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मांग की कीमत लोंच के प्रकार Video Link
लोंच को प्रभावित करने वाले कारक Video Link
कीमत लोंच और मांग की लोंच में अन्तर Video Link
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
1. कुल व्यय विधि ,2. प्रतिशत या आनुपातिक विधि, 3. ज्यामितीय या बिन्दु विधि।
1. वस्तु की प्रकृति, 2. वस्तु के विभिन्न प्रयोग।
1. लोचदार मांग, 2. ऐकिक मांग की लोच, 3. बेलोचदार मांग।
लघु उत्तरीय प्रश्न
1. पूर्णतया लोचदार (ed = ∞)
2. लोचदार (ed >
1)
3. इकाई के बराबर लोचदार (ed = 1)
4. बेलोचदार (ed <
1)
5. शून्य लोचदार (ed = 0)
चित्र से स्पष्ट है कि कीमत में परिवर्तन PP1 के बराबर हुआ है। लेकिन मांग में परिवर्तन उससे कम QQ1 के बराबर ही हुआ है। यह बेलोचदार मांग की स्थिति है।
चित्र से स्पष्ट है कि कीमत में परिवर्तन PP1 से वस्तु की मांग में परिवर्तन QQ1 ज्यादा है। अतः वस्तु की मांग अधिक लोचदार है।
लोचदार मांग की स्थिति तब होती है जब मांग में आनुपातिक परिवर्तन कीमत के आनुपातिक परिवर्तन के बराबर होता है। ऐसी अवस्था में मांग की लोच इकाई के बराबर होती है। उदाहरण के लिए यदि कीमत में 20 प्रतिशत वृद्धि होने पर मांग में 20 प्रतिशत हैं । कमी हो जाये तो ऐसी वस्तु की मांग लोचदार मांग कहलायेगी। यह स्थिति चित्र में दर्शायी गई है –
चित्र को देखने से स्पष्ट है कि OP कीमत पर मांग OQ है। जब कीमत बढ़कर OP1 हो जाती है तो वस्तु की मांग घटकर OQ1 रह जाती है। चित्र में कीमत में परिवर्तन मांग की मात्रा PP1 मांग में परिवर्तन OQ1 के बराबर है। अतः मांग में कमी उसी अनुपात में है जिस अनुपात में कीमत में वृद्धि हुई है।
प्रायः आरामदायक वस्तुओं की मांग लोचदार होती है।
जब वस्तु की कीमत में परिवर्तन होने पर भी वस्तु की मांग अपरिवर्तित रहती है तो ऐसी वस्तु की मांग को पूर्णतया बेलोचदार मांग कहते हैं। इस अवस्था में मांग की लोच शून्य होती है। इस दशा में मांग वक्र Y अक्ष के समानान्तर होता है। इस Pi स्थिति को रेखाचित्र में दिखाया गया है
उपरोक्त चित्र में कीमत OP,OP1 तथा OP2 तीनों अवस्थाओं में वस्तु की मांग समान OQ ही रहती है, उसमें कोई परिवर्तन नहीं होता है। यह मांग की शून्य लोच की स्थिति है।
यह स्थिति कोरी कल्पना है। वास्तविक जीवन में देखने को नहीं मिलती है।
यदि दोनों हिस्से बराबर होते हैं तो मांग की लोच इकाई के बराबर होती है। यदि नीचे का हिस्सा ऊपर के हिस्से से ज्यादा होता है तो मांग की लोच इकाई से ज्यादा होती है तथा नीचे का हिस्सा ऊपर के हिस्से से कम होने पर मांग की लोच इकाई से कम होती है। इन तीनों स्थितियों को रेखाचित्र में दिखाया गया है-
इस चित्र में R बिन्दु पर मांग की लोच इकाई के बराबर है माना R बिन्दु से नीचे का हिस्सा तथा ऊपर का हिस्सा दोनों बराबर हैं। S बिन्दु पर मांग की कीमत इकाई से अधिक है क्योंकि S बिन्दु से नीचे का हिस्सा ऊपर के हिस्से से ज्यादा है। इसके विपरीत T बिन्दु पर मांग की लोच इकाई से कम होगी क्योंकि नीचे का हिस्सा ऊपर के हिस्से से कम है।
यदि मांग वक्र एक सीधी रेखा न होकर वक्र की आकृति में होती है तो जिस बिन्दु मांग की मात्रा पर मांग की लोच ज्ञात करनी होती है उस बिन्दु से स्पर्श रेखा खींच कर उपरोक्त विधि से मांग की लोच ज्ञात कर लेते हैं।
