12th Hindi Elective बनारस JCERT/JAC Reference Book

12th Hindi Elective बनारस JCERT/JAC Reference Book

 12th Hindi Elective बनारस JCERT/JAC Reference Book

4. बनारस

जीवन परिचय

1. केदारनाथ सिंह

2. जन्म - 07 जुलाई सन् 1934 ई. उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के चकिया गाँव में हुआ था।

मृत्यु - 19मार्च सन् 2018 ई. को दिल्ली में उपचार के दौरान हुआ।

3. हिन्दी के सुप्रसिद्ध कवि व साहित्यकार थे। वे अज्ञेय द्वारा सम्पादित तीसरा सप्तक के कवि रहे।

4. काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से 1956 ई० में हिन्दी में एम०ए० और 1964 में पी-एच० डी० की उपाधि प्राप्त की।

कुछ वक़्त गोरखपुर में हिंदी के प्रध्यापक रहे।

उन्होंने जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय में भारतीय भाषा केंद्र में बतौर आचार्य और अध्यक्ष काम किया था।

5. प्रमुख काव्य – कृतियाँ 'जमीन पक रही है', 'यहाँ से देखो', उत्तर कबीर', टालस्टॉय और साइकिल' और 'बाघ'

6. प्रमुख गद्य – कृतियाँ 'कल्पना और छायावाद', 'आधुनिक हिंदी कविता में बिंबविधान' और 'मेरे समय के शब्द'

7. आलोचना

• कल्पना और छायावाद

• आधुनिक हिंदी कविता में बिंबविधान

• मेरे समय के शब्द

• मेरे साक्षात्कार

8. संपादन

• ताना-बाना (आधुनिक भारतीय कविता से एक चयन)

• समकालीन रूसी कविताएँ

• कविता दशक

• साखी (अनियतकालिक पत्रिका)

• शब्द (अनियतकालिक पत्रिका)

पुरस्कार

1989 में उनकी कृति 'अकाल में सारस' को साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला

इसके अलावा उन्हें व्यास सम्मान

मध्य प्रदेश का मैथिलीशरणगुप्त सम्मान

उत्तर प्रदेश का भारतभारतीसम्मान

बिहार का दिनकर सम्मान

केरल का कुमार आशान सम्मान

वर्ष 2013 में उन्हें प्रतिष्ठित ज्ञानपीठसम्मान से सम्मानित किया गया। इस पुरस्कार से सम्मानित होने वाले वह हिन्दी के 10वें साहित्यकार हैं।

पाठ परिचय

1. इस कविता में प्राचीनतम शहर बनारस के सांस्कृतिक वैभव के साथ ठेठ बनारसीपन पर भी प्रकाश डाला गया है।

सांस्कृतिक वैभव के साथ ठेठ बनारसीपन पर भी प्रकाश डाला गया है।

2. बनारस शिव की नगरी और गंगा के साथ विशिष्ट आस्था का केंद्र है।

3. बनारस में गंगा, गंगा के घाट, मंदिर तथा मंदिरों और घाटों के किनारे बैठे भिखारियों के कटोरे, जिनमें वसंत उतरता है।

4. इस शहर के साथ मिथकीय आस्था-काशी और गंगा के सान्निध्य से मोक्ष की अवधारणा जुड़ी है। गंगा में बँधी नाव, एक ओर मंदिरों- घाटों पर जलने वाले दीप तो दूसरी तरफ कभी न बुझने वाली चिताग्नि, उनसे तथा हवन इत्यादि से उठने वाला धुआँ है बनारस । यही तो

5. यहाँ हर कार्य अपनी 'रौ' में होता है। यह बनारस का चरित्र है। आस्था, श्रद्धा, विरक्ति, विश्वास-आश्चर्य और भक्ति का मिला-जुला रूप बनारस है।

6. काशी की अति प्राचीनता, आध्यात्मिकता एवं भव्यता के साथ आधुनिकता का समाहार 'बनारस' कविता में मौजूद है। यह एक पुरातन शहर के रहस्यों को खोलती है, बनारस एक मिथक बन चुका शहर है, इस शहर की दार्शनिक व्याख्या यह कविता करती है।

7. कविता भाषा संरचना के स्तर पर सरल है और अर्थ के स्तर पर गहरी।

8. कविता का शिल्प विवरणात्मक होने के साथ ही कवि की सूक्ष्म दृष्टि का परिचायक है।

बनारस

काव्यांश - 1

इस शहर में वसंत

अचानक आता है

और जब आता है तो मैंने देखा है

लहरतारा या मडुवाडीह की तरफ से

उठता है धूल का एक बवंडर

और इस महान पुराने शहर की जीभ

किरकिराने लगती है।

शब्दार्थ

• लहरतारा या मडुवाडीह बनारस के मोहल्लों के नाम।

• बवंडर = अंधड़, आँधी।

सन्दर्भ : प्रस्तुत काव्यांश आधुनिक कवि केदारनाथ सिंह की कविता 'बनारस' से उद्धृत है जो हमारी पाठ्य-पुस्तक 'अन्तरा भाग -2' में संकलित है।

प्रसंग: इन पंक्तियों में बनारस शहर में वसन्त के अचानक आने का वर्णन किया गया है। वसन्त में धूलभरी आँधी चलती है जिससे सारे शहर में धूल ही धूल हो जाती है।

व्याख्या: वसन्त के अकस्मात् आगमन पर बनारस में लहरतारा या मडुवाडीह मोहल्ले से धूलभरी आँधियाँ चलती हैं जिसके कारण पुराने शहर बनारस के प्रत्येक भाग में धूल-ही- धूल भर जाती है। धूल के कारण जिस प्रकार मुँह में किरकिरापन हो जाता है उसी प्रकार सारे शहर में धूल-ही-धूल हो जाती है। लगता है मानो बनारस शहर की जीभ धूल के कारण किरकिरी हो गई हो। कहने का तात्पर्य यह है कि बनारस में वसन्त में धूलभरी आँधियाँ चलती हैं और सारा वातावरण धूलधूसरित हो जाता है।

