CM School of Excellence, Jharkhand
Class: XII 2nd Pre-Test Examination (Session 2024-25)
Subject: ECONOMICS [Subject Code – 303]
Full Marks: 70 Time: 3 Hours
सामान्य
निर्देश
निम्नलिखित
निर्देशों को ध्यानपूर्वक पढ़िए और उनका पालन कीजिए :
(i)
इस प्रश्न-पत्र में 34 प्रश्न हैं। सभी प्रश्न अनिवार्य हैं।
(ii)
यह प्रश्न-पत्र दो खण्डों में विभाजित है:
खण्ड
क - समष्टि अर्थशास्त्र
खण्ड
ख - भारतीय आर्थिक विकास
(iii)
इस प्रश्न-पत्र में 20 बहुविकल्पीय प्रकार के प्रश्न हैं। प्रत्येक प्रश्न 1 अंक का
है।
(iv)
इस प्रश्न-पत्र में 4 लघु-उत्तरीय प्रकार-I के प्रश्न हैं। प्रत्येक प्रश्न 3 अंकों
का है। इन प्रश्नों के उत्तर 60 से 80 शब्दों में लिखे जाने चाहिए
(v)
इस प्रश्न-पत्र में 6 लघु-उत्तरीय प्रकार-II के प्रश्न हैं। प्रत्येक प्रश्न 4 अंकों का है। इन
प्रश्नों के उत्तर 80 से 100 शब्दों में लिखे जाने चाहिए।
(vi)
इस प्रश्न-पत्र में 4 दीर्घ उत्तरीय प्रकार के प्रश्न हैं। प्रत्येक प्रश्न 6 अंकों
का है। इन प्रश्नों के उत्तर 100 से 150 शब्दों में लिखे जाने चाहिए।
(vii)
प्रत्येक प्रश्न के सभी भागों के उत्तर एक साथ लिखे जाने चाहिए।
(viii)
इसके अतिरिक्त, ध्यान दें कि दृष्टिबाधित परीक्षार्थियों के लिए फोटो तथा मानचित्र
आदि आधारित प्रश्नों के स्थान पर एक अन्य प्रश्न दिया गया है। इन प्रश्नों के उत्तर
केवल दृष्टिबाधित परीक्षार्थी ही लिखें।
(ix)
प्रश्न-पत्र में कोई समग्र विकल्प नहीं है। यद्यपि कुछ प्रश्नों में आंतरिक विकल्प
का प्रावधान दिया गया है। इन प्रश्नों में से केवल एक ही प्रश्न का उत्तर लिखा जाए।
SECTION A (खंड - A)
Macro Economics (मैक्रो इकोनॉमिक्स)
प्रश्न 1 से प्रश्न 10 तक प्रत्येक के लिए 1 अंक है।
1. अभिकथन
(A): मुद्रा विनिमय के माध्यम के रूप में कार्य करती है।
कारण (R): मुद्रा इच्छाओं के दोहरे संयोग की
आवश्यकता को समाप्त कर देती है।
सही विकल्प चुनेंः
(A) A और R दोनों सत्य हैं, और R, A का सही
स्पष्टीकरण है।
(B) A और R दोनों सत्य हैं, लेकिन R, A का सही स्पष्टीकरण
नहीं है।
(C) A सत्य है, लेकिन R असत्य है।
(D) A गलत है, लेकिन R सत्य है।
2. मान
लीजिए कि एक काल्पनिक अर्थव्यवस्था में स्वायत्त उपभोग = < 500 करोड़ और सीमांत
उपभोग प्रवृत्ति = 0.8 है। अर्थव्यवस्था के लिए बचत फलन ------- होगा। (रिक्त स्थान भरने के लिए सही विकल्प चुनें)
(A) 500+0.8Y
(B) (-) 500+0.8Y
(C) 500+0.2Y
(D) (-) 500+0.2Y
उपभोग फलन का सामान्य समीकरण होता है: C = a + bY जहाँ,
C = कुल उपभोग
a = स्वायत्त उपभोग
b = सीमांत उपभोग प्रवृत्ति (MPC)
Y = राष्ट्रीय आय
इस प्रश्न के अनुसार, हमारा उपभोग फलन होगा: C = 500 + 0.8Y
बचत फलन: हम जानते हैं कि: राष्ट्रीय आय (Y) = उपभोग (C) + बचत (S) या, S = Y - C
अब, उपभोग फलन का मान रखने पर: S = Y - (500 + 0.8Y) S = Y - 500 - 0.8Y S = 0.2Y - 500
अतः, अर्थव्यवस्था के लिए बचत फलन होगा: (D) (-) 500+0.2Y
3. निम्नलिखित
में से कौन सा समग्र मांग का घटक नहीं है?
(A) उपभोग व्यय
(B) सरकारी व्यय
(C) कराधान राजस्व
(D) शुद्ध निर्यात
4. नकद
आरक्षित अनुपात (सीआरआर) के संदर्भ में गलत कथन की पहचान करें :
(A) यह मांग और सावधि जमा देयताओं का एक निश्चित प्रतिशत
है जिसे प्रत्येक बैंक को केन्द्रीय बैंक के पास नकदी भंडार के रूप में रखना होता है।
(B) इसे केन्द्रीय बैंक द्वारा तय किया जाता है।
(C) यह वाणिज्यिक बैंकों पर बाध्यकारी नहीं
है।
(D) यह केंद्रीय बैंक द्वारा अर्थव्यवस्था में ऋण सृजन को
नियंत्रित करने के लिए उपयोग किया जाने वाला एक उपकरण है।
5. निम्नलिखित
कथनों को ध्यानपूर्वक पढ़ेंः
कथन 1: उपभोग फलन उपभोग और बचत के बीच संबंध
का वर्णन करता है।
कथन 2: उपभोग फलन में दो घटक होते हैं स्वायत्त
उपभोग और प्रेरित उपभोग।
दिए गए कथनों के आधार पर निम्नलिखित में से
सही विकल्प चुनें:
(A) कथन 1 सत्य है और कथन 2 असत्य है।
(B) कथन 1 गलत है और कथन 2 सत्य है।
(C) कथन 1 और 2 दोनों सत्य हैं।
(D) कथन 1 और 2 दोनों गलत हैं।
6. निम्नलिखित
में से कौन सी मद सरकार द्वारा किए गए पूंजीगत व्यय का उदाहरण है?
(A) सब्सिडी और रक्षा सेवा व्यय
(B) सड़कों का निर्माण और ऋणों का पुनर्भुगतान
(C) a और b दोनों सही हैं
(D) a और b दोनों गलत हैं
7. निम्नलिखित
में से किसे प्रत्यक्ष कर का उदाहरण माना जाता है?
(A) जी.एस.टी.
(B) सीमा शुल्क
(C) आयकर
(D) उत्पाद शुल्क
8. सरकार
के बजट में राजकोषीय घाटा क्या दर्शाता है?
(A) राजस्व प्राप्तियों की तुलना में राजस्व व्यय की अधिकता
(B) कुल प्राप्तियों पर कुल व्यय का आधिक्य
(उधार को छोड़कर)
(C) कुल व्यय पर कुल राजस्व का अधिक होना
(D) पूंजीगत व्यय की तुलना में पूंजीगत प्राप्तियों की अधिकता
9. निम्नलिखित
कथनों को ध्यानपूर्वक पढ़ें:
कथन 1: मुद्रा
एक वस्तु है जिसे आम तौर पर विनिमय के माध्यम के रूप में स्वीकार किया जाता है।
कथन 2: मुद्रा
ने आवश्यकताओं के दोहरे संयोग की समस्या को हल किया।
दिए गए कथनों के आधार पर निम्नलिखित में से
सही विकल्प चुनें:
(A) कथन 1 सत्य है और कथन 2 असत्य है।
(B) कथन 1 असत्य है और कथन 2 सत्य है।
(C) कथन 1 और 2 दोनों सत्य हैं।
(D) कथन 1 और 2 दोनों गलत हैं।
10. भुगतान संतुलन के पूंजी खाते में निम्नलिखित में
से क्या शामिल है?
