9. विद्यापति (पद)
कवि परिचय
*जन्म काल - 1380 ई. में हुआ था।
*जन्म स्थान - उत्तरी बिहार के मिथिला क्षेत्र मधुबनी जिला
के बिस्फी गांव में।
*मृत्यु - 1460ई.।
*जन्म काल के संबंध में प्रामाणिक सूचना उपलब्ध नहीं है।
1. विद्यापति आदि काल और भक्ति काल के संधि कवि कहे जा सकते
हैं।
*उनकी पदावली के गीतों में भक्ति और श्रृंगार की गूंज है।
*हिंदी साहित्य में मध्यकाल से पहले विद्यापति की पदावली
ही जनभाषा, जन संस्कृति की अभिव्यक्ति है।
*संगीतकार, लेखक, दरबारी और राजपुरोहित ।
*शिव भक्त, लेकिन प्रेम गीत और भक्ति वैष्णव गीत भी लिखें।
उन्हें' 'मैथिल कोकिल' (मैथिली के कवि कोयल) के नाम से जाना
जाता है।
*उन पर 'गीतगोविन्द के रचनाकार' जयदेव का प्रभाव है।
*विद्यापति ने संस्कृत, अवहट्ठ, एवं मैथिली में कविता रची।
*महाकवि विद्यापति संस्कृत, अवहट्ठ, मैथिली आदि अनेक भाषाओं
के प्रकाण्ड पंडित थे।
*सभी
क्षेत्रों में विद्यापति अपनी कालजयी रचनाओं की बदौलत जाने जाते हैं।
2.
*जिन राजाओं ने महाकवि को अपने यहाँ सम्मान के साथ रखा उनमें प्रमुख है:
(क)
देवसिंह
(ख)
कीर्तिसिंह
(ग)
शिवसिंह
(घ)
पद्मसिंह
(च)
नरसिंह
(छ)
धीरसिंह
(ज)
भैरवसिंह और
(झ)
चन्द्रसिंह।
*इसके
अलावे महाकवि को इसी राजवंश की तीन रानियों का भी सलाहकार रहने का सौभाग्य प्राप्त
था। ये रानियाँ है:
(क)
लखिमादेवी (देई)
(ख)
विश्वासदेवी, और
(ग)
धीरमतिदेवी।
3.
कृतियाँ
संपादित
*संस्कृत
भूपरिक्रमा
पुरुषपरीक्षा
लिखनावली
विभागसार
विद्यापति-संस्कृत-ग्रन्थावली, भाग-1
शैवसर्वस्वसार
शैवसर्वस्वसार-प्रमाणभूत पुराण-संग्रह
दानवाक्यावली
गंगावाक्यावली
दुर्गाभक्तितरंगिणी
*अवहट्ठ भाषा में
संपादित
कीर्तिलता
कीर्तिपताका
* मैथिली भाषा में
संपादित
विद्यापति पदावली
पद (सप्रसंग व्याख्या)
पद 1
के पतिआ लए जाएत रे मोरा पिअतम पास।
हिए नहि सहए असह दुख रे भेल साओन मास ।।
एकसरि भवन पिआ बिनु रे मोहि रहलो न जाए।
सखि अनकर दुख दारुन रे जग के पतिआए।।
मोर मन हरि हर लए गेल रे अपनो मन गेल।
गोकुल तजि मधुपुर बस रे कन अपजस लेल ।।
विद्यापति कवि गाओल रे धनि धरु मन आस।
आओत तोर मन भावन रे एहि कातिक मास ।।
शब्दार्थ
के = कौन
पतिआ = पत्र, चिट्ठी
लए जाएत = ले जाए
मोरा = मेरे
पिअतम = प्रियतम, प्रेमी
हिए = हृदय में
सहए = सहना
असह = असहनीय, न सहने योग्य
भेल = हो गया
साओन = सावन
एकसरी = अकेली
पिआ= प्रिया, प्रियतम
अनकर = अन्यतम
पतिआए = विश्वास करें
मधुपुर = मथुरा
अपजस अपयश
गाओल = गाइए
ख़त = आ रहा है
मन भावन = मन को भाने वाला, प्रियतम
प्रसंग - प्रस्तुत पद मैथिल कोकिल विद्यापति द्वारा रचित
'पदावली में संगृहीत हैं। हमारी पाठ्यपुस्तक अंतरा भाग दो विद्यापति पाठ 'पद 'से ली
गई है। श्रृंगार और प्रेम के उदात्त स्वरुप का चित्रण करते हुए नायिका (राधा) के विरह
का मार्मिक वर्णन कर रहे हैं, जिसके प्रियतम (श्री कृष्ण) गोकुल छोड़कर मथुरा चल गए
हैं।
व्याख्या- कवि बताना चाहते हैं की वर्षा ऋतु आ गई है, और नायिका को
अपने नायक की याद सताने लगी है और वह अपने नायक को अपना संदेशा भेजना चाहती है।
नायिका अपनी सखी से पूछती है कि मेरा पत्र लेकर मेरे नायक
के पास कौन जाएगा, क्या ऐसा कोई नहीं है जो मेरे इस पत्र को मेरे प्रियतम कृष्ण के
पास पहुंचा दें !
