Project PARAKH Class-12th History Model Set-4 Questions-cum-Answer Booklet (2024-25)

Project PARAKH Class-12th History Model Set-4 Questions-cum-Answer Booklet (2024-25)
Project PARAKH Class-12th History Model Set-4 Questions-cum-Answer Booklet (2024-25)

 प्रोजेक्ट परख (तैयारी उड़ान की)

Class 12 विषयः- इतिहास

Set-4 मॉडल प्रश्न पत्र

वार्षिक इंटरमीडिएट परीक्षा-2025

सामान्य निर्देश

परीक्षार्थी यथा संभव अपने शब्दो में उत्तर दें।

सभी प्रश्न अनिवार्य है। कुल प्रश्नों की संख्या 52 है।

खण्डवार निर्देश को ध्यान में रखकर अपने उत्तर दें।

खण्ड क- बहुविकल्पीय प्रश्न

इस खंड में कुल 30 प्रश्न है। सभी प्रश्नों के उत्तर दें। प्रत्येक प्रश्न के चार विकल्प है सही विकल्प का चयन करें। प्रत्येक प्रश्न के लिए एक अंक निर्धारित हैं।

1. रेहला की रचना किसने की थी ?

(क) गुलवेदन बेगम

(ख) इब्न बतूता

(ग) अबुल फजल

(घ) अब्दुल लतीफ

2. गुप्तकालीन स्थापत्य का सर्वाधिक विकास किसके समय में हुआ था ?

(क) स्कन्द गुप्त

(ख) कुमार गुप्त

(ग) चन्द्र गुप्त-॥

(घ) चन्द्र गुप्त-।

3. त्रिपीटक किससे संबंधित है ?

(क) जैन

(ख) बौद्ध

(ग) हिन्दु

(घ) इस्लाम

4. पहाड़िया जनजाति के जीवन के प्रतीक के रुप में निम्न में से किसे जाना जाता है ?

(क) हल

(ख) कुदाल

(ग) चाकू

(घ) इनमें से कोई नहीं

5. भारत में औपनिवेशिक शासन व्यवस्था सर्वप्रथम कहाँ स्थापित हुई ?

(क) बंबई

(ख) बंगाल

(ग) मद्रास

(घ) कोई नहीं

6. "द-ग्रेट रिवॉल्ट" नामक पुस्तक किसने लिखी ?

(क) जेम्स आईटम

(ख) अशोक मेहता

(ग) वी डी सावरकर

(घ) विलियम स्मिथ

7. 1857 की विद्रोह का प्रमुख कारण क्या था ?

(क) हड़प नीति

(ख) ईसाई धर्म का प्रचारक

(ग) सती प्रथा की समाप्ति

(घ) चर्बी वाला कारतूस

8. प्लासी का युद्ध कब हुआ था ?

(क) 1757

(ख) 1857

(ग) 1764

(घ) इनमे से कोई नहीं

9. औपनिवेशिक भारत में स्टील उत्पादन कहाँ किया जाता था ?

(क) कानपुर

(ख) जमशेदपुर

(ग) कलकत्ता

(घ) मद्रास

10. महात्मा गाँधी के राजनीतिक गुरु कौन थे ?

(क) फिरोजशाह

(ख) लाजपत राय

(ग) गोपाल कृष्ण गोखले

(घ) चितरंजन दास

11. स्वराज पार्टी के संस्थापक कौन थे ?

(क) दादा भाई नौरोजी

(ख) रामकृष्ण गोखले

(ग) चितरंजन दास

(घ) महात्मका गाँधी

12. .मुस्लिम लीग की स्थापना कब हुई थी ?

(क) 1902

(ख) 1904

(ग) 1906

(घ) 1908

13. भारत छोड़ो आन्दोलन का प्रस्ताव कहाँ पारित किया गया था ?

(क) वर्धा

(ख) बम्बई

(ग) कलकत्ता

(घ) मद्रास

14. कौन सी महिला भारतीय सविधान सभा की सदस्य थी ?

(क) हंसा मेहता

(ख) सरोजिनी नायडू

(ग) दुर्गा बाई देशमुख

(घ) इनमें से सभी

15. सविधान सभा के अध्यक्ष कौन थे ?

(क) जवाहरलाल नेहरु

(ख) डॉ० राजेन्द्र प्रसाद

(ग) लाल बहादुर शास्त्री

(घ) बल्लभ भाई पटेल

16. हड़प्पा सभ्यता का किस देश के साथ व्यापारिक संबंध नहीं था ?

