12th Hindi Elective सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला" JCERT/JAC Reference Book

12th Hindi Elective सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला" JCERT/JAC Reference Book
12th Hindi Elective सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला" JCERT/JAC Reference Book

2. सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"

जीवन परिचय (निराला)

उपनाम - निराला

जन्म - 21 फरवरी 1898

मृत्यु- 15 अक्टूबर 1961

जन्म स्थान - महिषादल, जिला मिदनापुर, (पश्चिम बंगाल)

मूल निवास - गढ़कूला, जिला- उन्नाव (उत्तर प्रदेश)

भाषा ज्ञान - हिंदी, संस्कृत, बंग्ला, अंग्रेजी

लेखन की भाषा - हिंदी

पिता - पंडित रामसहाय त्रिपाठी

पत्नी - मनोरमा देवी

पुत्र - पंडित रामकृष्ण त्रिपाठी

पुत्री - सरोज

प्रमुख रचनाएँ

कवि सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' ने गद्य व पद्य लगभग सभी विधाओं में अपनी लेखनी चलाई है।

उनके छायावादी काव्य संग्रह में 'अनामिका' (1922 ई.), 'परिमल' (1930 ई.), 'गीतिका' (1936 ई.), 'तुलसीदास' (1938 ई.) आदि रचनाएँ सम्मिलित है।

अन्य काव्य संग्रहों में 'कुकुरमुत्ता' (1942 ई.), 'अणिमा' (1943 ई.), 'बेला' (1946 ई.) , 'नये पत्ते' (1946 ई.), 'अर्चना' (1950 ई.), 'आराधना' (1950 ई.), 'गीतगुंज' (1954 ई), 'अपरा' (1969 ई.), 'सांध्य काकली' (1969 ई.) आदि प्रमुख है।

इसके अलावा उन्होंने कहानी, उपन्यास, निबंध, जीवनी, रेखाचित्र व आलोचनात्मक परक रचनाएँ भी लिखी है जिनका विवरण इस प्रकार है-

उपन्यास - बिल्लेसुर बकरिहा, इरावती और रतिनाथ की चाची।

उनका संपूर्ण साहित्य 'निराला रचनावली' के आठ खंडों में प्रकाशित हो चुका है।

पाठ परिचय- गीत गाने दो मुझे

मानवता के पुजारी 'दीन-बंधु' सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' जी ने अपनी 'गीत गाने दो मुझे'कविता में आज के संवेदनहीन वातावरण को चित्रित किया है। वर्तमान में मनुष्य चोट खाते, संघर्ष करते हुए इतना निर्मम हो गया है कि उसके लिए जीवन एक बोझ बन गया है। अब मनुष्य के लिए जीवन आसान नहीं है। मनुष्य संघर्ष करते हुए अपना मूल्यवान जीवन लुटाता जा रहा है। चारों ओर हाहाकार मची है। दुनियाभर का वातावरण जहरीला हो गया है। अब नारकीय जीवन को जीते-जीते मानवता चीत्कार करने लगी है। मनुष्य समाज की पीड़ा-वेदना को देखकर लगता है मानो मनुष्य में जीने के प्रति इच्छा खत्म हो गई है। कवि अमानवीय जीवन जीने वाले लोगों में पुनः जीवन के प्रति आशा जगाना चाहता है। वह प्रत्येक मनुष्य की पीड़ा को हर लेना चाहता है। एक गीत गाकर हतोत्साहित लोगों को जीवन के प्रति आशान्वित और मानव समाज को पीड़ा से मुक्ति दिलाना चाहता है। वह मनुष्य में मनुष्य के प्रति करुणा भाव जगाना चाहता है।

साहित्यिक विशेषताएं

सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' हिन्दी साहित्य के इतिहास में एक युगान्तकारी कलाकार के रूप में प्रस्तुत हुए। वे हिन्दी के एक महान् कवि थे। उन्होंने भाव, भाषा, शैली, छन्द आदि सभी को नवीन दिशा प्रदान करने में योगदान किया। वे नवीनता और स्वतन्त्रता के गायक थे।

निराला के काव्य में भावपक्षीय सबलता एवं प्रौढ़ता के दर्शन होते हैं। निराला एक बहुपक्षीय प्रतिभा सम्पन्न साहित्यकार थे। विषयों की विविधता तथा नवीन प्रयोगों की प्रचुरता इनके काव्य की मुख्य विशेषता थी।

निराला पुरानी एवं जीर्ण परम्पराओं के विरोधी थे, उनके काव्य में क्रान्ति की आग एवं पौरुष के दर्शन होते हैं।

हिन्दी साहित्य में निराला जी का एक विशिष्ट स्थान है। यदि उनके काव्य का तटस्थ विश्लेषण किया जाये तो उसमें छायावाद, प्रगतिवाद, प्रयोगवाद तथा नयी कविता की विशेषताओं को देखा जा सकता है।

निराला के काव्य में तत्त्व ज्ञान, रहस्यवाद तथा सामाजिक चेतना का सुन्दर समावेश हुआ है। उनके काव्य के भाव-पक्ष की मुख्य बातें निम्नलिखित हैं-

रहस्यवाद-निराला एक चिन्तनशील कवि थे। उनके काव्य में स्वस्थ चिन्तन के परिणामस्वरूप रहस्यवाद प्रस्तुत हुआ है। वे अद्वैतवादी सिद्धान्त के समर्थक थे। वे एक सर्वत्र आभासित होने वाली चेतन सत्ता में विश्वास रखते थे।

