बाजार सन्तुलन (Market Equilibrium)

बाजार सन्तुलन (Market Equilibrium)

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. सन्तुलन से क्या आशय है? किस स्थिति में बाजार को सन्तुलन की अवस्था में कहा जाता है?
उत्तर: बाजार की वह स्थिति जिसमें किसी प्रकार के परिवर्तन की प्रवृत्ति नहीं पाई जाती है उसे सन्तुलन की अवस्था कहते हैं। सन्तुलन की दशा में माँग पूर्ति दोनों बराबर होते हैं।
बाजार सन्तुलनबाजार सन्तुलन की अवस्था वह होती है जिसमें कुल बाजार पूर्ति, कुल बाजार माँग के बराबर होती है।
सूत्र रूप मेंयहाँ qD = कुल बाजार पूर्ति, qs = कुल बाजार माँग

प्रश्न 2. बाजार सन्तुलन को एक तालिका एवं रेखाचित्र के माध्यम से समझाइए।
उत्तर: एक वस्तु ‘A’ की माँग एवं पूर्ति रेखाचित्र एवं तालिका निम्न है


उपरोक्त तालिका एवं रेखाचित्र से स्पष्ट हो रहा है कि वस्तु ‘A’ की ₹6 प्रति इकाई मूल्य पर पूर्ति = माँग = 200 इकाइयाँ हैं, अतः यही सन्तुलन की स्थिति है।

प्रश्न 3. माँग तथा पूर्ति में वृद्धि होने पर भी कब सन्तुलन कीमत में परिवर्तन नहीं आयेगा?
उत्तर: माँग तथा पूर्ति में वृद्धि होने पर भी सन्तुलन कीमत में कोई परिवर्तन नहीं आयेगा यदि माँग में होने वाला आनुपातिक परिवर्तन पूर्ति में होने वाले आनुपातिक परिवर्तन के बराबर हो।
अर्थात् जब ∆D = ∆S हो तब ∆P स्थिर रहता है।

प्रश्न 4. एक चित्र द्वारा स्पष्ट कीजिए कि माँग तथा पूर्ति में वृद्धि होने से भी सन्तुलन कीमत अपरिवर्तित रहेगी?
उत्तर:

रेखाचित्र में DD माँग वक्र दायीं ओर शिफ्ट होकर D1D1 पर तथा SS पूर्ति वक्र दायीं ओर शिफ्ट होकर S1S1 पर पहुँचकर समान वृद्धि को दर्शा रहे हैं क्योंकि यहाँ माँग पूर्ति में समान अनुपात में परिवर्तन हुआ है। अतः सन्तुलन कीमत P स्थिर है।

प्रश्न 5. पूर्ति वक्र के दायीं ओर एवं बायीं ओर शिफ्ट करने का सन्तुलन कीमत तथा मात्रा पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर: पूर्ति वक्र के दायीं ओर शिफ्ट करने पर सन्तुलन कीमत में कमी आयेगी तथा मात्रा में वृद्धि होगी। इसके विपरीत पूर्ति वक्र यदि बायीं ओर शिफ्ट करता है तो सन्तुलन कीमत में वृद्धि होगी तथा मात्रा में कमी आयेगी।

प्रश्न 6. एक रेखाचित्र द्वारा समझाइये कि पूर्ति वक्र दायीं तथा बायीं ओर शिफ्ट होने का सन्तुलन कीमत तथा मात्रा पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर: रेखाचित्र से स्पष्ट है कि SS मूल पूर्ति वक्र है। जब पूर्ति वक्र दायीं ओर शिफ्ट कर रहा है (S2S2) तो कीमत OP2, तथा मात्रा Oq2 है और जब पूर्ति वक्र बायीं ओर शिफ्ट कर रहा है (S1S1) पर तो कीमत OP1 तथा मात्रा Oq1 है।


प्रश्न 7. माँग वक्र क्रे शिफ्ट का सन्तुलन कीमत तथा माँग पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर: माँग वक्र यदि दायीं ओर शिफ्ट करता है तो सन्तुलन कीमत तथा सन्तुलन मात्रा दोनों में वृद्धि होती है। इसके विपरीत यदि माँग वक्र बायीं ओर शिफ्ट करता है तो सन्तुलन कीमत तथा मात्रा दोनों में कमी होती है।

प्रश्न 8. एक चित्र द्वारा दिखाइए कि माँग वक्र शिफ्ट होने पर सन्तुलन कीमत तथा मात्रा पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:


रेखाचित्र से स्पष्ट है कि जब माँग वक्र दायीं ओर शिफ्ट होकर D1D1 पर पहुँच रहा है तो कीमत में PP1 तथा मात्रा में qq1 की वृद्धि हो रही है और जब माँग वक्र बायीं ओर शिफ्ट होकर D2D2 पर पहुँच रहा है तो कीमत में PP2 तथा मात्रा में qq72 की कमी हो रही है।

प्रश्न 9. एक रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट कीजिए कि अल्पकाल में श्रम की माँग पर माँग का नियम लागू होता है।
उत्तर:

रेखाचित्र से स्पष्ट है कि श्रम का माँग वक्र बायीं ओर नीचे झुकता चला जाता है। यह इस बात का प्रतीक है कि मजदूरी दर के अधिक होने पर श्रम की माँग कम हो जाती है तथा मजदूरी दर कम होने पर श्रम की माँग अधिक हो जाती है।

प्रश्न 10. एक पूर्ण प्रतियोगी बाजार में श्रम की पूर्ति से आप क्या समझते हैं?
उत्तर: श्रम की पूर्ति का आशय श्रम के घण्टों या दिनों से होता है कि श्रमिकों की संख्या से। श्रम की पूर्ति घर-परिवारों से होती है जहाँ श्रमिक रहते हैं। अतः श्रमिक श्रम के विक्रेता तथा फर्मे श्रम की क्रेता होती है।

प्रश्न 11. उच्चतम निर्धारण कीमत से क्या आशय है?
उत्तर: निर्धन वर्ग के हितों की रक्षा के लिए सरकार द्वारा किसी वस्तु की कीमत को सन्तुलित कीमत से कम मूल्य पर निर्धारित करना ही उच्चतम निर्धारित कीमत या नियन्त्रित कीमत कहलाती है। इस स्थिति में सरकार राशनिंग करके वस्तुएँ उपलब्ध कराती है।

प्रश्न 12. निम्नतम निर्धारित कीमत से क्या आशय है?
उत्तर: सन्तुलन कीमत बाजार में कम होती है तो किसानों के हितों की रक्षा के लिए सरकार सन्तुलन कीमत से ऊपर कृषि उपज का मूल्य निर्धारित कर देती है। इसे समर्थन मूल्य या निम्नतम निर्धारित कीमत कहते हैं। सरकार इस मूल्य पर शेष उपज को क्रय करती है।

प्रश्न 13. एक रेखाचित्र द्वारा श्रम की पूर्ति को पूर्ण प्रतियोगी बाजार में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:

रेखाचित्र में SS श्रम का पूर्ति वक्र है जो E बिन्दु के बाद बायें पीछे की ओर झुकता हुआ दिखाई दे रहा है क्योंकि जब श्रमिक की मजदूरी दर OW थी तब वह OL घण्टे कार्य कर रहा था, लेकिन जब मजदूरी में वृद्धि होकर OW1 हो गई तो वह आय प्रभाव के कारण अधिक आराम करने लगा तथा कार्य के घण्टे कम होकर OL1 हो गये।

प्रश्न 14. सरकार द्वारा नियन्त्रित कीमत को एक रेखाचित्र द्वारा दिखाइए।
उत्तर:

रेखाचित्र में SS पूर्ति तथा DD माँग वक्र है। P सन्तुलन कीमत तथा q सन्तुलन मात्रा। सरकार द्वारा सन्तुलित कीमत से नीचे मूल्य निर्धारित कर दिए जाने पर P1 नियन्त्रित कीमत को दिखाता है अर्थात् यहाँ OP से OP1 कीमत कम की गयी है।

प्रश्न 15. बाजार मूल्य को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: बाजार मूल्य वह मूल्य होता है जिसका निर्धारण बाजार शक्तियों अर्थात् माँग एवं पूर्ति की शक्तियों के द्वारा किया जाता है। यह अल्पकाल तथा अति अल्पकाल में निर्धारित होने वाला मूल्य होता है। इसमें शीघ्र परिवर्तन की प्रवृत्ति पायी जाती है।

प्रश्न 16. सामान्य मूल्य से क्या तात्पर्य है?
उत्तर: सामान्य मूल्य की अवधारणा दीर्घकालीन बाजार से सम्बन्धित है। सामान्य मूल्य के निर्धारण में पूर्ति पक्ष का योगदान माँग पक्ष की अपेक्षा अधिक होता है क्योंकि दीर्घकाल में पूर्ति की माँग के अनुरूप कम या अधिक किया जा सकता है। अतः इसे दीर्घकालीन या स्थायी मूल्य भी कहते हैं।

प्रश्न 17. वस्तु बाजार तथा श्रम बाजार में क्या अत्तर है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: वस्तु बाजार की माँग घर-परिवारों से जबकि श्रम बाजार की माँग उत्पादकों/फर्मों से आती है और वस्तु बाजार की पूर्ति फर्मे करती हैं जबकि श्रम बाजार की पूर्ति घर-परिवारों द्वारा की जाती है।

प्रश्न 18. रेखाचित्र द्वारा निम्नतम निर्धारित कीमत को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:

रेखाचित्र में SS पूर्ति वक्र तथा DD माँग वक्र है, OP सन्तुलन कीमत है तथा Oq सन्तुलन मात्रा। सरकार द्वारा सन्तुलन कीमत के ऊपर मूल्य निर्धारित कर दिए जाने से यह OP1 समर्थन मूल्य को दिखाता है। यहाँ OP से PP1 कीमत बढ़ायी गयी है।

प्रश्न 19. श्रम के सीमान्त सम्प्राप्ति उत्पाद को समझाइए।
उत्तर: श्रम की प्रत्येक अतिरिक्त इकाई के उपयोग से जो अतिरिक्त लाभ प्राप्त होता है वह सीमान्त सम्प्राप्ति तथा सीमान्त उत्पाद के गुणनफल के बराबर होता है। इसे श्रम का सीमान्त सम्प्राप्ति उत्पाद कहते हैं। इसे ω से प्रदर्शित किया जाता है।

प्रश्न 20. श्रम के सीमान्त उत्पाद मूल्य को समझाइए।
उत्तर: श्रम की प्रत्येक अतिरिक्त इकाई के प्रयोग से उत्पादन में जो वृद्धि होती है उसका गुणा बाजार कीमत से करने पर श्रम के सीमान्त उत्पाद मूल्य की गणना की जाती है। पूर्ण प्रतिस्पर्धी फर्म के लिए श्रम के सीमान्त उत्पाद का मूल्य श्रम के सीमान्त सम्प्राप्ति उत्पाद के बराबर होता है।

प्रश्न 21. बाजार सन्तुलन की व्याख्या कीजिए।
उत्तर: बाजार की वह स्थिति जिसमें कुल बाजार पूर्ति, कुल बाजार माँग के बराबर होती है उसे बाजार सन्तुलन कहते हैं। इस स्थिति में माँग तथा पूर्ति किसी में भी परिवर्तन की कोई प्रेरणा नहीं होती है। बाजार सन्तुलन को वैकल्पिक रूप से शून्य अधिमाँग-शून्य अधिपूर्ति भी कहा जाता है।
सूत्र – Ys = Y0
यहाँ Ys = बाजार पूर्ति, Y0 = बाजार माँग