इस पावन के महीने में विरह वेदना का असहनीय दुःख मेरा यह
शरीर अब नहीं झेल पा रहा है!
और इस बड़े भवन में मैं अपने प्रियतम के बिना नहीं रह पा
रही हूं!
हेसखी! मेरे इस कठोर दुःख को, संसार में ऐसा कौन मनुष्य है
जो समझ पाएगा अर्थात् मेरे इस असहनीय दुःख को इस दुनिया में कोई नहीं समझता !
मेरा मन तो श्री कृष्ण अपने साथ ही लेकर चले गए, गोकुल छोड़
अब वह मथुरा जा बसे हैं और एक बार जाने के बाद अब वे लौटकर नहीं आ रहे हैं, इससे उनकी
बदनामी भी होने लगी है!
अब कवि विद्यापति कहते हैं कि,,,, हे, राधा तुम अपने मन में
धीरज, आशा और विश्वास रखो कि तुम्हारे प्रियतम श्री कृष्ण कार्तिक के महीने तक जरूर
वापस आ जाएंगे तुम्हारे पास।
विशेष
*इस पद में नायिका की विरह वेदना का मार्मिक वर्णन किया गया
है।
*इस पद में मैथिली भाषा का सुंदर प्रयोग किया गया है।
*प्रेम के उदात्त और विलक्षण रुपो को प्रदर्शित किया गया
है।
"मोर मन' में अनुप्रास अलंकार का सुंदर प्रयोग किया
गया।
*इसमें करुण, शांत और भक्ति का अनुपम समन्वय है।
*यह एक छंद - युक्त पद है।
*कवि की भाषा लयात्मक, काव्यात्मक एवं भावानुरुप है, जिसमें
तद्भव के साथ-साथ तत्सम शब्दों का प्रयोग हुआ है।
पद 2
सखि हे, कि पुछसि अनुभव मोए।
सेह पिरिति अनुराग बखानिअ तिल तिल नूतन होए ।।
जनम अबधि हम रूप निहारल नयन न तिरपित भेल।।
सेहो मधुर बोल स्रवनहि सूनल स्रुति पथ परस न गेल।।
कत मधु-जामिनि रभस गमाओलि न बूझल कइसन केलि।।
लाख लाख जुग हिअ हिअ राखल तइओ हिअ जरनि न गेल।।
कत बिदगध जन रस अनुमोदए अनुभव काहु न पेख।।
विद्यापति कह प्रान जुड़ाइते लाखे न मीलल एक।।
शब्दार्थ
कि = क्या
पुछसि = पूछ रही हो
पिरिति = प्रीति, प्रेम
अनुराग = आसक्ति
बखानिअ = बखान करना
निहारल = देखा
तिरपित = तृप्त, संतुष्ट
भेल = हुए
सेहो = वही
स्रवनहिं = कानों में
कत = कितनी
श्रुति = श्रुति
मधु जामिनि = मधुर रात्रियां
रमस = रमण
गमाओलि = गवां दी, गुजार दी, बिता दी
कसनइ = कैसा
जुड़ाइते जुडाने के लिए
प्रसंग - प्रस्तुत पद मैथिल कोकिल विद्यापति द्वारा रचित
'पदावली में संगृहीत हैं। हमारी पाठ्यपुस्तक अंतरा भाग दो विद्यापति पाठ 'पद 'से ली
गई है। कवि ने ऐसी नायिका का वर्णन किया है जो जन्म जन्मांतर से अपने प्रियतम के रूप
का पान करके भी स्वयं को अतृप्त ही अनुभव करती है।
व्याख्या- सखियां राधा से उसके अनुभवों के बारे में पूछने लगती है तो
राधा कहती है हे सखी । मुझसे उन सुंदर पलों का अनुभव क्या पूछती हो मैं तो जितनी बार
उन पलों के बारे में बताऊंगी उतनी बार वह पल नए होते जाएंगे।
अर्थात् प्रेम को सिर्फ महसूस किया जाता है एवं प्रेम अनुभव
की वस्तु है प्रेम का वर्णन कभी नहीं किया जा सकता।
मैंने अपने पूरे जीवन में अपने प्रिय श्री कृष्ण का रूप निहारा
है उन्हें जीवन भर निहारती रही परंतु मेरी आंखों की प्यास कभी न बुझ सकी अर्थात् जो
सच्चा प्रेम होता है उसमें व्यक्ति कभी तृप्त नहीं होता हमेशा नवीन रहता है!