मानवतावाद-निराला मानवतावाद के कट्टर पोषक थे। वे मानव को विश्व में सर्वश्रेष्ठ मानते थे।

नारी-चित्रण-निराला ने अपने काव्य में अपने ही ढंग से नारी-चित्रण प्रस्तुत किया है। उनके काव्य में नारी का नित्य नया रूप प्रस्तुत हुआ है।

कविता गीत गाने दो मुझे

1. कविता

गीत गाने दो मुझे तो,

वेदना को रोकने को।

चोट खाकर राह चलते

होश के भी होश छूटे,

हाथ जो पाथेय थे,

ठग-ठाकुरों ने रात लूटे,

कंठ रूकता जा रहा है,

आ रहा है काल देखो।

भर गया है ज़हर से

संसार जैसे हार खाकर,

देखते हैं लोग लोगों को,

सही परिचय न पाकर,

बुझ गई है लौ पृथा की,

जल उठो फिर सींचने को।

2. शब्दार्थ

वेदना - दुख, पीड़ा। पाथेय- संभल, सहारा। ठग ठाकुर - ठग रूपी मालिक। कंठ गला। काल मृत्यु, जहर। लौ ज्योति , अग्निशिखा, पृथा- पृथ्वी ।

3. प्रसंग- प्रस्तुत कविता हिंदी के पाठ्यपुस्तक अंतरा भाग 2 में संकलित है, जिसके रचनाकार सूर्यकांत त्रिपाठी निराला हैं। उन्होंने कविता में आज के संवेदनहीन वातावरण को चित्रित किया है। संपूर्ण संसार संघर्षों में उलझ गया है वह चाह कर भी सुखगान नहीं कर पा रहा है अतः कवि मनुष्य में जीवन के प्रति नव उल्लास जगाने के लिए एक गीत गाकर हतोत्साहित लोगों को जीवन के प्रति आशान्वित करना चाहते हैं। मानव समाज को पीड़ा से मुक्ति दिलाना चाहते हैं और मनुष्य में मनुष्य के प्रति करुणा भाव जगाना चाहते हैं।

4. व्याख्या - कवि कहते हैं कि जीवन में निरंतर बढ़ती हुई पीड़ा अथवा दुःख को कम करने के लिए, उसे भुलाने के लिए उसे गीत गाने दो। गीत हृदय की अनुभूतियां है। ये वेदना की तीव्रता को भुला सकते हैं, दुःखों को कम कर सकते है। जीवन-मार्ग पर चलते हुए हर कदम पर चोट खाते-खाते और संघर्ष करते-करते होश वालों के भी होश छूट गए है। अर्थात् अब जीना आसान नहीं रह गया है। जीने के लिए जो भी था, मूल्यवान था, उसे छल-कपट से उन मालिकों ने रात के अंध्कार में; संकट के समय में लूट लिया, जिन पर भरोसा था। अब पीड़ा सहते- सहते कंठ रूकने / रुंधने लगा है, ऐसा लगता है कि सामने काल आ रहा है। अब जीना कठिन हो गया है। लोग कुछ कह नहीं पा रहे हैं।

इस निराशा भरे वातावरण में कवि गीत गाना चाहता है ताकि व्यथा को रोका जा सके। कवि कहता है कि संसार हार मानकर स्वार्थ और अविश्वास के जहर से भर गया है। संसार से सहानुभूति, करूणा, उदारता, सहयोग, भाईचारा, आदि भावनाएं लुप्त हो चुकी हैं। अब लोग आपस में एक दूसरे को अपरिचित निगाहों से देख रहे हैं। मानवता हाहाकार कर रही हैं। लोगों में जीने की इच्छा मर चुकी है। संसार में एकता, समता, सहानुभूति तथा प्रेम की लौ बुझ गई है। कवि मानवता की बुझती लौ को फिर से जलाने के लिए स्वयं जलना चाहता है। वह ऐसे गीत गाना चाहता है जो संसार में फैलती निराशा में आशा का संचार कर सके।

5. विशेष - सांसारिक छल प्रपंच से दुखी कवि हृदय की पीड़ा का मार्मिक चित्रण हुआ है। भाषा तत्सम प्रधान खड़ी बोली है। ठग- ठाकुरों में रुपक अलंकार और गीत गाने में अनुप्रास अलंकार हैं। मुक्त छंद है। कंठ रुकना, काल आना होश छुटना, मुहावरों का प्रयोग सटीक हुआ कविता में लयात्मकता तथा संगीतात्मकता मौजूद है। शैली छायावादी है।

प्रश्न अभ्यास

प्रश्न - 1. कंठ रुक रहा है, काल आ रहा है- यह भावना कवि के मन में क्यों आई?

उत्तर-कवि का जीवन बहुत संघर्षपूर्ण रहा है। उसने बहुत ही कठिन हालतों का सामना किया है। जीवन में वेदना और दुख ने उनका कभी पीछा नहीं छोड़ा। शोषक वर्गों के अत्याचार और शोषण का उन्होंने जब भी विरोध किया, उनकी आवाज़ को दबा दिया गया। उसने फिर भी हार नहीं मानी और इन सबसे लड़ते रहे, परन्तु इन सब हालतों से लड़ते हुए उसके अंदर जीने की इच्छा समाप्त हो गई है और वह मरणासन्न स्थिति में पहुँच गया है। और उसे प्रतीत हो रहा है कि उसका कंठ अब कुछ कहने में समर्थ नहीं है तथा उसकी मृत्यु समीप ही है।

प्रश्न - 2. 'ठग-ठाकुरों' से कवि का संकेत किसकी ओर है?

