अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
1. वस्तु विशेष की कीमत
2. उपभोक्ता की आय
3. उपभोक्ता की पसंद।
1. चाय व कॉफी
2. वनस्पति घी व रिफाइन्ड
3. चीनी व गुड़
4. कोका कोला व पेप्सी।
1. चाय व चीनी
2. जूते व मोजे
3. स्कूटर व पेट्रोल
4. पैन व इंक।
1. उपभोक्ता की आय में परिवर्तन नहीं होना चाहिए।
2. उपभोक्ता के स्वभाव, रुचि एवं अधिमान में कोई बदलाव नहीं होना चाहिए।
लघु उत्तरीय प्रश्न
चित्र ‘अ’
से स्पष्ट है कि जब सेब का मूल्य ₹100 प्रति किग्रा होता है तो सेब की मांग 1 किग्रा होती है लेकिन जब सेब को मूल्य घटकर ₹50 प्रति किग्रा हो जाता है तो मांग बढ़कर 3 किग्रा हो जाती है। इसे मांग का विस्तार कहते हैं। उपभोक्ता A बिन्दु से B बिन्दु पर खिसक जाता है।
चित्र ‘ब’
में जब कीमत ₹50 प्रति किग्रा होती है तो उपभोक्ता 3 किग्रा सेब खरीदता है लेकिन जब कीमत बढ़कर ₹100 प्रति किग्रा हो जाती है तो मांग घटकर 1 किग्रा रह जाती है। उपभोक्ता मूल्य परिवर्तन के कारण A से B बिन्दु पर उसी वक्र पर खिसक जाता है। इसे मांग का संकुचन कहेंगे।
मांग वक्र में विवर्तन – मांग वक्र में विवर्तन का आशय है उपभोक्ता की आय में परिवर्तन होने के फलस्वरूप (जबकि वस्तु का मूल्य अपरिवर्तित रहता है) उसके एक वक्र दूसरे वक्र पर खिसक जाने से है। यह निम्न चित्रों से स्पष्ट है -
चित्र ‘स’
में आय बढ़ने पर मांग वक्र DD से D1 D1 हो जाता है। उपभोक्ता द्वारा वस्तु की खरीदी जाने वाली मात्रा OQ से बढ़कर OQ1 हो जाती है। आय बढ़ने पर उपभोक्ता DD के A बिन्दु से D1D1 में B बिन्दु पर खिसक जाता है। यह मांग में वृद्धि को दर्शाता है।
चित्र ‘द’
में उपभोक्ता आय घटने पर मांग वक्र DD से D1D1 जो बायीं ओर है पर खिसक जाता है अर्थात् A बिन्दु से B बिन्दु पर आ जाता है और उसकी मांग घटकर OQ से OQ1 रह जाती है। मांग में इस गिरावट को मांग में कमी कहते हैं।
घटिया या
गिफिन वस्तुएँ वह होती हैं जिनकी मांग कीमत बढ़ने पर बढ़ती है तथा कीमत घटने पर घटती है।
गेहूँ सामान्य वस्तु की
श्रेणी में आता है तथा मोटे अनाज घटिया वस्तु की श्रेणी में आते हैं। इसी प्रकार देशी घी सामान्य वस्तु है। तथा डालडा घटिया वस्तु है।
चित्र से
स्पष्ट है कि Y वस्तु की कीमत जब OP थी तो X वस्तु की मांग OQ थी। जब Y वस्तु की कीमत घटकर OP1 हो गई तो X वस्तु की मांग घटकर OQ1 रह गई। स्थानापन्ने वस्तुओं में मांग वक्र धनात्मक होता है।
1. उपभोक्ता की आय में अचानक कमी हो जाये
2. स्थानापन्न वस्तु सस्ती हो जाय तथा
3. वस्तु की कीमत के भविष्य में कम होने की सम्भावना हो।
चित्र में DD मांग वक्र है
जिसके विभिन्न बिन्दु विभिन्न कीमतों पर वस्तु की मांगी जाने वाली मात्रा को व्यक्त करते हैं।
1. उपभोक्ताओं
की आय में कोई परिवर्तन
नहीं होता है।
2. उपभोक्ताओं
की रुचि एवं
स्वभाव में कोई बदलाव नहीं
