जयशंकर प्रसाद - देवसेना का गीत
लेखक परिचय
जन्म-30 जनवरी 1989
राज्य - उत्तर प्रदेश
जिला -वाराणसी मृत्यु 15 नवंबर 1937 वाराणसी (उत्तर प्रदेश)
पिता- बाबू देवी प्रसाद
माता श्रीमती मुन्नी देवी
काल- आधुनिक काल (छायावादी धारा)
शिक्षा- आरंभिक शिक्षा क्वींस कॉलेज काशी मे हुई थी।
संस्कृत, हिंदी, फारसी भाषाओं का अध्ययन इन्होंने घर पर ही किया।
पहचान- नाटक सम्राट के रूप में इन्हें जाना
गया।
साहित्यिक-परिचय
मोक्ष नगरी काशी में जिनका जन्म और मृत्यु हुआ जो एक युग
प्रवर्तक है और छायावाद के स्तंभ निर्माता है एक अद्भुत साहित्य सृजन से हिंदी
साहित्य जगत को शोभित करने वाले जयशंकर प्रसाद की उपलब्धियों को जितना गिनाया जाए
वह कम है इनकी उपलब्धियों को उंगलियों पर गिनाया नहीं जा सकता है। नाटक सम्राट की
उपाधि इन्हें अवश्य ही मिली किंतु इनका जीवन कांटो के ताज से कुछ कम नहीं था।
आर्थिक स्थिति डांवाडोल होना और अपने प्रियजनों के असमय कालकलवित होना इनके जीवन
का एक अभिन्न हिस्सा बन गया था। किंतु इसके बावजूद भी इन्होंने साहित्य को अमूल्य
निधियों से भर दिया।
आर्थिक स्थिति ठीक न होने के कारण इन्होंने किसी उत्कृष्ट
संस्थान से शिक्षा नहीं प्राप्त की बावजूद उनके साहित्य उत्कृष्ट श्रेणी में गिने
जाते हैं। काल ने उनके जीवन की समय सीमा को बहुत ही जल्दी बांध लिया किंतु अपने
जीवन के छोटे से पड़ाव में उन्होंने जो साहित्यिक उपलब्धियां प्राप्त की उसे किसी
भी सीमा में बांधना नामुमकिन है। प्रसाद जी की रचनाओं के कुछ महत्वपूर्ण बिंदु थे
जिन पर प्रायः अपनी कलम चलाया करते थे आइए एक बार उन बिंदुओं का अवलोकन करें-
1 ) आधुनिक परिपेक्ष में लिखे गए ऐतिहासिकनाटक - देश आजादी के लिए जूझ रहा था ऐसे में प्रसाद जी ने
राष्ट्रहित के लिए कई सारी रचनाएं की अधिकांश रचनाएं इनके ऐतिहासिक पृष्ठभूमि में
लिखी गई ताकि अतीत के गौरव गाथा से देश के लोग कुछ सीख पाए 'चंद्रगुप्त'
'स्कंदगुप्त' नाटक लिखने का प्रयोजन भी कुछ इसी प्रकार का था लोग तटस्थ होकर
देशहित का ढोंग कर रहे थे दूसरी तरफ लोग अंग्रेजों के चाल चलन से प्रभावित हो रहे
थे इन सब को देखते हुए उन्होंने कई एक ऐतिहासिक रचनाएं की और आवश्यकता अनुसार
उन्होंने अपने विस्फोटक विचारों को भी प्रस्तुत किया ताकि देश जागृति हो सके।
2) भाव प्रधान आदर्शवादी कहानियां-प्रसाद जी ने अधिकांश भाव प्रधान आदर्शवादी
कहानियों की रचना की ताकि जीवन में आदर्शवाद के मूल्य को
स्थापित किया जा सके जैसे-पुरस्कार कहानी।
3) दृश्य एवं चित्रतात्मक शैली-इनकी रचनाओं में दृश्य और चित्रात्मक शैली की प्रधानता थी। जैसे
'कार्निलिया के गीत' में इन्होंने सूर्य की लालिमा को जिस तरह से चित्रित किया मानो
साक्षात सोने के घड़े के समान सूर्य आंखों के सामने उपस्थित हो गया हो।
4) अंतर्द्वद की प्रधानता-इनकी रचनाओं की एक और मूल बिंदु थी
अंतर्द्वद की प्रधानता। प्रायः इनके पात्र आंतरिक मन की दुविधा में फंसे रहते थे। जैसे
'देवसेना का गीत' में देवसेना अपने व्यक्तिगत प्रेम और देश सेवा की भावना के बीच संतुलन
बनाने का प्रयास करती दिखती है।
5) स्त्री पात्रों की प्रधानता इनकी रचनाओं में नारी पात्रों को विशेष
स्थान मिलता है। जैसे मधुलिका, देवसेना आदि स्त्री पात्रों का मुख्य पात्र के रूप में
होना।
6) कर्तव्य और राष्ट्रीय प्रेम के मध्य
संतुलन स्थापित करना इनके कई नाटक, कहानीऔर काव्य में यह प्राया: व्यक्तिगत प्रेम
को देशप्रेम की ओर उन्मुख करते नजर आए हैं। जैसे पुरस्कार की नायिका मधुलिका देवसेना
के गीत में देवसेना आदि पात्र।
जयशंकर प्रसाद एवं उनकी रचनाएं-
काव्य कृतियां - चित्रधारा कानन कुसुम झरना आंसू,
लहर, कामायनी प्रेम पथिक (ब्रज भाषा) में की लिखी गई रचना है।
उपन्यास साहित्य-कंकाल (1929) तितली (1934) इरावती
अपूर्ण (1938)
कथा साहित्य- छाया (1912), प्रतिध्वनी (1928), आकाशदीप (1929), आंधी (1931) इंद्रजाल
नाटक- कल्याणी परिणय
(1912), स्कंद गुप्त , चंद्रगुप्त ध्रुवस्वामिनी, आजाद शत्रु, राज्यश्री , विशाखा,
जन्मेजय का नाग यज्ञ, अग्निमित्र अपूर्ण
एकांकी - एक घूंट
(1930)
ट्रिक-प्रसाद
जी की रचनाओं को याद करने के लिए कुछ ट्रिक-
1) तितली 3\ नामक लड़की के आंसू रुपी झरना में कंकाल डूब गया।
2) इंद्र जाल रुपी छाया जब आकाशदीप पर पड़ी तो प्रतिध्वनी के
साथ आंधी आ गया।
सम्मान-प्रसाद जी को कामायनी के लिए मंगला प्रसाद पारितोषिकाआ
से सम्मानित किया गया।
देवसेना का गीत का पाठ परिचय
देवसेना का गीत' जयशंकर प्रसाद जी द्वारा रचित कविता है जो स्कंद
गुप्त नाटक का एक गीत है। स्कंद गुप्त नाटक की पृष्ठभूमि हूणों का आक्रमण एवं राष्ट्रभक्ति
से जुड़ा हुआ है। देश की परिस्थितियों को देखते हुए प्रसाद जी ने इस नाटक की रचना की
थी नाटक का रचना वर्ष 1928 है जब देश में अंग्रेजों का प्रभुत्व था। देशवासी अपने व्यक्तिगत
भावनाओं से ऊपर उठकर राष्ट्रीय हित के बारे में सोचें ऐसा सोच कर लेखक ने इस नाटक की
रचना की थी। इस नाटक में कई गीत लिखे गए हैं किंतु उसमें से देवसेना का गीत को श्रेष्ठ माना
गया है। यह गीत देवसेना के द्वारा गाया गया है जिसमें वह अपने व्यक्तिगत भावनाओं से
ऊपर उठती हुई दिखाई गई है। निजी प्रेम से राष्ट्रप्रेम की ओर ले
जाना कवि का मुख्य उद्देश्य रहा है। देवसेना का गीत की पृष्ठभूमि को हमलोग निम्नलिखित
बिंदुओं से समझ सकते है-
देवसेना का गीत का पाठ परिचय
देवसेना का एकांकी जीवन-देवसेना स्कंद गुप्त नाटक की एक प्रमुख
पात्र है। देवसेना गुप्त साम्राज्य के सामंत मालव नरेश
बंधु वर्मा की बहन है। हूणों के आक्रमण के समय देवसेना का पूरा परिवार वीरगति को प्राप्त
हो जाता है। एकमात्र देवसेना जीवित रहती है। इस प्रकार देवसेना अकेले ही जीवन जीने
के लिए बाध्य हो जाती है।
देवसेना का असफल प्रेम-देवसेना गुप्त सम्राट स्कंद गुप्त से
प्रेम करती है, किंतु स्कंद गुप्त देवसेना का प्रणय (प्रेम) निवेदन को ठुकरा देता है
क्योंकि स्कंद गुप्त नगर सेठ की पुत्री विजया से प्रेम करता है। इस प्रकार देवसेना
प्रेम में असफल हो जाती है।
आश्रयहीन देवसेना देवसेना अपने परिवार को खोकर और स्कंद
गुप्त के द्वारा ठुकराए जाने पर बिल्कुल अकेली हो जाती है। वह मगध के महानायक पर्णदत्त
की कुटी में रह कर भिक्षा मांगती है और अपनी जीविका चलाती है।
देवसेना द्वारा स्कंद के प्रणय निवेदन
को ठुकराना जीवन के अंतिम पड़ाव पर स्कंद गुप्त वापस देवसेना के पास आता है। उसे अपनी गलती
का एहसास होता है और वह देवसेना से प्रणय निवेदन करता है जिसे देवसेना ठुकरा देती है।
व्यक्तिगत भावनाओं से ऊपर उठना-एक समय था जब देवसेना स्कंद गुप्त
से विवाह करना चाहती थी किंतु स्कंद गुप्त के द्वारा ठुकराए जाने पर देवसेना पर्णदत्त
की कुटी में रहकर सारे नगर में घूम-घूम कर भिक्षा मांगते हुए घायल सैनिकों और उसके
परिवार की मदद करती है।
देवसेना का लक्ष्य-देवसेना का पूरा परिवार हूणों के आक्रमण
में मारा जाता है। वह अपने राज्य को प्राप्त करने की प्रबल इच्छा रखती है। वह घायल
सैनिकों एवं उनके परिवार की मदद करना चाहती है इसलिए वह पर्णदत्त की कुटी में रहकर
भिक्षा मांग कर अपने उद्देश्यों की पूर्ति करने में लगी रहती है। स्कंद गुप्त के द्वारा
प्रणय निवेदन करने पर वह उसे ठुकरा देती है क्योंकि राष्ट्र
हित की चिंता उसे अब अधिक व्याकुल करती है।
स्कंद गुप्त की प्रतिज्ञा-देवसेना द्वारा प्रणय निवेदन को ठुकराए
जाने के बाद स्कंद गुप्त को भी एहसास होता है कि अपनी व्यक्तिगत जीवन से अधिक राष्ट्रहित
को ही अधिक महत्व देना उचित है। स्कंद गुप्त आजीवन विवाह ना करने की प्रतिज्ञा लेता
है ताकि वह देवसेना और राष्ट्रहित के प्रति न्याय कर सके।
कविता की व्याख्या
मूल कविता अंश- 1
आह! वेदना मिली विदाई!