उत्तर-कवि ठग ठाकुरों शब्द कहकर समाज में व्याप्त धोखेबाज़ लोगों की ओर संकेत कर रहा है। उसके अनुसार इस प्रकार के लोग समाज में फैले हुए हैं। इनका निशाना गरीब किसान और मज़दूर वर्ग हैं। ये उनका लगातार शोषण करते हैं और उनका जीवन नरकीय बनाए हुए हैं। ये सामंती वर्ग के प्रतिनिधि हैं, जिनका उद्देश्य किसानों ओर मज़दूरों का खून चूसना है।

प्रश्न 3. 'जल उठो फिर सींचने को' इस पंक्ति का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।

उत्तर-यह पंक्ति निराशा और दुख से उभरने की प्रेरणा देती है। कवि के अनुसार मनुष्य को निराशा और दुख से उभरने के लिए एक बार फिर प्रयत्नशील होना चाहिए। यह कविता जहाँ उत्साह का संचार करती है, वहीं यह आशा भी बाँधती है कि संघर्ष से लड़कर निकला जा सकता है। अतः कवि लोगों को जीवन में निराशा और दुख से लड़ने के लिए प्रेरित कर उन्हें जीवन में आगे बढ़ने का मार्ग बताता है।

प्रश्न - 4. प्रस्तुत कविता दुख और निराशा से लड़ने की शक्ति देती है? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर प्रस्तुत कविता पढ़ने पर प्रेरणा का भाव संचारित होता है। कवि के अनुसार आज का समय दुख और निराशा से युक्त है। जीवन कठिन और संघर्षपूर्ण हो गया है। इसके लिए आवश्यक है कि मनुष्य संघर्ष के लिए तत्पर हो जाए। संघर्ष ही ऐसा मार्ग है जिसका हाथ पकड़कर कठिन समय से बाहर निकला जा सकता है।

पाठ परिचय - 'सरोज स्मृति'

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी ने यह कविता अपनी स्वर्गीय पुत्री 'सरोज' की याद में श्रद्धांजलि स्वरूप लिखा है। यह कविता अपनी संतान के प्रति एक मर्मस्पर्शी विलाप है जिसमें उन्होंने समाज की विद्रूपताओं को दिखाया है। निराला जी ने इसे सन् 1935 में लिखा।

'सरोज स्मृति' हिंदी में अपने ढंग का एकमात्र शोक काव्य है। कवि निराला द्वारा अपनी पुत्री की मृत्यु पर लिखी इस कविता में करुण भाव की प्रधानता है। विराग भाव के बीच नीति, शृंगार और कभी-कभी व्यंग्य और हास्यमूलक प्रसंगों को पिरोना इसकी अनोखी विशिष्टता है। यह अपने ढंग की अकेली कविता है जिसमें निराला का अपना जीवन संघर्ष भी सामने आया है।

'सरोज स्मृति' कविता में कवि ने अपनी प्रिय पुत्री सरोज के बाल्यकाल से लेकर मृत्यु तक की घटनाओं को बड़े प्रभावशाली ढंग से अंकित किया है। इसमें कवि ने सरोज की बाल्यावस्था एवं तरुणाई के बड़े ही मार्मिक चित्र अंकित किए हैं। इस कविता में एक भाग्यहीन पिता का संघर्ष, समाज से उसके संबंध, पुत्री के प्रति बहुत कुछ न कर पाने का अकर्मण्यता बोध भी प्रकट हुआ है। यूं कहा जाए तो इस कविता के माध्यम से निराला का जीवन- संघर्ष भी प्रकट हुआ है।

यह कविता हिंदी काव्य साहित्य का पहला शोक गीत है। यह कविता कवि की दिवंगता पुत्री पर केंद्रित है। पुत्री की असामयिक मृत्यु ने कवि को तोड़ दिया है, उसे पुत्री के विवाह का समय याद आ रहा है। पुत्री का विवाह हर तरीके से नए ढंग का था। कवि ने इस विवाह में माता-पिता दोनों का कर्तव्य निभाया था, विवाह के समय कवि को अपनी पुत्री के रूप में अपनी स्वर्गीय पत्नी की याद आती है। विवाह में ना तो मांगलिक गीत गाए गए और ना ही किसी रिश्तेदार को बुलाया गया। विवाह के बाद मां के द्वारा दी जाने वाली शिक्षा भी पुत्री को कवि ने स्वयं दी और पुष्प सैया भी सजाई।

रोते हुए कवि को कभी शकुंतला याद आती है तो कभी कुछ समय बाद वह ननिहाल चली गई जहां उसे मामा सरोज का बचपन। विवाह के मामी का आगाध प्यार मिला था। ननिहाल में ही वह कली सरोज बड़ी हुई जहां की लता सरोज की मां थी। वहीं उसने असमय मृत्यु का वरण किया इस कविता में वहीं पिता का संघर्ष तथा पुत्री के लिए कुछ ना कर पाने का दुख भी व्यक्त हुआ है। कवि इस कविता में अपने सभी किए कर्मों से अपनी पुत्री का तर्पण करते हैं।

कविता में उन्होंने अपने शोक के साथ-साथ समाज के प्रति आक्रोश और व्यंग्य प्रकट किया है।