(क) मेसोपोटामिया

(ख) ईरान

(ग) अफगानिस्तान

(घ) चीन

17. जूते हुए खेत का प्रमाण कहाँ से मिला है ?

(क) हड़प्पा

(ख) मोहनजोदड़ो

(ग) कालीबंगा

(घ) लोथल

18. अशोक के अभिलेख को सर्वप्रथम किसने पढ़ा ?

(क) जॉन मार्शल

(ख) कनिंधम

(ग) जेम्स प्रिंसेप

(घ) अर्नेस्ट मैके

19. इंडिका किसकी रचना है ?

(क) मेगास्थनीज

(ख) कालीदास

(ग) प्लिनी

(घ) चाणक्य

20. महाभारत की रचना किस भाषा में हुई थी ?

(क) संस्कृत

(ख) पाली

(ग) प्राकृत

(घ) हिन्दी

21. गोत्र के अन्दर विवाह करना कौन सा विवाह है ?

(क) अंतविर्वाह

(ख) बर्हिविवाह

(ग) ब्रहा विवाह

(घ) राक्षस विवाह

22. श्वेतांबर एवं दिंगबर का संबंध में किस धर्म से है ?

(क) हिंदू

(ख) बौद्ध

(ग) शैव धर्म

(घ) जैन धर्म

23. महात्मा बुद्ध को महापरिनिर्वाण कहाँ प्राप्त हुआ :-

(क) कपिलवस्तु में

(ख) पाटलिपुरत्र में

(ग) कुशीनगर

(घ) गया में

24. इब्नबतूता ने किस पुस्तक की रचना की थी :-

(क) किताब उल हिंद

(ख) रिहला

(ग) आइने अकबरी

(घ) अकबर नामा

25. तूतिए-हिन्द की उपाधि से किसको नवाजा गया :-

(क) इब्न-बतूता

(ख) अल-बरुनी

(ग) महमूद-बिन-तुगलक

(घ) महमूद गजनवी

26. ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह कहाँ है :-

(क) दिल्ली

(ख) अजमेर

(ग) पकिस्तान

(घ) ईरान

27. गुरबानी का संकलन किस गुरु ने किया था :-

(क) गुरु नानक

(ख) गुरु अर्जुन देव

(ग) गुरु गोविन्द सिंह

(घ) गुरु अंगद

28. मुकदम क्या है :-

(क) सरपंच

(ख) जहाँगीर

(ग) मुखिया

(घ) अमीर

29. गणतंत्र का प्रमुख चुनाव कौन करता था :-

(क) गाँव के सभी लोग

(ख) गाँव के सभी औरते

(ग) गाँव के बुजुर्ग

(घ) केवल, किसान

30. विजयनगर राज्य की स्थापना किस नदी के किनारे की गई :-

(क) तुंगभद्रा नदी

(ख) कृष्णा नदी

(ग) हरिद्रा नहीं

(घ) गंडक नदी

खण्डः-ख अति लघुउत्तरीय प्रश्न

किन्ही छः प्रश्नो का उत्तर दें 2X6=12

31. पितृवंशिकता और मातृवंशिकता में क्या अंतर है ?

उत्तर-

(1) वह वंश परम्परा जो पिता के पुत्र और पौत्र, प्रपौत्र आदि से चलती है, पितृवंशिकता कहते है।

(2) वह परम्परा वशं परम्परा जो माता से जुड़ी होती है, मातृवंशिकता कहते है।

32. साँची कहाँ स्थित है ?

उत्तर-

(1) यह भोपाल से 20 कि०मी० उत्तर-पूर्व की और पहाड़ी की तलहटी में स्थित एक गाँव है।

(2) यह प्राचीन अवशेषों की भरभार है जिसमें बोद्धकालीन तौरणद्वारा, मूतियाँ और पत्थर की मूत्तियाँ मिलती है।

33. महमूद गजनवी ने भारत पर कितने बार आक्रमण किये थे ?

उत्तर- महमूद गजनवी ने भारत पर सत्रह (17) आक्रमण किये थे।

34. कृष्ण देव राय किस वंश संबंध थे ?

उत्तर- कृष्णदेव राय तुलुव वंश से सम्बद्ध थे ।

35. खुद-काश्त और पाहि-काश्त कौन थे ?

उत्तर- खुद-कास्त वे किसान थे जो उन्ही गाँवो में रहते थे जिनमें उनकी जमीन होती थी। पहि-कास्त वे किसान थे जो दूसरे गाँवँ से ठेके पर खेती करने आये थे।

36. कृष्ण देवराय में दरबारी भाषा कौन सी थी ?