विशेष :

1. कवि ने बनारस की वासन्ती प्रकृति का यथार्थ चित्रण किया है।

2. शब्द चयन सार्थक है। वासन्ती वातावरण का एक बिम्ब प्रस्तुत किया गया है।

3. भाषा में देशज शब्दों का प्रयोग है। वह प्रसाद गुण युक्त है।

4. मुक्त छन्द की रचना है।

5. केदारनाथ सिंह नयी कविता के कवि हैं।

काव्यांश - 2

जो है वह सुगबुगाता है

जो नहीं है वह फेंकने लगता है पचखियाँ

आदमी दशाश्वमेध पर जाता है

और पाता है घाट का आखिरी पत्थर

कुछ और मुलायम हो गया है

सीढ़ियों पर बैठे बन्दरों की आँखों में

एक अजीब सी नमी है

और एक अजीब सी चमक से भर उठा है

भिखारियों के कटोरों का निचाट खालीपन

शब्दार्थ :

• सुगबुंगाता – जागरण, जागने की क्रिया।

• पचखियाँ = अंकुरण।

• निचाट = बिलकुल, एकदम।

सन्दर्भ : प्रस्तुत पंक्तियाँ 'बनारस' कविता से ली गई हैं, जिसके रचयिता आधुनिक कवि केदारनाथ सिंह हैं। यह कविता हमारी पाठ्य- पुस्तक 'अन्तरा भाग -2' में संकलित है।

प्रसंग : इन पंक्तियों में कवि ने बनारस में वसन्तागमन का वर्णन किया है। वसन्त आने पर बनारस में नवीन जागृति, उल्लास और चेतना व्याप्त हो जाती है। पत्थरों तक में नरमी का एहसास होता है।

व्याख्या: कवि कहता है कि बनारस में वसन्त की हवा चलने से जो अस्तित्व में है उसमें सुगबुगाहट होने लगती है, उसमें जागृति आ जाती है। जो अस्तित्व हीन हैं उनमें भी नवांकुर फूटने लगते हैं। इस प्रकार वसन्त की हवा का सारे वातावरण पर प्रभाव पड़ता है। लोग विगत असफलताओं से निराश नहीं होते बल्कि उनमें नई उमंग और नया संकल्प भर जाता है। नवजीवन का संचार होने लगता है और वातावरण नवीन उत्साह से भर जाता है।

दशाश्वमेध घाट पर आने वाले प्रत्येक व्यक्ति को ऐसा लगता है मानो नदी का स्पर्श करने वाला घाट का अन्तिम पत्थर कुछ और नरम हो गया है, उसकी कठोरता कम हो गई है। यह ऐसा ही है जैसे पाषाण हृदय व्यक्ति का, हृदय बदल जाता है, उसके व्यवहार में परिवर्तन आ जाता है। घाट पर बैठे बन्दरों की आँखों में एक विशेष प्रकार की नमी दिखाई देने लगती है। एक अजीब सी चमक दिखाई देती है। घाट पर बैठे भिखारियों के कटोरे भिक्षा से भर जाते हैं जैसे उनमें वसन्त उतर आया हो। जो दीन-हीन हैं उनमें भी एक उमंग भर जाती है।

विशेष :

1. सार्थक बिम्ब योजना है।

2. आम बोलचाल के शब्दों का प्रयोग हुआ है; जैसे - सुगबुगाना, पचखियाँ, निचाट।

3. सीढ़ियों पर बैठे बन्दरों और घाट पर बैठे भिखारियों के वर्णन में चित्रोपमता है।

4. भाषा में प्रसाद गुण और सहजता विद्यमान है।

5. 'बनारस' का वर्णन अत्यन्त सजीव है।

काव्यांश - 3

तुमने कभी देखा है

खाली कटोरों में वसन्त का उतरना ।

यह शहर इसी तरह खुलता है

इसी तरह भरता

और खाली होता है यह. शहर

इसी तरह रोज-रोज एक अनन्त शव

ले जाते हैं कंधे

अँधेरी गली से

चमकती हुई गंगा की तरफ

शब्दार्थ :

अनन्त = जिसका अन्त न हो, बहुत अधिक, अनेक।

सन्दर्भ : प्रस्तुत काव्यांश 'बनारस' कविता से उद्धृत है जो हमारी पाठ्य-पुस्तक 'अन्तरा भाग -2' में संकलित है। इसके रचयिता केदारनाथ सिंह हैं।

प्रसंग - इन पंक्तियों में कवि ने वसन्त आने पर बनारस में जो प्रसन्नता व्याप्त होती है उसका वर्णन किया है। वसन्त आने पर भिखारियों के कटोरे भीख से भर जाते हैं, उनके मुख पर प्रसन्नता व्याप्त हो जाती है।

व्याख्या : कवि कहता है कि वसन्त आने पर बनारस के अभावग्रस्त लोगों में भी उल्लास व्याप्त हो जाता है। खाली कटोरों में वसन्त उतर आता है अर्थात् भिखारियों के कटोरे भीख से भर जाते हैं। उनके चेहरों पर उमंग व्याप्त हो जाती है। बनारस की यह विशेषता है कि यहाँ दिन उल्लास, उमंग और प्रसन्नता के साथ प्रारम्भ होता है। लोगों की जिजीविषा, आशा और उमंग के साथ यह शहर भरा रहता है। लोग आशा और उमंग के साथ जीते हैं।

