12th Sanskrit 14. कथं शब्दानुशासनम् कर्तव्यम् 1 JCERT/JAC Reference Book

12th Sanskrit 14. कथं शब्दानुशासनम् कर्तव्यम् 1 JCERT/JAC Reference Book

12th Sanskrit 14. कथं शब्दानुशासनम् कर्तव्यम् 1 JCERT/JAC Reference Book

14. कथं शब्दानुशासनम् कर्तव्यम् (शब्दों का अनुशासन (प्रयोग) कैसे करना चाहिए)

अधिगमः प्रतिफलानि:-

1. विद्यार्थी सरलसंस्कृतभाषया कक्षोपयोगीनि वाक्यानि वक्तुं समर्थः अस्ति।

(विद्यार्थी सरल संस्कृत भाषा में कक्षा में उपयोगी वाक्यों को बोलने में समर्थ हैं।)

2. कक्षातः बहि दैनन्दिन-जीवनोपयोगीनि वाक्यानि वदति।

(कक्षा से बाहर प्रतिदिन जीवन उपयोगी वाक्यों को बोलते हैं।)

3. अपठितगद्यांशं पठित्वा तदाधारितप्रश्नानामुत्तरप्रदाने सक्षमः अस्ति।

(अपठित गद्यांश को पढ़कर उन पर आधारित प्रश्नों के उत्तर देने में सक्षम हैं।)

महर्षि पतञ्जलिः

12th Sanskrit 14. कथं शब्दानुशासनम् कर्तव्यम् 1 JCERT/JAC Reference Book

पाठ परिचय -

यह पाठ महर्षि पतञ्जलि विरचित महाभाष्य से उद्धृत है। इसमें शब्दों के अनुशासन का वर्णन किया गया है। इस पाठ में वर्णन किया गया है कि हमें कैसे शब्दों का उपदेश करना चाहिए। अर्थात् केवल शब्दों का उपदेश करना चाहिए अथवा अपशब्दों का अथवा दोनों का। इसी का समाधान प्रस्तुत पाठ में पौराणिक आख्यानक के माध्यम से किया गया है।

पाठांश:-

शब्दानुशासनमिदानीं कर्तव्यम् । किं शब्दोपदेशः कर्तव्यः, आहोस्विदपशब्दोपदेशः, आहोस्विदुभयोपदेश इति ?

अन्यतरोपदेशेन कृतं स्यात्। तद्यथा-भक्ष्यनियमेनाभक्ष्यप्रतिषेधो गम्यते। 'पञ्च पञ्चनखा भक्ष्याः' इत्युक्ते गम्यत एतत् अतोऽन्येऽभक्ष्या इति ॥ अभक्ष्यप्रतिषेधेन च भक्ष्यनियमः। तद्यथा- 'अभक्ष्यो ग्राम्यकुक्कुटः अभक्ष्यो ग्राम्यसूकरः' इत्युक्ते गम्यत एतत्-आरण्यो भक्ष्य इति।।

एवमिहापि।

यदि तावच्छब्दोपदेशः क्रियते,

गौरित्येतस्मिन्नुपदिष्टे गम्यत एतत्

गाव्यादयोऽपशब्दा इति।

अथाप्यपशब्दोपदेशः क्रियेत,

गाव्यादिषूपदिष्टेषु गम्यत

एतत्-गौरित्येष शब्द इति ॥

किं पुनरत्र ज्यायः ?

लघुत्वाच्छबदोपदेशः। लघीयाञ्छब्दोपदेशः। गरीयानपशब्दोपदेशः। एकैकस्य शब्दस्य बहवोऽपभ्रंशाः। तद्यथा-गौरित्यस्य शब्दस्य गावी गोणी गोता गोपोतलिका-इत्येवमादयोऽपभ्रंशाः।