(A) विदेशी निवेश से आय
(B) विदेश से प्राप्त धन
(C) बाहरी उधार और निवेश
(D) इनमें से कोई नहीं
प्रश्न 11 से प्रश्न 12 तक प्रत्येक के लिए 3 अंक है।
11. (a) बजट घाटे के तीन
प्रकार क्या हैं? उनमें से किसी एक को समझाइए।
उत्तर- बजट घाटा तब होता है जब सरकार का व्यय उसकी आय से
अधिक होता है। इसे सरल शब्दों में कहें तो, जब सरकार के पास जितना खर्च करने के लिए
पैसा होता है, उससे अधिक खर्च कर देती है, तो वह घाटे में चली जाती है। इस घाटे को
पूरा करने के लिए सरकार को बाजार से उधार लेना पड़ता है।
बजट घाटे को मुख्यतः तीन प्रकारों में बांटा जा सकता है:
1. राजस्व घाटा:
☞ यह सरकार की कुल राजस्व प्राप्तियों (करों, शुल्क आदि से
प्राप्त आय) और कुल राजस्व व्यय (कर्मचारियों का वेतन, सब्सिडी आदि) के बीच का अंतर
होता है।
☞ जब राजस्व व्यय राजस्व प्राप्तियों से अधिक होता है, तो राजस्व
घाटा होता है।
☞ यह घाटा चिंता का विषय होता है क्योंकि इसका मतलब है कि सरकार
अपने नियमित खर्चों को भी पूरा करने में सक्षम नहीं है।
2. पूंजीगत घाटा:
☞ यह सरकार के पूंजीगत व्यय (सड़क निर्माण, बांध निर्माण आदि)
और पूंजीगत प्राप्तियों (सार्वजनिक उपक्रमों के शेयरों की बिक्री आदि) के बीच का अंतर
होता है।
☞ जब पूंजीगत व्यय पूंजीगत प्राप्तियों से अधिक होता है, तो
पूंजीगत घाटा होता है।
☞ यह घाटा जरूरी नहीं कि हमेशा चिंता का विषय हो, क्योंकि यह
भविष्य में विकास के लिए किए गए निवेश को दर्शाता है।
3. राजकोषीय घाटा:
☞ यह सरकार के कुल व्यय (राजस्व व्यय + पूंजीगत व्यय) और कुल
प्राप्तियों (राजस्व प्राप्ति + पूंजीगत प्राप्ति) के बीच का अंतर होता है।
☞ यह सबसे व्यापक प्रकार का घाटा है और यह ऊपर दिए गए दोनों
घाटों को शामिल करता है।
☞ जब कुल व्यय कुल प्राप्तियों से अधिक होता है, तो राजकोषीय
घाटा होता है।
☞ राजकोषीय घाटे का उदाहरण:
मान लीजिए एक सरकार का कुल बजट 100 करोड़ रुपये है। इसमें
से 70 करोड़ रुपये का खर्च वेतन, सब्सिडी आदि पर होता है (राजस्व व्यय) और 30 करोड़
रुपये का खर्च सड़क निर्माण आदि पर होता है (पूंजीगत व्यय)। अगर सरकार की कुल आय (करों
और अन्य स्रोतों से) 80 करोड़ रुपये है, तो राजकोषीय घाटा 20 करोड़ रुपये होगा।
या
(b) "मुद्रा का अवमूल्यन किसी राष्ट्र
के निर्यात को बढ़ावा दे सकता है।"
दिए गए कथन का वैध तर्कों के साथ बचाव या
खंडन करें।
उत्तर- मुद्रा अवमूल्यन का अर्थ
मुद्रा
अवमूल्यन का अर्थ है किसी देश की मुद्रा के मूल्य को जानबूझकर कम करना। यह अन्य देशों
की मुद्राओं के सापेक्ष किया जाता है।
मुद्रा
अवमूल्यन से निर्यात कैसे बढ़ता है?
☞ निर्यात
की कीमत में कमी: जब एक देश अपनी मुद्रा का अवमूल्यन करता है,
तो उस देश के उत्पाद अन्य देशों के लिए सस्ते हो जाते हैं। इसका कारण यह है कि अब विदेशी
मुद्रा में अधिक घरेलू मुद्रा खरीद सकते हैं। उदाहरण के लिए, यदि एक डॉलर पहले 70 रुपये
का था और अब 80 रुपये का हो गया है, तो विदेशी खरीददारों को भारतीय उत्पाद खरीदने के
लिए पहले से कम डॉलर खर्च करने होंगे।
☞ प्रतिस्पर्धात्मक
लाभ:
अवमूल्यन से देश के उत्पाद अंतरराष्ट्रीय बाजार में अधिक प्रतिस्पर्धी हो जाते हैं।
इससे देश के निर्यात में वृद्धि होती है।
☞ व्यापार
घाटे में कमी: अवमूल्यन से निर्यात बढ़ने के साथ-साथ आयात
भी कम हो सकता है क्योंकि विदेशी उत्पाद घरेलू बाजार में अधिक महंगे हो जाते हैं। इससे
देश का व्यापार घाटा कम हो सकता है।
मुद्रा
अवमूल्यन के अन्य प्रभाव
☞ मुद्रास्फीति: अवमूल्यन
से आयात महंगे हो जाते हैं जिससे घरेलू बाजार में मुद्रास्फीति बढ़ सकती है।
☞ विदेशी
निवेश: अवमूल्यन से विदेशी निवेशकों के लिए घरेलू संपत्ति सस्ती
हो जाती है, जिससे विदेशी निवेश बढ़ सकता है।
☞ विदेशी
मुद्रा भंडार: अवमूल्यन से अल्पकालिक रूप से विदेशी मुद्रा
भंडार में वृद्धि हो सकती है, लेकिन दीर्घकालिक प्रभाव अनिश्चित होते हैं।
मुद्रा
अवमूल्यन के सीमाएं
☞ अन्य
देशों की प्रतिक्रिया: अन्य देश भी अपनी मुद्राओं का अवमूल्यन
कर सकते हैं, जिससे लाभ कम हो सकते हैं।
☞ मांग
की लोच: यदि मांग की लोच कम है, तो कीमत में कमी से मांग में उतनी
वृद्धि नहीं होगी जितनी अपेक्षित होती है।
☞ आपूर्ति
की सीमाएं: यदि देश के पास उत्पादन बढ़ाने की पर्याप्त क्षमता नहीं
है, तो अवमूल्यन से निर्यात में वृद्धि सीमित हो सकती है।
12. भुगतान संतुलन में चालू
खाते और पूंजी खाते के बीच अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर- चालू खाता
चालू खाता वह खाता है
जिसमें वस्तुओं और सेवाओं के आयात और निर्यात एवं एकपक्षीय भुगतानो का हिसाब किताब रखा जाता है।
चालू खातों के निम्नलिखित घटक है
1. वस्तुओं का
निर्यात तथा आयात (अथवा दृश्य मदे)
2.
सेवाओं का निर्यात तथा आयात (अथवा अदृश्य मदे)
3.