श्री कृष्ण की मीठी मीठी मधुर वाणी को सुनने के लिए मेरे
कान उत्सुक रहते हैं श्री कृष्ण के मुख से निकले मधुर बोल मैं अपने कानो से सुनती रहती
हूं पर मेरे कानों को कभी तृप्ति नहीं मिलती !
ना जाने कितनी मिलन की राते मैने श्री कृष्ण के बाद आनंद
मे व्यतीत कर दी परंतु आज तक न जा सके यह सब कैसे हुआ !
लाखों युगो तक मैंने प्रिय को हृदय में बसाकर रखा परंतु फिर
भी हृदय में से प्रेम की अनुभूति की आग नहीं बुझी !
प्रेम रस को पीने वाले कितने सारे व्यक्ति हैं जिन्होंने
इसका अनुभव किया है परंतु सच्चा और पूरा अनुभव कोई भी नहीं कर पाया !
कवि विद्यापति कहते हैं कि लाखों अपनी व्यक्तियों में एक
भी व्यक्ति उन्हें ऐसा नहीं मिला जिसका प्रेम का अनुभव सच्चा हो और वह तृप्त हो !
विशेष
*इस पद में नायिका की विरह वेदना का मार्मिक वर्णन किया गया
है!
*इस पद में मैथिली भाषा का सुंदर प्रयोग किया गया है।
*पथ रस' में अनुप्रास अलंकार है 'स्वनाही सुनल' में अनुप्रास
अलंकार हैं।
*इस पद में वियोग रस विद्यमान है !
*अनुप्रास अलंकार का सुंदर प्रयोग किया गया है!
"लाख-लाख',
'हिअ हिअ 'आदि में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
*यह
एक छंद युक्त पद है।
*
कवि की भाषा लयात्मक काव्यात्मक एवं भावनुरूप है।
*जिसमें
तद्भव के साथ-साथ तत्सम शब्दों का प्रयोग हुआ है।
पद
3
कुसुमित
कानन हेरि कमलमुखि, मूदि रहए दु नयान। कोकिल-कलरव, मधुकर-धुनि सुनि, कर देइ झाँपइ कान।।
माधब, सुन-सुन बचन हमारा। तुअ गुन सुंदरि अति भेल दूबरि- गुनि-गुनि प्रेम तोहारा ।।
धरनी धरि धनि कत बेरि बइसइ, पुनि तहि उठइ न पारा। कातर दिठि करि, चौदिस हेरि हेरि नयन
गरए जल-धारा।। तोहर बिरह दिन छन-छन तनु छिन- चौदसि-चाँद-समान। भनइ विद्यापति सिबसिंह
नर-पति लखिमादेइ-रमान।।
शब्दार्थ
कुसमित = फूलों से लदे
कानन = जंगल, वन
हेरी = देखकर
कमलमुखी = हे कमल जैसे मुख वाली
नयान = नेत्र, नयन
कोकिल = कोयल
मधुकर = भौरा
सुंदरि = नायिका
गुनि - गुनि = सोच सोचकर
धनि। = स्त्री
धारि = पकड़कर
कातर = दुखी
चौदिस = चारों दिशाएं
रमान = रमण
चौदसि = चतुर्दशी
जलधारा अश्रुधारा
प्रसंग - प्रस्तुत पद मैथिल कोकिल विद्यापति द्वारा रचित 'पदावली
में संगृहीत हैं। हमारी पाठ्यपुस्तक अंतरा भाग दो विद्यापति पाठ 'पद 'से ली गई है।
कवि ने नायक के वियोग में संतृप्त ऐसी विरही का चित्रण किया है। जिसे नायक के
वियोग में प्राकृति के आनंददायक दृश्य भी कष्टदायक प्रतीत होते हैं।
व्याख्या- राधा की सहेली कृष्ण के सामने राधा की विरह अवस्था का वर्णन
कर रही है -
कमल के जैसी मुख वाली सुंदर राधा जब खिले हुए फूलों को
देखती है तो वह अपनी आंखें बंद कर लेती है।
और कोयल की आवाज को सुनकर और भवरे की गूंज को सुनकर राधा
अपने कान ढक लेती है !