प्रश्न 22. हम कब कहते हैं कि बाजार में किस वस्तु के लिए अधिमाँग है?
उत्तर: जब बाजार कीमत सन्तुलन कीमत से कम हो जाती है तो बाजार में वस्तु की माँग में वृद्धि हो जाती है तथा जब बाजार पूर्ति, बाजार माँग की तुलना में कम हो जाती है तो यह अधिमाँग कहलाती है।


उपरोक्त रेखाचित्र में SS बाजार पूर्ति वक्र, DD बाजार माँग वक्र, A सन्तुलन बिन्दु, OP सन्तुलन कीमत, OP1 बाजार कीमत तथा BC अधिमाँग को प्रदर्शित कर रहे हैं।

प्रश्न 23. हम कब कहते हैं कि बाजार में किस वस्तु के लिए अधिपूर्ति है?
उत्तर: जब बाजार कीमत सन्तुलन कीमत से अधिक हो जाती है तो उपभोक्ता वस्तु की कम मात्रा की माँग करते हैं जिससे माँग की अपेक्षा पूर्ति की मात्रा अधिक हो जाती है। यह स्थिति अधिपूर्ति कही जाती है।

उपरोक्त रेखाचित्र में SS पूर्ति वक्र, DD माँग वक्र, A सन्तुलन बिन्दु, OP सन्तुलन कीमत, OP1 बाजार कीमत तथा BC अधिपूर्ति को प्रदर्शित कर रहे हैं।

प्रश्न 24. क्या होगा यदि बाजार में प्रचलित मूल्य है
(i) सन्तुलन कीमत से अधिक
(ii) सन्तुलन कीमत से कम।
उत्तर: (i) यदि बाजार में प्रचलित मूल्य सन्तुलन कीमत से अधिक है तो कुल बाजार माँग में कमी आयेगी तथा कुल बाजार पूर्ति में वृद्धि होगी। अत: बाजार में प्रचलित मूल्य सन्तुलन कीमत से अधिक हो जाये तो बाजार में पूर्ति आधिक्य की स्थिति उत्पन्न हो जायेगी।

(ii) यदि बाजार में प्रचलित मूल्य सन्तुलन कीमत से कम हो तो कुल बाजार माँग में वृद्धि होगी तथा कुल बाजार पूर्ति में कमी हो जायेगी। अत: बाजार में प्रचलित मूल्य सन्तुलन कीमत से कम हो जाये तो बाजार में अधिमाँग की स्थिति उत्पन्न हो जायेगी।

प्रश्न 25. फर्मों की एक स्थिर संख्या के होने पर पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाजार में कीमत का निर्धारण किस प्रकार होता है? व्याख्या कीजिए।
> पूर्ण प्रतियोगिता के अन्तर्गत सन्तुलन कीमत किस प्रकार निर्धारित होती है?
उत्तर: एक पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाजार में जिसमें फर्मों की संख्या स्थिर होती है, उसमें कीमत का निर्धारण बाजार की माँग एवं पूर्ति शक्तियों के माध्यम से होता है। माँग एवं पूर्ति तालिका तथा रेखाचित्र के माध्यम से इसकी व्याख्या निम्न प्रकार की जा सकती है

माना कि किसी बाजार में एक निश्चित समय पर गेहूं की विभिन्न कीमतों पर माँग पूर्ति निम्नलिखित हैं


उपर्युक्त तालिका से स्पष्ट है कि बाजार में जब कीमत 1,300 प्रति क्विंटल है तब गेहूं की पूर्ति एवं माँग दोनों ही बराबर अर्थात् 500 क्विंटल है। अर्थात् यह कहा जा सकता है कि सन्तुलन मात्रा = सन्तुलन पूर्ति = 500 क्विंटल तथा सन्तुलन कीमत ₹1300 प्रति क्विंटल है।

रेखाचित्रे द्वारा स्पष्टीकरण


उपरोक्त चित्र में DD बाजार माँग वक्र, SS बाजार पूर्ति वक्र, C सन्तुलन बिन्दु, OP0 सन्तुलन कीमत, Oq0 सन्तुलित मात्रा, AB, P1 कीमत पर अधिपूर्ति, FE, P2 कीमत पर अधिमाँग को प्रदर्शित कर रहे हैं।

माना कि वस्तु (गेहूँ) की कीमत OP1 है क्योंकि यह सन्तुलन कीमत से अधिक है इसलिए इस कीमत पर उत्पादक अधिक उत्पादन करना प्रारम्भ कर देंगे तथा दूसरी तरफ उपभोक्ता वस्तु की कम मात्रा क्रय करेंगे। इससे बाजार में पूर्ति आधिक्य की स्थिति पैदा हो जायेगी। जैसा कि रेखाचित्र में दिखाया गया है कि बाजार पूर्ति P1B है जबकि माँग P1A है। अत: AB के बराबर अधिपूर्ति की स्थिति है। इस स्थिति में उत्पादकों में अपनी वस्तु को बेचने के लिए प्रतिस्पर्धा होगी तथा वे कीमत को कम करके OP0 तक ले आयेंगे।

अत: OP0 ही हमारी सन्तुलन कीमत होगी। इसके विपरीत माना कि वस्तु की बाजार कीमत OP2 है जो सन्तुलन कीमत से कम है। अत: इस कीमत पर उपभोक्ता वस्तु की अधिक मात्रा की माँग करेंगे तथा दूसरी ओर उत्पादक लाभ कम होने के कारण उत्पादन में कमी लायेंगे। इससे बाजार में अधिमाँग की स्थिति पैदा होगी। इस स्थिति में उत्पादक वस्तु की कीमत में वृद्धि कर देंगे तथा उपभोक्ता वस्तु की ज्यादा कीमत देने को तैयार होंगे। अत: कीमत सन्तुलन स्थापित हो जायेगा। जैसा कि रेखाचित्र में दर्शाया गया है। OP2 कीमत पर बाजार माँग P2E है तथा बाजार पूर्ति P2F है। अतः यहाँ FE के बराबर अधिमाँग की स्थिति है। इस स्थिति में उपभोक्ताओं में वस्तु को खरीदने की प्रतिस्पर्धा होगी तथा वे कीमत को बढ़ाकर OP0 तक ले आयेंगे। इस तरह OP0 ही हमारी सन्तुलन कीमत होगी।

प्रश्न 26. मान लीजिए कि प्रश्न.25 में सन्तुलन कीमत बाजार में फर्मों की न्यूनतम औसत लागत से अधिक है। अब यदि हम फर्मों के निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन की अनुमति दे दें, तो बाजार कीमत इसके साथ किस प्रकार समायोजन करेगी?
उत्तर: फर्म की न्यूनतम औसत लागत ही सन्तुलन कीमत होती है इसलिए बाजार कीमत के न्यूनतम औसत लागत से अधिक होने का आशय यह है कि बाजार कीमत सन्तुलन कीमत से अधिक होगी। ऐसी स्थिति में फर्मे लाभ कमाने हेतु तेजी से बाजार में प्रवेश करेंगी जिससे कुल पूर्ति में वृद्धि हो जायेगी तथा बाजार कीमत कम हो जायेगी। इस स्थिति में कुल पूर्ति कुल माँग तथा बाजार कीमत = औसत न्यूनतम लागत अथवा सन्तुलन कीमत हो जायेगी।

प्रश्न 27. जब बाजार में निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन की अनुमति है, तो फर्मे पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाजार में कीमत के किस स्तर पर पूर्ति करती है? ऐसे बाजार में सन्तुलन मात्रा किस प्रकार निर्धारित होती है?
उत्तर: फर्मे न्यूनतम औसत लागत अथवा सन्तुलन कीमत स्तर पर पूर्ति करती है। ऐसे बाजार में सन्तुलन मात्रा उस बिन्दु पर निर्धारित होती है, जहाँ कीमत रेखा (Price line) (न्यूनतम औसत लागत रेखा) को बाजार माँग वक्र प्रतिच्छेदित करता है।


रेखाचित्र में OP सन्तुलन कीमत, DD माँग वक्र, E सन्तुलन बिन्दु तथा Oq सन्तुलन मात्रा को प्रदर्शित करता है। चित्र से स्पष्ट है कि कीमत रेखा P को माँग वक्र DD, E बिन्दु पर प्रतिच्छेदित कर रहा है। अत: Oq सन्तुलन मात्रा होगी।

प्रश्न 28. एक बाजार में फर्मों की सन्तुलन संख्या किस प्रकार निर्धारित होती है, जब उन्हें निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन की अनुमति हो?
उत्तर: ऐसे बाजार में फर्मों की सन्तुलन संख्या का निर्धारण सन्तुलन कीमत पर माँगी गई अथवा बेची गई कुल मात्रा को प्रत्येक फर्म की पूर्ति मात्रा से विभाजित करके किया जाता है।


यहाँ n0 = फर्मों की सन्तुलन संख्या, q0 = सन्तुलन कीमत पर खरीदी अथवा बेची गई मात्रा
q0f = प्रत्येक फर्म द्वारा पूर्ति की गई मात्रा

प्रश्न 29. सन्तुलन कीमत तथा मात्रा किस प्रकार प्रभावित होती है? जब उपभोक्ताओं की आय में
(i) वृद्धि होती है।
(ii) कमी होती है।
उत्तर: (i) जब बाजार में फर्मों की संख्या स्थिर रहती है तथा उपभोक्ता की आय में वृद्धि हो जाती है तो ऐसा होने पर वस्तु की माँग में वृद्धि हो जायेगी इससे माँग वक्र दायीं ओर खिसक जायेगा। इसके परिणामस्वरूप सन्तुलन कीमत में वृद्धि होगी तथा सन्तुलन मात्रा बढ़ जायेगी।

(ii) जब बाजार में फर्मों की संख्या या पूर्ति स्थिर रहे तथा उपभोक्ता की आय में कमी हो जाती है तो उसके द्वारा माँगी जाने वाली वस्तु की मात्रा में कमी हो जायेगी। इससे माँग वक्र बायीं ओर खिसक जायेगा। इसके परिणामस्वरूप सन्तुलन कीमत में कमी होगी तथा सन्तुलन मात्रा भी कम हो जायेगी।

दोनों स्थितियों का रेखाचित्र द्वारा स्पष्टीकरण


रेखाचित्र में D0D0 तथा SS क्रमशः मूल बाजार माँग वक्र तथा पूर्ति वक्र हैं जो बिन्दु A पर एक-दूसरे को काटते हैं, जहाँ Oq0 सन्तुलन मात्रा तथा OP0 सन्तुलन कीमत निर्धारित होती है। D1D1 आय में वृद्धि के बाद माँग वक्र, D2D2 आय में कमी के बाद माँग वक्र है। रेखाचित्र से स्पष्ट है कि जब आय में वृद्धि होती है तो नया माँग वक्र D1D1 बनता है तथा नया सन्तुलन बिन्दु B प्राप्त होता है जिस पर नई कीमत तथा मात्रा क्रमशः P1 तथा q1 है अर्थात् दोनों में वृद्धि हो रही है। जबकि आय में कमी होने पर नया माँग वक्र D2D2 हो जाता है तथा नया सन्तुलन बिन्दु C प्राप्त होता है जिस पर नई कीमत तथा मात्रा क्रमशः P2 तथा q2 है अर्थात् दोनों में कमी हो रही है। अतः इस प्रकार से हम यह कह सकते हैं कि सामान्य वस्तु (Normal Goods) के सन्दर्भ में उपभोक्ता (Consumer) की आय कम या ज्यादा होने पर वस्तु की कीमत तथा मात्रा दोनों में ही वृद्धि अथवा कमी हो जाती है।

