12th Hindi Elective घनानंद JCERT/JAC Reference Book

12th Hindi Elective घनानंद JCERT/JAC Reference Book

 12th Hindi Elective घनानंद JCERT/JAC Reference Book

11. घनानंद

जीवन-परिचय- (सन् 1673-1760)

I. अनुमान से इनका जन्मकाल सन् 1673 के आसपास है। इनके जन्मस्थान और जनक के नाम अज्ञात हैं।

॥. आरंभिक जीवन दिल्ली तथा उत्तर जीवन वृंदावन में बीता। साहित्य और संगीत दोनों में इनकी असाधारण गति थी।

III. रीतिकाल के रीतिमुक्त या स्वच्छंद काव्यधारा के प्रतिनिधि कवि घनानंद दिल्ली के बादशाह मुहम्मद शाह के मीर मुंशी थे।

IV. कहते हैं कि सुजान नाम की एक स्त्री से उनका अटूट प्रेम था। उसी के प्रेम के कारण घनानंद बादशाह के दरबार में बे-अदबी कर बैठे, जिससे नाराज़ होकर बादशाह ने उन्हें दरबार से निकाल दिया। साथ ही घनानंद को सुजान की बेवफ़ाई ने भी निराश और दुखी किया। वे वृंदावन चले गए और निंबार्क संप्रदाय में दीक्षित होकर भक्त के रूप में जीवन - निर्वाह करने लगे। परंतु वे सुजान को भूल नहीं पाए और अपनी रचनाओं में सुजान के नाम का प्रतीकात्मक प्रयोग करते हुए काव्य-रचना करते रहे।

साहित्यिक- परिचय

I. घनानंद मूलतः प्रेम की पीड़ा के कवि हैं। वियोग वर्णन में उनका मन अधिक रमा है। उनकी रचनाओं में प्रेम का अत्यंत गंभीर, निर्मल आवेगमय, और व्याकुल कर देने वाला उदात्त रूप व्यक्त हुआ है, इसीलिए घनानंद को साक्षात रसमूर्ति कहा गया है।

॥. घनानंद के काव्य में भाव की जैसी गहराई है, वैसी ही कला की बारीकी भी। उनकी कविता में लाक्षणिकता, वक्रोक्ति, वाविदग्धता के साथ अलंकारों का कुशल प्रयोग भी मिलता है। उनकी काव्य-कला में सहजता के साथ वचन वक्रता का अद्भुत मेल है।

।II. भाषा- घनानंद की भाषा परिष्कृत और साहित्यिक ब्रजभाषा है। उसमें कोमलता और मधुरता का चरम विकास दिखाई देता है। भाषा की व्यंजकता बढ़ाने में वे अत्यंत कुशल थे। वस्तुतः वे ब्रजभाषा प्रवीण ही नहीं सर्जनात्मक काव्यभाषा के प्रणेता भी थे।

IV. रचनाएँ - सुजान सागर, विरह लीला, कृपाकंड निबंध, रसकेलि वल्ली आदि प्रमुख हैं।

पाठ का सार

प्रस्तुत पुस्तक में कवि घनानंद के दो कवित्त तथा दो सवैये दिए जा रहे हैं। प्रथम कवित्त में कवि ने अपनी प्रेमिका सुजान के दर्शन की अभिलाषा प्रकट करते हुए कहा है कि सुजान के दर्शन के लिए ही ये प्राण अब तक अटके हुए हैं।

दूसरे कवित्त में कवि नायिका से कहता है कि तुम कब तक मिलने में आनाकानी करती रहोगी। मुझमें और तुम में एक प्रकार की होड़-सी चल रही है। तुम कब तक कानों में रुई डालकर बैठी रहोगी, कभी तो मेरी पुकार तुम्हारे कानों तक पहुँचेगी ही। प्रथम सवैया में कवि ने विरह और मिलन की अवस्थाओं की तुलना की है। प्रेमी कहता है कि संयोग के समय में तो हम तुम्हें देखकर जीवित रहते थे, अब वियोग में अत्यंत व्याकुल रहते हैं। अंतिम सवैया में कवि कहता है कि मेरे प्रेमपत्र को प्रियतमा ने पढ़ा भी नहीं और फाड़कर टुकड़े-टुकड़े कर दिया।

कवित्त

बहुत दिनान को अवधि आसपास परे,

खरे अरबरनि भरे हैं उठि जान को।

कहि कहि आवन छबीले मनभावन को, गहि गहि राखति ही दै दै समान को।

झूठी बतियानि की पत्यानि तें उदास ह्वै कै,

अब ना घिरत घन आनंद निदान को।

अधर लगे हैं आनि करि कै पयान प्रान,

चाहत चलन सँदेसो लै सुजान को ।।

शब्दार्थः

दिनान = दिनों।

खरे = अत्यधिक।

अरबरनि = घबराना।

जान = सुजान।

छबीले सुन्दरता।

मनभावन को = प्रिय (श्रीकृष्ण) के।

गहि-गहि पकड़-पकड़ कर

सन्मान = आदर।

बतियानि बातें।

पत्यानि = विश्वास करना।

ह्वै कै= होकर।

आनि = आना।

पयान = प्रयान (चलना) ।

सुजान = घनानंद के प्रेयसी का नाम।

प्रसंग - प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक 'अंतरा' भाग 2 में संकलित रीतिकालीन कवि घनानंद द्वारा रचित कवित्त है। इस कवित्त में कवि घनानंद ने अपने हृदय की व्याकुलता को व्यक्त किया है।