अर्थात् ये सब जो मिलन के प्रतीक है इन सब को देखकर राधा का
दुःख और बढ़ जाता है!
हे श्रीकृष्ण। तुम हमारी बात सुनो, तुम्हारे प्रेम में
तुम्हें याद कर कर के राधा की हालत बहुत खराब हो चुकी है और राधा बहुत कमजोर हो गई
है और इतनी कमजोर हो गई है कि यदि वह एक बार धरती पर बैठ जाती है तो उससे उठा भी
नहीं जाता !
और वह अपने दुःख से चारों ओर देखती है, कि शायद तुम कहीं से
आ जाओ लेकिन जब वह तुम्हें कहीं नहीं पाती तो वह निराश होकर रोने लगती है।
तुमसे दूर होकर वह हर पल इतनी कमजोर होती जा रही है जैसा की
चौदस का चांद प्रतिदिन निरंतर क्षीण होता (घटता) रहता है। विद्यापति अपने
आश्रयदाता राजा शिवसिंह विरह के प्रभाव को जानते हैं और वह अपनी पत्नी लक्ष्मीदेवी
को विरह का कष्ट नहीं देना चाहते है, इसीलिए वे अपनी पत्नी के साथ भ्रमण करते हैं।
विशेष-
* इस पद में नायिका की विरह वेदना का मार्मिक वर्णन किया
गया है।
*नायिका वियोग अवस्था में अपनी सुध बुध खो बैठी है यह
विप्रलंभ श्रृंगार का मर्मस्पर्शी उदाहरण है।
*इस पद में मैथिली भाषा का सुंदर प्रयोग किया गया है।
*"धरनी धरी धनी" में अनुप्रास अलंकार का सुंदर
प्रयोग किया गया है।
**कमलमुखी' में रूपक अलंकार है।
*यहां नायिका की दशाओं का मानवीकरण किया गया है।
इस पद में वियोग रस विद्यमान है।
*अनुप्रास अलंकार का सुंदर प्रयोग किया गया है।
* यह एक छंद-युक्त पद है!
*कवि की भाषा लयात्मक, काव्यात्मक, एवं भावानुरूप है।
प्रश्न अभ्यास
1. प्रियतमा के दुख के क्या कारण हैं?
उत्तर - प्रियतमा के दुख के ये कारण निहित हैं-
(क) प्रियतमा का प्रियतम कार्यवश परदेश गया हुआ है। वह
प्रियतम के साथ को लालयित है परन्तु उसकी अनुपस्थिति उसे पीड़ा दे रही है।
(ख) सावन मास आरंभ हो गया है। ऐसे में अकेले रहना प्रियतमा
के लिए संभव नहीं है। वर्षा का आगमन उसे गहन दुख देता है।
(ग) वह अकेली है। ऐसे में घर उसे काटने को दौड़ता है।
(घ) प्रियतम उसे परदेश में जाकर भूल गया है। अतः यह स्थिति
उसे कष्टप्रद लग रही है।
2. कवि 'नयन न तिरपित भेल' के माध्यम से
विरहिणी नायिका की किस मनोदशा को व्यक्त करना चाहता है?