यहाँ प्रतिदिन कोई-न-कोई शव गंगा के किनारे लाया जाता है। इस प्रकार यह शहर खाली भी होता रहता है। लोग शव को कंधे पर उठाकर अंधेरी गली से निकालकर गंगा की ओर दाह-संस्कार के लिए ले जाते हैं। अर्थात् मृत्यु के अन्धकार से निकालकर शव को मोक्ष के प्रकाश की ओर ले जाया जाता है। इस प्रकार शहर में कहीं खुशी का वातावरण व्याप्त रहता है तो कहीं शोक की काली चादर बिछ जाती है। इस प्रकार परस्पर विपरीत दृश्य बनारस में देखने को मिलते हैं।

विशेष :

1. बनारस के हर्ष-विषाद का यथार्थ वर्णन किया गया है।

2. केदारनाथ सिंह ने बनारस में रहकर इस नगर को बहुत देखा-परखा है, उसी की यथार्थ अभिव्यक्ति इस कविता में है।

3. 'खाली कटोरे में वसन्त का उतरना' नया प्रयोग है।

4. भाषा प्रसाद गुण युक्त है। सार्थक शब्दों का प्रयोग हुआ है।

5. वर्णन में चित्रोपमता है।

काव्यांश - 4

इस शहर में धूल धीरे-धीरे उड़ती है धीरे-धीरे चलते हैं लोग धीरे-धीरे बजते हैं घंटे शाम धीरे-धीरे होती है यह धीरे-धीरे होना धीरे-धीरे होने की सामूहिक लय दृढ़ता से बाँधे है समूचे शहर को इस तरह कि कुछ भी गिरता नहीं है कि हिलता नहीं है कुछ भी कि जो चीज जहाँ थी वहीं पर रखी है। कि गंगा वहीं है कि वहीं पर बँधी है नाव कि वहीं पर रखी है तुलसीदास की खड़ाऊँ सैकड़ों बरस से

शब्दार्थ :

• सामूहिक = मिला-जुला।

• दृढ़ता = मजबूती।

• समूचे = पूरे, समग्र ।

• खड़ाऊँ = लकड़ी से बनी पैरों में पहनने वाली पादुकाएँ।

सन्दर्भ : प्रस्तुत पंक्तियाँ आधुनिक कविता के सशक्त हस्ताक्षर केदारनाथ सिंह की कविता 'बनारस से ली गई हैं। इस कविता को हमारी पाठ्य-पुस्तक 'अन्तरा भाग-2' में संकलित किया गया है।

प्रसंग : इन पंक्तियों में बनारस की जीवन- शैली का वर्णन है। यहाँ हर कार्य धीरे-धीरे होता है मानो यह इस शहर की विशेषता है। आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक दृष्टि से इस नगर का अपना अलग ही महत्त्व है।

व्याख्या' : बनारस शहर में सैकड़ों वर्षों से कोई परिवर्तन नहीं हुआ है। इस शहर में धूल धीरे-धीरे उड़ती है, लोग धीरे-धीरे चलते हैं। उनका जीवन धीमी गति से चलता है। मन्दिरों और गंगा के घाटों पर बहुत मन्द ध्वनि में घण्टे बजते हैं। शहर में संध्या धीरे-धीरे उतरती है। भाव यह है कि बनारस में जीवन सहज रूप से चलता है। हर कार्य का धीरे-धीरे होना यहाँ का स्वभाव बन गया है। यही सामूहिक मंथर गति सारे शहर को बाँधे हुए है।

इस मजबूत बंधन के कारण यहाँ की हर अपने स्थान पर स्थिर है, वह गिरती और हिलती नहीं है। मंगा के प्रति आस्था और श्रद्धा आज भी अडिग है। नावें भी निश्चित स्थान पर ही बँधती हैं और तुलसीदास की खड़ाऊँ भी सैकड़ों वर्षों से वहीं रखी हैं। पुराने मूल्य, मान्यताएँ, आस्था, विश्वास, श्रद्धा आदि सभी बनारस की धरोहर के रूप में सुरक्षित हैं। बनारस की आध्यात्मिकता और भव्यता अब भी जैसी की तैसी है। भाव यह है कि बनारस का जीवन अब भी पुराने ढंग से ही चल रहा है।

विशेष :

1. बनारस की अपरिवर्तित आध्यात्मिकता, संस्कृति, आस्था और परम्पराओं का वर्णन है।

2. धीरे-धीरे में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है।

3. बिम्ब योजना आकर्षक है।

4. मुक्त छन्द का प्रयोग है।

5. केदारनाथ सिंह आधुनिक कविता के सशक्त हस्ताक्षर हैं।

काव्यांश - 5

कभी सई-साँझ

बिना किसी सूचना के

घुस जाओ इस शहर में

कभी आरती के आलोक में

इसे अचानक देखो

अद्भुत है इसकी बनावट

यह आधा जल में है

आधा मंत्र में

आधा फूल में है

आधा शव में

आधा नींद में है

आधा शंख में

अगर ध्यान से देखो

तो यह आधा है

और आधा नहीं है।

शब्दार्थ :

• सई-साँझ = सांध्यारम्भ

• आलोक = प्रकाश।

सन्दर्भ : 'बनारस' कविता से उद्धृत इन पंक्तियों के रचयिता केदारनाथ सिंह हैं। यह कविता हमारी पाठ्य-पुस्तक 'अन्तरा भाग- 2' में संकलित है।

प्रसंग : प्रस्तुत काव्यांश में बनारस के संध्याकालीन सौन्दर्य का वर्णन है। कहीं श्रद्धा के साथ मंत्रोच्चारण करते हुए गंगा की आरती उतारी जाती है तो कहीं शवयात्रा निकाली जाती है। इसी मिले-जुले रूप का वर्णन इस अंश में किया गया है।