एक देश से दूसरे देश को एकपक्षीय अंतरण
पूंजी
खाता
पूंजीगत खाता वह खाता
है जो एक देश के निवासियों एवं शेष संसार के निवासियों के
द्वारा किए गए उन सब लेन-देनो से
संबंधित है जिसमें किसी देश की सरकार और निवासियों की परिसंपत्तियों और दायित्वों में
परिवर्तन होता है।
पूंजी
खाते
के सौदों की मुख्य मदे निम्न है -
(a)
सरकारी सौदे :- उन अन्तर्राष्ट्रीय सौदों को कहते हैं जिनके कारण
किसी देश की सरकार या उसकी एजेंसी की परिसंपत्तियों तथा दायित्वो
की स्थिति प्रभावित होती है। जैसे A देश द्वारा B देश
से ऋण प्राप्त करना
(b)
गैर सरकारी या निजी सौदे :- निजी सौदे गैर
सरकारी सौदे होते हैं। इसमें व्यक्ति,
घरेलू क्षेत्र तथा निजी व्यापारी उद्यम के सौदे शामिल होते हैं। जैसे A देश के किसी
व्यक्ति द्वारा B देश में निवेश करना
(c)
प्रत्यक्ष निवेश :- इसका अर्थ है विदेशों
में परिसंपत्तियों का खरीदना तथा उन पर नियंत्रण रखना ।जैसे
B देश की किसी कंपनी द्वारा A देश की किसी कंपनी की परिसंपत्तियों खरीदना
(d)
पोर्टफोलियो निवेश :- विदेशों में परिसंपत्तियों
का खरीदना किंतु उन पर कोई नियंत्रण न होना । जैसे B देश के
निवासियों द्वारा A देश की किसी कंपनी के शेयर्स या बाॅड्स का खरीदना।
प्रश्न 13 से प्रश्न 15 तक प्रत्येक के लिए 4 अंक है।
13. सीमांत बचत प्रवृत्ति (एमपीएस) और सीमांत
उपभोग प्रवृत्ति (एमपीसी) के बीच संबंध को समझाइए।
उत्तर- आय में होने वाले परिवर्तन के फलस्वरुप उपभोग में होने वाले परिवर्तन के अनुपात को सीमांत उपभोग प्रवृत्ति कहते हैं।
`MPC=\frac{\Delta C}{\Delta Y}`
∆C = उपभोग में परिवर्तन , ΔY = आय में परिवर्तन
आय में होने वाले परिवर्तन (∆Y) के कारण बचत में होने वाले परिवर्तन (∆C) के अनुपात को सीमांत बचत प्रवृत्ति (MPS) कहते हैं।
`MPS=\frac{\Delta S}{\Delta Y}`
ΔS = बचत में परिवर्तन ,
ΔY = आय में परिवर्तन
सीमांत उपभोग प्रवृत्ति (MPC) तथा सीमांत बचत प्रवृत्ति (MPS) के सम्बंध को निम्नलिखित समीकरण की सहायता से स्पष्ट किया जा सकता है।
हम जानते हैं कि ΔY = ΔC + ΔS
`\therefore MPC+MPS=\frac{\Delta C}{\Delta Y}+\frac{\Delta S}{\Delta Y}`
`=\frac{\Delta C+\Delta S}{\Delta Y}+\frac{\Delta Y}{\Delta Y}=1`
⸫ MPC + MPS = 1
MPC = 1 - MPS
MPS = 1 - MPC
समीकरण से स्पष्ट है कि सीमांत बचत प्रवृत्ति तथा सीमांत उपभोग प्रवृत्ति का योग सदैव 1 के बराबर होता है।
MPS तथा MPC के उपर्युक्त संबंध से स्पष्ट है कि आय के दो मुख्य कार्य है - उपभोग तथा बचत। उपभोग और बचत मिलकर आय के बराबर होते हैं।
14. मान लीजिए कि भारतीय
रिजर्व बैंक (RBI) ने नकद आरक्षित अनुपात (CRR) को 4% से बढ़ाकर 5% करने का फैसला किया
है। बैंकिंग प्रणाली में
प्रारंभिक जमा राशि ₹5,00,000 है। गणना करें:
a. सीआरआर में परिवर्तन
से पहले और बाद में क्रेडिट गुणक।
b. परिवर्तन से पहले
और बाद में अर्थव्यवस्था में कुल ऋण सृजन।
c. सीआरआर में वृद्धि
के कारण कुल मुद्रा आपूर्ति में कमी।
उत्तर- दिया गया है:
प्रारंभिक
जमा राशि = ₹5,00,000
पहले
CRR = 4%
बाद
में CRR = 5%
a.
क्रेडिट गुणक:
पहले
CRR पर क्रेडिट गुणक: क्रेडिट गुणक = 1 / CRR = 1 / 0.04 = 25
बाद
में CRR पर क्रेडिट गुणक: क्रेडिट गुणक = 1 / CRR = 1 / 0.05 = 20
b.
कुल ऋण सृजन:
पहले
CRR पर कुल ऋण सृजन: कुल ऋण सृजन = प्रारंभिक जमा राशि x क्रेडिट गुणक = ₹5,00,000
x 25 = ₹1,25,00,000
बाद
में CRR पर कुल ऋण सृजन: कुल ऋण सृजन = ₹5,00,000 x 20 = ₹1,00,00,000
c.
कुल मुद्रा आपूर्ति में कमी:
कुल
मुद्रा आपूर्ति में कमी = पहले कुल ऋण सृजन - बाद में कुल ऋण सृजन
=
₹1,25,00,000 - ₹1,00,00,000 = ₹25,00,000
या
केंद्रीय बैंक अर्थव्यवस्था
में ऋण को कैसे नियंत्रित करता है? कोई दो विधियाँ बताइए।
उत्तर-
केंद्रीय बैंक अर्थव्यवस्था में ऋण को नियंत्रित करने के लिए कई उपकरणों का उपयोग करता
है। इन उपकरणों का उपयोग करके केंद्रीय बैंक मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने, आर्थिक
विकास को बढ़ावा देने और वित्तीय स्थिरता बनाए रखने का प्रयास करता है।
नकद निधि अनुपात :- व्यापारिक बैंकों को कानूनी
तौर पर अपनी जमाओ का एक निश्चित प्रतिशत केन्द्रीय बैंक के पास नकद निधि के रुप में रखना पड़ता है। उदाहरण के लिए,यदि न्यूनतम निधि अनुपात 10% है और किसी बैंक की
कुल जमाएं 100 करोड़ रु. हैं तो इस
बैंक को 10 करोड़ रु. केन्द्रीय बैंक
के पास रखने होंगे। यदि केन्द्रीय बैंक ने साख या नकद प्रवाह
का संकुचन करना होगा तो वह नगद निधि अनुपात को बढ़ा
देगा और यदि उसे साख प्रवाह का विस्तार करना
होगा तो CRR की दर घटा देगा।
वैधानिक तरलता अनुपात :- प्रत्येक बैंक को अपनी परिसंपत्तियों
के एक निश्चित प्रतिशत को अपने पास नकद
रूप में या अन्य तरल परिसंपत्तियों के रूप में कानूनी तौर
पर रखना पड़ता है जिसे वैधानिक तरलता अनुपात करते हैं। बाजार में
साख के प्रभाव को कम करने के लिए केंद्रीय बैंक तरलता अनुपात को बढ़ा देता है और यदि
केंद्रीय बैंक साख का विस्तार करना चाहता है तो वह तरलता अनुपात
को घटा देता है।
15. निम्नलिखित आँकड़ों से
आय एवं व्यय विधि का प्रयोग करके "राष्ट्रीय आय" की गणना कीजिए।
S.No. |
Parameters |
$(million) |
i |
Interest |
150 |
ii |
Rent |
250 |
iii |
Government
Final Consumption Expenditure GFCE |
600 |
iv |
Private
Final Consumption Expenditure PFCE |
1200 |
v |
Profits |
640 |
vi |
Compensation
of employees |
1000 |
vii |
Net
Income from Abroad NFIA |
30 |
viii |
Net
Indirect Tax NIT |
60 |
ix |
Net
Export |
(-)
40 |
x |
Consumption
of fixed capital |
50 |
xi |
Net
Domestic Capital Formation NDCF |
340 |
उत्तर-
आय विधि द्वारा राष्ट्रीय आय = कर्मचारियों
को पारिश्रमिक + विदेशों से शुद्ध कारक आय + ब्याज + लगान + स्वनियोजितों की मिश्रित
आय + लाभ
= 1000 +30 + 150 + 250 + 640
राष्ट्रीय आय = ₹ 2070 करोड़
व्ययविधि द्वारा राष्ट्रीय आय = निजी
अन्तिम उपभोग व्यय + सरकार द्वारा अन्तिम उपभोग व्यय + शुद्ध घरेलू पूँजी निर्माण
+ शुद्ध निर्यात + विदेशों से शुद्ध कारक आय – शुद्ध अप्रत्यक्ष कर
= 1200 + 600 + 340 + (-)40 + 30 -
60 = ₹ 2070 करोड़
व्यय विधि द्वारा राष्ट्रीय आय = ₹
2070 करोड़
प्रश्न 16 से प्रश्न 17 तक प्रत्येक के लिए 6 अंक है।
16. निम्न तालिका आय के विभिन्न स्तरों पर एक
अर्थव्यवस्था के लिए समग्र मांग (AD) और समग्र आपूर्ति (AS) को दर्शाती है। तालिका का
ध्यानपूर्वक अध्ययन करें और निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दें:
आय (करोड़ रुपए में) |
कुल मांग (करोड़ रुपए में) |
कुल आपूर्ति (करोड़ रुपए में) |
100 |
150 |
100 |
200 |
200 |
200 |
