लघु उत्तरीय
प्रश्न
उपरोक्त तालिका एवं रेखाचित्र से
स्पष्ट हो रहा है कि वस्तु ‘A’ की ₹6 प्रति इकाई मूल्य पर पूर्ति = माँग = 200 इकाइयाँ हैं, अतः यही सन्तुलन की स्थिति है।
रेखाचित्र में DD माँग वक्र दायीं ओर शिफ्ट होकर D1D1 पर तथा SS पूर्ति वक्र दायीं ओर शिफ्ट होकर S1S1 पर पहुँचकर समान वृद्धि को दर्शा रहे हैं क्योंकि यहाँ माँग व पूर्ति में समान अनुपात में परिवर्तन हुआ है। अतः सन्तुलन कीमत P स्थिर है।
रेखाचित्र से
स्पष्ट है कि जब माँग वक्र दायीं ओर शिफ्ट होकर D1D1 पर पहुँच रहा है तो कीमत में PP1 तथा मात्रा में qq1 की वृद्धि हो रही है और जब माँग वक्र बायीं ओर शिफ्ट होकर D2D2 पर पहुँच रहा है तो कीमत में PP2 तथा मात्रा में qq72 की कमी हो रही है।
रेखाचित्र से स्पष्ट है कि श्रम का माँग वक्र बायीं ओर नीचे झुकता चला जाता है। यह इस बात का प्रतीक है कि मजदूरी दर के अधिक होने पर श्रम की माँग कम हो जाती है तथा मजदूरी दर कम होने पर श्रम की माँग अधिक हो जाती है।
रेखाचित्र में SS श्रम का
पूर्ति वक्र है जो E बिन्दु के बाद बायें पीछे की ओर झुकता हुआ दिखाई दे रहा है क्योंकि जब श्रमिक की मजदूरी दर OW थी तब वह OL घण्टे कार्य कर रहा था, लेकिन जब मजदूरी में वृद्धि होकर OW1 हो गई तो वह आय प्रभाव के कारण अधिक आराम करने लगा तथा कार्य के घण्टे कम होकर OL1 हो गये।
रेखाचित्र में SS पूर्ति तथा DD माँग वक्र है। P सन्तुलन कीमत तथा q सन्तुलन मात्रा। सरकार द्वारा सन्तुलित कीमत से
नीचे मूल्य निर्धारित कर दिए जाने पर P1 नियन्त्रित कीमत को दिखाता है अर्थात् यहाँ OP से OP1 कीमत कम की गयी है।
रेखाचित्र में SS पूर्ति वक्र तथा DD माँग वक्र है,
OP सन्तुलन कीमत है तथा Oq सन्तुलन मात्रा। सरकार द्वारा सन्तुलन कीमत के ऊपर मूल्य निर्धारित कर दिए जाने से यह OP1 समर्थन मूल्य को दिखाता है। यहाँ OP से PP1 कीमत बढ़ायी गयी है।
उपरोक्त रेखाचित्र में SS बाजार पूर्ति वक्र, DD बाजार माँग वक्र, A सन्तुलन बिन्दु, OP सन्तुलन कीमत, OP1 बाजार कीमत तथा BC अधिमाँग को
प्रदर्शित कर रहे हैं।
उपरोक्त रेखाचित्र में SS पूर्ति वक्र, DD माँग वक्र, A सन्तुलन बिन्दु, OP सन्तुलन कीमत, OP1 बाजार कीमत तथा BC अधिपूर्ति को
प्रदर्शित कर रहे हैं।
(ii)
यदि बाजार में प्रचलित मूल्य सन्तुलन कीमत से कम हो तो कुल बाजार माँग में वृद्धि होगी तथा कुल बाजार पूर्ति में कमी हो जायेगी। अत: बाजार में प्रचलित मूल्य सन्तुलन कीमत से कम हो जाये तो बाजार में अधिमाँग की स्थिति उत्पन्न हो जायेगी।
उपर्युक्त तालिका से