व्याख्या: कवि कहता है कि कभी सन्ध्या के समय अचानक इस बनारस नगरी को देखो तो एक अजीब-सा दृश्य आँखों के सामने आयेगा। संध्या आरती के समय इस शहर को देखो तब एक आश्चर्यजनक दृश्य दिखाई देगा। ऐसा दिखाई देगा मानो यह शहर आधा जल में है, आधा मंत्र में है और आधा फूल में है अर्थात् संध्या के समय मन्दिरों-घाटों पर आधा .. बनारस शहर जल, मंत्र और फूलों से भगवान की आरती उतारने में निमग्न रहता है।

उसी समय दूसरी ओर गंगा तट पर चिता जलती दिखाई देती है। इस प्रकार यह शहर आधा नींद में और आधा शव में दिखता है तो कहीं आधे शहर में शंख की ध्वनि सुनाई देती है अर्थात् आधा शहर नींद की अचेतनता में डूबा रहता है तो कहीं देर रात तक पूजा-पाठ होता रहता है। आधा शहर प्राचीन संस्कृति के रूप में देखने को मिलता है। आधा शहर प्राचीनता, आध्यात्मिकता और श्रद्धा भक्ति में डूबा दिखता है तो आधा शहर आधुनिक संस्कृति से सराबोर दिखता है।

विशेष :

1. संध्याकालीन बनारस के वातावरण का वर्णन है।

2. बनारस की प्राचीनता और नवीनता का वर्णन है।

3. भाषा प्रसाद गुण युक्त है और सटीक शब्दों का प्रयोग हुआ है।

4. बिम्ब योजना सशक्त है।

5. अनुप्रास अलंकार का प्रयोग हुआ है।

काव्यांश - 6

जो है वह खड़ा है

बिना किसी स्तम्भ के

जो नहीं है उसे थामे है

राख और रोशनी के ऊँचे-ऊँचे स्तंभ

आग के स्तंभ

और पानी के स्तंभ

धुएँ के

खुशबू के

आदमी के उठे हुए हाथों के स्तंभ

किसी अलक्षित सूर्य को

देता हुआ अर्घ्य

शताब्दियों से इसी तरह

गंगा के जल में

अपनी एक टाँग पर खड़ा है यह शहर

अपनी दूसरी टाँग से

बिलकुल बेखबर!

शब्दार्थ :

• स्तंभ = खंभा।

• अलक्षित = अज्ञात, दिखाई न देने वाला।

• अर्घ्य = पूजा के 16 उपचारों में से एक विधान, दूध चावल आदि मिला हुआ जल श्रद्धापूर्वक चढ़ाना।

संदर्भ - प्रस्तुत काव्यांश 'बनारस' कविता से उद्धृत है जिसके रचयिता श्री केदारनाथ सिंह हैं। यह कविता हमारी पाठ्य-पुस्तक 'अन्तरा भाग-2' में संकलित है।

प्रसंग इन पंक्तियों में एक ओर बनारस के प्राचीन भव्य स्वरूप की झाँकी प्रस्तुत की गयी है तो दूसरी ओर बनारस की आधुनिकता का वर्णन है। इसमें बनारस के एक विशिष्ट रूप को प्रस्तुत किया गया है। सदियों से चली आ रही आध्यात्मिकता और सांस्कृतिक वैभव का भी वर्णन है।

व्याख्या - कवि का कहना है कि बनारस में जो कुछ विद्यमान है वह सभी बिना किसी आधार के, बिना किसी सहारे के खड़ा है। बनारस की प्राचीनता, आस्था, आध्यात्मिकता, विश्वास, भक्ति, श्रद्धा और सामूहिक गति सभी विरासत के रूप में यहाँ के जनजीवन में व्याप्त हैं। उसका मिथकीय रूप आज भी सुरक्षित है। जो अस्तित्व में नहीं है उसे राख, रोशनी के ऊँचे खम्भे, आग के स्तम्भ, पानी के खम्भे, धुएँ की सुगन्ध और आदमी के उठे हाथ थामे हुए हैं अर्थात् बनारस में आध्यात्मिकता की दोनों शैलियों के मिले-जुले रूप देखने को मिलते हैं।

यह बनारस शहर सदियों से किसी अज्ञात, अदृश्य सूर्य को अर्घ्य देता हुआ गंगा के जल में अपनी एक टाँग पर खड़ा है और दूसरी टौंग से अनजान है। सूर्य को ब्रह्म का प्राचीनतम रूप मानकर सदियों से यहाँ पूजा जा रहा है। यह परम्परा आज की नहीं बहुत प्राचीन है। कहने का तात्पर्य यह है कि आज भी गंगा के बीच में खड़े होकर उसके जल से सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। बनारस का एक भाग आज भी प्राचीन परम्परा में दृढ़ है तो दूसरा आधुनिकता से प्रभावित है। इस प्रकार बनारस में प्राचीनता के साथ आधुनिकता का समावेश है।

विशेष :

1. इस काव्यांश में बनारस के प्राचीन और आधुनिक रूप का मिला-जुला वर्णन है।

2. टाँग का प्रयोग प्रतीक रूप में किया गया है।

3. 'बिलकुल बेखबर' में अनुप्रास अलंकार है।

4. बिम्ब योजना आकर्षक है।

5. भाषा में प्रसाद गुण और प्रवाह है।

दिशा

काव्यांश

हिमालय किधर है?

