तैयार होता है जिससे उनकी सन्तुष्टि का स्तर स्थिर रहे।
प्रतिस्थापन की सीमान्त दर को निम्न प्रकार से भी समझा जा सकता है –
उपरोक्त रेखाचित्र A व B के द्वारा दिखाये गये X व Y वस्तुओं के बंडल के बीच तटस्थ है। A बिन्दु पर उपभोक्ता X वस्तु की OC मात्रा तथा Y वस्तु की OP मात्रा का उपयोग करता है। A से B बिन्दु पर पहुँचने के लिए उपभोक्ता Y वस्तु की PQ मात्रा को प्रतिस्थापित कर X वस्तु की CD अधिक मात्रा को प्राप्त करता है। वह दर जिस पर X वस्तु की एक अतिरिक्त इकाई प्राप्त की जाती है, निम्नानुसार है –
यह अनुपात ही प्रतिस्थापन की सीमान्त दर है जैसे A बिन्दु, B के समीप आता है अनुपात बिन्दु B पर खींची गयी स्पर्श रेखा के ढाल के बराबर होता है। अत: तटस्थता वक्र के किसी बिन्दु पर डाली गयी रेखा का ढाल ही उस बिन्दु पर प्रतिस्थापन की दर कहलाती है।
[नोट – x2 = 0 माना गया है क्योंकि उपभोक्ता ने अपनी सम्पूर्ण आय वस्तु 1 की क्रय करने पर व्यय कर दी है।
[नोट – x1 = 0 माना गया है क्योंकि उपभोक्ता ने अपनी सम्पूर्ण आय वस्तु 2 को क्रय करने पर व्यय कर दी है।
(iv) बजट रेखा की प्रवणता (ढलान)
अत: बजट रेखा की प्रवणता = -08 होगी।
अर्थात् मुद्रा के रूप में सीमान्त उपयोगिता = उत्पाद की कीमत अथवा MUx = Px
यदि X वस्तु से प्राप्त सीमान्त उपयोगिता (MUx), x की कीमत (Px)
से अधिक हो तो उपभोक्ता X की अधिक मात्रा खरीद कर अपने कल्याण को अधिक कर सकता है इसी तरह यदि X वस्तु से प्राप्त सीमान्त उपयोगिता (MUx), X की कीमत (Px)
से कम हो तो व्यक्ति X वस्तु से अपने कल्याण को अधिकतम करने के लिए X की खरीद की मात्रा को कम कर सकता है। एक वस्तु की दशा में उपयोगिता के गणनावाचक माप के द्वारा वस्तु X की विभिन्न इकाइयों की सीमान्त उपयोगिता को मौद्रिक रूप में मापा जा सकता है। मान लो X की कीमत ₹5 प्रति इकाई है।
उपभोक्ता सन्तुलन (Consumer Equilibrium)
उपरोक्त तालिका दर्शाती है कि Px = ₹5 होने पर उपभोक्ता वस्तु की 3 इकाई खरीदता है। यदि उपभोक्ता 3 से कम इकाइयां खरीदता है, मान लो 2 इकाइयां, तब 2 इकाइयों से प्राप्त सीमान्त उपयोगिता के ₹2 के बराबर होगी और वह ₹5 की कीमत देगा। अब MUx >
Px इसलिए वह X की और मात्रा खरीदेगा। यहाँ एक उपभोक्ता उससे अधिक इकाइयाँ नहीं खरीदेगा, क्योंकि यदि वह 4 इकाइयाँ खरीदेगा, तो उसे 5 का भुगतान करना पड़ेगा, जो कि उसकी सीमान्त उपयोगिता (MU) से कम है, जो कि ₹4 के बराबर है। इस प्रकार अपनी उपयोगिता को बढ़ाने के लिए एक उपभोक्ता उतनी ही मात्रा खरीदता है, जहाँ वस्तु की सीमान्त उपयोगिता उसकी कीमत के बराबर होती है।
यदि उपभोक्ता एक से अधिक वस्तुओं का उपभोग करता है तो उपभोक्ता के सन्तुलन की शर्त होगी –