12th Sanskrit 14. कथं शब्दानुशासनम् कर्तव्यम् 1 JCERT/JAC Reference Book

पदार्थाः-

इदानीम् - अब

कर्त्तव्यम् - करना चाहिए

शब्दोपदेशः - शब्द का उपदेश, शब्द कथन

अपशब्दोपदेशः - अपशब्द कथन अपशब्द का उपदेश,

अन्यतरः - एक

तद्यथा - जैसे, जिस तरह से

पञ्चनखा - पांच नख वाले

भक्ष्यम् - खाने योग्य

उक्ते - कहने पर

अरण्यः - वन के

क्रियेत - करना चाहिए

गम्यत - जाना जाता है

ज्यायः - श्रेष्ठ

लघु - छोटा

गरीयान् - बड़े

व्याकरणकार्यम् -

शब्दानुशासनमिदानीं - शब्द + अनुशासनम् + इदानीम् (दीर्घ सन्धि, व्यंजन सन्धि)

कर्तव्यम् - कृ + तव्यत्, कृ धातु, तव्यत् प्रत्यय

शब्दोपदेशः - शब्द + उपदेशः (गुण संधि)

भक्ष्यः - भक्ष ण्यत्, भक्ष धातु, ण्यत् प्रत्यय

अभक्ष्यः - न भक्ष्यः, नञ् तत्पुरुष समास

इत्युक्ते - इति + उक्ते (यण् संधि)

अतोऽन्येऽभक्ष्या - अतः + अन्ये + भक्ष्या

एवमिहापि - एवम् + इह + अपि (व्यञ्जन, दीर्घ सन्धि)

तावच्छब्दोपदेशः - तावत् + शब्द उपदेशः (व्यञ्जन, गुण संधि)

गौरित्येतस्मिन्नुपदिष्टे - गौ + इति + तस्मिन् + उपदिष्टे

गाव्यादयोऽपशब्दा – गावी + आदि + अपशब्दा

अथाप्यपशब्दोपदेशः - अथ + अपि +अपशब्दः + उपदेशः

गाव्यादिषूपदिष्टेषु - गावी + आदिषु + उपदिष्टेषु

गौरित्येष - गौः + इति + एष

लघुत्वाच्छबदोपदेशः - लघुत्वात् + शब्दः + उपदेशः

लघीयाञ्छब्दोपदेशः - लघीया + शब्दः + उपदेशः

गरीयानपशब्दोपदेशः - गरीयान् + शब्दः + उपदेशः

एकैक - एक + एक

बहवोऽपभ्रंशाः - बहव + अपभ्रंशाः

पुनरत्र - पुनः + अत्र (विसर्ग सन्धि)

गौरित्यस्य - गौ + इत्यस्य

इत्येवमादयोऽपभ्रंशाः - इति + एव + आदि + अपभ्रंशाः

अनुवादः/भावार्थ:-

अब शब्दों का अनुशासन करना चाहिए। क्या शब्दों का उपदेश करना चाहिए, या अपशब्दों का उपदेश करना चाहिए, या दोनों का उपदेश करना चाहिए?

किसी एक का उपदेश करना चाहिए। जैसे भक्ष्य (खाने योग्य का नियम करने से अभक्ष्य (नहीं खाने योग्य) का निषेध स्वतः जान लिया जाता है।

पंचनख वाले प्राणी भक्ष्य हैं। ऐसा कहने से यह यह जाना जाता है कि इससे दूसरे अन्य (अलग) सभी प्राणी अभक्ष्य हैं। ऐसा कहने से अभक्ष्य पदार्थ का निषेध करने से भक्ष्य पदार्थ का नियम हो जाता है (अर्थात्भक्ष्य की जानकारी हमें मिल जाती है)। जैसे गांव का मुर्गा और गांव का सूअर अभक्ष्य है ऐसा कहने पर यह जानकारी हो जाती है जंगल का मुर्गा और जंगल के सूअर भक्ष्य हैं।

ऐसे ही यहां भी इसीलिए तो शब्दों का उपदेश करना चाहिए। गौ शब्द के कहने पर यह जानकारी मिलती है कि गावी आदि अपशब्द है।

उसी प्रकार अपशब्द भी उपदेश करना चाहिए। गावी आदि अपशब्द है तो गौ शब्द की जानकारी हमें मिल जाती है। गौ यह शब्द है। गौ मूल शब्द है।

फिर यहां श्रेष्ठ (उचित) क्या है?