मैंने उस बच्चे से पूछा जो स्कूल के बाहर

पतंग उड़ा रहा था

उधर-उधर - उसने कहा

जिधर उसकी पतंग भागी जा रही थी

मैं स्वीकार करूँ

मैंने पहली बार जाना

हिमालय किधर है।

सन्दर्भ: प्रस्तुत पंक्तियाँ 'दिशा' नामक कविता से ली गई हैं। यह प्रसिद्ध आधुनिक कवि केदारनाथ सिंह की रचना है जो हमारी पाठ्य-पुस्तक 'अन्तरा भाग-2' में संकलित है।

प्रसंग: यह कविता बाल मनोविज्ञान से सम्बन्धित है। प्रत्येक व्यक्ति की सोच अलग होती है। यथार्थ के सम्बन्ध में सभी अपने ढंग से सोचते हैं। बच्चे भी अपने ढंग से सोचते हैं।

व्याख्या : बच्चों की दुनिया छोटी होती है। बच्चा अपनी सीमा में ही सोचता है। कवि कहता है कि मैंने स्कूल से बाहर आते हुए एक बच्चे से प्रश्न किया, हिमालय किधर है? बच्चे ने सहजता से हिमालय उधर ही बता दिया जिधर उसकी पतंग उड़ती हुई भागी जा रही थी। बच्चे का उत्तर सुनकर कवि ने जाना कि हिमालय किधर है। बच्चे का उत्तर सुनकर कवि ने समझा कि प्रत्येक व्यक्ति का अपना-अपना यथार्थ होता है। बच्चे दुनिया की हर चीज को अपने ढंग से देखते हैं। उनकी दुनिया छोटी होती है। वे उसी सीमा में सोचते हैं।

विशेष :

1. इन पंक्तियों में बाल मनोविज्ञान का वर्णन है।

2. बच्चे सहज रूप से ही किसी बात का उत्तर दे देते हैं।

3. भाषा अत्यन्त सरल है। हिन्दी खड़ी बोली का प्रयोग है।

4. सबके सोचने का ढंग अलग-अलग होता है, यह दिखाया गया है।

5. 'मैं स्वीकार किधर है' में बच्चे के सहज उत्तर पर कवि मुग्ध दिखाई देता है।

प्रश्न अभ्यास

प्रश्न 1. बनारस में वसन्त का आगमन कैसे होता है और उसका क्या प्रभाव इस शहर पर पड़ता है?

उत्तर : बनारस में वसन्त का आगमन अचानक होता है। सारा शहर धूल से भर जाता है। लोगों की जीभ पर धूल की किरकिराहट अनुभव होने लगती है। प्रकृति में जब वसन्त ऋतु आती है तो सारी प्रकृति श्रृंगार करती है। वृक्षों पर नये पत्ते आते हैं पर बनारस का वसन्त उससे भिन्न है। बनारस के वसन्त में चारों तरफ धूल के बवंडर उठते हैं। वसन्त में बनारस के गंगा के घाटों, और मन्दिरों में घण्टों की ध्वनि सुनाई देती है। गंगा के घाटों और मन्दिरों में भिखारियों की भीड़ बढ़ जाती है और उनके कटोरे भीख से भर जाते हैं

प्रश्न 2. 'खाली कटोरों में वसन्त का उतरना' से क्या आशय है?

उत्तर : उपर्युक्त कथन का आशय यह है कि अब तक भिखारियों के जो कटोरे खाली थे वे अब भिक्षा से भर जायेंगे। लोग उनमें पैसे डालने आरम्भ कर देंगे। भिखारियों की आँखें आनन्द से चमकने लगती हैं। लगता है मानो उनके कटोरों में वसन्त उतर आया है।

प्रश्न 3. बनारस की पूर्णता और रिक्तता को कवि ने किस प्रकार दिखाया है ?

उत्तर : वसन्त के आगमन पर लोगों के मन में उल्लास भर जाता है, जो उसकी पूर्णता का प्रतीक है। किसी न किसी पर्व पर दूर से आने वाले श्रद्धालु यहाँ एकत्रित होते हैं। गंगा में स्नान करके पूजा-अर्चना करते हैं और विश्वनाथ के दर्शन करते हैं। इस प्रकार बनारस में पूर्णता व्याप्त रहती है। बनारस अपने अस्तित्व के साथ अपनी पूर्णता बनाए रखता है। लोग शवों को अँधेरी गलियों से निकालकर गंगा-घाट की ओर ले जाते हैं और दाह-संस्कार करते हैं। यह कार्य बनारस की रिक्तता को प्रकट करता है।

प्रश्न 4. बनारस में धीरे-धीरे क्या-क्या होता है ? 'धीरे-धीरे' से कवि इस शहर के बारे में क्या कहना चाहता है?

उत्तर : बनारस में हर कार्य मन्थर गति से होता है। यहाँ धीरे-धीरे धूल उड़ती है, लोग धीरे-धीरे चलते हैं। यहाँ मन्दिरों में और गंगा घाट पर आरती के घण्टे धीरे-धीरे बजते हैं। यहाँ संध्या भी धीरे-धीरे उतरती है। बनारस में हर काम अपनी लय में होता है। धीरे-धीरे हर काम का होना बनारस शहर की एक विशेषता है, एक सामूहिक लय है। यहाँ के जीवन में व्यग्रता नहीं है। यह शहर अपने ढंग से जीता-मरता है। यहाँ के जीवन में विचलन का अभाव है।

प्रश्न 5. धीरे-धीरे होने की सामूहिक लय में क्या-क्या बँधा है?

उत्तर : बनारस का सारा जीवन एक मन्थर गति में बँधा है। जो पहले जहाँ था वह सब वहीं स्थित है। सारा शहर एक सामूहिक लय में बँधा है। गंगा के घाटों पर नावें जहाँ बँधती थीं वहीं बँधी हैं। सारी परम्पराएँ उसी रूप में विद्यमान हैं। तुलसीदास की खड़ाऊँ भी दीर्घकाल से वहीं रखी है। यहाँ के सांस्कृतिक, धार्मिक और ऐतिहासिक वातावरण में कोई परिवर्तन नहीं आया है। गंगा के प्रति लोगों की आस्था और मोक्ष की कामना अब भी यथावत है।

प्रश्न 6. 'सई साँझ' में घुसने पर बनारस की किन-किन विशेषताओं का पता चलता है ?