प्रश्न 30. पूर्ति तथा माँग वक्रों का उपयोग करते हुए दर्शाइए कि जूतों की कीमतों में वृद्धि, खरीदी बेची जाने वाली मोजों की जोड़ी की कीमतों को तथा संख्या को किस प्रकार प्रभावित करती है?
उत्तर: जूते तथा जुराबों का प्रयोग साथ-साथ होता है। अतः ये दोनों पूरक वस्तुएँ (Complementary Goods) है


उपरोक्त रेखाचित्रानुसार, कीमत में वृद्धि के कारण जूतों की माँग में आई कमी के साथ-साथ जुराबों की माँग में भी कमी आयेगी जिससे इसकी कीमत कम हो जायेगी।


उपरोक्त रेखाचित्र से स्पष्ट है कि जुराबों की माँग q से q1 तक कम हो गई है तथा कीमत P से P1 तक कम हो गई है। जबकि माँग वक्र DD से D1D1 तक खिसक गया है।

प्रश्न 31. कॉफी की कीमत में परिवर्तन, चाय की सन्तुलन कीमत को किस प्रकार प्रभावित करेगा? एक आरेख द्वारा सन्तुलन मात्रा पर प्रभाव को भी समझाइए।
उत्तर: वे वस्तुएँ जिनका प्रयोग एक-दूसरे के स्थान पर किया जा सकता है। उन्हें स्थानापन्न वस्तुएँ कहते हैं। क्योंकि चाय और कॉफी का प्रयोग एक-दूसरे के स्थान पर किया जा सकता है अतः ये दोनों स्थानापन्न वस्तुएँ (Complementary Goods) है। यदि कॉफी की कीमत में वृद्धि होती है तो कॉफी की माँग कम हो जायेगी तथा चाय की सन्तुलन माँग तथा कीमत में
वृद्धि हो जायेगी और कॉफी की कीमत तय होने पर इसके विपरीत स्थिति होगी।


उपरोक्त रेखाचित्रानुसार जब कॉफी की कीमत बढ़करे P1 हो जाती है तो चाय की मांग बढ़कर q1 हो जाती है तथा जब कॉफी की कीमत कम होकर P2 पर जाती है तो चाय की माँग कम होकर q2 पर जाती है।

प्रश्न 32. जब उत्पादन में प्रयुक्त आगतों की कीमत में परिवर्तन होता है तो किसी वस्तु की सन्तुलन कीमत तथा मात्रा किस प्रकार परिवर्तित होती है?
उत्तर: चित्रानुसार वस्तु के उत्पादन में प्रयोग होने वाले ओगतों की कीमत में कमी होने पर वस्तु की उत्पादन लागत में कमी आयेगी तथा पूर्ति वक्र दायीं ओर खिसक कर (S2S2) हो जायेगा जिसके परिणामस्वरूप सन्तुलन कीमत कम (P2) होगी तथा सन्तुलन मात्रा में वृद्धि (q2) हो जायेगी। इसके विपरीत यदि उत्पादन आगतों की कीमत में वृद्धि होती है तो वस्तु की उत्पादन लागत तथा सीमान्त लागत में वृद्धि होने पर इसके विपरीत स्थिति होगी।


प्रश्न 33. यदि वस्तु x की स्थानापन्न वस्तु y की कीमत में वृद्धि होती है तो वस्तु की सन्तुलन कीमत तथा मात्रा पर इसका क्या प्रभाव होता है?
उत्तर: यदि वस्तु x की स्थानापन्न वस्तु y की कीमत में वृद्धि होती है तो उपभोक्ता y वस्तु के स्थान पर x वस्तु की अधिक मात्रा की माँग करेंगे। इसके परिणामस्वरूप y वस्तु की माँग में कमी आयेगी तथा x वस्तु की सन्तुलन कीमत तथा सन्तुलन मात्रा में वृद्धि होगी। इसे प्रस्तुत रेखाचित्र में दर्शाया गया है


प्रश्न 34. माँग तथा पूर्ति वक्र दोनों के दायीं ओर शिफ्ट होने का, सन्तुलन कीमत तथा मात्रा पर प्रभाव को एक आरेख द्वारा समझाइए।
उत्तर: रेखाचित्र में SS मूल पूर्ति वक्र, DD मूल माँग वक्र है। चित्र में देखने से स्पष्ट हो रहा है कि जब माँग तथा पूर्ति वक्र दोनों दायीं ओर शिफ्ट हो रहे हैं तो उनका नया सन्तुलन बिन्दु E1 पर बन रही है तथा नयी मात्रा बढ़कर q1 हो गयी है। जबकि कीमत P में कोई परिवर्तन नहीं हुआ है। अत: यह कहा जा सकता है कि माँग तथा पूर्ति वक्र दोनों के एक साथ समान अनुपात में दायीं ओर शिफ्ट होने से सन्तुलन कीमत पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा लेकिन सन्तुलन मात्रा में वृद्धि होगी। यदि दोनों में शिफ्ट असमान अनुपात में होता है, तो कीमत तथा मात्रा दोनों में परिवर्तन हो जायेगा।


प्रश्न 35. सन्तुलन कीमत तथा मात्रा किस प्रकार प्रभावित होते हैं जब
(i) माँग तथा पूर्ति वक्र दोनों, समान दिशा में शिफ्ट होते हैं?
(ii) माँग तथा पूर्ति वक्र विपरीत दिशा में शिफ्ट होते हैं?
उत्तर: (i) माँग तथा पूर्ति वक्रों के एक ही दिशा में खिसकने का प्रभावमाँग तथा पूर्ति वक्र दोनों एक साथ दायीं एवं बायीं ओर खिसक सकते हैं। यदि दोनों वक्र एक साथ दायीं ओर खिसकते हैं तो सन्तुलन मात्रा में वृद्धि होगी लेकिन सन्तुलन कीमत में वृद्धि हो सकती है अथवा कमी हो सकती है अथवा अपरिवर्तित रह सकती है। यह माँग तथा पूर्ति में वृद्धि के अनुपात पर निर्भर करेगा कि कीमत में परिवर्तन होगा या नहीं। यदि माँग तथा पूर्ति में वृद्धि समान अनुपात में होती है तो सन्तुलन कीमत अपरिवर्तित रहेगी। यदि माँग में परिवर्तन का अनुपात पूर्ति में परिवर्तन के अनुपात से अधिक होगा तो सन्तुलन कीमत में वृद्धि होगी और यदि माँग में परिवर्तन का अनुपात पूर्ति में परिवर्तन के अनुपात से कम होगा तो सन्तुलन कीमत में कमी आयेगी।

अब यदि हम यह मान लें कि माँग तथा पूर्ति दोनों वक्र एक साथ बायीं ओर खिसकते हैं तो इस स्थिति में सन्तुलन मात्रा में कमी आयेगी लेकिन सन्तुलन कीमत में वृद्धि हो सकती है या कमी हो सकती है या अपरिवर्तित रह सकती है।

उपरोक्त दोनों स्थितियों को निम्न चित्र के माध्यम से स्पष्ट किया जा सकता है


रेखाचित्र से स्पष्ट है कि माँग वक्र तथा पूर्ति वक्र दोनों के दायीं ओर शिफ्ट करने पर सन्तुलन कीमत में वृद्धि होकर q1 तक पहुँच गई है जबकि सन्तुलन कीमत में परिवर्तन नहीं हुआ है। इसी प्रकार जब दोनों वक्र बायीं ओर शिफ्ट कर रहे हैं तो सन्तुलन मात्रा में कमी हो रही है तथा सन्तुलन कीमत अपरिवर्तित है।

(ii) जब माँग तथा पूर्ति वक्र विपरीत दिशा में शिफ्ट होते हैंमाँग तथा पूर्ति वक्र दोनों अलग-अलग दिशाओं में खिसक सकते हैं। माना कि माँग वक्र दायीं ओर तथा पूर्ति वक्र बायीं ओर खिसकता है। इस स्थिति में सन्तुलन कीमत में वृद्धि होगी। लेकिन सन्तुलन मात्रा में वृद्धि हो सकती है या कमी हो सकती है या अपरिवर्तित रह सकती है। इसे निम्न चित्र के माध्यम से समझा जा सकता है


माना कि माँग वक्र बायीं ओर तथा पूर्ति वक्र दायीं ओर खिसकता है। इस स्थिति में सन्तुलन कीमत में कमी होगी लेकिन सन्तुलन मात्रा में वृद्धि हो सकती है या कमी हो सकती है या अपरिवर्तित रह सकती है। इसे निम्न चित्र से स्पष्ट किया जा सकता है


प्रश्न 36. वस्तु बाजार में तथा श्रम बाजार में माँग तथा पूर्ति वक्र किस प्रकार भिन्न होते हैं?
उत्तर: वस्तु बाजार में माँग तथा पूर्ति वक्र वस्तु की माँग तथा पूर्ति को व्यक्त करते हैं। वस्तु बाजार में वस्तु की माँग के सन्दर्भ में माँग का नियम लागू होता है तथा वस्तु की पूर्ति के सन्दर्भ में पूर्ति का नियम लागू होता है। अत: वस्तु बाजार में (चित्र में दिखाये अनुसार) माँग वक्र दायें नीचे को गिरता हुआ होता है जबकि पूर्ति वक्र ऊपर को उठता हुआ होता है।

श्रम बाजार में माँग तथा पूर्ति वक्र श्रम की माँग तथा पूर्ति को दर्शाते हैं। श्रम की पूर्ति से आशय श्रम के घण्टों से होता है। श्रम की माँग एक व्युत्पन्न माँग (Derived Demand) कहलाती है अर्थात् उसकी माँग किसी अन्य वस्तु के उत्पादन हेतु की जाती है। ऊँची मजदूरी दर पर श्रम की माँग कम होती है तथा श्रम की पूर्ति बढ़ जाती है और नीचे मजदूरी दर पर श्रम की माँग अधिक हो जाती है तथा श्रम की पूर्ति में कमी। मजदूरी के एक निश्चित स्तर पर पहुँचने के बाद श्रमिक आराम करना पसंद करने लगता है तथा इसलिए श्रमिक के काम की तुलना में विश्राम के घण्टे बढ़ जाते हैं और इसी कारण से श्रम का पूर्ति वक्र पीछे की ओर मुड़ जाता है। जिसे निम्न चित्र में देखा जा सकता है

श्रम बाजार तथा वस्तु बाजार में आधारभूत अन्तर उनके माँग तथा पूर्ति के स्रोतों से है। वस्तु बाजार में वस्तु की माँग परिवारों द्वारा की जाती है जबकि पूर्ति उत्पादकों/फर्मों द्वारा की जाती है। लेकिन श्रम बाजार में श्रम की माँग उत्पादकों/फर्मों द्वारा की जाती है। जबकि पूर्ति परिवारों द्वारा की जाती है। वस्तु बाजार में वस्तु से तात्पर्य वस्तु की मात्रा से होता है जबकि श्रम बाजार में श्रम से तात्पर्य श्रमिक द्वारा कार्य करने के लिए दिए जाने वाले घण्टों से होता है कि श्रमिकों की संख्या से।