मुद्रा की एक अतिरिक्त इकाई के खर्च करने से प्राप्त उपयोगिता सभी वस्तुओं के लिए समान होगी। यदि उपभोक्ता एक वस्तु पर खर्च करने से अधिक उपयोगिता प्राप्त करता है तो वह अपना कल्याण अधिक करने के लिए उस पर अधिक खर्च करेगा व अन्य वस्तुओं के उपभोग पर तब तक कम करता रहेगा जब तक उपरोक्त शर्त पूरी न हो जाए। उपरोक्त शर्तों के साथ आमदनी के प्रतिबन्ध की शर्त भी उपभोक्ता के सन्तुलन के लिए आवश्यक है –
इस शर्त के अनुसार उपभोक्ता के द्वारा X-वस्तु पर किया गया खर्च अर्थात् X.Px तथा Y वस्तु पर किया गया खर्च Y.Py उपभोक्ता की आय I के बराबर होगा।
उपभोक्ता के सन्तुलन का चित्र द्वारा स्पष्टीकरण
उपभोक्ता के सन्तुलन का पता लगाने के लिए तटस्थता वक्र व बजट रेखा को साथ में ग्राफ में बनाया जाता है। जो तटस्थता वक्र मूल बिन्दु के जितना समीप पाया। जाता है वह सन्तुष्टि के अधिकतम स्तर को बताता है। बजट रेखा के दिए होने पर। उपभोक्ता सन्तुलन उपभोक्ता उच्चतम तटस्थता वक्र को प्राप्त करने का प्रयास करता है।
उपरोक्त चित्र में Ic1, Ic2, Ic3 अलग-अलग तटस्थता वक्र हैं तथा AB के बजट रेखा है। बजट रेखा के दिए हुए होने पर उपभोक्ता अधिकतम Ic2 वक्र को प्राप्त कर सकता है। P बिन्दु पर बजट रेखा तटस्थता वक्र Ic2 को स्पर्श करती है। अत: यह उपभोग के सन्तुलन को बताता है। इस बिन्दु पर उपभोक्ता X की OL मात्र व Y की OM मात्रा खरीदता है। बजट रेखा का कोई अन्य बिन्दु नीचे तटस्थता वक्र पर होगा और बिन्दु P (स्पर्श रेखा का बिन्दु) से कम संतुष्टि को बताएगा।
2. तटस्थता वक्र मूल बिन्दु के उन्नत्तोदर होते हैं (Indifference curve is convex to the origin) – जैसे-जैसे हम तटस्थता वक्र पर नीचे की ओर जाते हैं हमें ज्ञात होता है कि इसका ढलान घटता है। इसका ‘ निहितार्थ है कि सीमान्त प्रतिस्थापन की दर में गिरने की प्रवृत्ति होती है जिसके कारण तटस्थता वक्र मूल बिन्दु की ओर उन्नत्तोदर होता है।
उपरोक्त चित्र के अनुसार X वस्तु की 2 इकाई प्राप्त करने के लिए Y वस्तु की AM मात्रा का परित्याग करना पड़ता है। X वस्तु की 3 इकाई मात्रा प्राप्त करने के लिए Y वस्तु की BN मात्रा का परित्याग करना पड़ता है। जैसे-जैसे उपभोक्ता के पास X वस्तु की अधिक मात्रा होती जाती है वैसे-वैसे उपभोक्ता Y वस्तु को छोड़ने की मात्रा कम करता है। यह घटती हुई सीमान्त प्रतिस्थापन की दर के कारण होता है।
3. तटस्थता वक्र एक-दूसरे को नहीं काटते हैं (Indifference curve do not cross or intersect each other) – दो तटस्थता वक्र कभी एक-दूसरे को नहीं काटते। यदि ये एक-दूसरे को काटते हैं तो यह उपभोक्ता की अभिरुचि के प्रतिकूल निष्कर्ष प्रदान करता है। इसको निम्न चित्र द्वारा समझा जा सकता है-
चित्रानुसार माना दो तटस्थता वक्र IC1 एवं IC2 दोनों एक-दूसरे को काटते हैं। P व R बंडल तटस्थता वक्र एक पर होने के कारण समान सन्तुष्टि को बताते हैं। अर्थात् उपभोक्ता P व R बंडल में तटस्थता है अर्थात P = R .