300 |
250 |
300 |
400 |
300 |
400 |
500 |
350 |
500 |
a) अर्थव्यवस्था के लिए आय के संतुलन स्तर की
पहचान करें।
उत्तर-
संतुलन आय वह स्तर होता है जहां कुल मांग (AD) और कुल आपूर्ति (AS) बराबर होती है।
दी
गई तालिका के अनुसार, आय का स्तर ₹200 करोड़ पर कुल मांग और कुल आपूर्ति दोनों ही
₹200 करोड़ हैं। इसलिए, अर्थव्यवस्था के लिए आय का संतुलन स्तर ₹200 करोड़ है।
b) यदि पूर्ण रोजगार आय का स्तर ₹400 करोड़ है,
तो क्या अर्थव्यवस्था पूर्ण रोजगार संतुलन पर काम कर रही है? अपने उत्तर का औचित्य
बताइए।
उत्तर-
नहीं, अर्थव्यवस्था पूर्ण रोजगार संतुलन पर काम नहीं कर रही है।
पूर्ण
रोजगार संतुलन: यह वह स्थिति होती है जहां अर्थव्यवस्था में सभी संसाधन (श्रम, पूंजी
आदि) का पूर्ण उपयोग होता है।
दी
गई तालिका के अनुसार: पूर्ण रोजगार आय का स्तर ₹400 करोड़ है, लेकिन संतुलन आय केवल
₹200 करोड़ है। इसका मतलब है कि अर्थव्यवस्था में अभी भी संसाधनों का पूरा उपयोग नहीं
हो रहा है, विशेषकर श्रम का।
निष्कर्ष:
चूंकि संतुलन आय पूर्ण रोजगार आय से कम है, इसलिए अर्थव्यवस्था में बेरोजगारी की समस्या
है और यह पूर्ण रोजगार संतुलन पर नहीं है।
c) इस डेटा का उपयोग करके मुद्रास्फीति या अपस्फीति
अंतराल की अवधारणा को समझाइए।
उत्तर- मुद्रास्फीति
अंतराल: यह वह स्थिति होती है जब कुल मांग कुल आपूर्ति से अधिक होती है। इस स्थिति
में, कीमतें बढ़ने लगती हैं और मुद्रास्फीति होती है।
अपस्फीति
अंतराल: यह वह स्थिति होती है जब कुल मांग कुल आपूर्ति से कम होती है। इस स्थिति में,
कीमतें गिरने लगती हैं और अपस्फीति होती है।
दी
गई तालिका के अनुसार:
जब
आय का स्तर ₹200 करोड़ से अधिक होता है, तो कुल मांग कुल आपूर्ति से कम होती है। यह
अपस्फीति अंतराल को दर्शाता है। इसका मतलब है कि अगर अर्थव्यवस्था ₹200 करोड़ से अधिक
आय के स्तर पर उत्पादन करती है, तो कीमतें गिरने लगेंगी।
जब
आय का स्तर ₹200 करोड़ से कम होता है, तो कुल मांग कुल आपूर्ति से अधिक होती है। यह
मुद्रास्फीति अंतराल को दर्शाता है। इसका मतलब है कि अगर अर्थव्यवस्था ₹200 करोड़ से
कम आय के स्तर पर उत्पादन करती है, तो कीमतें बढ़ने लगेंगी।
निष्कर्ष:
दी
गई तालिका से स्पष्ट है कि अर्थव्यवस्था में संतुलन आय ₹200 करोड़ पर है और इस स्तर
से अधिक उत्पादन करने पर अपस्फीति और कम उत्पादन करने पर मुद्रास्फीति की स्थिति उत्पन्न
होगी।
17. कारण बताते हुए बताइये कि निम्नलिखित कथन
सत्य है या असत्यः
1. वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद नाममात्र सकल घरेलू
उत्पाद के बराबर हो सकता है।
उत्तर-
यह कथन सत्य हो सकता है, लेकिन आमतौर पर सत्य नहीं होता है।
वास्तविक
सकल घरेलू उत्पाद (GDP): यह एक निश्चित अवधि में उत्पादित सभी अंतिम
वस्तुओं और सेवाओं का मूल्य है, जिसे एक आधार वर्ष की कीमतों पर मापा जाता है। यह मुद्रास्फीति
के प्रभाव को समाप्त करता है।
नाममात्र
सकल घरेलू उत्पाद: यह एक निश्चित अवधि में उत्पादित सभी अंतिम
वस्तुओं और सेवाओं का मूल्य है, जिसे चालू वर्ष की कीमतों पर मापा जाता है। इसमें मुद्रास्फीति
का प्रभाव शामिल होता है।
कब
बराबर हो सकता है:
शून्य
मुद्रास्फीति: यदि किसी वर्ष में कोई मुद्रास्फीति नहीं होती
है, तो दोनों समान होंगे क्योंकि चालू वर्ष की कीमतें और आधार वर्ष की कीमतें समान
होंगी।
आमतौर
पर क्यों नहीं होता:
मुद्रास्फीति: अधिकांश
अर्थव्यवस्थाओं में मुद्रास्फीति होती है, जिसके कारण नाममात्र GDP वास्तविक GDP से
अधिक होता है।
आधार
वर्ष: आधार वर्ष बदलने पर भी दोनों में अंतर आ सकता है।
2. बचत एक स्टॉक है
उत्तर-
असत्य
स्टॉक: किसी
विशिष्ट समय पर मापी जाने वाली आर्थिक राशि, जैसे कि किसी विशेष समय पर बैंक में जमा
राशि।
फ्लो: एक
निश्चित अवधि में मापी जाने वाली आर्थिक राशि, जैसे कि एक वर्ष में की गई बचत।
बचत
एक फ्लो है, क्योंकि यह समय के साथ बढ़ती या घटती रहती है। यह एक निश्चित बिंदु पर
मापी जाने वाली राशि नहीं है।
3. मक्खन केवल अंतिम उत्पाद है।
उत्तर-
सत्य
अंतिम
उत्पाद: वह उत्पाद जो सीधे उपभोग के लिए होता है या उत्पादन प्रक्रिया
में आगे नहीं बढ़ता है।
मध्यवर्ती
उत्पाद: वह उत्पाद जो अन्य उत्पादों को बनाने के लिए उपयोग किया
जाता है।
मक्खन
सीधे उपभोग किया जाता है और इसे किसी अन्य उत्पाद बनाने के लिए उपयोग नहीं किया जाता
है, इसलिए यह एक अंतिम उत्पाद है।
या
भुगतान संतुलन की अवधारणा और उसके घटकों की व्याख्या
करें।
उत्तर-
प्रो. बेनहेम के अनुसार," किसी देश के
भुगतान संतुलन उसके शेष विश्व के साथ एक समय की अवधि मे किये जाने वाले मौद्रिक लेन-देन
का विवरण है, जबकि एक देश का व्यापार संतुलन एक निश्चित अवधि मे उसके आयातों एवं निर्यातों
के बीच संभव है।"
घटकों की व्याख्या-
चालू
खाता:
☞ वस्तुओं
का व्यापार: देश द्वारा निर्यात की गई वस्तुओं का मूल्य
और आयात की गई वस्तुओं के मूल्य के बीच का अंतर।
☞ सेवाओं
का व्यापार: देश द्वारा निर्यात की गई सेवाओं (जैसे पर्यटन,
परिवहन) का मूल्य और आयात की गई सेवाओं के मूल्य के बीच का अंतर।
☞ आय: विदेशों
से प्राप्त आय (जैसे लाभांश, ब्याज) और विदेशों को दी गई आय (जैसे विदेशों में निवेश
पर भुगतान) के बीच का अंतर।
☞ अन्य
चालू हस्तांतरण: दान, उपहार आदि।
पूंजी
खाता:
☞ पूंजीगत
हस्तांतरण: ऋणों का माफी, संपत्ति का दान आदि।
☞ विदेशी
प्रत्यक्ष निवेश: विदेशी कंपनियों द्वारा घरेलू कंपनियों में
किया गया निवेश।
☞ पोर्टफोलियो
निवेश: विदेशी निवेशकों द्वारा शेयरों और बॉन्ड्स में किया गया
निवेश।
वित्तीय
खाता:
☞ विदेशी
प्रत्यक्ष निवेश: घरेलू निवासियों द्वारा विदेशी कंपनियों में
किया गया निवेश।
☞ पोर्टफोलियो
निवेश: घरेलू निवेशकों द्वारा विदेशी शेयरों और बॉन्ड्स में किया
गया निवेश।
☞ अन्य
वित्तीय दायित्व: जैसे कि बैंक ऋण।
SECTION B (खंड - B) भारतीय आर्थिक विकास
प्रश्न 18 से प्रश्न 27 तक प्रत्येक के लिए 1 अंक है।
18. अभिकथन (A): हरित क्रांति
से कृषि उत्पादकता में वृद्धि हुई।
कारण (R): इसने पारंपरिक
कृषि विधियों के उपयोग पर ध्यान केंद्रित किया।
सही विकल्प चुनें:
(A) A और R दोनों सत्य हैं, तथा R,
A का सही स्पष्टीकरण है
(B) A और R दोनों सत्य हैं, लेकिन
R, A का सही स्पष्टीकरण नहीं है
(C) A सत्य है, लेकिन
R असत्य है।
(D) A असत्य है, लेकिन R सत्य है।
19. चीन अपनी तीव्र जनसंख्या
वृद्धि दर को ------- के कारण नियंत्रित करने
में सक्षम रहा। (रिक्त स्थान भरने के लिए सही विकल्प चुनें)
(A) आर्थिक सुधार
(B) एक-बच्चा नीति
(C) महान सर्वहारा सांस्कृतिक क्रांति
(D) विशेष आर्थिक क्षेत्र
20. जब हम सतत विकास के तीन
स्तंभों में से केवल दो को ही पूरा कर पाते हैं तो निम्नलिखित में से कौन सा विकल्प
सही है?