प्रश्न 37. एक पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाजार में श्रम की इष्टतम मात्रा किस प्रकार निर्धारित होती है?
उत्तर: एक पूर्ण प्रतिस्पर्धी श्रम बाजार में श्रम की माँग फर्मों (उत्पादकों) द्वारा की जाती है तथा श्रम की पूर्ति परिवारों अर्थात् श्रमिकों द्वारा की जाती है। यहाँ श्रम से आशय श्रमिकों की संख्या से होकर श्रम के घण्टों से है। प्रत्येक श्रमिक अधिकतम मजदूरी दर पर कार्य करना चाहता है तथा प्रत्येक फर्म अधिकतम लाभ कमाना चाहती है। अधिक लाभ कमाने के उद्देश्य से फर्म सदा उस बिन्दु तक श्रम का उपयोग करती है, जिस पर श्रम की अन्तिम इकाई के उपयोग की अतिरिक्त लागत उस इकाई से प्राप्त अतिरिक्त लाभ के बराबर हो। श्रम की एक अतिरिक्त इकाई को उपयोग में लाने की अतिरिक्त लागत मजदूरी दर (ω) कहलाती है। श्रम की एक अतिरिक्त इकाई द्वारा उत्पन्न किया गया अतिरिक्त निर्गत उत्पादन उसका सीमान्त उत्पादन (MP) तथा प्रत्येक अतिरिक्त इकाई निर्गत के विक्रय से प्राप्त होने वाली अतिरिक्त आय, फर्म की उस इकाई से प्राप्त सीमान्त सम्प्राप्ति (MR) है। अत: श्रम की प्रत्येक अतिरिक्त इकाई के लिए उसे जो अतिरिक्त लाभ मिलता है, वह सीमान्त सम्प्राप्ति (MR) तथा सीमान्त उत्पादन (MPL) के गुणनफल के बराबर होता है। यह श्रम का सीमान्त सम्प्राप्ति उत्पाद (MRPL) कहलाता है। लेकिन फर्म को अधिकतम लाभ तभी प्राप्त होगा जबकि निम्नलिखित शर्ते पूरी हों।
ω = MRPL
MRPL = MR × MPL
यहाँ ω = मजदूरी की दर
MRPL = श्रम की सीमान्त आगम उत्पादकता
MR = सीमान्त आगम
MPL = श्रम की सीमान्त उत्पादकता

एक पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाजार में सीमान्त आगम कीमत के बराबर होता है और कीमत सीमान्त उत्पाद के मूल्य (VMP) के बराबर होती है। अतः श्रम के चयन की इष्टतम मात्रा वह होती है जिस पर मजदूरी दर तथा सीमान्त उत्पाद के मूल्य समान होते हैं। दूसरे शब्दों में हम यह कह सकते हैं, कि श्रम की इष्टतम मात्रा वह होती है जिस पर श्रम की माँग, श्रम की पूर्ति के बराबर होती है। सूत्र – DL = DS

प्रश्न 38. मान लीजिए, एक पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाजार में वस्तु x की माँग तथा पूर्ति वक्र निम्न प्रकार दिये गये हैं
qD = 700 – P
qs = 500 + 3P क्योंकि> 15
= 0 क्योंकि< P < 15
मान लीजिए कि बाजार में समरूपी फर्मे हैं। ₹15 से कम, किसी भी कीमत पर वस्तु x की बाजार पूर्ति के शून्य होने के कारण की पहचान कीजिए। इस वस्तु के लिए सन्तुलन कीमत क्या होगी? सन्तुलन की स्थिति में x की कितनी मात्रा का उत्पादन होगा?
उत्तर: माना कि बाजार में समरूपी फर्मों की संख्या स्थिर है, तब दिया है
qD = 700 – P
qS = 500 + 3P के लिए> 15
qS = 0 के लिए< 15
यहाँ, qD = माँग, qS = पूर्ति, P = कीमत
क्योंकि सन्तुलन कीमत पर बाजार रिक्त हो जाता है। अत: हम बाजार माँग और बाजार पूर्ति को बराबर करके सन्तुलन कीमत निम्न प्रकार ज्ञात कर सकते हैं
qD = qS
700 – P = 500 + 3P
700 – 500 = 3P + P
4P = 200
P = 50
अतः सन्तुलन कीमत = 50 प्रति इकाई
अतः सन्तुलन की स्थिति में वस्तु x की मात्रा qD = 700 – 50 = 650
पूर्ति qS = 500 + (3 × 50) = 650
इस प्रकार सन्तुलन मात्रा 650 इकाई होगी तथा ₹5 से कम किसी भी कीमत पर फर्म उत्पादन नहीं करेगी क्योंकि उसे हानि उठानी पड़ेगी।

प्रश्न 39. प्रश्न 38 में दिये गये समान माँग वक्र को लेते हुए, आइए, फर्मों को वस्तु x का उत्पादन करने के निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन की अनुमति देते हैं। यह भी मान लीजिए कि बाजार समानरूपी फर्मों से बना है जो वस्तु x का उत्पादन करती है। एक अकेली फर्म का पूर्ति वक्र निम्न प्रकार है

(i) P = 20 को क्या महत्त्व है?
(ii) बाजार में x के लिए किस कीमत पर सन्तुलन होगा? अपने उत्तर का कारण बताइए।
(iii) सन्तुलन मात्रा तथा फर्मों की संख्या का परिकलन कीजिए।
उत्तर: (i) P = 20 का महत्त्व यह है कि फर्मे इसे कीमत से नीचे उत्पादन नहीं करेंगी। क्योंकि यह फर्मों की न्यूनतम परिवर्तनशील लागत है। इससे कम कीमत पर उत्पादन करने पर फर्मों को हानि होगी।
(ii) फर्मे न्यूनतम परिवर्तनशील लागत से कम कीमत पर उत्पादन नहीं करेंगी। इससे कम कीमत होने पर वे बाजार से बहिर्गमन कर जायेंगी। इस प्रकार एक अकेली फर्म का पूर्ति वक्र न्यूनतम परिवर्तनशील लागत (20) के बराबर होने पर सन्तुलित होगा। अतः सन्तुलन कीमत ₹20 होगी।
(iii) कीमत P = 20 की स्थिति में बाजार की माँग एवं पूर्ति बराबर होंगी। अतः हम माँग वक्र से सन्तुलन मात्रा की गणना कर सकते हैं


प्रश्न 40. मान लीजिए कि नमक की माँग तथा पूर्ति वक्र को इस प्रकार दिया गया है
qD = 1,000 – P
qS = 700 + 2P
(i) सन्तुलन कीमत तथा मात्रा ज्ञात कीजिए।
(ii) अब मान लीजिए कि नमक के उत्पादन के लिए प्रयुक्त एक आगत की कीमत में वृद्धि हो जाती है और नया पूर्ति वक्र है
qS = 400 + 2P
सन्तुलन कीमत तथा मात्रा किस प्रकार परिवर्तित होती है? क्या परिवर्तन आपकी अपेक्षा के अनुकूल है?
(iii) मान लीजिए, सरकार नमक की बिक्री पर ₹3 प्रति इकाई कर लगा देती है। यह सन्तुलन कीमत तथा मात्रा को किस प्रकार प्रभावित करेगा?
उत्तर: (i) दिया है – qD = 1,000 – P
qS = 700 + 2P
सन्तुलन कीमत की गणना निम्न प्रकार कर सकते हैं
qD = qS
1,000 – P = 700 + 2P
1,000 – 700 = 2P + P
3P = 300
P = 100
अतः सन्तुलन कीमत 100 होगी।
अब हम सन्तुलन मात्रा की गणना निम्न प्रकार कर सकते हैं
qD = 1,000 – 100 = 900
qS = 700 + (2 × 100) = 900
अतः सन्तुलन मात्रा 900 किग्रा होगी।

(ii) सन्तुलन वक्र में परिवर्तन होने पर
qS = 400 + 2P
qD = 1,000 – P
सन्तुलन कीमत की गणना
qD = qS
1,000 – P = 400 + 2P
1,000 – 400 = 2P + P
3P = 600
P = 200
सन्तुलन कीमत की गणना
qD = 1,000 – 200 = 800
qS = 400 + (2 × 200) = 800
अत: नई सन्तुलन कीमत बढ़कर है 200 हो गई है तथा नई सन्तुलन मात्रा घटकर 800 किग्रा हो गई है। अत: एक उपभोक्ता की दृष्टि से यह हमारे अनुकूल नहीं है।

(iii) यदि सरकार नमक की बिक्री पर ₹3 प्रति इकाई कर लगा देती है तो माँग वक्र पूर्ववत् रहेगा लेकिन पूर्ति वक्र परिवर्तित होकर निम्न प्रकार बनेगा
qS = 400 + (3P + 2P) = 400 + 5P
सन्तुलन कीमत की गणना – qD = qS
1,000 – P = 400 + 5P
1,000 – 400 = 5P + P
6P = 600
P = 100
सन्तुलन मात्रा की गणना _
qD = 1,000 – P
= 1,000 – 100 = 900 इकाइयाँ
qS = 400 + (5 × 100) = 900 इकाइयाँ
अंत: नमक की बिक्री पर कर लगाने से सन्तुलन कीमत 100 होगी तथा सन्तुलन मात्रा 900 इकाइयाँ होगी।

प्रश्न 41. मान लीजिए कि एपार्टमेंटों के लिए बाजार निर्धारित किराया इतना अधिक है कि सामान्य लोगों द्वारा वहन नहीं किया जा सकता, यदि सरकार किराये पर एपार्टमेंट लेने वालों की मदद करने के लिए किराया नियन्त्रण लागू करती है, तो इसका एपार्टमेंटों के बाजार पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर: अपार्टमेंट बाजार पर किराया नियन्त्रण लागू होने के निम्नलिखित प्रभाव होंगे

1.    अपार्टमेंट बनाने वालों को कम कीमत मिलेगी। वे उत्पादन लागत कम करने हेतु घटिया सामग्री का प्रयोग करेंगे। अतः उपभोक्ताओं को घटिया अपार्टमेंट मिलेंगे।

2.    किराया नियन्त्रण से अपार्टमेंट की माँग में वृद्धि होगी तथा पूर्ति में कमी आयेगी। अतः अपार्टमेंट प्राप्त करने हेतु एक लम्बी प्रतीक्षा सूची बन जायेगी।

प्रश्न 42. माना कि एक स्थिर फर्मों वाले बाजार में सन्तुलन कीमत न्यूनतम औसत लागत से अधिक है। अब हम फर्मों को निर्बाध प्रवेश और बहिर्गमन की अनुमति देते हैं तो बाजार कीमत कैसे सन्तुलित होगी?
उत्तर: जब सन्तुलन की स्थिति में कीमत न्यूनतम औसत लागत से अधिक होगी तो फर्मों को अतिरिक्त लाभ होगा। ऐसी स्थिति में नई फर्मे बाजार में आयेंगी, जिससे पूर्ति बढ़ेगी जबकि माँग स्थिर रहेगी, अतः वस्तु की कीमत कम होगी। न्यूनतम औसत लागत से कम कीमत पर फर्ने उत्पाद नहीं बेचेगी क्योंकि उन्हें हानि होगी। अत: एक पूर्ण प्रतिस्पर्धी निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन वाले बाजार में कीमत न्यूनतम औसत लागत के बराबर हो जायेगी।

प्रश्न 43. बाजार के मुख्य तत्त्वों को समझाइए।
> बाजार की तीन विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:

1.    बाजार एक ऐसा सम्पूर्ण क्षेत्र है जहाँ वस्तु के क्रेता तथा विक्रेता फैले रहते हैं।

2.    बाजार के अन्तर्गत क्रेताओं तथा विक्रेताओं के मध्य किसी भी माध्यम से सम्पर्क का होना आवश्यक है।

3.    बाजार के अन्तर्गत वस्तुओं, सेवाओं तथा साधनों का क्रय-विक्रय किया जा सकता है।