मैंने भ्रम - वश जीवन संचित,
मधुकरियों की भीख लुटाई।
छल छल थे संध्या के श्रमकण,
आंसू - से गिरते थे प्रतिक्षण।
मेरी यात्रा पर लेती थी
नीरवता अनंत अंगड़ाई।
मूल कविता अंश 1 के शब्दार्थ-वेदना-पीड़ा,। विदाई-छोड़ना त्यागना।
भ्रम-संदेह। वश- अधीन, काबू नियंत्रण। भ्रमवश-संदेह के अधीन होना। संचित-एकत्रित जमा
किया हुआ। मधुकरियों-पके हुए अन्न की भिक्षा। लुटाई -लुटाना, छल छल-बहता हुआ, बहुत
बारीक। संध्या-शाम। श्रम-मेहनत। कण-अंश। श्रमकण-पसीने की बूंद (जो परिश्रम करने पर
शरीर से निकलती है) प्रतिक्षण प्रत्येक पल। यात्रा-सफर, नीरवता-खामोशी, सूनापन। अनंत-अंतहीन,
जिसका कोई अंत ना हो। अंगड़ाई-आलस्य दूर करने के लिए शरीर को खींचना या तानना।
प्रसंग-प्रस्तुत पंक्तियां हमारी हिंदी की
पाठ्यपुस्तक अंतरा में संकलित प्रसिद्ध कवि जयशंकर प्रसाद जी द्वारा रचित देवसेना का
गीत नामक कविता से अवतरित है। इन पंक्तियों के माध्यम से कवि ने देवसेना को अपनी आशाओं
और आकांक्षाओं से विदाई लेते हुए दिखाया है।
व्याख्या-इन पंक्तियों के माध्यम से कवि
ने देवसेना
के मनोभाव को व्यक्त करने की कोशिश की है। स्कंद गुप्त द्वारा प्रणय निवेदन किए जाने
पर देवसेना उसे ठुकरा देती है क्योंकि अब देवसेना की आशाएं और आकांक्षाएं बदल गई हैं,
उसकी आवश्यकताएं बदल गई हैं देवसेना अपने व्यक्तिगत प्रेम से उठ कर राष्ट्र हित के
बारे में सोचती है। देवसेना अपने जीवन के लक्ष्यों के प्रति की गई नादानियां पर अफसोस
व्यक्त करती है। उसे अनुभव होता है कि जैसे उसने जीवन मधुकरियों की भांति बीता दिया
अर्थात् उसने अपने यौवन की सारी ऊर्जा, उत्साह स्कंद गुप्त पर लुटा दिया। देवसेना को
निजी प्रेम से राष्ट्रप्रेम करना ज्यादा श्रेयकर लगता है इसलिए वह अपनी समस्त आशाओं
और आकांक्षाओं से विदा ले लेती है।
सैनिकों और राष्ट्रकी सेवा करना ही
देवसेना के जीवन लक्ष्य है इसलिए वह भिक्षा इकट्ठा करती है और जब थक कर संध्या के क्षणों
में विश्राम के लिए बैठती है तो उसे अनुभव होता है मानो परिश्रम से उसके पसीने नहीं
बल्कि वेदना के आंसू बह रहे हो। देवसेना के जीवन में पीड़ा और परिश्रम दोनों साथ साथ
चल रहा है। देवसेना ने स्कंद के परिणय निवेदन को ठुकरा कर जीवन सुख से विदाई लेती है।
विशेष-1 आह वेदना मिली विदाई वाक्य से देवसेना
की गहरी पीड़ा को कवि ने व्यक्त किया है।
2 कवि ने संस्कृत निष्ठ खड़ी बोली का
प्रयोग किया है।
3 आंसू से में उपमा अलंकार है।
4 यात्रा शब्द से कवि ने जीवन यात्रा की ओर संकेत किया है।
5 कविता में तत्सम शब्दों का प्रयोग किया गया है।
मूल कविता अंश - 2
श्रमित स्वप्न की मधुमाया में,
गहन विपिन की तरु छाया में,
पथिक उंनींदी श्रुति में किसने
यह विहाग की तान उठाई।
मूल कविता अंश-2 के शब्दार्थ- श्रमित- थका हुआ। स्वप्ना-सपना। मधु माया-मीठा, मीठासयुक्त,
रसयुक्त। गहन गहरा। विपिन जंगल, वन। तरु छाया-वृक्ष पेड़ की छाया। पथिक-यात्री राही।
उनींदी नींद से भरा हुआ घोर (गहरा) नींद में। श्रुति-कान, सुनना। विहाग-आधी रात में
गाए जाने वाला राग (सुर)। तान-गाना, स्वर का विस्तार।
व्याख्या- स्वप्न
(सपना) देखना एक सामान्य प्रक्रिया (बात) है। उम्र के हिसाब से सभी लोग स्वप्न देखते
हैं। यौवन के बाद जिस प्रकार व्यक्ति थक जाता है उसी प्रकार से उसके सपने भी थकने लगते
हैं उम्र के साथ इच्छा और भावनाएं बदलने लगती है ऐसी अवस्था से देवसेना भी गुजरने लगी
थी। देवसेना अपने यौवन के ढलान पर अपनी सारी इच्छाओं और आशाओं से विदाई ले चुकी थी।
उसके जीवन मे घने जंगल की भांति केवल संघर्ष ही संघर्ष है उसने अपना जीवन भिक्षा मांगते
हुए सैनिकों और राष्ट्रहित के लिए लगा दिया है अब ऐसी स्थिति में स्कंद का प्रणय
निवेदन लेकर आना उसे मधुर प्रतीत नहीं होता है जिसकी चाह वह कभी रखती थी स्कंद का प्रणय
निवेदन उसे रात्रि में बजाए जाने वाले उस रागकी भांति लगती है जो गहरी नींद में सोए
हुए व्यक्ति को पसंद नहीं आता।
विशेष-1) कवि ने श्रमित स्वप्न शब्द
का प्रयोग देवसेना के थके हुए स्वप्न के लिए किया है।
2) संघर्ष भरी जीवन की तुलना गहन विपिन
से की गई है।
3) उंनींदी श्रुति का प्रयोग कवि ने
थके हुए कान के लिए किया है।
4) कवि ने संस्कृत निष्ट खड़ी बोली
का प्रयोग किया है।
5) कवि ने देवसेना की पीड़ा को सुंदर
शब्दों में व्यक्त किया है है।
6) श्रमित स्वप्ना, गहन विपिन, श्रुति
आदि जैसे तत्सम शब्दों का प्रयोग कविता में की गई है।
7) कवि ने कविता में कई स्थानों पर
संकेतों का प्रयोग किया है।
विहाग राग का अर्थ यहां प्रणय निवेदन
से है।
मूल कविता अंश- 3
लगी सतृष्ण दीठ थी सबकी,
रही बचाए फिरती कब की,
मेरी आशा आह। बावली
तूने खो दी सकल कमाई।
I. मूल कविता अंश-3 के शब्दार्थ सतृष्ण- प्यासा इच्छुक (इच्छा रखने वाला)। दीठ- नेत्र, आंख,
दृष्टि। फिरती-घूमना, विमुख , अरुचिकर, विरक्त, उदासीनता। आशा- उम्मीद, अपेक्षा। आह!
दुख या पीड़ा को व्यक्त करने वाला शब्द। बावली-पागल, नादान, बेवकूफ। सकल - संपूर्ण,
सारी।
II. प्रसंग-प्रस्तुत
पंक्तियां जयशंकर प्रसाद जी द्वारा रचित स्कंद गुप्त नाटक के एक गीत से उद्धृत है।
इन पंक्तियों में जयशंकर प्रसाद जी ने देवसेना का स्कंद के प्रति समर्पित प्रेम को
दिखाया है साथ ही साथ देवसेना अपने नादानियों के प्रति जो अनुभव करती है उसे भी दर्शाया
(दिखाया) गया है।
iii. व्याख्या-इन पंक्तियों
के माध्यम से देवसेना को अपने
अतीत स्मरण करते हुए दिखाया गया है। यौवन में देवसेना अत्यंत सुंदर युवती थी औरकई लोग
उसे पाना चाहते थे, किंतु देवसेना सभी के प्रति उदासीन थी क्योंकि वह स्कंद के प्रेम
में समर्पित थी। देवसेना को उम्मीद था की स्कंद उससे विवाह करेगा। उस जमाने में जब
स्त्रियां अपनी मन की बात कहने में लज्जा करती थी फिर भी देवसेना स्कंद के समक्ष (सामने)
प्रेम प्रस्ताव को रखती है। बुद्धि और भावना दोनों का तालमेल होना आवश्यक है लेकिन
देवसेना ने स्कंद को पाने की लालसा में सही निर्णय नहीं ले पाती हैं वह स्कंद से विवाह
करना चाहती थी अन्य से विवाह करने के बारे में उसने सोचा तक नहीं, इस तरह उसने जीवन
के सुनहरे अवसर को खो दिया।
iv. विशेष -1)
सतृष्ण दीठ थी सबकी में छेकानुप्रास है।
2) आशा की तुलना लेखक ने नादानियां, पागलपनसे की है।
3) कवि ने संस्कृत निष्ठ खड़ी बोली का प्रयोग किया है।
4) तत्सम शब्दों की बहुलता है।
5) देवसेना द्वारा अतीत में की गई नादानियों को लेखक ने बड़े
सुंदर ढंग से दर्शाया है।
6) कवि ने देवसेना के पीड़ा को व्यक्त किया है।
7) भाषा सुंदर और प्रभावशाली है।
8) देवसेना के भावनाओं को व्यक्त करने के लिए लेखक ने सुंदर
शब्दों का प्रयोग किया है।
मूल कविता अंश-4
चढ़कर मेरे जीवन-रथ पर,
प्रलय चल रहा अपने पथ पर।
मैनें निज दुर्बल पद-बल पर,
उससे हारी-होड़ लगाई।
मूल कविता अंश 4 के शब्दार्थ जीवन - रथ जीवन की यात्रा। प्रलय-तूफान, संघर्ष। दुर्बल कमजोर,
थका हुआ, शिथिल (सुस्त) पद-पैर कदम, बल-ताकत, शक्ति, हारी- हारना, पराजय। होड़-शर्त,
बाजी, प्रतिस्पर्धा।
प्रसंग-प्रस्तुत पंक्तियां जयशंकर प्रसाद
जी द्वारा रचित देवसेना के गीत से ली गई है। कवि ने इन पंक्तियों के माध्यम से देवसेना
के जीवन में चलने वाली संघर्षों का वर्णन किया है।
व्याख्या-देश की परिस्थितियों को देखते हुए
प्रसाद जी
ने स्कंद गुप्त नाटक की रचना की थी। इस नाटक में कई पात्रों के द्वारा प्रसाद जी ने
गीत गवाया है जिसमें से देवसेना का गीत प्रमुख स्थान रखता है। देवसेना की व्यथा 'देवसेना
का गीत' कविता का विषय वस्तु है। देवसेना जीवन भर अपने कंधों पर दुख को ढोती आई है।
हूणों के आक्रमण में देवसेना का परिवार, राज्य, धन सब कुछ समाप्त हो जाता है। साथ ही
साथ देवसेना स्कंद के प्रेम को पाने में भी असफल होती है। अर्थात् देवसेना के पास ना
तो परिवार, धन और ना तो प्रेम शेष बचता है, देवसेना अपने खोए हुए राज्य और राष्ट्र
को बचाने की अथक कोशिश करती है। वह जानती है कि संघर्ष करने के लिए धन और अपने लोगो
की आवश्यकता होती है, जो उसके पास नहीं होता है, इसके बावजूद भी वह प्रतिकूल परिस्थितियों
में संघर्ष करती है। देवसेना के जीवन को देखने पर प्रतीत होता है उसके जीवन यात्रा
में उसके संघर्ष भी साथ-साथ चल रहा है।
विशेष - 1) इन पंक्तियों में संस्कृत निष्ठ
खड़ी बोली का प्रयोग किया गया है।
2) तत्सम शब्दों की बहुलता (अधिकता)
है।
3) देवसेना को प्रतिकूल परिस्थितियों
में भी संघर्ष करते हुए दिखाया गया है।
4) देवसेना का चरित्र प्रेरणादायक है।
5) जीवन- रथ में रूपक अलंकार है।
6) प्रलय चल रहा अपने पथ पर में वृत्यानुप्रास है।
7) दुर्बल पद-बल में सभंगपद यमक है।
8) हारी-होड़ में छेकानुप्रास अलंकार है।
मूल कविता अंश 5
लौटा लो यह अपनी थाती,
मेरी करुणा हा-हा खाती,
विश्व ! न सँभलेगी यह मुझसे
इसने मन की लाज गँवाई।
मूल कविता अंश 5 के शब्दार्थ-थाती-धरोहर, अमानत, अर्पण (भेंट करना, कुछ देना) । करुणा- दया,
स्नेह (प्रेम) पूर्वक किया गया उपकार। हा-हा-शोक या दुख को व्यक्त करने वाला शब्द।
विश्व संसार। लाज-लज्जा, शर्म। प्रतिष्ठा गंवाई - खोना, गंवाना।
प्रसंग - प्रस्तुत
पंक्तियां 'देवसेना का गीत' से ली गई है जो स्कंद गुप्त नाटक का अंश है। इन पंक्तियों
में देवसेना को कवि ने व्यक्तिगत प्रेम को छोड़कर राष्ट्रप्रेम की ओर बढ़ते दिखाया
है। व्यक्तिगत प्रेम के मोह को तोड़कर गीत को राष्ट्रप्रेम की ओर ले जाना ही कवि का
प्रमुख उद्देश्य है।
व्याख्या-स्कंद
गुप्त देवसेना के पास प्रणय निवेदन लेकर आता है लेकिन देवसेना विवाह के प्रस्ताव को
ठुकरा देती है। एक समय था जब देवसेना स्कंद को पाने का सपने देखा करती थी और उसे पाने के लिए स्वयं
उसके सामने प्रेम का प्रस्ताव रखते हुए अपने लज्जा को गंवा देती है क्योंकि उस समय
स्त्रियां अपने मन की बात नहीं किया करती थी, किंतु स्वयं जब स्कंद अपने प्रेम का निवेदन
देवसेना से करता है तो देवसेना उसे अस्वीकार कर देती है देवसेना के इस निर्णय से मानो
करुणा भी दुखी हो रही हो, क्योंकि देवसेना ने एक लंबे समय से स्कंद के प्रेम निवेदन
का राह देख रही थी। देवसेना का जीवन का लक्ष्य और सपने अब बदल चुके है। अपने लज्जा
के अपराध बोध को वह त्याग कर एक वात्सल्यमय स्त्री बन चुकी है, जो घायल सैनिकों की
सेवा करने और अपने खोए हुए राज्य को प्राप्त करने कोप्राथमिकता देती है। अपने इस दुख
में वह विश्व को सम्मिलित करती है। और विश्व को संबोधित करते हुए कहती है कि वह स्कंद
के प्रेम को स्वीकार करने में असमर्थ है क्योंकि अब उसका प्रेम व्यक्तिगत प्रेम ना
होकर राष्ट्र और विश्व के हित से बंध चुका है।
विशेष -1) इन पंक्तियों की भाषा शैली
सटीक है।
2) इन पंक्तियों के माध्यम से देवसेना
के लक्ष्यों के प्रति समर्पण का भाव दिखाई देता है।
3) कवि ने संस्कृत निष्ठ खड़ी बोली
का प्रयोग किया है।
4) करुणा का मानवीकरण किया गया है।
5) इन पंक्तियों में करुण रस है
6) लाज गँवाना मुहावरे शब्द का प्रयोग
किया गया है।
7) तत्सम शब्दों का प्रयोग किया गया
है।
देवसेना के गीत के प्रश्न -अभ्यास
देवसेना का गीत प्रश्न
1- "मैने भ्रमवश जीवन संचित, मधुकरियों की भीख लुटाई - पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर - निम्नलिखित पंक्तियों या काव्यांश
जयशंकर प्रसाद जी द्वारा रचित स्कंद गुप्त नाटक के एक गीत से ली गई है जिसे 'देवसेना
का गीत' नामक शीर्षक दिया गया है। काव्यांश में कवि ने देवसेना को अपने यौवन काल में
की गई नादानियों के प्रति पछतावा करते हुए दिखाया है। जैसे कोई उदार और निष्ठावान व्यक्ति
किसी को भिक्षा देते समय संकोच नहीं करता और याचक कोअपने मूल्यवान भिक्षा से परिपूर्ण
कर देता है उसी प्रकार देवसेना भी स्कंद से एक निष्ठावान होकर प्रेम करते हुए अपने
जीवन की अभिलाषा और ऊर्जा को भिक्षा के रूप में लुटा देती है। जीवन के लक्ष्य के प्रति
जो उसने यौवन काल में भूलकी और अपना बहुमूल्य समय स्कंद के प्रेम के इंतजार में गंवा
दिया जो उसे अपने मालव प्रांत एवं राष्ट्र हित के लिए करने चाहिए थे।
देवसेना का गीत प्रश्न
2- कवि ने आशा को बावली क्यों कहा है?