व्याख्या-कवि घनानंद अपनी प्रेमिका सुजान से मिलना चाहते थे और उनके मन में बार-बार सुजान को देखने का ख़याल आ रहा है। बस इसी विषय में कवि घनानंद ने यहाँ पर चर्चा की है। कवि घनानंद अपनी प्रेमिका सुजान से दूर है और उससे दूर होने के कारण उनके मन में बार-बार उनसे मिलने की इच्छा जाग रही है और उनकी प्रेमिका सुजान उनके पत्र का भी जवाब नहीं दे रही है। जिस वजह से कवि घनानंद बहुत ज्यादा उदास है।

वे कहते हैं कि कितने दिनों से मैं सुजान के आने का प्रतीक्षा कर रहा हूँ। उसके पास कितना पत्र भेज चुका हूँ। उसने मेरे सारे पत्रों को अपने पास रख दिया है। मगर वह आने का विचार ही नहीं कर रही है। लगता है कि वह मुझसे मिलना ही नहीं चाहती है या फिर वह अपने द्वारा किए गए वादे को भूल गई है। उसने मुझसे वादा किया था कि वह मुझसे मिलने जरूर आएगी। मगर उसका यह झूठा वादा भी अब मुझे रुला रहा है। कवि के लिए दुख का विषय यह है कि जो बादल उसे कभी सुख प्रदान किया करते थे वह भी उसके दुख की घड़ी में उसका साथ नहीं दे रहे हैं। बादल भी अब घिर नहीं रहे हैं क्योंकि घिरे हुए बादल से कवि घनानंद को सुख की प्राप्ति होती है। मगर वह बादल भी कवि को आनंद नहीं दे रहा है।

(2) आनाकानी आरसी निहारिबो करौगे कौलौं ? कहा मी चकित दसा त्यों न दीठि डोलिहै? मौन हू सौं देखिहौं कितेक पन पालिहौ जू, कूकभरी मूकता बुलाय आप बोलि है। जान घनआनंद यों मोहिं तुम्हें पैज परी, जानियैगो टेक टरें कौन धौ मलोलिहै।। रुई दिए रहौगे कहाँ लौ बहरायबे की ? कबहूँ तौ मेरियै पुकार कान खोलि है।

शब्दार्थः

कौलौं = कब तक।

मो = मेरी।

दीठि = दृष्टि।

कितेक = कितना।

पन = प्रण।

पलिहौ = पालन-पोषण कर।

कुकभरी = पुकार भरी

पैज = होड़, द्वन्द्व।

जनियैगो = समझ में आयेगी।

टेक टरें = प्रणाम करना पर।

मलोलिहै = मन में मलाल होने।

बहरैबे की = बहरे की।

कब तक तौ = कभी तो।

मेरियै = मेरा।

कान खोली है – कान खोलेगी।

प्रसंग - प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक 'अंतरा' भाग 2 में संकलित रीतिकालीन कवि घनानंद द्वारा रचित कवित्त है। इस कवित्त में कवि घनानंद ने अपनी प्रेमिका सुजान के निष्ठुर मन की घोर आलोचना की है, क्योंकि कवि को अब अपनी प्रियतमा सुजान पर गुस्सा आ रहा था। क्योंकि सुजान ने कवि द्वारा भेजे गए एक भी पत्र का जवाब नहीं दिया था।

व्याख्या-घनानंद कहते हैं अपनी प्रेयसी को संबोधित करते हुए कहते हैं कि तुमने अपने हाथ में जो आरसी पहनी हुई है, जो अँगूठी तुमने अपने हाथों में पहना हुआ है, उसे ही तुम बार-बार देख रही हो। उसे देखने का तुम्हारे पास समय है। मगर मुझे देखने का तुम्हारे पास थोड़ा सा भी वक्त नहीं। आखिर कब तक तुम मुझसे नहीं मिलोगी और कब तक न मिलने का बहाना करती रहोगी। क्या मैं तुम्हारे लिए कोई मायने नहीं रखता। कवि अब मौन होने का फैसला करते हैं और कहते हैं कि अब मैं तब तक मौन रहूँगा जब तक तुम अपना, मुझसे न मिलने का प्रण नहीं तोड़ोगी। क्योंकि मेरा मौन ही अब तुम्हें मुझसे मिलने और बात करने के लिए मजबूर कर देगा। ऐसा कहते हुए कवि मौन होने का फैसला करते हैं कवि आगे कहते हैं कि मुझे अब पता चल गया है कि तुमने खुद में और मुझ में एक जंग छेड़ी है कि कौन हम दोनों में से पहले बातचीत करेगा। तुमने तो अपने कानों में रुई डाल रखी है। जिस कारण तुम्हें मेरी पुकार नहीं सुनाई दे रही है। जिस दिन तुम अपने कानों से वह रूई हटाओगी, उस दिन तुम्हें इस मौन मन के पीछे छिपे हुए दर्द का एहसास होगा और तब तुम मुझसे बात करोगी।