उत्तर : संध्या के समय बनारस में प्रवेश करने पर गंगा जी की आरती के दर्शन होते हैं। मन्दिरों और घाटों पर दीप जलते दिखते हैं , उस समय बनारस की शोभा अद्भुत दिखाई देती है। गंगा के जल में गंगा के घाटों की, दीपों की और बनारस की छाया पड़ रही थी उसे देखकर ऐसा लगता था कि आधा शहर जल में है और आधा शहर जल के बाहर है। कहीं शव जलाए जा रहे हैं तो कहीं उनका जल प्रवाह किया जा रहा है। संध्या के समय बनारस में श्रद्धा, आस्था, विरक्ति, विश्वास और भक्ति के भाव देखने को मिलते हैं।

प्रश्न 7. बनारस शहर के लिए जो मानवीय क्रियाएँ इस कविता में आई हैं, उनका व्यंजनार्थ स्पष्ट कीजिए।

उत्तर : बनारस शहर के लिए निम्नलिखित ' मानवीय क्रियाएँ आई हैं -

(क) यह शहर इसी तरह खुलता है व्यंजनार्थ है कि शहर की शुरूआत आस्था और विश्वास के साथ होती है।

(ख) भिखारियों के कटोरों का निचाट खालीपन व्यंजनार्थ है कि भिखारियों के कटोरे भीख का इन्तजार करते हैं।

(ग) जो है वह खड़ा है, बिना किसी स्तम्भ के इसका व्यंजनार्थ है कि प्रत्येक व्यक्ति में श्रद्धा, भक्ति और आस्था है।

(घ) पुराने शहर की जीभ किरकिराने लगती है-व्यंजनार्थ है कि धूल भरी आँधी चलने से चारों तरफ धूल भर जाती है जिससे हर जगह किरकिराहट अनुभव होती है।

(ङ) अपनी एक टाँग पर खड़ा है यह शहर, अपनी दूसरी टाँग बिलकुल बेखबर-व्यंजना यह है कि बनारस अपनी आध्यात्मिकता में लिप्त है, उसे आधुनिकता का ध्यान ही नहीं है

प्रश्न 8. शिल्प-सौन्दर्य स्पष्ट कीजिए।

(क) यह धीरे-धीरे होना...........समूचे शहर को बनारस के जीवन की सहजता, प्राचीन संस्कृति से प्रेम तथा व्यवस्थित जीवन का चित्रमय वर्णन हुआ है। इसके लिए कवि ने लक्षणा का सहारा लिया है।

भावानुकूल तत्सम शब्दों का प्रयोग किया गया है धीरे-धीरे' में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है

मुक्त छन्द है

भाषा में लाक्षणिकता है।

(ख) अगर ध्यान से देखो.........और आधा नहीं है

उत्तर : भाषा सरल और प्रवाहमय है।

'आधा' शब्द की पुनरावृत्ति से एक सौन्दर्य आ गया है।

गंगा के पानी में नगर की छाया पड़ती है। उससे लगता है शहर अधूरा है। 'आधा नहीं' से बनारस की संस्कृति की सम्पूर्णता की व्यंजना है।

मुक्त छन्द है। लाक्षणिकता है।

(ग) अपनी एक टाँग पर ...... बेखबर '

उत्तर : यह शहर स्वयं में मस्त और व्यस्त है। यह अपनी आस्था, मान्यता, विश्वास, श्रद्धा, भक्ति में लीन है। उसे अपनी पुरानी संस्कृति के अतिरिक्त और किसी की चिन्ता नहीं है। वह आधुनिकता से बेखबर है।

भाषा सरल और प्रवाहमय है। मुक्त छन्द है।

बनारस के जीवन की सहजता, प्राचीन संस्कृति से प्रेम तथा व्यवस्थित जीवन का चित्रमय वर्णन हुआ है। इसके लिए कवि ने लक्षणा का सहारा लिया है। बिम्ब योजना सार्थक है।

बिम्बों के प्रयोग के कारण वर्णन सजीव और चित्र जैसा बन पड़ा है।

दिशा

प्रश्न 1. बच्चे का 'उधर-उधर' कहना क्या प्रकट करता है ?

उत्तर : बच्चा केवल एक ही दिशा जानता है। वह दिशा है जिधर उसकी पतंग उड़ रही है। इसलिए वह हिमालय भी सब के यथार्थ अलग-अलग होते हैं इसी तरह बच्चे का यथार्थ भी अलग है। इससे बाल-मन की सहजता तथा स्वाभाविकता व्यक्त होती है

प्रश्न 2. 'मैं स्वीकार करूँ मैंने पहली बार जाना हिमालय किधर है" प्रस्तुत पंक्तियों का भाव स्पष्ट कीजिए।

उत्तर : भाव यह है कि कवि पहली बार बच्चे के संकेतानुसार हिमालय की दिशा को जानता है। कवि यह अनुभव करता है कि हर व्यक्ति का यथार्थ अलग होता है। बालक के सहज उत्तर को सुनकर कवि उससे कुछ सीखने की प्रेरणा देता है। वह बालक की सहजता पर आत्म-मुग्ध दिखाई देता है।