उत्तर -आशा वह भाव है जो मनुष्य को
जीवन में लक्ष्य प्राप्ति के लिए उत्साहित करती है। किंतु अति उत्साहित होकर हमें कुछ
भी प्राप्त करने की आशा नहीं रखना चाहिए क्योंकि यह हमें लक्ष्य के प्रति भ्रमित भी
करता है। जीवन में लक्ष्य प्राप्ति करने के लिए आशा के भाव के साथ बुद्धि का अगर संतुलन
हो तो यह उचित है वरना यह हमें पागलपन की ओर ले जा सकता है क्योंकि व्यक्ति को अपने
भले और बुरे का बोध नहीं हो पाता है जैसा देवसेना के साथ होता है। स्कंद भी उससे प्रेम
करेंगा ऐसी आशा करके देवसेना ने अपना सर्वस्व ही लुटा दिया। उद्देश्य प्राप्ति के लिए
आशा जैसी सकारात्मक भाव क्यों ना हो लेकिन संतुलन होना आवश्यक है अति आशा में व्यक्ति
अच्छा और बुरा नहीं समझ पाता।
देवसेना का गीत प्रश्न
3- "मैने निज दुर्बल पद बल पर, उससे हारी - होड़ लगाई" इन पंक्तियों में
दुर्बल पद बल और 'हारी होड़ में निहित व्यंजना स्पष्ट कीजिए -
उत्तर- दुर्बल पद बल का अर्थ है कमजोर
स्थिति। अपनी शक्ति सीमा ज्ञात होने के बाद भी देवसेना संघर्ष करती हैं। हारी होड़
में निहित व्यंजना है-पराजय का भाव।
देवसेना का गीत प्रश्न
4 काव्य सौंदर्य स्पष्ट कीजिए
(क) श्रमित स्वप्न की मधुमाया में,
गहन विपिन की तरु छाया में,
पथिक उंनींदी श्रुति में किसने-
यह विहाग की तान उठाई।
भाव सौंदर्य-जीवन के ढलान पर देवसेना के सपने भी
थक चुके हैं ऐसे में वह शांत भाव से जीवन के शेष दिन सैनिकों और राष्ट्र की सेवा करते
हुए बिताना चाहती है। ऐसे में स्कंद द्वारा प्रणय निवेदन का प्रस्ताव देवसेना के समक्ष
रखना, देवसेना को अरुचिकर लगता है। यह विषय वस्तु देवसेना को उस राग की भांति प्रतीत
होता है जो गहरी नींद में सोए हुए व्यक्ति को जगाकर उसके विश्राम में बाधा डाल दे।
अर्थात् देवसेना अब विवाह संबंध में कोई रुचि नहीं रखती है उसे सिर्फ राष्ट्रहित की
चिंता है।
शिल्प सौंदर्य-1) इन पंक्तियों में खड़ी बोली के
साथ-साथ तत्सम शब्दों का प्रयोग किया गया है।
2) देवसेना के चरित्र को व्यक्तिगत
स्तर से ऊपर उठाया गया है। 3) यह काव्य प्रेरणादायक है।
4) कविता में मधुर गुण है।
5) राष्ट्रप्रेम के लिए देवसेना अपने
निजी प्रेम का बलिदान देती दिखाई गई है।
(ख) लौटा लो यह अपनी थाती,
मेरी करुणा हा हा खाती।
विश्व ! न सँभलेगा यह मुझसे,
इससे मन की लाज गंवाई।
भाव - सौंदर्य - एक लंबे समय तक देवसेना स्कंद के
प्रेम पाने की आस में अपना सर्वस्व लुटा देती है किंतु बहुप्रतीक्षित उसकी
यह आश जब पूर्ण होने को थी ठुकरा देती है। अर्थात् जब स्कंद अपने प्रेम निवेदन को लेकर
देवसेना के पास उपस्थित होता है तो वह उस विवाह प्रस्ताव को, ठुकरा देती है। देवसेना
परिवार, धन और प्रेम के अभाव से जूझ रही थी वह चाहती तो एक झटके में इन सभी अभावों
को मिटा सकती थी और स्कंद के विवाह प्रस्ताव को स्वीकार कर शेष जीवन को सुखमय रूप से
बिता सकती थी किंतु उसने ऐसा नहीं किया। देवसेना अपने कर्तव्य से विमुख ना हो इसलिए
यह निर्णय लेती है। देवसेना का यह निर्णय करुणामय है। मानो इस निर्णय पर करुणा भी मानवीय
रूप से दुखी हो उठी है। देवसेना अपने इस दुख में विश्व को समेटते हुए संबोधित करती
हैं कि एक समय उसने अपनी नारी सुलभ लज्जा को स्कंद के प्रेम को पाने के लिए गंवा देती
है किंतु आज वह अपने लक्ष्यों को भलीभांति समझ गई है और वह व्यक्तिगत प्रेम से उठकर
विश्व प्रेम की ओर जाना चाहती है। इसप्रकार कवि देवसेना के अधूरे व्यक्तित्व को पूर्णता
प्रदान करते हैं। देश की सेवा करने में ही देवसेना को अपने जीवन की सार्थकता प्रतीत
होती है।
शिल्प सौंदर्य-यह काव्यांश प्रेरणादायक है।
सकल (संपूर्ण)
विश्व के कल्याण के लिए देवसेना कोप्रतिबंध होते दिखाया गया है। करुणा का मानवीकरण
किया गया है। हा-हा में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है। लाज गंवाई में मुहावरा है।
काव्यांश में संस्कृत निष्ठ खड़ी बोली
का प्रयोग किया गया है।
इस काव्यांश में करुणा और वियोग दोनों
रस की अनुभूति होती है।
देवसेना का लक्ष्य अब स्कंद का प्रेम
पानानहीं है बल्कि राष्ट्र के प्रति कर्तव्य पूरा करना है।
देवसेना के गीत प्रश्न
5-देवसेना के हार या निराशा के क्या कारण है ?
उत्तर-परिवार धन और प्रेम से रिक्त
देवसेना का जीवन कष्टमय रूप से व्यतीत होता है। देवसेना में लगन और उत्साह की कोई कमी
नहीं थी किंतु धन अभाव और परिवार का सहयोग ना होने के कारण वह अपने लक्ष्यों की प्राप्ति
करने में असमर्थ रहती है साथ ही साथ वह अपने आप को एकांकी भी महसूस करती है उसके जीवन
में नीरवता को छोड़कर कुछ भी शेष नहीं बचा है। यही दो प्रमुख कारण है कि उसे अपने जीवन
में बार-बार हार या निराशा का आभास होता है। परिवार, धन और प्रेम का अभाव उसे बराबर
उसकी शक्ति सीमा का एहसास कराती है कि वह निर्बल है।
कार्नेलिया का गीत
पाठ परिचय 'कार्निलिया का गीत' जयशंकर
प्रसाद जी द्वारा रचित नाटक चंद्रगुप्त का एक गीत अंश है। इस नाटक को लिखने का उद्देश्य
प्रसाद जी का यह था कि वह इतिहास तथा वर्तमान दोनों यथार्थ को भारतीय मानस पटल पर रखना
चाहते थे। 1931 ईसवी को लिखी गई है। रचना का उद्देश्य अपने अतीत के गौरव गाथा को पुनः
स्थापित करने का प्रयास था। कार्नेलिया के गीत के द्वारा वे अपने देश की सामाजिक, दार्शनिक
तथा मानवीय भावनाओं को प्रस्तुत करने का प्रयास करते है। देश को दिग्भ्रमित होने से
वे बचाना चाहते हैं। चंद्रगुप्त नाटक उस दौर में लिखी गई रचना है जब देश आजादी पाने
के लिए संघर्ष कर रहा था। देश को पुनः वही भव्यता, वही आजादी वही कोमलता प्राप्त हो
इसके लिए कवि ने इस नाटक की रचना की। कार्नेलिया के गीत के कई बिंदु है जिन्हें हम
इस प्रकार से देख सकते हैं-
कार्नेलिया का गीत का पाठ परिचय
एक विदेशी युवती द्वारा गीत का गाया
जाना-कार्नेलिया यूनानी युवती है जो सिंधु नदी के किनारे बैठ कर भारत देश के सुख शांति
और वैभव का गीत गाती है। एक यूनानी युवती अगर देश की विशेषताओं को समझ सकती है तो हम
भारतीय लोग क्यों नहीं समझ सकते। देश गुलामी के दौर से गुजर रहा था ऐसे में हमें अपनी
विरासत को बचाना आवश्यक था।
प्रकृति का सांकेतिक रूप में प्रयोग-कवि ने देश की सुंदरता, वैभवता, कोमलता
संवेदना को दिखाने के लिए कई स्थानों पर प्रकृति का सहारा लिया
है। जैसे सिंधु नदी के किनारे कार्नेलिया का गीत गाना यह वही सिंधु घाटी सभ्यता है
जो विश्व की सबसे प्राचीन सभ्यताओं में से एक मानी जाती है, कमल पुष्पों के द्वारा
देश की सम्पन्नता को दिखाने का प्रयास किया है। इसी प्रकार हरियाली और कुमकुम आदि जैसे
शब्दों के द्वारा उन्होंने देश की उत्साह एवं ऊर्जा को दिखाने का प्रयास किया है।
भारतीयों का मीठा स्वभाव-कवि ने देश को केवल संपन्न ही नहीं
अपितु भारतीय स्वभाव से भी संपन्नशील है दिखाने का प्रयास किया
है। हमारे देश में अनजान व्यक्ति को भी बड़े ही प्रेम से स्वीकार कर लिया जाता है जैसे
कार्नेलिया एक विदेशी युवती के रूप में हमारे देश में आई लेकिन चंद्रगुप्त से विवाह
करके उसने भारतीयता को अपना लिया।
क्लेश मुक्त वातावरण-कवि ने हमारे देश के अतीत को बहुत ही
महान्य दिखाया है। जहां कोई शोक, कोई भय और पीड़ा नहीं जान पड़ती है। इसलिए लोगों के
साथ-साथ पशु पक्षी भी हमारे देश में अपने आप को सुरक्षित महसूस करते हैं।
आनंद और स्फूर्ति का केंद्र- शत्रु भी हमारे देश में आकर आनंदित
और स्फूर्ति का अनुभव करते हैं। भारतीय लोग असहाय पीड़ित लोगों के दुखों को देखकर स्वयं
ही दुखित हो जाते हैं और उनका भारत देश की धरती पर भरपूर सहयोग करते हैं।
नैतिक समृद्धि-भौतिक समृद्धि (धन की प्रचुरता) भारतीयों
का अंतिम लक्ष्य नहीं है। चारों दिशाओं से आने वाले शत्रु भी हमारे यहां आकर स्वतः
ही शांत हो जाते हैं क्योंकि उन्हें यहां स्नेह ममता और आत्मीयता इतनी प्राप्त होती
है कि वह भी सुखी तथा आनंदित अपने आपको महसूस करते हैं।
कार्नेलिया का गीत व्याख्या
1) अरुण यह मधुमय देश हमारा!