प्रश्न 44. एक आवश्यक दवाई की सन्तुलन कीमत बहुत ऊँची है। समझाइए कि बाजार शक्तियों के माध्यम से इस सन्तुलन कीमत को कम करने के लिए क्या सम्भव उपाय किए जा सकते हैं? बाजार पर पड़ने वाले प्रभावों की श्रृंखला भी समझाइए।
उत्तर: दवाई की सन्तुलन कीमत बहुत ऊँची होने का तात्पर्य यह है कि इसकी माँग, पूर्ति की तुलना में कम है जिससे दवा उत्पादक दवाई की कीमत को कम करेंगे जिससे माँग में वृद्धि होगी जब तक कि माँग पूर्ति बराबर हो जायें।

प्रश्न 45. सिगरेट पीना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। इसके उपभोग को कम करने हेतु सरकार, लेकिन केवल सामान्य बाजार शक्तियों के माध्यम से, क्या कर सकती है? सरकार के इन कदमों के श्रृंखलाबद्ध प्रभावों को समझाइए।
उत्तर: सरकार सिगरेट पर कर लगाकर इसकी कीमत बढ़ा सकती है जिससे उत्पादक इसकी पूर्ति की मात्रा को घटा देगा और इसकी कीमत में वृद्धि हो जायेगी जिसके कारण इसकी माँग में कमी जायेगी।

प्रश्न 46. रेखाचित्र के माध्यम से स्पष्ट कीजिए कि सन्तुलन कीमत तथा मात्रा पर क्या प्रभाव पड़ता है, जब
(i) पूर्ति स्थिर हो तथा माँग में परिवर्तन हो
(ii) माँग स्थिर हो तथा पूर्ति में परिवर्तन हो
उत्तर: (i) पूर्ति स्थिर हो तथा माँग में परिवर्तन होचित्रानुसार, माँग में वृद्धि (D1D1) होने पर कीमत मात्रा दोनों में ही वृद्धि होगी तथा माँग में कमी (D2D2) होने पर कीमत मात्रा दोनों में ही कमी आयेगी।

(ii) माँग स्थिर हो तथा पूर्ति में परिवर्तन हो

चित्रानुसार, पूर्ति में वृद्धि (S1S1) होने पर कीमत में कमी होगी जबकि मात्रा में वृद्धि होगी तथा पूर्ति में कमी (S2S2) होने पर कीमत में वृद्धि तथा मात्रा में कमी आयेगी।

प्रश्न 47. उपभोग की एक आवश्यक मद का बाजार सन्तुलन में है, लेकिन सन्तुलन कीमत आम आदमी के लिए बहुत ऊँची है। सरकार इस बाजार कीमत को कम करने के लिए क्या कर सकती है, परन्तु सामान्य बाजार शक्तियों के माध्यम से ही? सरकार द्वारा उठाए जा सकने वाले कदमों के शृंखलाबद्ध प्रभाव समझाइए।
उत्तर: सरकार अप्रत्यक्ष रूप से हस्तक्षेप कर सकती है। सरकार बाजार कीमतों को कम करने हेतु राशनिंग द्वारा वस्तुओं को कम कीमत पर सरकारी दुकानों के माध्यम से उपलब्ध करा सकती है।

प्रश्न 48. वस्तु की पूर्ति परिवर्तन के लिए तीन कारक लिखो।
उत्तर: वस्तु की पूर्ति परिवर्तन के तीन कारक निम्न है

1.    उत्पादन की लागतों में परिवर्तन होने पर पूर्ति भी परिवर्तित हो जाती है। लागत बढ़ने पर पूर्ति कम तथा लागत घटने पर पूर्ति अधिक हो जाती है।

2.    नये-नये आविष्कार होने से वस्तु की पूर्ति प्रभावित होती है। नई प्रतिस्थापन वस्तु का प्रयोग बढ़ने से पुरानी वस्तु की पूर्ति में कमी जाती है।

3.    तकनीकी बदलाव वस्तु के उत्पादन स्तर में परिवर्तन के द्वारा पूर्ति को प्रभावित करता है।

प्रश्न 49. पूर्ति वक्र को रेखाचित्र द्वारा दशाईए
उत्तर:


प्रश्न 50. पूर्ति अनुसूची किसे कहते हैं?
उत्तर: एक उत्पादक निश्चित समय पर विभिन्न कीमतों पर वस्तु की अलग-अलग मात्राएँ बेचने को तत्पर होता है जो उसकी पूर्ति अनुसूची कहलाती है। बाजार के समस्त उत्पादकों की पूर्ति अनुसूचियों का योग करने पर बाजार की पूर्ति अनुसूची (तालिका) प्राप्त हो जाती है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. एक काल्पनिक बाजार माँग तालिका का निर्माण कीजिए एवं इसे रेखाचित्र द्वारा समझाइये।
उत्तर: एक वस्तु के लिये अलग-अलग क्रेताओं की विभिन्न कीमतों पर माँग भी अलग-अलग होती है। प्रत्येक क्रेता की एक माँग अनुसूची होती है, बाजार के सभी क्रेताओं की माँग अनुसूची का योग करने पर बाजार माँग अनुसूची प्राप्त होती है। इसे हम निम्न काल्पनिक तालिका से समझ सकते हैं


चित्र में Ox अक्ष पर वस्तु की मात्रा तथा Oy पर वस्तु की कीमत को दर्शाया गया है। सभी उपभोक्ताओं की माँग का योग बाजार माँग द्वारा व्यक्त किया गया है जिसमें OP कीमत पर वस्तु की O मात्रा बाजार माँग को व्यक्त करती है। वस्तु की कीमत के बढ़ने पर वस्तु की माँग कम हो जाती है। विभिन्न कीमत स्तरों पर वस्तु की माँग को दर्शाने वाला DD माँग वक्र बाजार माँग को व्यक्त करता है। माँग वक्र का ऋणात्मक ढाल बाजार में माँग की प्रवृत्ति को दर्शाता है।

प्रश्न 2. ‘माँग में परिवर्तन से साम्य कीमत प्रभावित होती है। इस कथन को रेखाचित्र द्वारा समझाइये।
उत्तर: माँग में परिवर्तन से साम्य कीमत पर प्रभाव-किसी वस्तु की माँग उपभोक्ताओं की रुचि, आय, स्वभाव, फैशन, अधिमान, समय का प्रभाव आदि कारणों से परिवर्तित हो सकती है। जब किसी वस्तु की पूर्ति अन्य परिस्थितियाँ स्थिर रहें किन्तु वस्तु की माँग में किसी कारण से वृद्धि हो जाये तो सन्तुलन भी प्रभावित होगा और साम्य कीमत बढ़ जाती है, जबकि इसके विपरीत किसी कारण से वस्तु की माँग में कमी होने पर साम्य कीमत भी घट जाती है। स्पष्ट है कि पूर्ति के अपरिवर्तित रहने पर माँग में वृद्धि होने पर वस्तु को मूल्य तथा विक्रय मात्रा दोनों में वृद्धि होती है जबकि इसके विपरीत माँग में कमी होने पर वस्तु के मूल्य तथा विक्रय मात्रा दोनों में कमी हो जाती है।

(i) माँग में वृद्धि का प्रभाव-निम्न रेखाचित्र से स्पष्ट है कि माँग पूर्ति के साम्य से निर्धारित कीमत OP है। वस्तु की माँग बढ़ने पर माँग वक्र के खिसकने से नया माँग वक्र D1D1 प्राप्त होता है जिससे नया साम्य E1 बिन्दु पर निर्धारित हो जाता है। अतः वस्तु की कीमत भी बढ़कर OP1 हो जाती है।


(ii) माँग में कमी का प्रभाव

उपर्युक्त रेखाचित्र से स्पष्ट है कि एक बार साम्य स्थापित होने के बाद यदि वस्तु की माँग में किसी भी कारण से कमी हो जाये तो माँग वक्र नीचे खिसक जाता है जिसके कारण नया साम्य E बिन्दु पर निर्धारित होता है। अतः वस्तु की कीमत भी घटकर OP1 रह जाती है।


रेखाचित्र की व्याख्यारेखाचित्र में Ox अक्ष पर वस्तु की माँग पूर्ति तथा Oy अक्ष पर कीमत को दर्शाया गया है। माँग पूर्ति का प्रारम्भिक साम्य E बिन्दु पर स्थापित हो जाता है। अत: OP कीमत तथा OQ साम्य मात्रा है। अन्य बातों के समान रहने पर वस्तु की माँग बढ़ने पर साम्य कीमत बढ़ जाती है तथा माँग घटने पर साम्य कीमत भी कम हो जाती है।

प्रश्न 3. माँग पूर्ति के सन्तुलन को रेखाचित्र अनुसूची द्वारा समझाओ।
उत्तर: माँग पूर्ति का सन्तुलन-माँग पक्ष से पता चलता है कि वस्तु की सीमान्त उपयोगिता उसके मूल्य की उच्चतम सीमा .. होती है जबकि पूर्ति पक्ष से पता चलता है कि सीमान्त लागत उसके मूल्य की निम्नतम सीमा होती है। वस्तु का वास्तविक मूल्य इन्हीं दो सीमाओं के बीच उस बिन्दु पर निर्धारित होता है जहाँ पर उस वस्तु की माँग पूर्ति बराबर हो जाए। क्रेता यह चाहता है कि वह कम-से-कम मूल्य चुकाये जबकि विक्रेता अधिक-से-अधिक मूल्य प्राप्त करना चाहता है। अतः माँग पूर्ति के साम्य बिन्दु पर वास्तविक कीमत निर्धारित होती है जहाँ पर क्रेता विक्रेता दोनों सन्तुष्ट होते हैं। उस साम्य बिन्दु पर निर्धारित कीमत को हीसाम्य कीमतया सन्तुलन मूल्य कहा जाता है और इस कीमत पर निर्धारित वस्तु की मात्रा कोसाम्य मात्राया सन्तुलन मात्रा कहा जाता है।


तालिका की व्याख्यातालिका से स्पष्ट है कि X वस्तु की कीमत बढ़ने पर उसकी माँग कम हो जाती है जबकि वस्तु की पूर्ति में वृद्धि हो जाती है। तालिका में साम्य कीमत ₹20 पर वस्तु की माँग पूर्ति दोनों बराबर 15-15 इकाइयाँ हैं। अतः ₹20 साम्य कीमत कहलाएगी।


रेखाचित्र की व्याख्याउपरोक्त रेखाचित्र में Ox अक्ष पर वस्तु की माँग पूर्ति दर्शायी गई है जबकि Oy अक्ष पर वस्तु की कीमत को दर्शाया गया है। DD वक्र माँग को व्यक्त करता है जबकि SS वक्र वस्तु की पूर्ति का वक्र है। माँग पूर्ति वक्र दोनों एक-दूसरे को E बिन्दु पर काटते हैं। अत: वस्तु की कीमत OP निर्धारित हो जाती है वस्तु की निर्धारित OQ मात्रा साम्य कहलाती है। E बिन्दु पर निर्धारित कीमत ही साम्य कीमत है। जब वस्तु की कीमत ₹20 है तो इस कीमत पर माँग पूर्ति दोनों बराबर-बराबर 15 इकाइयाँ हैं। अत:- E साम्य बिन्दु है जिस पर माँग पूर्ति बराबर हो जाती है।