1. यदि कीमत में कमी से कुल व्यय बढ़ता है या कीमत में वृद्धि से कुल व्यय घटता है तो मांग अधिक लोचदार अर्थात् इकाई से अधिक कहलाती है।
2. यदि कीमत परिवर्तन से कुल व्यय अपरिवर्तित रहता है तो मांग की लोच इकाई के बराबर होती है।
3. यदि कीमत में कमी से कुल व्यय घट जाता है तथा कीमत बढ़ने से कुल व्यय बढ़ जाता है तो मांग की लोच इकाई से कम होती है।
2. उपभोक्ता की आदत – जिन वस्तुओं के उपभोक्ता आदी हो जाते हैं, उनकी मांग बेलोचदार होती है, जैसे सिगरेट, बीड़ी आदि।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
1. पूर्णतया लोचदार मांग
(Perfectly elastic demand)
2. लोचदार मांग (Elastic
demand)
3. अत्यधिक लोचदार मांग (Higly
elastic demand)
4. बेलोचदार मांग
(Inelastic demand)
5. पूर्णतया बेलोचदार मांग
(Perfectly inelastic demand)
1. पूर्णतया लोचदार मांग (Perfectly elastic demand) [ed = ∞] – पूर्णतया लोचदार मांग की अवस्था वह होती है जिसमें वस्तु की प्रचलित कीमतों पर मांग अनन्त होती है। इस अवस्था में कीमत में जरा सी वृद्धि मांग को शून्य तथा कमी मांग को अनन्त कर देती है। यह एक काल्पनिक स्थिति है। वास्तविक जीवन में ऐसी स्थिति देखने की नहीं मिलती है। इस अवस्था में एक फर्म का मांग वक्र पूर्णतया लोचदार होता है और वह आधार रेखा के समानान्तर होता है। जैसा कि निम्न चित्र से स्पष्ट है-
चित्र से स्पष्ट है कि OP कीमत पर वस्तु की मात्रा कुछ भी हो सकती है जैसे – OQ, Q1 या Q2 या इससे कुछ भिन्न।
2. लोचदार मांग (Elastic demand) [ed = 1 ] – लोचदार मांग की स्थिति तब होती है जब मांग में आनुपातिक परिवर्तन कीमत के आनुपातिक परिवर्तन के बराबर होता है। ऐसी अवस्था में मांग की लोच इकाई के बराबर होती है। उदाहरण के लिए यदि कीमत में 20 प्रतिशत वृद्धि होने पर मांग में 20 प्रतिशत कमी हो जाय तो किसी वस्तु की ऐसी मांग लोचदार मांग कहलायेगी। यह स्थिति निम्न चित्र में दर्शायी गई है-
चित्र को देखने से स्पष्ट है कि OP कीमत पर मांग OQ है। जब कीमत बढ़कर OP1 हो जाती है तो वस्तु की मांग घटकर OQ1 रह जाती है। X चित्र में कीमत में परिवर्तन PP1 मांग में परिवर्तन QQ1 के बराबर है। मांग की मात्रा अत: मांग में कमी उसी अनुपात में है जिस अनुपात में कीमत में वृद्धि हुई। है। प्रायः आरामदायक वस्तुओं की मांग लोचदार होती है।
3. सापेक्षतया लोचदार या अत्यधिक लोचदार मांग (Highly elastic demand) [ed > 1] – अत्यधिक या अधिक लोचदार माँग की अवस्था में मांग की मात्रा में प्रतिशत परिवर्तन कीमत के प्रतिशत परिवर्तन से ज्यादा होता है। जैसे – यदि वस्तु की मांग में हैं – परिवर्तन 25 प्रतिशत से ज्यादा होता हो और कीमत में परिवर्तन केवल 10 प्रतिशत हो तो ऐसी वस्तु की मांग अधिक लोचदार कही जायेगी। आमतौर से विलासपूर्ण वस्तुओं की मांग की लोच ऐसी ही होती है। इस श्रेणी की मांग की लोच को निम्न रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट किया गया है –
रेखाचित्र में OP कीमत पर वस्तु की मांग OQ है। जब कीमत गिरकर OP1 हो जाती है तो वस्तु की मांग बढ़कर QQ1 हो जाती है। कीमत की कमी PP1 से मांग की मात्रा में वृद्धि QQ1 ज्यादा है। अत: वस्तु की मांग अधिक लोचदार है। मांग की लोच इकाई से ज्यादा है।