P व २बंडल तटस्थता वक्र दो पर होने के कारण समान सन्तुष्टि को बताते हैं। उपभोक्ता इन दोनों बंडल में तटस्थ है। अतः P = Q इसका अर्थ यह हुआ कि Q = R अर्थात् Q वे R के बीच में उपभोक्ता तटस्थ होना चाहिए। ऐसा सम्भव नहीं है क्योंकि ९ बिन्दु R बिन्दु से ऊपर है अतः ये सिद्ध होता है कि दो तटस्थता वक्र एक दूसरे को नहीं काटते हैं।
मान लीजिए कि उपभोक्ता निश्चित आय को जिन वस्तुओं पर व्यय करना चाहता है वे केवल दो है, X तथा Y। उपभोक्ता को व्यवहार दो बातों से प्रभावित होगा, एक तो वस्तुओं से प्राप्त होने वाले सीमान्त उपयोगिता तथा दूसरे वस्तुओं की कीमतें। मान लीजिए कि दोनों वस्तुओं की कीमतें उपभोक्ता के लिए निश्चित हैं सम सीमान्त उपयोगिता नियम इस दशा में, यह बताता है कि उपभोक्ता अपनी भौतिक आय को विभिन्न वस्तुओं में इस प्रकार वितरित करेगा कि प्रत्येक वस्तु पर व्यय किये अन्तिम रुपये से प्राप्त उपयोगिता समान हो। अन्य शब्दों में, उपभोक्ता उस समय सन्तुलन की स्थिति में होता है। जब प्रत्येक वस्तु पर व्यय की गई मुद्रा से प्राप्त सीमान्त उपयोगिता समान हो। एक वस्तु पर किये गये मौद्रिक व्यय से प्राप्त सीमान्त उपयोगिता को उस वस्तु की एक इकाई से प्राप्त उपयोगिता को उसकी कीमत से विभाजित करके ज्ञात किया जा सकता है। अन्य शब्दों में –
नियम की मान्यतायें (Assumptions of Rule) – इस नियम की निम्न मान्यतायें होती हैं –
1. उपभोक्ता की आय स्थिर रहती है।
2. जिन वस्तुओं पर उपभोक्ता उपभोग करना चाहता है उनकी कीमत स्थिर या दी हुई मानी जाती है।
3. उपभोक्ता की पसन्द, रुचि व अधिमान एक अवधि के लिये दिये होते हैं।
4. मुद्रा की सीमान्त उपयोगिता स्थिर रहती हैं।
5. एक वस्तु की उपयोगिता सारणी दूसरी वस्तु की उपयोगिता सारणी से स्वतन्त्र होती है।
वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1. nth इकाई की सीमान्त उपयोगिता की गणना निम्न प्रकार से की जाती है-
प्रश्न 2. दो वस्तुओं की स्थिति में गणनावाचक विश्लेषण में उपभोक्ता के सन्तुलन की शर्त है।
अति लघु उत्तरीय प्रश्न
लघु उत्तरीय प्रश्न
1. उपभोक्ता की कुल उपयोगिता विभिन्न वस्तुओं की उपभोग की गई मात्रा पर निर्भर करती है।
2. तटस्थता वक्र विश्लेषण में प्रतिस्थापन की सीमान्त दर को घटती हुई माना जाता है।
3. उपभोक्ता को विवेकशील माना जाता है।
प्रारम्भिक कीमत रेखा MN है आय के बढ़ने पर बजट रेखा ऊपर की ओर M1N1 हो जाती है।
प्रारम्भिक कीमत रेखा MN है। उपभोक्ता की आय में कमी होने पर नीचे की ओर M1N1 स्थानान्तरित हो जाती है।
1. उपभोक्ता का व्यवहार विवेकशील माना जाता है।
2. उपयोगिता मापनीय है और इसके लिए मुद्रा का उपयोग किया जाता है।
3. मुद्रा की सीमान्त उपयोगिता को स्थिर माना जाता है।
4. उपभोग की प्रक्रिया सतत् होती है।
5. उपभोक्ता की आय, आदतें रुचि तथा फैशन में दिए हुए समय में कोई परिवर्तन नहीं होता है।
6. उपभोग की गई वस्तु की इकाइयाँ उचित आकार एवं गुणों की दृष्टि से समरूप होनी चाहिए।
1. तटस्थता वक्र का ढलान बायें से दायें, नीचे की ओर होता है।
2. तटस्थता वक्र मूल बिन्दु के उन्नतोदर (Convex
to the origin) होते हैं।