जहां पहुंच अनजान क्षितिज को मिलता
एक सहारा।
सरस तामरस गर्भ विभा पर नाच रही तरुशिखा
मनोहर।
छिटका जीवन हरियाली पर मंगल कुमकुम
सारा।
लघु सुरधनु से पंख पसारे शीतल मलय समीर
सहारे।
उड़ते खग जिस ओर मुंह किए समझ नीड़
निज प्यारा।
मूल काव्यांश 1 के शब्दार्थ-अरुण- लाल। लालिमा - उत्साह। मधुमय-मीठा
या शहद के समान। अनजान अपरिचित। क्षितिज - वह स्थान जहां धरती आकाश एक बिंदु पर मिलती
प्रतीत होती है। सहारा-भरोसा, मदद, आश्रय। सरस - रस से भरा हुआ, रसीला। तामरस - कमल।
गर्भ आंतरिक भाग, नदी का पेट, छिद्र। विभा किरण, रश्मि, कांति। तरु- वृक्ष। शिखा -
सबसे ऊंची चोटी। मनोहर - सुंदर। कुमकुम - सिंदूर। लघु-छोटा। सुरधनु - इंद्रधनुष, इंद्रचाप।
शीतल ठंडा। खग - चिड़िया, पक्षी। नीड़ घोंसला। निज -अपना ।
प्रसंग - इस काव्यांश के वर्णित प्रसंग इस
प्रकार है-कार्नेलिया एक यूनानी युवती है जो भारत देश के भ्रमण के लिए आती हैं और यहीं
की होकर रह जाती है उसने बड़ी ही मनोरम ढंग से भोर की सुंदरता एवं भारत का सर्व कल्याणमयी
रूप को वर्णित किया है।
व्याख्या - प्रसाद जी भारत की उन्नति और
आजादी के लिए
जीवन पर्यंत चिंतित रहें और इसी निमित्त उन्होंने निरंतर लेखन कार्य किया। कवि ने कार्नेलिया
के मुख से भारत देश के लिए गुणगान करवाया है कवि कहते हैं की भारत देश ऊर्जा, उत्साह
से परिपूर्ण देश है। जिस प्रकार आकाश पृथ्वी के एक निश्चित बिंदु से मिलकर दिशा को
प्राप्त करती है उसी प्रकार से भारत की भौगोलिक सीमा अनजान व्यक्तियों को एक निश्चित
दिशा प्रदान करती है। ज्ञान की चाह रखने वाले, जिज्ञासु यात्री एवं सुख कामनाओं वाले
मनुष्य यहां आकर तृप्ति, संतुष्टि एवं सुरक्षित होने का अहसास करते हैं। भारत भूमि
सर्व सुख देने वाली है सूर्य की लालिमा से कमल पुष्प और तरुशिखा सेवन और स्पर्श पाकर
पुष्ट होती है सूर्य की लालिमा तरु की ऊंची शिखर से लेकर नदी की तलहटी में पाई जाने
वाली कमल पुष्पों पर बराबर अपनी आभा को फैलाकर संतुष्ट कर रही है और यही कारण है कि
तरु शिखा भी थिरकती सी प्रतीत हो रही है। दूसरे शब्दों में देखा जाए तो हमारे देश में
कोई भेदभाव नहीं है। कवि का उद्देश्य केवल प्राकृतिक सुंदरता को दिखाना नहीं है बल्कि
देश के वैभव एवं गरिमा को दिखाना भी कवि का प्रयोजन है। कवि ने देश के वैभव और संस्कृति
की तुलना कमल पुष्पों से की है। जहां देश में भौतिक समृद्धि की कमी नहीं है अपितु नैतिक
समृद्धि में भी कोई कमी नहीं है। भारत को एक समय विश्व गुरु के रूप में देखा जाता था।
वृक्षो की ऊंची चोटियों से उन्होंने देश की उन्नत सभ्यता और विश्व गुरु की छवि के रूप
में इंगित किया है। मंगल कुमकुम का अर्थ सूर्य की मांगलिक किरणों से है जो खेत और खलिहान
पर पड़कर फसल के रूप में देश का पोषण करती है।
देश के लोगों का स्वभाव मीठा। यहां
की वायु मलय (चंदन) समान शीतल और सुगंधित है अर्थात् भारत भूमि का वातावरण एवं माहौल
शीतल एवं शांत है, इसलिए अनजान व्यक्ति के साथ-साथ पशु-पक्षी भी हमारे देश में आश्रय
लेने में भयभीत नहीं होते। कवि हरियाली और कुमकुम के माध्यम से देश के उत्साही और ऊर्जावान
लोगों को वर्णित करना चाहते हैं। जहां लोग मेहनती नहीं बल्कि ऊर्जावान भी हैं। कवि
अतीत के इन्हीं गुणों से भारतीयों को अवगत कराना या स्मरण दिलाना चाहते हैं जो गुलामी
के दौर में कहीं खत्म सा होता जा रहा था।
विशेष-यह काव्यांश अपने देश के अतीत की गौरव
गाथा को प्रस्तुत करती है।
काव्यांश में भारत की गौरव गाथा एवं
प्राकृतिक सुंदरता का वर्णन किया गया है।
काव्यांश की भाषा संस्कृत निष्ठ खड़ी
बोली है काव्यांश में प्रयुक्त अधिकांश शब्द तत्सम शब्द है।
प्रकृति को सांकेतिक रूप में रखकर कवि
ने देश का गुणगान किया है।
यह काव्यांश प्रेरणादायक है।
भाषा सरस और प्रभावशाली है।
छिटका जीवन हरियाली पर मंगल कुमकुम
सारा में रूपक अलंकार है।
पंख पसारे', 'समीर सहारे' नीड़ निज'
में अनुप्रास अलंकार
"लघु सुरधनु से पंख पसारे"
में उपमा अलंकार है।
2) बरसाती आंखों के बादल बनते जहां
भरे करुणा जल।
लहरें टकराती अनंत की पाकर जहां किनारा।
हेम कुंभ ले उषा सवेरे भरती दुलकाती
सुख मेरे।
मदिर ऊंघते रहते जब जागकर रजनी भर तारा।
मूल काव्यांश 2 के शब्दार्थ-करुणा-सहानुभूति के साथ किया गया उपकार।
अनंत-अंत हीन, हेम-स्वर्ण, सोना। कुंभ घड़ा। उषा-किरण सूर्य का प्रकाश। सवेरे-सुबह।
मदिर-मद से भरा हुआ, मादक, नशीला। ऊंघना आलस्य से भरा हुआ। रजनी-रात, रात्रि।
प्रसंग - प्रस्तुत काव्यांश हमारे पाठ्यपुस्तक
अंतरा से ली गई है, जो चंद्रगुप्त नाटक का एक प्रसिद्ध गीत कार्नेलिया के गीत से उद्धृत
है।
काव्यांश में कार्नेलिया भारत भूमि
की भोर की सुंदरता के साथ साथ लोगों के मन की सुंदरता को भी वर्णित करती नजर आती है।
व्याख्या-कार्नेलिया सिंधु नदी के तट
पर बैठी हुई भोर के दृश्य को स्तब्ध होकर निहारती है। कार्नेलिया को यह अनुभव होता
है कि भारत भूमि केवल प्राकृतिक रूप से ही सुंदर नहीं है बल्कि यहां के लोगों के मन
भी पवित्र और सुंदर है। दूसरे लोगों की पीड़ा को देखकर लोग उसे अपनी
ही पीड़ा समझ बैठते हैं और उनके सुख और दुख में बराबर की भागीदारी बन जाते हैं। कवि
कहते हैं जिस प्रकार लहरें किनारा पाकर शांत हो जाती है ठीक उसी प्रकार भारत भूमि पर
जो विदेशी शत्रु हमला करने की नियति से आते हैं, वे भी भारत भूमि का स्पर्श पाकर शांत
हो जाते हैं क्योंकि हमारा देश भक्षण कि नहीं रक्षण की नीति अपनाती है। कई एक उदाहरण
हमारे भारतीय इतिहास में देखने को मिलता है जब हम लोगों ने शत्रुओं को न केवल आश्रय
दिया है बल्कि अपने जीवन का अभिन्न हिस्सा भी बनाया है।
सर्व कल्याणमयी भारत की सुंदरता का
बखान कवि करते नहीं थकते। इसी कड़ी में प्रसाद जी ने ब्रह्म मुहूर्त या भोर के समय
की शोभा का वर्णन बड़ी ही सजीवता से किया है। उनकी कल्पना ने सूर्य और उसकी लालिमा
को मानवीयकरण कर दिया है। कवि की कल्पना के अनुसार जब तारे रात के अंतिम प्रहर में
थक कर निद्रा धारण करने की मुद्रा में आती है तब सूर्य अपनी लालिमा के साथ सकारात्मक
ऊर्जा प्रदान करने के लिए उपस्थित होने लगती है। ऊर्जा उमंग और उत्साह का संचार करने
के लिए 'उषा' रूपी सुंदरी सूर्य रूपी घड़े को आकाश रूपी कुएं में डूबा कर लाती है और
भारतवर्ष पर उड़ेल देती है। विश्व के अधिकांश लोग जब सोए रहते हैं तब हमारे देश में
सदियों से ब्रह्म मुहूर्त में दैनिक दिनचर्या शुरू करने की प्रथा रही है। इस प्रकार
भारत की महान संस्कृति का परिचय प्राप्त होता है।
विशेष- बरसाती आंखों के बादल बनते जहां भरे
करुणा जल में रूपक अलंकार है।
'हेम कुंभ ले उषा सवेरे-भरती दुलकाती
सुख मेरे, मदिर ऊंघते रहते जब जगकर रजनी भर तारा में रूपक एवं मानवीयकरनअलंकार है
काव्यांश में भिन्न प्रयोग देखा जा
सकता है। संस्कृत निष्ठ खड़ी बोली का प्रयोग किया गया है।
प्राकृतिक सौंदर्य के साथ-साथ भारतियों
की व्यक्तिगत विशेषताओं को भी दर्शाया गया है। पीड़ा की अनुभूति, काव्यांश में देखने
को मिलता है।
जब- जगकर में अनुप्रास अलंकार है।
कार्नेलिया का गीत प्रश्न अभ्यास
1) कार्नेलिया का गीत कविता में प्रसाद ने भारत
के किन विशेषताओं की ओर संकेत किया है?
उत्तर -आश्रय दाता, सर्व कल्याणमयी रूप, उत्साह, उमंग एवं धन-
धन्य से परिपूर्ण देश भेदभाव से रहित और मीठे स्वभाव से युक्त लोग, वैभवता, नैतिक
सम्पन्नता आदि जैसे विशेषताओं की ओर कवि ने संकेत किया है।
प्रश्न 2)' उड़ते
खग' और 'बरसाती आंखों के बादल' में क्या विशेष अर्थ व्यंजित होता है?
उत्तर-अप्रवासी लोगों को 'उड़ते
खग' से व्यंजित (भाव, संकेत) किया गया है। विश्व के विभिन्न हिस्सों के मनीषी,
यात्री, जिज्ञासु, सुख उपभोग करने की कामना रखने वाले लोगों के लिए भारत क्लेश
मुक्त वातावरण उपलब्ध कराता है, इसलिए उन्हें भारत भूमि अपना-सा प्रतीत होता है।
बरसाती आंखों के बादल में निहित व्यंजना (भाव) का अर्थ आंसू और पीड़ा से है। जिस
प्रकार बादल घनीभूत होकर वर्षा करने को बाध्य होती है ठीक उसी प्रकार जब पीड़ा
अत्यधिक घनीभूत हो जाती है तो वह आंखों से आंसू रुपी जलधारा के रूप में बहने लगती
है। अन्यों की पीड़ा भारतीयों को अपनी पीड़ा सी प्रतीत होती है।
प्रश्न 3- काव्य
सौंदर्य स्पष्ट कीजिए
हेम कुम्भ ले उषा सवेरे,
भरती दुलकाती सुख मेरे मदिर
ऊँघते रहते जब-जगकर रजनी भर तारा ॥
उत्तर-भाव-सौंदर्य कवि की कल्पना
के अनुसार ब्रह्म मुहूर्त या भोर में उगता हुआ सूरज की आकृति
ऐसे कलश के समान प्रतीत होती है जिस पर सुनहरे रंग का आवरण चढ़ाया गया हो। जब तारे
रात के अंतिम प्रहर में थक कर निद्रा धारण करने की मुद्रा में आती है तब सूर्य
अपनी लालिमा के साथ सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करने के लिए उपस्थित होने लगता है।
ऊर्जा, उमंग और उत्साह का संचार करने के लिए उषा रूपी सुंदरी सूर्य रूपी घड़े को
आकाश रूपी कुएं में डूबा कर लाती है और भारतवर्ष पर उड़ेल देती है और भारत देश के
सौभाग्य श्री में वृद्धि करती है। विश्व के अधिकांश लोग जब सोए रहते हैं तब हमारे
देश में सदियों से ब्रह्म मुहूर्त में दैनिक दिनचर्या शुरू करने की प्रथा रही है।
इस प्रकार भारत की महान संस्कृति का एक अन्य रूप का परिचय प्राप्त होता है।
शिल्प सौंदर्य उगते हुए सूर्य को सोने के कलश के
रूप में दर्शाया गया है।
भोर की लालिमा से युक्त सूर्य अपनी
बाल्यावस्था में रहते हुए ढेर सारी ऊर्जा उमंग और उत्साह संचार भारत भूमि पर करता
है।
तारा (थका हुआ) और उषा (स्त्री) का
मानवीकरण किया गया है
कवि ने सूर्य को सोने के घड़े के
रूप में वर्णित किया है।
हेम कुंभ में रूपक अलंकार है।
संस्कृत निष्ठ खड़ी बोली का प्रयोग
किया गया है।
तत्सम शब्दों की प्रचुरता (अधिकता)
है।
प्रातः कालीन सुंदरता का काव्यांश
में वर्णन किया गया है।
प्रश्न 4 जहां पहुंच
अनजान क्षितिज को मिलता एक सहारा पंक्ति का आशय (अर्थ) स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-जिस प्रकार आकाश पृथ्वी के
एक निश्चित बिंदु से मिलकर दिशा को प्राप्त करती है उसी प्रकार से भारत की भौगोलिक
सीमा अनजान व्यक्तियों को एक निश्चित दिशा प्रदान करती है। ज्ञान की चाह रखने
वाले, मनीषी, जिज्ञासु, यात्री एवं सुख की कामना रखने वाले मनुष्य यहां आकर
तृप्ति, संतुष्टि एवं सुरक्षित होने का अहसास करते हैं। भारत भूमि सर्व सुख और
सर्व रक्षण देने वाली भूमि है। किसी के लिए भारत भूमि विश्राम स्थली है तो किसी के
लिए आश्रय स्थल। यहां अप्रवासी लोगो के संस्कृति और सभ्यता को भारतीय अपने सभ्यता
और संस्कृति में शामिल करते नजर आते हैं इसके कई एक उदाहरण हमारे इतिहास में बिखरे
पड़े हैं।
प्रश्न 5 कविता में
व्यक्त प्रकृति-चित्रों को अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर - कार्नेलिया के मुख से कवि
ने भारत की प्राकृतिक सुंदरता को चित्रित किया है। कार्नेलिया एक यूनानी युवती है
जिनका शिविर सिंधु नदी के तट पर लगाया गया है। यूनान देश एक पहाड़ी देश है जो
समुद्र तट से काफी दूर बसा है खेती के योग्य पर्याप्त मैदान की भी कमी है ऐसे में
कार्नेलिया का सिंधु नदी के तट से भारत को देखना स्तब्ध कर देता है। सूर्य को
स्वर्ण घड़े के रूप में दिखाया गया है। हरियाली पर लाल रंग की किरणें ऐसे छिटक रही
है मानो चारों और कुमकुम फैल गया हो। रंग बिरंगे पंखों वाले पक्षियों की उड़ान
मानो आसमान को इंद्रधनुष के रंग से आच्छादित कर रहा है। तरु शिखा और कमल पुष्पों
पर भोर की किरणें नृत्य करती हुई सी प्रतीत हो रही है।
देवसेना का गीतः लघु उत्तरीय प्रश्न-
1. स्कंदगुप्त नाटक की पृष्ठभूमि क्या है?
उत्तर- स्कंदगुप्त नाटक जयशंकर प्रसाद जी द्वारा रचित एक
ऐतिहासिक नाटक है। हूणों के आक्रमण को नाटक का पृष्ठभूमि बनाया गया है।
2. हूण कौन थे?
उत्तर- हूण मध्य एशिया के जंगली और बर्बर (असभ्य) जाति थी।
3. स्कंद गुप्त कौन था?
उत्तर- स्कंद गुप्त गुप्त साम्राज्य का आठवां राजा थे।
जिनके समय में हूणों का आक्रमण हुआ था। उन्होंने सफलतापूर्वक हूणों के आक्रमण को
नष्ट करते हुए पराजित किया।
4. देवसेना कौन थी उसका पारिवारिक परिचय दें?
उत्तर- देवसेना मालव प्रदेश के राजा बंधु वर्मा की बहन थी
हूणों के आक्रमण में देवसेना को छोड़कर सभी लोगों की मृत्यु हो गई थी।
5. देवसेना परिवार विहीन होने के पश्चात्
अपना जीवन निर्वाहन कैसे किया करती थी?
उत्तर- देवसेना परिवार विहीन होने के पश्चात् पर्णदत्त की
कुटी में रहा करती थी, और अपने जीवन का निर्वाहन करने के लिए भिक्षा मांगा करते
थी।
6. पर्णदत्त कौन था?
उत्तर- पर्णदत्त गुप्त साम्राज्य का वृद्ध महानायक था जो
युद्ध में घायल हुए सैनिकों की सेवा करते थे।
7. देवसेना का चरित्र चित्रण करें?
उत्तर- देवसेना स्कंद गुप्त से प्रेम करती थी किंतु
राष्ट्रप्रेम के लिए उसने अपने प्रेम का त्याग कर दिया। पर्णदत्त की कुटी में रहते
हुए भिक्षा मांग कर घायल सैनिकों की सेवा किया करती थी।
8. देवसेना का प्रेम अनूठा था कैसे?
उत्तर- देवसेना स्कंद गुप्त से प्रेम करती थी और विवाह भी
करना चाहती थी, किंतु स्कंद के परिणय निवेदन को ठुकरा देती है और आजीवन अविवाहित
रहने का निर्णय लेती है क्योंकि उसका प्रेम व्यक्तिगत ना होकर देश हित के लिए
होगया था।
9. आह वेदना मिली विदाई यहां 'वेदना' शब्द का
अर्थ बताएं?