4. बेलोचदार मांग (In elastic demand) [ed<1] – जब किसी वस्तु की मांगी जाने वाली मात्रा में प्रतिशत परिवर्तन कीमत में होने वाले प्रतिशत परिवर्तन से कम होता है तो ऐसी मांग को बेलोचदार मांग कहते हैं। उदाहरण के लिए यदि वस्तु की कीमत 30 प्रतिशत कम हो और मांग में केवल 10 प्रतिशत वद्धि हो तो इसे बेलोचदार मांग कहेंगे। इस अवस्था में मांग की कीमत लोच इकाई से कम होती है।
इस स्थिति को निम्न चित्र द्वारा स्पष्ट किया गया है –
उपरोक्त चित्र में DD मात्र वक्र है। जब वस्तु की कीमत OP है तथा वस्तु की मांग OQ है। जब वस्तु की कीमत OP1 से घटकर OQ1 हो जाती है तो वस्तु की मांग बढ़कर OQ1 हो जाती है। कीमत में परिवर्तन PP1 की तुलना में मांग में परिवर्तन OQ1 कम है। अतः मांग बेलोचदार कही जायेगी।
5. शून्य लोच या पूर्णतया बेलोचदार मांग (Perfectly ‘inelastic demand) [ed = 0] – जब वस्तु की कीमत परिवर्तन होने पर भी वस्तु की मांग अपरिवर्तित रहती है तो ऐसी मांग को पूर्णतया बेलोचदार मांग कहते हैं। इस अवस्था में मांग की लोच हैं PI शून्य होती है। इस दशा में मांग वक्र Y-अक्ष के समानान्तर होता है। इस स्थिति को निम्न रेखाचित्र में दिखाया गया है –
1. आनुपातिक या प्रतिशत विधि
(Percentage method)
2. कुल व्यय विधि (Total
Expenditure Method)
3. ज्यामिति अथवा बिन्दु
(Geometric or point method)
1. आनुपातिक या प्रतिशत विधि- इस रीति का प्रतिपादन फ्लक्स द्वारा किया गया है। इस विधि के अनुसार मांग की लोच निकालने के लिए मांग में होने वाले आनुपातिक या प्रतिशत परिवर्तन को, कीमत के आनुपातिक या प्रतिशत परिवर्तन द्वारा भाग दिया जाता है। इसका सूत्र निम्न प्रकार है –
उदाहरण – माना कि सेब की कीमत के ₹100 प्रति किग्री होने पर सेब की मांग 200 किग्रा है। यदि सेब की कीमत घटकर ₹80 प्रति किग्रा हो जाती है। और इसके फलस्वरूप सेब की मांग बढ़कर 250 किग्रा हो जाती है तो मांग की कीमत लोच इस प्रकार निकाली जायेगी।
इस प्रकार सेब की मांग की कीमत लोच इकाई से अधिक है।
2. कुल व्यय विधि- इस रीति का प्रतिपादन अर्थशास्त्री मार्शल के द्वारा किया गया था। यह मांग की लोच को मापने की सबसे सरल विधि है। इस विधि में कीमत में परिवर्तन के कारण कुल खर्च में होने वाले परिवर्तन के आधार पर मांग की कीमत लोच मापी जाती है। मार्शल के अनुसार मांग की कीमत लोच तीन प्रकार की होती है – (i) इकाई के बराबर, (ii) इकाई से अधिक तथा (iii) इकाई से कम।
जब कुल व्यय कीमत परिवर्तन के बाद भी समान रहता है तो मांग की लोच इकाई के बराबर होती है। यदि कीमत परिवर्तन के बाद कुल व्यय पहले से कम हो जाता है तो मांग की लोच इकाई से कम तथा कुल व्यय पहले से ज्यादा होने पर इकाई से अधिक मानी जाती है।
(i) मांग की लोच इकाई के बराबर (ed = 1) – जब कीमत में परिवर्तन होने के पश्चात भी कुल व्यय पूर्ववत रहता है तो मांग की कीमत लोच इकाई के बराबर मानी जाती है। इसे निम्न उदाहरण द्वारा और स्पष्ट किया जा सकता है –
उपरोक्त तालिका से स्पष्ट है कि जब कीमत के ₹10 प्रति इकाई थी तो कुल व्यय ₹200 था। कीमत कम होकर ₹8 व ₹4 हो जाती है तो भी कुल व्यय ₹200 ही रहता है। कुल व्यय समान रहता है। अतः मांग की लोच इकाई के बराबर अर्थात् e = 1 है।
(ii) मांग की लोच इकाई से अधिक (ed > 1) – यदि वस्तु की कीमत में कमी होने से कुल व्यय बढ़ता है अथवा कीमत में वृद्धि होने पर कुल व्यय घटता है तो मांग अधिक लोचदार अर्थात् इकाई से अधिक कहलाती है। यह निम्न उदाहरण से और स्पष्ट हो जाता है –