3. एक तटस्थता मानचित्र में ऊँचा तटस्थता वक्र सन्तुष्टि के ऊँचे स्तर को प्रकट करता है।
4. तटस्थता वक्र एक-दूसरे को काटते नहीं हैं।
5. तटस्थता वक्र का ढलान सीमान्त प्रतिस्थापन की दर को व्यक्त करता है।
1. गणनावाचक विश्लेषण
(Cardinal Analysis)
2. क्रमवाचक विश्लेषण (Ordinal
Analysis)
1. सम सीमान्त नियम इस मान्यता पर आधारित है कि उपभोक्ता को वैकल्पिक पसन्द की पूर्ण जानकारी होती है। वास्तविकता में उपभोक्ता दूसरे वैकल्पिक चयन के बारे में अनभिज्ञ होता है।
2. इस नियम में सभी वस्तुओं को विभाज्य माना है जबकि वास्तविकता में मकान अथवा कार जैसी वस्तुएँ अभाज्य होती हैं।
1. तटस्थता वक्र का ढाल ऋणात्मक होता है।
2. दो तटस्थता वक्र एक-दूसरे को काटते नहीं हैं।
1. जब किसी वस्तु की कीमत में परिवर्तन हो जाए।
2. जब उपभोक्ता की आय परिवर्तित हो जाए।
1. के स्थान पर वस्तु
2. का प्रतिस्थापन करता है तथा उसके प्रति उदासीन
(Neutral) रहता है, प्रतिस्थापन की सीमांत दर कहलाती है।
1. उपयोगिता व्यक्तिगत होती है, वस्तुगत नहीं।
2. उपयोगिता आवश्यकता द्वारा उत्पन्न होती है।
3. उपयोगिता सापेक्षिक होती है।
2. क्रमवाचक विश्लेषण (Ordinal Analysis) विधि – इस विधि के अनुसार उपयोगिता को इकाइयों में मापा नहीं जा | सकता है। इसको अधिक से अधिक क्रम के रूप में दिया जा सकता है या उच्च या निम्न के आधार पर इसकी तुलना की जा सकती है।
1. उपभोक्ता विवेकशील है तथा वह विभिन्न वस्तुओं से प्राप्त उपयोगिता की तुलना करता है, उनकी गणना करता है और उनके मध्य चुनाव करता है।
2. उपभोक्ता अपनी उपयोगिता को अधिकतम करता है।
3. उपयोगिता को मुद्रा के रूप में मापा जाता है।
4. मुद्रा की सीमान्त उपयोगिता स्थिर मानी जाती है।
इन्हें निम्नलिखित तालिका से स्पष्ट समझा जा सकता है
प्रश्न 43. एक उपभोक्ता की सीमान्त उपयोगिता सारणी से कुल उपयोगिता सारणी बनाइये।
उत्तर:
प्रश्न 44. वस्तु X की कुल उपयोगिता के आधार पर सीमान्त उपयोगिता ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
उपरोक्त तालिका से स्पष्ट होता है कि जब कुल उपयोगिता बढ़ती है तो सीमान्त उपयोगिता धनात्मक होती है। जब कुल उपयोगिता घटती है तो सीमान्त उपयोगिता ऋणात्मक होती है। जब कुल उपयोगिता अधिकतम होती है और यह पूर्ण सन्तुष्टि के बाद घटना प्रारम्भ हो जाती है जबकि सीमान्त उपयोगिता प्रारम्भ से ही घटना प्रारम्भ हो जाती है।
मार्शल के अनुसार, “एक वस्तु के स्टॉक में वृद्धि होने से व्यक्ति को जो अतिरिक्त संतुष्टि प्राप्त होती है वह भण्डार में हुई प्रत्येक वृद्धि से कम होती जाती है।”
प्रश्न 48. सम सीमान्त उपयोगिता नियम के महत्व को समझाइये।
उत्तर: सम सीमान्त उपयोगिता नियम का प्रयोग व्यापक है, इस नियम का प्रयोग विनिमय, वितरण, सार्वजनिक क्षेत्र में भी किया जाता है बचत और उपभोग के मध्य निर्णय भी इस नियम के प्रयोग द्वारा किया जाता है और अपने सीमित साधन से उत्पादन को अधिकतम करने में इस नियम को प्रयोग में लाया जाता है। ऐसा करने पर प्रति इकाई लागत में कमी आती है।
विशेषताएँ –
1. इसका ढाल ऋणात्मक होता है।
2. यह मूल बिन्दु के प्रति उन्नतोदर होते हैं।
3. प्रत्येक ऊँचा अधिमान वक्र अधिक संतुष्टि व्यक्त करता है।