प्रश्न 4. बाजार सन्तुलन की व्याख्या कीजिए। पूर्ति में परिवर्तन का इस साम्य पर क्या प्रभाव पड़ता है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: बाजार सन्तुलन का तात्पर्य बाजार की उस स्थिति से है जहाँ पर बाजार में वस्तु की बाजार माँग बाजार पूर्ति बराबर होती है। स्पष्ट है कि जब किसी वस्तु की माँग पूर्ति में समानता स्थापित हो जाती है अर्थात् अधिमाँग अधिपूर्ति शून्य हो तो वह अवस्था बाजार सन्तुलन कहलाती है। इसे ही मूल्य निर्धारण का सामान्य सिद्धान्त या मूल्य निर्धारण का माँग पूर्ति सिद्धान्त भी कहा जाता है। मार्शल की मान्यता थी कि वस्तु का मूल्य तो वस्तु की माँग (उपयोगिता) से निर्धारित होती है और ही वस्तु की पूर्ति (उत्पादन लागत) से निर्धारित होता है बल्कि वह तो वस्तु की माँग पूर्ति दोनों की शक्तियों के द्वारा निर्धारित होता है।

पूर्ति में परिवर्तन का सन्तुलन पर प्रभाव

1.    उत्पादन की लागतों में परिवर्तन होने पर पूर्ति भी परिवर्तित हो जाती है। लागत बढ़ने पर पूर्ति कम तथा लागत घटने पर पूर्ति अधिक हो जाती है।

2.    नये-नये आविष्कार होने से वस्तु की पूर्ति प्रभावित होती है। नई प्रतिस्थापन वस्तु का प्रयोग बढ़ने से पुरानी वस्तु की कीमत में कमी जाती है।

3.    तकनीकी बदलाव वस्तु के उत्पादन स्तर में परिवर्तन के द्वारा पूर्ति को प्रभावित करता है।

4.    कच्चे माल के नवीन स्रोत की खोज वस्तु की पूर्ति को बढ़ा देती है।

5.    उत्पादक के दृष्टिकोण में परिवर्तन होने से पूर्ति पक्ष प्रभावित होता है।

6.    सरकारी नीतियों में परिवर्तन वस्तु की पूर्ति को प्रभावित करता है।

प्रश्न 5. बाजार सन्तुलन को स्पष्ट कीजिए। पूर्ति वक्र के दायीं ओर तथा माँग वक्र के बायीं ओर एक साथ शिफ्ट होने पर सन्तुलन कीमत तथा मात्रा पर पड़ने वाले प्रभाव को रेखाचित्र की सहायता से व्याख्या कीजिए।
उत्तर: बाजार सन्तुलन
(Market Equilibrium)
वह अवस्था जहाँ बाजार माँग तथा बाजार पूर्ति बराबर होते हैं बाजार सन्तुलन कहलाती है।

7.    पूर्ति वक्र दायीं ओर तथा माँग वक्र बायीं ओर एक साथ शिफ्ट होने पर सन्तुलन कीमत में कमी आती है तथा सन्तुलन मात्रा अपरिवर्तित रह सकती है। सन्तुलन मात्रा में परिवर्तन उस आधार पर होगा जब माँग में कितनी कमी पूर्ति में कितनी वृद्धि हुई है। इस कमी वृद्धि को हम निम्न आधार पर समझ सकते हैं

(i) जब माँग में कमी कम तथा पूर्ति में वृद्धि अधिक होती हैरेखाचित्र द्वारा यह स्पष्ट है कि जब माँग में कमी होगी तो नया माँग वक्र D1D1 तथा पूर्ति में वृद्धि होने पर S1S1 वक्र प्राप्त होता है जहाँ E1 पर सन्तुलन स्थापित होता है, जिसके अनुसार सन्तुलन कीमत OP से कम होकर OP1 हो जाती है, जबकि सन्तुलन मात्रा OQ से बढ़कर OQ1 हो जाती है। यहाँ कीमत में अधिक कमी आती है तथा मात्रा में कीमत के अनुपात में कम वृद्धि होती है।

(ii) जब माँग में कमी एवं पूर्ति में वृद्धि समान होती हैरेखाचित्र स्पष्ट करता है कि माँग में कमी (D1D1) होने पर तथा उसी के समान मात्रा में पूर्ति में वृद्धि (S1S1) होने से नया सन्तुलन बिन्दु E1 पर स्थापित होता है। जहाँ सन्तुलन मात्रा अपरिवर्तित रहती है जबकि सन्तुलन कीमत OP से कम होकर OP1 हो जाती है।

(iii) जब माँग में कमी अधिक एवं पूर्ति में वृद्धि कम होती हैजब माँग में कमी से नया माँग वक्र D1D1 तथा पूर्ति वक्र में वृद्धि से नया वक्र S1S1 प्राप्त होता है जिनका सन्तुलन बिन्दु E1 है तथा सन्तुलन मात्रा OQ से कम होगी। OQ1 तथा कीमत OP से कम होकर OP1 हो जाती है। यहाँ कीमत में मात्रा की अपेक्षा तुलनात्मक रूप से अधिक कमी देखने को मिलती है।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1. अतिरेक माँग उत्पन्न होने का निम्न में से कौन-सा कारण है?
() मुद्रा की पूर्ति में वृद्धि
() सार्वजनिक व्यय में वृद्धि
() करों में वृद्धि
() इनमें से सभी

प्रश्न 2. निम्न में से किसके अनुसार किसी वस्तु की कीमत माँग एवं पूर्ति की दोनों शक्तियों के द्वारा निर्धारित होती है?
() बॉलरस
() मार्शल
() हिक्स
() बेनहम

प्रश्न 3. पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाजार में सन्तुलन कीमत (P) बराबर होती है
() सन्तुलन मात्रा के
() कुल सम्प्राप्ति के
() कुल लागत के
() न्यूनतम औसत लागत के

प्रश्न 4. साम्य शब्द किस भाषा का है?
() इटली
() फ्रांस
() लेटिन
() बोविलोनिया

प्रश्न 5. साम्य का तात्पर्य किससे है?
() जड़ता से
() अपरिवर्तनशीलता से
() गतिशीलता से
() उपरोक्त सभी

प्रश्न 6. एक वस्तु की पूर्ति बढ़ने पर कीमत पर क्या प्रभाव पड़ता है?
() अधिक होती है।
() कम होती है।
() कोई प्रभाव नहीं
() इनमें से कोई नहीं

प्रश्न 7. एक वस्तु की पूर्ति घटने पर कीमत पर क्या प्रभाव पड़ता है?
() अधिक होती है
(). कम होती है।
() कोई प्रभाव नहीं
() इनमें से कोई नहीं

प्रश्न 8. एक वस्तु की कीमत और उसकी माँग के बीच सम्बन्ध होता है
() धनात्मक
() ऋणात्मक
() बराबर
() इनमें से कोई नहीं

प्रश्न 9. एक वस्तु की बाजार माँग वक्र का ढाल सामान्यतया होता है
() धनात्मक
() ऋणात्मक
() सीधा
() इनमें से कोई नहीं

प्रश्न 10. किसी वस्तु की कीमत बढ़ने पर उसकी माँग ……… हो जाती है।
() अधिक
() कम
() कोई प्रभाव नहीं
() इनमें से कोई नहीं

प्रश्न 11. वस्तु की कीमत बाजार माँग के बीच सम्बन्ध होता है
() धनात्मक
() ऋणात्मक
() शून्य
() कोई सम्बन्ध नहीं

प्रश्न 12. साम्य कीमत पर सन्तुष्ट होते हैं
() क्रेता विक्रेता दोनों
() केवल क्रेता
() केवल विक्रेता
() क्रेता विक्रेता दोनों में से कोई नहीं

प्रश्न 13. किसी वस्तु की माँग का मुख्य कारण है-
() मुद्रा की पूर्ति
() वस्तु की पूर्ति
() आवश्यकता सन्तुष्ट करने का गुण
() वस्तु की उपलब्धता

प्रश्न 14. एक उत्पादक वस्तु का उत्पादन किस उद्देश्य से करता है?
() सामाजिक सेवा हेतु
() आत्म सन्तुष्टि हेतु
() लाभ कमाने हेतु
() प्रतिष्ठा प्राप्त करने हेतु

प्रश्न 15.किसी वस्तु की पूर्ति बढ़ने पर पूर्ति वक्र
() दायीं तरफ खिसकता है।
() बायीं तरफ खिसकता है।
() स्थिर रहता है।
() कहीं भी खिसक सकता है।

अति लघुउत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. सन्तुलन (Equilibrium) से क्या आशय है?
उत्तर: सन्तुलन वह स्थिति है जिसमें कुल बाजार पूर्ति, कुल बाजार माँग के बराबर होती है। अर्थात् S = D

प्रश्न 2. पूर्ति आधिक्य (Excess Supply) से क्या आशय है?
उत्तर: जब किसी कीमत पर बाजार पूर्ति, बाजार माँग से अधिक (S > D) होती है।

प्रश्न 3. माँग आधिक्य से क्या आशय है?
उत्तर: जब किसी कीमत पर बाजार माँग, बाजार पूर्ति से (S < D) अधिक होती है।

प्रश्न 4. सन्तुलन कीमत से क्या आशय है?
उत्तर: जिस कीमत पर सन्तुलन स्थापित होता है उसे सन्तुलन कीमत कहते हैं।

प्रश्न 5. सन्तुलन माँग से क्या आशय है?
उत्तर: सन्तुलन कीमत पर वस्तु की माँगी गई मात्रा सन्तुलन माँग कहलाती है।

प्रश्न 6. सन्तुलन बिन्दु के अतिरिक्त किसी अन्य बिन्दु पर माँग और पूर्ति की क्या स्थिति होगी?
उत्तर: सन्तुलन बिन्दु के अतिरिक्त किसी अन्य बिन्दु पर माँग आधिक्य या पूर्ति आधिक्य की स्थिति हो सकती है।

प्रश्न 7. बाजार माँग वक्र का ढाल कैसा होता है?
उत्तर: ऋणात्मक ढाल।

प्रश्न 8. बाजार पूर्ति वक्र का ढाल कैसा होता है?
उत्तर: धनात्मक ढाल।

प्रश्न 9. बाजार की कोई एक विशेषता लिखिए।
उत्तर: बाजार में वस्तुओं, सेवाओं तथा साधनों का क्रय-विक्रय किया जाता है।

प्रश्न 10. एक पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाजार में फर्मों का उद्देश्य क्या होता है?
उत्तर: अपने लाभ को अधिकतम करना।

प्रश्न 11. किसी आगत की कीमत में वृद्धि को उसकी माँग पर क्या प्रभाव पड़ता है? बताइए।
उत्तर: आगत की कीमत बढ़ने पर वस्तु की माँग कम हो जाती है।

प्रश्न 12. यदि किसी वस्तु की पूर्ति लोचदार है तो वस्तु की माँग में वृद्धि का वस्तु की कीमत तथा मात्रा पर पड़ने वाले प्रभाव को बताइए।
उत्तर: ऐसी स्थिति में वस्तु की कीमत अप्रभावित रहेगी, परन्तु वस्तु की मात्रा बढ़ेगी।

प्रश्न 13. यदि वस्तु की पूर्ति पूर्णतः बेलोच है तो वस्तु की माँग बढ़ने पर वस्तु की कीमत तथा मात्रा पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर: वस्तु की कीमत बढ़ जायेगी, परन्तु वस्तु की मात्रा अप्रभावित रहेगी।

प्रश्न 14. यदि वस्तु की पूर्ति पूर्णतः बेलोच है तो वस्तु की माँग में कमी होने पर उसकी कीमत तथा मात्रा पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर: सन्तुलन कीमत घटेगी, परन्तु वस्तु की मात्रा अप्रभावित रहेगी।