काव्यांश-1

देखा विवाह आमूल नवल,

तुझ पर शुभ पङा कलश का जल।

देखती मुझे तू हँसी मंद,

होठों में बिजली फँसी स्पंद

उर में भर झूली छबि सुंदर

प्रिय की अशब्द श्रृंगार-मुखर

तू खुली एक-उच्छ्वास-संग,

विश्वास-स्तब्ध बँध अंग-अंग

नत नयनों से आलोक उतर

काँपा अधरों पर थर-थर-थर।

देखा मैंने, वह मूर्ति-धीति

मेरे वसंत की प्रथम गीति

शब्दार्थ- आमूल - जड़ तक, पूरी तरह। नवल - नया, नवीन। मंद- धीरे। स्पंद धड़कन। उर- हृदय। छवि - छाया, मूर्ति। मुखर व्यक्त होना, प्रकट होना। उच्छ्वास आह भरना। स्तब्ध-गतिहीन, स्थिर। नत झुके। आलोक - प्रकाश। अधरों - होठों। धीति

प्रसंग- प्रस्तुत पंक्तियां मानवीयता के प्रति दृढ़-प्रतिज्ञ कवि श्री सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' जी की अमरकृति 'सरोज-स्मृति' से उद्धृत है जो हिंदी के पाठ्यपुस्तक अंतरा भाग 2 में संकलित है। इस काव्यांश में उन्होंने अपना वात्सल्य उंडेलते हुए अपनी संतान के प्रति प्रेम-अभिव्यक्त किया है।

व्याख्या- निराला जी अपनी पुत्री को याद करते हुए कहते हैं कि मैंने तेरे विवाह को पूरी तरह से एक नए रूप में देखा। तू विवाह के समय कलश के जल सी पवित्र थी। तू मुझे देखकर अत्यंत पुलकित थी। उस समय तेरे होठों पर बिजली सी मुस्कान थिरक रही थी। तुझे देखकर तेरी सुंदर छवि मेरे हृदय में अंकित हो जाती थी। उस समय तेरा सौंदर्य शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता था।

विवाह योग्य हो रही थी। तू धीरे-धीरे युवा होती जा रही थी। तुझ पर सौंदर्य झुकी आँखों से उतर कर प्रकाशित हो रहा था अर्थात् तू अब विवाह योग्य हो रही थी। तुझे देख कर मुझे कर्तव्य बोध हुआ।

विशेष-कविता के माध्यम से कवि का जीवन- संघर्ष सामने आया है। भाषा संस्कृतनिष्ठ खड़ी बोली है। छंद मुक्त रचना है। रूपक एवंअनुप्रास अलंकार का प्रयोग हुआ है। करुण रस है। पूरी कविता लयबद्ध है।

काव्यांश - 2

शृंगार, रहा जो निराकार,

रह कविता में उच्छ्वसित-धार

गाया स्वर्गीया-प्रिया-संग-

भरता प्राणों में राग-रंग,

रति-रूप प्राप्त कर रहा वही,

आकाश बदल कर बना मही।

हो गया ब्याह, आत्मीय स्वजन,

कोई थे नहीं, न आमंत्रण

था भेजा गया, विवाह-राग

भर रहा न घर निशि-दिवस जाग,

प्रिय मौन एक संगीत भरा

नव जीवन के स्वर पर उतरा।

शब्दार्थ निराकार - जिसका कोई आकार न हो, आकारहीन। उच्छ्वसित गहरी आह वाली साँस। स्वर्गीया दिवंगत। रति- रूप - कामदेव की पत्नी जैसी सुन्दर। मही - धरती। आत्मीय स्वजन-रिश्तेदार, सगे- संबंधी। निशि दिवस रात-दिन। नवजीवन- नया जीवन।

प्रसंग प्रस्तुत पंक्तियां मानवीयता के प्रति दृढ़-प्रतिज्ञ कवि श्री सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' जी की अमरकृति 'सरोज-स्मृति' से उद्धृत है जो हिंदी के पाठ्यपुस्तक अंतरा भाग 2 में संकलित है। इस काव्यांश में उन्होंने अपनी स्नेहिल पुत्री को याद किया है।

व्याख्या- इन पंक्तियों में कवि कहते हैं कि तुम्हारा सौंदर्य अवर्णनीय था। तू अपनी दिवंगत माता की प्रतिमूर्ति थी। तुझे देखकर मेरे मन में तेरे प्रति स्नेह-गीत उमड़ता था। तू कामदेव की पत्नी रति के समान सुंदर थी। जिस तरह धरती निरंतर सुंदर रूप बदलती है, वैसे ही सरोज विवाह के समय अत्यधिक सुंदर लग रही थी। कवि को लगा कि जैसे उसकी पत्नी का सौंदर्य आकाश से उतरकर पृथ्वी पर सरोज के रूप में आ गया हो।

सरोज का रूप कवि को उसकी पत्नी की याद दिला रहा था। सरोज के विवाह में कोई रिश्तेदार नहीं था, ना किसी को निमंत्रण भेजा गया था। ना मांगलिक गीत गाए गए। तेरे विवाह की चहल-पहल में कोई दिन रात नहीं जागा। केवल घर में प्यार भरा शांत वातावरण था, जो कि नव युगल के नव जीवन के लिए जरूरी था। तू भी नए जीवन की शुरुआत के लिए पति के घर चली गई।

विशेष-

कविता की भाषा संस्कृतनिष्ट खड़ी बोली है। 'प्रिय मौन एक संगीतभरा' विरोधाभास, 'प्रिय मौन उतरा 'मानवीकरण एवं 'राग-रंग' रति रूप' में अनुप्रास अलंकार है। स्मृति बिंब है। तुकांत एवं लयबद्ध रचना है।

काव्यांश -3

माँ की विभा

कुल शिक्षा मैंने दी,

पुष्प-सेज तेरी स्वयं रची,

सोचा मन में, "वह शकुंतला,

पर पाठ अन्य यह, अन्य कला।"

कुछ दिन रह गृह तू फिर समोद,

बैठी नानी की स्नेह-गोद।

मामा-मामी का रहा प्यार,

भर जल्द धरा को ज्यों अपार,

वे ही सुख-दुख में रहे न्यस्त,

तेरे हित सदा समस्त, व्यस्त,

वह लता वहीं की, जहाँ कली

तू खिली, स्नेह से हिली, पली,

अंत भी उसी गोद में शरण

ली, मूँदे दृग वर महामरण!