होता है।
3. अन्य सम्बन्धित वस्तुओं के
मूल्य में कोई परिवर्तन नहीं होता
है।
4. भविष्य में वस्तु के मूल्य में और परिवर्तन की संभावना नहीं होती है।
प्रश्न 18. बताइए निम्न वस्तुएँ किस श्रेणी की
वस्तुएँ हैं
उत्तर:
1. वस्तु की कीमत – वस्तु की कीमत कम होने पर मांग ज्यादा होती है तथा कीमत ज्यादा होने पर मांग कम होती. है।
2. उपभोक्ता की आय – उपभोक्ता की आय में कमी होने पर मांग घट जाती है तथा उपभोक्ता की आय बढ़ने पर वस्तु की मांग बढ़ जाती है।
रेखाचित्र से
स्पष्ट है कि जब कार की कीमत OP थी तो पेट्रोल की मांग OQ थी। कार की मांग की कीमत बढ़कर जब OP1 हो जाती है तो पेट्रोल की मांग घटकर OQ से OQ1 हो जाती है।
चित्र से
स्पष्ट है कि जब चाय की कीमत OP है तो कॉफी की मांग OQ के बराबर है। लेकिन जब चाय की कीमत बढ़कर OP1 हो जाती है तो उपभोक्ताओं द्वारा कॉफी की मांग बढ़कर OQ1 हो जाती है।
1. उपभोक्ताओं की आय अपरिवर्तित रहनी चाहिए।
2. उपभोक्ताओं की रुचि व स्वभाव में परिवर्तन नहीं होना चाहिए।
3. अन्य
सम्बन्धित वस्तुओं के मूल्यों में परिवर्तन नहीं होना चाहिए।
4. किसी
नई स्थानापन्न वस्तु की खोज नहीं होनी चाहिए।
5. भविष्य
में वस्तुओं के मूल्य में और अधिक परिवर्तन की संभावना नहीं होनी चाहिए।
6. वस्तु प्रतिष्ठा सूचक नहीं होनी चाहिए।
(i)
गिफिन वस्तुएँ – गिफिन वस्तुएँ प्रायः निम्न कोटि की या घटिया वस्तुओं को कहते हैं जिन पर उपभोक्ता अपनी आय का बड़ा हिस्सा व्यय करता है; जैसे-देशी घी की तुलना में डालडा, गेहूं की तुलना में बाजरा, मांस की तुलना में रोटी आदि। ऐसी वस्तुओं की मांग उनकी कीमत बढ़ने पर बढ़ती है तथा घटने पर घट जाती है। इस कारण इन वस्तुओं पर मांग का नियम क्रियाशील नहीं होता है।
(ii)
प्रतिष्ठासूचक वस्तुएँ- प्रतिष्ठासूचक वस्तुएँ वह होती हैं जिनके प्रयोग से व्यक्ति की समाज में प्रतिष्ठा बढ़ती है। ऐसी वस्तुओं की मांग कीमत बढ़ने पर ज्यादा होती है और मांग का नियम क्रियाशील नहीं होता है।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
मांग का
नियम मूल्य एवं मांग में विपरीत सम्बन्ध को व्यक्त करता है लेकिन यह सम्बन्ध आनुपातिक हो ऐसा आवश्यक नहीं है। मूल्य परिवर्तन के फलस्वरूप मांग में परिवर्तन अनुपात से कम, आनुपातिक तथा अनुपात से ज्यादा हो सकता है। लेकिन यह परिवर्तन होगा ऋणात्मक ही। मांग के नियम को निम्न तालिका द्वारा स्पष्ट किया का सकता है –
नीचे दी गई तालिका में वस्तु का मूल्य तथा विभिन्न मूल्यों पर उसकी मांगी जाने वाली मात्रा को दर्शाया गया है –
तालिका से
स्पष्ट है कि जब वस्तु ‘अ’ की कीमत प्रति इकाई ₹1 है तो उस वस्तु की मांग 5 हजार इकाइयां प्रतिदिन है। जब मूल्य बढ़कर ₹2, 3, 4 और 5 हो जाता है तो उसकी मांग घटकर क्रमशः 4 हजार, 3 हजार, 2 हजार व 1 हजार रह जाती है अर्थात् मूल्य जैसे-जैसे बढ़ता जाता है, मांग वैसे ही वैसे घटती जाती है।