4. दो अधिमान वक्र एक-दूसरे को नहीं काट सकते।
उपरोक्त ग्राफ से स्पष्ट है कि बजट रेखा ऊपर Y – अक्ष की ओर खिसक जायेगी लेकिन X अक्ष पर उसी बिन्दु पर स्थिर रहेगी।
JCERT/JAC REFERENCE BOOK
विषय सूची
अध्याय
व्यष्टि अर्थशास्त्र
समष्टि अर्थशास्त्र
अध्याय 1
अध्याय 2
अध्याय 3
अध्याय 4
अध्याय 5
अध्याय 6
अध्याय | व्यष्टि अर्थशास्त्र | समष्टि अर्थशास्त्र |
अध्याय 1 | ||
अध्याय 2 | ||
अध्याय 3 | ||
अध्याय 4 | ||
अध्याय 5 | ||
अध्याय 6 |
JCERT/JAC प्रश्न बैंक - सह - उत्तर पुस्तक (Question Bank-Cum-Answer Book)
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व्यष्टि अर्थशास्त्र
समष्टि अर्थशास्त्र
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Solved Paper 2023
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अध्याय 2 | ||
अध्याय 3 | ||
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Solved Paper 2023 |
Economics Group-A
1. व्यष्टि अर्थशास्त्र परिचय (Micro Economics Introduction)
2. उपभोक्ता का संतुलन (Consumer's Equilibrium)
3. उपभोक्ता व्यवहार एवं माँग (Consumer Behavior and Demand)
4. उपभोग फलन (Consumption Function)
5. उत्पादक व्यवहार एवं पूर्ति (Consumer Behavior and Supply)
6. मांग की अवधारणा (Concept of Demand)
7. मांग की कीमत लोच (Price Elasticity of Demand)
8 पूर्ति की अवधारणा (Concept of Supply)
9. उत्पादन फलन (Production Function)
10. उत्पादन की अवधारणा (Concept of Production Function)
11. लागत की अवधारणा (Concepts of Cost)
12. फर्म का संतुलन (Firm’s Equilibrium)
13. आगम की अवधारणा (Concepts of Revenue)
14. बाजार सन्तुलन (Market Equilibrium)
15. बाजार के स्वरूप (प्रकार) एवं मूल्य निर्धारण (Forms of Market and Price Determination)
16. बाजार के अन्य स्वरूप (Other Forms of Markets)
17 पूर्ण प्रतियोगी बाजार (Perfect Competition Markets)
Economics Group-B
समष्टि अर्थशास्त्र का परिचय (Introduction to Macroeconomics)
राष्ट्रीय आय का लेखांकन (Accounting of National Income)
मुद्रा और बैंकिंग (Money and Banking)
1.राष्ट्रीय आय(National Income)
2.राष्ट्रीय आय (National Income)
3. राष्ट्रीय आय से सम्बन्धित समुच्चय (Aggregates related to national income)
4. राष्ट्रीय आय का मापन (National Income Measurement)
5. आय एवं रोजगार का निर्धारण (Determination of Income And Employment)
6. मुद्रा एवं बैंकिंग (Money and Banking)
7. केन्द्रीय बैंक: कार्य एवं साख नियन्त्रण (Central Bank: Functions & Credit Control)
8. मुद्राः अर्थ, कार्य एवं महत्त्व (Money: Meaning, Functions and Importance)
9. भुगतान संतुलन (Balance of Payment)
10. सरकारी बजट एवं अर्थव्यवस्था (Government Budget and The Economy)
11. Government_Budget_And_Economy
12. Commercial-Banks (व्यापारिक बैंकः अर्थ एवं कार्य)
13. Concepts-of-Excess-Deficient-Demand(अधिमाँग एवं न्यून माँग अवधारणा )
14, Income-Production-Determination(आय-उत्पादन का निर्धारण )