उत्तर- वेदना शब्द का अर्थ पीड़ा होता है।
10. देवसेना यह गीत कब गाती है?
उत्तर- स्कंद द्वारा किए गए प्रणय निवेदन को ठुकरा देने के
बाद देवसेना अपने अतीत को याद करते हुए यह गीत गाती है।
11. वेदना से किसे विदाई मिली है और क्यों?
उत्तर- देवसेना का उद्देश्य स्कंद को पाना था किंतु देश
सेवा के उद्देश्य प्राप्ति होते ही उसे मानो स्कंद के प्रेम की वेदना से विदाई मिल
गई हो
12. कविता में आए शब्द भ्रम वश का अभिप्राय
बताएं।
उत्तर- भ्रम का अर्थ भूल होता है। देवसेना अपने जीवन का एक
लंबा समय की सेवा करने की जगह स्कंद को पाने के लिए बिता देती है देवसेना इस कार्य
को भूल के रूप में स्वीकार करती है।
13. मधु करियो का क्या अर्थ है बताएं?
उत्तर- मधु करियों का अर्थ है पके हुए अन्न की भिक्षा देना।
14. देवसेना ने किसे अपने जीवन का भ्रम माना
है?
उत्तर- देवसेना अपने उद्देश्यों के प्रति भ्रमित थी उसे
ज्ञात नहीं था कि उसे अपने जीवन में क्या करना है वह केवल स्कंद को पाना चाहती थी।
उसने जीवन की उमंग, उत्साह सब कुछ स्कंद पर निछावर कर दिया। किंतु बाद में उसे
ज्ञात होता है कि देश की सेवा करना उसके लिए कितना महत्वपूर्ण है।
15. कविता में यात्रा शब्द का क्या अर्थ है?
उत्तर- देवसेना के जीवन को यात्रा शब्द से सूचित किया गया
है।
16. देवसेना के जीवन में नीरवता (खामोशी)
क्यों थी?
उत्तर- देवसेना ने अपने जीवन में जो भी कुछ प्राप्त किया था
वह धीरे-धीरे करके खो देती है पहले अपने परिवार को और बाद में अपने प्रेम को खो
देने की वजह से उसके जीवन में नीरवता आ जाती है।
17. कवि ने अनंत
अंगड़ाई शब्द का प्रयोजन किस उद्देश्य से किया है?
उत्तर- थके हारे व्यक्ति का लक्षण
अंगड़ाई लेना होता है देवसेना भी मन से काफी थक चुकी थी इसलिए कवि उसके जीवन को
अनंत अंगड़ाई जैसे शब्द से परिभाषित करते हैं।
18. देवसेना के
सपनों को श्रमित स्वप्न क्यों कहा गया है?
उत्तर- श्रमित स्वपन का अर्थ होता
है थका हुआ स्वप्न। सपने देखना स्वाभाविक प्रक्रिया है और देवसेना भी स्कंद की
स्वप्न देखा करती थी किंतु अब ना तो परिस्थिति और ना ही उस की उम्र ऐसी है कि वह
ऐसे सपने को देखने में रुचि ले। उम्र के ढलान के साथ- साथ उसके सपने भी ढल गए हैं।
19. देवसेना के श्रम
कण की तुलना किससे की गई है?
उत्तर- देवसेना अति परिश्रम करके
सैनिकों का भरण पोषण करने में अपने आप को असमर्थ पा रही थी तो दूसरी तरफ उसने
स्वयं स्कंद के प्रणय निवेदन को ठुकरा दिया था इससे वह काफी आहत थी। दिन भर के
परिश्रम करने के पश्चात् जब विश्राम के लिए स्थिर होती है तब उसे महसूस होता है कि
थकावट के कारण उसके पसीने नहीं बल्कि आंखों से आंसू गिर रहे है।
20. देवसेना के
स्वप्न को थका हुआ क्यों कहा गया है?
उत्तर-ऐसे स्वप्न जो देवसेना ने
स्कंद के लिए मधुरभाव से देखे थे आज वह स्वप्न पूरा करने रुचि देवसेना में नहीं रह
गई थी क्योंकि आज परिस्थितियां और उसके उम्र में बदलाव आ गया है उम्र की इस ढलान
पर अब वह ऐसे स्वप्न देखना नहीं चाहती जो कभी उमंगों से भरा था। उसके स्वप्न भी
उसके उम्र की भांति थक चुके हैं।
21. कविता में
प्रयुक्त गहन विपिन शब्द का क्या अभिप्राय है?
उत्तर- कविता में गहन विपिन का
अर्थ देवसेना के संघर्षों से है। गहन विपिन अर्थात् घने जंगलों की भांति देवसेना
का जीवन दुख और अंधकार से घिरा हुआ था।
22. कविता में
'पथिक' शब्द का प्रयोग किसके लिए किया गया है?
उत्तर- कविता में 'पथिक' शब्द का
प्रयोग देवसेना के लिए किया गया है।
23. उनींदी श्रुति
का अभिप्राय बताएं?
उत्तर- जब कोई व्यक्ति गहरी नींद
में सोता है तो वह किसी प्रकार के कोलाहल को पसंद नहीं करता है ठीक वैसे ही
देवसेना अपने जीवन के संघर्षों से थक चुकी थी और वह विश्राम करना चाहती थी ऐसे में
स्कंद का प्रणय निवेदन उसे अरुचिकर प्रतीत होता है।
24. विहाग तान का
अभिप्राय बताएं?
उत्तर- विहाग तान एक प्रकार का ऐसा
तान है जो रात के अर्धरात्रि में गाया जाता है। यहां अर्धरात्रि का अर्थ उम्र के
ढलान से है देवसेना अब पूरी तरह से देश के प्रति समर्पित हैं अब उसके जीवन के
उद्देश्य बदल गए हैं ऐसे में स्कंद के द्वारा प्रणय निवेदन करना उसे और अरुचिकर
प्रतीत होता है।
25. लोगों की तृष्णा
भरी नजरों से देवसेना क्यों बचा करती थी?
उत्तर- स्कंद से प्रेम करने के
कारण वह केवल स्कंद से विवाह करना चाहती थी इसलिए लोगों की तृष्णा भरी नजरों से वह
बचा करती थी।
26. देवसेना ने किस
प्रकार से अपनी सकल (संपूर्ण) कमाई को खो दी?
उत्तर- देवसेना स्कंद से प्रेम
करती थी और उसे वह पाना चाहती थी देवसेना अपने मन की बात स्कंद के समक्ष रखती है
उस समय स्त्रियों के द्वारा अपने मन की बात कही जाना बड़ी लज्जा की बात समझी जाती
थी। स्कंद ने उसके प्रणय निवेदन को ठुकरा दिया था इससे देवसेना को एहसास हुआ कि
उसने अपनी सकल कमाई खो दी।
27. कवि नेआशा को
बावली (पागलपन) क्यों कहा है?
उत्तर- आशा देखना कोई गलत बात नहीं
है आशा देखने से हमें अपनी इच्छाओं को पूर्ण करने की क्षमता प्राप्त होती हैं
किंतु जब वही आशा हमें जीवन में संतुलन बनाने का अवसर नहीं देती है तो यही आशा
पागलपन का रूप ले लेती है।
28. कविता में
'जीवन-रथ' का क्या अभिप्राय है?
उत्तर- कविता में 'जीवन रथ' का
अर्थ है जीवन की यात्रा से है।
29. 'प्रलय चल रहा अपने पथ' का अभिप्राय
बताएं?
उत्तर- 'प्रलय' का अर्थ कविता में संघर्ष से है देवसेना के
जीवन में मानो संघर्ष भी साथ साथ चल रहा हो।
30. देवसेना जीवन के संघर्षों में अपने आप को
किस स्थिति में मानती है?
उत्तर- देवसेना जीवन के संघर्षों में अपने आप को कमजोर पाती
है क्योंकि उसके पास ना तो परिवार है ना ही प्यार और धन है।
31. 'उससे हारी-होड़ लगाई' में 'उससे' शब्द
का यहां क्या अभिप्राय है?
उत्तर- 'उससे' शब्द का अर्थ यहां जीवन के संघर्षों से है।
32.' मैंने निज दुर्बल पद बल पर उससे हारी
होड़ लगाई' में निहित अभिप्राय बताएं?
उत्तर- देवसेना देश हित और अपने खोए हुए राज्य को प्राप्त
करना चाहती थी किंतु उसके पास परिवार, प्रेम और धन कुछ भी शेष नहीं बचा था ऐसे में
वह अपने उद्देश्यों की प्राप्ति नहीं कर सकती थी। उसका हारना तय है ऐसा जान कर भी
वह अपने संघर्षों को विराम देना नहीं चाहती थी।
33. देवसेना स्कंद से किस थाती को लौटा लेने
की बात करती है?
उत्तर- स्कंद द्वारा किए गए प्रणय निवेदन स्वरूप धरोहर को
देवसेना वापस ले लेने के लिए कहती है।
34. देवसेना स्कंद द्वारा किए गए प्रेरणा निवेदन
को क्यों ठुकरा देती है?
उत्तर- उम्र के अंतिम पड़ाव पर स्कंद देवसेना के समक्ष प्रणय
निवेदन लेकर उपस्थित होता है। देवसेना को विवाह संबंधी कोई रुचि नहीं रह गई थी साथ
ही देवसेना का उद्देश्य बदल चुका था वह देश हित में अपने आप को लगाना चाहती थी इसलिए
वह स्कंद से अपने प्रेम निवेदन को वापस ले लेने का गुहार लगाती है।
35. मेरी भी करुणा हा हा खाती वाक्य का अभिप्राय
बताएं?
उत्तर- स्कंद के द्वारा विवाह प्रस्ताव को ठुकराए जाने पर देवसेना
आहत थी, किंतु आज देवसेना का उद्देश्य केवल राष्ट्र सेवा ही है ऐसे में स्कंद द्वारा
प्रणय निवेदन को वह ठुकरा देती है क्योंकि वह नहीं चाहती कि सांसारिक जीवन में उलझ
कर दोनों राष्ट्र हित की भावना से भटक जाए। देवसेना की स्थिति और भी कारूणिक इसलिए
हो जाती है क्योंकि देवसेना चाहती तो स्कंद के प्रणय निवेदन को स्वीकार करके अपनी सारी
इच्छाओं की पूर्ति कर सकती थी किंतु उसने ऐसा नहीं किया।
36. देवसेना का प्रेम व्यक्तिगत प्रेम से ऊंचा
था कैसे?
उत्तर- देवसेना चाहती तो स्कंद के प्रणय निवेदन को स्वीकार कर
लेती और शेष जीवन आराम से व्यतीत करती। प्रेम के साथ उसे वह सारी सुख सुविधा मिल जाती
जिसकी कल्पना वह कभी किया करती थी किंतु देश हित के लिए वह सब कुछ त्याग कर देती
है इसलिए उसका प्रेम व्यक्तिगत प्रेम से अधिक ऊंचा है।
37. कवि का देवसेना का
गीत लिखने के पीछे मूल कारण क्या था?
उत्तर- कवि ने स्कंद गुप्त नाटक की
रचना उस समय की थी जब हमारा देश आजाद नहीं हुआ था कवि नाटक के माध्यम से चाहते थे कि
लोग देश के प्रति जिम्मेदारी को समझें नाटक के अंतर्गत एक गीत 'देवसेना का गीत' भी
लिखा गया इस गीत का उद्देश्य भी यही था। इस गीत के माध्यम से हम जान पाते हैं कि व्यक्तिगत
प्रेम से अधिक बड़ा प्रेम देश प्रेम होता है।
कार्नेलिया का गीत लघु उत्तरीय प्रश्न
38. कार्नेलिया का गीत
जयशंकर प्रसाद के किस नाटक से लिया गया है और गीत का मूल उद्देश्य क्या है?
उत्तर- कार्नेलिया का गीत जयशंकर प्रसाद
जी द्वारा रचित नाटक चंद्रगुप्त से लिया गया है। गीत एक यूनानी युवती कार्नेलिया के
द्वारा गाया जाता है। गीत के द्वारा अतीत के गौरव गान से लोगों को पुनः परिचित कराना
ही लेखक का उद्देश्य रहा है।
39. कार्नेलिया कौन थी
और वह भारत देश की भूमि को अपना देश क्यों मानती है?
उत्तर- कार्नेलिया एक यूनानी युवती
है। यूनान एक पहाड़ी देश है जहां पर प्राकृतिक सुंदरता का अभाव है कार्नेलिया अपने
पिता के साथ जब भारत देश के भ्रमण पर आती है तो वह देश की प्राकृतिक सुंदरता और साथ
ही यहां के लोगों की मन की सुंदरता से आकर्षित हो जाती है और इसे ही वह अपना देश मान
बैठती है।
40. गीत में वह किसे
संबोधित करती है?
उत्तर- कार्नेलिया सूर्य की लालिमा
अर्थात् अरुण को संबोधित करते हुए वह गीत गाती है।
41. ऐसे क्या कारण रहे
होंगे कि कार्नेलिया ने अरुण को संबोधित करते हुए यह गीत गाया?
उत्तर- कार्नेलिया एक यूनानी युवती
थी जो भारत देश के भ्रमण पर आई थी। उनका शिविर सिंधु घाटी के पास में लगाया गया था
जहां से भारत देश की प्राकृतिक सुंदरता देखते ही बनती थी एक अनजान होने के कारण देश
में वो किसी से परिचित नहीं थी इसलिए वह देश की सुंदरता का बखान करने के लिए अरुण को
संबोधित करते हुए यह गीत गाती है।
42. भारत देश को मधुमय
क्यों कहा गया है?
उत्तर- मधुमय का अर्थ है मधुर। भारत
देश की सुंदरता के साथ-साथ लोगों का स्वभाव और मन बहुत मधुर एवं सुंदर है इसलिए कार्नेलिय
देश को मधुमय देश कहती है।
43. कविता में अनजान
व्यक्तियों के लिए क्षितिज शब्द का प्रयोग किया गया है 'क्षितिज' का अर्थ बताएं?
उत्तर-जहां धरती और आसमान एक सार हो
जाएं अर्थात् धरती और आसमान का भेद मिट जाए उसे क्षितिज कहते है। हमारे देश में अनजान
लोगों को भी बहुत ही प्रेम पूर्वक अपने में शामिल कर लिया जाता है इसलिए कविता में
'क्षितिज' शब्द का प्रयोग अनजान व्यक्तियों के लिए किया गया है।
44. सूर्य की लालिमा
का वर्णन कार्नेलिया अपने गीत में किस प्रकार से करती है?
