12. प्रेमघन की छाया-स्मृति
रामचंद्र शुक्ल
जन्म - सन् 1884 ई. अगोना गाँव, बस्ती जिला, उत्तर प्रदेश
में।
मृत्यु - सन् 1941 ई., काशी (उत्तर प्रदेश) में।
उनकी आरंभिक शिक्षा उर्दू, अंग्रेजी और फ़ारसी में हुई थी
तथा विधिवत शिक्षा इंटरमीडिएट तक ही हो पाई। उन्होंने स्वाध्याय द्वारा संस्कृत, अंग्रेजी,
बाँग्ला और हिंदी की प्राचीन तथा नवीन साहित्य का गंभीरता से अध्ययन किया।
लेखक परिचय
वे मिर्जापुर के मिशन हाई स्कूल में चित्रकला के अध्यापक
रहे। सन् 1905 में वे 'काशी नागरी प्रचारिणी सभा' में 'हिंदी शब्द सागर' के निर्माण
कार्य में सहायक संपादक के पद पर नियुक्त होकर काशी आ गए। बाद में काशी हिंदू विश्वविद्यालय
में हिंदी के प्राध्यापक बने।
बाबू श्यामसुंदर दास के अवकाश ग्रहण के बाद वे काशी हिंदू
विश्वविद्यालय में हिंदी विभाग के अध्यक्ष पद पर कार्य करते हुए यहीं उनका निधन हो
गया।
आचार्य शुक्ल हिंदी के उच्च कोटि के आलोचक, इतिहासकार और
साहित्य-चिंतक हैं। विज्ञान, दर्शन, इतिहास, भाषा विज्ञान, साहित्य और समाज के विभिन्न
पक्षों से संबंधित लेखों, पुस्तकों के मौलिक लेखन संपादन और अनुवादों के बीच से उनका
जो ज्ञान संपन्न व्यापक व्यक्तित्त्व उभरता है, वह बेजोड़ है।
शुक्ल जी की गद्य शैली विवेचनात्मक है, जिसमें विचारशीलता
सूक्ष्म तर्क- योजना तथा सहृदयता का योग है।
प्रमुख रचनाएँ - हिंदी साहित्य का इतिहास, गोस्वामी तुलसीदास,
सूरदास, चिंतामणि (चार खंड) और रस मीमांसा।
संपादित पुस्तक- जायसी ग्रंथावली, भ्रमरगीत सार।
आचार्य शुक्ल के कीर्ति का अक्षय स्रोत उनके द्वारा लिखित
'हिंदी साहित्य का इतिहास' है। इसे उन्होंने पहले 'हिंदी शब्द सागर' की भूमिका के रूप
में लिखा था जो बाद में परिष्कृत और संशोधित होकर पुस्तक के रूप में प्रकाशित हुआ।
पाठ परिचय - प्रेमघन की छाया-स्मृति
'प्रेमघन की छाया स्मृति' शुक्ल जी का एक संस्मरणात्मक निबंध
है, जिसमें उन्होंने हिंदी भाषा एवं साहित्य के प्रति अपने प्रारंभिक रुझानों का बड़ा
रोचक वर्णन किया है।
शुक्ला जी का बचपन साहित्यिक परिवेश से भरा पूरा था।
बाल्यावस्था में ही किस प्रकार भारतेंदु एवं उनके मंडल के
अन्य रचनाकारों विशेषतः प्रेमघन के सान्निध्य में शुक्ला जी का साहित्यकार आकार ग्रहण
करता है, उसकी अत्यंत मनोहारी झाँकी यहाँ प्रस्तुत हुई है।
प्रेमघन के व्यक्तित्व ने शुक्ला जी की समवयस्क मंडली को
किस तरह प्रभावित किया, हिंदी के प्रति किस प्रकार आकर्षित किया तथा किसी रचनाकार के
व्यक्तित्व निर्माण आदि से संबंधित पहलुओं का बड़ा चिताकर्षक चित्रण इस निबंध में किया
गया है।
पाठ का सारांश
'प्रेमघन की छाया स्मृति' आचार्य रामचंद्र शुक्ल द्वारा लिखित
एक संस्मरणात्मक निबंध है, जिसमें शुक्ल जी ने उपाध्याय बद्रीनारायण चौधरी 'प्रेमघन'
से जुड़ी यादों एवं हिंदी साहित्य के प्रति अपनी रुझान का लालित्य-पूर्ण चित्रण किया
है।
आचार्य रामचंद्र शुक्ल को बचपन से ही घर में साहित्यिक वातावरण
मिला। क्योंकि उनके पिता फ़ारसी भाषा के अच्छे ज्ञाता थे, तथा पुरानी हिंदी कविता के
प्रेमी थे। वह प्रायः रात में घर के सभी सदस्यों को एकत्रित करके 'रामचरितमानस' तथा
'रामचंद्रिका' को पढ़कर सुनाया करते थे।
भारतेंदु हरिश्चंद्र के नाटक उन्हें अत्यंत प्रिय थे। बचपन
में शुक्ल जी सत्य हरिश्चंद्र नाटक के नायक 'राजा हरिश्चंद्र' तथा भारतेंदु हरिश्चंद्र
में अंतर समझ नहीं पाते थे।