प्रश्न 15. यदि माँग पूर्ण लोचदार है तो पूर्ति में कमी होने पर सन्तुलन कीमत तथा मात्रा पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर: कीमत पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा, परन्तु मात्रा में वृद्धि हो जाएगी।

प्रश्न 16. यदि वस्तु की माँग पूर्णतः लोचदार है तो वस्तु की पूर्ति में वृद्धि होने पर सन्तुलन कीमत तथा मात्रा पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर: वस्तु की कीमत अप्रभावित रहेगी परन्तु मात्रा में वृद्धि होगी।

प्रश्न 17. यदि वस्तु की माँग पूर्णतः बेलोचदार है तो वस्तु की पूर्ति में वृद्धि होने पर सन्तुलन कीमत तथा मात्रा पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर: वस्तु की मात्रा पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा किन्तु कीमत में कमी आयेगी।

प्रश्न 18. जब बाजार पूर्ति बाजार माँग से अधिक होती है तो वह स्थिति क्या कहलाती है?
उत्तर: अधिपूर्ति (Excess Supply)

प्रश्न 19. जब बाजार माँग बाजार पूर्ति से ज्यादा होती है तो वह स्थिति क्या कहलाती है?
उत्तर: अधिमाँग (Excess Demand)

प्रश्न 20. बाजार माँग तथा बाजार पूर्ति वक्रों के बायीं ओर खिसकने पर सन्तुलन मात्रा पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर: सन्तुलन मात्रा में कमी हो जायेगी।

प्रश्न 21. जब बाजार माँग तथा पूर्ति दोनों वक्र दायीं ओर शिफ्ट होते हैं तो सन्तुलन मात्रा पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर: सन्तुलन मात्रा बढ़ जायेगी।

प्रश्न 22. एक बाजार में फर्मों के निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन होने की स्थिति में पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाजार में कीमत किसके बराबर होगी?
उत्तर: न्यूनतम औसत लागत के बराबर।

प्रश्न 23. बाजार में सन्तुलन की स्थिति में बाजार माँग तथा पूर्ति की कैसी स्थिति होती है?
उत्तर: बाजार माँग तथा बाजार पूर्ति दोनों एक-दूसरे के बराबर होते हैं।

प्रश्न 24. वस्तु बाजार में वस्तु की माँग कौन करता है?
उत्तर: वस्तु की माँग परिवारों द्वारा की जाती है।

प्रश्न 25. वस्तु बाजार में वस्तु की पूर्ति कौन करता है?
उत्तर: वस्तु की पूर्ति उत्पादक फर्मों द्वारा की जाती है।

प्रश्न 26. बाजार में पूर्ति में वृद्धि होने के कोई दो कारण बताइए।
उत्तर:

1.    तकनीकी में सुधार करना

2.    उत्पादन की आगतों की कीमतों में कमी होना।

प्रश्न 27. बाजार में पूर्ति में कमी होने के कोई दो कारण बताइए।
उत्तर:

1.    वस्तु की कीमत

2.    उत्पत्ति के साधनों की कीमत।

प्रश्न 28. यदि बाजार माँग वक्र q0 = 200 – P है तथा सन्तुलन कीमत P = 10 है तो निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन स्थिति में सन्तुलन बताइए।
उत्तर: सन्तुलन मात्रा (q0) = 200 – P
= 200 – 10
= 190

प्रश्न 29. राशनिंग से क्या आशय है?
उत्तर: एक व्यक्ति के लिए वस्तु के उपयोग की उच्चतम मात्रा का निर्धारण ही राशनिंग कहलाता है।

प्रश्न 30. वस्तु की कीमत बढ़ने का श्रम की माँग पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर: श्रम की माँग बढ़ जायेगी।

प्रश्न 31. प्रो. जे.के. मेहता द्वारा दी गईसाम्यकी परिभाषा दीजिए।
उत्तर: प्रो. जे.के. मेहता के अनुसार, “सन्तुलन या साम्य का अर्थ है विश्राम की ऐसी स्थिति जिसकी विशेषता परिवर्तन का अभाव है।

प्रश्न 32. किसी वस्तु का मूल्य किन दो घटकों द्वारा निर्धारित होता है?
उत्तर: किसी वस्तु का मूल्य निम्न दो घटकों द्वारा निर्धारित होता है-

·         माँग पक्ष

·         पूर्ति पक्ष।

प्रश्न 33. बाजार सन्तुलन से आपको क्या आशय है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: बाजार सन्तुलन से आशय बाजार की उस स्थिति से है जहाँ पर बाजार माँग बाजार पूर्ति बराबर होती है।

प्रश्न 34. बाजार माँग से क्या अभिप्राय है? समझाइये।
उत्तर: बाजार में किसी मूल्य पर विभिन्न उपभोक्ताओं द्वारा वस्तु की माँगी जाने वाली मात्रा के योग को बाजार माँग कहते हैं।

प्रश्न 35. शून्य अधिमाँग एवं शून्य अधिपूर्ति की स्थिति स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: जिस कीमत पर बाजार माँग तथा बाजार पूर्ति बराबर होते है, वह शून्य अधिमाँग एवं शून्य अधिपूर्ति की स्थिति कहलाती है।

प्रश्न 36. बाजार माँग वक्र क्या प्रदर्शित करता है?
उत्तर: बाजार माँग वक्र उस मात्रा को प्रदर्शित करता है जिसे सभी उपभोक्ता विभिन्न दी हुई कीमतों पर खरीदने के इच्छुक होते हैं।

प्रश्न 37. बाजार पूर्ति वक्र क्या दर्शाता है?
उत्तर: बाजार पूर्ति वक्र वस्तु की उस मात्रा को प्रदर्शित करता है जिसे विभिन्न दी हुई कीमतों पर सभी फर्मे सम्मिलित रूप से पूर्ति करने की इच्छुक हैं।

प्रश्न 38. स्थानापन्न वस्तु की कीमत में वृद्धि होने पर सन्तुलन कीमत पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर: स्थानापन्न वस्तु की कीमत में वृद्धि होने पर संदर्भित वस्तु की माँग की मात्रा में वृद्धि होती है जिससे कि उस वस्तु की सन्तुलन कीमत में वृद्धि हो जायेगी।

प्रश्न 39. नियन्त्रित कीमत से क्या तात्पर्य है?
उत्तर: कीमत को सन्तुलित कीमत से कम या नीचे स्तर पर निर्धारित करना जिससे कि वस्तु की उपलब्धता को गरीब वर्गों के लिए सुनिश्चित किया जा सके।

प्रश्न 40. समर्थन मूल्य से क्या तात्पर्य है?
उत्तर: किसानों के हितों की सुरक्षा करने हेतु वस्तु के मूल्य को सन्तुलित कीमत से ऊँचे स्तर पर निर्धारित करना।

प्रश्न 41. बाजार मूल्य से आप क्या समझते हैं?
उत्तर: वह मूल्य जो माँग तथा पूर्ति की सापेक्षित शक्तियों द्वारा निर्धारित किया जाए तथा क्षण-प्रतिक्षण बदलता रहता हो।

प्रश्न 42. सामान्य मूल्य से क्या आशय है?
उत्त्तर: किसी वस्तु का वह मूल्य जो दीर्घकाल में पाया जाता है तथा इसमें माँग वे पूर्ति का सन्तुलन स्थायी होता है।

प्रश्न 43. एक वस्तु बाजार में वस्तु के माँग वक्र तथा पूर्ति वक्र में एक अन्तर बताइए।
उत्तर: एक वस्तु बाजार में वस्तु की माँग का वक्र नीचे गिरता हुआ होता है जबकि पूर्ति वक्र ऊपर उठता हुआ होता है।

प्रश्न 44. एक उद्योग में सन्तुलन तथा साम्य का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: जब एक दी हुई कीमत पर उद्योग द्वारा उत्पादित वस्तु की कुल पूर्ति उसके कुल माँग के बराबर होती है वहाँ उद्योग साम्य की स्थिति में होता है।

प्रश्न 45. यदि बाजार माँग वक्र qD = 200 – P तथा पूर्ति वक्र qs = 120 + P है, तो सन्तुलन कीमत ज्ञात करो।


प्रश्न 46. यदि बाजार पूर्ति वक्र qs = 140 + P है तथा सन्तुलन कीमत P = ₹20 है, तो सन्तुलन मात्रा बताइए।
उत्तर: qs = 140 + P
P = 20
सन्तुलन मात्रा, = 140 + P
= 140 + 20
= 160

प्रश्न 47. उच्चतम निर्धारित कीमत से क्या तात्पर्य है?
उत्तर: किसी वस्तु या सेवा की सरकार द्वारा निर्धारित की गई ऊपरी सीमा उच्चतम निर्धारित कीमत कहलाती है।

प्रश्न 48. निम्नतम निर्धारित कीमत से क्या तात्पर्य है?
उत्तर: किसी वस्तु या सेवा की सरकार द्वारा निर्धारित की गई न्यूनतम सीमा निम्नतम निर्धारित कीमत कहलाती है।

प्रश्न 49. यदि सरकार द्वारा बाजार में वस्तु पर उत्पादन कर लगाया जाये तो सन्तुलन कीमत पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर: यदि सरकार द्वारा बाजार में वस्तु पर उत्पादन कर लगाया जाता है, तो उसके पश्चात् सन्तुलन कीमत बढ़ेगी।

प्रश्न 50. सन्तुलन कीमत तथा नियन्त्रण कीमत में एक अन्तर बताइए।
उत्तर: नियन्त्रण कीमत का निर्धारण सरकार करती है, जबकि सन्तुलन कीमत का निर्धारण बाजार में माँग पूर्ति के साम्य द्वारा किया जाता है।

प्रश्न 51. कालाबाजारी का क्या अभिप्राय है?
उत्तर: सरकार द्वारा निर्धारित किसी वस्तु की कीमत से अधिक कीमत पर उस वस्तु को गैर-कानूनी तरीके से बेचना ही कालाबाजारी कहलाता है।

प्रश्न 52. वस्तु की कीमत तथा मात्रा में क्या अन्तर है?
उत्तर: दोनों में विपरीत सम्बन्ध होता है। कीमत बढ़ने पर वस्तु की मात्रा घट जाती है तथा कीमत घटने पर मात्रा बढ़ जाती है।

प्रश्न 53. सरकार कितने प्रकार से एक अर्थव्यवस्था में हस्तक्षेप कर सकती है?
उत्तर: सरकार दो प्रकार से अर्थव्यवस्था में हस्तक्षेप कर सकती है

1.    प्रत्यक्ष रूप से (Directly)

2.    अप्रत्यक्ष रूप से (Indirectly)

प्रश्न 54. यदि माँग और पूर्ति दोनों में कमी हो तो सन्तुलन कीमत पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर: माँग पूर्ति दोनों में समान स्थिति में कमी होने पर कीमत स्थिर रहेगी। यदि माँग, पूर्ति की तुलना में अधिक कम हो तो कीमत में कमी होगी तथा पूर्ति, माँग की तुलना में अधिक कम हो तो कीमत में वृद्धि होती है।

प्रश्न 55. वस्तु की माँग मात्रा में वृद्धि होने पर तथा उसी वस्तु की पूर्ति मात्रा में कमी होने पर सन्तुलन कीमत पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर: वस्तु की माँग की मात्रा में वृद्धि होने पर उसी वस्तु की पूर्ति मात्रा में कमी होने पर सन्तुलन कीमत में वृद्धि होगी।