सवैया

1. तब तौ छबि पीवत जीवत हे, अब सोचत लोचन जात जरे।

हित-तोष के तोष सु प्रान पले, बिललात महा दुख दोष भरे।

घनआनंद मीत सुजान बिना, सब ही सुख साज-समाज टरे।

तब हार पहार से लागत हे, अब आनि के बीच पहार परे।

शब्दार्थ

तब = संयोग के समय।

छबी = सौन्दर्य ।

पीवत = पीते थे

जीव हेत = जीवित रहने वाले।

अब = वियोग काल में।

लोचन = आँख ।

जात जरे = जले जाते हैं।

हित = प्रेम।

तोष = संतोष ।

बिललात = व्याकुल।

मीत सुजान = प्रिया सुजान।

सुखसाज समाज = सभी प्रकार के सुख।

पहार = पहाड़।

आनि कै बीच = मिलन के बीच

सन्दर्भ : प्रस्तुत सवैया घनानंद द्वारा रचित है जिसे 'सवैया' शीर्षक से हमारी पाठ्य-पुस्तक 'अंतरा भाग-2' में संकलित किया गया है।

प्रसंग : विरही कवि तब (संयोगकाल) और अब (वियोगकाल) की तुलना कर रहा है। तब क्या स्थिति थी और अब क्या स्थिति हो गई है।

व्याख्या : संयोगकाल में मेरे ये नेत्र प्रिया के सौन्दर्य दर्शन से तृप्त होकर ही जीवित रहते थे और अब वियोग काल में विरह दुख से व्यथित होकर जल रहे हैं। कहाँ तो मेरे इन प्राणों को आपके प्रेम का पोषण मिला और अब ये प्राण वियोग व्यथित होकर आपके प्रेम को पाने के लिए लालायित हैं और अनेक प्रकार के दुख-दोष से युक्त हो रहे हैं। घनानंद कवि कहते हैं कि हे प्रिया सुजान, आपके बिना इस वियोग काल में मुझे कुछ भी अच्छा नहीं लगता, मेरे सारे सुख समाप्त हो गए हैं, कुछ भी मुझे सुहाता नहीं।

संयोग काल में तो हम दोनों को गले में पहने हार का भी व्यवधान खलता था। तुम्हारे (सुजान) गले में पड़ा वह हार भी मुझे पहाड़ जैसा लगता था क्योंकि हमारे मिलन में वह बाधक बनता था। पर अब इस वियोग काल में तो हम दोनों एक-दूसरे से इतनी दूर हो गए हैं कि हमारे बीच में पहाड़ आ गए हैं। अर्थात् हमारे मिलने में अनेक बाधाएँ और अवरोध आ गये हैं।

विशेष :

'हार पहार से लागत हे' में उपमा एवं अतिशयोक्ति अलंकार है।

ब्रजभाषा का प्रयोग हुआ है। भाषा में लाक्षणिकता है। सवैया छन्द है। वियोग श्रृंगार रस है।

2. पूरन प्रेम को मंत्र महा पन, जा मधि सोधि सुधारि है लेख्यौ।

ताही के चारु चरित्र बिचित्रनि, यों पचिकै रचि राखि बिसेख्यौ।

ऐसो हियो हितपत्र पवित्र जु, आन-कथा न कहूँ अवरेख्यौ।

सो घनआनंद जान अजान लौं, टूक कियौ पर बाँचि न देख्यौ

शब्दार्थ :

जा मधि = जिसमें।

सोधि = खोज कर।

यौ = जो।

ताही के = उनके।

चारु = सुन्दर।

बिचित्रनि = विचित्र।

रची राखी = सजा रखी है।

हियो हितपत्र = हृदय रूपी प्रेमपत्र।

आन-कथा = अन्य की कथा या अन्य बात

अवरेख्यौ = अंकित न था लिखा नहीं गया था।

अजान लौं = अनजान की तरह।

टूक कियौ = टुकड़े-टुकड़े कर दिया।

बिसेख्यौ = विशेष रूप से।

जान = सुजान।

बाँचि न देख्यौ = पढ़कर भी नहीं देखा।

सन्दर्भ : प्रस्तुत सवैया घनानन्द द्वारा रचित है जिसे हमारी पाठ्य-पुस्तक 'अन्तरा भाग- 2' में 'सवैया' शीर्षक से संकलित किया गया है।