लघु होने से शब्द का उपदेश करना चाहिए। शब्दों का उपदेश लघु (छोटा) है। और अपशब्दों का उपदेश बड़ा है। एक एक शब्द के बहुत सारे अपभ्रंश हैं। जैसे गौ इस शब्द के गावी, गोणी गोता और गोपतलिका आदि अपभ्रंश हैं।

पाठांशाधारिताः प्रश्नाः-

1. एकपदेन उत्तरत-

क. इदानीं किं कर्त्तव्यम्?

उत्तर - शब्दानुशासनम्

ख. ग्राम्यसूकरः भक्ष्यः अभक्ष्यः वा?

उत्तर - अभक्ष्यः

ग. आरण्योकुक्कुटः भक्ष्यः अभक्ष्यः वा?

उत्तर - भक्ष्यः

घ. कः प्राणीः भक्ष्यः?

उत्तर - पञचनखा

2. पूर्णवाक्येन उत्तरत-

क. प्रस्तुतोऽयं पाठः 'कथ-शब्दानुशासनं कर्त्तव्यम्' कुतः संकलितः?

उत्तर - प्रस्तुतोऽयं पाठः कथं शब्दानुशासनं कर्त्तव्यम् पतञजलिः विरचितः महाभाष्येन संकलितः।

ख. गौरित्यस्य शब्दस्य किम् अपभ्रंशा?

उत्तर – गौरित्यस्यशब्दस्यगावी, गोणी, गोता, गोपोतलिका इत्येवमादयोऽपभ्रंशाः।

3. बहुविकल्पीयाः प्रश्नाः-

1. 'कर्त्तव्य' इति पदे कः प्रत्ययः?

क. क्त

ख. क्त्वा

ग. तव्यत्

घ. ल्यप्

ii. 'भक्ष्य' इति पदे कः धातुः ?

क. गम्

ख. भक्ष

ग. पठ्

घ. भू

iii. 'स्यात्' इति पदे कः लकारः?

क. विधिलिङ्

ख. लट्

ग. लोट्

घ लृट्

iv. 'एकैक' इति पदस्य संधि-विच्छेद किम् अस्ति?

क. ए + कैक

ख. एक + एक

ग. ऐ + केक

घ. एकै + क

पाठांश:-

इष्टान्वाख्यानं खल्वपि भवति । गौरश्वः अथैतस्मिन्शब्दोपदेशे सति किं शब्दानां प्रतिपत्तौ प्रतिपदपाठः कर्तव्यः पुरुषो हस्ती शकुनिर्मृगो ब्राह्मण इत्येवमादयः शब्दाः पठितव्या?

नेत्याह। अनभ्युपाय एष शब्दानां प्रतिपत्तौ प्रतिपदपाठः। एवं हि श्रूयते "बृहस्पतिरिन्द्राय दिव्यं वर्षसहस्रं प्रतिपदोक्तानां शब्दानां शब्दपारायणं प्रोवाच नान्तं जगाम" ॥ बृहस्पतिश्च

प्रवक्ता, इन्द्रश्चाध्येता, दिव्यं वर्षसहस्रमध्ययनकालः न चान्तं जगाम ।

किं पुनरद्यत्वे ? यः सर्वथा चिरं जीवति वर्षशतं जीवति ।

पदार्थाः-

आख्यानम् - कथन्

पठितव्या- पढ़ना चाहिए

प्रतिपतौ - जानने पर

श्रूयते - सुना जाता है

वर्षसहस्रं - हजार बर्षों

प्रोवाच - कहा

जगाम - हुआ

प्रवक्ता - बोलने वाला

अध्येता - सुनने वाला

चिरं - लंबी आयु

वर्षशतं - सौ वर्ष

जीवति - जीता है

व्याकरणकार्यम्-

इष्टान्वाख्यानं – इष्ट + अनुवाख्यानम् (दीर्घ सन्धि)

इष्ट - इष् + क्त इष् धातु, क्त प्रत्यय

खल्वपि - खलु + अपि (यण् संधि)

अथैतस्मिन्शब्दोपदेशे - अथ + एतस्मिन् + शब्द + उपदेशे (वृद्धि, व्यञ्जन, गुण सन्धि)

शब्दानां - षष्ठी विभक्ति, बहुवचन

गौरश्वः - गौः + अश्वः (रत्व सन्धि,)

शकुनिर्मृगो - शकुनिः + मृगः (रत्व सन्धि).