शुक्ल जी के पिता की बदली जब हमीरपुर जिले की राठ तहसील से मिर्जापुर में हुई तब उनका घर प्रेमघन के घर से कुछ ही दूरी पर था। शुक्ला जी ने प्रेमघन से मिलने के लिए बच्चों की एक टोली बनाई। उसमें प्रेमघन के घर को जानने वाला बालक आगे-आगे नेतृत्व करता हुआ चल रहा था, उसके पीछे सभी साथी चल रहे थे। रास्ते में शुक्ल जी कौतुक भरी निगाहों से उस राह तथा उसमें पड़ने वाले सभी दृश्यों को बारीकी से देखते हुए चल रहे थे। उनके मन में आज चौधरी प्रेमघन से मिलने की तीव्र उत्कंठा थी। शुक्ल जी को अपनी मित्र मंडली के साथ प्रेमघनजी के प्रथम दर्शन हुए, जिसमें वे लता-प्रतान के बीच मूर्तिवत खड़े थे। उनके कंधों पर बाल बिखरे हुए थे और एक हाथ बरामदे के खंभे पर था।
पंडित केदारनाथ के पुस्तकालय से पुस्तकें लाकर पढ़ते-पढ़ते
शुक्ल जी की रुचि हिंदी के नवीन एवं आधुनिक साहित्य के प्रति बढ़ गई व उनकी गहरी मित्रता
केदारनाथ जी से भी हो गई। अपनी युवावस्था तक आते-आते शुक्ल जी को समवयस्क हिंदी प्रेमी
लेखकों की मंडली भी मिल गई।
शुक्ल जी जहाँ रहते थे, वह उर्दू भाषी वकीलों , मुख्तारों
आदि की बस्ती थी। लेखक अपनी मित्र मंडली के साथ जब भी कोई बातचीत करते तो उस बातचीत
में 'निस्संदेह' शब्द का बहुत प्रयोग होता था। जिसे सुन-सुनकर उस बस्ती के लोगों ने
इस लेखक मंडली का नाम 'निस्संदेह मंडली' रख दिया था।
प्रेमघन जी पूरी तरह से हिंदुस्तानी रईस व्यक्तित्व वाले
व्यक्ति थे। उनकी हर बात में तबीयतदारी टपकती थी। बसंत पंचमी, होली आदि त्योहारों पर
उनके घर में खूब नाच-रंग और उत्सव हुआ करते थे। उनकी बातें विलक्षण वक्रतापूर्ण एवं
व्यंग्यात्मक हुआ करती थी। चौधरी साहब प्रायः लोगों को बनाया करते थे, अर्थात् उनको
बेवकूफ बनाने की कोशिश करते थे। वह प्रसिद्ध कवि होने के साथ-साथ भाषा के विद्वान भी
थे। वह बातों में हास्य और व्यंग्य का समावेश रखते थे।
शब्दार्थ और टिप्पणी
उत्कंठा = लालसा, बेचैनी
आवृत = ढका हुआ, घेरा हुआ
लता-प्रतान = लता का फैलाव, लतातंत
परिणत = अन्य रूप में बदला हुआ, परिणाम या रूपांतर को प्राप्त
मुख्तार = अधिकार प्राप्त व्यक्ति, व्यक्ति विशेष के प्रतिनिधि
के रूप में कार्य करने का अधिकारी, एजेंट
अमला = कर्मचारी मंडल
वाकिफ़ = जानकार परिचित
वक्रता = टेढ़ापन, कुटिलता
परिपाटी = सिलसिला रीति
अपभ्रंश प्राकृत भाषाओं का परवर्ती रूप जिनसे उत्तर भारत
की आधुनिक आर्य भाषाओं की उत्पत्ति मानी जाती है।
चित्ताकर्षक = मन को आकर्षित करने वाला
प्रश्न अभ्यास
1. लेखक ने अपने पिता जी की किन-किन विशेषताओं का उल्लेख किया है?
उत्तर
:- लेखक ने अपने पिता जी की निम्नलिखित विशेषताओं का उल्लेख किया है-
(क)
वे पुरानी हिंदी के प्रेमी और प्रशंसक थे।
(ख)
उनके पिता फ़ारसी भाषा के अच्छे विद्वान थ।
(ग)
उन्हें फ़ारसी कवियों की उक्तियों को हिन्दी कवियों की उक्तियों के साथ मिलाने में
बड़ा आनंद आता था।
(घ)
भारतेंदु के नाटक उन्हें बहुत प्रिय थे।
(ङ)
वे प्रायः रात में परिवार के सभी सदस्यों को एकत्र कर 'रामचरितमानस' तथा 'रामचंद्रिका'
का बड़ा चिताकर्षक ढंग से सुनाया
करते थे।
2. बचपन में लेखक के मन में भारतेंदु जी के
संबंध में कैसी भावना जगी रहती थी?
उत्तर:- बचपन में लेखक के मन में भारतेंदु जी के प्रति मधुर
भावना व्याप्त थी। तब उनकी उम्र लगभग 8 वर्ष की थी। वे 'सत्य हरिश्चंद्र' नाटक के नायक
राजा हरिश्चंद्र तथा कवि भारतेंदु हरिश्चंद्र में अंतर को समझ नहीं पाते थे और दोनों
को एक ही समझते थे। हरिश्चंद्र नाम सुनकर उन्हें दोनों के प्रति एक सी अनुभूति होती
थी। शुक्ल जी के मन में दोनों के प्रति सम्मान की भावना थी। एक बार जब शुक्ल जी को
पता चला कि भारतेंदु हरिश्चंद्र के एक मित्र मिर्जापुर के रहने वाले हैं तो उनके मन
में भारतेंदु जी से मिलने की इच्छा जाग उठी।
3. उपाध्याय बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन' की
पहली झलक लेखक ने किस प्रकार देखी?