उपरोक्त तालिका से स्पष्ट है कि जैसे-जैसे कीमत घटती जाती है कुल व्यय बढ़ता जाता है। इसको दूसरे रूप में भी देख सकते है कि जैसे-जैसे कीमत बढ़ती जाती है तो कुल व्यय घटता जाता है। अतः इस अवस्था में मांग की कीमत लोच इकाई से ज्यादा है।
(iii) मांग की लोच इकाई से कम (ed < 1) – यदि वस्तु की कीमत में कमी होने पर कुल व्यय कम हो जाता है तथा वस्तु की कीमत बढ़ने पर कुल व्यय बढ़ जाता है तो मांग की लोच इकाई से कम मानी जाती है। इस स्थिति को निम्न तालिका से दर्शाया गया है –
उपरोक्त सारणी से स्पष्ट है कि जैसे-जैसे वस्तु की कीमत में कमी आती है कुल व्यय की राशि भी घटती जाती है। ₹10. कीमत पर कुल व्यय के ₹200 था जो ₹8 व ₹4 कीमत होने पर क्रमशः घटकरे ₹192 व ₹160 हो गया। अतः यहाँ मांग की लोच इकाई से कम है।
यदि दोनों हिस्से बराबर होते हैं तो मांग की लोच इकाई के बराबर होती है। यदि नीचे का हिस्सा ऊपर के हिस्से से ज्यादा होता है तो मांग की लोच इकाई से ज्यादा होती है तथा नीचे का हिस्सा ऊपर के हिस्से से कम होने पर मांग की लोच ईकाई से कम होती है। इन तीनों स्थितियों को निम्न रेखाचित्र में दिखाया गया है-
इस चित्र में R बिन्दु पर मांग की लोच इकाई के बराबर है क्योंकि R बिन्दु से नीचे का है। हिस्सा तथा ऊपर का हिस्सा दोनों बराबर हैं। S बिन्दु पर मांग की लोच इकाई से अधिक है। क्योकि S बिन्दु से नीचे का हिस्सा ऊपर के हिस्से से ज्यादा है। इसके विपरीत T बिन्दु पर। मांग की लोच इकाई से कम होगी क्योंकि नीचे का हिस्सा ऊपर के हिस्से से कम है। यदि मांग वक्र एक सीधी रेखा न होकर वक्र की आकृति में होती है तो जिस बिन्दु पर मांग की लोच ज्ञात करनी होती है उस बिन्दु से स्पर्श रेखा खींच कर उपरोक्त विधि से मांग की लोच ज्ञात कर लेते हैं।
1. वस्तु की प्रकृति- वस्तु की प्रकृति मांग की लोच को प्रभावित करती है। आवश्यक आवश्यकता की वस्तुओं की मांग बेलोच होती है जबकि आरामदायक आवश्यकता की वस्तुओं की मांग लोचदार होती है। विलासिता की वस्तुओं की मांग अधिक लोचदार होती है। आवश्यक आवश्यकता की वस्तुओं; जैसे–अनाज, नमक आदि की मांग में कीमत परिवर्तन के कारण ज्यादा बदलाव नहीं होता है जबकि विलासिता की वस्तुओं की मांग में बहुत परिवर्तन हो जाता है। आरामदायक आवश्यकता की वस्तुओं की मांग प्रायः आनुपातिक रूप से बदलती है।
2. स्थानापन्न वस्तुओं की उपलब्धता– यदि किसी वस्तु की स्थानापन्न वस्तु है तो उसकी मांग लोचदार होगी क्योंकि कीमत बढ़ने पर लोग स्थानापन्न वस्तु का प्रयोग बढ़ा देंगे।
3. वस्तु के वैकल्पिक प्रयोग- जिन वस्तुओं का प्रयोग अनेक कार्यों में किया जाता है उन वस्तुओं की मांग लोचदार होती है; जैसे—बिजली की मांग। यदि बिजली सस्ती हो जाती है तो उपभोक्ता इसका प्रयोग विभिन्न कार्यों में करने लगेंगे और इसकी मांग तेजी से बढ़ जायेगी।
5. धन का वितरण– यदि समाज में धन का वितरण समान होता है तो सभी लोगों की आय लगभग समान होती है। ऐसी स्थिति में आवश्यक आवश्यकता एवं आरामदायक आवश्यकता की वस्तुओं की ही मांग ज्यादा होती है, विलासिता की वस्तुओं की मांग ज्यादा नहीं होती है। ऐसी अवस्था में मांग लोचदार होती है। धन का वितरण असमान होने पर मांग बेलोचदार होती है।