इत्येवमादयः - इति + एवम् + अदयः (यण्, दीर्घ सन्धि)

पठितव्या – पठ् + तव्यत्, पठ् धातु, तव्यत् प्रत्यय

अनभ्युपाय - अनभ्य + उपाय

श्रूयते - श्रू धातु, लट् लकार, प्रथम पुरुष, एकवचन

प्रोवाच - प्र उपसर्ग, वच् धातु

नान्तं – न अन्तम् नञ् तत्पुरुष समास

वर्षसहस्रमध्ययनकालः - वर्षम् + सहस्रम् + अध्ययनकालः (व्यंजन संधि)

चान्तं – च + अन्तम् (दीर्घ सन्धि)

पुनरद्यत्वे - पुनः + अद्यत्वे (रत्व सन्धि)

अनुवादः/भावार्थ:-

इष्ट प्राप्ति जनक शब्दों का भी कथन निश्चय रुप से हो जाता है। इसके बाद उन शब्दों का उपदेश करने पर क्या शब्दों को जानने के लिए प्रत्येक पद का पाठ करना चाहिए। जैसे गौ, अश्वः, पुरुषः, हस्ती, शकुनिः, मृगः और ब्राह्मणः इत्यादि शब्दों को पढ़ना चाहिए।

नहीं ऐसा यहां नहीं है। (ऐसा नहीं करना चाहिए)

यह उचित उपाय नहीं है शब्दों को जानने के लिए प्रत्येक पद का पाठ करना चाहिए। ऐसा सुना जाता है कि- बृहस्पति ने इंद्र के लिए हजारों दिव्य वर्षों तक प्रत्येक पदों का अर्थ शब्द परायण कहा, उसका अंत नहीं हुआ। जहां बृहस्पति जैसे प्रवक्ता (पढ़ाने वाला, बोलने वाला) और इंद्र जैसे अध्येता (पढ़ने वाला, सुनने वाला) हो और हजार दिव्य वर्षों का समय हो फिर भी अध्ययन काल चलता रहा, उसका अंत नहीं हुआ। (बिना पढ़े हुए बहुत शब्द अनकहे रह गए)

तो फिर आज की बात ही क्या? जो सब प्रकार से लंबी आयु सौ वर्षों तक जीवित रहता है। (अर्थात् आजकल के मनुष्य सब प्रकार से कितनों कुछ दवा कर ले 100 वर्षों तक ही जीवित रह पाते हैं। तो प्रत्येक पद के पाठ का

अध्ययन करना जो हजार दिव्य वर्षों तक में भी खत्म नहीं हुआ, वह अध्ययन मनुष्य आज 100 साल की आयु में ही प्रत्येक पद के पाठ का अध्ययन कैसे कर पाएंगे।)

पाठांशाधारिताः प्रश्नाः-

1. एकपदेन उत्तरत-

क. इन्द्राय दिव्यं वर्षसहस्रं प्रतिपदोक्तानां शब्दानां शब्दपारायणं कः प्रोवाच?

उत्तर - बृहस्पतिः

ख. कति दिव्यं वर्षं प्रतिपदोक्तानां शब्दानां शब्दपारायणं प्रोवाच?

उत्तर - वर्षसहस्रं

ग. प्रतिपदोक्तानां शब्दानां शब्दपारायणं कः प्रवक्ता?

उत्तर - बृहस्पतिः

घ. प्रतिपदोक्तानां शब्दानां शब्दपारायणं कः अध्येता?

उत्तर - इन्द्रः

2. पूर्णवाक्येन उत्तरत-

क. शब्दानां प्रतिपतौ किम् कर्त्तव्यः?

उत्तर - शब्दानां प्रतिपतौ प्रतिपदपाठः कर्त्तव्यः।

ख. बृहस्पतिरिन्द्राय किम् श्रूयते?