प्रसंग : घनानन्द ने इस सवैया में अपने प्रिय सुजान को यह उपालंभ दिया है कि उसने मेरे हृदय को तोड़कर उचित नहीं किया।

व्याख्या : हे प्रिया सुजान। मैंने अपने हृदय को प्रेम के मंत्र की प्रतिज्ञा से युक्त कर रखा था और इसमें तुम्हारे उज्ज्वल क्रियाकलापों और चरित्र को अंकित कर तुम्हारी यादों के मधुर चित्रों से सुसज्जित कर रखा था। मेरा यह हृदयरूपी प्रेम पत्र ऐसा था कि इसमें सर्वत्र तुम (प्रिय सुजान) ही अंकित थी। किसी अन्य की कोई बात इसमें रंचमात्र भी न थी। घनानन्द कवि कहते हैं कि मुझे इस बात की वेदना है और शिकायत भी है कि मेरा हृदयरूपी प्रेमपत्र तुम्हारे ही चरित्र सेअंकित था पर तुमने अनजान की भाँति उसे बिना पढ़े ही फाड़कर टुकड़े-टुकड़े करके फेंक दिया। अर्थात् तुमने मेरे हृदय के प्रेम को जाने बिना ही उसे तोड़ दिया।

विशेष :

प्रिया सुजान की निष्ठुरता का वर्णन है। वियोग श्रृंगार रस है।

मधुर ब्रजभाषा का प्रयोग हुआ है।

सवैया छन्द में यह रचना प्रस्तुत है।

'जान अजान लौ में विरोधाभास और यमक अलंकार है।

प्रश्न- अभ्यास

1. कवि ने ' चाहत चलन ये संदेसो ले सुजान को क्यों कहा है?

उत्तर - इस पंक्ति में नायक (कवि घनानंद) की विरह-विह्वलता का चित्रण है। कवि की प्रेमिका सुजान ने निरन्तर उनकी उपेक्षा की है। विरह की प्रबलता के कारण उनकी जीने की इच्छा ही समाप्त हो गई है। उनके प्राण अब शरीर से निकलना चाहते हैं। बस, अपनी प्रियतमा का संदेश सुनने की अभिलाषा में ही प्राण अभी तक अटके हुये हैं।

2. कवि मौन होकर प्रेमिका के कौन से प्रण पालन को देखना चाहता है ?

उत्तर-कवि मौन होकर भी प्रेमिका से प्रेमव्रत का पालन करने की अपेक्षा करता है और यह देखना चाहता है कि वह अपने प्रेम प्रण का पालन करती है या नहीं। वह कवि की दशा देखकर कुछ बोलती है अथवा चुप ही बनी रहती है।

3. कवि ने किस प्रकार की पुकार से 'कान खोलि है' की बात कही है?

उत्तर - प्रेमिका सुजान घनानंद की करुण पुकार को अनसुना कर रही है पर उन्हें विश्वास है कि मेरी यह करुण पुकार कभी न कभी तो सुजान के कानों में पड़ेगी ही। सुजान कब तक कानों में रुई लगाए रहेगी, कभी न कभी तो घनानंद की करुण पुकार को सनेगी ही. यही कवि कहना चाहता है।

4. प्रथम सवैये के आधार पर बताइए कि प्राण पहले कैसे पल रहे थे और अब क्यों दुखी हैं?

उत्तर - घनानंद ने प्रथम सवैये में यह बताया है कि पहले तो मेरे प्राण प्रेम के पोषण से पल रहे थे किन्तु अब प्रिय (सुजान) ने निष्ठुरता दिखाकर प्रेम का वह सहारा छीन लिया है। मेरे प्राण इसी कारण दुखी हैं और पुनः उसी प्रेम-पोषण को पाने के लिए विकल हो रहे हैं।

5. घनानंद की रचनाओं की भाषिक विशेषताओं को अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर -घनानंद ने अपनी रचनाएँ ब्रजभाषा में लिखी हैं। उनकी भाषा में लक्षणा और व्यंजना शब्द-शक्ति की प्रधानता है। भाषा में मुहावरों का प्रयोग भी वे करते हैं और उसमें अलंकार विधान भी है। उनकी जैसी साफ-सुथरी ब्रजभाषा बहुत कम कवियों की है। भाषा के लक्षक और व्यंजक बल का पूरा पता उन्हें था। वे ब्रजभाषा मर्मज्ञ थे। कहीं-कहीं शब्दों को तुकबन्दी के आग्रह से उन्होंने तोड़ा- मरोड़ा भी है और कुछ नवीन शब्दों का प्रयोग भी अपनी भाषा में किया है।

6. निम्नलिखित पंक्तियों में प्रयुक्त अलंकारों की पहचान कीजिए।

(क) कहि कहि आवन छबीले मनभावन को गहि गहि राखति ही हैं हैं सनमान को।

(ख) कूक भरी मूकता बुलाय आप बोलि है।

(ग) अब न घिरत घन आनंद निदान को।

उत्तर :

(क) कहि-कहि, गहि-गहि, दै-दै में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है।