स्पष्ट है कि बाजार में जब कीमत 1,300 प्रति क्विंटल है तब गेहूं की पूर्ति एवं माँग दोनों ही बराबर अर्थात् 500 क्विंटल है। अर्थात् यह कहा जा सकता है कि सन्तुलन मात्रा = सन्तुलन पूर्ति = 500 क्विंटल तथा सन्तुलन कीमत ₹1300 प्रति क्विंटल है।
उपरोक्त चित्र में DD बाजार माँग वक्र, SS बाजार पूर्ति वक्र, C सन्तुलन बिन्दु, OP0 सन्तुलन कीमत, Oq0 सन्तुलित मात्रा, AB, P1 कीमत पर
अधिपूर्ति, FE, P2 कीमत पर अधिमाँग को प्रदर्शित कर रहे हैं।
माना कि
वस्तु (गेहूँ) की कीमत OP1 है क्योंकि यह सन्तुलन कीमत से अधिक है इसलिए इस कीमत पर उत्पादक अधिक उत्पादन करना प्रारम्भ कर देंगे तथा दूसरी तरफ उपभोक्ता वस्तु की कम मात्रा क्रय करेंगे। इससे बाजार में पूर्ति आधिक्य की स्थिति पैदा हो जायेगी। जैसा कि रेखाचित्र में दिखाया गया है कि बाजार पूर्ति P1B है जबकि माँग P1A है। अत: AB के बराबर अधिपूर्ति की स्थिति है। इस स्थिति में उत्पादकों में अपनी वस्तु को बेचने के लिए प्रतिस्पर्धा होगी तथा वे कीमत को कम करके OP0 तक ले आयेंगे।
अत:
OP0 ही
हमारी सन्तुलन कीमत होगी। इसके विपरीत माना कि वस्तु की बाजार कीमत OP2 है जो सन्तुलन कीमत से कम है। अत: इस कीमत पर उपभोक्ता वस्तु की अधिक मात्रा की माँग करेंगे तथा दूसरी ओर उत्पादक लाभ कम होने के कारण उत्पादन में कमी लायेंगे। इससे बाजार में अधिमाँग की स्थिति पैदा होगी। इस स्थिति में उत्पादक वस्तु की कीमत में वृद्धि कर देंगे तथा उपभोक्ता वस्तु की ज्यादा कीमत देने को तैयार होंगे। अत: कीमत सन्तुलन स्थापित हो जायेगा। जैसा कि रेखाचित्र में दर्शाया गया है। OP2 कीमत पर बाजार माँग P2E है तथा बाजार पूर्ति P2F है। अतः यहाँ FE के बराबर अधिमाँग की स्थिति है। इस स्थिति में उपभोक्ताओं में वस्तु को खरीदने की प्रतिस्पर्धा होगी तथा वे कीमत को बढ़ाकर OP0 तक ले आयेंगे। इस तरह OP0 ही हमारी सन्तुलन कीमत होगी।
रेखाचित्र में OP सन्तुलन कीमत, DD माँग वक्र, E सन्तुलन बिन्दु तथा Oq सन्तुलन मात्रा को
प्रदर्शित करता है। चित्र से स्पष्ट है कि कीमत रेखा P को माँग वक्र DD, E बिन्दु पर प्रतिच्छेदित कर रहा है। अत: Oq सन्तुलन मात्रा होगी।
(ii)
जब बाजार में फर्मों की संख्या या पूर्ति स्थिर रहे तथा उपभोक्ता की आय में कमी हो जाती है तो उसके द्वारा माँगी जाने वाली वस्तु की मात्रा में कमी हो जायेगी। इससे माँग वक्र बायीं ओर खिसक जायेगा। इसके परिणामस्वरूप सन्तुलन कीमत में कमी होगी तथा सन्तुलन मात्रा भी कम हो जायेगी।
रेखाचित्र में D0D0 तथा SS क्रमशः मूल बाजार माँग वक्र तथा पूर्ति वक्र हैं जो