उत्तर-सूर्य की लालिमा से कमल पुष्प
और तरुशिखा सेवन और स्पर्श पाकर पुष्ट हो रही है। सूर्य की लालिमा तरु की ऊंची शिखर
से लेकर नदी की तलहटी में पाई जाने वाली कमल पुष्पों पर बराबर अपनी आभा को फैलाकर नया
जीवन प्रदान करती हैं और यही कारण है कि तरु शिखा भी थिरकती- सी प्रतीत होती है। सूर्य
की मांगलिक लालिमा से हरियाली पर उत्साहऔर गतिशीलता आ गई है।
45. कविता में हरियाली
किसका प्रतीक है?
उत्तर- एक तरफ जहां हरियाली का अर्थ
भारत देश के खेत-खलियान से है तो दूसरी तरफ उत्साह, ऊर्जा और उमंग से है।
46. गीत में आए शब्द
मंगल कुमकुम का अर्थ क्या है?
उत्तर- यहां मंगल कुमकुम का अर्थ सूर्य
की मांगलिक किरणों से है जो खेत और खलिहान पर पड़कर फसल के रूप में देश का पोषण करती
है।
47. पक्षियों शीतल मलय
समीर सहारे क्यों उड़ रही हैं?
उत्तर- पक्षियों का अर्थ विदेशी लोगों
से है। और शीतल मलय समीर का अभिप्राय है यहां का शांत वातावरण से है। यहां के शांत
वातावरण से प्रभावित होकर अनजान व्यक्ति भारत देश को अपना रहने का उपयुक्त स्थान मान
लेते हैं।
48. बरसाती आंखों के
बादल का अभिप्राय क्या है?
उत्तर- पीड़ा के कारण आंखों में आए
आंसू को यहां बरसाती आंखों के बादल कहा गया है।
49. कविता में करुणा
जल का क्या अभिप्राय है?
उत्तर- करुणा जल का अर्थ यहां सहानुभूति
से है भारतीय लोग दूसरे की पीड़ा को देखकर सहानुभूति के भाव से भर उठते हैं।
50. कार्नेलिया भारत
के किस मानवीय गुणों का वर्णन करती है?
उत्तर- भारतीय लोग दूसरों की पीड़ा
को अपनी अपनी पीड़ा समझते हैं और सहानुभूति से भर उठते हैं।
51. गीत में 'लहरें टकराती
अनंत की जहां पाकर किनारा। वाक्य का प्रयोग किस प्रयोजन (अर्थ) से हुआ है?
उत्तर- भारत भूमि पर सदियों से विदेशियों
का आक्रमण होता रहा है किंतु भारत की भूमि पर आकर वे बिल्कुल शांत हो जाते हैं क्योंकि
यहां के आत्मिक प्रेम को पाकर वे इसी देश का होकर रह जाते हैं।
52. हेमकुंभ का अर्थ
बताएं?
उत्तर- हेमकुंभ का अर्थ है सोने का
सूर्य।
53. कवि ने सूर्य को हेमकुंभ क्यों कहा है?
उत्तर- सूर्योदय के समय सूर्य की लालिमा हल्के लाल और पीले रंग
की होती है साथ में सूर्य की आकृति घड़े के समान दिखती है। सूर्य को देखने से प्रतीत
होता है कि जैसे घड़े पर हल्के पीले रंग का आवरण चढ़ा हुआ है इसलिए कवि सूर्य की तुलना
हेम कुंभ के रूप में करते हैं।
54. सूर्य भारत भूमि पर किस प्रकार से सुखों की
वृद्धि करता है?
उत्तर- सूर्य समस्त ऊर्जाओं का स्रोत है सूर्य की लालिमा जब
भारत भूमि को स्पर्श करती है तो ना केवल प्रकृति बल्कि मानवीय क्रियाकलाप भी आरंभ हो
जाती है, जो किसी भी देश की उन्नति के लिए आवश्यक है।
55. मदिर (मादकता) ऊंघते रहते जब जागकर रजनी भर
तारा में निहित भाव का अर्थ बताएं।
उत्तर- सूर्य की उपस्थिति के आभास होने पर रात भर प्रकाश का
सुख देने के बाद तारे अपने क्रियाकलाप को विश्राम देना चाहती है।
56. कार्नेलिया के गीत के द्वारा कवि ने क्या
संदेश देना चाहा है?
उत्तर- कार्नेलिया का गीत केवल भारत की प्राकृतिक सुंदरता के
बारे में नहीं है। प्राकृतिक सुंदरता के माध्यम से देश की वैभव, संस्कृति आदि को दर्शाने
का प्रयास किया गया है।
57. कमल और तरु शिखा किसके प्रतीक हैं?
उत्तर- कमल हमारी देश की संस्कृति एवं वैभवता का प्रतीक है एवं ऊंचे तरुशिखा
हमारे विश्वगुरु होने का प्रतीक है।
58. हरियाली एवं कुमकुम
किसका प्रतीक है?
उत्तर- कविता में हरियाली खेत खलियान
को दर्शाती है वही दूसरे अर्थ में हरियाली का अर्थ उत्साह एवं उमंग से हैं और कुमकुम
का अर्थ मांगलिक कार्य और ऊर्जा से है।
59. कविता में उड़ते खग किसका प्रतीक है?
उत्तर- भारत भूमि पर आने वाले विदेशियों को यहां उड़ते खग माना
गया है।
60. शीतल मलय समीर का अभिप्राय बताएं?
उत्तर- शीतल मलय समीर का अर्थ देश की शांत वातावरण से है।
देवसेना का गीतः बहु वैकल्पिक प्रश्न उत्तर
1. 'देवसेना का गीत' के रचनाकार कौन है?
(क) जयशंकर प्रसाद
(ख) सूर्यकांत त्रिपाठी निराला
(ग) विष्णु खरे
(घ) रघुवीर सहाय
2. 'देवसेना का गीत' जयशंकर प्रसाद के किस नाटक
से लिया गया है
(क) ध्रुवस्वामिनी
(ख) चंद्रगुप्त
(ग) स्कंद गुप्त
(घ) अजातशत्रु
3. स्कंद गुप्त नाटक किस वर्ष लिखी गई?
(क) 1928
ख) 1932
(ग) 1947
(घ) 2005
4. स्कंदगुप्त नाटक की
पृष्ठभूमि क्या है?
(क) हूण आक्रमण
(ख) जापानी आक्रमण
(ग) चीन भारत आक्रमण
(घ) इनमें से कोई नहीं
5. हूण कौन थे?
(क) सभ्य जाति
(ख) जंगली और बर्बर
(असभ्य) जाति
(ग) धनवान जाति
(घ) आदर्श जाति
6. स्कंद गुप्त किस के
आक्रमण को असफल करता है?
(क) हूण आक्रमण
(ख) जापानी आक्रमण
(ग) चीन भारत आक्रमण
(घ) इनमें से कोई नहीं
7. स्कंद गुप्त कौन था?
(क) गुप्त वंश का सम्राट
(ख) साधारण व्यक्ति
(ग) शहर निवासी
(घ) आम नागरिक
8. देवसेना कौन थी?
(क) मालव प्रदेश की राजकुमारी
(ख) बंधु वर्मा की बहन
(ग) प्रेम में असफल राजकुमारी
(घ) इनमें से सभी
9. बंधु वर्मा कौन था?
(क) मालव प्रदेश का राजा
(ख) देवसेना का भाई
(ग) स्कंद गुप्त का समकालीन
(घ) इनमें से सभी
10. देवसेना किस से प्रेम करती थी?
(क) स्कंद गुप्त से
(ख) चंद्रगुप्त से
(ग) समुद्रगुप्त से
(घ) श्री गुप्त से
11. देवसेना का परिवार किसके आक्रमण में मारा
गया?
(क) हूण आक्रमण
(ख) जापानी आक्रमण
(ग) चीन भारत आक्रमण
(घ) इनमें से कोई नहीं
12. देवसेना को किस के प्रेम में वेदना मिली थी?
(क) मित्र के प्रेम में
(ख) स्कंद गुप्त के प्रेम में
(ग) चंद्रगुप्त के प्रेम में
(घ) समुद्रगुप्त के प्रेम में
13. 'वेदना' शब्द का अर्थ बताएं-
(क) पीड़ा
(ख) आनंद
(ग) खुशी
(घ) क्रोध
14. 'देवसेना के गीत' कविता का प्रमुख पात्र कौन
है?
(क) स्कंद गुप्त
(ख) पर्णदत्त
(ग) देवसेना
(घ) बंधु वर्मा
15. मधुकरियो का क्या अर्थ है बताएं-
(क) पके हुए अन्न की भिक्षा
(ख) कच्चा अनाज
(ग) अन्न
(घ) दीक्षा
16. देवसेना भ्रम वश अपने जीवन में क्या किया?
(क) उद्देश्य विहीन रही
(ख) देश सेवा में लगी रही
(ग) खामोश रही
(घ) प्रसन्न रही
17. कविता में कवि ने
देवसेना के श्रमकण की तुलना किससे की है?
(क) यात्रा से
(ख) अंगड़ाई से
(ग) नीरवता से
(घ) आँसू से
18. 'आँसू से गिरते थे
प्रतिक्षण' में कौन सा अलंकार है?
(क) उपमा अलंकार
(ख) उत्प्रेक्षा अलंकार
(ग) रूपक अलंकार
(घ) मानवीकरण अलंकार
19. कविता में यात्रा
शब्द का क्या आशय है-
(क) देवसेना का जीवन
(ख) देवसेना की मृत्यु
(ग) देवसेना की उदासी
(घ) देवसेना की भक्ति
20. देवसेना के जीवन पर कौन अनंत अंगड़ाई ले रहा
था?
(क) नीरवता
(ख) खुशी
(ग) प्रलय
(घ) आशा
21. देवसेना के जीवन में नीरवता (खामोशी) के कारण
क्या थे?
(क) परिवार की मृत्यु
(ख) प्रेम में असफलता
(ग) राज्य का खो जाना
(घ) इनमें से सभी
22. किसके स्वप्न थक से गए थे?
(क) देवसेना के
(ख) स्कंद के
(ग) आशा
(घ) उत्साह
23. 'गहन - विपिन' का अर्थ बताएं?
(क) शहर
(ख) घना जंगल
(ग) गांव
(घ) करुणा
24. देवसेना के संघर्षों को कविता में किन शब्दों
से अभिव्यक्त किया गया है?
(क) गहन - विपिन
(ख) मधुमाया
(ग) सकल कमाई
(घ) बावली
25. कविता में 'पथिक' शब्द का प्रयोग किसके लिए
किया गया है?
(क) स्कंद गुप्त के लिए
(ख) देवसेना के लिए
(ग) विश्व के लिए
(घ) साधारण व्यक्ति के लिए
26. उनींदी श्रुति का प्रयोग कवि ने किस प्रयोजन
से किया है?
(क) मरे हुए व्यक्ति के लिए
(ख) थके हुए कान के लिए
(ग) जीवित व्यक्ति के लिए
(घ) इनमें से कोई नहीं
27. विहाग तान का अर्थ बताएं?
(क) अर्धरात्रि में गाए जाने वाला राग
(ख) दिन में गाए जाने वाला राग
(ग) भोर में गाए जाने वाला राग
(घ) दोपहर में गाए जाने वाला राग
28. अर्ध रात्रि से यहां किस कथन की ओर संकेत
किया गया है?
(क) बचपना
(ख) उम्र का ढलान
(ग) किशोरावस्था
(घ) इनमें से कोई नहीं
29. विहाग तान कौन छेड़ (गा) रहा है?
(क) स्कंद गुप्त
(ख) बंधु वर्मा
(ग) विजया
(घ) सैनिक
30. स्कंद द्वारा किए गए प्रणय निवेदन को कवि
ने किस तान से तुलना की है?
(क) विहाग की तान
(ख) भैरवी राग
(ग) तानसेन राग
(घ) इनमें से कोई नहीं
31. लोग किसे तृष्णा भरी नजरों से देखा करते थे?
(क) धन दौलत को
(ख) विजया को
(ग) देवसेना को
(घ) स्वर्ण मुद्राओं को
32. कवि ने आशा को क्या कहा है?
(क) बावली
(ख) प्रलय
(ग) तृष्णा
(घ) तृप्ति
33. देवसेना जीवन के संघर्षों में अपने आप को
किस स्थिति में मानती है?
(क) मजबूत स्थिति
(ख) दुर्बल (कमजोर) स्थिति
(ग) सुखद स्थिति
(घ) सम्मानजनक स्थिति
34. हारी होड़' का अर्थ बताएं-
(क) हारी हुई प्रतिस्पर्धा (बाजी)
(ख) प्रतिस्पर्धा
(ग) दुर्बलता
(घ) क्षीणता
35. देवसेना ने किस से हारी होड़ लगाई?
(क) जीवन के संघर्षों से
(ख) संसाधनों से
(ग) परिवार जन से
(घ) मृत्यु से
36. 'मैंने निज दुर्बल पद बल पर' में 'पद बल
'का अभिप्राय बताएं-
(क) शक्ति
(ख) सौभाग्य
(ग) आरोग्य
(घ) संसाधन
37. 'मैंने निज दुर्बल पद बल पर' में दुबर्ल पद
बल का अभिप्राय बताएं-
(क) सौभाग्य
(ख) आरोग्य
(ग) शक्तिहीन
(घ) संसाधन
38. 'उससे हारी होड़
लगाई' में 'उससे' शब्द का अर्थ बताएं?
(क) उदासीनता
(ख) खुशी
(ग) संघर्षमय जीवन
(घ) इनमें से कोई नहीं
39. देवसेना का जीवन
संघर्षमय होने के क्या कारण थे?
(क) परिवार विहीन होना
(ख) प्रेम में असफल होना
(ग) राज्य को खो देना
(घ) इनमें से सभी
40. 'थाती' का अर्थ बताएं?
(क) धरोहर
(ख) वंश
(ग) राज्य
(घ) धन
41. देवसेना स्कंद से
किस थाती (धरोहर) को लौटा लेने की बात करती है?
(क) प्रणय निवेदन
(ख) धन
(ग) राज्य
(घ) इनमें से कोई नहीं
42. देवसेना स्कंद द्वारा
किए गए प्रयय निवेदन को क्यों ठुकरा देती है?