उत्तर - कवि के अनुसार नायिका अपने प्रियतम के रूप को निहारते रहना
चाहती है। वह जितना प्रियतम को देखती है, उसे कम ही लगता है। इस प्रकार वह अतृप्त
बनी रहती है। कवि नायिका की इसी अतृप्त दशा का वर्णन इन पंक्तियों के माध्यम से
करता है। वह अपने प्रियतम से इतना प्रेम करती है कि उसकी सूरत को सदैव निहारते
रहना चाहती है। उसका सुंदर रूप उसे अपने मोहपाश में बाँधे हुए है। वह जितना उसे
देखती है, उतनी ही अधिक इच्छा उसे देखने की होती है। नायिका के अनुसार वह अपनी
स्थिति का वर्णन भी नहीं कर सकती। जो वस्तु स्थिर हो उसका तो वर्णन किया जा सकता
है परन्तु उसके प्रियतम का सलौना रूप पल-पल बदलता रहता है और हर बार उसका आकर्षण
बढ़ जाता है। बस यही कारण है कि नायिका तृप्त नहीं हो पाती।
3. नायिका के प्राण तृप्त न हो पाने के कारण
अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर - नायिका अपने प्रेमी से अतुलनीय प्रेम करती है। वह जितना इस
प्रेम रूपी सागर में डूबती जाती है, उतना अपने प्रेमी की दीवानी होती जाती है। वह
अपने प्रियतम के रूप को निहारते रहना चाहती है। वह जितना उसे देखती है, उसकी
तृप्ति शांत होने के स्थान पर बढ़ती चली जाती है। इसका कारण वह प्रेम को मानती है।
उसके अनुसार उसका प्रेम जितना पुराना हो रहा है, उसमें नवीनता का समावेश उतना ही
अधिक हो रहा है। दोनों में प्रेम के प्रति प्रथम दिवस जैसा ही आकर्षण है। अतः उसे
तृप्ति का अनुभव ही नहीं होता है। उसके अनुसार प्रेम ऐसा भाव है, जिसके विषय में
वर्णन कर पाना संभव नहीं है। इस संसार में कोई भी प्रेम को स्पष्ट रूप से व्यक्त
करने में समर्थ नहीं है। प्रेमी का साथ उसे कुछ समय के लिए सांत्वना तो देता है
परन्तु तृप्ति का भाव नहीं देता। उसके प्राण अतृप्त से प्रेमी के आस-पास ही रहना चाहते
हैं।
4. 'सेह फिरत अनुराग बखानिअ तिल-तिल नूतन
होए' से लेखक का क्या आशय है?
उत्तर - प्रस्तुत पंक्तियाँ प्रेम के विषय में वर्णन कर रहीं हैं।
इसके अनुसार प्रेम ऐसा भाव है, जिसके विषय में कुछ कहना या व्यक्त करना संभव नहीं
है। प्रेम में पड़ा हुआ व्यक्ति इस प्रकार दीवाना हो जाता है कि वह जितना स्वयं को
निकालना चाहता है, उतना ही डूबता चला जाता है। यह पुराना होने पर भी नए के समान
लगता है क्योंकि प्रेमियों का एक दूसरे के प्रति आकर्षण तथा प्रेम प्रागढ़ होता
जाता है। कवि के अनुसार प्रेम कोई स्थिर चीज़ नहीं है, जिसमें कोई परिवर्तन न हो।
स्थिर वस्तु का बखान करना सरल है परन्तु यह ऐसा भाव है, जो समय के साथ-साथ पल-पल
बदलता रहता है। यही कारण है कि इसका वर्णन करना कठिन हो जाता है और इसमें नवीनता
बनी रहती है।
5. कोयल और भौरों के कलरव का नायिका पर क्या
प्रभाव पड़ता है?
उत्तर - कोयल और भौरों के कलरव का नायिका पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता
है। कोयल का मधूर स्वर और भौरों का गुंजन नायिका को अपने प्रेमी की याद दिला देती
है। वह अपने कानों को बंद कर इनके कलरव सुनने से बचना चाहती है परन्तु ये आवाजें
उसे फिर भी सता रही हैं। परदेश गए प्रियतम की याद उसे सताने लगती है। विरहग्नि उसे
वैसे ही बहुत जलाए हुए हैं। ये कलरव उसे और भी जला रहा है।
6. कातर दृष्टि से चारों तरफ़ प्रियतम को
ढूँढ़ने की मनोदशा को कवि ने किन शब्दों में व्यक्त किया है?