आंकिक प्रश्न

प्रश्न 1. माना कि एक पूर्ण प्रतियोगी बाजार में माँग पूर्ति वक्र इस प्रकार है
qD = 800 – P, qs = 500 + 3P जब P ≥ 15, qs = 0, जब P< 15 बताइए।
(i) ₹ 15 से कम की किसी भी कीमत पर वस्तु की बाजार पूर्ति शून्य क्यों रहती है?
(ii) वस्तु की सन्तुलन कीमत क्या होगी?
(iii) सन्तुलन पर वस्तु की कितनी मात्रा का उत्पादन होगा?
उत्तर: (i) क्योंकि वस्तु की न्यूनतम औसत लागत ₹ 15 है। इससे कम कीमत पर वस्तु बेचने पर फर्म को हानि होगी। इसलिए ₹ 15 से कम कीमत पर पूर्ति शून्य रहेगी।

(ii) माना कि सन्तुलन कीमत P है।
अतः
qD = qS
800 – P = 500 + 3P
4P = 300
P = 75
अतः सन्तुलन कीमत ₹ 75 प्रति इकाई है।

(iii) हम प्राप्त कर चुके है सन्तुलन कीमत = ₹ 75
अतः qD = 800 – P
= 800 – 75 = 725
qS = 500 + 3P
= 500 + (3 × 75)
= 500 + 225 = 725
अतः सन्तुलन इकाइयाँ = 725

प्रश्न 2. माना कि एक वस्तु की निम्नलिखित माँग पूर्ति फलन है।
qD = 100 – 20P, qS = -5 + 15P
सन्तुलन कीमत तथा मात्रा ज्ञात कीजिए।
उत्तर: सन्तुलन कीमत के लिए
qD = qS
100 – 20P = – 5 + 15P
15P + 20P = 100 + 5
35P = 105
P = 3
अतः सन्तुलन कीमत = ₹ 3 प्रति इकाई।
इस कीमत को माँग एवं पूर्ति समीकरणों में रखकर संन्तुलन मात्रा ज्ञात कर सकते हैं।
qD = 100 – (20 × 3) = 40
q = – 5 + (15 × 3) = 40
अतः सन्तुलन कीमत = 40 इकाइयाँ

प्रश्न 3. माना कि एक पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाजार में फर्मों के प्रवेश तथा बहिर्गमन की अनुमति है और सभी फर्मे समान है। इस प्रकार के बाजार के लिए निम्नलिखित माँग और पूर्ति फलन दिये हुए हैं


सन्तुलन कीमत, मात्रा और फर्मों की संख्या ज्ञात कीजिए।
उत्तर: पूर्ति फलन से ज्ञात हो रहा है कि न्यूनतम औसत ₹ 20 है। अत: स्वतन्त्र प्रवेश तथा बहिर्गमन की स्थिति में सन्तुलन कीमत (P) भी ₹ 20 होगी, क्योंकि ऐसे बाजार में सन्तुलन कीमत, न्यूनतम औसत लागत के बराबर होती है।
माँग फलन में P = 20 रखने पर हम सन्तुलन मात्रा ज्ञात करेंगे – qD = 800 – 20 = 780 इकाइयाँ
सन्तुलन कीमत (P = 20) पर प्रत्येक फर्म की पूर्ति मात्रा qs= 10 + 20 = 30 इकाइयाँ

प्रश्न 4. माना कि एक पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाजार में सभी फर्मे एक समान है और सभी को प्रवेश तथा बहिर्गमन की अनुमति है। नीचे एक फर्म का बाजार माँग फलन तथा पूर्ति फलन दिया है।
qD = 590 – P
qsf = 8 + 5P जब P ≥ 10
= 0 जब P< 10

(i) P = 10 का क्या महत्त्व है?
(ii) बाजार किस कीमत पर सन्तुलन में होगा?
(iii) सन्तुलन मात्रा की गणना कीजिए।
(iv) बाजार में कितनी फर्मों की आवश्यकता है?
उत्तर: (i) फर्मों के स्वतन्त्र प्रवेश तथा बहिगर्मन की स्थिति में P = 10 का महत्त्व यह है कि सन्तुलन कीमत इससे कम या अधिक नहीं हो सकती है क्योंकि यह न्यूनतम औसत लागत के बराबर है। यदि कीमत बढ़ेगी तो नई फर्मे बाजार में प्रवेश करेंगी तथा घटेगी तो फर्मे बहिगर्मन करेंगी। अत: कीमत फिर से हैं ₹ 10 के स्तर पर जायेगी।

(ii) पूर्ति फलन से ज्ञात हो रहा है कि न्यूनतम औसत लागत ₹ 10 है क्योंकि स्वतन्त्र प्रवेश तथा बहिर्गमन वाले बाजार में सन्तुलन कीमत हमेशा न्यूनतम औसत लागत के बराबर रहती है। अत: यहाँ सन्तुलन कीमत के ₹ 10 प्रति इकाई होगी।

(iii) मॉग फलन में कीमत P = 10 रखकर हम सन्तुलन मात्रा ज्ञात करेंगे
qD = 590 – P
= 590 – 10 = 580 इकाइयाँ

प्रश्न 5. मान लीजिए एक वस्तु के माँग वक्र तथा पूर्ति वक्र का समीकरण निम्नलिखित है। कीमत तथा मात्रा ज्ञात करने के लिए समीकरण को हल कीजिए।
qd = 8,196 – 3,56P
qS = 600 – 4,000P
उत्तर: सन्तुलन कीमत पर माँग की मात्रा (qd) तथा पूर्ति की मात्रा (qs) बराबर होती है।
अतः qd = qs
8,196 – 3,596P = 600 + 4,000P
अथवा 3,596P – 4,000P = 600 – 8,196
अथवा 7,596P = – 7,596
अतः कीमत (P) = ₹ 1
साम्य मात्रा = 8,196- 3,596 = 4,600 इकाइयाँ
अथवा
= 600 + 4,000P = 600 + (4,000 × 1) = 4,600 इकाइयाँ

प्रश्न 6. लैपटॉप के माँग तथा विपरीत पूर्ति वक्र का समीकरण नीचे दिया गया है।
P = 2qs
P = 42 – qd
सन्तुलन कीमत की गणना कीजिए।
उत्तर:

सन्तुलने कीमत पर qd = qs
अत: समीकरण (i) तथा (ii) से,
[latex]\frac { P }{ 2 } [/latex] = [latex]\frac { 42-p }{ 1 } [/latex]
या P = 84 – 2P
या P + 2P = 84
या 3P = 84
या P = 28 अतः
अतः सन्तुलन कीमत = ₹ 28

प्रश्न 7. माना कि माँग और पूर्ति के समीकरण निम्नलिखित है।
qd = 110 – 10P
qs =- 100 + 20P
सन्तुलन कीमत तथा मात्रा ज्ञात कीजिए।
उत्तर: हम जानते हैं कि सन्तुलन कीमत पर माँग मात्रा (qd) तथा पूर्ति मात्रा (qs) बराबर होते है।
अतः qd = qs
अर्थात् 110 – 10P = -100 + 20P
या -10P – 20P = -100 – 110 या – 30P = – 210 या P = [latex]\frac { 210 }{ 30 } [/latex] = 7
अतः सन्तुलन कीमत (P)= ₹ 7
सन्तुलन मात्रा (qd) = 110 – (10 × 7) = 40 इकाइयाँ
qs = – 100 + 20 × 7 = 100 + 140 = 40 इकाइयाँ

प्रश्न 8. (i) निम्नलिखित समीकरण से साम्य कीमत तथा मात्रा की गणना करें।
qd = 10 – P
qs = P
(ii) (a) बाजार में माँग तथा पूर्ति की क्या स्थिति होगी यदि बाजार मूल्य ₹ 7 है?
(b) बाजार में माँग तथा पूर्ति की क्या स्थिति होगी यदि बाजार कीमत ₹ 3 है?
उत्तर: (i) साम्य कीमत पर माँग (qd) तथा पूर्ति (qs) बराबर होते हैं।
अतः qd = qs
अथवा 10 – P = P
अथवा -2P = -10
P = 5
अतः सन्तुलन कीमत (P) = 5
सन्तुलन मात्रा (qd) = 10 – P
अथवा qs = p
या qs = 5 इकाइयाँ
अथवा qd = 10 – 5 = 5 इकाइयाँ

(ii) (a) सन्तुलन कीमत 35 है और बाजार कीमत के 7 है। स्पष्ट है कि बाजार कीमत सन्तुलन कीमत से अधिक है। इस स्थिति में बाजार में पूर्ति आधिक्य की स्थिति होगी।
(b) सन्तुलन कीमत के ₹ 5 है और बाजार कीमत ₹ 3 है। स्पष्ट है कि बाजार कीमत सन्तुलन से कम है। अत: ऐसी स्थिति में बाजार में माँग आधिक्य होगा।


JCERT/JAC REFERENCE BOOK

विषय सूची

JCERT/JAC प्रश्न बैंक - सह - उत्तर पुस्तक (Question Bank-Cum-Answer Book)

विषय सूची


Economics Group-A

1. व्यष्टि अर्थशास्त्र परिचय (Micro Economics Introduction)

2. उपभोक्ता का संतुलन (Consumer's Equilibrium)

3. उपभोक्ता व्यवहार एवं माँग (Consumer Behavior and Demand)

4. उपभोग फलन (Consumption Function)

5. उत्पादक व्यवहार एवं पूर्ति (Consumer Behavior and Supply)

6. मांग की अवधारणा (Concept of Demand)

7. मांग की कीमत लोच (Price Elasticity of Demand)

पूर्ति की अवधारणा (Concept of Supply)

9. उत्पादन फलन (Production Function)

10. उत्पादन की अवधारणा (Concept of Production Function)

11. लागत की अवधारणा (Concepts of Cost)

12. फर्म का संतुलन (Firm’s Equilibrium)

13. आगम की अवधारणा (Concepts of Revenue)

14. बाजार सन्तुलन (Market Equilibrium)

15. बाजार के स्वरूप (प्रकार) एवं मूल्य निर्धारण (Forms of Market and Price Determination)

16. बाजार के अन्य स्वरूप (Other Forms of Markets)

17 पूर्ण प्रतियोगी बाजार (Perfect Competition Markets)

Economics Group-B

समष्टि अर्थशास्त्र का परिचय (Introduction to Macroeconomics)

राष्ट्रीय आय का लेखांकन (Accounting of National Income)

मुद्रा और बैंकिंग (Money and Banking)

1.राष्ट्रीय आय(National Income)

2.राष्ट्रीय आय (National Income)

3. राष्ट्रीय आय से सम्बन्धित समुच्चय (Aggregates related to national income) 

4. राष्ट्रीय आय का मापन (National Income Measurement)

5. आय एवं रोजगार का निर्धारण (Determination of Income And Employment)

6. मुद्रा एवं बैंकिंग (Money and Banking)

7. केन्द्रीय बैंक: कार्य एवं साख नियन्त्रण (Central Bank: Functions & Credit Control)

8. मुद्राः अर्थ, कार्य एवं महत्त्व (Money: Meaning, Functions and Importance)

9. भुगतान संतुलन (Balance of Payment)

10. सरकारी बजट एवं अर्थव्यवस्था (Government Budget and The Economy)

11. Government_Budget_And_Economy

12. Commercial-Banks (व्यापारिक बैंकः अर्थ एवं कार्य)

13. Concepts-of-Excess-Deficient-Demand(अधिमाँग एवं न्यून माँग अवधारणा )

14, Income-Production-Determination(आय-उत्पादन का निर्धारण )

15. Foreign Exchange Rate (विदेशी विनिमय दर)

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