(ख) कूकभरी मूकता में विरोधाभास है।

(ग) घनआनँद में श्लेष अलंकार है-कवि का नाम, आनन्द प्रदान करने वाले बादल।

7. निम्नलिखित का आशय स्पष्ट कीजिए-

(क) बहुत दिनान को अवधि आसपास परे / खरे अरबरनि भरे हैं उठि जान को

(ख) मौन हू सौं देखिौ कितेक पन पालिहौ जू / कूकभरी मूकता बुलाय आप बोलिहै।

(ग) तब तौ छबि पीवत जीवत हे, अब सोचन लोचन जात जरे।

(घ) सो घनआनंद जान अजान लौं टूक कियौ पर वाँचि न देख्यौ।

(ड.) तब हार पहार से लागत है, अब बीच में आन पहार परे।

उत्तर :

(क) प्रियतम ने आने की जो अवधि दी थी उसके पास आते ही मेरे ये प्राण विकल हो जाते हैं, इनमें खलबली मचने लगती है।

(ख) मैं मौन रहकर देखेंगा कि आप प्रेम के कितने प्रणों का पालन करती हैं। मेरी मौन पुकार आपकी उदासीनता को नष्ट कर देगी और आप मेरे प्रेम को स्वीकार कर ही लेंगी।

(ग) संयोगकाल के समय ये नेत्र सुजान के सौन्दर्यरूपी अमृत का पान करके जीवित रहते थे और अब वियोगकाल में शोकमग्न होकर जले जा रहे हैं। इन नेत्रों को अब प्रिय के दर्शन नहीं होते।

(घ) मेरे इस हृदयरूपी प्रेमपत्र पर प्रिय की स्मतियों के चित्र ही लिखे (अंकित) थे पर दःख की बात है कि प्रिय ने अनजान की भाँति बिना पढ़े ही इस हृदयरूपी प्रेमपत्र को फाड़कर टुकड़े-टुकड़े करके फेंक दिया।

(ङ) संयोगकाल में प्रेयसी के गले में पड़ा हुआ हार भी पहाड़ जैसा (मिलन में बाधक) लगता था किन्तु अब तो वियोग में प्रिय इतनी दर चला गया है कि हम दोनों के बीच में कई पहाड (मिलन में बाधाएँ)

8. संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए-

(क) झूठी बतियानि की पत्यानि तें उदास है,

व्याख्या-आपकी झूठी बातों का अब इन प्राणों को विश्वास नहीं रहा है। ये निराश और उदास रहते हैं और अब इन्हें प्रसन्नता नहीं होती। ये प्राण आपके दर्शन को इतने व्याकुल हैं कि अधरों तक आ पहुँचे हैं और आपको अपना यह सन्देश सुनाना चाहते हैं कि यदि आपने शीघ्र ही इनकी करुण पुकार सुनकर अपने दर्शन न दिए तो ये प्राण अब शरीर में नहीं रहेंगे। अर्थात् ये आपके दर्शन की लालसा में ही शरीर में टिके हुए हैं अन्यथा कब के निकल गए होते। व्यंजना यह है कि यदि आप मुझे जीवित देखना चाहती हैं तो शीघ्र ही अपने दर्शन मुझे दें।

(ख) जान घनआनंद यों मोहिं तुम्हे पैज परी

(ग) तब तौ छबि पीवत जीवत हे

(घ) ऐसो हियो हित पत्र पवित्र

सवैया पाठ्यपुस्तक प्रश्न और उत्तर

प्रश्न 1. घनानंद की रचनाओं की भाषिक विशेषताओं को अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर : घनानंद ने अपनी रचनाएँ ब्रजभाषा में लिखी हैं। उनकी भाषा में लक्षणा और व्यंजना शब्द-शक्ति की प्रधानता है। भाषा में मुहावरों का प्रयोग भी वे करते हैं और उसमें अलंकार विधान भी है। उनकी जैसी साफ-सुथरी ब्रजभाषा बहुत कम कवियों की है। भाषा के लक्षक और व्यंजक बल का पूरा पता उन्हें था। वे ब्रजभाषा मर्मज्ञ थे। कहीं-कहीं शब्दों को तुकबन्दी के आग्रह से उन्होंने तोड़ा- मरोड़ा भी है और कुछ नवीन शब्दों का प्रयोग भी अपनी भाषा में किया है।

प्रश्न 2. सन्दर्भ सहित व्याख्या कीजिए -

(क) झूठी बतियानि की पत्यानि तें उदास है, कै . चाहत चलन ये संदेसो लै सुजान को।

(ख) जान घनआनंद यों मोहि तुम्हे पैज परी कबहूँ तो मेरियै पुकार कान खोलि है।

(ग) तब तो छबि पीवत जीवत है....... बिललात महा दुख दोष भरे।

(घ) ऐसों हियो हित पत्र पवित्र टूक कियौ पर बाँचि न देख्यौ।

उत्तर :