उत्तर- कृष्ण देव राय के दरबार की मुख्य भाषा तेलगु थी।

37. बंगाल का प्रथम गवर्नर जनरल कौन था ?

उत्तर- लार्ड वारेन हेस्टिगस (1772-85)

38. भारत का प्रथम आखिल भारतीय सम्राट कौन था ?

उत्तर- भारत का प्रथम आखिल भारतीय सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य द्वितीय था।

खण्डः- ग लघुउत्तरीय प्रश्न\

किन्ही छः प्रश्नो का उत्तर दें 3X6-18

39. विलय का सिद्धात क्या है ?

उत्तर- विलय का सिद्धात के अनुसार अगर किसी सुरक्षा प्राप्त राज्य का शासक बिना एक स्वाभाविक उत्तराधिकारी के मर जाए तो उसका राज्य उसके दत्तक उत्तराधिकारी को नहीं सौपा जाएगा। बजाए अगर उत्तराधिकारी गोद लेने के काम को पहले से अंग्रेज अधिकारियों की सहमति प्राप्त न होगी तो यह ब्रिटिश राज्य में मिला लिया जाएगा।

40. कैबिनेट मिशन पर एक टिप्पणी लिखें ?

उत्तर- कैबिनेट मिशन-मार्च 1946 में भारतीय नेताओं के साथ भारतीयों को सता हस्तांतरणा की शर्तों पर बातचीत करने के लिए ब्रिटिश सरकार ने केबिनेट मिशन भेजा केबिनेट मिशन ने दो सीढ़ियों वाली संघीय योजना रखी जिससे आशा की जाती थी कि वह अधिकतम क्षेत्रीय स्वायवता के साथ-साथ राष्ट्रीय एकता भी बनाने रखेगी। प्रान्तो और देशी राज्यों का एक संघ बनाने की बात की गई जिसमें संघीय केन्द्र का केवल प्रतिरक्षा, विदेशी मामलों तथा संचार पर नियंत्रण रहेगा। साथ ही प्रान्त विशेष क्षेत्रिय यूनियन बना सकते थे, पारस्परिक सहमति से अपने कुछ अधिकार दे सकते थे।

41. मोहनजोदड़ो के सार्वजनिक स्नानानगार के विषय में लिखें ।

उत्तर- मोहनजोदडो में बना सार्वजनिक स्नानागार अपना विशेष महत्व रखता है। यह सिन्धु घाटी के लोगो की कला का अद्वितीय नमूना है। ऐसा अनुमान है कि वह स्नानागार (तालाब) धार्मिक अवसरों पर आम जनता के नहाने के प्रयोग में लाया जाता था। यह तालाब इतना मजबूत बना हुआ है कि हजारों वर्षों के बाद भी यह वैसे का वैसा ही बना हुआ है। इसकी दीवार काफी चौड़ी बनी हुई है। जो पक्की ईंटो और विशेष प्रकार के सीमेंट से बनी हुई है ताकि पानी अपने आप बाहर न निकल सके। तालाब (स्नानागार) में नीचे उतरने के लिए सीढ़ियाँ भी बनी हुई है। पानी निकलने के लिए नालियों का भी प्रबन्ध है।

42. क्या आरम्भिक राज्यो में शासक निश्चित रुप से क्षत्रिय ही होते थे ? चर्चा कीजिए ।

उत्तर- शास्त्रों के अनुसार केवल क्षत्रिय ही राजा हो सकते थे, परन्तु अनेक बार ऐसा नहीं हुआ है और राजवंशो की उत्पति अन्य वर्णों से हुई है। मौर्य वंश ने एक विशाल साम्राज्य की स्थापना की परंतु उनकी उत्पति के विषय में विवाद है। बाद के बौद्ध ग्रंथ उन्हें क्षत्रिय बताते है जबकि ब्राह्मणीय ग्रंथ उन्हें निम्न कुल का मानते थे। मौर्यो के उत्तराधिकारी शुंग और कण्व ब्राह्मण थे। गुप्त राजवंश को लेकर विवाद है। मध्य एशिया से आने वाले शको को मलेच्छ, बबर अथवा अन्य देशीय कहा गया है। सातवाहन कुल का संबंध भी ब्राह्मण से था। इस प्रकार कई राजवंश क्षत्रिय वर्ग से संबंधित नहीं थे। वस्तुतः राजनीतिक सत्ता का उपयोग प्रत्येक वह व्यक्ति कर सकता था

43. साँची क्यों बच गया जबकि अमरावती नष्ट हो गया ?