(A) आर्थिक + पर्यावरणीय स्थिरता =
व्यवहार्य
(B) सामाजिक + पर्यावरणीय स्थिरता
= सहनीय
(C) सामाजिक + आर्थिक स्थिरता = समतामूलक
(D) ये सभी
21. कथन 1: विशेष आर्थिक
क्षेत्र नीति (एसईजेड) के कारण चीन में भारी मात्रा में एफडीआई प्रवाह हुआ है।
कथन 2: चीन का तीव्र
औद्योगिक विकास 1981 में उसके आर्थिक सुधार का परिणाम था।
सही विकल्प चुनें:
(A) कथन 1 सत्य है और कथन 2 असत्य है
(B) कथन 1 गलत है और कथन 2 सत्य है
(C) दोनों कथन सत्य हैं
(D) दोनों कथन असत्य हैं
22. नीचे दिए गए आंकड़ों
के आधार पर, सकल घरेलू उत्पाद (%) की वार्षिक वृद्धि के संदर्भ में गलत कथन की
पहचान करें: (सही विकल्प का चयन करें)
Annual Growth of Gross Domestic
Product (%), 1980-2017
Country |
1980-90 |
2015-17 |
India |
5.7 |
7.3 |
China |
10.3 |
6.8 |
Pakistan |
6.3 |
5.3 |
स्रोत: एशिया और प्रशांत
क्षेत्र के लिए मुख्य संकेतक 2016. एशियाई विकास बैंक, फिलीपींसः विश्व विकास संकेतक
2018
विकल्पः
(A) चीन 1980 के दशक के दौरान लगभग
दोहरे अंक की वृद्धि दर बनाए रखने में सक्षम रहा।
(B) 1980-2017 के दौरान
पाकिस्तान भारत से आगे था।
(C) भारत ने 2015-17 के दौरान सकल घरेलू
उत्पाद में तीव्र वृद्धि का अनुभव किया।
(D) चीन और पाकिस्तान दोनों ने
2015-17 के दौरान विकास दर में गिरावट का अनुभव किया।
23. हरित क्रांति में,
उच्च उपज देने वाली किस्म के बीजों को शुरू में किन फसलों में पेश किया गया था?
(A) चावल और गेहूं
(B) गेहूं और मक्का
(C) चावल और कपास
(D) गेहूं और गन्ना
24. चीन ने 1958 में ---------- की शुरुआत की, जिसका
उद्देश्य देश का बड़े पैमाने पर औद्योगिकीकरण करना
था।
(रिक्त स्थान को सही विकल्प
से भरें)
(A) महान सर्वहारा सांस्कृतिक क्रांति
(B) विशेष आर्थिक क्षेत्रों की स्थापना
(C) आर्थिक सुधारों की शुरूआत
(D) ग्रेट लीप फॉरवर्ड अभियान
25. निम्नलिखित में से कौन
सा भारत में गरीबी में योगदान देने वाला एक गैर-आर्थिक कारक है?
(A) कम उत्पादकता
(B) बेरोजगारी
(C) अधिक जनसंख्या
(D) सामाजिक भेदभाव
26. 1991 के एलपीजी सुधारों के
बाद भारतीय अर्थव्यवस्था के किस क्षेत्र ने अधिकतम वृद्धि दिखाई?
(A) प्राथमिक क्षेत्र
(B) द्वितीयक क्षेत्र
(C) तृतीयक क्षेत्र
(D) सार्वजनिक क्षेत्र
27. प्रधानमंत्री जन धन योजना का प्राथमिक फोकस
निम्नलिखित में से कौन सा है?
(A) रोजगार के अवसर पैदा करना
(B) वित्तीय समावेशन
(C) डिजिटल लेनदेन को बढ़ावा देना
(D) कृषि ऋण पर सब्सिडी प्रदान करना
प्रश्न 28 से प्रश्न 29 तक प्रत्येक के लिए 3 अंक है।
28. "कार्यस्थल प्रशिक्षण
पर व्यय किसी अर्थव्यवस्था में मानव पूंजी निर्माण का एक महत्वपूर्ण साधन है।" दिए गए कथन को उचित ठहराने के
लिए वैध कारण दीजिए।
उत्तर-
मानव पूंजी किसी व्यक्ति में निहित कौशल, ज्ञान और अनुभव का योग होता है। यह व्यक्ति
की उत्पादकता को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
कार्यस्थल
प्रशिक्षण क्यों महत्वपूर्ण है?
☞ कौशल
विकास: कार्यस्थल प्रशिक्षण कर्मचारियों को नए कौशल और ज्ञान प्राप्त
करने में मदद करता है, जिससे उनकी उत्पादकता बढ़ती है।
☞ अधिक
दक्षता: प्रशिक्षण से कर्मचारी अपने काम को अधिक कुशलता से करने
में सक्षम हो जाते हैं, जिससे उत्पादन में वृद्धि होती है।
☞ नवाचार
को बढ़ावा: प्रशिक्षण से कर्मचारियों में नई चीजें सीखने और नवाचार
करने की प्रवृत्ति बढ़ती है।
☞ कर्मचारी
संतुष्टि: प्रशिक्षण से कर्मचारी संतुष्ट होते हैं और कंपनी के प्रति
उनकी प्रतिबद्धता बढ़ती है।
☞ कंपनी
की प्रतिस्पर्धात्मकता: कुशल कर्मचारियों के साथ कंपनी बाजार में
अधिक प्रतिस्पर्धी बन जाती है।
कार्यस्थल
प्रशिक्षण मानव पूंजी निर्माण का एक महत्वपूर्ण साधन क्यों है?