शब्दार्थ- पुष्प-सेज फूलों का बिस्तर। शकुंतला कालिदास द्वारा रचित अभिज्ञान शाकुंतलम् की नायिका। गृह - घर, समोद- प्रसन्नता सहित खुशी के साथ। जलद - बादल धरा। अपार जिसका कोई पार ना हो, असीम। महामरण - मृत्यु।

प्रसंग प्रस्तुत पंक्तियां मानवीयता के प्रति दृढ़-प्रतिज्ञ कवि श्री सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' जी की अमरकृति 'सरोज स्मृति' से उद्धृत है जो हिंदी के पाठ्यपुस्तक 'अंतरा भाग- 2' में संकलित है। इस काव्यांश में उन्होंने अपनी पुत्री के पालन-पोषण से लेकर उसकी मृत्यु तक का वर्णन किया है।

व्याख्या-यहां कवि अपने स्वर्गीय पुत्री को संबोधित करते हुए कहते हैं कि मां के अभाव में मां के द्वारा पुत्री के विवाह पर पुत्री को दी जाने वाली शिक्षा मैंने ही तुम्हें दी। तुम्हारी पुष्प सैया मैंने ही सजाई इस समय कवि को शकुंतला की याद आई जिस प्रकार महर्षि कण्व ने शकुंतला को विदा करते समय सारी कुल शिक्षा दी थी, उसी प्रकार कवि ने मां विहीन सरोज को सारी शिक्षा देकर मां का दायित्व भी निभाया।

लेकिन उस घटना और यहां की स्थिति में अंतर है क्योंकि शकुंतला को उसकी मां स्वयं छोड़ कर गई थी। लेकिन सरोज की मां को मृत्यु ले गई थी, विवाह के बाद सरोज कुछ दिन अपने पति के घर सुखपूर्वक रही किंतु भाग्य वश फिर वह अपने ननिहाल चली गई। जहां नानी और मामा-मामी का उसे बेहद प्यार मिला। मामा-मामी सरोज पर प्यार की ऐसी वर्षा करते थे जैसे बादल पृथ्वी पर जल की वर्षा करते हैं। ननिहाल में सभी उसके सुख-दुख में लगे रहे, वह लोग हमेशा सरोज के कल्याण में ही व्यस्त रहते थे।

सरोज जिस लता की अर्थात् अपनी मां मनोहरा की कली थी उस लता का पालन पोषण भी उसी घर में हुआ था। वह ननिहाल में पल बढ कर किशोरी बनी और अब वहां युवती बनकर पहुंची है। अंत में सरोज ने ननिहाल में ही असमय मृत्यु का वरण किया ननिहाल वालों की गोद में ही अपनी आंखें मूंद ली।

विशेष-

कवि अपनी स्वर्गीय पुत्री को याद कर विलाप करते हुए उससे संबंधित घटनाओं को याद कर रहे हैं।

शकुंतला को याद कर रहे हैं पुत्री से तुलना कर कवि की वेदना बढ़ी है।

भाषा छंदमुक्त संस्कृतनिष्ठ खड़ी बोली है। पूरी कविता में करूण रस है।

काव्यांश - 4

मुझ भाग्यहीन की तू संबल

युग वर्ष बाद जब हुई विकल,

दुख ही जीवन की कथा रही

क्या कहूँ आज, जो नहीं कही!

हो इसी कर्म पर वज्रपात

यदि धर्म, रहे नत सदा माथ

इस पथ पर, मेरे कार्य सकल

हों भ्रष्ट शीत के-से शतदल!

कन्ये, गत कर्मों का अर्पण

कर, करता मैं तेरा तर्पण!

शब्दार्थ-संभल - सहारा। विकल बेचैन । वज्रपात कठोर आघात, भारी विपत्ति। सकल सभी। शतदल - कमल। अर्पण - अर्पित करना। तर्पण - आत्मा की शांति के लिए दी गई जल।

प्रसंग प्रस्तुत पंक्तियां मानवीयता के प्रति दृढ़-प्रतिज्ञ कवि श्री सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' जी की अमरकृति 'सरोज स्मृति' से उद्धृत है जो हिंदी के पाठ्यपुस्तक अंतरा भाग-2 में संकलित है। इस काव्यांश में उन्होंने अपनी शोकाकुल अन्तर्वेदना को व्यक्त किया है।

व्याख्या- कवि इन पंक्तियों में सरोज को संबोधित करते हुए लिखते हैं कि तू ही मुझ भाग्यहीन की एकमात्र सहारा थी। युगों - युगों तक मेरे हृदय की पीड़ा मुझे बेचैन करती रही, परंतु आज मैं अपनी इस अंतर वेदना को सह नहीं पाया। मैंने अपने मन की पीड़ा को कभी किसी के सामने व्यक्त नहीं की। मेरा संपूर्ण जीवन ही एक दुख भरी कथा रही है। आज तुझे याद कर मुझे गहरा आघात पहुंचा है।