उत्तर- साँची स्थल के बचने और अमरावती के नष्ट होने का कारण निम्न है।

(i) अमरावती के स्तूप की खोज थोड़ी पहले 1796 ई. में हो गई थी। तब तक विद्वान इस बात के महत्व को नहीं समझ पाये थे कि किसी पुरातात्विक अवशेष को उठाकर ले जाने की बजाय खोज की जगह पर ही संरक्षित करना महत्वपूर्ण होता है।

(ii) अमरावती स्तूप के पत्थरों को उठाकर दूसरी जगह ले जाया गया। यहीं नहीं वहाँ की मूर्तियों को संग्राहलयों में रखा गया। इसके कारण स्तूप का महत्वपूर्ण अवशेष दूसरे जगह चला गया।

(iii) 1818 ई. में जब साँची की खोज हुई। इसके तीन तोरणद्वार तब भी खड़े थे। चौथा वहीं पर गिरा हुआ था। और टीला भी अच्छी हालत में था। तब भी यह सुझाव आया कि तोरणद्वारों को पेरिस या लंदन भेज दिया जाए। लेकिन किसी कारण से वहाँ नहीं भेजा जा सका। अंततः कई कारणों से साँची का स्तूप वही वहीं बना रहा।

44. इब्न बतूता द्वारा दास प्रथा के संबंध में दिए गए साक्ष्यों का विवेचना कीजिए।

उत्तर- इब्न-बतूता एवं दास प्रथा- इब्न बतूता ने दास प्रथा के विषय में विस्तृत विवरण दिया है। दास बाजारों में खुले आम वस्तुओं की तरह बेचे-खरीदे जाते थे और उपहार स्वरूप दिये जाते थे। उदाहरण के लिए इब्न बतूता सिंध पहुंचा तो उसने सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक के भेंट के स्वरूप में घोड़े और ऊँट के साथ दास भी खरीदे थे। उसने सुल्तान के गवर्नर को भी एक दास भेंट किया था। इब्न बतूता के अनुसार मुहम्मद बिन तुगलक नसीरुद्दीन नामक धर्मोपदेशक से प्रसन्न होकर उसे एक लाख टके (मुद्रा) साथ में दो सौ दास दिये।

इब्न-बतूता के विवरण से आभास होता है। कि सुल्तान के दरबार में ऐसी दासियों होती थी जो संगीत और गायन के कार्यक्रम में भाग लेती थी। उसने अपने अमीरों पर नजर रखने के लिए भी दासियों की नियुक्ति की थी। वे पालकी ढोते थे। श्रम कार्य करने वाले दास-दासियों की कीमत बहुत कम होती थी। उन्हें सामान्य लोग भी रख सकते थे।

45. बे-शरिया और बा शरिया सूफी परम्परा के बीच एकरुपता और अंतर दोनो को स्पष्ट कीजिए।

उत्तर- बे-शरिया और बा-शरिया सूफी परम्परा के बीच एकरूपता और अंतर- शरिया मुसलमान समुदाय को निर्देशित करने वाला कानून है। यह कुरान शरीफ और हदीस पर आधारित है। शरिया की अवहेलना करने वालों को बे-शरिया कहा जाता था कुछ रहस्यवादियों ने सूफी सिद्धान्तों की मौलिक व्याख्या से अलग कुछ सिद्धांतों को जन्म दिया। ये सिद्धांतो मौलिक सिद्धांतों पर ही आधारित थे। परंतु इन्होने खानकाह (सूफी संगठन) का तिरस्कार किया था। और यह रहस्यवादी फकीर का जीवन व्यतीत करते थे। निर्धनता और ब्रह्मचर्य को इन्होंने गौरव प्रदान किया।

शरिया का पालन करने वालो को बा-शरिया कहा जाता था जिनको सूफियों से अलग माना जाता था। बा-शरिया के लोग शेख से जुड़े रहते थे अर्थात् उनकी कड़ी पैगम्बर मुहम्मद से जुड़ी थी। इस कड़ी के द्वारा आध्यात्मिक शक्ति और आशीर्वाद मुरीदों (शिष्यों) तक पहुँचता था। दीक्षा के विशिष्ट अनुदान विकसित किए गए जिसमें दीक्षित को निष्ठा का वचन देना होता था।