तालिका के आँकड़ों को रेखाचित्र के रूप में भी प्रस्तुत किया जा सकता है। रेखाचित्र के रूप में प्रस्तुत करने पर हमें मांग वक्र प्राप्त होगा जिससे विभिन्न मूल्यों पर ‘अ’ वस्तु की मांगी जाने वाली मात्रा का पता चलेगा। यह मांग वक्र ऊपर से नीचे दाहिनी ओर गिरता हुआ होगा क्योंकि मूल्य एवं मांग में ऋणात्मक सम्बन्ध होता है।
उक्त चित्र में X-अक्ष पर
‘अ’ वस्तु की मांग (हजार में) दिखाई गई है तथा Y-अक्ष पर ‘अ’ वस्तु की कीमत (प्रति इकाई ₹ में) दिखाई गई है। जब ‘अ’ वस्तु की कीमत ₹5 है तो उसकी मांग केवल 1 हजार वस्तुएँ है लेकिन जब मूल्य घटकर ₹4 प्रति हजार हो जाती है तो मांग बढ़कर 2 हजार वस्तुएँ हो जाती है। इसी प्रकार मूल्य और गिरने पर जब यह ₹3, ₹2, ₹1 हो जाती है तो ‘अ’ वस्तु की मांग क्रमश: बढ़ती हुई 3 हजार, 4 हजार व 5 हजार वस्तुएँ हो जाती है। अतः मूल्य घटने के साथ-साथ मांग बढ़ती जाती है। इसे दूसरे रूप में इस प्रकार भी कह सकते हैं कि मूल्य बढ़ने पर मांग लगातार घटती जाती है। इसी सम्बन्ध को ऋणात्मक सम्बन्ध कहते हैं।
मांग के
नियम की मान्यताएँ (Assumptions of Law of
Demand) – मांग का नियम निम्न मान्यताओं पर आधारित है –
1. उपभोक्ता की आय में कोई परिवर्तन नहीं होना चाहिए।
2. उपभोक्ता की पसंद अपरिवर्तित रहनी चाहिए।
3. अन्य
सम्बन्धित वस्तुओं; जैसे – पूरक एवं स्थानापन्न वस्तुओं, के मूल्य में भी कोई परिवर्तन नहीं होना चाहिए।
4. किसी
नई स्थानापन्न वस्तु का उपभोक्ता को पता नहीं चलना चाहिए।
5. वस्तु
प्रतिष्ठा वाली नहीं होनी चाहिए।
6. भविष्य
में वस्तु के मूल्य में ज्यादा परिवर्तन की संभावना नहीं होनी चाहिए।
7. देश
की जनसंख्या का आकार पूर्ववत रहना चाहिए।
8. राष्ट्रीय आय के वितरण में कोई परिवर्तन नहीं होना चाहिए।
1. जब मांग वक्र दाहिनी अथवा आगे की ओर खिसक जाता है।
2. जब मांग वक्र बाएँ अथवा नीचे की ओर खिसक जाता है।
1. मांग वक्र का दाहिनी ओर ऊपर की ओर खिसकना – मांग वक्र दाहिनी ओर तब खिसकता है जब कीमत स्थिर रहते हुए उपभोक्ता की आय में वृद्धि होने के कारण उसकी वस्तु की मांग बढ़ जाती है। यह निम्न चित्र से स्पष्ट है –
जैसा कि
चित्र में दर्शाया गया है वस्तु की कीमत OP ही रहती है लेकिन उपभोक्ता की मांग OQ से बढ़कर OQ1 हो जाती है जो आय में वृद्धि के कारण है। इसे मांग में वृद्धि (Increase in Demand) कहते हैं।
2. जब मांग वक्र बायें नीचे की ओर खिसक जाता है – यह तब होता है जब वस्तु का मूल्य तो अपरिवर्तित रहता है लेकिन उपभोक्ता की आय कम हो जाती है और आय कम होने के कारण वह पहले से कम मात्रा खरीदपाता है। यह निम्न चित्र में दर्शाया गया है –
चित्र से