कवि आगे कहते हैं इस जीवन में मैंने धर्मानुकुल जितने भी कार्य संपादित किए हैं वे सभी आज शरद ऋतु में कमल की तरह नष्ट हो जाएं। हे पुत्री। मैं अपने सभी कर्म तुझे अर्पित करता हूं। मेरे पास तुम्हारी आत्मा की तृप्ति के लिए केवल यही है। मैं तुझे श्रद्धांजलि स्वरूप यह काव्यमयी कृति तुझे समर्पित करता हूं।

विशेष -

भाषा सरल, सहज एवं प्रवाहमयी है शांत रस खडी बोली है। उपमा एवं अनुप्रास अलंकार है

प्रश्न अभ्यास (सरोज स्मृति)

प्रश्न 1. सरोज के नव-वधू रूप का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।

उत्तर - नव-वधू के रूप में सरोज अत्यधिक सुन्दर दिखाई दे रही थी। सर्वप्रथम उस पर कलश का पवित्र जल छिड़का गया। उसके होठों पर व्याप्त मन्द हँसी बिजली के समान प्रतीत होती थी। उसके रूप-रंग में उसकी माँ की छवि झलकती थी। वह मन्द मुसकान के साथ पिता की ओर देख रही थी। उसके हृदय में पति की सुन्दर छवि विद्यमान थी और वह अपने दाम्पत्य जीवन की सुखद कल्पना कर रही थी। उसके अंग-अंग में उच्छ्वास की तरह प्रसन्नता व्याप्त थी। उसकी आँखें लज्जा और संकोच के कारण झुकी थीं जिनमें एक चमक थी जो उतरकर उसके अधरों पर छा गई थी। इस कारण उसके अधरों में कम्पन्न था। इस प्रकार वह रति का साकार रूप दिखाई देती थी।

प्रश्न 2. कवि को अपनी स्वर्गीय पत्नी की याद क्यों आई?

उत्तर कवि सूर्यकान्त त्रिपाठी "निराला" को अपनी पत्नी की याद दो बार आई। पहली बार तब याद आई जब उन्होंने अपनी पुत्री को दुल्हन के रूप में देखा। पुत्री में उसकी माँ (कवि की स्वर्गीय पत्नी) की झलक दिखाई दे रही थी। उसी समय उन कविताओं की याद आई जिन्हें उन्होंने अपनी पत्नी के साथ गाया था। वह संगीत सुनाई दे रहा था जिसे उन्होंने अपने दाम्पत्य जीवन में गाया था। दूसरी बार पुत्री की विदाई के समय स्वर्गीया पत्नी की याद आई। विवाहोपरान्त माँ ही पुत्री को कुल-शिक्षा देती है। यह कार्य पिता (निराला जी) को ही करना पड़ा। उनको, पिता होकर माँ के उत्तरदायित्व का निर्वाह करना पड़ा।

प्रश्न 3. 'आकाश बदलकर बना मही' में आकाश और मही शब्द किन की ओर संकेत करते हैं।

उत्तर - आकाश कवि की स्वर्गीय पत्नी की ओर तथा मही नववधू के वेश में सजी कवि की पुत्री की ओर संकेत करते हैं। कवि की पुत्री विवाह पर अत्यधिक सुंदर लग रही थी, कवि को लगता था कि मानो उसकी पत्नी का अलौकिक सौंदर्य आकाश से उतरकर पृथ्वी पर सरोज के रूप में उतर आया हो। पुत्री सरोज रति जैसा सौंदर्य कवि को उसकी पत्नी की याद दिला रहा है।

प्रश्न 4. सरोज का विवाह अन्य विवाहों से किस प्रकार भिन्न था ?

उत्तर - सरोज का विवाह अन्य विवाहों से अनेक तरह से भिन्न था इस विवाह में अन्य विवाहों की तरह सगे संबंधी नहीं थे, क्योंकि उन्हें बुलाया नहीं गया था। उसके विवाह में उसके पिता ने कोई दान-दहेज नहीं दिया था। इस विवाह में कोई आडंबर या दिखावा नहीं था। घर में विवाह के गीत भी नहीं गाए गए, ना ही दिन-रात सारा घर जागा। जैसे विवाह के अवसर पर सामान्यता देखा जाता है। विदाई के समय कन्या को दी जाने वाली शिक्षा भी कवि ने स्वयं अपनी बेटी को दी। शादी से पहले जो भी संस्कार किए जाते थे, वह भी नहीं किए गए क्योंकि कवि उन्हें नहीं मानता था

प्रश्न 5. शकुंतला के प्रसंग के माध्यम से कवि क्या संकेत करना चाहता है?