योग्यता - विस्तार

प्रश्न 1. आप बनारस के बारे में क्या जानते हैं? लिखिए।

उत्तर : बनारस गंगा के तट पर बसी एक प्रसिद्ध धार्मिक नगरी है। यहाँ बाबा विश्वनाथ का प्रसिद्ध मन्दिर है। यहाँ सभी कार्य सहज रूप में ही होते हैं। यह साहित्यकारों और कलाकारों की नगरी है। यहाँ की संस्कृति पुरानी और शाश्वत् है। यहाँ के लोग आज भी उसी संस्कृति को मानते हैं। बनारस के लोग अपने काम धीरे-धीरे, व्यवस्थित ढंग से बिना व्यग्रता दिखाये करते हैं।

प्रश्न 2. बनारस के चित्र इकट्ठे कीजिए।

उत्तर: विद्यार्थी बनारस के चित्र स्वयं एकत्र करें

प्रश्न 3. बनारस शहर की विशेषताएँ जानिए।

उत्तर : बनारस शहर की विशेषताएँ इस प्रकार से है -

1. गंगा नदी के तट पर स्थित उत्तर भारत का एक प्रसिद्ध प्राचीन नगर।

2. धार्मिक, सांस्कृतिक तथा सभ्य जीवन का उदाहरण।

3. धार्मिकता और आध्यात्मिकता की प्रबलता। मान्यता है कि बनारस शिव जी के त्रिशूल पर टिका है और पृथ्वी पर होने पर भी उससे अलग है।

4. कला और संस्कृति से समस्त भारत तथा विश्व को आकर्षित करता रहा है।

5. बनारस की रेशमी तथा जरी की साड़ियाँ विश्व प्रसिद्ध हैं।

6. शहनाई वादक उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ बनारस के ही निवासी थे। इसी प्रकार की अनेक विशेषताएँ बनारस शहर की है।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1. कविता में किस परिवेश का चित्रण हुआ है?

(क) सांस्कृतिक-सामाजिक

(ख) प्राकृतिक

(ग) आधुनिक

(घ) पुरातन

प्रश्न 2. दशाश्वमेध घाट पर पड़े अंतिम पत्थर की क्या स्थिति है?

(क) सखत हो गया है।

(ख) चमक चली गई है।

(ग) खुरदुरा हो गया है।

(घ) मुलायम हो गया है।

प्रश्न 3. घाट पर बैठे बंदरों की क्या दशा है?

(क) आँखों में विचित्र-सी नमी दिखाई देती है।

(ख) मुँह पिचकाए समाधिस्थ दिखाई देते हैं।

(ग) उछल-कूद कर तांडव कर रहे हैं।

(घ) चंचलता का भाव दिखाई दे रहा है।

प्रश्न 4. 'एक अजीब सी नमी है। पंक्ति में अलंकार है

(क) यमक अलंकार

(ख) उपमा अलंकार

(ग) श्लेष अलंकार

(घ) रूपक अलंकार

प्रश्न 5. बनारस कविता के रचनाकार कौन हैं?

(क) रघुवीर सहाय

(ख) विष्णु खरे

(ग) केदारनाथ

(घ) निराला

प्रश्न 6. किस शहर की विशेषताओं को उजागर किया जा रहा है?

(क) बनारस

(ख) उज्जैन

(ग) द्वारिका

(घ) अयोध्या

प्रश्न 7. कवि ने बनारस को किसका शहर माना है?

(क) श्रद्धा

(ख) भक्ति

(ग) आस्था

(घ) ये सभी विकल्प

प्रश्न 8. ज्योति की लपटों और धुएँ से गंगा-जल में क्या बन जाते हैं?

(क) स्तंभ

(ख) फूल के गुच्छे

(ग) गोले

(घ) छप्पर

प्रश्न 9. चारों ओर किसकी सुगंध आती है?

(क) मलयानल की

(ख) आरती की

(ग) औषधि की

(घ) जल की

निम्नलिखित पठित काव्यांशों पर आधारित दिए गए सही उत्तर वाले विकल्प चुनिए -

1. हिमालय किधर है ?

मैंने उस बच्चे से पूछा जो स्कूल के बाहर पतंग उड़ा रहा था

उधर-उधर-उसने कहा

जिधर उसकी पतंग भागी जा रही थी

मैं स्वीकार करूँ

मैंने पहली बार जाना हिमालय किधर है।

प्रश्न 1. प्रस्तुत काव्यांश के रचनाकार कौन है?

(क) केदारनाथ

(ख) रघुवीर सहाय

(ग) विष्णु खरे

(घ) निराला

प्रश्न 2. कवि ने इन पंक्तियों में क्या व्यक्त किया है?

(क) हिमालय की उदारता

(ख) बच्चों की सहजता

(ग) पतंग की उड़ान

(घ) स्कूल की महत्ता

प्रश्न 3. बच्चा स्कूल के बाहर क्या कर रहा था?

(क) पौधे लगा रहा था।

(ख) खेल रहा था।

(ग) पंतग उड़ा रहा था।

(घ) पढ़ रहा था।

प्रश्न 4. कवि ने किस आधार पर अपने प्रश्न का उत्तर जानने की कोशिश की है?

(क) सामाजिक विज्ञान के आधार पर

(ख) बाल-मनोविज्ञान के आधार पर

(ग) हिमालय की दिशा के आधार पर

(घ) ये सभी विकल्प

प्रश्न 5. 'उधर-उधर उसने कहा' पंक्ति में कौन-सा अलंकार है?

(क) पुनुरुक्ति प्रकाश अलंकार

(ख) यमक अलंकार

(ग) अतिशयोक्ति अलंकार

(घ) श्लेष अलंकार

JCERT/JAC REFERENCE BOOK

Hindi Elective (विषय सूची)

भाग-1

क्रं.सं.

विवरण

1.

देवसेना का गीत

2.

सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"

3.

सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय

4.

बनारस

5.

विष्णु खरे

6.

वसंत आया

7.

भरत राम का प्रेम पद

8.

बारहमासा

9.

विद्यापति (पद)

10.