स्पष्ट है कि उपभोक्ता मूल्य OP रहने की अवस्था में भी वस्तु की मांग OQ से घटाकर OQ1 कर लेता है क्योंकि वह आय कम होने के कारण वस्तु की कम मात्रा ही खरीद पाता है। इस अवस्था में मांग वक्र DD से नीचे की ओर खिसक कर D1D1 हो जाता है। इसको मांग में कमी (Decrease in Demand) कहते हैं।
(ब) मांग मात्रा में परिवर्तन (Change in Quality Demanded) – किसी वस्तु की कीमत में कमी अथवा वृद्धि के फलस्वरूप जब उस वस्तु की मांगी जाने वाली मात्रा में परिवर्तन होता है तो इसे एक ही मांग वक्र पर चलन के रूप में दिखाया जाता है। इस अवस्था में मांग मात्रा की कमी को मांग का संकुचन (Contraction) तथा मांग मात्रा में वृद्धि को मांग का विस्तार (Expansion) कहते हैं। इन दोनों अवस्थाओं को निम्न चित्रों द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है –
चित्र (अ)
में जब कीमत ₹50 थी तो मांग थी 100 इकाइयाँ लेकिन जब कीमत घटकर ₹30 रह गई तो मांग बढ़कर 300 इकाइयाँ हो गई। यह मांग की मात्रा में वृद्धि या विस्तार कहलाता है।
उपरोक्त चित्र (ब)
में जब कीमत ₹30 थी तो वस्तु की मांग थी 300 इकाइयाँ लेकिन जब कीमत बढ़कर ₹50 हो गई तो वस्तु की मांग घटकर 100 इकाइयाँ रह गई। यह मांग की मात्रा में संकुचन या कमी कहलाता है।
चित्र से
स्पष्ट है कि जब उपभोक्ता की आय OI थी तो वस्तु की मांग OQ थी लेकिन है। जब उसकी आय बढ़कर OI1 हो गई तो उसकी मांग बढ़कर OQ1 हो गई। मांग में Q से Q1 तक की वृद्धि आय में वृद्धि के कारण है।
आय
बढ़ने पर कुछ वस्तुओं की मांग एक बिन्दु के बाद बढ़ने के स्थान पर घट जाती है ऐसी वस्तुओं को निम्न कोटि की वस्तुएँ या गिफिन गुड्स कहते हैं, जैसे-डालडा घी, मोटा अनाज आदि।
(i) पूरक वस्तु के मूल्य में वृद्धि का वस्तु की मांग पर प्रभाव – एक पूरक वस्तु के मूल्य में वृद्धि पर दूसरी पूरक वस्तु की मांग घट जाती है, क्योंकि पूरक वस्तुएँ एक आवश्यकता को पूरा करने के लिए साथ-साथ मांगी जाती हैं। जैसे–चाय-चीनी, स्कूटर-पेट्रोल आदि। यदि चाय की कीमत बढ़ जाती है तो चीनी की मांग घट जायेगी। इसी प्रकार स्कूटर की कीमत बढ़ने पर पेट्रोल की मांग घट जायेगी। क्योंकि पेट्रोल का प्रयोग स्कूटर के लिए है। अतः पूरक वस्तुओं के मांग वक्र का ढाल ऋणात्मक होता है जो निम्न चित्र से स्पष्ट है-
चाय की
कीमत OP से बढ़कर OP1 हो जाती है तो चीनी की मांग घटकर OQ से OQ1 रह जाती है।
(ii) स्थानापन्न वस्तुओं की कीमत में वृद्धि का वस्तु की मांग पर प्रभाव – स्थानापन्न वस्तुएँ वह होती हैं जिन्हें एक के स्थान पर दूसरी वस्तु को खरीद कर आवश्यकता की पूर्ति की जा सकती है; जैसे – चाय व काफी। यदि चाय महँगी हो जायेगी तो उपभोक्ता चाय के स्थान पर कॉफी का प्रयोग करने लगेंगे (क्योंकि कॉफी का मूल्य अपरिवर्तित है।) इससे चाय की कीमत बढ़ने पर कॉफी की मांग बढ़ जायेगी। इस प्रकार स्थानापन्न वस्तुओं में मांग वक्र धनात्मक ढाल वाला होता है। यह निम्न चित्र से स्पष्ट है –
1.