उत्तर - एवं हि श्रूयते यत्- बृहस्पतिरिन्द्राय दिव्यं वर्षसहस्रं प्रतिपदोक्तानां शब्दानां शब्दपारायणं प्रोवाच शान्ति जगाम।

3. बहुविकल्पीयाः प्रश्नाः-

i. 'भवति' इति पदे कः धातुः?

क. गम्

ख. दृश्

ग. भू

घ. पठ्

ii. 'पठितव्या' इति पदे कः प्रत्ययः?

क. ल्यप्

ख. तव्यत्

ग. क्त्वा

घ. क्त

iii. 'श्रूयते' इति पदे कः लकारः?

क. लट्

ख. लड्

ग. लोट्

घ. लृट्

iv. 'प्रोवाच' इति पदे कः उपसर्गः?

क. परा

ख. प्र

ग. परि

घ. अव

पाठांश:-

चतुर्भिश्च प्रकारैर्विद्योपयुक्ता भवति आगमकालेन स्वाध्यायकालेन प्रवचनकालेन व्यवहारकालेनेति।

तत्र चास्यागमकालेनैवायुः पर्युपयुक्तं स्यात्। तस्मादनभ्युपायः शब्दानां प्रतिपत्तौ प्रतिपदपाठः ॥

कथं तहींमे शब्दाः प्रतिपत्तव्याः ? प्रवर्त्यम्।

किश्चित्सामान्यविशेषवल्लक्षणं येनाल्पेन बलेन महतो महतः शब्दौघान् प्रतिपद्येरन् ॥

किं पुनस्तत्?

उत्सर्गापवादौ। कश्चिदुत्सर्गः कर्तव्यः, कश्चिदपवादः ।।

कथञ्जातीयकः पुनरुत्सर्गः कर्तव्यः कथञ्जातीयकोऽपवादः?

सामान्येनोत्सर्गः कर्तव्यः। तद्यथा-“कर्मण्यण्”। तस्य विशेषेणापवादः। तद्यथा-"आतोऽनुपसर्गे कः”

पदार्थाः-

उपयुक्ता – उपयोगी

प्रतिपत्तव्या - जानने चाहिए

औघान् - समूह को

अल्पेन - थोड़े से

यत्नेन - प्रयत्न से

महतो महतः - बहुत बड़े (बड़े-बड़े)

प्रतिपद्येरन् – जाना चाहिए

व्याकरणकार्यम्-

चतुर्भिश्च - चतुर्भिः + च (सत्व सन्धि)

पुनस्तत् – पुनः + तत् (सत्व सन्धि)

तस्मादनभ्युपायः - तस्मात् + अनभ्य +उपाय

किञ्चित्सामान्यविशेषवल्लक्षणं - किञ्चित् + सामान्य + विशेष + लक्षणं

येनाल्पेन – येन + अल्पेन (दीर्घ सन्धि)

उत्सर्गापवादौ - उत्सर्ग + अपवाद (दीर्घ सन्धि)

महतः - महत् शब्द, पुल्लिंग पंचमी, षष्ठी विभक्ति

कश्चिदुत्सर्गः - कश्चित् + उत्सर्गः (व्यञ्जन संधि)

कश्चिदपवादः - कश्चित् + अपवादः (व्यञ्जन संधि)

पुनरुत्सर्गः - पुनः + उत्सर्ग (विसर्ग सन्धि)

अनुवादः/भावार्थ:-

चार प्रकार से विद्या उपयुक्त होती है- आगम काल से (अर्थात् गुरु मुख से) स्वाध्याय से (अर्थात् गुरु मुख से जो सुना उसका अध्ययन करने से) प्रवचन काल से (अर्थात् शिष्य को पढ़ाने से) और व्यवहार काल से (अर्थात् गुरु द्वारा बताए गए विद्या को खुद से अध्ययन करके अपने व्यवहार में लाने से)। और यहां केवल आगम काल में ही आयु पूर्ण हो जाती है। इसीलिए यह उपाय नहीं है कि शब्दों को जानने के लिए प्रत्येक पद का पाठ करना उचित नहीं है, अनुचित है।

तो फिर हम इन शब्दों को कैसे जाने?