उत्तर- शकुंतला कालिदास की एक पात्र है। जिसने कवि कालिदास की कृति अभिज्ञान शाकुंतलम को लोगों के हृदयों में सदा के लिए अमर कर दिया। शकुंतला ऋषि विश्वामित्र तथा अप्सरा मेनका की पुत्री है। मेनका शकुंतला को जन्म देकर तुरंत स्वर्ग को चली गई। जंगल में अकेली नवजात शिशु को देखकर कण्व ऋषि को दया आ गई और वे इसे अपने साथ ले आए। उन्होंने शकुंतला का लालन-पालन किया तथा पिता तथा माता की समस्त भूमिका निभाई। पुत्री की विदाई में कण्व ने भाव-विभोर होकर विलाप किया। शकुंतला की भांति ही सरोज की माता उसके बाल्यकाल में ही चल बसी। उसका लालन-पालन उसके ननिहाल में किया गया। वह बच्ची माता-पिता के प्रेम से वंचित रही। कण्व ऋषि के समान सूर्यकांत निराला जी ने सरोज के सयाने होने पर उसका विवाह कर दिया। सरोज की विदाई में निराला जी ने बहुत विलाप किया तथा मातृत्व के समस्त कर्तव्य निभाए। अतः निराला जी शकुंतला के माध्यम से अपनी पुत्री सरोज की ओर संकेत करते हैं।

प्रश्न 6. 'वह लता वही कि, जहां कली तू खिली 'पंक्ति के द्वारा किस प्रसंग को उद्घाटित किया गया है ?

उत्तर इस पंक्ति के द्वारा कवि का कहना है कि सरोज की मां का लालन-पालन भी वही हुआ था, जहां सरोज का हुआ। अर्थात् सरोज ननिहाल में ही पली बढ़ी और युवा हुई।

सरोज स्मृति के महत्त्वपूर्ण वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर

1. 'सरोज-स्मृति' नामक संस्मरण गीत के रचनाकार है -

(अ) जयशंकर प्रसाद

(ब) सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला'

(स) सुमित्रानंदन पंत

(द) रामनरेश त्रिपाठी

2. कवि किसका विवाह देखता है

(अ) स्वयं का

(ब) शंकुतला का

(स) सरोज का

(द) पुत्र का

3. कवि के प्रथम बसंत की गीति कौन है

(अ) सरोज

(ब) मनोहरा

(स) स्मृति

(द) अतीत गौरव

4. सोचा मन में वह 'शंकुतला'। कवि अपनी बेटी सरोज को शंकुतला नाम ही क्यों देता है, क्योंकि

(अ) वह अपने मामा के यहाँ पली बढ़ी

(ब) ननिहाल में पोषण हुआ

(स) उसका अंत भी वहीं हुआ

(द) उक्त सभी

5. 'मूँदे दृग वर महामरण' रेखांकित पद का अर्थ है

(अ) उत्कृष्ट मौत

(ब) निकृष्ट मृत्यु

(स) अन्तिम सत्य

(द) जीवन संध्या

6. "दुख ही जीवन की कथा रही, क्या कहूँ आज, जो नहीं कही।" पंक्तियों में निराला के किस व्यक्तित्व के दर्शन होते हैं -

(अ) भाग्यहीन

(ब) अर्थहीन

(स) जिजीविषा हीन

(द) जीवन संघर्ष

7. निराला अपने हाथों से किसका तर्पण करना चाहते हैं -

(अ) अपनी पत्नी का

(ब) अपने माता-पिता का

(स) सरोज का

(द) अपने नाना का

8. 'सरोज स्मृति' कविता है -

(अ) काव्य गीत

(ब) शोक गीत

(स) करुण गीत

(द) विरह गीत

9. कवि सरोज की स्मृति को अपने हृदय में किन रूपों में संजोता है।

(अ) उसकी मंद हँसी

(ब) हृदय में झूलती उसकी छवि

(स) एक खुला उच्छ्वास

(द) उक्त सभी

10. "देखा मैंने वह मूर्ति-धीति, मेरे वसंत की प्रथम गीति। "

कवि ने मूर्ति धीति, शब्द किसके लिए प्रयुक्त किया है -

(अ) कवि के जैसी चेहरे वाली के लिए

(ब) प्रतिमूर्ति के लिए

(स) हमारी कल्पना के अनुरूप

(द) सरोज के लिए

11. सरोज का शैशव कहाँ बीता

(अ) अपने दादा-दादी के पास

(ब) अपने ननिहाल में

(स) अपने पिता के पास

(द) अपनी बुआ के पास

12. कवि निराला स्वयं को भाग्यहीन क्यों कहते हैं -

(अ) अपने पास कुछ नहीं होने से

(ब) सरोज को खो देने से

स) जिजीविषा के लिए भटकने से

(द) संघर्षमय जीवन होने से

13. "वह लता वहाँ की जहाँ कली, तू खिली, स्नेह से हिली पली।" कवि ने ऐसा क्यों कहा

(अ) सरोज के अपने माँ के पास रहने के कारण

(ब) सरोज के अपने ननिहाल में रहने के कारण

(स) सरोज का अपने दादा के पास रहने के कारण

(द) सरोज का अपने गुरु के पास रहने के कारण

14. 'सरोज स्मृति' कविता कब लिखी गई?

(अ) 1932

(ब) 1935

(स) 1936

(द) 1920

15. कवि किस वाद के कवि हैं ?

(अ) प्रगतिवाद

(ब) प्रयोगवाद

(स) छायावाद

(द) उपर्युक्त सभी

JCERT/JAC REFERENCE BOOK

Hindi Elective (विषय सूची)

भाग-1

क्रं.सं.

विवरण

1.

देवसेना का गीत

2.

सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"

3.

सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय

4.

बनारस

5.

विष्णु खरे

6.

वसंत आया

7.

भरत राम का प्रेम पद

8.

बारहमासा

9.

विद्यापति (पद)

10.

रामचंद्रचंद्रिका

11.

घनानंद

12.

प्रेमघन की छाया-स्मृति

13.

सुमिरनी के मनके

14.

कच्चा चिट्ठा

15.

संवदिया

16.