(क) संदर्भ- ये पंक्तियाँ घनानंद द्वारा रचित हैं कवि सुजान के प्रेम में व्याकुल है वह उनसे मिलना चाहता है। पंक्ति में कवि की विरह की झलक दिख रही है।

व्याख्या-कवि सुजान से यह कहना चाहता है कि आपकी झूठी बातों का अब इन प्राणों को विश्वास नहीं रहा है। ये निराश और उदास रहते हैं और अब इन्हें प्रसन्नता नहीं होती। ये प्राण आपके दर्शन को इतने व्याकुल हैं कि अधरों तक आ पहुँचे हैं और आपको अपना यह सन्देश सुनाना चाहते हैं कि यदि आपने शीघ्र ही इनकी करुण पुकार सुनकर अपने दर्शन न दिए तो ये प्राण अब शरीर में नहीं रहेंगे। अर्थात् ये आपके दर्शन की लालसा में ही शरीर में टिके हुए हैं अन्यथा कब के निकल गए होते। व्यंजना यह है कि यदि आप मुझे जीवित देखना चाहती हैं तो शीघ्र ही मुझे दर्शन दे दें।

(ख) घनानंद द्वारा रचित इस छन्द में कवि सुजान से कहता है कि अब मेरे और आपके बीच में इस बात पर बहस छिड़ गई है कि देखें कौन अपने प्रण से डिगता है, कौन हार मानता है। मैंने यह प्रण किया कि कभी-न- कभी तो अपनी करुण पुकार आपके कानों तक पहुँचाऊँगा ही, भले ही आप कानों में रुई दिए रहें और आपने शायद यह प्रण ठाना है कि आप मेरी पुकार को कभी नहीं सुनेंगी। देखें कौन विजयी होता है, किसका प्रण पूरा होता है?

(ग) इस पंक्ति में घनानंद ने तब (संयोगकाल) और अब (वियोगकाल) की तुलना प्रस्तुत की है। संयोगकाल में नायक के नेत्र प्रियतम के सौन्दर्यरूपी अमृत का निरन्तर पान करते थे, किन्तु अब वियोगकाल में प्रिय के दर्शन से वंचित होकर व्याकुल हैं और शोक से जल रहे हैं। कहाँ तो ये प्राण संयोगकाल में प्रेम के पोषण से पले और कहाँ अब वियोगकाल में उस प्रेम के लिए तरस रहे हैं।

(घ) घनानन्द अपनी प्रियतमा सुजान से शिकायत कर रहे हैं कि मेरा हृदयरूपी प्रेमपत्र आपके ही सुन्दर चरित्रों (कथाओं) से अंकित था जिस पर किसी अन्य का नामोनिशान न था। ऐसा पवित्र था मेरा हृदयरूपी प्रेमपत्र; पर आपने उसे बिना पढ़े ही टुकड़े-टुकड़े करके फेंक दिया, उसे पढ़ने तक का कष्ट नहीं किया। अर्थात् आपने बिना सोचे-समझे मेरा हृदय तोड़कर अच्छा नहीं किया। कम से कम मेरा हृदय को पढ़ तो लिया होता, यही शिकायत मुझे आपसे है।

अतिलघुत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1. कवि घनानंद की प्रेमिका कौन थी?

उत्तरः कवि घनानंद की प्रेमिका सुजान थी।

प्रश्न 2. कवि घनानंद के प्राण किसमें अटके हुए हैं?

उत्तर: कवि घनानंद के प्राण प्रेमिका के दर्शन की लालसा में अटके हुए हैं।

प्रश्न 3. संयोग काल में नायिका के गले का हार उसे कैसा लगता था?

उत्तरः संयोग काल में नायिका के गले का हार उसे पहाड़ जैसा लगता था।

प्रश्न 4. प्रिय सुजान की निष्ठुरता का वर्णन कवि ने किस कवित्त में किया है?

उत्तरः प्रिय सुजान की निष्ठुरता का वर्णन कवि ने दूसरे सवैया में किया है।

प्रश्न 5. कवि का हृदयरूपी प्रेम पत्र किसने बिना बाँचे ही टुकड़े-टुकड़े करके फेंक दिया?

उत्तरः कवि का हृदयरूपी प्रेम पत्र प्रिया सुजान ने बिना बाँचे ही टुकड़े-टुकड़े करके फेंक दिया।

प्रश्न 6. संकलित कविता में कवि घनानंद के कितने कवित्त और सवैये दिए हैं?

उत्तरः इस कवित्त में कवि घनानंद के 2 कवित्त और 2 सवैये दिए हैं।

प्रश्न 7. प्रथम सवैये में कवि ने किसका वर्णन किया है?

उत्तरः प्रथम सवैये में कवि ने संयोग और वियोग की स्थितियों का वर्णन किया है।

प्रश्न 8. दोनों कवित्तों में किस अलंकार का प्रयोग किया गया है?

उत्तरः दोनों कवित्तों में अनुप्रास तथा श्लेष अलंकार का सुंदर प्रयोग है।

प्रश्न 9. कवि प्रथम कवित्त किसको संबोधित करके लिखते हैं?