46. विजयनगर की कला और साहित्य का वर्णन कीजिए ।

उत्तर- विजयनगर की कला तथा साहित्य :- विजयनगर राज्य साहित्य तथा कला की दृष्टि से अपने समकालीन राज्य से कहीं आगे था। विजयनगर राज्य के नरेशो के समय में संस्कृत, तेलुगू तमिल तथा कन्नड़ भाषाओं का साहित्य समृद्ध हुआ। सायण तथा भाई माधव विद्यारण्य ने वेदी की टीकाएँ लिखी। कृष्णदेव राय स्वयं उच्च कोटी का विद्वान था। यह कला साहित्यिक प्रगति का उत्कर्ष काल था। संगीत, नृत्य कला, नाटक, व्याकरण, दर्शन, वास्तुकला तथा धर्म आदि सभी विषयों पर उच्च कोटी का साहित्य रच गया।

विजयनगर साम्राज्य में वास्तुकला को बहुत प्रोत्साहन मिला। विजयनगर साम्राज्य के राजाओं ने अनेक सुन्दर मंदिर का निर्माण कराया। उनमें विट्ठल स्वामी का मंदिर तथा कृष्णदेव राय के समय में बना हजार स्तम्भों वाला मंदिर हिन्दु स्थापत्य के ज्वलंत उदाहरण हैं।

खण्डः- घ दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

किन्ही चार प्रश्नो का उत्तर दें 5X4=18

47. पहाडिया लोगो की आजीविका संथालो की आजीविका से किस रुप में भिन्न थी।

उत्तर- पहाड़िया लोगों की आजीविका और संथालों की आजीविका में निम्न अंतर है:-

(I) 18 वी शताब्दी के परवर्ती दशको के राजस्व अभिलेखों से ज्ञात होता है कि पहाड़िया जंगल की उपज से अपनी जीविका चलाते थे। और झूम खेती किया करते थे। जंगल को साफ करके बनाई जमीन पर लोग खाने के लिए विभिन्न प्रकार की दाले और ज्वार-बाजरा उगा लेते थे।

कुछ वर्षों तक उस साफ की गई जमीन पर खेती करते थे। और उस कुछ वर्षों के लिए परती छोड़कर नये इलाके में चले जाते थे जिससे कि उस जमीन में खोई हुई उर्वरता फिर से उत्पन्न हो जाये।

इसके विपरीत संथाल लोग स्थायी खेती करते थे। वे परिश्रम से जंगल को साफ करके खेतो की जुताई करते थे। इनकी जमीन चट्टानी थी। बुकानन के अनुसार वहाँ तम्बाकू और सरसो की अच्छी खेती होती थी।

(II) पहाड़िया लोग गुजारे वाली और खाद्य पदार्थों की खेती अधिक करते थे जबकि संथाल लोग व्यापारिक और नकदी फसलो की खेती करते थे।

(III) पहाड़िया लोग जंगल साफ करके और खेती करने के लिए कुदाल का प्रयोग करते थे। इसके वे हल को हाथ लगाने को तैयार नहीं थे और उपद्रवी व्यवहार करते थे। इसके विपरीत संथाल आदर्श बाशिंदा प्रतीत हुआ, क्योकि उन्हें जंगलो का का सफाया करने में कोई हिचक नहीं थी और वे भूमि को पूरी ताकत लगाकर जोतते थे।

(IV) जंगलो में पहाड़िया लोग खाने के लिए महुआ के फूल एकत्र करते थे, बेचने के लिए रेशम के कोया और राल और काष्ठ कोयला बनाने के लिए लकड़ियाँ एकत्र करते थे। संथाल लोग इस प्रकार का कार्य नहीं करते थे।

(V) पहाड़िया लोग प्रायः उन मैदानों पर आक्रमण किया करते थे जहाँ किसान एक स्थान पर रहकर अपनी खेती-बाड़ी किया करते थे। पहाड़िया द्वारा ये आक्रमण प्रायः अपने आपको विशेष रूप से अभाव या आकाल के वर्षों में जीवित रखने के लिए किये जाते थे। संथाल लोग इस प्रकार के कार्यों में रुचि नहीं लेते थे।

(VI) मैदानों में रहने वाले जमींदारों को प्रायः पहाड़ी मुखियाओं को नियमित रूप से उपज खिराज देकर उनसे शांति खरीदनी पडती थी। पहाडिया लोग व्यापारियों से पथ कर लिया करते थे। संथाल लोग इस प्रकार के कार्यों में रुचि नहीं लेते थे।