उत्तर :- शुक्ल जी के मन में भारतेंदु जी के प्रति अपूर्व
मधुर भावना जगी रहती थी। इसलिए उनसे मिलने की इच्छा लिए वे हमीरपुर से मिर्जापुर आ
गये। वहाँ उन्हें भारतेंदु जी के मित्र के बारे में ज्ञात हुआ। भारतेंदु जी के इस मित्र
का नाम था उपाध्याय बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन'। प्रेमघन जी भी भारतेंदु जी की मंडली
के कवि थे। शुक्ल जी का मन 'प्रेमघन' जी से मिलने के लिए उत्सुक था। शुक्ल जी उन दिनों
अपने नगर से बाहर रहते थे। उन्होंने एक दिन बालकों की एक मंडली बनाई, जो बालक प्रेमघन
जी के मकान से परिचित थे, वे आगे-आगे चल रहे थे। वे सभी लगभग एक-डेढ़ मील पैदल चलने
के बाद एक मकान के सामने पहुँचे। उस मकान के नीचे वाला बरामदा खाली था। मकान का ऊपरी
बरामदा विभिन्न सघन बेलों से ढका हुआ था। उन बेलों के बीच खंभे और खाली जगह भी दिखाई
देती थी। शुक्ल जी ने बेलों के मध्य खुली जगह पर झाँक कर देखा, परन्तु उन्हें वहाँ
कुछ भी न दिखाई दिया। तब उन्होंने मकान के सामने की सड़क पर कई चक्कर लगाए। एक लड़के
ने तभी अचानक मकान के ऊपरी भाग की ओर उँगली से संकेत किया। बेलों के मध्य शुक्ल जी
को एक आदमी मूर्ति की तरह खड़ा दिखाई दिया। वह मूर्ति नहीं बल्कि उपाध्याय बदरीनारायण चौधरी
'प्रेमघन' जी ही थे। उस समय 'प्रेमघन' जी के कंधों पर उनके लंबे बाल बिखरे पड़े थे।
उन्होंने अपना एक हाथ एक खंभे पर रखा हुआ था। धीरे-धीरे वह मूर्ति (प्रेमघन जी) शुक्ल
जी की आँखों से ओझल होती चली गई। इस तरह शुक्ल जी ने 'प्रेमघन' जी की पहली झलक देखी
थी।
4. लेखक का हिंदी साहित्य के प्रति झुकाव किस
तरह बढ़ता गया?
उत्तर :- आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी के बचपन से ही उनके घर
का वातावरण हिंदीमयी था। ज्यों-ज्यों उनकी उम्र बढ़ी, ज्यों-ज्यों वे बड़े हुए हिंदी
साहित्य के प्रति उनका झुकाव बढ़ता ही गया। शुक्ल जी जिन दिनों क्वींस कॉलेज में पढ़ते
थे, उन्हीं दिनों स्वर्गीय रामकृष्ण वर्मा उनके पिताजी के सहपाठी- दोस्तों में से एक
थे। शुक्ल जी के घर में भारत जीवन प्रेस से प्रकाशित पुस्तकें आती थीं, परन्तु उनके
पिताजी उससे ये किताबें प्रायः छिपाकर ही रखते थे क्योंकि उन्हें शंका थी कि कहीं इन
पुस्तकों को पढ़ लेने से बेटे का मन पढ़ाई से न हट जाए। उन्हीं दिनों शुक्ला जी पंडित
केदारनाथ पाठक जी के गहरे मित्र भी बन गए थे। सोलह वर्ष की आयु होते-होते अनेक हमउम्र
हिंदी प्रेमियों की एक अच्छी खासी मंडली उन्होंने बना ली। इस मंडली में उनके कुछ मित्रों
के नाम थे-काशी प्रसाद जायसवाल, भगवानदास हालना, पंडित बदरीनाथ गौंड़, पंडित उमाशंकर
द्विवेदी आदि। इस मंडली में परस्पर अनेक नवीन- प्राचीन हिंदी लेखकों की चर्चा की जाती
थी। अब तक शुक्ल जी स्वयं भी लेखक बन चुके थे। इस प्रकार शुक्ल जी का हिंदी के प्रति
प्रेम दिनों-दिन बढ़ता ही गया।
5. 'निसंदेह' शब्द को लेकर लेखक ने किस प्रसंग
का ज़िक्र किया है?