कुछ सामान्य से विशेष लक्षण वाले शास्त्र की रचना करनी चाहिए, जिनसे अल्प (थोड़े से) प्रयत्न में बड़े-बड़े (बहुत बड़े) शब्दों के समूह को जान सके।

तो फिर वह लक्षण (शास्त्र) कौन-सा है?

उत्सर्ग और अपवाद। उत्सर्ग का कथन कब करना चाहिए और अपवाद का कथन कब करना चाहिए। यह किस जाति वाला उत्सर्ग है, किस प्रकार, कहां उत्सर्ग का कथन करना चाहिए और किस प्रकार अपवाद का कथन करना चाहिए अर्थात् कहां पर प्रयोग करना चाहिए?

सामान्य कथन में उत्सर्ग का प्रयोग करना चाहिए। जैसे "कर्मण्यण्" पहला पद कर्म कारक के उपपद होने पर वहां पर अण् प्रत्यय होगा। जैसे कुम्भकारः। इस शब्द का विग्रह होगा

विग्रहः पदः (शब्दः)

कुम्भं करोति इति - कुम्भकारः

यहां 'कुम्भं' कर्म कारक द्वितीया विभक्ति है।

कुम्भं + कृ + अण करेगा (होगा) "कर्मण्यण्" ये सामान्य नियम है।

और विशेष कथन में अपवाद का प्रयोग करना चाहिए (जहां कोई नियम काम ना करें उसे अपवाद करते हैं) जैसे-कर्म कारक के उपपद होने पर होने पर जिस धातु के अंत में आ हो, आकारांत धातु होने पर जिसमे उपसर्ग ना हो ऐसी धातु में 'कः' प्रत्यय करेगा (होगा)। जैसे - गोदः- दा + कः। यहां 'दा' धातु 'कः' प्रत्यय है।

विग्रहः पदः (शब्दः)

गां ददाति इति - गोदः

आकारान्त, उपसर्ग रहित में कः प्रत्यय होगा।

आतोऽनुपसर्गे से कः प्रत्यय करेगा। ये उनका विशेष अपवाद है।

पाठांशाधारिताः प्रश्नाः-

1. एकपदेन उत्तरत-

क. कति प्रकारैर्विद्योपयुक्ता भवति?

उत्तर - चतुर्भिश्च

ख. अत्र कः कालेनैवायुः पर्यपयुक्तं स्यात् ?

उत्तर - आगमकालेनैवायुः

ग. केन उत्सर्गः कर्त्तव्यः?

उत्तर - सामान्येनोत्सर्गः

घ. केन अपवादः कर्त्तव्यः?

उत्तर - विशेषेणापवादः

2. पूर्णवाक्येन उत्तरत-

क. चतुर्भिश्च प्रकारैर्विद्योपयुक्ता कः कालेन भवति ?

उत्तर - चतुर्भिश्च प्रकारैर्विद्योपयुक्ता आगमकालेन, स्वाध्यायकालेन, प्रवचनकालेन, व्यवहारकालेनेति भवति।

ख. केन महतो महतः शब्दौघान् प्रतिपद्येरन्?

उत्तर - किञ्चित् सामान्यविशेषवल्लक्षणं प्रवर्त्यम्। येनाल्पेन यत्नेन महतो महतः शब्दौघान् प्रतिपद्येरन्।

3. बहुविकल्पीयाः प्रश्नाः-

i. 'स्यात्' इति पदे कः धातुः?

क. अस

ख. गम्

ग. भू

घ. पठ

ii. 'महतः शब्दौघान्' इति पदे कः विशेष्यः?

क. वाक्यौघान्

ख. वर्णौघान्

ग. शब्दौघान्

घ. गजौघान्

iii. 'शब्दाः' इति पदस्य विलोमपदं किम् अस्ति?

क. अशब्दाः

ख. अपशब्दाः

ग. नशब्दाः

घ. अनशब्दाः

iv. 'कर्त्तव्यः' इति पदे कः प्रत्ययः?