(क) विवाह में रुचि ना होने के कारण
(ख) देश- सेवा के लिए
(ग) स्कंद को भटकाव से बचाने के लिए
(घ) इनमें से सभी
43. देवसेना किसे संबोधित
करती है?
(क) विश्व को
(ख) राज्य को
(ग) गांव को
(घ) मालव को
44. किसके स्थिति पर
करुणा भी हा- हा खा रही है?
(क) स्कंद गुप्त
(ख) देवसेना
(ग) बंधु वर्मा
(घ) पर्णदत्त
45. शोक या दुख को व्यक्त
करने वाला शब्द है-
(क) हा-हा
(ख) तृष्णा
(ग) करुणा
(घ) दया
46. 'आंसू से' में कौन
सा अलंकार है?
(क) रूपक अलंकार
(ख) उपमा अलंकार
(ग) अतिशयोक्ति अलंकार
(घ) उत्प्रेक्षा अलंकार
47. जीवन- रथ में कौन
सा अलंकार है?
(क) रूपक अलंकार
(ख) उपमा अलंकार
(ग) अतिशयोक्ति अलंकार
(घ) उत्प्रेक्षा अलंकार
48. पथ पर, दुर्बल पद,
हारी होड़ में कौन सा अलंकार है?
(क) रूपक अलंकार
(ख) उपमा अलंकार
(ग) अनुप्रास अलंकार
(घ) उत्प्रेक्षा अलंकार
49. हा-हा में कौन सा
अलंकार है?
(क) पुनरुक्ति प्रकाश
अलंकार
(ख) उपमा अलंकार
(ग) अनुप्रास अलंकार
(घ) उत्प्रेक्षा अलंकार
50. लेती थी निरवता अनंत
अंगड़ाई में कौन सा अलंकार है?
(क) रूपक अलंकार
(ख) उपमा अलंकार
(ग) अनुप्रास अलंकार
(घ) मानवीकरण अलंकार
51. 'प्रलय चल रहा अपने पथ पर में कौन सा अलंकार
है?
(क) रूपक अलंकार
(ख) उपमा अलंकार
(ग) अनुप्रास अलंकार
(घ) मानवीकरण अलंकार
52. मेरी करुणा हा हा खाती में कौन सा अलंकार
है?
(क) रूपक अलंकार
(ख) उपमा अलंकार
(ग) अनुप्रास अलंकार
(घ) मानवीकरण अलंकार
पाठ के आसपास
गुप्त वंश-गुप्त राजवंश प्राचीन भारत
का एक हिन्दू साम्राज्य था। इस वंश के संस्थापक श्री गुप्त थे अन्य महत्वपूर्ण राजाओं
में समुद्रगुप्त एवं स्कंद गुप्त का नाम प्रमुख रूप से लिया जाता है।
स्कंद गुप्त - गुप्त वंश का एक महत्वपूर्ण
शासक स्कंद गुप्त थे। स्कन्दगुप्त के शासनकाल की सबसे महत्वपूर्ण घटना थी हूणों का
आक्रमण हालाँकि स्कन्दगुप्त इसे रोकने में सफल रहा।
स्कंदगुप्त नाटक- स्कंदगुप्त के जीवन
पर आधारित इस नाटक में पारिवारिक कलह एवं षड्यंत्र और हूणों के आक्रमण से लेकर युद्ध
की समाप्ति तक का वर्णन है। नाटक में 17 गीत है जिसमें से देवसेना का गीत प्रमुख है।
स्कंद गुप्त नाटक के प्रमुख पात्र-स्कंद
गुप्त (गुप्त वंश का सम्राट), देवसेना (बंधु वर्मा की बहन) विजया (मालव प्रदेश के धनकुबेर
की बेटी), पर्णदत्त (मगध का महानायक)
उपयोगी तथ्य
अलंकार - काव्य की शोभा बढ़ाने वाले
तत्व को अलंकार कहते हैं।
पाठ में आए कुछ प्रमुख अलंकार को पहचानने
की ट्रिक-
अनुप्रास अलंकार-एक ही वर्ण या अक्षर
लगातार कई बार आए तो वहां अनुप्रास अलंकार होता है।
प्रमुख अनुप्रास अलंकार-1) छेकानुप्रास-एक
ही वर्ण की आवृत्ति 2 बार।
उदाहरण 'सतृष्ण दीठ थी सबकी' में छेकानुप्रास
है।
यहां दो बार 'स' वर्ण की आवृत्ति होने
के कारण छेकानुप्रास होगा।
2) वृत्यानुप्रास-एक ही वर्ण की आवृत्ति
2 बार से अधिक हो
उदाहरण - प्रलय चल रहा अपने पथ पर में
वृत्यानुप्रास है।
यहां पर 'प' वर्ण की आवृत्ति तीन बार
होने के कारण वृत्यानुप्रास है।
रूपक अलंकार-जब पंक्ति में योजक चिन्ह
(-) के साथ सा, से, सी जैसे शब्द ना आए तो वहां रूपक अलंकार होता है।
उदाहरण - बरसाती आंखों के बादल -बनते
जहां भरे करुणा जल।
पाठ से संबंधित उपयोगी तथ्य-
(क) भाव सौंदर्य-कविता की व्याख्या
करना अथवा अर्थ बताना।
(ख) शिल्प सौंदर्य - शिल्प का अर्थ
रचना की बनावट होती है। रस, छंद, अलंकार, भाषा शैली आदि शिल्प सौंदर्य के प्रमुख अंग
है।
काव्य सौंदर्य- काव्य सौंदर्य की 2
अंग है -भाव सौंदर्य और शिल्प सौंदर्य अथार्थ भाव सौंदर्य + शिल्प सौंदर्य काव्य सौंदर्य।
कार्नेलिया का गीतः बहुविकल्पी प्रश्न उत्तर
1. 'कार्नेलिया का गीत'
जयशंकर प्रसाद के किस नाटक से लिया गया है?
(क) चंद्रगुप्त
(ख) स्कंद गुप्त
(ग) राज्यश्री
(घ) ध्रुवस्वामिनी
प्रश्न को याद करने का ट्रिक-चक दे
इंडिया मूवी के द्वारा इसे याद किया जा सकता है। (च) से [चंद्रगुप्त नाटक और (क) से
[कार्नेलिया का गीत]
2. कार्नेलिया कौन थी?
(क) एक यूनानी युवती
(ख) सेल्यूकस की पुत्री
(ग) चंद्रगुप्त की पत्नी
(घ) इनमें से सभी
3. 'कार्नेलिया के गीत
'कविता में कार्नेलिया गीत में किसे संबोधित करते हुए गाती है?
(क) अरुण को,
(ख) नदी को
(ग) प्रकृति को
(घ) भारतवासी को
4. 'कार्नेलिया के गीत
'कविता में कार्नेलिया कहां गीत गाती है?
(क) हिमालय
(ख) खेत-खलियान
(ग) सिंधु नदी के तट
पर
(घ) यूनान
5. कविता में किस देश
को मधुमय कहा गया है?
(क) भारत
(ख) मिस्र
(ग) यूनान
(घ) इराक
6. भारत देश को मधुमय
क्यों कहा गया है?
(क) प्राकृतिक सुंदरता के कारण
(ख) लोगों के मधुर स्वभाव के कारण
(ग) अपरिचितों को सहारा देने के कारण
(घ) इनमें से सभी
7. वह स्थान जहां धरती
आकाश एक बिंदु पर मिलती प्रतीत होती है उस स्थान को क्या कहते हैं?
(क) क्षितिज
(ख) धरती
(ग) आकाश
(घ) अंतरिक्ष
8. कविता में 'क्षितिज 'शब्द का प्रयोग किसके
लिए किया गया है?
(क) परिचित व्यक्तियों के लिए
(ख) अनजान व्यक्तियों के लिए
(ग) देश के लिए
(घ) विदेश के लिए
9. तामरस का अर्थ है -
(क) नदी
(ख) तालाब
(ग) कमल
(घ) झरना
10. कविता में कमल किसका प्रतीक है?
(क) भारतीय संस्कृति और वैभव का
(ख) राष्ट्रीय गीत का
(ग) सुंदरता का
(घ) सरोवर का
11. तरू शिखा का अर्थ
बताएं?
(क) एक युवती का नाम
(ख) वृक्ष की सबसे ऊंची
चोटी
(ग) वृक्ष का नाम
(घ) अग्नि
12. कविता में तरु शिखा
भारत के किस विशेषता की ओर संकेत करता है?
(क) विश्व विजेता की ओर
(ख) वैभवता की ओर
(ग) शांति की ओर
(घ) विश्व गुरु की ओर
13. सूर्य की किरणें
किस पर नाच रही है?
(क) तरु शिखा पर
(ख) नदी पर
(ग) तट पर
(घ) पर्वत पर
14. कविता में हरियाली
किसका प्रतीक है?
(क) समृद्ध खेत-खलियान
(ख) उत्साह
(ग) उमंग
(घ) इनमें से सभी
15. गीत में आए शब्द
मंगल कुमकुम का अर्थ क्या है?
(क) सूर्य की मांगलिक
किरणें
(ख) धरती
(ग) सूर्य
(घ) मधुर
16. सुरधनु का अर्थ बताएं-
(क) धनुष
(ख) संगीत
(ग) इंद्रधनुष
(घ) पक्षी
17. छोटे-छोटे रंग बिरंगे
पंखों वाली पक्षी आसमान में उड़ते हुए कैसे प्रतीत हो रहे हैं?
(क) धनुष के समान
(ख) पतंग के समान
(ग) इंद्रधनुष के समान
(घ) बादल के समान
18. शीतल पवन के सहारे मलय पर्वत की ओर कौन उड़
रहा है?
(क) इंद्रधनुष समान पक्षी
(ख) कबूतर
(ग) कौवा
(घ) इनमें से कोई नहीं
19. कविता में 'उड़ते खग' का क्या अभिप्राय है?
(क) भारतीय लोग
(ख) विदेशी लोग
(ग) देशी लोग
(घ) इनमें से कोई नहीं
20. 'शीतल मलय समीर' का अर्थ बताएं?
(क) गर्म हवा
(ख) शीतल चंदन से युक्त वायु
(ग) बर्फीली हवा
(घ) तूफानी हवा
21. कविता में 'शीतल मलय समीर' का क्या अभिप्राय
है?
(क) भारत का शांत वातावरण
(ख) विदेशी वातावरण
(ग) प्रवासी वातावरण
(घ) अप्रवासी वातावरण
22. 'बरसाती आंखों' का क्या अभिप्राय है?
(क) खुशी
(ख) आंसू
(ग) सुंदर नेत्र
(घ) इनमें से कोई नहीं
23. कविता में 'बादल' शब्द का क्या अभिप्राय है?
(क) पीड़ा
(ख) कृषि
(ग) वर्षा
(घ) हरियाली
24. कविता में 'करुणा जल 'का क्या अर्थ है?
(क) शांति
(ख) अशांति
(ग) सहानुभूति
(घ) दृष्टि
25. भारतीय लोग किनकी
पीड़ा को देखकर दया, सहानुभूति से भर उठते हैं?
(क) अनजान व्यक्ति
(ख) अप्रवासी (बाहरी) लोग
(ग) अपरिचित लोग
(घ) इनमें से सभी
26. गीत में 'लहरें टकराती
अनंत की' का प्रयोग किस प्रयोजन (अर्थ) में हुआ है?
(क) विदेशी आक्रमणकारी
(ख) देशी आक्रमणकारी
(ग) खूंखार आक्रमणकारी
(घ) शांत आक्रमणकारी
27. 'जहां पाकर किनारा'
में 'किनारा' का क्या अभिप्राय है?
(क) भारत भूमि
(ख) विदेशी भूमि
(ग) प्रवासी भूमि
(घ) आप्रवासी भूमि
28. हेमकुंभ का अर्थ
बताएं?
(क) घड़ा
(ख) सोने का घड़ा
(ग) कलसी
(घ) लोटे का पात्र
29. सवेरा होते ही उषा (किरण) अपने साथ किसे लेकर
आती है?
(क) हेमकुंड को
(ख) हेमकुंभ समान सूर्य को
(ग) हिम किरण को
(घ) तारों को
30. कविता में उषा प्रातः कालीन सूर्य रूपी स्वर्णिम
घट लेकर कहाँ ढ़लकाती है?
(क) भारत भूमि पर
(ख) विदेशी भूमि पर
(ग) मरूभूमि पर
(घ) नदी तट पर
31. कविता में स्त्री रूप में किसका मानवीयकरण
किया गया है?
(क) उषा
(ख) तारा
(ग) सूर्य
(घ) बादल
32. रात भर प्रकाश का सुख देने के बाद जगे हुए
तारे भोर को कैसे प्रतीत होते हैं?
(क) उगते हुए
(ख) जगे हुए
(ग) ऊंघते हुए
(घ) इनमें से कोई नहीं
33. पंख पसारे', 'समीर सहारे' नीड़ निज' में कौन
सा अलंकार होगा?
(क) अनुप्रास अलंकार
(ख) उत्प्रेक्षा अलंकार
(ग) रूपक अलंकार
(घ) मानवीकरण अलंकार
34. 'छिटका जीवन हरियाली पर- मंगल कुमकुम सारा'
में कौन सा अलंकार है?
(क) अनुप्रास अलंकार
(ख) उत्प्रेक्षा अलंकार
(ग) रूपक अलंकार
(घ) मानवीकरण अलंकार
35. 'लघु सुरधनु से पंख पसारे' में कौन सा अलंकार
है?
(क) उपमा अलंकार
(ख) उत्प्रेक्षा अलंकार
(ग) रूपक अलंकार
(घ) मानवीकरण अलंकार
36. बरसाती आंखों के बादल-बनते जहां भरे करुणा
जल में कौन सा अलंकार है?
(क) उपमा अलंकार
(ख) उत्प्रेक्षा अलंकार
(ग) रूपक अलंकार
(घ) मानवीकरण अलंकार
37. 'मदिर ऊंघते रहते जब जगकर रजनी भर तारा' में
कौन सा अलंकार है?
(क) उपमा अलंकार
(ख) उत्प्रेक्षा अलंकार
(ग) रूपक अलंकार
(घ) मानवीकरण अलंकार
38. 'जब-जगकर में कौन सा अलंकार है?
(क) उपमा अलंकार
(ख) अनुप्रास अलंकार
(ग) रूपक अलंकार
(घ) मानवीकरण अलंकार
कार्नेलिया का गीत : लघु उत्तरीय प्रश्न
1. कार्नेलिया का गीत
जयशंकर प्रसाद के किस नाटक से लिया गया है और गीत का मूल उद्देश्य क्या है?