उत्तर :- शुक्ल जी की लेखक मंडली जब
कभी चर्चा करती थी तो अक्सर 'निस्संदेह'
शब्द का प्रयोग किया करती थी। दूसरे शुक्ल जी जहाँ रहते थे, वहाँ अधिकतर वकील, मुख्तार,
कचहरी के अफसर और कर्मचारी ही रहते थे। वे भी अपनी बोल-चाल में उर्दू भाषा का प्रयोग
करते थे। उन लोगों के बीच लेखक की मंडली को हिंदी में बात करना कुछ अनोखा-सा लगता था।
इसलिए शुक्ल जी के आस-पास रहने वाले लोगों ने उनकी मंडली का नाम 'निस्संदेह मंडली'
रख दिया था।
6. पाठ में कुछ रोचक घटनाओं का उल्लेख है।
ऐसी तीन घटनाएँ चुनकर उन्हें अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :- शुक्ल जी ने अपने संस्मरण 'प्रेमघन की छाया-स्मृति'
में अनेक रोचक घटनाओं का उल्लेख किया है। उनमें से तीन प्रमुख रोचक घटनाएँ निम्न प्रकार
हैं-
(क) पहली घटना - मिर्जापुर में पुरानी परिपाटी के एक बहुत ही प्रतिभाशाली
कवि वामनाचार्य गिरी जी रहते थे। एक दिन वे चौधरी साहब पर एक कविता सोचते हुए सड़क
पर चले जा रहे थे। अभी वे चलते-चलते कविता का अंतिम छंद बनाने में विचारमग्न थे, तभी
उनकी नजर घर के बरामदे में कंधों पर बाल बिखराए खड़े चौधरी जी पर पड़ी। बरामदे में
चौधरी जी खंभे का सहारा लिए खड़े थे। बस बात बन गई थी। वामनाचार्य जी का अंतिम छंद
भी इस दृश्य के ऊपर जा कर पूरा हो गया कि-
"खंभा टेकि खड़ी जैसे नारि मुगलाने की। " अर्थात्
चौधरी जी कंधे पर लंबे बाल बिखराए, खंभे का सहारा लिए खड़े ऐसे दिख रहे थे, मानो वे
कोई मुगल-रानी हों।
(ख) दूसरी घटना एक दिन चौधरी साहब अपने एक पड़ोसी के पास आकर बोले कि-
"क्यों साहब, एक लफ्ज (शब्द) मैं अक्सर सुना करता हूँ?" पर उसका अर्थ कुछ
समझ में नहीं आया है। आखिर 'घनचक्कर' शब्द के क्या मानी है। उनके लक्षण क्या हैं?"
चौधरी साहब के पड़ोसी ने तुरन्त उत्तर दिया- "वाह, यह क्या मुश्किल बात है। एक
दिन रात को सोने से पहले कागज-कलम लेकर सवेरे से रात तक जो-जो काम किए हों, सब लिख
जाइए और पढ़ जाइए।" उनके कहने का अर्थ यही था कि चौधरी साहब जैसे व्यक्ति को ही
'घनचक्कर' कहा जाता है।
(ग) तीसरी घटना एक बार गर्मी के मौसम में कुछ आदमी छत पर बैठे चौधरी साहब
से बातें कर रहे थे। वहीं एक लैम्प जल रहा था। तभी अचानक जलते लैम्प की बत्ती भभकने
लगी। लैम्प की भभकती बत्ती को बुझाने के लिए चौधरी साहब नौकरों को आवाज देने लगे। तब
शुक्ल जी भी वहाँ उपस्थित थे। उन्होंने आगे बढ़कर लैम्प की भभकती बत्ती को बुझाना चाहा।
लेकिन तमाशा देखने की नीयत से पंडित लक्ष्मीनारायण जी ने शुक्ल जी को ऐसा करने से मना
कर दिया। चौधरी साहब लगातार कहते
जा रहे थे, "अरे! जब फूट जाइ तबै चलत आवह। " इतनी देर में लैम्प की चिमनी
टूटकर चूर- चूर हो गई लेकिन चौधरी साहब का हाथ लैम्प की ओर न बढ़ा।
7. "इस पुरातत्व की दृष्टि में प्रेम
और कुतूहल का अद्भुत मिश्रण रहता था। यह कथन किसके संदर्भ में कहा गया है और क्यों?
स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :- शुक्ल जी चौधरी साहब से बहुत
प्रभावित थे। अब वे उनके यहाँ एक
लेखक की हैसियत से जाते थे। शुक्ल जी और उनके अन्य मित्र चौधरी साहब को एक पुरानी चीज
मानते थे। चौधरी साहब के प्रति दृष्टि में पुरातात्विक प्रेम और कुतूहल भावों का मिला
जुला पुट होता था। दूसरे शब्दों में शुक्ल जी व उनके मित्र चौधरी जी में दिलचस्पी रखते
थे और उनके प्रति जिज्ञासु भी थे। उनका यह प्रेम व कुतूहल ठीक वैसा ही था जैसा
हममें किसी पुरातात्विक वस्तु के प्रति दिखाई देता है।
8. प्रस्तुत संस्मरण में लेखक ने चौधरी साहब
के व्यक्तित्व के किन-किन पहलुओं को उजागर किया है?