उत्तरः प्रथम कवित्त मैं कवि ने अपनी प्रेमिका सुजान को संबोधित करके लिखा है।

प्रश्न 10. कवि क्यों दुःखी हैं?

उत्तरः उनकी प्रेमिका ने कहा था वह उनसे मिलने आयेगी लेकिन वह कोई कोई जवाब नहीं देती है और न ही अपने आने का कोई संदेश देती है।

प्रश्न 11. कवि घनानंद को ऐसा क्यों लगता है कि उनके प्राण निकलने वाले हैं?

उत्तरः कवि धनानंद को अपने प्रेम का कोई इलाज नहीं दिखाई देता है इसलिए उनको ऐसा लगता है कि उनके प्राण निकलने वाले हैं।

प्रश्न 12. दोनों कवित्त में विशेष क्या है?

उत्तरः प्रथम कवित्त में करुण रस और दूसरे कवित्त में श्रृंगार रस है। दोनों में ही ब्रजभाषा का प्रयोग है।

प्रश्न 13. कवि मौन होकर क्या देखना चाहता है?

उत्तरः कवि मौन होकर देखना चाहते हैं कि उनकी प्रेमिका कब तक के संदेश का जवाब नहीं देगी। कवि को विश्वास है कि उनका मौन ही उनके प्रेमिका की चुप्पी का जवाब है।

प्रश्न 14. दूसरे सवैये में कवि ने किसका वर्णन किया है?

उत्तरः दूसरे सवैये में कवि को यह दुःख है कि उसने अपने हृदय के सभी प्रेमभाव से लिखे पत्र, जो प्रेमिका को भेजे थे, वह उसने पढ़े नहीं और टुकड़े-टुकड़े करके फेंक दिए।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

(1) धनानंद किस काल के कवि है?

(क) भक्तिकाल

(ख) आधुनिकाल

(ग) रीतिकाल

(घ) आदिकाल

(2) धनानंद के प्रेमिका का नाम बताएँ?

(क) सुजान

(ख) मेनका

(ग) (क) एवं (ख) दोनों

(घ) इनमें से कोई नहीं

(3) घनानंद की काव्य भाषा क्या है?

(क) खड़ी बोली

(ख) अवधी

(ग) ब्रजभाषा

(घ) बघेली

(4) कवि प्रथम 'कवित्त' किसको संबोधित करता है?

(क) प्रेमिका (सुजान) को

(ख) सखा को

(ग) पिता को

(घ) माता को

(5) 'सुजान सागर' किसकी रचना है?

(क) घनानंद

(ख) केशवदास

(ग) विद्यापति

(घ) तुलसीदास

(6) घनानंद किसे प्रेम पत्र लिखते हैं?

(क) अप्सरा को

(ख) देवी को

(ग) दोस्त को

(घ) सुजान को

(7) संकलित कविता में कवि घनानंद के कितने कवित्त और सवैये दिए हैं?

(क) दो कवित्त दो सवैया

(ख) चार कवित्त तीन सवैया

(ग) तीन कवित्त तीन सवैया

(घ) इनमें से कोई नहीं

(8) प्रथम सवैये में किसका वर्णन किया है।

(क) संयोग और वियोग का

(ख) वियोग का

(ग) संयोग का

(घ) इनमें से कोई नहीं

(9) घनानंद के प्राण किसमें अटके हुए हैं?

(क) सुजान के दर्शन में

(ख) घर जाने के लिए

(ग) पत्र लिखने के लिए

(घ) इनमें से सभी

(10) निम्न में से कौन सी रचना धनानंद की नहीं है?

(क) सुजान सागर

(ख) रस केलि बल्ली

(ग) विरह लीला

(घ) रशिक प्रिया

JCERT/JAC REFERENCE BOOK

Hindi Elective (विषय सूची)

भाग-1

क्रं.सं.

विवरण

1.

देवसेना का गीत

2.

सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"

3.

सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय

4.

बनारस

5.

विष्णु खरे

6.

वसंत आया

7.

भरत राम का प्रेम पद

8.

बारहमासा

9.

विद्यापति (पद)

10.

रामचंद्रचंद्रिका

11.

घनानंद

12.

प्रेमघन की छाया-स्मृति

13.

सुमिरनी के मनके

14.

कच्चा चिट्ठा

15.

संवदिया

16.

गांधी नेहरू और यासर अराफात

17.

शेरपहचानचार हाथसाझा

18.

जहां कोई वापसी नहीं

19.

यथास्मै रोचते विश्वम

20.

दूसरा देवदास

21.

हजारी प्रसाद द्विवेदी

भाग-2

कं.सं.

विवरण

1.

सूरदास की झोंपड़ी

2.

आरोहण

3.

बिस्कोहर की माटी

4.