वस्तु की स्वयं की कीमत- वस्तु की कीमत मांग को प्रभावित करने वाला सबसे महत्त्वपूर्ण तत्व है। वस्तु की कीमत में जब परिवर्तन होता है तो उस वस्तु की मांग भी बदल जाती है। वस्तु की कीमत एवं मांग में प्रतिकूल सम्बन्ध होता है। अर्थात् कीमत बढ़ने पर मांग घटती है तथा कीमत घटने पर मांग बढ़ती है।
2.
आय में परिवर्तन – उपभोक्ता की आय भी मांग को प्रभावित करती है। आय बढ़ने पर वस्तु की मांग ज्यादा हो जाती है। तथा आय घटने पर उसकी मांग कम हो जाती है। यह बात तभी लागू होगी जबकि कीमत स्थिर रहे। गिफिन वस्तुएँ इसका अपवाद हैं।
3.
उपभोक्ताओं की रुचि-किसी वस्तु की मांग पर उपभोक्ताओं की रुचि, आदत, फैशन तथा रीति-रिवाज का भी प्रभाव पड़ता है। किसी वस्तु के फैशन में आने पर उसकी मांग बढ़ जाती है तथा फैशन से बाहर होने पर उसकी मांग कम हो जाती है। उदाहरण के लिए मोबाइल फोन की मांग आजकल दिनों दिन बढ़ रही है जबकि पहले इसकी मांग बहुत कम थी। पहले उपभोक्ता सामान्य भोजन की मांग करता था आज रुचि बदलने के कारण नूडल्स, पीजा, बर्गर आदि की मांग ज्यादा करता है। इस प्रकार उपभोक्ता की रुचि, फैशन आदि भी वस्तु की मांग को प्रभावित करता है।
4.
सम्बन्धित वस्तुओं की कीमतों में परिवर्तन सम्बन्धित वस्तुएँ दो प्रकार की होती है – (i) पूरक वस्तुएँ; जैसे–मक्खन एवं डबल रोटी, कारं व पेट्रोल आदि और (ii) स्थानापन्न वस्तुएँ; जैसे-चाय व कॉफी। सम्बन्धित वस्तुओं की कीमतें भी वस्तु की मांग को प्रभावित करती हैं; जैसे-डबल रोटी महँगी होने पर मक्खन की मांग भी घट जायेगी। इसी प्रकार चाय महँगी होने पर कॉफी की मांग बढ़ जायेगी।
5.
अन्य तत्व- वस्तु की मांग को उपरोक्त तत्वों के अतिरिक्त अन्य तत्व भी प्रभावित करते है; जैसे-जनसंख्या में परिवर्तन, व्यापार चक्रों के कारण, भविष्य में कीमत परिवर्तन की संभावना, जलवायु में परिवर्तन, समाज में धन वितरण के स्वरूप में परिवर्तन आदि।
1.
उपयोगिता ह्रास नियम का लागू होना- मांग का नियम सीमान्त उपयोगिता ह्रास नियम पर आधारित है। इस नियम के अनुसार जैसे-जैसे किसी वस्तु की अगली इकाई का प्रयोग किया जाता है वैसे-वैसे उसकी सीमान्त उपयोगिता घटने लगती है। कोई भी उपभोक्ता सीमान्त उपयोगिता से ज्यादा कीमत नहीं दे सकता है। अतः वस्तु की अतिरिक्त मात्रा मूल्य कम होने पर ही खरीदी जाती है। क्योंकि कीमत कम होने पर ही उपभोक्ता द्वारा अगली इकाई को खरीदना लाभप्रद होता है। इस कारण कम कीमत में अधिक मांग होती है तथा ऊँची कीमत पर मांग कम होती है। इसी विशेषता को दायें नीचे की ओर झुकता हुआ मांग वक्र दर्शाता है।
2.