48. सन 1857 के विद्रोह की असफलता के कारणों का उल्लेख करें।

उत्तर- 1857 विद्रोह की असफलता के कुछ महत्वपूर्ण कारण निम्न प्रकार है :-

(i) यह विद्रोह किसी साकारात्मक विचारधारा से प्रेरित नहीं थी। इसके पीछे कोई उच्चतर राजनीतिक प्रणाली स्थापित करने की विचारधारा भी नहीं थी। इसके पीछे कोई उच्चतर राजनीतिक प्रणाली स्थापित करने की विचारधारा भी नहीं थी। विद्रोह की न तो कोई सुनियोजित कार्यक्रम था और न धन की कोई स्थायी व्यवस्था थी। विद्रोहियों का केवल एक ही मकसद था- विदेशी शासन को समाप्त करना।

(ii) विद्रोही नेताओं में राजनीतिक नेतृत्व, सैनिक अनुभव और सामरिक दूरदृष्टि का अभाव था। उनमें से किसी नेता को दिल्ली के पतन के परिणामों का आभास नहीं था। और उनके द्वारा इसकी संयुक्त सुरक्षा के लिए कोई उपाय नहीं किए गए।

(iii) विद्रोहियों में अनुशासन की कमी थी और उनकी निष्ठाएँ शक्तियों के प्रति ज्यादा थी। बौद्धिक दृष्टि से वे अपनी शत्रु की तुलना में कुछ भी नहीं थे। अंग्रेज सैन्य तकनीक आधुनिक विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी पर आधारित थी, जबकि विद्रोहियों ने पारम्परिक हथियारों तीर-धनुष भाले वरछे आदि का का प्रयोग किया। ऐसी स्थिति में विद्रोहियों की असफलता निश्चित थी। अंग्रेजो ने रेल, सड़क डाक एवं तार, टेलीग्राफ जैसे परिवहन एवं नए संचार माध्यमों का यथासंभव प्रयोग किया जिससे उन्हें अपनी योजनाओं को क्रियान्वित करने में मदद मिली। विद्रोही संचार के नए साधनो का उपयोग करने में पीछे रहें।

(iv) रणनीति और रण: कौशल की दृष्टि से भी अंग्रेजी सेनाएँ भारतीय विद्रोहियों से बहुत आगे थे। तत्कालीन दुनिया के सर्वश्रेष्ठ एवं सुखगामित ब्रिटिश सरकार के आदेशों के अधीन कार्य करती थी। ब्रिटिश सरकार के पास जनशक्ति के पर्याप्त स्त्रोत के साथ-साथ प्रचुर संसाधन उपलब्ध थे।

(v) विद्रोहियों में ऐसा कोई एक महान नेता नहीं था। जो इधर-उधर बिखरे हुए, तत्वों को ऐसी प्रबल शक्ति के रूप में संगठित कर सके जिसकी एक सुनिश्चित नीति और सुनिर्धारित कार्यक्रम हो। विद्रोही नेताओं की गतिविधियों भी उनके स्वार्थो के कारण सीमित ही रहीं।

(vi) इस विद्रोह में बड़े जमींदार और बुद्धिजीवी मध्यम वर्ग ने कोई रुचि नहीं ली और न ही उनका समर्थन किया। उनका तटस्थ रहना विद्रोह के लिए घातक साबित हुआ।

49. बक्सर के युद्ध एवं उसके महत्व की चर्चा करें।

उत्तर- कम्पनी तथा नवाब में युद्ध 1761 में ही आरम्भ हो गया। कई झड़पें हुई तथा मीर कासिम ने हार खाई। बचकर वह अवध पहुँचा तथा अवध के नवाब तथा मुगल सम्राट से मिलकर अंग्रेजों को बाहर निकालने की योजना बनाई। इन तीनो की सम्मिलित सेना, जिसमें 40 या 50 हजार के बीच सैनिक थे की टक्कर कम्पनी की सेना से हुई। कम्पनी की सेना में 7027 सैनिक थे तथा उसकी कमान मेजर मुनरों के हाथ में थी, परन्तु युद्ध बक्सर के स्थान पर 22 अक्टूबर, 1764 ई० को हुआ, दोनों दलो की क्षति अत्यधिक हुई, परन्तु मैंदान अंग्रेजो के हाथ रहा ।

युद्ध घमासान हुआ। अंग्रेजो के 847 सैनिक घायल अथवा मारे गए तथा दूसरी ओर 2000 के लगभग घायल तथा मारे गए। प्लासी का युद्ध, युद्ध कौशल से नहीं जीता गया था। वहाँ विश्वास घात हुआ था, परन्तु यहाँ दोनों ओर से डटकर युद्ध किया गया। तैयारी पूरी थी। निश्चित ही वह अधिक कुशल सेना की जीत थी।