☞ कौशल
का विकास: कार्यस्थल प्रशिक्षण कर्मचारियों को विशिष्ट कार्य कौशल
विकसित करने में मदद करता है, जिससे उनकी उत्पादकता बढ़ती है।
☞ अद्यतन
रहना: तेजी से बदलते तकनीकी परिवेश में, कार्यस्थल प्रशिक्षण कर्मचारियों
को नवीनतम तकनीकों और प्रक्रियाओं के बारे में जानकारी प्रदान करता है।
☞ कंपनी
के लक्ष्यों के अनुरूप: कार्यस्थल प्रशिक्षण को कंपनी के विशिष्ट
लक्ष्यों के अनुरूप बनाया जा सकता है, जिससे कर्मचारी कंपनी के लक्ष्यों को प्राप्त
करने में अधिक प्रभावी ढंग से योगदान दे सकते हैं।
☞ अर्थव्यवस्था
के लिए लाभ: कुशल कर्मचारियों के साथ कंपनियां अधिक उत्पादक
होती हैं, जिससे देश की अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलता है।
29. "हमारे ग्रह के भविष्य की रक्षा के लिए
कार्बन उत्सर्जन से निपटना महत्वपूर्ण है। "
उपरोक्त कथन और चित्र के प्रकाश में, इस वैश्विक
चिंता से निपटने के लिए किन्हीं दो रणनीतियों पर चर्चा कीजिए।
उत्तर-
हमारे ग्रह के भविष्य को बचाने के लिए कार्बन उत्सर्जन को कम करना बेहद जरूरी है। कार्बन
उत्सर्जन जलवायु परिवर्तन का प्रमुख कारण है, जो ग्लोबल वार्मिंग, समुद्र का स्तर बढ़ना
और चरम मौसमी घटनाओं जैसी समस्याओं को जन्म दे रहा है।
कार्बन
उत्सर्जन को कम करने के लिए दो प्रमुख रणनीतियाँ:
नवीकरणीय
ऊर्जा स्रोतों को बढ़ावा देना:
☞ सौर
ऊर्जा: सौर ऊर्जा एक स्वच्छ और अक्षय ऊर्जा स्रोत है। सौर पैनलों
का उपयोग करके हम बिजली पैदा कर सकते हैं और जीवाश्म ईंधनों पर निर्भरता कम कर सकते
हैं।
☞ पवन
ऊर्जा: पवन ऊर्जा भी एक स्वच्छ और अक्षय ऊर्जा स्रोत है। पवन टर्बाइनों
का उपयोग करके हम हवा की ऊर्जा को बिजली में बदल सकते हैं।
☞ जलविद्युत
ऊर्जा: जलविद्युत ऊर्जा भी एक स्वच्छ ऊर्जा स्रोत है। नदियों और
नहरों में बने बांधों का उपयोग करके हम बिजली पैदा कर सकते हैं।
☞ बायोमास
ऊर्जा: बायोमास ऊर्जा जैव पदार्थों जैसे लकड़ी, फसलों के अवशेषों
आदि को जलाकर प्राप्त की जाती है।
ऊर्जा
दक्षता को बढ़ावा देना:
☞ ऊर्जा
कुशल उपकरणों का उपयोग: घरों और कार्यालयों में ऊर्जा कुशल उपकरणों
जैसे एलईडी बल्ब, ऊर्जा कुशल उपकरणों आदि का उपयोग करके ऊर्जा की खपत को कम किया जा
सकता है।
☞ भवनों
को ऊर्जा कुशल बनाना: भवनों को ऊर्जा कुशल बनाने के लिए इन्सुलेशन,
सौर पैनलों और प्राकृतिक प्रकाश का उपयोग किया जा सकता है।
☞ सार्वजनिक
परिवहन को बढ़ावा देना: निजी वाहनों के उपयोग को कम करके और सार्वजनिक
परिवहन को बढ़ावा देकर ऊर्जा की खपत को कम किया जा सकता है।
☞ औद्योगिक
प्रक्रियाओं में ऊर्जा दक्षता: उद्योगों में ऊर्जा कुशल
तकनीकों का उपयोग करके ऊर्जा की खपत को कम किया जा सकता है।
अन्य
महत्वपूर्ण रणनीतियाँ:
☞ वनों
का संरक्षण: वन कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करते हैं,
इसलिए वनों को बचाना और नए वृक्ष लगाना बहुत महत्वपूर्ण है।
☞ कार्बन
कैप्चर और स्टोरेज: इस तकनीक के माध्यम से कार्बन डाइऑक्साइड को
वायुमंडल से निकालकर भूमिगत भंडारण में संग्रहित किया जा सकता है।
☞ अंतर्राष्ट्रीय
सहयोग: जलवायु परिवर्तन एक वैश्विक समस्या है, इसलिए इसका समाधान
भी वैश्विक स्तर पर ही किया जा सकता है। सभी देशों को मिलकर कार्बन उत्सर्जन को कम
करने के लिए प्रयास करने होंगे।
प्रश्न 30 से प्रश्न 33 तक प्रत्येक के लिए 4 अंक है।
30. 1991 से भारत में शुरू किए गए आर्थिक सुधारों
में उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण (एलपीजी) की भूमिका पर चर्चा करें।
उत्तर-
1991 में भारत ने एक गंभीर आर्थिक संकट का सामना किया था। इस संकट से निपटने के लिए
सरकार ने उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण (एलपीजी) के आधार पर व्यापक आर्थिक सुधारों
की शुरुआत की। इन सुधारों का उद्देश्य भारतीय अर्थव्यवस्था को गतिशील बनाना, विदेशी
निवेश को आकर्षित करना और देश के विकास को बढ़ावा देना था।
उदारीकरण-
उदारीकरण का अर्थ है अर्थव्यवस्था पर सरकारी नियंत्रण को कम करना और निजी क्षेत्र को
अधिक स्वतंत्रता देना। 1991 के सुधारों के तहत, सरकार ने कई क्षेत्रों में लाइसेंसिंग
और परमिट प्रणाली को समाप्त कर दिया और आयात शुल्क को कम किया। इससे घरेलू उद्योगों
को अधिक प्रतिस्पर्धी बनने के लिए प्रेरित किया गया और विदेशी निवेश को बढ़ावा मिला।
निजीकरण-
निजीकरण का अर्थ है सार्वजनिक उपक्रमों को निजी क्षेत्र को बेचना या उन्हें निजी क्षेत्र
के साथ साझेदारी में चलाना। 1991 के सुधारों के तहत, कई सार्वजनिक उपक्रमों का निजीकरण
किया गया। इससे इन उद्यमों की दक्षता में सुधार हुआ और सरकार के बोझ को कम किया गया।
वैश्वीकरण-
वैश्वीकरण का अर्थ है विश्व अर्थव्यवस्था के साथ अधिक एकीकृत होना। 1991 के सुधारों
के तहत, भारत ने विदेशी व्यापार को बढ़ावा दिया, विदेशी निवेश को आमंत्रित किया और
कई अंतर्राष्ट्रीय समझौतों पर हस्ताक्षर किए। इससे भारतीय कंपनियों को वैश्विक बाजार
में प्रवेश करने में मदद मिली और देश की अर्थव्यवस्था विश्व अर्थव्यवस्था से जुड़ गई।
एलपीजी
सुधारों के प्रभाव:
☞ आर्थिक
वृद्धि: एलपीजी सुधारों के परिणामस्वरूप भारत की अर्थव्यवस्था में तेजी से वृद्धि हुई।
☞ विदेशी
निवेश: विदेशी निवेश में वृद्धि हुई, जिससे रोजगार के अवसर पैदा हुए और तकनीकी विकास
को बढ़ावा मिला।
☞ उत्पादकता
में वृद्धि: निजीकरण और प्रतिस्पर्धा के कारण उद्यमों की उत्पादकता में वृद्धि हुई।
☞ गरीबी
में कमी: एलपीजी सुधारों के कारण गरीबी में कमी आई।
☞ मध्यम
वर्ग का उदय: सुधारों के परिणामस्वरूप एक मजबूत मध्यम वर्ग उभरा।
चुनौतियां:
☞ असमानता:
सुधारों के परिणामस्वरूप आय में असमानता बढ़ी है।
☞ बेरोजगारी:
औद्योगिक क्षेत्र में कुछ नौकरियां खत्म हुई हैं, जिससे बेरोजगारी की समस्या बढ़ गई
है।
☞ कृषि
क्षेत्र: कृषि क्षेत्र अभी भी कई चुनौतियों का सामना कर रहा है।
31. आज के संदर्भ में सतत विकास के महत्व पर चर्चा
करें।
उत्तर-
आज का युग कई चुनौतियों से जूझ रहा है, जैसे कि जलवायु परिवर्तन, संसाधनों का सीमित
होना, जनसंख्या वृद्धि और असमानता। इन चुनौतियों से निपटने और भविष्य की पीढ़ियों के
लिए एक बेहतर दुनिया बनाने के लिए सतत विकास एक महत्वपूर्ण समाधान है।
सतत
विकास का अर्थ है ऐसा विकास जो वर्तमान की आवश्यकताओं को पूरा करते हुए भविष्य की पीढ़ियों
की आवश्यकताओं को भी ध्यान में रखे। यह आर्थिक विकास, सामाजिक न्याय और पर्यावरण संरक्षण
के बीच संतुलन स्थापित करने के बारे में है।
आज
के संदर्भ में सतत विकास का महत्व:
1.