उत्तर :- शुक्ल जी ने अपने संस्मरण 'प्रेमघन की छाया-स्मृति'
में चौधरी साहब के व्यक्तित्व के निम्नलिखित पहलुओं को उजागर किया है :-
(क) आकर्षक व्यक्तित्व : चौधरी साहब आकर्षक व्यक्तित्व वाले
व्यक्ति थे। प्रायः उनके लंबे बाल उनके कंधों पर बिखरे रहते थे। वे चलते-फिरते, उठते-बैठते
एक भव्य मूर्ति सी दिखाई देते थे। तभी तो वामनाचार्य जी ने उन्हें देखकर उन्हें 'मुगलानी
नारी' कहा है।
(ख) अमीर व्यक्ति: चौधरी साहब अमीर
व्यक्ति थे। उनमें हिंदुस्तानी रईसों
की सी प्रवृत्ति थी। उनकी हर अदा रियासती तबीयतदारी से भरी होती थी। जब वे टहलते होते
थे तो एक लड़का उनके पीछे-पीछे पान की तश्तरी लिए हुए चलता रहता था।
(ग) उत्सव प्रेमी :- चौधरी साहब उत्सव प्रेमी भी थे। हर होली,
वसंत व अन्य त्यौहारों पर उनके घर पर नाच-रंग व उत्सव होता था।
(घ) वचन वक्रता चौधरी साहब में वचन वक्रता का विशेष गुण था
इसीलिए वे हर बात को काट-छाँट कर प्रस्तुत करते थे। उनकी बातचीत का ढंग अद्भुत ही होता
था। प्रायः नौकरों के साथ बातें करते हुए उनकी वचन वक्रता का प्रदर्शन खूब देखने को
मिलता था।
(ङ) सुप्रसिद्ध कवि : चौधरी साहब अपने समय के सुप्रसिद्ध
कवि थे। उन्होंने अपना उपनाम 'प्रेमघन' रखा था। जबकि उनका असली नाम उपाध्याय बदरीनारायण
चौधरी था। उनके घर पर अनेक प्रसिद्ध कवियों व लेखकों का आना-जाना लगा रहता था।
9. समवयस्क हिंदी प्रेमियों की मंडली में कौन-कौन
से लेखक मुख्य थे?
उत्तर :- शुक्ल जी के समवयस्क हिंदी प्रेमियों की मंडली में
जो लेखक शामिल थे उनमें से - काशीप्रसाद जायसवाल, भगवान दास हालना, पंडित बदरीनाथ गौंड,
पंडित उमाशंकर द्विवेदी मुख्य थे।
10. 'भारतेंदु जी के मकान के नीचे का यह हृदय-परिचय
बहुत शीघ्र गहरी मैत्री में परिणत हो गया। कथन का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :- एक बार किसी बारात में शुक्ल जी काशी गए हुए थे।
वहाँ पंडित केदारनाथ पाठक से उनकी मुलाकात हुई। शुक्ल जी उनके पुस्तकालय में अक्सर
आते-जाते रहते थे। अतः पाठक जी उन्हें देखकर खड़े हो गए। दोनों में बातचीत शुरू हुई।
बातचीत में ही शुक्ल जी को ज्ञात हुआ कि पाठक जी जिस मकान से निकले हैं, वह भारतेंदु
जी का मकान था। शुक्ल जी बड़े ही कुतूहल भाव से उस मकान को देखने लगे। पाठक जी शुक्ल
जी की इस भावलीन अवस्था को देखकर बहुत प्रसन्न हुए। यही परिचय शुक्ल जी और पाठक जी
के बीच गहरी मित्रता में परिणत हो गया।
भाषा-शिल्प
1. हिंदी-उर्दू के विषय में लेखक के विचारों को देखिए। आप इन दोनों
को एक ही भाषा की दो शैलियाँ मानते हैं या भिन्न भाषाएँ?
उत्तर
:- लेखक रामचंद्र शुक्ल जी ने अपनी रचनाओं में प्रायः उर्दू-मिश्रित हिंदी का प्रयोग
किया है। वास्तव में शुक्ल जी का समय हिंदी- उर्दू के संधि का काल था। उसी समय गद्य-
लेखन भी अस्तित्व में आ रहा था। गद्य-लेखन में खड़ी बोली को स्थान मिल चुका था।
लेखक
अपने लेखन में हिंदी-उर्दू भाषा के शब्दों का प्रयोग समान रूप से कर रहे थे। प्राथमिक
तौर पर हिंदी और उर्दू दोनों भिन्न भाषाएँ हैं, परन्तु हिंदुस्तान में हिंदुस्तानी
शैली के प्रभाव से हिंदी-उर्दू मिश्रित भाषा को भी स्थान मिला हुआ है। परिणामस्वरूप
हिंदुस्तानी साहित्य की यह शैली विशेष भले ही हो, परन्तु दोनों भाषाओं में मूलभूत अंतर अवश्य है। हिंदी-उर्दू
दो भिन्न भाषाएँ हैं।
2. चौधरी जी के व्यक्तित्व को बताने के लिए
पाठ में कुछ मज़ेदार वाक्य आए हैं-उन्हें छाँटकर उनका संदर्भ लिखिए।
उत्तर :- लेखक महोदय ने अपने संस्मरण
'प्रेमघन की छाया स्मृति' में चौधरी
जी के व्यक्तित्व को प्रदर्शित करने के लिए अनेक मजेदार वाक्यों का प्रयोग किया है,
जिनमें से कुछ वाक्य निम्नलिखित हैं :-
(क) 'दोनों कंधों पर बाल बिखरे हुए थे।'
संदर्भ शुक्ल जी के इस कथन से स्पष्ट होता है कि चौधरी जी
लंबे बाल रखने के शौकीन थे।
(ख) 'जो बातें उनके मुँह से निकलती थीं, उनमें एक विलक्षण
वक्रता रहती थी।'
संदर्भ :- शुक्ल जी के इस कथन से चौधरी प्रेमघन जी की बातचीत
करने की कुशलता और निपुणता प्रदर्शित होती है।
(ग) 'अरे, जब फूट जाई तबै चलत आवत।'
संदर्भ :- शुक्ल जी के इस कथन में प्रेमघन जी की स्थानीय
भाषा के प्रयोग का पता चलता है।
3. पाठ की शैली की रोचकता पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर :- शुक्ल जी के संस्मरण 'प्रेमघन की छाया-स्मृति' की
शैली अत्यंत रोचक है। प्रायः शुक्ल जी की लेखन-शैली बड़ी ही कठिन होती है परन्तु उनका
यह संस्मरण अपने आप में एक अपवाद है। शुक्ल जी ने घटनाओं की व्याख्या बड़े ही रोचकपूर्ण
तरीके से की है। इतना ही नहीं शुक्ल जी ने संस्मरण को जीवंत बनाने के लिए आम बोल चाल
की भाषा के शब्दों को संस्मरण में स्थान दिया है। उन्होंने स्थानीय भाषा का प्रयोग
पूरी तरह किया है। शुक्ल जी ने अपने विषय में भी बड़े ही रोचक ढंग से पाठकों को बताया
है।
योग्यता- विस्तार
1. भारतेंदु मंडल के प्रमुख लेखकों के नाम
और उनकी प्रमुख रचनाओं की सूची बनाकर स्पष्ट कीजिए कि आधुनिक हिंदी गद्य के विकास में
इन लेखकों का क्या योगदान रहा?