बक्सर नें प्लासी के निर्णयों पर पक्की मोहर लगा दी। भारत में अब अंग्रेज को चुनौती देने वाला कोई दूसरा नहीं रह गया था। अब नया नवाब उसकी कठपुतली था। अवध का नवाब उसका आभारी तथा मुगल सम्राट उनका पेंशनर था इलाहाबाद तक का प्रवेश अंग्रेजों के चरणों में आ गया तथा दिल्ली का मार्ग खुला था। इसके पश्चात बंगाल तथा अवध ने अंग्रेजो के अधिकार से बाहर आने का प्रयत्न नहीं किया तथा उनका फंदा और भी सुदृढ़ होता चला गया।

प्लासी के युद्ध ने बंगाल में अंग्रेजो की शक्ति को सुदृढ़ किया तथा बक्सर के युद्ध ने उतरी भारत में तथा अब वे समस्त भारत पर दावा करने लगे थे। इसके पश्चात् मराठो तथा मैसूर ने कुछ चुनौती देने का प्रयत्न किया। परन्तु, भारत की दासता अब स्पष्ट थी, केवल समय का प्रश्न था। बक्सर का युद्ध भारतीय इतिहास में निणीयक सिद्ध हुआ।

50. विरोध के प्रतीक के रुप में गाँधीजी ने नमक का चुनाव क्यों किया। आन्दोलन पर इसका क्या प्रभाव पड़ा।

उत्तर- नमक प्रत्येक व्यक्ति के जीवन से जुड़ा था। और नमक के कारणों से जनता को यह समझाना आसान था कि किस प्रकार विदेशी सरकार उनके मूलभूत अधिकार अर्थात् भोजन के अधिकार को बाधित कर रही है। इस कानून में ब्रिटिश सरकार ने भारतीयों के नमक बनाने में रोक लगाई तथा नमक बनाने और विक्रय का अधिकार अपने पास रखा। नमक कानून एक कलंक के समान था। आम भारतीय को ऊँचे दामों पर नमक खरीदना पड़ता था।

गाँधीजी के अनुसार नमक विरोध का प्रतीक था, क्योकि :-

(i) अंग्रेजी सरकार नमक उत्पादन में एकाधिकार रखी हुई थी।

(ii) सरकार नमक पर कर लगाकर मूल्य से चौदह गुना अधिक कीमत वसूलती थी

(iii) जनता को इसके उत्पादन से रोकती थी। जबकि जनता आसानी से नमक बनाया करती थी।

(iv) भारत में नमक प्राकृतिक रूप से उपलब्ध था।

(v) भारतीयों द्वारा बनाया गया नमक को नष्ट कर दिया जाता था तथा दंडित भी किया जाता था।

(vi) नमक बनाने से रोकना एक सुलभ ग्राम उद्योग से वंचित करने के समान था।

उपयुक्त कारणों से नमक कानून स्वतंत्रता संघर्ष का महत्वपूर्ण मुद्दा बन गया। गाँधी जी ने नमक को विरोध का प्रतीक मानते हुए। नमक कानून तोड़ने का फैसला किया। गाँधीजी साबरमती आश्रम से 12 मार्च 1930 ई. को दांडी की 240 मील की यात्रा प्रारंभ किये और 6 अप्रैल 1930 को दांडी के समुद्रतट पर एक मुट्टी नमक बनाकर सविनय अवज्ञ आन्दोलन का शुरुआत किये ।

51. हड़प्पा संस्कृति की मुख्य देन या उपलब्धियों कौन-कौन सी है ?

उत्तर- हड़प्पा संस्कृति में कुछ ऐसी विशेषताएँ हैं जिनको सामने रखकर कुछ इतिहासकार अब यह मानने लगे है कि अवश्य ही यह सभ्यता, अन्य सभ्यताओं से श्रेष्ठ है और इसकी संसार को बड़ी देन है। निम्नलिखित क्षेत्रों में सिंधु घाटी के लोगों की उन्नति उनकी श्रेष्ठ सभ्यता का स्पष्ट प्रमाण है :-