उत्तर - कवि नायिका की कातर दृष्टि से चारों तरफ़ प्रियतम
को ढूँढने की मनोदश को इन पंक्तियों में वर्णित करता है-
कातर दिठि करि, चौदिस हेरि-हेरि
नयन गरए जल धारा।
अर्थात् कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी जिस प्रकार क्षीण होती है,
वैसी ही नायिका का शरीर भी अपने प्रेमी की याद में क्षीण हो रहा है। उसकी आँखों से
हर समय जलधारा बहती रहती है। अर्थात् वह हर वक्त प्रियतम की याद में रोया करती है।
वह इसी प्रयास में इधर-उधर अपने प्रियतम को तलाशती है कि शायद उसे वह कहीं मिल
जाए।
7. निम्नलिखित शब्दों के तत्सम रूप लिखिए-
'तिरपित, छन, बिदगध, निहारल, पिरित, साओन, अपजस, छिन,
तोहारा, कातिक
उत्तर -
तिरपित - संतुष्टि
छन- क्षण
बिदगध - विदग्ध
निहारल- निहारना
पिरित - प्रीति
साओन- सावन
अपजस- अपयश
छिन- क्षीण
तोहारा- तुम्हारा
कातिक- कार्तिक
8. निम्नलिखित का आशय स्पष्ट कीजिए-
(क) एकसरि भवन पिआ बिनु रे मोहि रहलो न जाए।
सखि अनकर दुख दारुन रे जग के पतिआए।
(ख) जनम अवधि हम रूप निहारल नयन न तिरपित भेल।।
सेहो मधुर बोल स्रवनहि सूनल स्रुति पथ परस न गेल।।
(ग) कुसुमित कानन हेरि कमलमुखि, मूदि रहए दु नयान।
कोकिल-कलरव, मधुकर-धुनि सुनि, कर देइ झाँपइ कान।
उत्तर -
(क) प्रस्तुत पद में नायिका का पति परदेश गया हुआ है। वह घर
में अकेली है। पति से अलग होने का विरह उसे इतना सताता है कि वह अपनी सखी से कहती
है कि हे सखी! पति के बिना मुझसे घर में अकेला नहीं रहा जाता है। वह आगे कहती है
कि हे सखी! इस संसार में ऐसा कौन-सा मनुष्य विद्यमान है, जो किसी अन्य के कठोर
दुःख पर विश्वास करे। अर्थात् कोई अन्य किसी दूसरे के दुख को गहनता से नहीं समझ
पाता है।
(ख) प्रस्तुत पंक्तियों में कवि प्रेमिका की अतुप्ति का
वर्णन करते हैं। अपने प्रेमी के साथ उसे बहुत समय हो गया है। परन्तु अब तक वह
तृप्त नहीं हो पायी है। वह जन्मों से अपने प्रियतम को निहारती रही है परन्तु हर
बार उसे और देखने का ही मन करता है। नेत्रों में अतृप्ति का भाव विद्यमान है। इसी
तरह वह उसकी मधुर वाणी को लंबी अवधी से सुनती आ रही है। उसके बाद भी उसके बोल नए
से ही लगते हैं। उसके रूप तथा वाणी के अंदर नवीनता का समावेश है, जिस कारण मैं
तृप्त ही नहीं हो पाती हूँ।
(ग) प्रस्तुत पंक्तियों में प्रेमिका की हृदय की दशा का
वर्णन किया गया है। कवि के अनुसार नायिका को ऐसा प्राकृतिक वातावरण भाता नहीं है,
जो संयोग कालीन हो। वह स्वयं वियोग की अवस्था में है। उसका प्रियतम उसे छोड़कर
बाहर गया हुआ है। वसंत के कारण वन विकसित हो रहा है। नायिका को यह दृश्य विरहग्नि
में जला रहा है। अतः कमल के समान सुंदर मुख वाली राधा दोनों हाथों से अपनी आँखों
को बंद कर देती है। इसी तरह जब कोयल कूकने लगती है और भंवरे फूलों पर गुंजान करने
लगते हैं, तो वह अपने कानों को बंद कर लेती है क्योंकि उनका मधुर स्वर उसे आहत
करता है। उसे रह-रहकर अपने प्रियतम का स्मरण हो आता है।
वस्तुनिष्ठ प्रश्न
1 प्रश्न- विद्यापति का जन्म मृत्यु का सही विकल्प
चुनिए?