प्रतिस्थापन प्रभाव- जब किसी वस्तु की कीमत गिरती है तो अन्य वस्तुओं की तुलना में जिनके मूल्य में कोई कमी नहीं हुई है यह वस्तु सस्ती हो जाती है। इस कारण लोग इस वस्तु का दूसरी वस्तुओं, जो अपेक्षाकृत महँगी हैं, के स्थान पर प्रयोग करने लगते हैं अर्थात् दूसरी वस्तुओं के स्थान पर इसका प्रतिस्थापन करने लगते हैं। इससे इस वस्तु की मांग बढ़ जाती है। उदाहरण के लिए यदि चाय महँगी हो जाये और कॉफी के मूल्य में कोई बदलाव न हो तो यह बात निश्चित है कि कुछ लोग चाय के स्थान पर कॉफी का सेवन करने लगेंगे। इससे कॉफी की मांग बढ़ जायेगी तथा चाय की मांग गिर जायेगी।
3.
आय प्रभाव- किसी वस्तु की कीमत में यदि कमी होती है तो इससे उपभोक्ता की वास्तविक आय बढ़ती जाती है। – ऐसी अवस्था में उपभोक्ता बढ़ी आय का कुछ हिस्सा उस वस्तु की और मात्रा खरीदने पर खर्च करने लगेगा जिससे उस वस्त की मांग बढ़ जायेगी, इसे आय प्रभाव कहते हैं। उदाहरण के लिए यदि एक किलो चीनी की कीमत में ₹40 से घटकर ₹30 हो जाये तो उपभोक्ता द्वारा यदि 1 किलों चीनी खरीदी जाती थी तो उसकी वास्तविक आय ₹10 बढ़ जायेगी। अब वह इस बढ़ी हुई आय अर्थात् ₹10 में से ₹7.5 चीनी पर और खर्च करके 1.25 किलोग्राम चीनी खरीद सकता है तथा शेष ₹2.5 को किसी और वस्तु खरीदने पर व्यय कर सकता है। अतः आय प्रभाव के कारण भी वस्तु की कीमत में कमी होने पर वस्तु की मांग बढ़ जाती है।
4.
नये क्रेताओं का प्रवेश तथा पुराने क्रेताओं का बहिर्गमन – जब किसी वस्तु की कीमत में कमी हो जाती है तो कुछ नये क्रेता भी उस वस्तु को खरीदने लगते हैं जो पहले नहीं खरीद पा रहे थे। इससे उस वस्तु की मांग बढ़ जाती है। इसके विपरीत जब किसी वस्तु की कीमत बढ़ जाती है तो कुछ क्रेता उस वस्तु को खरीदना बंद कर देते हैं और बाजार से बाहर हो जाते हैं जिससे उस वस्तु की मांग कम हो जाती है।
उपरोक्त चित्र में DD मांग वक्र है
जिसके प्रत्येक बिन्दु से विभिन्न मूल्यों पर मांगी जाने वाली मात्रा स्पष्ट होती है। जैसे-यदि कीमत के ₹10 प्रति किग्रा है तो वस्तु की मांग 50 किग्रा है। जब कीमत बढ़कर 20 व 30 हो जाती है तो मांग घटकर क्रमशः 40 व 30 किग्रा रह जाती है। यह मांग वक्र विभिन्न कीमतों पर किसी उपभोक्ता विशेष की मांग को दर्शाता है।
बाजार मांग वक्र वैयक्तिक मांग वक्रों के
क्षैतिज योग से प्राप्त होता है। चित्र में है ₹10 कीमत पर A की मांग 300 किग्रा तथा B की मांग 250 किग्रा है तो इस कीमत पर बाजार मांग 300 + 250 = 550 किग्रा. हुई। इसी तरह अन्य कीमतों पर भी बाजार मांग को निकाला जा सकता है।
वस्तुनिष्ठ प्रश्न