क. क्त

ख. क्त्वा

ग. ल्यप्

घ. तव्यत्

अभ्यास

1. संस्कृतभाषायाम् उत्तरत

(क) मनुष्यस्य आयुः कति वर्षाणि मन्यते ?

उत्तर - मनुष्यस्य आयुः शतं वर्षानि मन्यते।

(ख) कस्य नियमेन अभक्ष्यप्रतिषेधो गम्यते ?

उत्तर - भक्ष्यः नियमेन अभक्ष्यप्रतिषेधो गम्यते।

(ग) गाम्यकुक्कुटः भक्ष्यः अभक्ष्यः वा?

उत्तर - ग्राम्यकुक्कुटः अभक्ष्यः अस्ति।

(घ) कः ज्यायः अस्ति?

उत्तर - लघुत्वात् शब्दोपदेशः ज्यायः अस्ति।

(ङ) कः गरीयान् अस्ति ?

उत्तर - अपशब्दोपदेशः गरीयान् अस्ति।

2. रेखाङ्कितपदानि आधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत।

(क) एकैकस्य शब्दस्य बहवः अपभ्रंशाः सन्ति।

उत्तर - एकैकस्य शब्दस्य बहवः के सन्ति?

(ख) शब्दानां प्रतिपत्तौ प्रतिपदपाठः कर्तव्यः।

उत्तर - केषाम् प्रतिपतौ प्रतिपदपाठः कर्त्तव्यः?

(ग) बृहस्पतिः इन्द्राय प्रतिपदशब्दान् उक्तवान्।

उत्तर - कः इन्द्राय प्रतिपदशब्दान् उक्तवान?

(घ) चतुर्भिश्च प्रकारैर्विद्योपयुक्ता भवति।

उत्तर - कति प्रकारैर्विद्योपयुक्ता भवति ?

(ङ) सामान्येन उत्सर्गः कर्त्तव्यः ।

उत्तर - केन उत्सर्गः कर्त्तव्यः?

3. विपरीतार्थः सह मेलन कुरुत।

क. भक्ष्यम् - अभक्ष्यम्

ख. लघीयान् - गरीयान्

ग. एकः - बहवः

घ. इष्टान् - अनिष्टान्

ङ. इदानीम् - तदानीम्

4. अधोलिखितवाक्यानि पठित्वा शुद्ध वा अशुद्ध समक्षं लिखत ।

(क) अन्यतरोपदेशेन कृतं स्यात्।

उत्तर - शुद्धं

(ख) इष्टाख्यान खत्वापि भवति ।

उत्तर - शुद्धं

(ग) यः सर्वधा चिर जीवति वर्षात न जीवति।

उत्तर - अशुद्धं

(घ) चतुर्भिश्च प्रकारैविद्योपयुक्ता न भवति ।

उत्तर - अशुद्धि

(ङ) आगमकालेनैवायुः कृतं पर्युपयुक्त स्यात्।

उत्तर - शुद्धं

5. शब्दानाम् अर्थ लिखित्वा वाक्येषु प्रयोगं कुरुत।

क. शब्दानुशासनम् - (शब्दों का अनुशासन)-शब्दानुशासनं कर्त्तव्यम्।

ख. भक्ष्यम् - (खाने योग्य) कदलीफलं सर्वथां भक्ष्यम्।

ग. इदानीम् - (अब) इदानीं अहं गृहं गच्छामि।

घ. चिरम् - (लम्बे समय तक) सेः चिरं जीवेत्।

ङ. प्रवक्ता - (बोलने वाले) बृहस्पतिः शब्दानां प्रवक्ता आसीत्।

च . कृत्स्नम् - (सम्पूर्ण) साधोः कृत्स्नम् जीवनं परोपकारार्थं भवति।

6. रिक्तस्थानानि पूरयत।

प्रतिपदपाठः कर्तव्यः शब्दोपदेशाः, अपभ्रंशाः, अपशब्दोपदेशाः अभक्ष्यप्रतिषेधः शब्दानुशासनम्