जलवायु परिवर्तन: सतत विकास जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने में मदद करता है।
नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों का उपयोग, ऊर्जा दक्षता और वनों के संरक्षण जैसी रणनीतियों
के माध्यम से हम ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम कर सकते हैं।
2.
संसाधनों का संरक्षण: सतत विकास संसाधनों के कुशल उपयोग को सुनिश्चित करता है। यह सुनिश्चित
करता है कि हमारी आने वाली पीढ़ियों के लिए भी पर्याप्त संसाधन उपलब्ध हों।
3.
सामाजिक न्याय: सतत विकास सभी लोगों के लिए समान अवसर सुनिश्चित करता है। यह गरीबी,
भूख और असमानता को कम करने में मदद करता है।
4.
आर्थिक विकास: सतत विकास आर्थिक विकास को बढ़ावा देता है, लेकिन यह सुनिश्चित करता
है कि यह विकास पर्यावरण और समाज के लिए हानिकारक न हो।
5.
भविष्य की पीढ़ियों के लिए एक बेहतर दुनिया: सतत विकास का लक्ष्य एक ऐसी दुनिया बनाना
है जहां सभी लोग एक स्वस्थ और समृद्ध जीवन जी सकें।
32. भारत के ग्रामीण विकास में ग्रामीण बैंकिंग
के लाभ और सीमाएँ बताइये।
उत्तर-
ग्रामीण बैंकिंग भारत के
ग्रामीण विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह ग्रामीण क्षेत्रों में रहने
वाले लोगों को बैंकिंग सुविधाएं प्रदान करती है, जिससे उन्हें वित्तीय समावेशन प्राप्त
होता है।
ग्रामीण बैंकिंग के लाभ
1. वित्तीय समावेशन: ग्रामीण बैंकिंग
ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को बैंकिंग सेवाओं तक पहुंच प्रदान करती है,
जिससे वे बचत कर सकते हैं, ऋण ले सकते हैं और अन्य वित्तीय सेवाओं का लाभ उठा सकते
हैं।
2. कृषि विकास: ग्रामीण बैंक किसानों
को कृषि के लिए आवश्यक ऋण प्रदान करते हैं, जिससे कृषि उत्पादन बढ़ता है और किसानों
की आय में वृद्धि होती है।
3. ग्रामीण उद्योगों को बढ़ावा: ग्रामीण
बैंक ग्रामीण उद्योगों को ऋण प्रदान करके उन्हें बढ़ावा देते हैं, जिससे रोजगार के
अवसर पैदा होते हैं।
4. बुनियादी ढांचे का विकास: ग्रामीण
बैंक ग्रामीण क्षेत्रों में सड़क, बिजली और सिंचाई जैसी बुनियादी सुविधाओं के विकास
के लिए ऋण प्रदान करते हैं।
5. सामाजिक विकास: ग्रामीण बैंक सामाजिक
विकास को बढ़ावा देने में भी मदद करते हैं, जैसे कि शिक्षा, स्वास्थ्य और स्वच्छता।
ग्रामीण बैंकिंग की सीमाएँ
1. ऋण वसूली की समस्या: ग्रामीण क्षेत्रों
में ऋण वसूली एक बड़ी समस्या है, जिससे बैंकों को नुकसान होता है।
2. पर्याप्त पूंजी की कमी: कई ग्रामीण
बैंकों के पास पर्याप्त पूंजी नहीं होती है, जिसके कारण वे पर्याप्त ऋण नहीं दे पाते
हैं।
3. कुशल कर्मचारियों की कमी: ग्रामीण
क्षेत्रों में कुशल बैंकिंग कर्मचारियों की कमी होती है।
4. बुनियादी ढांचे की कमी: ग्रामीण क्षेत्रों
में बुनियादी ढांचे की कमी के कारण बैंकों को संचालन में कठिनाई होती है।
5. जागरूकता की कमी: ग्रामीण लोगों में
बैंकिंग सेवाओं के बारे में जागरूकता की कमी होती है।
प्रश्न 33 से प्रश्न 34 तक प्रत्येक के लिए 6 अंक है।
33. भारत में 1991 के आर्थिक सुधारों ने औद्योगिक नीति, व्यापार नीति और सार्वजनिक क्षेत्र की
नीति में महत्वपूर्ण बदलाव लाए। सुधारों का उद्देश्य अर्थव्यवस्था को उदार बनाना, सरकारी
हस्तक्षेप को कम करना और वैश्वीकरण को बढ़ावा देना था। समय के साथ, भारतीय अर्थव्यवस्था
ने तेजी से विकास, विदेशी निवेश प्रवाह और निजी क्षेत्र के उद्यमों के विस्तार का अनुभव
किया। हालाँकि, इन सुधारों ने बढ़ती असमानता, पर्यावरण संबंधी चिंताएँ और क्षेत्रीय
असंतुलन जैसी चुनौतियाँ भी लाई।
मामले के आधार पर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर
दीजिए:
1. 1991 में शुरू किये गए एल.पी.जी.
सुधारों के किन्हीं दो घटकों के नाम बताइये। (1 अंक)
उत्तर- 1991 में भारत में शुरू किए गए एलपीजी (उदारीकरण, निजीकरण
और वैश्वीकरण) सुधारों के प्रमुख घटक निम्नलिखित थे:
☞ उदारीकरण: इसने सरकार के नियंत्रणों को कम किया और निजी क्षेत्र
को अधिक स्वतंत्रता दी। इसमें लाइसेंसिंग प्रक्रिया को आसान बनाना, आयात शुल्क को कम
करना और विदेशी व्यापार को बढ़ावा देना शामिल था।
☞ निजीकरण: इस प्रक्रिया में सार्वजनिक उपक्रमों को निजी क्षेत्र
को बेचा गया या उनके प्रबंधन में सुधार किया गया। इसका उद्देश्य दक्षता बढ़ाना और सरकारी
बोझ को कम करना था।
2. भारत की आर्थिक वृद्धि पर इन
सुधारों के एक सकारात्मक प्रभाव की व्याख्या कीजिए। (1 अंक)
उत्तर- एलपीजी सुधारों ने भारत की आर्थिक वृद्धि को काफी बढ़ावा
दिया। एक प्रमुख सकारात्मक प्रभाव यह था कि इन सुधारों ने विदेशी निवेश को आकर्षित
किया। विदेशी निवेशकों को भारत में निवेश करने के लिए प्रोत्साहित किया गया, जिससे
नई तकनीकें, पूंजी और ज्ञान का प्रवाह हुआ। इसने भारतीय उद्योगों को वैश्विक स्तर पर
प्रतिस्पर्धी बनाया और रोजगार के अवसर पैदा किए।
3. एल.पी.जी. सुधारों के कारण उभरी
एक चुनौती पर चर्चा करें। (1 अंक)
उत्तर- एलपीजी सुधारों के परिणामस्वरूप कई सकारात्मक बदलाव आए,
लेकिन साथ ही कुछ चुनौतियाँ भी पैदा हुईं। इनमें से एक प्रमुख चुनौती आय असमानता में
वृद्धि रही। सुधारों से कुछ लोगों को बहुत लाभ हुआ, जबकि अन्य लोग पीछे छूट गए। इससे
समाज में असमानता बढ़ी और सामाजिक तनाव पैदा हुआ।
4. मूल्यांकन करें कि सुधारों ने
भारत की औद्योगिक और व्यापार नीतियों को कैसे बदल दिया। (3 अंक)
उत्तर- एलपीजी सुधारों ने भारत की औद्योगिक और व्यापार नीतियों
में क्रांतिकारी परिवर्तन लाए:
☞ औद्योगिक नीति: सुधारों से पहले, औद्योगिक नीति सरकार के नियंत्रण
में थी और निजी क्षेत्र की भूमिका सीमित थी। सुधारों के बाद, सरकार ने निजी क्षेत्र
को अधिक स्वतंत्रता दी और विदेशी निवेश को प्रोत्साहित किया। इससे कई नए उद्योगों का
विकास हुआ और उत्पादकता में वृद्धि हुई।
☞ व्यापार नीति: सुधारों से पहले, भारत का व्यापार संरक्षणवादी
था। आयात पर उच्च शुल्क लगाए जाते थे और निर्यात को कम प्रोत्साहन दिया जाता था। सुधारों
के बाद, आयात शुल्क को कम किया गया और निर्यात को बढ़ावा देने के लिए कई उपाय किए गए।
इससे भारत की वैश्विक व्यापार में भागीदारी बढ़ी।
या
1947 में जब भारत को स्वतंत्रता