उत्तर :- भारतेंदु मंडल के प्रमुख लेखकों के नाम व उनकी रचनाएँ
है निम्नलिखित हैं :-
(क).
भारतेंदु हरिश्चंद्र :- प्रेम मालिका, प्रेम सरोवर
(ख)
राधाकृष्ण दास :- देशदशा
(ग).
प्रताप नारायण मिश्र :- प्रेम पुष्पावली, मन की लहर।
(घ)
बद्रीनारायण चौधरी 'प्रेमघन' :- प्रेमघन सर्वस्व
(ङ).
बालमुकुंद गुप्त :- देश प्रेम
(च).
राधाचरण गोस्वामी :- नवभक्तमाल
(छ).
बालकृष्ण भट्ट :- मेला ठेला, वकील, सहानुभूति।
भारतेंदु-युग
(सन् 1850-1900 तक) :- हिंदी साहित्य में निबंध विधा को विकसित करने का श्रेय भारतेंदु
हरिश्चंद्र एवं उनके समकालीन साहित्यकारों को ही जाता है। इस युग में बालकृष्ण भट्ट,
प्रतापनारायण मिश्र, बदरीनारायण चौधरी आदि प्रमुख लेखक साहित्य-साधना में व्यस्त थे।
बालकृष्ण भट्ट के निबंधों में 'मेला ठेला', 'वकील', 'आँसू', 'सहानुभूति', 'खटका',
'इंग्लिश पढ़े तो बाबू होय' आदि बड़े ही प्रसिद्ध हुए थे। भारतेंदु हरिश्चंद्र जी ने
स्वयं भी अनेक श्रेष्ठ निबंधों की रचना की थी। इनमें से कश्मीर कुसुम, कालचक्र, वैद्यनाथ
धाम, हरिद्वार, कंकणस्रोत आदि काफी प्रसिद्ध हैं। बालमुकुंद गुप्त जी ने निबंध शैली
में 'शिवशंभु के चिट्ठे' लिखकर हास्य-व्यंग्य का अनोखा उदाहरण प्रस्तुत किया। प्रताप
नारायण मिश्र जी ने भी उच्चकोटि के निबंध-भौंह, दाँत, नमक आदि लिखे।
उस युग में लिखे गए निबंध विविध विषयों पर थे। इन निबंधों
में व्याकरण-संबंधी दोष पाए जाते थे। इनमें क्षेत्रीय-स्थानीय भाषा के शब्दों का प्रयोग
अधिकतर होता था। इस युग के लेखकों में समाज-सुधार एवं देशभक्ति की भावना का बाहुल्य
था। इस युग में लिखे गए निबंधों में नवीन विचारों का खूब स्वागत हुआ।
2. आपको जिस व्यक्ति ने सर्वाधिक प्रभावित
किया है, उसके व्यक्तित्व की विशेषताओं को लिखिए।
उत्तर :- विद्यार्थी स्वयं करें।
3. यदि आपको किसी साहित्यकार से मिलने का अवसर
मिले तो आप उनसे क्या-क्या पूछना चाहेंगे और क्यों?
उत्तर :- विद्यार्थी स्वयं करें।
4. संस्मरण साहित्य क्या है? इसके बारे में
लिखिए।
उत्तर :- हिंदी साहित्य में गद्य की विभिन्न विधाओं में संस्मरण
एक विशिष्ट विधा है। इस विधा में लेखक आँखों देखे दृश्य-घटना, व्यक्ति, चरित्र को अपनी
स्मृति के आधार पर जीवंत रूप में चित्रित करता है। स्मृति के आधार पर लेखक उन गुणों
को उभारता है जो जीवन के लिए आवश्यक हैं। इसमें लेखक अपने निजी अनुभवों, कल्पनाओं,
व्यक्तित्व को भी जोड़ देता है। हिंदी साहित्य में द्विवेदी युग में ही संस्मरण लिखने
का सिलसिला आरंभ हो गया था। द्विवेदी युग में 'सरस्वती' मासिक पत्रिका में अनेक संस्मरण
प्रकाशित होते थे। लगभग सभी संस्मरण प्रवासी भारतीयों द्वारा लिखे गए हैं। उनके अतिरिक्त
महावीर प्रसाद द्विवेदी, रामकुमार खेमका, जगत बिहारी सेठ, प्यारेलाल, काशीप्रसाद जायसवाल
आदि के द्वारा रचित संस्मरण रहे हैं। द्विवेदी-युग के बाद महादेवी वर्मा हिंदी साहित्य
की एक सुप्रसिद्ध संस्मरण लेखिका रही हैं। 'स्मृति की रेखाएँ', 'अतीत के चलचित्र' आदि
महादेवी वर्मा की उल्लेखनीय संस्मरण रचनाएँ हैं।
वस्तुनिष्ठ प्रश्न उत्तर
1. आचार्य रामचन्द्र शुक्ल जी का जन्मवर्ष है-
(क)
1885
(ख)
1886
(ग) 1884
(घ)
1883
2. निम्नलिखित में कौन सी रचना आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी की नहीं है
?