(क) 1380-1560
(ख) 1380 1460
(ग) 1807-1938
(घ) 1880 1960
2 प्रश्न- विद्यापति का जन्म दिए गए उचित विकल्प
का चयन करें?
(क) मधुबनी बिहार
(ख) वाराणसी उत्तर प्रदेश
(ग) आगरा
(घ) वृंदावन
3 प्रश्न- विद्यापति किन दो काल के संधि कवि
थे?
(क) रीतिकाल - आधुनिक काल
(ख) आदिकाल - रीतिकाल
(ग) भक्ति काल रीतिकाल
(घ) आदिकाल - भक्ति काल
4. विद्यापति की कौन सी रचना अवहट्ठ भाषा में
लिखी गई है?
(क) पदावली
(ख) दुरगातरंगिनी
(ग) कीर्तिलता, कीर्तिपताका
(घ) इनमें से सभी
5 प्रश्न- विद्यापति की पदावली किस भाषा में
मिलती है?
(क) संस्कृत
(ख) मैथिली
(ग) अवहट्ट
(घ) अपभ्रंश
6 प्रश्न- विद्यापति की रचनाओं का उचित चयन
करें?
(क) कीर्तिलता
(ख) कीर्तिपताका
(ग) पदावली
(घ) उपरोक्त सभी
7 प्रश्न- विद्यापति के पद सर्वाधिक किस
क्षेत्र में गाए जाते हैं?
(क) उत्तरांचल
(ख) दक्षिण भारत
(ग) पूर्वांचल
(घ) उपरोक्त सभी
8 प्रश्न- किस ऋतु में नायिका को असहाय दुख
होता है?
(क) आषाढ़
(ख) सावन
(ग) भादो
(घ) कार्तिक
9 प्रश्न- पद में नायिका वास्तव में कौन है?
(क) सीता
(ख) मीरा
(ग) राधा
(घ) गोपी
10 प्रश्न- श्री कृष्ण गोकुल से कहा चले गए
थे?
(क) वृंदावन
(ख) आगरा
(ग) अयोध्या
(घ) मथुरा
11 प्रश्न- प्रथम पद में किस मास का उल्लेख है?
(क) सावन
(ख)
भादो
(ग)
अगहन
(घ)
पूस
12 प्रश्न- प्रथम पद में 'मधुपुर' किसे कहा गया है?
(क)
गोकुल
(ख)
वृंदावन
(ग)
आगरा
(घ) मथुरा
13 प्रश्न- प्रथम पद में नायिका को प्रियतम के किस माह में आने की आशा
है?
(क)
सावन
(ख)
भादो
(ग)
कार्तिक
(घ)
पूस
14 प्रश्न- पाठ्यपुस्तक में विद्यापति के पद की भाषा क्या है?
(क)
संस्कृत
(ख)
अपभ्रंस
(ग)
अवधि
(घ) मैथिली
15 प्रश्न- कुसुमित कानन, कोकिल कलरव, धरनी धनि धनि शब्दों में कौन
सा अलंकार प्रयोग किया गया है?
(क)
रूपक
(ख)
उपमा
(ग) अनुप्रास
(घ)
श्लेष अलंकार
16. नायिका कृष्ण के पास क्या भेजना चाहती है?
(क)
माखन
(ख)
बांसुरी
(ग) पत्र चिट्ठी
(घ)
गाय
17. नायिका बड़े भवन में किसके बिना नहीं रह पा रही है?
(क)
सखियों
(ख)
माता पिता
(ग) प्रियतम
(घ)
अपना घर
18 नायिका का मन कौन अपने साथ ले गए हैं?
(क)
कंस
(ख) कृष्ण
(ग)
सखियां
(घ)
बांसुरी
19. कृष्ण गोकुल छोड़कर कहां चले गए थे?