अपना मालवा खाऊ-उजाडू सभ्यता


JCERT/JAC Hindi Elective प्रश्न बैंक - सह - उत्तर पुस्तक (Question Bank-Cum-Answer Book)

विषय सूची

अंतरा भाग 2

पाठ

नाम

खंड

कविता खंड

पाठ-1

जयशंकर प्रसाद

(क) देवसेना का गीत

(ख) कार्नेलिया का गीत

पाठ-2

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला

(क) गीत गाने दो मुझे

(ख) सरोज - स्मृति

पाठ-3

सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय

(क) यह दीप अकेला

(ख) मैंने देखा एक बूँद

पाठ-4

केदारनाथ सिंह

(क) बनारस

(ख) दिशा

पाठ-5

विष्णु खरे

(क) एक कम

(ख) सत्य

पाठ-6

रघुबीर सहाय

(क) बसंत आया

(ख) तोड़ो

पाठ-7

तुलसीदास

(क) भरत - राम का प्रेम

(ख) पद

पाठ-8

मलिक मुहम्मद जायसी

बारहमासा

पाठ-9

विद्यापति

पद

पाठ-10

केशवदास

कवित्त / सवैया

पाठ-11

घनानंद

कवित्त / सवैया

गद्य खंड

पाठ-1

रामचन्द्र शुक्ल

प्रेमधन की छायास्मृति

पाठ-2

पंडित चंद्रधर शर्मा गुलेरी

सुमिरनी के मनके

पाठ-3

ब्रजमोहन व्यास

कच्चा चिट्ठा

पाठ-4

फणीश्वरनाथ 'रेणु'

संवदिया

पाठ-5

भीष्म साहनी

गांधी, नेहरू और यास्सेर अराफत

पाठ-6

असगर वजाहत

शेर, पहचान, चार हाथ, साझा

पाठ-7

निर्मल वर्मा

जहाँ कोई वापसी नहीं

पाठ-8

रामविलास शर्मा

यथास्मै रोचते विश्वम्

पाठ-9

ममता कालिया

दूसरा देवदास

पाठ-10

हजारी प्रसाद द्विवेदी

कुटज

अंतराल भाग - 2

पाठ-1

प्रेमचंद

सूरदास की झोपडी

पाठ-2

संजीव

आरोहण

पाठ-3

विश्वनाथ तिरपाठी

बिस्कोहर की माटी

पाठ-

प्रभाष जोशी

अपना मालवा - खाऊ- उजाडू सभ्यता में

अभिव्यक्ति और माध्यम

1

अनुच्छेद लेखन

2

कार्यालयी पत्र

3

जनसंचार माध्यम

4

संपादकीय लेखन

5

रिपोर्ट (प्रतिवेदन) लेखन

6

आलेख लेखन

7

पुस्तक समीक्षा

8

फीचर लेखन

JAC वार्षिक इंटरमीडिएट परीक्षा, 2023 प्रश्न-सह-उत्तर

Class 12 Hindi Elective (अंतरा - भाग 2)

पद्य खण्ड

आधुनिक

1.जयशंकर प्रसाद (क) देवसेना का गीत (ख) कार्नेलिया का गीत

2.सूर्यकांत त्रिपाठी निराला (क) गीत गाने दो मुझे (ख) सरोज स्मृति

3.सच्चिदानंद हीरानंद वात्सयायन अज्ञेय (क) यह दीप अकेला (ख) मैंने देखा, एक बूँद

4.केदारनाथ सिंह (क) बनारस (ख) दिशा

5.विष्णु खरे (क) एक कम (ख) सत्य

6.रघुबीर सहाय (क) वसंत आया (ख) तोड़ो

प्राचीन

7.तुलसीदास (क) भरत-राम का प्रेम (ख) पद

8.मलिक मुहम्मद जायसी (बारहमासा)

9.विद्यापति (विद्यापति के पद)

10.केशवदास (रामचंद्रचंद्रिका)

11.घनानंद (घनानंद के कवित्त / सवैया)

गद्य-खण्ड

12.रामचंद्र शुक्ल (प्रेमघन की छाया-स्मृति)

13.पंडित चंद्रधर शर्मा गुलेरी (सुमिरिनी के मनके)

14.ब्रजमोहन व्यास (कच्चा चिट्ठा)

15.फणीश्वरनाथ रेणु (संवदिया)

16.भीष्म साहनी (गांधी, नेहरू और यास्सेर अराफात)

17.असगर वजाहत (शेर, पहचान, चार हाथ, साझा)

18.निर्मल वर्मा (जहाँ कोई वापसी नहीं)

19.रामविलास शर्मा (यथास्मै रोचते विश्वम्)

20.ममता कालिया (दूसरा देवदास)

21.हज़ारी प्रसाद द्विवेदी (कुटज)

12 Hindi Antral (अंतरा)

1.प्रेमचंद = सूरदास की झोंपड़ी

2.संजीव = आरोहण

3.विश्वनाथ त्रिपाठी = बिस्कोहर की माटी

4.प्रभाष जोशी = अपना मालवा खाऊ-उजाडू सभ्यता में

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