(क)
हिंदी साहित्य का इतिहास
(ख)
रस मीमांसा
(ग)
चिंतामणि
(घ) मैला आँचल
3. 'प्रेमघन की छाया स्मृति' पाठ की विधा है -
(क) संस्मरणात्मक निबंध
(ख)
यात्रा वृत्तांत
(ग)
डायरी लेखन
(घ)
रिपोर्ताज
4. शुक्ल जी को घर पर साहित्यिक वातावरण किसके कारण मिला ?
(क)
अपने दादाजी के कारण
(ख)
अपने गुरुजी के कारण
(ग)
अपनी माताजी के कारण
(घ) अपने पिताजी के कारण
5. चौधरी साहब के व्यक्तित्व की विशेषताओं में शामिल नहीं है -
(क)
रईसी
(ख) कंजूसी
(ग)
मेहमान नवाजी
(घ)
हास्य व्यंग्य का पुट
6. चौधरी प्रेमघन साहब रहते थे -
(क)
काशी में
(ख) मिर्जापुर में
(ग)
भदोही में
(घ)
प्रतापगंज में
7. शुक्ल जी की मित्र मण्डली का नाम उर्दू - भाषी लोगों ने रख दिया
था-
(क)
संदेश मंडली
(ख)
संदेह मंडली
(ग) निस्संदेह मंडली
(घ)
भारतेंदु मंडली
8. निम्न में असत्य कथन छांटिए -
(क)
इस पाठ में बहुत ही रोचक ढंग से चौधरी जी की रईसी और शौकीन मिजाज़ का वर्णन किया है।
(ख)
आचार्य शुक्ल ने इस पाठ में चौधरी बद्रीनारायण 'प्रेमघन' का सुन्दर रेखाचित्र खीचा
है।
(ग) शुक्ल जी ने छंदों के प्रयोग से पाठ की भाषा को जीवंत बना दिया
है।
(घ)
साहित्यिक हिंदी के बीच-बीच में देशज भाषा का सुंदर प्रयोग किया गया है जिससे भाषा
का प्रभाव अद्भुत रूप से बढ़ गया है।
9. प्रेमघन जी किसे भाषा मानते थे -
(क)
ब्राह्मी को
(ख)
खरोष्ठी को
(ग) नागरी को
(घ)
इनमें से कोई नहीं
10. लता - प्रतान शब्द का अर्थ
(क)
पत्थर की लता
(ख) लता का फैलाव
(ग)
लता का संकुचन
(घ)
लता का अंकुरण
11. रामचन्द्र शुक्ल जी की मित्र मंडली में निम्न शामिल नहीं थे -
(क)
काशी प्रसाद जी जायसवाल
(ख)
भगवान दास जी हालना
(ग) हर प्रसाद शास्त्र
(घ)
पं. उमाशंकर द्विवेदी
12. प्रेमघन जी की स्वभावगत विशेषताओं में थीं
(क)
रईसी
(ख)
बातों में वक्रता
(ग)
तबियतदारी
(घ) उपरोक्त सभी
13." खम्भा टेकि खड़ी जैसे नारि मुगलाने की" उक्ति कही थी
(क)
प्रेमघन जी ने वामनाचार्य गिरी के लिए
(ख) वामनाचार्य गिरी ने प्रेमघन जी के लिए
(ग)
शुक्ल जी ने वामनाचार्य गिरी के लिए
(घ)
शुक्ल जी ने प्रेमघन जी के लिए
14. "उर्दू बेगम” पुस्तक लिखने वाले में निम्न शामिल नहीं थे
-
(क)
पं. लक्ष्मीनारायण चौबे
(ख)
बा. भगवान दास हालना
(ग)
बा. भगवान दास मास्टर
(घ) पं. यज्ञदत्त शर्मा
15. चौधरी साहब के अनुसार मीरजापुर (मिर्जापुर) का अर्थ था -
(क)
सीतापुर
(ख) लक्ष्मीपुर
(ग)
सागरपुर
(घ)
धनपुर
16. प्रेमघन के प्रति शुक्ल जी की दृष्टि रहती थी-
(क) पुरातात्विक दृष्टि
(ख)
आधुनिक दृष्टि
(ग)
सख्यभाव की दृष्टि
(घ)
इनमे से कोई नहीं
17. शुक्ल जी के साहित्यिक मंडल की बातचीत अक्सर -
(क).
उर्दू में हुआ करती थी
(ख). लिखने पढने की हिंदी में हुआ करती थी
(ग).
शुद्ध साहित्यिक अवधी में हुआ करती थी
(घ).