मिली, तो अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से कृषि पर आधारित थी और अधिकांश आबादी अपनी आजीविका
के लिए खेती पर निर्भर थी। भारतीय अर्थव्यवस्था कम विकसित थी, औद्योगीकरण का स्तर कम
था और बुनियादी ढांचे की कमी थी। देश को गरीबी, अशिक्षा और बेरोजगारी सहित कई आर्थिक
चुनौतियों का भी सामना करना पड़ा। ब्रिटिश औपनिवेशिक नीतियों ने भारतीय अर्थव्यवस्था
से संसाधनों को खत्म कर दिया और इसे दरिद्र बना दिया।
स्वतंत्र भारत की सरकार ने बुनियादी ढांचे, उद्योग
और कृषि के विकास पर ध्यान केंद्रित करके अर्थव्यवस्था के पुनर्गठन के लिए। कदम उठाए।
सवाल:
(a) स्वतंत्रता की पूर्व संध्या
पर भारतीय अर्थव्यवस्था की स्थिति का वर्णन करें। (3)
उत्तर- स्वतंत्रता के समय भारत की अर्थव्यवस्था बेहद कमजोर थी।
ब्रिटिश शासन के दौरान भारत का शोषण किया गया था और देश के संसाधनों का दोहन किया गया
था। भारतीय अर्थव्यवस्था की कुछ प्रमुख विशेषताएं इस प्रकार थीं:
☞ कृषि पर निर्भरता: अधिकांश भारतीय जनता कृषि पर निर्भर थी। कृषि
उत्पादकता कम थी और कृषि उपकरण पुराने थे।
☞ औद्योगीकरण का अभाव: भारत में औद्योगीकरण का स्तर बहुत कम था।
अधिकांश उद्योग छोटे पैमाने के थे और विदेशी पूंजी पर निर्भर थे।
☞ बुनियादी ढांचे का अभाव: परिवहन, संचार और ऊर्जा जैसे बुनियादी
ढांचे का बहुत कम विकास हुआ था।
☞ गरीबी और बेरोजगारी: देश में गरीबी और बेरोजगारी की समस्या बहुत
गंभीर थी।
☞ शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव: शिक्षा और स्वास्थ्य
सुविधाओं का अभाव था, जिससे लोगों का जीवन स्तर बहुत निम्न था।
(b) स्वतंत्रता के समय भारत के
सामने आई चुनौतियों पर प्रकाश डालिए। (3)
उत्तर- स्वतंत्रता के बाद भारत के सामने कई चुनौतियां
थीं:
☞ आर्थिक
विकास: देश को गरीबी, बेरोजगारी और असमानता जैसी समस्याओं से निपटने के लिए तेजी से
आर्थिक विकास की आवश्यकता थी।
☞ औद्योगीकरण:
देश को एक औद्योगिक देश बनने के लिए औद्योगिक विकास को बढ़ावा देना था।
☞ कृषि
विकास: कृषि उत्पादकता बढ़ाने और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कृषि क्षेत्र
में सुधार करने की आवश्यकता थी।
☞ बुनियादी
ढांचे का विकास: परिवहन, संचार और ऊर्जा जैसे बुनियादी ढांचे का विकास करना आवश्यक
था।
☞ सामाजिक
विकास: शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक न्याय जैसे क्षेत्रों में सुधार करने की आवश्यकता
थी।
34. औद्योगिक विकास के संदर्भ में भारत और चीन
के विकास अनुभवों की तुलना और अन्तर बताएं।
उत्तर-
भारत और चीन दोनों ही विकासशील देश हैं जिन्होंने स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद औद्योगिक
विकास के लिए कई प्रयास किए हैं। हालांकि, दोनों देशों ने औद्योगिक विकास के अलग-अलग
रास्ते अपनाए हैं, जिसके परिणामस्वरूप उनके विकास के अनुभवों में काफी अंतर देखने को
मिलता है।
प्रमुख
अंतर
1.
विकास मॉडल:
भारत:
भारत ने मिश्रित अर्थव्यवस्था का मॉडल अपनाया, जिसमें निजी और सार्वजनिक दोनों क्षेत्रों
को महत्वपूर्ण भूमिका दी गई।
चीन:
चीन ने शुरुआत में केंद्रीय नियोजन के मॉडल को अपनाया और बाद में बाजार सुधारों की
ओर बढ़ा।
2. औद्योगीकरण का तरीका:
भारत:
भारत ने धीमी गति से और चरणबद्ध तरीके से औद्योगीकरण किया।
चीन:
चीन ने तेजी से और बड़े पैमाने पर औद्योगीकरण किया।
3.
विदेशी निवेश:
भारत:
भारत ने लंबे समय तक विदेशी निवेश को सीमित किया।
चीन:
चीन ने विदेशी निवेश को प्रोत्साहित किया।
4.
कृषि क्षेत्र:
भारत:
भारत ने कृषि क्षेत्र को प्राथमिकता दी।
चीन:
चीन ने औद्योगीकरण के लिए कृषि क्षेत्र को त्याग दिया।
5.
समाजवादी नीतियां:
भारत:
भारत ने समाजवादी नीतियों पर अधिक जोर दिया।
चीन:
चीन ने बाजार अर्थव्यवस्था को अपनाया।
तुलनात्मक
विश्लेषण
विशेषताएं |
भारत |
चीन |
विकास
मॉडल |
मिश्रित
अर्थव्यवस्था |
केंद्रीय
नियोजन और बाद में बाजार सुधार |
औद्योगीकरण
का तरीका |
धीमी
गति से और चरणबद्ध तरीके से |
तेजी
से और बड़े पैमाने पर |
विदेशी
निवेश |
सीमित |
प्रोत्साहित |
कृषि
क्षेत्र |
प्राथमिकता |
औद्योगीकरण
के लिए त्याग दिया गया |
समाजवादी
नीतियां |
अधिक
जोर दिया गया |
बाजार
अर्थव्यवस्था को अपनाया गया |
Model Question Solution ![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhXmZq5yXgSI_-RBjTgTl6llmBBlZNWj8pyjFF0qiUw9s_IGdrQAChNm6FJ26WhqC0HWdKa0vulUQ7CyrdO2HvTDOHjdhTmhaZ5he0XEQGaoEkc0ijIL0444nmGh5Bw28mHlmIMFtZj_ydoPwnr_lVIKi_OUs1OV_bgZuu1_LN9huSTZBaN4Q2zrjVp/w30-h14-rw/new.gif)
12th Economics Short Answer Type Important Questions Part-2
12th Economics Short Answer Type Important Questions Part-1
12th Economics VVI Objective Questions Set-1
12th Economics SET -3 Koderma PROJECT RAIL 2.0 MODEL QUESTION PAPER-2023
12th Economics SET -2 Koderma PROJECT RAIL 2.0 MODEL QUESTION PAPER-2023
12th Economics Koderma PROJECT RAIL 2.0 MODEL QUESTION PAPER-2023 SET -1
Economics Model Paper 2021 Solution/JAC Board Jharkhand
व्यष्टि अर्थशास्त्र एक परिचय स्मरण रखें (Remember an Introduction to Microeconomics)
आय/उत्पादक का संतुलन स्मरण रखे (Remember an Revenue/ Producer’s Equilibrium)
अधिमाँग-सरकारी बजट-विनिमय दर-भुगतानशेष-स्मरण रख (Remember an Excess Demand-Budget-Exchange-Balance)
उत्पादन फलन/ लागत स्मरण रखें (Remember an Production Function/ Cost)
पूर्ति/बाजार/बाजार संतुलन स्मरण रखे (Remember an Supply/ Market/Market Equilibrium)
Economics Model Question Solution Set-1Term-1 Exam.
Economics Model Question Solution Set-2Term-1 Exam.
Economics Model Question Solution Set-3Term-1 Exam.
Economics Model Question Solution Set-4 Term-1 Exam.
Economics Model Question Solution Set-5 Term-1 Exam.
12th JAC Economics Model Paper Solution 2022-23
Economics Model Question Solution Set-1 Term-2 Exam. (2021-22)
Economics Model Question Solution Set-2 Term-2 Exam. (2021-22)
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