बिन्दु A पर एक-दूसरे को काटते हैं, जहाँ Oq0 सन्तुलन मात्रा तथा OP0 सन्तुलन कीमत निर्धारित होती है। D1D1 आय में वृद्धि के बाद माँग वक्र, D2D2 आय में कमी के बाद माँग वक्र है। रेखाचित्र से स्पष्ट है कि जब आय में वृद्धि होती है तो नया माँग वक्र D1D1 बनता है तथा नया सन्तुलन बिन्दु B प्राप्त होता है जिस पर नई कीमत तथा मात्रा क्रमशः P1 तथा q1 है अर्थात् दोनों में वृद्धि हो रही है। जबकि आय में कमी होने पर नया माँग वक्र D2D2 हो जाता है तथा नया सन्तुलन बिन्दु C प्राप्त होता है जिस पर नई कीमत तथा मात्रा क्रमशः P2 तथा q2 है अर्थात् दोनों में कमी हो रही है। अतः इस प्रकार से हम यह कह सकते हैं कि सामान्य वस्तु (Normal Goods) के सन्दर्भ में उपभोक्ता (Consumer) की आय कम या ज्यादा होने पर वस्तु की कीमत तथा मात्रा दोनों में ही वृद्धि अथवा कमी हो जाती है।
उपरोक्त रेखाचित्र से
स्पष्ट है कि जुराबों की माँग q से q1 तक कम हो गई है तथा कीमत P से P1 तक कम हो गई है। जबकि माँग वक्र DD से D1D1 तक खिसक गया है।
उपरोक्त रेखाचित्रानुसार जब
कॉफी की कीमत बढ़करे P1 हो जाती है तो चाय की मांग बढ़कर q1 हो जाती है तथा जब कॉफी की कीमत कम होकर P2 पर आ जाती है तो चाय की माँग कम होकर q2 पर आ जाती है।
अब
यदि हम यह मान लें कि माँग तथा पूर्ति दोनों वक्र एक साथ बायीं ओर खिसकते हैं तो इस स्थिति में सन्तुलन मात्रा में कमी आयेगी लेकिन सन्तुलन कीमत में वृद्धि हो सकती है या कमी हो सकती है या अपरिवर्तित रह सकती है।
रेखाचित्र से
स्पष्ट है कि माँग वक्र तथा पूर्ति वक्र दोनों के दायीं ओर शिफ्ट करने पर सन्तुलन कीमत में वृद्धि होकर q1 तक पहुँच गई है जबकि सन्तुलन कीमत में परिवर्तन नहीं हुआ है। इसी प्रकार जब दोनों वक्र बायीं ओर शिफ्ट कर रहे हैं तो सन्तुलन मात्रा में कमी हो रही है तथा सन्तुलन कीमत अपरिवर्तित है।
श्रम बाजार तथा वस्तु बाजार में आधारभूत अन्तर उनके माँग तथा पूर्ति के
स्रोतों से है। वस्तु बाजार में वस्तु की माँग परिवारों द्वारा की जाती है जबकि पूर्ति उत्पादकों/फर्मों द्वारा की जाती है। लेकिन श्रम बाजार में श्रम की माँग उत्पादकों/फर्मों द्वारा की जाती है। जबकि पूर्ति परिवारों द्वारा की जाती है। वस्तु बाजार में वस्तु से तात्पर्य वस्तु की मात्रा से होता है जबकि श्रम बाजार में श्रम से तात्पर्य श्रमिक द्वारा कार्य करने के लिए दिए जाने वाले घण्टों से होता है न कि श्रमिकों की संख्या से।
एक पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाजार में सीमान्त आगम कीमत के बराबर होता है और कीमत सीमान्त उत्पाद के मूल्य (VMP) के बराबर होती है। अतः श्रम के चयन की इष्टतम मात्रा वह होती है जिस पर मजदूरी दर तथा सीमान्त उत्पाद के मूल्य समान होते हैं। दूसरे शब्दों में हम यह कह सकते हैं, कि श्रम की इष्टतम मात्रा वह होती है जिस पर श्रम की माँग, श्रम की पूर्ति के बराबर होती है। सूत्र – DL = DS
1.