गांधी नेहरू और यासर अराफात

17.

शेरपहचानचार हाथसाझा

18.

जहां कोई वापसी नहीं

19.

यथास्मै रोचते विश्वम

20.

दूसरा देवदास

21.

हजारी प्रसाद द्विवेदी

भाग-2

कं.सं.

विवरण

1.

सूरदास की झोंपड़ी

2.

आरोहण

3.

बिस्कोहर की माटी

4.

अपना मालवा खाऊ-उजाडू सभ्यता


JCERT/JAC Hindi Elective प्रश्न बैंक - सह - उत्तर पुस्तक (Question Bank-Cum-Answer Book)

विषय सूची

अंतरा भाग 2

पाठ

नाम

खंड

कविता खंड

पाठ-1

जयशंकर प्रसाद

(क) देवसेना का गीत

(ख) कार्नेलिया का गीत

पाठ-2

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला

(क) गीत गाने दो मुझे

(ख) सरोज - स्मृति

पाठ-3

सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय

(क) यह दीप अकेला

(ख) मैंने देखा एक बूँद

पाठ-4

केदारनाथ सिंह

(क) बनारस

(ख) दिशा

पाठ-5

विष्णु खरे

(क) एक कम

(ख) सत्य

पाठ-6

रघुबीर सहाय

(क) बसंत आया

(ख) तोड़ो

पाठ-7

तुलसीदास

(क) भरत - राम का प्रेम

(ख) पद

पाठ-8

मलिक मुहम्मद जायसी

बारहमासा

पाठ-9

विद्यापति

पद

पाठ-10

केशवदास

कवित्त / सवैया

पाठ-11

घनानंद

कवित्त / सवैया

गद्य खंड

पाठ-1

रामचन्द्र शुक्ल

प्रेमधन की छायास्मृति

पाठ-2

पंडित चंद्रधर शर्मा गुलेरी

सुमिरनी के मनके

पाठ-3

ब्रजमोहन व्यास

कच्चा चिट्ठा

पाठ-4

फणीश्वरनाथ 'रेणु'

संवदिया

पाठ-5

भीष्म साहनी

गांधी, नेहरू और यास्सेर अराफत

पाठ-6

असगर वजाहत

शेर, पहचान, चार हाथ, साझा

पाठ-7

निर्मल वर्मा

जहाँ कोई वापसी नहीं

पाठ-8

रामविलास शर्मा

यथास्मै रोचते विश्वम्

पाठ-9

ममता कालिया

दूसरा देवदास

पाठ-10

हजारी प्रसाद द्विवेदी

कुटज

अंतराल भाग - 2

पाठ-1

प्रेमचंद

सूरदास की झोपडी

पाठ-2

संजीव

आरोहण

पाठ-3

विश्वनाथ तिरपाठी

बिस्कोहर की माटी

पाठ-

प्रभाष जोशी

अपना मालवा - खाऊ- उजाडू सभ्यता में

अभिव्यक्ति और माध्यम

1

अनुच्छेद लेखन

2

कार्यालयी पत्र

3

जनसंचार माध्यम

4

संपादकीय लेखन

5

रिपोर्ट (प्रतिवेदन) लेखन

6

आलेख लेखन

7

पुस्तक समीक्षा

8

फीचर लेखन

JAC वार्षिक इंटरमीडिएट परीक्षा, 2023 प्रश्न-सह-उत्तर

Class 12 Hindi Elective (अंतरा - भाग 2)

पद्य खण्ड

आधुनिक

1.जयशंकर प्रसाद (क) देवसेना का गीत (ख) कार्नेलिया का गीत

2.सूर्यकांत त्रिपाठी निराला (क) गीत गाने दो मुझे (ख) सरोज स्मृति

3.सच्चिदानंद हीरानंद वात्सयायन अज्ञेय (क) यह दीप अकेला (ख) मैंने देखा, एक बूँद

4.केदारनाथ सिंह (क) बनारस (ख) दिशा

5.विष्णु खरे (क) एक कम (ख) सत्य

6.रघुबीर सहाय (क) वसंत आया (ख) तोड़ो

प्राचीन

7.तुलसीदास (क) भरत-राम का प्रेम (ख) पद

8.मलिक मुहम्मद जायसी (बारहमासा)

9.विद्यापति (विद्यापति के पद)

10.केशवदास (रामचंद्रचंद्रिका)

11.घनानंद (घनानंद के कवित्त / सवैया)

गद्य-खण्ड

12.रामचंद्र शुक्ल (प्रेमघन की छाया-स्मृति)

13.पंडित चंद्रधर शर्मा गुलेरी (सुमिरिनी के मनके)

14.ब्रजमोहन व्यास (कच्चा चिट्ठा)

15.फणीश्वरनाथ रेणु (संवदिया)

16.भीष्म साहनी (गांधी, नेहरू और यास्सेर अराफात)

17.असगर वजाहत (शेर, पहचान, चार हाथ, साझा)

18.निर्मल वर्मा (जहाँ कोई वापसी नहीं)

19.रामविलास शर्मा (यथास्मै रोचते विश्वम्)

20.ममता कालिया (दूसरा देवदास)

21.हज़ारी प्रसाद द्विवेदी (कुटज)

12 Hindi Antral (अंतरा)

1.प्रेमचंद = सूरदास की झोंपड़ी

2.संजीव = आरोहण

3.विश्वनाथ त्रिपाठी = बिस्कोहर की माटी

4.प्रभाष जोशी = अपना मालवा खाऊ-उजाडू सभ्यता में

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