6. उपभोग स्थगन की संभावना— जिन वस्तुओं का उपभोग कुछ समय के लिए टाला जा सकता है ऐसी वस्तुओं की मांग लोचदार होती है; जैसे-रेडियो, साइकिल, घड़ी आदि। जिन वस्तुओं के उपभोग को टालना सम्भव नहीं होता है। उनकी मांग बेलोचदार होती है जैसे-रोटी, कपड़ा आदि।
8. समयावधि- वस्तुओं की मांग अल्पकाल में बेलेचदार होती है जबकि दीर्घकाल में लोचदार होती है क्योंकि दीर्घकाल में उपभोक्ता मांग में परिवर्तन कर सकता है।
9. क्रेता आय-वर्ग- मांग की लोच इस बात पर भी निर्भर करती है कि क्रेता किस वर्ग का है। धनी वर्ग के क्रेताओं की मांग प्रायः बेलोचदार होती है क्योंकि कीमतों में परिवर्तन का उन पर ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ता है। इसके विपरीत निर्धन लोगों के लिए वस्तुओं की मांग लोचदार होती है क्योंकि यह वर्ग कीमत में परिवर्तन के साथ मांग को घटाता-बढ़ाता है।
10. संयुक्त मांग- संयुक्त रूप से मांगी जाने वाली वस्तुओं की मांग बेलोचदार होती है; जैसे – पैन व स्याही, चाय व चीनी आदि। यदि चाय की मांग में कोई गिरावट नहीं होती है तो चीनी महंगी होने पर भी उसकी मांग कम नहीं होगी।
मांग की लोच की प्रमुख परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं –
1. प्रो. ईस्थम के शब्दों में, “मांग की लोच’, कीमत में होने वाले परिवर्तनों के फलस्वरूप मांग की मात्रा में होने वाले परिवर्तन की एक माप है।”
2. प्रो. केयर्न क्रास के अनुसार, “किसी वस्तु की मांग की लोच वह दर है जिस पर खरीदी जाने वाली मात्रा कीमत परिवर्तनों के परिणामस्वरूप बदलती है।”
3. मार्शल के अनुसार, “बाजार में मांग की लोच को कम या अधिक होना इस बात पर निर्भर करता है कि एक निश्चित मात्रा में कीमत के घट जाने पर मांग की मात्रा में अधिक वृद्धि होती है या कम तथा एक निश्चित मात्रा में कीमत के बढ़ जाने पर मांग की मात्रा में अधिक कमी आती है या कम।”
4. श्रीमती जॉन रोबिन्सन के अनुसार, “मांग की लोच कीमत में मामूली परिवर्तन के परिणामस्वरूप खरीदी जाने वाली मात्रा में होने वाले आनुपातिक परिवर्तन को, कीमत के आनुपातिक परिवर्तन से भाग देने पर प्राप्त होती है।”
मांग के नियम एवं मांग की लोच में अन्तर – मांग का नियम कीमत तथा मांग के बीच के सम्बंध का गुणात्मक कथन है जो हमें केवल इस बात का ज्ञान कराता है कि वस्तु की कीमत में परिवर्तन होने पर मांग के परिवर्तन किस दिशा में होंगे। यह नियम यह नहीं स्पष्ट करता है कि कीमत के परिवर्तन के फलस्वरूप मांग की मात्रा में किस दर से परिवर्तन होंगे। मांग का नियम यह तो बताता है कि कीमत घटने पर मांग बढ़ेगी तथा कीमत बढ़ने पर मांग घटेगी लेकिन कितनी बढ़ेगी या घटेगी, इस बात का उत्तर मांग का नियम नहीं देता है।
मांग की लोच की व्याख्या मांग के नियम की इसी कमी को दूर करती है। मांग की लोच कीमत एवं मांग के बीच परिवर्तन का मात्रात्मक माप है।
मांग की लोच इकाई के बराबर है।
1. मांग की ज्यामिति विधि – जब मांग वक्र दिया होता है तथा उस मांग वक्र के किसी बिन्दु पर मांग की लोच ज्ञात करनी होती है। | तो ज्यामिति विधि का प्रयोग करके मांग की लोच ज्ञात की जा सकती है। इसे निम्न उदाहरण द्वारा स्पष्ट किया गया है-
वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 3. ज्यामिति विधि से मांग की लोच का सूत्र है –
प्रश्न 5. बिन्दु विधि में बिन्दु P पर मांग की लोच होगी।