(क)
वृंदावन
(ख) मथुरा
(ग)
द्वारिका
(घ)
सुदामापुरी
20. कवि विद्यापति नायिका से क्या रखने को कहते हैं?
(क)
धन
(ख) धीरज
(ग)
सम्मान
(घ)
प्रेम
JCERT/JAC REFERENCE BOOK
Hindi Elective (विषय सूची)
भाग-1 | |
क्रं.सं. | विवरण |
1. | |
2. | |
3. | |
4. | |
5. | |
6. | |
7. | |
8. | |
9. | |
10. | |
11. | |
12. | |
13. | |
14. | |
15. | |
16. | |
17. | |
18. | |
19. | |
20. | |
21. | |
भाग-2 | |
कं.सं. | विवरण |
1. | |
2. | |
3. | |
4. |
JCERT/JAC Hindi Elective प्रश्न बैंक - सह - उत्तर पुस्तक (Question Bank-Cum-Answer Book)
विषय सूची
अंतरा भाग 2 | ||
पाठ | नाम | खंड |
कविता खंड | ||
पाठ-1 | जयशंकर प्रसाद | |
पाठ-2 | सूर्यकांत त्रिपाठी निराला | |
पाठ-3 | सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय | |
पाठ-4 | केदारनाथ सिंह | |
पाठ-5 | विष्णु खरे | |
पाठ-6 | रघुबीर सहाय | |
पाठ-7 | तुलसीदास | |
पाठ-8 | मलिक मुहम्मद जायसी | |
पाठ-9 | विद्यापति | |
पाठ-10 | केशवदास | |
पाठ-11 | घनानंद | |
गद्य खंड | ||
पाठ-1 | रामचन्द्र शुक्ल | |
पाठ-2 | पंडित चंद्रधर शर्मा गुलेरी | |
पाठ-3 | ब्रजमोहन व्यास | |
पाठ-4 | फणीश्वरनाथ 'रेणु' | |
पाठ-5 | भीष्म साहनी | |
पाठ-6 | असगर वजाहत | |
पाठ-7 | निर्मल वर्मा | |
पाठ-8 | रामविलास शर्मा | |
पाठ-9 | ममता कालिया | |
पाठ-10 | हजारी प्रसाद द्विवेदी | |
अंतराल भाग - 2 | ||
पाठ-1 | प्रेमचंद | |
पाठ-2 | संजीव | |
पाठ-3 | विश्वनाथ तिरपाठी | |
पाठ- | प्रभाष जोशी | |
अभिव्यक्ति और माध्यम | ||
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Class 12 Hindi Elective (अंतरा - भाग 2)
पद्य खण्ड
आधुनिक
1.जयशंकर प्रसाद (क) देवसेना का गीत (ख) कार्नेलिया का गीत
2.सूर्यकांत त्रिपाठी निराला (क) गीत गाने दो मुझे (ख) सरोज स्मृति
3.सच्चिदानंद हीरानंद वात्सयायन अज्ञेय (क) यह दीप अकेला (ख) मैंने देखा, एक बूँद
4.केदारनाथ सिंह (क) बनारस (ख) दिशा
5.विष्णु खरे (क) एक कम (ख) सत्य
6.रघुबीर सहाय (क) वसंत आया (ख) तोड़ो
प्राचीन
7.तुलसीदास (क) भरत-राम का प्रेम (ख) पद
8.मलिक मुहम्मद जायसी (बारहमासा)
11.घनानंद (घनानंद के कवित्त / सवैया)
गद्य-खण्ड
12.रामचंद्र शुक्ल (प्रेमघन की छाया-स्मृति)
13.पंडित चंद्रधर शर्मा गुलेरी (सुमिरिनी के मनके)
14.ब्रजमोहन व्यास (कच्चा चिट्ठा)
16.भीष्म साहनी (गांधी, नेहरू और यास्सेर अराफात)
17.असगर वजाहत (शेर, पहचान, चार हाथ, साझा)
18.निर्मल वर्मा (जहाँ कोई वापसी नहीं)
19.रामविलास शर्मा (यथास्मै रोचते विश्वम्)
21.हज़ारी प्रसाद द्विवेदी (कुटज)
12 Hindi Antral (अंतरा)
1.प्रेमचंद = सूरदास की झोंपड़ी