रामचंद्रचंद्रिका

11.

घनानंद

12.

प्रेमघन की छाया-स्मृति

13.

सुमिरनी के मनके

14.

कच्चा चिट्ठा

15.

संवदिया

16.

गांधी नेहरू और यासर अराफात

17.

शेरपहचानचार हाथसाझा

18.

जहां कोई वापसी नहीं

19.

यथास्मै रोचते विश्वम

20.

दूसरा देवदास

21.

हजारी प्रसाद द्विवेदी

भाग-2

कं.सं.

विवरण

1.

सूरदास की झोंपड़ी

2.

आरोहण

3.

बिस्कोहर की माटी

4.

अपना मालवा खाऊ-उजाडू सभ्यता


JCERT/JAC Hindi Elective प्रश्न बैंक - सह - उत्तर पुस्तक (Question Bank-Cum-Answer Book)

विषय सूची

अंतरा भाग 2

पाठ

नाम

खंड

कविता खंड

पाठ-1

जयशंकर प्रसाद

(क) देवसेना का गीत

(ख) कार्नेलिया का गीत

पाठ-2

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला

(क) गीत गाने दो मुझे

(ख) सरोज - स्मृति

पाठ-3

सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय

(क) यह दीप अकेला

(ख) मैंने देखा एक बूँद

पाठ-4

केदारनाथ सिंह

(क) बनारस

(ख) दिशा

पाठ-5

विष्णु खरे

(क) एक कम

(ख) सत्य

पाठ-6

रघुबीर सहाय

(क) बसंत आया

(ख) तोड़ो

पाठ-7

तुलसीदास

(क) भरत - राम का प्रेम

(ख) पद

पाठ-8

मलिक मुहम्मद जायसी

बारहमासा

पाठ-9

विद्यापति

पद

पाठ-10

केशवदास

कवित्त / सवैया

पाठ-11

घनानंद

कवित्त / सवैया

गद्य खंड

पाठ-1

रामचन्द्र शुक्ल

प्रेमधन की छायास्मृति

पाठ-2

पंडित चंद्रधर शर्मा गुलेरी

सुमिरनी के मनके

पाठ-3

ब्रजमोहन व्यास

कच्चा चिट्ठा

पाठ-4

फणीश्वरनाथ 'रेणु'

संवदिया

पाठ-5

भीष्म साहनी

गांधी, नेहरू और यास्सेर अराफत

पाठ-6

असगर वजाहत

शेर, पहचान, चार हाथ, साझा

पाठ-7

निर्मल वर्मा

जहाँ कोई वापसी नहीं

पाठ-8

रामविलास शर्मा

यथास्मै रोचते विश्वम्

पाठ-9

ममता कालिया

दूसरा देवदास

पाठ-10

हजारी प्रसाद द्विवेदी

कुटज

अंतराल भाग - 2

पाठ-1

प्रेमचंद

सूरदास की झोपडी

पाठ-2

संजीव

आरोहण

पाठ-3

विश्वनाथ तिरपाठी

बिस्कोहर की माटी

पाठ-

प्रभाष जोशी

अपना मालवा - खाऊ- उजाडू सभ्यता में

अभिव्यक्ति और माध्यम

1

अनुच्छेद लेखन

2

कार्यालयी पत्र

3

जनसंचार माध्यम

4

संपादकीय लेखन

5

रिपोर्ट (प्रतिवेदन) लेखन

6

आलेख लेखन

7

पुस्तक समीक्षा

8

फीचर लेखन

JAC वार्षिक इंटरमीडिएट परीक्षा, 2023 प्रश्न-सह-उत्तर

Class 12 Hindi Elective (अंतरा - भाग 2)

पद्य खण्ड

आधुनिक

1.जयशंकर प्रसाद (क) देवसेना का गीत (ख) कार्नेलिया का गीत

2.सूर्यकांत त्रिपाठी निराला (क) गीत गाने दो मुझे (ख) सरोज स्मृति

3.सच्चिदानंद हीरानंद वात्सयायन अज्ञेय (क) यह दीप अकेला (ख) मैंने देखा, एक बूँद

4.केदारनाथ सिंह (क) बनारस (ख) दिशा

5.विष्णु खरे (क) एक कम (ख) सत्य

6.रघुबीर सहाय (क) वसंत आया (ख) तोड़ो

प्राचीन

7.तुलसीदास (क) भरत-राम का प्रेम (ख) पद

8.मलिक मुहम्मद जायसी (बारहमासा)

9.विद्यापति (विद्यापति के पद)

10.केशवदास (रामचंद्रचंद्रिका)

11.घनानंद (घनानंद के कवित्त / सवैया)

गद्य-खण्ड

12.रामचंद्र शुक्ल (प्रेमघन की छाया-स्मृति)

13.पंडित चंद्रधर शर्मा गुलेरी (सुमिरिनी के मनके)

14.ब्रजमोहन व्यास (कच्चा चिट्ठा)

15.फणीश्वरनाथ रेणु (संवदिया)

16.भीष्म साहनी (गांधी, नेहरू और यास्सेर अराफात)

17.असगर वजाहत (शेर, पहचान, चार हाथ, साझा)

18.निर्मल वर्मा (जहाँ कोई वापसी नहीं)

19.रामविलास शर्मा (यथास्मै रोचते विश्वम्)

20.ममता कालिया (दूसरा देवदास)

21.हज़ारी प्रसाद द्विवेदी (कुटज)

12 Hindi Antral (अंतरा)

1.प्रेमचंद = सूरदास की झोंपड़ी

2.संजीव = आरोहण

3.विश्वनाथ त्रिपाठी = बिस्कोहर की माटी

4.प्रभाष जोशी = अपना मालवा खाऊ-उजाडू सभ्यता में

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