शुद्ध साहित्यिक ब्रजभाषा में हुआ करती थी
18. निम्नलिखित में सही विकल्प का चयन कीजिए
(क)
प्रस्तुत पंक्तियों में बहुत ही रोचक ढंग से चौधरी जी की रईसी और शौकीन मिजाज़ का वर्णन
किया है।
(ख)
आचार्य शुक्ल ने इस अनुच्छेद में चौधरी बद्रीनारायण 'प्रेमघन' का सुन्दर रेखाचित्र
खींचा है।
(ग)
मुहावरों के प्रयोग ने अनुच्छेद की भाषा को जीवंत बना दिया है।
(घ)
साहित्यिक उर्दू के बीच-बीच में देशज भाषा का सुंदर प्रयोग किया गया है जिससे भाषा
का प्रभाव अद्भुत रूप से बढ़ गया है।
(क)
क और ख सही हैं
(ख)
ग और घ सही हैं
(ग) क, ख, ग और घ सही हैं
(घ)
क, ख और ग सही हैं
19. "कारे। बचा त नाहीं" वाक्यांश उदाहरण है-
(क)
तत्सम प्रधान शुद्ध साहित्यिक हिंदी का
(ख)
अरबी फारसी युक्त हिन्दुस्तानी भाषा का
(ग) ठेठ आँचलिक भाषा का
(घ) तद्भव प्रधान उर्दू भाषा का
JCERT/JAC REFERENCE BOOK
Hindi Elective (विषय सूची)
भाग-1 | |
क्रं.सं. | विवरण |
1. | |
2. | |
3. | |
4. | |
5. | |
6. | |
7. | |
8. | |
9. | |
10. | |
11. | |
12. | |
13. | |
14. | |
15. | |
16. | |
17. | |
18. | |
19. | |
20. | |
21. | |
भाग-2 | |
कं.सं. | विवरण |
1. | |
2. | |
3. | |
4. |
JCERT/JAC Hindi Elective प्रश्न बैंक - सह - उत्तर पुस्तक (Question Bank-Cum-Answer Book)
विषय सूची
अंतरा भाग 2 | ||
पाठ | नाम | खंड |
कविता खंड | ||
पाठ-1 | जयशंकर प्रसाद | |
पाठ-2 | सूर्यकांत त्रिपाठी निराला | |
पाठ-3 | सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय | |
पाठ-4 | केदारनाथ सिंह | |
पाठ-5 | विष्णु खरे | |
पाठ-6 | रघुबीर सहाय | |
पाठ-7 | तुलसीदास | |
पाठ-8 | मलिक मुहम्मद जायसी | |
पाठ-9 | विद्यापति | |
पाठ-10 | केशवदास | |
पाठ-11 | घनानंद | |
गद्य खंड | ||
पाठ-1 | रामचन्द्र शुक्ल | |
पाठ-2 | पंडित चंद्रधर शर्मा गुलेरी | |
पाठ-3 | ब्रजमोहन व्यास | |
पाठ-4 | फणीश्वरनाथ 'रेणु' | |
पाठ-5 | भीष्म साहनी | |
पाठ-6 | असगर वजाहत | |
पाठ-7 | निर्मल वर्मा | |
पाठ-8 | रामविलास शर्मा | |
पाठ-9 | ममता कालिया | |
पाठ-10 | हजारी प्रसाद द्विवेदी | |
अंतराल भाग - 2 | ||
पाठ-1 | प्रेमचंद | |
पाठ-2 | संजीव | |
पाठ-3 | विश्वनाथ तिरपाठी | |
पाठ- | प्रभाष जोशी | |
अभिव्यक्ति और माध्यम | ||
1 | ||
2 | ||
3 | ||
4 | ||
5 | ||
6 | ||
7 | ||
8 | ||
Class 12 Hindi Elective (अंतरा - भाग 2)
पद्य खण्ड
आधुनिक
1.जयशंकर प्रसाद (क) देवसेना का गीत (ख) कार्नेलिया का गीत
2.सूर्यकांत त्रिपाठी निराला (क) गीत गाने दो मुझे (ख) सरोज स्मृति
3.सच्चिदानंद हीरानंद वात्सयायन अज्ञेय (क) यह दीप अकेला (ख) मैंने देखा, एक बूँद
4.केदारनाथ सिंह (क) बनारस (ख) दिशा
5.विष्णु खरे (क) एक कम (ख) सत्य
6.रघुबीर सहाय (क) वसंत आया (ख) तोड़ो
प्राचीन
7.तुलसीदास (क) भरत-राम का प्रेम (ख) पद
8.मलिक मुहम्मद जायसी (बारहमासा)
11.घनानंद (घनानंद के कवित्त / सवैया)
गद्य-खण्ड
12.रामचंद्र शुक्ल (प्रेमघन की छाया-स्मृति)
13.पंडित चंद्रधर शर्मा गुलेरी (सुमिरिनी के मनके)
14.ब्रजमोहन व्यास (कच्चा चिट्ठा)
16.भीष्म साहनी (गांधी, नेहरू और यास्सेर अराफात)
17.असगर वजाहत (शेर, पहचान, चार हाथ, साझा)
18.निर्मल वर्मा (जहाँ कोई वापसी नहीं)
19.रामविलास शर्मा (यथास्मै रोचते विश्वम्)
21.हज़ारी प्रसाद द्विवेदी (कुटज)
12 Hindi Antral (अंतरा)
1.प्रेमचंद = सूरदास की झोंपड़ी
3.विश्वनाथ त्रिपाठी = बिस्कोहर की माटी