(i) श्रेष्ठतम तथा सुनियोजित नगर- हड़प्पा के नगरों की स्थापना ऐसे मनोवैज्ञानिक एवं सुनियोजित ढंग से की गई थी थी। जिसका उदाहरण प्राचीन संसार में कहीं नहीं मिलता। आज की भाँति आवश्यकतानुसार सड़के व गलियाँ छोटी और बड़ी दोनो प्रकार की बनाई गई थी। डॉ. मैके जैसे लोग भी इन नगरो की प्रशंसा किये बिना न रह सके। उनके कथनानुसार गलियाँ व बाजार इस प्रकार के बनाये गए थे कि वायु अपने आप ही उनको साफ कर दें।

(ii) श्रेष्ठ सुनियोजित एवं सुव्यवस्थित निकास व्यवस्था :- सफाई का जितना ध्यान यहाँ के लोग रखते थे, उतना शायद ही किसी दूसरे देश के लोग रखते हैं। इतनी पक्की और छोटी-छोटी नालियाँ आजकल भी हमें आश्चर्य में डाले बिना नहीं रहती।

(iii) श्रेष्ठ व निपुण नागरिक प्रबन्ध- नगर प्रबन्ध भी सर्वोतम ढंग का था। ऐसा संसार के किसी दूसरे प्राचीन देश में देखने में नहीं आता। स्थान-स्थान पर पानी का विशेष प्रबंध था। गालियों में प्रकाश का भी प्रबन्ध था। यात्रियों के लिए सराएँ और धर्मशालाएँ बनी हुई थी और नगर की गन्दगी को बाहर से जाकर खाइयों में डलवा दिया जाता था। वे लोग आधुनिक युग की भाँति स्वास्थ्य के नियमों से अच्छी तरह परिचित थे। इसीलिये तो उन्होंने बर्तन बनाने की भट्टी को भी नगर के अन्दर नहीं बनने दिया

(iv) सुन्दर और उपयोगी कला- यहां की कला में दो विशेष गुण थे, जो अन्य देशों की कला में एक साथ देखने को कम मिलते हैं-

(क) इस सभ्यता में बनावटीपन लेशमात्र को भी न था। इसके घरों अथवा भवनों का निर्माण लोगो की उपयोगिता या आराम को ध्यान में रखते हुए हुआ था।

(ख) उपयोगिता के साथ-साथ मकानो में सुन्दरता भी थी। मेसोपोटामिया के मकान चाहे अधिक सुन्दर व अच्छे हो, परन्तु उनमें कृत्रिमता अधिक थी और वे उपयोगी भी थी।

52. जैन धर्म और बौध्द धर्म में कौन-कौन सी समानताएँ थी ?

उत्तर- जैन धर्म और बौद्ध धर्म में निम्न समानताएँ थी :-

(i) हिन्दु धर्म की कुरीतियों का विरोध- दोनों धर्मो का जन्म हिन्दू धर्म में फैली कुरीतियों का विरोध करने के लिए ही हुआ था। दोनो धर्म जाति-पांति छुआछूत, ऊँच-नीच एवं मूर्ति पूजा के विरोधी थे।

(ii) दोनो क्षत्रिय राजकुमार :- दोनो धर्मों के प्रवर्तक, क्षत्रिय राजकुमार थे। दोनों ही जीवों के प्रति दयाभाव रखते थे। दोनो का जनसाधारण पर विशेष प्रभाव था।

(iii) अहिंसा पर बल- दोनो धर्म अहिंसा में विश्वास रखते थे और किसी भी जीव को कष्ट देना महापाप समझते थे।

(iv) ईश्वर की सता को न मानना- बौद्ध और जैन धर्म दोनो ही ईश्वर की सता में विश्वास नहीं रखते थे और वेदों को भी ईश्वर कृत नहीं मानते थे।

(v) यज्ञ व कर्मकांड के विरोधी- जैन और बौद्ध दोनो ही धर्म यज्ञ, हवन आदि अनुष्ठानो अथवा आडम्बरो से दूर थे और यज्ञ में बलि देने के कट्टर विरोधी थे।

(vi) पवित्रता पर बल- दोनो धर्म बाहरी व आन्तरिक पवित्रता के पक्षपाती थे।

(vii) जातिवाद का विरोध- दोनो धर्म जातिवाद के घोर विरोधी थे और अन्य धर्म वालो को अपने धर्म में आने के लिए स्वागत करते थे।

(viii) मोक्ष का समान लक्ष्य- दोनो धर्म जीवन को मुक्ति दिलाने के लिए मोक्ष को आवश्य मानते थे। वे पुर्नजन्म एवं आवागमन के चक्कर से मुक्ति चाहते थे।

Model Question Solution 
















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