अपार्टमेंट बनाने वालों को
कम कीमत मिलेगी। वे उत्पादन लागत कम करने हेतु घटिया सामग्री का प्रयोग करेंगे। अतः उपभोक्ताओं को घटिया अपार्टमेंट मिलेंगे।
2.
किराया नियन्त्रण से
अपार्टमेंट की माँग में वृद्धि होगी तथा पूर्ति में कमी आयेगी। अतः अपार्टमेंट प्राप्त करने हेतु एक लम्बी प्रतीक्षा सूची बन जायेगी।
1.
बाजार एक
ऐसा सम्पूर्ण क्षेत्र है जहाँ वस्तु के क्रेता तथा विक्रेता फैले रहते हैं।
2.
बाजार के
अन्तर्गत क्रेताओं तथा विक्रेताओं के मध्य किसी भी माध्यम से सम्पर्क का होना आवश्यक है।
3.
बाजार के
अन्तर्गत वस्तुओं, सेवाओं तथा साधनों का क्रय-विक्रय किया जा सकता है।
चित्रानुसार, पूर्ति में वृद्धि (S1S1) होने पर
कीमत में कमी होगी जबकि मात्रा में वृद्धि होगी तथा पूर्ति में कमी (S2S2) होने पर कीमत में वृद्धि तथा मात्रा में कमी आयेगी।
1.
उत्पादन की
लागतों में परिवर्तन होने पर पूर्ति भी परिवर्तित हो जाती है। लागत बढ़ने पर पूर्ति कम तथा लागत घटने पर पूर्ति अधिक हो जाती है।
2.
नये-नये आविष्कार होने से
वस्तु की पूर्ति प्रभावित होती है। नई प्रतिस्थापन वस्तु का प्रयोग बढ़ने से पुरानी वस्तु की पूर्ति में कमी आ जाती है।
3.
तकनीकी बदलाव वस्तु के
उत्पादन स्तर में परिवर्तन के द्वारा पूर्ति को प्रभावित करता है।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
चित्र में Ox अक्ष पर
वस्तु की मात्रा तथा Oy पर वस्तु की कीमत को दर्शाया गया है। सभी उपभोक्ताओं की माँग का योग बाजार माँग द्वारा व्यक्त किया गया है जिसमें OP कीमत पर वस्तु की O२ मात्रा बाजार माँग को व्यक्त करती है। वस्तु की कीमत के बढ़ने पर वस्तु की माँग कम हो जाती है। विभिन्न कीमत स्तरों पर वस्तु की माँग को दर्शाने वाला DD माँग वक्र बाजार माँग को व्यक्त करता है। माँग वक्र का ऋणात्मक ढाल बाजार में माँग की प्रवृत्ति को दर्शाता है।
रेखाचित्र की
व्याख्या – रेखाचित्र में Ox अक्ष पर वस्तु की माँग व पूर्ति तथा Oy अक्ष पर कीमत को दर्शाया गया है। माँग व पूर्ति का प्रारम्भिक साम्य E बिन्दु पर स्थापित हो जाता है। अत: OP कीमत तथा OQ साम्य मात्रा है। अन्य बातों के समान रहने पर वस्तु की माँग बढ़ने पर साम्य कीमत बढ़ जाती है तथा माँग घटने पर साम्य कीमत भी कम हो जाती है।
रेखाचित्र की
व्याख्या – उपरोक्त रेखाचित्र में Ox अक्ष पर वस्तु की माँग व पूर्ति दर्शायी गई है जबकि Oy अक्ष पर वस्तु की कीमत को दर्शाया गया है। DD वक्र माँग को व्यक्त करता है जबकि SS वक्र वस्तु की पूर्ति का वक्र है। माँग व पूर्ति वक्र दोनों एक-दूसरे को E बिन्दु पर काटते हैं। अत: वस्तु की कीमत OP निर्धारित हो जाती है वस्तु की निर्धारित OQ मात्रा साम्य कहलाती है। E बिन्दु पर निर्धारित कीमत ही साम्य कीमत है। जब वस्तु की कीमत ₹20 है तो इस कीमत पर माँग व पूर्ति दोनों बराबर-बराबर 15 इकाइयाँ हैं। अत:- E साम्य बिन्दु है जिस पर माँग व पूर्ति बराबर हो जाती है।
पूर्ति में परिवर्तन का
सन्तुलन पर प्रभाव –
1.