उत्तर - कार्नेलिया का गीत जयशंकर प्रसाद
जी द्वारा रचित नाटक चंद्रगुप्त से लिया गया है। गीत एक यूनानी युवती कार्नेलिया के
द्वारा गाया जाता है। गीत के द्वारा अतीत के गौरव गान से लोगों को पुनः परिचित कराना
ही लेखक का उद्देश्य रहा है।
2. कार्नेलिया कौन थी
और वह भारत देश की भूमि को अपना देश क्यों मानती है?
उत्तर-कार्नेलिया एक यूनानी युवती है।
यूनान एक पहाड़ी देश है जहां प्राकृतिक सुंदरता का अभाव है कार्नेलिया अपने पिता के
साथ जब भारत देश के भ्रमण पर आती है तो वह देश की प्राकृतिक सुंदरता और साथ ही यहां
के लोगों की मन की सुंदरता से आकर्षित हो जाती है और इसे ही वह अपना देश मान बैठती
है।
3. गीत में वह किसे संबोधित
करती है?
उत्तर - कार्नेलिया सूर्य की लालिमा
अर्थात् अरुण को संबोधित करते हुए गीत गाती है।
4. ऐसे क्या कारण रहे
होंगे कि कार्नेलिया ने अरुण को संबोधित करते हुए यह गीत गाया?
उत्तर - कार्नेलिया एक यूनानी युवती
थी जो भारत देश के भ्रमण पर आई थी। उनका शिविर सिंधु नदी के पास में लगाया गया था जहां
से भारत देश की प्राकृतिक सुंदरता देखते ही बनती थी एक अनजान होने के कारण देश में
वो किसी से परिचित नहीं थी इसलिए वह देश की सुंदरता का बखान करने के लिए अरुण को संबोधित
करते हुए यह गीत गाती है।
5. भारत देश को मधुमय
क्यों कहा गया है?
उत्तर - मधुमय का अर्थ है मधुर। भारत
देश की सुंदरता के साथ-साथ लोगों का स्वभाव और मन बहुत ही मधुर एवं सुंदर है इसलिए
कार्नेलिय देश को मधुमय देश कहती है।
6. कविता में अनजान व्यक्तियों
के लिए क्षितिज शब्द का प्रयोग किया गया है क्षितिज का अर्थ बताएं?
उत्तर - जहाँ धरती और आसमान एक सार
हो जाएँ अर्थात्
धरती और आसमान का भेद मिट जाएं उसे क्षितिज कहते हैं। हमारे देश में अनजान लोगों को
भी बहुत ही प्रेम पूर्वक अपने में शामिल कर लिया जाता है इसलिए कविता में क्षितिज शब्द
का प्रयोग अनजान व्यक्तियों के लिए किया गया है।
7. सूर्य की लालिमा का
वर्णन कार्नेलिया अपने गीत में किस प्रकार से करती है?
उत्तर - सूर्य की लालिमा से कमल पुष्प
और तरुशिखा सेवन और स्पर्श पाकर पुष्ट हो रही है। सूर्य की लालिमा तरु की ऊंची शिखर
से लेकर नदी की तलहटी में पाई जाने वाली कमल पुष्पों पर बराबर अपनी आभा को फैलाकर नया
जीवन प्रदान करती है। सूर्य की मांगलिक लालिमा से हरियाली पर उत्साह और गतिशीलता आ
गई है।
8. कविता में हरियाली
किसका प्रतीक है?
उत्तर - एक तरफ जहां हरियाली का अर्थ
भारत देश के खेत-खलियान से है तो दूसरी तरफ उत्साह ऊर्जा और उमंग से है।
9. गीत में आए शब्द मंगल
कुमकुम का अर्थ क्या है?
उत्तर - यहाँ मंगल कुमकुम का अर्थ सूर्य
की मांगलिक किरणों से है जो खेत और खलिहान पर पड़कर फसल के रूप में देश का पोषण करती
है।
10. पक्षियाँ शीतल मलय
समीर सहारे क्यों उड़ रही हैं?
उत्तर-पक्षियों का अर्थ विदेशी लोगों
से है और शीतल मलय समीर का अर्थ है यहाँ का शांत वातावरण है। यहाँ के शांत वातावरण
से प्रभावित होकर अनजान व्यक्ति भारत देश को अपना रहने का उपयुक्त स्थान मान लेते हैं।
11. बरसाती आंखों के
बादल का अर्थ क्या है?
उत्तर - पीड़ा के कारण आँखों में आए
आँसू को यहां बरसाती आँखों के बादल कहा गया है।
12. कविता में करुणा
जल का क्या अर्थ है?
उत्तर - करुणा जल का अर्थ यहां सहानुभूति
से है भारतीय लोग दूसरे की पीड़ा को देखकर सहानुभूति के भाव से भर उठते हैं।
13. कार्नेलिया भारत
के किस मानवीय गुणों का वर्णन करती है?
उत्तर - भारतीय लोग दूसरों की पीड़ा
को अपनी अपनी पीड़ा समझते हैं और सहानुभूति से भर उठते हैं।
14. गीत में 'लहरें टकराती
अनंत की जहां पाकर किनारा। वाक्य का प्रयोग किस प्रयोजन (अर्थ) से हुआ है?
उत्तर - भारत भूमि पर सदियों से विदेशियों
का आक्रमण होता रहा है किंतु भारत की भूमि पर आकर वे बिल्कुल शांत हो जाते हैं क्योंकि
यहाँ के आत्मिक प्रेम को पाकर वे इसी देश का होकर रह जाते हैं।
15. हेमकुंभ का अर्थ
बताएँ?
उत्तर - हेमकुंभ का अर्थ है सोने का
कलश।
16. कवि ने सूर्य को
हेमकुंभ क्यों कहा है?
उत्तर - सूर्योदय के समय सूर्य की लालिमा
हल्के लाल और पीले रंग की होती है साथ में सूर्य की आकृति घड़े के समान दिखती है। सूर्य
को देखने से प्रतीत होता है कि जैसे घड़े पर हल्के पीले रंग का आवरण चढ़ा हुआ है इसलिए
कवि सूर्य की तुलना हेम कुंभ के रूप में करते हैं।
17. सूर्य भारत भूमि
पर किस प्रकार से सुखों की वृद्धि करता है?
उत्तर - सूर्य समस्त ऊर्जाओं का स्रोत
है सूर्य की लालिमा जब भारत भूमि को स्पर्श करती है तो ना केवल प्रकृति बल्कि मानवीय
क्रियाकलाप भी आरंभ हो जाती है, जो किसी भी देश की उन्नति के लिए आवश्यक है।
18. 'मदिर (मादकता) ऊंघते
रहते जब - जगकर रजनी भर तारा' में निहित भाव का अर्थ बताएं।
उत्तर -रात भर प्रकाश का सुख देने के
बाद जगे हुए तारे सूर्य की उपस्थिति का आभास होने पर अपने क्रियाकलापों को विश्राम
देना चाहते हैं।
19. कार्नेलिया के गीत
के द्वारा कवि ने क्या संदेश देना चाहा है?
उत्तर - कार्नेलिया का गीत केवल भारत
की प्राकृतिक सुंदरता के बारे में नहीं है। प्राकृतिक सुंदरता के माध्यम से देश की
वैभव संस्कृति आदि को दर्शाने का प्रयास किया गया है।
20. कमल और तरु शिखा
किसके प्रतीक हैं?
उत्तर - कमल हमारी देश की संस्कृति
एवं वैभवता का प्रतीक है एवं ऊंचे तरुशिखा हमारे विश्वगुरु होने का प्रतीक है।
21. हरियाली एवं कुमकुम
किसका प्रतीक है?
उत्तर - कविता में हरियाली खेत खलियान
को दर्शाती है वही दूसरे अर्थ में हरियाली का अर्थ उत्साह एवं उमंग से हैं और कुमकुम
का अर्थ मांगलिक कार्य और ऊर्जा से है।
22. कविता में उड़ते
खग किसका प्रतीक है?
उत्तर-भारत भूमि पर आने वाले विदेशियों
को यहाँ उड़ते खग माना गया है।
23. शीतल मलय समीर का
अभिप्राय बताएँ?
उत्तर - शीतल मलय समीर का अर्थ देश
की शांत वातावरण से है।
पाठ के आसपास
चंद्रगुप्त नाटक-चन्द्रगुप्त नाटक का
प्रकाशन 1931 में हुआ था। इस नाटक में कुल चार अंक और चौआलीस दृश्य है। इनमे गीतों
की संख्या तेरह है। इन 13 (तेरह) गीतों में से एक गीत कार्नेलिया के द्वारा भी गाया
गया है। हमारे पाठ्यपुस्तक में कार्नेलिया का गीत' चंद्रगुप्त नाटक से उद्धृत है।
चंद्रगुप्त नाटक की कथावस्तु-यह नाटक
मौर्य वंश के संस्थापक राजा 'चन्द्रगुप्त मौर्य' के उदय के साथ-साथ उस समय के महाशक्तिशाली
राज्य 'मगध' के राजा 'घनानंद' के पतन की कहानी भी कहता है।
यूनान- यूनान यूरोप महाद्वीप में स्थित
एक पहाड़ी देश है। यहां के लोगों को यूनानी अथवा यवन कहते हैं। अंग्रेजी तथा अन्य पश्चिमी
भाषाओं में इन्हें ग्रीक कहा जाता है।
कार्नेलिया का गीत' पाठ में 'कार्नेलिया'
एक यूनानी युवती है।
उपयोगी तथ्य
अलंकार - काव्य की शोभा बढ़ाने वाले
तत्व को अलंकार कहते हैं।
पाठ में आए कुछ प्रमुख अलंकार पहचानने
की ट्रिक-
1) मानवीय अलंकार-जब प्राकृतिक चीजों
में मानवीय भावनाओं के होने का वर्णन हो वहां मानवीय अलंकार होता है।
उदाहरण - 'मदिर ऊंघते रहते जब-जगकर
रजनी भर तारा'
कवि की कल्पना अनुसार रात भर तारे जगे होने के कारण ऊंघते से प्रतीत होते हैं। हम सभी जानते हैं कि ऊंघने का काम केवल सजीव ही कर सकते हैं प्राकृतिक चीजें नहीं। अतः यहां मानवीय अलंकार होगा।
JCERT/JAC REFERENCE BOOK
Hindi Elective (विषय सूची)
भाग-1 | |
क्रं.सं. | विवरण |
1. | |
2. | |
3. | |
4. | |
5. | |
6. | |
7. | |
8. | |
9. | |
10. | |
11. | |
12. | |
13. | |
14. | |
15. | |
16. | |
17. | |
18. | |
19. | |
20. | |
21. | |
भाग-2 | |
कं.सं. | विवरण |
1. | |
2. | |
3. | |
4. |
JCERT/JAC Hindi Elective प्रश्न बैंक - सह - उत्तर पुस्तक (Question Bank-Cum-Answer Book)
विषय सूची
अंतरा भाग 2 | ||
पाठ | नाम | खंड |
कविता खंड | ||
पाठ-1 | जयशंकर प्रसाद | |
पाठ-2 | सूर्यकांत त्रिपाठी निराला | |
पाठ-3 | सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय | |
पाठ-4 | केदारनाथ सिंह | |
पाठ-5 | विष्णु खरे | |
पाठ-6 | रघुबीर सहाय | |
पाठ-7 | तुलसीदास | |
पाठ-8 | मलिक मुहम्मद जायसी | |
पाठ-9 | विद्यापति | |
पाठ-10 | केशवदास | |
पाठ-11 | घनानंद | |
गद्य खंड | ||
पाठ-1 | रामचन्द्र शुक्ल | |
पाठ-2 | पंडित चंद्रधर शर्मा गुलेरी | |
पाठ-3 | ब्रजमोहन व्यास | |
पाठ-4 | फणीश्वरनाथ 'रेणु' | |
पाठ-5 | भीष्म साहनी | |
पाठ-6 | असगर वजाहत | |
पाठ-7 | निर्मल वर्मा | |
पाठ-8 | रामविलास शर्मा | |
पाठ-9 | ममता कालिया | |
पाठ-10 | हजारी प्रसाद द्विवेदी | |
अंतराल भाग - 2 | ||
पाठ-1 | प्रेमचंद | |
पाठ-2 | संजीव | |
पाठ-3 | विश्वनाथ तिरपाठी | |
पाठ- | प्रभाष जोशी | |
अभिव्यक्ति और माध्यम | ||
1 | ||
2 | ||
3 | ||
4 | ||
5 | ||
6 | ||
7 | ||
8 | ||
Class 12 Hindi Elective (अंतरा - भाग 2)
पद्य खण्ड
आधुनिक
1.जयशंकर प्रसाद (क) देवसेना का गीत (ख) कार्नेलिया का गीत
2.सूर्यकांत त्रिपाठी निराला (क) गीत गाने दो मुझे (ख) सरोज स्मृति
3.सच्चिदानंद हीरानंद वात्सयायन अज्ञेय (क) यह दीप अकेला (ख) मैंने देखा, एक बूँद
4.केदारनाथ सिंह (क) बनारस (ख) दिशा
5.विष्णु खरे (क) एक कम (ख) सत्य
6.रघुबीर सहाय (क) वसंत आया (ख) तोड़ो
प्राचीन
7.तुलसीदास (क) भरत-राम का प्रेम (ख) पद
8.मलिक मुहम्मद जायसी (बारहमासा)
11.घनानंद (घनानंद के कवित्त / सवैया)
गद्य-खण्ड
12.रामचंद्र शुक्ल (प्रेमघन की छाया-स्मृति)
13.पंडित चंद्रधर शर्मा गुलेरी (सुमिरिनी के मनके)
14.ब्रजमोहन व्यास (कच्चा चिट्ठा)
16.भीष्म साहनी (गांधी, नेहरू और यास्सेर अराफात)
17.असगर वजाहत (शेर, पहचान, चार हाथ, साझा)
18.निर्मल वर्मा (जहाँ कोई वापसी नहीं)
19.रामविलास शर्मा (यथास्मै रोचते विश्वम्)
21.हज़ारी प्रसाद द्विवेदी (कुटज)
12 Hindi Antral (अंतरा)
1.प्रेमचंद = सूरदास की झोंपड़ी
3.विश्वनाथ त्रिपाठी = बिस्कोहर की माटी