(क) इदानी ---- शब्दानुशासनम् -------कर्तव्यम्।

(ख) भक्ष्यनियमेन -- अभक्ष्यप्रतिषेधः ----गम्यते।

(ग) गरीयान् ---- अपशब्दोपदेशाः -----।

(घ) एकैकशब्दस्य बहवः --- अपभ्रंशाः ----- भवन्ति।

(ङ) लघुत्वात् ---- शब्दोपदेशाः ---।

(च) शब्दोपदेशे सति शब्दानां प्रतिपत्तौ ---- प्रतिपदपाठः कर्त्तव्यः -------।

7. उदाहरणानुसार लिखत।

यथा कर्त्तव्यः कृ + तव्यत्

क. भक्ष्यः- भक्ष + ण्यत्।

ख. उक्तः - वच् + क्त

ग. कृतम्- कृ + क्त

घ. उपयुक्ता- उप + युज् + क्त + टा

ङ. उपदिष्ट:- उप + दिश् + क्त

8. सन्धिविच्छेद कुरुतः।

क. शब्दोपदेशः – शब्द + उपदेशः

ख. अन्येऽभक्ष्याः - अन्ये + अभक्ष्याः

ग. गाव्यादिषूपदिष्टेषु - गावी + आदिषु + उपदिष्टेषु

घ. गौरिति- गौः+ इति

ङ. लघुत्वाच्छब्दोपदेशः- लघुत्वात् + शब्द + उपदेशः

च. इष्टान्वाख्यानम् - इष्ट + अणु + आख्यानम्

छ. पुनरत्र- पुनः + अत्र

ज. अथैतस्मिन् - अथ + एतस्मिन

झ. इत्येवम्- इति + एवम्

ञ. प्रतिपदोक्तानाम्- प्रतिपद + उक्तानाम्

JCERT/JAC REFERENCE BOOK

विषय सूची

अध्याय-1 विद्ययामृतमश्नुते (विद्या से अमृतत्व की प्राप्ति होती है)

अध्याय-2 रघुकौत्ससंवादः

अध्याय-3 बालकौतुकम्

अध्याय-4 कर्मगौरवम्

अध्याय-5 शुकनासोपदेशः (शुकनास का उपदेश)

अध्याय-6 सूक्तिसुधा

अध्याय-7 विक्रमस्यौदार्यम् (विक्रम की उदारता)

अध्याय-8 भू-विभागाः

अध्याय-9 कार्यं वा साधयेयं, देहं वा पातयेयम् (कार्य सिद्धकरूँगा या देह त्याग दूँगा)

अध्याय-10 दीनबन्धु श्रीनायारः

अध्याय-11 उद्भिज्ज परिषद् (वृक्षों की सभा)

अध्याय-12 किन्तोः कुटिलता (किन्तु शब्द की कुटिलता)

अध्याय-13 योगस्य वैशिष्ट्यम् (योग की विशेषता)

अध्याय-14 कथं शब्दानुशासनम् कर्तव्यम् (शब्दों का अनुशासन(प्रयोग) कैसे करना चाहिए)

JCERT/JAC प्रश्न बैंक - सह - उत्तर पुस्तक (Question Bank-Cum-Answer Book)

विषयानुक्रमणिका

क्रम.

पाठ का नाम

प्रथमः पाठः

विद्ययाऽमृतमश्नुते

द्वितीयः पाठः

रधुकौत्ससंवादः

तृतीयः पाठः

बालकौतुकम्

चतुर्थः पाठः

कर्मगौरवम्

पंचमः पाठः

शुकनासोपदेशः

षष्ठः पाठः

सूक्तिसुधा

सप्तमः पाठः

विक्रमस्यौदार्यम्

अष्टमः पाठः

भू-विभागाः

नवमः पाठः

कार्यं वा साधयेयं देहं वा पातयेयम्

दशमः पाठः

दीनबन्धुः श्रीनायारः

एकादशः पाठः

उद्भिज्ज -परिषद्

द्वादशः पाठः

किन्तोः कुटिलता

त्रयोदशः पाठः

योगस्य वैशिष्टयम्

चतुर्दशः पाठः

कथं शब्दानुशासनं कर्तव्यम्

JAC वार्षिक माध्यमिक परीक्षा, 2023 प्रश्नोत्तर

Sanskrit Solutions शाश्वती भाग 2













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