उत्पादन की
लागतों में परिवर्तन होने पर पूर्ति भी परिवर्तित हो जाती है। लागत बढ़ने पर पूर्ति कम तथा लागत घटने पर पूर्ति अधिक हो जाती है।
2.
नये-नये आविष्कार होने से
वस्तु की पूर्ति प्रभावित होती है। नई प्रतिस्थापन वस्तु का प्रयोग बढ़ने से पुरानी वस्तु की कीमत में कमी आ जाती है।
3.
तकनीकी बदलाव वस्तु के
उत्पादन स्तर में परिवर्तन के द्वारा पूर्ति को प्रभावित करता है।
4.
कच्चे माल के
नवीन स्रोत की खोज वस्तु की पूर्ति को बढ़ा देती है।
5.
उत्पादक के
दृष्टिकोण में परिवर्तन होने से पूर्ति पक्ष प्रभावित होता है।
6.
सरकारी नीतियों में परिवर्तन वस्तु की
पूर्ति को प्रभावित करता है।
7. पूर्ति वक्र दायीं ओर तथा माँग वक्र बायीं ओर एक साथ शिफ्ट होने पर सन्तुलन कीमत में कमी आती है तथा सन्तुलन मात्रा अपरिवर्तित रह सकती है। सन्तुलन मात्रा में परिवर्तन उस आधार पर होगा जब माँग में कितनी कमी व पूर्ति में कितनी वृद्धि हुई है। इस कमी व वृद्धि को हम निम्न आधार पर समझ सकते हैं –
वस्तुनिष्ठ प्रश्न
अति लघुउत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. सन्तुलन (Equilibrium) से
क्या आशय है?उत्तर: सन्तुलन वह स्थिति है जिसमें कुल बाजार पूर्ति, कुल बाजार माँग के बराबर होती है। अर्थात् S = D
1.
तकनीकी में सुधार करना
2.
उत्पादन की
आगतों की कीमतों में कमी होना।
1.
वस्तु की
कीमत
2.
उत्पत्ति के
साधनों की कीमत।
·
माँग पक्ष
·
पूर्ति पक्ष।
1.
प्रत्यक्ष रूप से
(Directly)
2.
अप्रत्यक्ष रूप से
(Indirectly)।
आंकिक प्रश्न
प्रश्न 3. माना कि एक पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाजार में फर्मों के प्रवेश तथा बहिर्गमन की अनुमति है और सभी फर्मे समान है। इस प्रकार के बाजार के लिए निम्नलिखित माँग और पूर्ति फलन दिये हुए हैं –
(ii)
पूर्ति फलन से ज्ञात हो रहा है कि न्यूनतम औसत लागत ₹ 10 है क्योंकि स्वतन्त्र प्रवेश तथा बहिर्गमन वाले बाजार में सन्तुलन कीमत हमेशा न्यूनतम औसत लागत के बराबर रहती है। अत: यहाँ सन्तुलन कीमत के ₹ 10 प्रति इकाई होगी।